Koderma PROJECT RAIL 2.0
MODEL QUESTION PAPER-2023
SET -2
वर्ग-12 |
विषय – इतिहास |
पूर्णांक- 40 |
समय- 1 घंटा 30 मिनट |
सामान्य
निर्देष :-
•
कुल 40 प्रश्न है। सभी प्रश्नों के उत्तर अनिवार्य है।
•
सभी प्रश्न के लिए 1 अंक निर्धारित है।
•
प्रत्येक प्रश्न के लिए चार विकल्प दिये गये है ।
•
सही विकल्प का चयन कीजिए ।
•
गलत उत्तर के लिए कोई अंक नहीं काटे जाएँगें ।
वस्तुनिष्ट प्रश्न :-
क
1. हड़प्पा सभ्यता किस युग की सभ्यता है?
क)
पूर्व पाषाण युग
ख)
नव पाषाण युग
ग)
लौह युग
घ) काॅस्य युग
2. हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा नगर कौन सा था ?
क) मोहनजोदड़ो
ख)
कालीबंगा
ग)
लोथर
घ)
रंगपुर
3. भारतीय इतिहास का कौन का काल स्वर्ण युग के नाम से जाना जाता
है?
क)
मौर्यकाल
ख) गुप्तकाल
ग)
मुगलकाल
घ)
अंग्रेजों का काल
4. पंतजली के महाभाष्य से किसकी जानकारी मिलती है?
क) मौर्यकाल की
ख)
गुप्तकाल की
ग)
मुगलकाल की
घ)
इनमें सभी
5. महाभारत की रचना किस भाषा में हुई ?
क) संस्कृत
ख)
पाली
ग)
प्राकृत
घ)
हिन्दी
6. ऋग्वैदिक कालीन लोग किसकी पूजा करते थे?
क)
बिष्णु
ख) प्रकृति
ग)
लक्ष्मी
घ)
षिव
7. साँची मध्य प्रदेश के किस जिले में स्थित है?
क)
विदिषा
ख) रायसेन
ग)
सागर
घ)
भोपाल
8. महावीर ने पार्श्वनाथ के सिद्धांत में कौन सा सिद्धांत जोड़ा?
क)
अंहिसा
ख) ब्रहाचार्य
ग)
सत्य
घ)
अपरिग्रह
9. यास्सा राजकीय नीयम किसने लागू किया था?
क)
तैमूर
ख) चंगेज खाँ
ग)
बाबर
घ)
अकबर
10. तुजुक - ए - जहाँगीरी की रचना किसने की ?
क)
अब्बास खाँ सरवानी
ख)
गुलबदन बेगम
ग) जहाँगीर
घ)
नूरजहाँ
11. अकबर निम्नलिखित में से किस पर अधिकार नहीं कर सका?
क)
मारवाड़
ख) मेवाड़
ग)
जोधपुर
घ)
चित्तौड़
12. आलमगीर के नाम से कौन सा मुगल बादशाह जाना जाता था?
क)
जहाँगीर
ख)
शाहजहाँ
ग) औंरगजेब
घ)
बहादुरशाह
13. महानवमी के डिब्बे को किस विदेशी यात्री ने 'विजय का भवन' का
संज्ञा दी है?
क) डेमिंगौस पेईस
ख)
अब्दुर्रज्जाक
ग)
निकाली कोण्टी
घ)
फर्नाओ नूनी
14. हम्पी को यूनेस्को द्वारा विश्व पुरातत्व स्थल किस वर्ष घोषित
किया?
क)
1856 में
ख)
1876 में
ग)
1902 में
घ) 1886 में 1986
15. गोपुरम का संबंध है?
क)
गाय से
ख)
नमर से
ग)
व्यापार से
घ) मन्दिर से
16. शंकराचार्य का मत है ?
क)
द्वेतवाद
ख) अद्वैतवाद
ग)
मेदामेदवाद
घ)
द्वेताद्वेतवाद
17. मध्ययुगीन यात्रियों का सरताज किस यात्री को कहा जाता है ?
क)
अलबरूनी
ख) मार्कोपोलो
ग)
बर्नियर
घ)
इब्नबतूता
18. भारत में स्थाई रूप से 10 वर्षीय जनगणना का आरंभ 1881 में किस
गवर्नर जनरल के काल में हुआ?
क)
क्लाईव
ख)
वारेन हेस्टिग्स
ग) रिपन
घ)
मेयो
19. स्थायी बन्दोबस्त जुड़ा हुआ था?
क)
वारेन हेस्टिग्स
ख)
वेलेजली
ग) कार्नवालिस
घ)
रिपन
20. व्यपगत के सिद्धांत का संबंध किससे है ?
क)
लार्ड कर्जन से
ख) डलहौजी से
ग)
लिटन से
घ)
मिंटो से
21. सात द्वीपों का नगर कहा जाता है?
क) बम्बई
ख)
शिमला
ग)
कलकत्ता
घ)
बैंगलोर
22. इण्डिया गेट का निर्माण कब हुआ ?
क)
1910 ई०
ख)
1912 ई०
ग) 1931 ई०
घ)
1918 ई
23. महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आये?
क)
1914 में
ख)
1989 में
ग) 1915 में
घ)
1890 में
24. चौरी चौरा काण्ड कब हुआ ?
क) 05 फरवरी 1922
ख)
16 फरवरी 1922
ग)
28 मार्च 1922
घ)
इनमें से कोई नहीं
25. नमक कानून किसने तोड़ा ?
क)
मोतीलाल नेहरू
ख) महात्मा गाँधी
ग)
मदन मोहन मालवीय
घ)
चन्द्रषेखर आजाद
26. भारत छोड़ो आंदोलन किस वर्ष आरंभ हुआ?
क)
1920
ख)
1930
ग) 1942
घ)
1947
27. पूना समझौता किस वर्ष हुआ ?
क) 1932
ख)
1934
ग)
1939
घ)
1942
28. किसका प्रकाशन अबुल कलाम आजाद ने किया ?
क)
न्यू इण्डिया
ख) अल हिलाल
ग)
यंग इण्डिया
घ)
कामसे
29. मुस्लिम लीग द्वारा मुसलमानों हेतु पृथक राष्ट्र पाकिस्तान की
मांग कब उठाई ?
क)
1938
ख) 1940
ग)
1942
घ)
1947
30. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का श्रेय किसे है?
