असगर वजाहत (शेर, पहचान, चार हाथ, साझा)
प्रश्न 1. लोमड़ी स्वेच्छा से शेर के मुँह में क्यों चली जा रही थी
?
उत्तर
: लोमड़ी वहाँ रोजगार पाने के लिये चली जा रही थी। उसे किसी ने बताया था कि शेर के
मुँह में रोजगार का दफ्तर है। वह वहाँ प्रार्थना-पत्र देकर नौकरी पाना चाहती थी। वह
शेर द्वारा किए गए प्रचार के कारण भ्रमित हो गई थी और इस पर विश्वास कर लिया था।
प्रश्न 2. कहानी में लेखक ने शेर को किस बात का प्रतीक बताया है ?
उत्तर
: कहानी में शेर को व्यवस्था अर्थात् शासन-सत्ता का प्रतीक बताया गया है। सत्ता अहिंसक
और सहअस्तित्ववादी होने का दिखावा करती है। उसने भ्रम फैला