क)
गाँधीजी
ख)
तिलक
ग)
गोखले
घ) ए०ओ० ह्यूम
31. मुस्लिम लीग की स्थापना किस वर्ष हुई ?
क)
1885
ख) 1906
ग)
1915
घ)
1919
32. स्वतंत्र भारत के प्रथम भारतीय गर्वनर जनरल थे?
क)
सी० राजगोपालचारी
ख) लॉर्ड माउण्टबेटन
ग)
लाल बहादुर शास्त्री
घ)
इनमें से कोई नहीं
33. भारतीय संविधान कब लागू हुआ ?
क)
26 नवम्बर 1949
ख)
24 जनवरी 1950 26 जनवरी 1950
ग)
26 नवम्बर 1950
घ)
24 जनवरी 1950
34. भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष कौन थे?
क)
जवाहरलाल नेहरू
ख) राजेन्द्र प्रसाद
ग)
सरदार पटेल
घ)
भीमराव अंबेडकर
35. संविधान सभा की पहली बैठक में कितने सदस्य उपस्थित थे?
क)
110
ख) 210
ग)
310
घ)
79
36. भारतीय संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन के अंतर्गत किस वर्ष
हुई ?
क)
1942
ख)
1944
ग) 1946
घ)
1948
37. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता की
थी?
क)
दादाभाई नौरोजी
ख) ब्योमचन्द्र चटर्जी
ग)
फिरोज शाह मेहता
घ)
गोपाल कृष्ण गोखले
38. ब्रिटिष शासन काल में भारत में "धन प्रवास का सिद्धांत
किसने प्रतिपादन किया?
क)
आर०सी० दत्त
ख) दादाभाई नौरौजी
ग)
एम.एन. राय
घ)
एड्म स्थिम
39. भारतीय संविधान कब लागू हुआ ? 26 जनवरी 1950
क)
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
ख)
डॉ० बी०आर० अंबेडकर
ग)
गै सच्चिदानंद
घ)
पं0 जवाहरलाल नेहरू
[ख]
विषयनिष्ठ प्रश्न :-
इनमें से किन्ही पाँच प्रश्नों के उत्तर दें- 5x2 = 10
1. मोहनजोदड़ों शहर का अर्थ क्या है?
उत्तर
: मुर्दों का टीला
2. अष्टध्यायी ग्रन्थ किसके द्वारा लिखया गया?
उत्तर
: महर्षि पाणिनि
3. मौर्य प्रशासन को कितने भागों में बाँटा गया ?
उत्तर
: चार भागों में विभाजित था। तोसली (पूर्व में), उज्जैन (पश्चिम में), स्वर्णागिरी
(दक्षिण में) और तक्षशिला (उत्तर में) थे।
4. त्रिपिटक के बारे में आप क्या जानते है ?
उत्तर
: यह बौद्ध धर्म के प्राचीनतम ग्रंथ हैं जिसमें भगवान बुद्ध के उपदेश संगृहीत है।
5. स्थायी बन्दोबस्त से आप क्या समझते है ?
उत्तर
: स्थायी बंदोबस्त अथवा इस्तमरारी बंदोबस्त ईस्ट इण्डिया कंपनी और बंगाल के
जमींदारों के बीच कर वसूलने से सम्बंधित एक स्थाई व्यवस्था हेतु सहमति समझौता था
जिसे बंगाल में लार्ड कार्नवालिस द्वारा 22 मार्च, 1793 को लागू किया गया।
6. डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का जन्म कब हुआ ?
उत्तर
: 14 अप्रैल 1891
7. भारत को स्वतंत्रता किस अधिनियम के तहत् मिली?
उत्तर
: भारत स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 (भारत का संवैधानिक विकास)
3
जून 1947 को प्रस्तुत की गई माउंटबेटन योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद ने 4 जुलाई,
1947 को भारत स्वतंत्रता अधिनियम पारित कर दिया तथा इसे 18 जुलाई, 1947 को सम्राट
द्वारा अनुमति प्रदान कर दी गई।
लघु उत्तरीय प्रश्न
इनमें से किन्ही पाँच प्रश्नों के उत्तर दें- 5x3= 15
8. हड़प्पाकालीन सिचाई व्यवस्था के साधनों का वर्णन करें।
उत्तर
: हड़प्पा वासियों द्वारा मुख्यतः नहरें, कुएँ और तालाब जल संग्रह करने वाले स्थानों
को सिंचाई के रूप में प्रयोग में लाया जाता था।
(क)
अफगानिस्तान में सौतुगई नामक स्थल से हड़प्पाई नहरों के चिह्न प्राप्त हुए हैं।
(ख)
हडप्पा के लोगों द्वारा सिंचाई के लिए कुओं का भी इस्तेमाल किया जाता था।
(ग)
गुजरात के धोलावीरा नामक स्थान से तालाब मिला है। इसे कृषि की सिंचाई के लिए, पानी
देने के लिए तथा जल संग्रह के लिए प्रयोग किया जाता था।
9. बहुकालीन 16 महाजनपदों का नाम बताएं ।
उत्तर
:
महाजनपद |
राजधानी |
काशी |
वाराणसी |
कौशल |
श्रावस्ती |
अंग |
चम्पा |
चेदि |
शक्तिमती |
वत्स |
कौशाम्बी |
कुरु |
इंद्रप्रस्थ |
पांचाल |
अहिच्छत्र,
काम्पिल्य |
मत्स्य |
विराटनगर |
सूरसेन |
मथुरा |
अश्मक |
पैठान/प्रतिष्ठान/पोतन/पोटिल |
अवन्ति |
उज्जैन,
महिष्मति |
गांधार |
तक्षशिला |
कम्बोज |
हाटक/राजपुर |
वज्जि |
वैशाली |
मल्ल |
कुशीनगर,
पावा |
मगध |
गिरिव्रज
– राजगृह |
10. मगध साम्राज्य के उत्थान के कारणों को बताएं ।
उत्तर
: छठी शताब्दी ईसा पूर्व के भारत का राजनीतिक इतिहास 16 महाजनपदों के बीच प्रभुत्व
के लिए संघर्षों का इतिहास है इसमें मगध राज्य सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया और
साम्राज्य स्थापित करने में सफल हुआ जिसके निम्न कारण थे-
1.
भौगोलिक स्थिति-
-मगध
की राजधानी राजगृह गरीब्रज 5 पहाड़ियों से घिरी हुई थी।
-लोहे
की बहुतायत।
-यह
क्षेत्र उपजाऊ गंगा के मैदान में स्थित ।
-मुद्रा
का प्रचलन।
-नदियों
की बहुलता आदि।
2.
सैन्य संगठन-
-सेना
में हाथियों का प्रयोग।
-बेहतर
युद्ध अस्त्र एवं जलसेना।
3.
स्वतंत्र सामाजिक वातावरण-
-अन्य
राज्यों की अपेक्षा अधिक स्वतंत्र।
-लोगों
का रूढ़ी विरोधी होना।
4.
शासक वर्ग की भूमिका-
मगध
के उत्कर्ष में बिंबिसार ,आजाद शत्रु ,शिशुनाग चंद्रगुप्त मौर्य जैसे
महत्वाकांक्षी शासकों की कूटनीति का परिणाम था।
11. साँची स्तूप की खोज एवं इसके संरक्षण का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर
: साँची स्तूप की खोज - 1818 ई. में जनरल टेलर ने साँची के स्तूपों की खोज
की। 1822 ई. में भोपाल के असिस्टेंट पॉलीटिकल एजेन्ट कैप्टन जानसन ने प्रमुख स्तूप
के एक के ऊपर से नीचे तक की खुदाई कराई। 1851 ई. में अलेक्जेण्डर कनिंघम एवं
कैप्टन एफ. सी. मैसी ने भी यहाँ खुदाई कराई। कई हफ्तों तक रुककर उन्होंने यहाँ के
अवशेषों का अध्ययन किया। यहाँ प्राप्त अभिलेखों को पढ़ा। अपने निष्कर्ष इन्होंने
अपनी पुस्तक में प्रकाशित किये। 1881 ई. में मेजर कौल ने साँची में बहुत कार्य सम्पन्न
किया। 1912 ई. में सर जॉन मार्शल ने यहाँ खुदाई कराई। 1936 ई. में मुहम्मद हमीद ने
अन्तिम बार यहाँ खुदाई कराई।
साँची
का स्तूप आज विश्व की प्रमुख सांस्कृतिक धरोहरों में सम्मिलित कर लिया गया है। यह
स्तूप आज बहुत ही अच्छी हालत में है। प्रारम्भिक स्तूप समूहों में साँची का स्तूप
प्रसिद्ध है।
साँची
कहाँ है - साँची की
पहाड़ी मध्य प्रदेश के रायसेन जिला मुख्यालय से 25 किमी. की दूरी पर उत्तर की ओर
स्थित है। यह प्राचीन ऐतिहासिक नगरी विदिशा के अत्यन्त पास है। भोपाल से बीना
झाँसी होती हुई दिल्ली जाने वाली समस्त रेलगाड़ियाँ साँची स्टेशन से होकर ही
गुजरती हैं। भोपाल, रायसेन, विदिशा एवं सागर से सड़क मार्ग द्वारा भी साँची जाया
जा सकता है। इस प्रकार यह रेल एवं सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है एवं बहुत आसानी के
साथ यहाँ पहुँचा जा सकता हैं। आसान पहुँच मार्ग होने के कारण ही यहाँ देश-विदेश से
भारी संख्या में पर्यटक आते हैं।
साँची
का स्तूप आज विश्व की प्रमुख सांस्कृतिक धरोहरों में सम्मिलित कर लिया गया है। यह
स्तूप आज बहुत ही अच्छी हालत में है। प्रारम्भिक स्तूप समूहों में साँची का स्तूप
प्रसिद्ध है।
साँची
का स्तूप सुरक्षित कैसे बचा
- यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। प्राचीन काल के अन्य स्तूप नष्टप्राय हैं। साँची के
स्तूप को सुरक्षित बचाने का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष श्रेय 'प्रख्यात
पुरातत्ववेत्ता एच. एच. कौल की महत्वपूर्ण सोच एवं भोपाल की बेगमों शाहजहाँ बेगम
एवं उनकी उत्तराधिकारी सुल्तान जहाँ बेगम को जाता है।'
वस्तुत:
अंग्रेज एवं फ्रांसीसी अधिकारी खुदाई में प्राप्त पुराने अवशेषों को अपने देश अथवा
संग्रहालयों में ले जाते थे। 1854 ई. में गुंटूर आन्ध्र प्रदेश के कमिश्नर अमरावती
गये। उन्होंने अमरावती के स्तूप का पश्चिमी तोरण द्वार खोजा। अमरावती से एक विशाल
व शानदार स्तूप होने का प्रमाण मिला। मगर यहाँ के उत्कीर्ण पत्थर कलकत्ता एशियाटिक
सोसाइटी ऑफ बंगाल, इण्डिया ऑफिस मद्रास एवं लन्दन पहुँच गये। यही कारण है कि
अमरावती में आज कुछ शेष नहीं है। यही कहानी अन्य स्तूपों की भी है। अब हम देखेंगे
कि साँची स्तूप कैसे बचा रहा?
पुरातत्ववेत्ता
एच. एच. कौल ने बहुत ही सटीक बात कही कि 'इस देश की प्राचीन कलाकृतियों की लूट
होने देना मुझे आत्मघाती और न समर्थन करने वाली नीति लगती है।' उनका स्पष्ट अभिमत
था कि असली स्मारक एवं कृतियाँ वहीं पर संरक्षित होनी चाहिये जहाँ पर कि उन्हें
खोजा गया है। यदि संग्रहालयों में रखना ही है तो मूर्तियों की प्लास्टर
प्रतिकृतियाँ रखी जानी चाहिये। कौल की यह बात इतनी सशक्त थी कि ब्रिटिश अधिकारी
साँची में ही स्तूप के संरक्षण की बात मान गये।
12. मुगल शासक अकबर की उपलब्धियों का वर्णन करें।
उत्तर
: भारत से पूर्ण समन्वय - अकबर पहला ऐसा मुग़ल बादशाह था जिसने विदेशी होते
हुए भी भारतीय परम्पराओं को अपनाया था। इसलिए अकबर पूरी तरह से राष्ट्रीय भावनाओ
से परित था। उन्ही भावनाओं से प्रेरित होकर अकबर ने भारत के हर क्षेत्र में
जैसे-राजनितिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और धार्मिक में एकरूपता लाने की कोशिश की थी ।
राजनितिक
एकता - अपने
वैवाहिक संबंधो, विजयों तथा कूटनीति संबंधो से उत्तरी और दक्षिण भारत के एक शासन
यानी अकबर के अधीन लाकर, सब प्रांतों में एक जैसे अधिकारी, न्याय व्यवस्था,
भूमि-कर सिक्के और माप-तौल लाकर देश में राजनितिक और प्रशासनिक एकता लाने का
प्रयास किया जबकि ऐसा कभी नहीं हुआ था ।
सामाजिक
एकता - हिन्दू
मुस्लिम विवाह, होली, दशहरा, दीपावली आदि त्योहारों मनाकर योग्यतानुसार हिन्दुओं
को ऊँचे पद देकर, अकबर ने ये साबित कर दिया की वह मानव-मानव के बीच भेदभाव नहीं मानता।
अकबर हिन्दुओं और मुसलमानो में स्थापित करने और राष्ट्रीय भावना को विकसित करने का
प्रयास करनेवाला पहला मुस्लिम सम्राट था ।
धार्मिक
एकता - अकबर ने सभी
धर्मों को अपने-अपने ढंग से पूजा-अर्चना करने के पूरी छोट दे रखी थी। इसलिए उसने
सभी धर्मों की अच्छी बांतें लेकर एक न्य धर्म हटाकर बहुत बड़ी संख्या में हिन्दुओं
की धार्मिक भावनाओं का प्रशंसनीय सम्मान किया। उसके द्वारा निर्मित इबादतखाना वहां
आयोजित होनेवाली डर्मिक विचार-विनिमय की गोष्ठियाँ उसकी धार्मिक एकता स्थापन की
नीति का प्रतीक बन गया।
आर्थिक
एकता - देश में
यातायात के साधनो को सुधार कर अच्छी सिक्का प्रणाली, माप-तौल को अपनाकर तथा विदेशी
व्यापारिक जोड़कर अपने देश की आर्थिक दशा को सुधारा था। भूमि संबंध सुधार लेकर तथा
किसानो की उपज के लिए प्रोत्साहित करके देश के समिर्द्ध के रस्ते पर लाकर खड़ा कर
दिया।
साम्रज्य
विस्तार - अकबर ने
अपने साम्रज्य का अत्यधिक विस्तार किया, जो निम्नलिखित है --
गोंडवाना,
मालवा एवं जौनपुर विजय
राजपुताना
पर विजय
हल्दीघाटी
का युद्ध (1576)
गुजरातविजय
काबुल
एवं कंधार विजय
अहमदनगर
पर विजय
13. 1857 की क्रांति की असफलता के कारणों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर
: 1857 की क्रांति की असफलता के प्रमुख कारण निम्म थे-
1.
संगठन और एकता का अभाव
: 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के असफल रहने के पीछे संगठन और एकता का अभाव
प्रमुख रूप से उत्तरदायी रहा। इस क्रांति की न तो कोई सुनियोजित योजना ही तैयार की
गई न ही कोई ठोस कार्यक्रम था। इसी कारण यह सीमित और असंगठित बन कर रह गया।
2.
नेतृत्व का अभाव :
क्रांतिकारियों के पास यद्यपि नाना साहब, तात्याटोपे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
जैसे आदि योग्य नेता थे, किन्तु फिर भी इस आंदोलन का किसी एक व्यक्ति ने नेतृत्व
नही किया जिस कारण से यह आंदोलन अपने उद्देश्य मे पूर्णतः सफल नही हो सका।
3.
परम्परावादी हथियार
: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे भारतीय सैनिकों के पास आधुनिक हथियार नही थे जबकि
अंग्रेज सैनिक पूर्णतः आधुनिक हथियार व गोला-बारूद का उपयोग कर रहे थे। भारतीय
सैनिक अपने परम्परावादी हथियार तलवार, तीर-कमान, भाले-बरछे आदि के सहारे ही युद्ध
के मैदान मे कूद पड़े थे जो उनकी पराजय का कारण बना।
4.
सामन्तवादी स्वरूप
: 1857 के संग्राम मे एक ओर अवध, रूहेलखण्ड आदि उत्तरी भारत के सामन्तों ने
अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया तो दूसरी ओर पटियाला, जींद, ग्वालियर हैदराबाद
के शासकों ने विद्रोह के उन्मूलन मे अंग्रेजी हुकूमत को सहयोग किया। इस तरह यह
स्वतंत्रता संग्राम अपने उद्देश्य मे सफल नही हो सका।
5.
बहादुरशाह द्वितीय की अनभिज्ञता
: क्रांतिकारियों द्वारा बहादुरशाह द्वितीय को अपना नेता घोषित करने के बावजूद भी
बहादुरशाह के लिए यह क्रांति उतनी ही आकस्मिक थी जितनी कि अंग्रेजों के लिए थी।
यही कारण था कि अंततः बहादुरशाह को लेफ्टीनेण्ट हडसन ने बंदी बना कर रंगून भेज
दिया।
6.
समय से पूर्व और सूचना प्रसार मे असफल क्रांति : 1857 की क्रान्ति का असफलता का एक बड़ा कारण यह भी था
कि यह क्रांति समय से पूर्व ही प्रारंभ हो गयी। यदि यह क्रांति एक निर्धारित
कार्यक्रम के तहत लड़ी जाती तो इसकी सफलता के अवसर ज्यादा होते। इसी तरह आंदोलन के
प्रसार-प्रचार मे भी क्रांतिकारी नेतृत्व असफल रहा। इसका असर 1857 के स्वतंत्रता
संग्राम पर गहराई से पड़ा।
7.
स्थानीयता : 1857
की क्रान्ति मे स्थानीय उद्देश्य होने से आम भारतीयों का व्यापक जुड़ाव इसमे नही
हो सका। इस समय केवल उन्हीं शासकों ने क्रांति मे हिस्सा लिया जिनके हित सामने आ
रहे थे। 1857 की क्रान्ति की असफलता का यह भी एक कारण था।
8.
सम्पर्क भाषा का अभाव
: 1857 की क्रान्ति की असफलता का एक महत्वपूर्ण कारण क्रान्तिकारियों मे सम्पर्क
भाषा का अभाव भी था। तत्कालीन समय मे अंग्रेजों की एक भाषा थी जिसका उद्देश्य वे
सूचना संदेश पहुँचाने मे करते थे किन्तु एक राष्ट्र भाषा के अभाव मे भारतीय
क्रान्तिकारियों के बीच आपसी सूचनाएँ समय पर पहुंचने के बाद भी संदेशों से वे
परिचित नही हो पाते थे। 1857 की असफलता का यह महत्त्वपूर्ण कारण था।
9.
सीमित क्षेत्र :
कुछ विद्वानों का मत है कि क्रांति का सीमित क्षेत्र था। नर्मदा के दक्षिण मे,
सिन्ध, राजपूताना और पूर्वी बंगाल मे उसका कोई प्रभाव नही था। यह प्रदेश ऐसे
प्रदेश थे जो दूर थे इनमे केवल पंजाब ही ऐसा था जो सहयोग प्रदान कर सकता था परन्तु
सिक्खों ने इस समय अंग्रेजों का साथ दिया और अधिकांश को शस्त्रहीन करवा दिया था।
परन्तु विद्वान इस असफलता के कारण पर एकमत नही है। उनकी दृष्टि मे अनुशासन और
संगठन आवश्यक था।
1857
के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे यद्यपि पराजय का सामना करना पड़ा किन्तु इस
क्रांति के बड़े गहरे व दूरगामी परिणाम सामने आये जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के
इतिहास मे भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने। क्रांति ने अंग्रेजी साम्राज्य
की जड़ों को हिला दिया था।
1857
ई. का संग्राम ब्रिटिश राज के लिए एक बड़ी चुनौती था। इसे अन्ततः तत्कालीन गवर्नर
जनरल लाॅर्ड कैनिंग के द्वारा कुचल दिया गया, परन्तु इस संग्राम से अंग्रेजों को
गहरा झटका लगा। इस संग्राम ने अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ों को हिला कर रख दिया था
अतः ब्रिटिश सरकार ने भारत मे अनेक प्रशासनिक परिवर्तन किये।
14. महात्मा गाँधी की प्रारंभिक जीवन की जानकारी दीजिए ।
उत्तर
: महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को ब्रिटिश भारत में गुजरात राज्य के
काठियाड जिले के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था।
इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी और माता का नाम पुतली बाई था। इनके पिता
पोरबंदर के दीवान थे। पुतली बाई इनके पिता की चौथी पत्नी थी क्योकि इनसे पहले उनकी
तीन पत्नियों की प्रसव के दौरान मृत्यु हो चुकी थी। इनके भाई का नाम लक्ष्मीदास और
करसन दास और एक बहन थी जिनका नाम रालियातबेन था।
वैवाहिक
जीवन – 14 वर्ष की
भी आयु पूरी न कर पाने से पहले ही मई 1883 में इनका विवाह कस्तूरबाई माखनजी
कपाड़िया (कस्तूरबा गाँधी) से कर दिया गया। 1885 ईo में इनकी पहली संतान का जन्म
हुआ पर वह कुछ दिन ही जीवित रह सकी। बाद में 1888 में इनके पुत्र हरीलाल का जन्म
हुआ 1892 में मणीलाल, 1897 में रामदास का और 1900 में देवदास का। यही इनके चार
पुत्र थे। 1944 में पूना में कस्तूरबा गाँधी की मृत्यु हो गयी।
शिक्षा
व केरियर – गाँधी
जी ने राजकोट से सन् 1887 में हाईस्कूल किया और कानून की पढाई के लिए 1889 में बम्बई से इंग्लैण्ड गए और 1891 में
बेरिएस्टर की डिग्री प्राप्त की। बापस लौटने के बाद राजकोट और बम्बई में वकालत
शुरू की परन्तु कामयाब नहीं हुए। फिर दक्षिण अफ्रीका में एक भारतीय व्यापारी
अब्दुल्ला ने उन्हें मुक़दमे की पैरवी के लिए आमंत्रित किया और तब गाँधी जी 1893
में दक्षिण अफ्रीका गए। वहां पद भारतीयों के सतह हो रहे भेद भाव से ये दुखी हुए और
वहीँ रह कर उनके लिए कुछ करने की ठान ली। यहीं पर इनके साथ भी एक दुखद घटना हुयी
जब ये दक्षिण अफ्रीका में डबरन से प्रिटोरिया एक रेल से रिजर्वेशन करा के जा रहे
थे तो मैरिट्सबर्ग में एक अंग्रेज ट्रेन में चढ़ा उसे एक अश्वेत (गाँधी जी ) के साथ
रेल में सफर करना श्रम की बात लगा और उसने स्थानीय पुलिस की मदद से गाँधी जी को
ट्रेन से नीचे उतरवा दिया। बस इसी घटना ने गाँधी जी के ह्रदय में अंग्रेजो के
प्रति क्रांति की भावना के बीज बो दिए और वही दिन था जब गाँधी जी ने मन में निश्चय
कर लिया कि अंग्रेजो तुमने मुझे रेल ने निकला है एक दिन मैं तुम्हे अपने देश से
निकाल फेकूंगा और उन्होंने 15 अगस्त 1947 को यह कर दिखाया। वहीं पर इन्होने 1894
में नटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। 1904 में फीनिक्स आश्रम की स्थापना की और
1910 में टॉलस्टाय फार्म की स्थापना की। सत्याग्रह/अवज्ञा आंदोलन का पहला प्रयोग
गाँधी जी ने यहीं पर 1906 में किया।
दक्षिण अफ्रीका से इनकी बापसी 9 जनवरी 1915 को हुयी और ये मुंबई के अपोलो
बंदरगाह पर उतरे इसी दिन भारत में प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
इनमें से किन्ही तीन प्रश्नों के उत्तर दें- 5x3=15
15. हड़प्पा सभ्यता की नगर नियोजन प्रणाली का सविस्तार विवेचना
कीजिए ।
उत्तर
: हड़प्पा सभ्यता नगर योजना – 1922 ईस्वी के पूर्व यही माना जाता रहा कि
आर्य सभ्यता ही भारत की प्राचीनतम सभ्यता थी। मगर 1921 में हड़प्पा की खुदाई बाबू
दयाराम साहनी और 1922-23 में डॉक्टर आर डी बनर्जी की देखरेख में मोहनजोदड़ो
पाकिस्तान में खनन कार्य शुरू हुआ और तब एक आर्यपूर्व सभ्यता प्रकाश में आई।
क्योंकि इतिहास में हड़प्पा सभ्यता के आरंभिक अवशेष सिंधु घाटी नदी से प्राप्त हुई
है।
अतः
इसे सिंधु घाटी की सभ्यता का नाम दिया गया। परंतु जब बाद में देश के अन्य भागों
लोथल, कालीबंगा, रोपण, बनवाली, आलमगीरपुर आदि स्थानों से इस सभ्यता के अवशेष मिले
तो विद्वानों ने इसे हड़प्पा सभ्यता का नाम दिया।
हड़प्पा
सभ्यता नगर योजना :
हड़प्पा
सभ्यता की महत्वपूर्ण विशेषता यहां की नगर योजना थी। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा इसके
प्रमुख नगर थे। नगर मुख्य रूप से दो भागों में बटे थे। पश्चिम की ओर ऊंचा दुर्ग था
और पूर्व की ओर नगर का निचला हिस्सा था। नगरों में सड़कें व मकान विधिवत बनाए गए
थे। हड़प्पा के उत्खननों से पता चलता है कि यह नगर तीन मील के घेरे में बसा हुआ था।
सिंधु घाटी सभ्यता का हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, सुत्कागेन-डोर एवं सुरकोटदा
आदि की “नगर निर्माण योजना” में मुख्य रूप से समानता मिलती है।
1.
भवन : भवन प्रायः
पक्की ईंटों के बने हुए थे। भवन संभवतः एक से अधिक मंजिलों के रहे होंगे। यह सड़क
के किनारों पर बने थे तथा प्रवेश गलियों से होता था।
2.
सड़कें : यहां की
सड़कें लगभग 33 फुट तक चौड़ी थी। सभी सड़कें पूर्व से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण की
ओर जाती हुई एक दूसरे को समकोण पर काटती थी। नगरों में सड़कों पर रात को रोशनी की
भी व्यवस्था की गई थी, संभवत: मसाले जलाई जाती थी। सड़कों का विन्यास ही ऐसा था कि
हवा स्वयं ही सड़कों को साफ करती रहे।
3.
नालियां : गंदे
पानी के निकास हेतु भावनाओं की ऊपर की मंजिलों में पाइपों का प्रयोग किया जाता था।
गलियों की छोटी-छोटी नालियां 1 फुट चौड़ी व दो फुट गहरी थी। यह नालियां पानी को
मुख्य सड़कों के किनारे बनी बड़ी नालियों में ले जाती थी तथा यह बड़ी नालियां पानी
को नगर से बाहर नालों में ले जाती थी। नालियों को ऊपर ईंटों से इस प्रकार ढका भी
जाता था। ताकि सफाई हेतु ईटों को सरलता से उठाया जा सके।
4.
जल वितरण :
मोहनजोदड़ो के निवासियों ने जल वितरण का अति उत्तम ढंग अपनाया था। यहां अत्यधिक
संख्या में कुएं पाए गए हैं। कुछ घरों में अपने कुएं थे तथा कई कुएं सार्वजनिक थे।
लगभग सभी नगरों के छोटे या बड़े मकानों में प्रांगण व स्नानागार थे। कालीबंगा के
प्रत्येक घरों में अपने-अपने कुएं थे।
5.
कूड़ेदान : उस समय
नगरों में सफाई की विशेष व्यवस्था रही होगी, यह जगह जगह पर बने कूड़ेदानों से पता
चलता है।
16. मौर्य साम्राज्य भारतीय इतिहास में किस प्रकार से मील का पत्थर
है संक्षिप्त में वर्णन कीजिए ।
उत्तर
: मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य के द्वारा की गई थी। जिसमें उनके
गुरू चाणक्य या कौटिल्य ने उनका बहुत सहयोग किया था। जहां तक इस साम्राज्य की शुरूआत
की बात है तो यह वर्तमान बिहार और बंगाल से शुरू हुआ था। जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र
थी। वर्तमान में पाटलिपुत्र को पटना के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि 322
ई.पूं. चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश के शासक धनानंद की हत्या कर इस वंश की स्थापना
की थी। धीरे- धीरे यह वंश बहुत बड़े क्षेत्र में फैल गया।
मौर्य
साम्राज्य को भारतीय इतिहास में मील का पत्थर भी कहा जाता है। उसका सबसे बड़ा कारण
यह है कि भारतीय इतिहास में मौर्य साम्राज्य से पहले कभी इतना बड़े क्षेत्र पर
किसी एक वंश के शासको ने शासन नहीं किया। इसके अलावा मौर्य काल से हमें चंद्रगुप्त
के गुरू और महान् राजनीतिज्ञ चाणक्य द्वारा लिखी गई सुप्रसिद्ध पुस्कत अर्थशास्त्र
से इतिहास की बहुत महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
मौर्य
वंश के ही एक और महान् शासक सम्राट अशोक ने अनेंक शिलालेख लिखवाएं। जिनके आधार पर
हमें उस समय का इतिहास लिखने में बहुत सहायता मिलती है। मौर्य साम्राज्य से पूर्व
हमें 16 महाजनपदों का वर्णन मिलता है। जब भारत पर छोटे – छोटे क्षेत्रों पर अनेंक
राजा शासन करते थे। लेकिन एक साम्राज्य के रूप में भारत मौर्य काल में ही सामने
आया।
मौर्य
साम्राज्य की राजनीतिक स्थिरता और एकीकृत केंद्र सरकार के कारण आर्थिक समृद्धि को
प्रोत्साहन मिला तथा व्यापार और वाणिज्य का विकास हुआ। जब भी हम भारत के इतिहास का
अध्ययन करते हैं, तो उसमें मौर्य साम्राज्य का अपना विशेष महत्व है। मौर्य
साम्राज्य के समय हुए परिवर्तनों को महत्व को देखते हुए. मौर्य साम्राज्य के समय
को हम भारत इतिहास में मौर्य काल के आधार पर विभाजित कर पढते हैं। इसी आधार पर
मौर्य साम्राज्य को भारतीय इतिहास में मील का पत्थर कहा जाता है।
17. बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर
: बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध थे। इनका जन्म नेपाल की तराई में स्थित
कपिलवस्तु के लुम्बिनी ग्राम में शाक्य क्षत्रिय कुल में 563 ई.पू.में हुआ था।
इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। इनकी माता का नाम महामाया तथा पिता का नाम
शुद्धोधन था।
इनके
जन्म के 7वें दिन माता महामाया का देहांत हो गया था, इसलिए सिद्धार्थ का लालन-पालन
उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया। 16 वर्ष की अवस्था में सिद्धार्थ का विवाह
शाक्य कुल की कन्या यशोधरा से हुआ । यशोधरा का बौद्ध ग्रंथों में अन्य नाम बिम्ब,
गोपा, भद्कच्छना भी मिलता है। सिद्धार्थ से यशोधरा को एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका
नाम राहुल था।
सांसारिक
समस्याओं से व्यथित होकर सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग दिया । इस
त्याग को बौद्ध धर्म में महाभि-निष्क्रमण कहा गया है। गृहत्याग के बाद सिद्धार्थ
अनोमा नदी के तट पर अपने सिर को मुङवा कर भिक्षुओं का काषाय वस्त्र धारण किया। सात
वर्ष तक सिद्धार्थ ज्ञान की खोज में इधर-उधर भटकते रहे। सर्वप्रथम वैशाली के समीप
अलार क़लाम (सांख्य दर्शन के आचार्य) नामक संयासी के आश्रम में आये। इसके बाद
उन्होंने उरुवेला (बोधगया) के लिए प्रस्थान किया,जहाँ उन्हें कौडिन्य सहित 5 साधक
मिले।
6
वर्ष तक अथक प्रयास के बाद तथा घोर तपस्या के बाद 35 वर्ष की आयु में वैशाख
पूर्णिमा की रात पीपल(पीपल) वृक्ष के नीचे निरंजना (पुनपुन) नदी के तट पर
सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ। इसी दिन से सिद्धार्थ तथागत कहलाये।
ज्ञान
प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए। उरुवेला से बुद्ध
सारनाथ (ऋषि पत्तनम एवं मृगदाव) आये यहाँ पर उन्होंने पाँच ब्राह्मण संन्यासियों
को अपना प्रथम उपदेश दिया, जिसे बौद्ध ग्रन्थों में धर्म – चक्र-प्रवर्तन नाम से
जाना जाता है। बौद्ध संघ में प्रवेश सर्वप्रथम यहीं से प्रारंभ हुआ। महात्मा बुद्ध
ने तपस्या एवं काल्लिक नामक दो शूद्रों को बौद्ध धर्म का सर्वप्रथम अनुयायी बनाया।
बद्ध ने अपने जीवन के सर्वाधिक उपदेश श्रावस्ती में दिये । उन्होंने मगध को अपना
प्रचार केन्द्र बनाया। बुद्ध के प्रसिद्ध अनुयायी शासकों में बिम्बिसार, प्रसेनजित
तथा उदयन थे। बुद्ध के प्रधान शिष्य उपालि व आनंद थे। सारनाथ में बौद्धसंघ की
स्थापना हुई।
महात्मा
बुद्ध अपने जीवन के अंतिम पङाव में हिरण्यवती नदी के तट पर स्थित कुशीनारा पहुँचे।
इसे बौद्ध परंपरा में महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है। मृत्यु से पूर्व
कुशीनारा के परिव्राजक सुभच्छ को उन्होंने अपना अंतिम उपदेश दिया। महापरिनिर्वाण
के बाद बुद्ध के अवशेषों को आठ भागों में विभाजित किया गया।
गौतम
बुद्ध के उपदेश और अनमोल वचन :
ज्ञान
के रूप मे गौतम को पता चला कि जीवन मे पीड़ा और दुख है। जीवन के दुखो का कारण
इच्छाएं है। अगर मनुष्य अपनी इंद्रियो पर काबू पर सके तो वह जिंदगी मे कोई कष्ट
नही पाएगा। इच्छाए खत्म होने के उपरांत हम जीवन सही ढंग से जी सकेंगे।
बुद्ध
द्वारा 7 ऐसे सिद्धांत बताए गए है जिनसे मोक्ष की प्राप्ति होना संभव है।
1.
सही विश्वास
2.
सही सोच
3.
सही कारवाई
4.
सही प्रयास
5.
आजीविका का सही साधन
6.
सही स्मरण
7.
सही ध्यान
बुद्ध
ने अपने अनुयायीयो से कुछ अनमोल आज्ञाओ का पालन करने का अनुरोध किया। यह सभी आज्ञा
बुरे कर्मो के खिलाफ है।
18. सुफी आंदोलन पर प्रकाश डाले ।
उत्तर
: इस विचारधारा के सबसे बड़े विचारक थे अबू हमीद अल गजाली (1058-1111)
जिन्होंने रहस्यवाद और इस्लामी परम्परावाद के बीच मेल कराने का प्रयत्न किया।
वह
एक महान धर्म विज्ञानी थे जिन्होंने 1095 में एक सूफी का जीवन व्यतीत करना
प्रारम्भ किया। उन्हें परम्परावादी तत्वों और सूफी मतावलम्बियों दोनों के द्वारा
ही बहुत अधिक सम्मानपूर्वक देखा जाता था। अल गजली ने सभी गैरपरम्परावादी सुन्नी
विचारधाराओं पर आक्रमण किया। वे कहते थे सकारात्मक ज्ञान तर्क द्वारा नहीं प्राप्त किया जा सकता बल्कि
आत्मानुभूति द्वारा ही देखा जा सकता है। सूफी भी उलेमाओं की भांति ही कुरान पर
निष्ठा रखते थे।
भारत
में सूफी मत का आगमन
: 11वीं और 12वीं शताब्दी में माना जाता है। भारत में बसे श्रेष्ठ सूफियों में से
एक थे कृ अल हुजवारी जिनका निधन 1089 ई. में हो गया। उन्हें दाता गंजबख्श (असीमित
खजाने के वितरक) के रूप में जाना जाता है। प्रारंभ में, सूफियों के मुख्य केन्द्र
मुल्तान व पंजाब थे। परंतु 13वीं व 14वीं सदी तक सूफी कश्मीर, बिहार, बंगाल एवं
दक्षिण तक फल चुके थे। यह उल्लेखनीय है कि भारत में आने से पूर्व ही सूफी वाद ने
एक निश्चित रूप ले लिया था। उसके मौलिक एवं नैतिक सिद्धांत, शिक्षण एवं आदेश
प्रणाली, उपवास, प्रार्थना एवं खानकाह में रहने की परम्परा पहले से ही तय हो चुकी
थी। सूफी अपनी इच्छा से अफगानिस्तान के माध्यम से भारत आए थे। उनके शुद्ध जीवन,
भक्तिप्रेम व मानवता के लिए सेवा जैसे विचारों ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया तथा
भारतीय समाज में उन्हें आदर सम्मान भी दिलवाया। सूफी मत के सिद्धांत भक्ति मार्ग
के सिद्धांत से मिलते जुलते है ।
सूफी
आंदोलन के प्रमुख सिद्धांत :
1.
एकेश्वरवादी - सूफी
मतावलम्बियों का विश्वास था कि ईश्वर एक है आरै वे अहदैतवाद से प्रभावित थे उनके
अनुसार अल्लाह और बन्दे में कोई अन्तर नहीं है । बन्दे के माध्यम से ही खुदा तक
पहुंचा जा सकता है।
2.
भौतिक जीवन का त्याग
- वे भौतिक जीवन का त्याग करके ईश्वर मे लीन हो जाने का उपदेश देते थे ।
3.
शान्ति व अहिंसा में विश्वास - वे शान्ति व अहिंसा में हमेशा
विश्वास रखते थे ।
4.
सहिष्णुता - सूफी
धर्म के लोग उदार होते थे वे सभी धर्म के लोगों को समान समझते थे ।
5.
प्रेम - उनके
अनुसार प्रेम से ही ईश्वर प्राप्त हो सकते हैं। भक्ति में डूबकर ही इसं ान
परमात्मा को प्राप्त करता है।
6.
इस्लाम का प्रचार -
वे उपदेश के माध्यम से इस्लाम का प्रचार करना चाहते थे ।
7.
प्रेमिका के रूप मे कल्पना
- सूफी संत जीव को प्रेमी व ईश्वर को प्रेमिका के रूप में देखते थे ।
8.
शैतान बाधा - उनके
अनुसार ईश्वर की प्राप्ति में शैतान सबसे बाधक होते हैं ।
9.
हृदय की शुद्धता पर जोर
- सूफी संत, दान, तीर्थयात्रा, उपवास को आवश्यक मानते थे।
10. गुरु एवं शिष्य का महत्व - पीर (गुरु) मुरीद शिष्य के समान
होते थे ।
11.
बाह्य्य आडम्बर का विरोध
- सूफी संत बाह्य आडम्बर का विरोध व पवित्र जीवन पर विश्वास करते थे
12.
सिलसिलों से आबद्ध
- सूफी संत अपने वर्ग व सिलसिलों से संबंध रखते थे ।
सूफी
आंदोलन के प्रभाव :
सूफी मत से भारत में हिन्दू मुस्लिम एकता स्थापित हो गयी । शासक एवं शासित वर्ग के
प्रति जन कल्याण के कार्यों की प्रेरणा दी गयी । संतों ने मुस्लिम समाज को
आध्यात्मिक एवं नैतिक रूप से संगठित किया गया ।
सूफी
सम्प्रदाय के प्रमुख संत :
1.
ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती
2.
निजामुदुदीन औलियों
3.
अमीर खुसरो
सूफी
मत के सम्प्रदाय :
1.
चिश्ती सम्प्रदाय,
2.
सुहरावादियॉं सम्प्रदाय,
3.
कादरिया सम्प्रदाय,
4.
नक्शबदियॉं सम्प्रदाय,
5.
अन्य सम्प्रदाय (शत्तारी सम्प्रदाय) आदि ।
19. संविधान निर्मात्री सभा का विस्तृत परिचय दीजिए ।
उत्तर
: द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जुलाई 1945 में ब्रिटेन में एक सरकार बनी।
इस नयी सरकार ने भारत सम्बन्धी अपनी नई नीति की घोषणा की तथा एक संविधान निर्माण
करने वाली समिति बनाने का निर्णय लिया। भारत की स्वतंत्रता/स्वतन्त्रता के प्रश्न
का हल निकालने के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने कैबिनेट के तीन मंत्री
लॉरेन्स, क्रिप्स, अलेक्जेंडर को भारत भेजा। मंत्रियों के इस दल को कैबिनेट मिशन
के नाम से जाना जाता है। 15 अगस्त 1947 को भारत के आज़ाद हो जाने के बाद यह
संविधान सभा पूर्णतः प्रभुतासंपन्न हो गई। इस सभा ने अपना कार्य 1 दिसम्बर 1946 से
आरम्भ कर दिया। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित
सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। डॉ राजेन्द्र प्रसाद, भीमराव अम्बेडकर, सरदार वल्लभ
भाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस
सभा के प्रमुख सदस्य थे। अनुसूचित वर्गों से 30 से ज्यादा सदस्य इस सभा में शामिल
थे। सच्चिदानन्द सिन्हा इस सभा के प्रथम सभापति थे। किन्तु बाद में डॉ राजेन्द्र
प्रसाद को सभापति निर्वाचित किया गया। भीमराव अंबेडकर को निर्मात्री समिति का
अध्यक्ष चुना गया था। संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11माह, 18 दिन में कुल 165 दिन बैठक
की। इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी।
संविधान
सभा के अध्यक्ष :
1.
9 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई और इस बैठक में डॉ. सच्चिदानंद
सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष के रूप में चुना गया।
2.
मुस्लिम लीग के बैठक का बहिष्कार करने के कारण 11 दिसम्बर 1946 को डॉ. राजेंद्र
प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष के रूप में चुना गया।
3.
13 दिसम्बर 1946 को श्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा एक उद्देश्य प्रस्ताव दिया
जाता है की भारत का संविधान कैसा बनना चाहिए, और बाद में ये प्रस्ताव 22 जनवरी
1947 को पास हो जाता है।
यही
प्रस्ताव सविधान की प्रस्तावना कहलाता है, और भारत का संविधान बनना शुरू हो जाता
है।
संविधान
पारित और लागू :
भारतीय
संविधान 26 नवम्बर 1949 को आंशिक रूप से लागू किया गया और इस दिन कुल 284 सदस्यो
ने इसमें हश्ताक्षर करके इसको पारित किया परन्तु संविधान को इसके दो महीने बाद 26
जनवरी 1950 को लागू किया गया क्यूंकि 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज की मांग की थी।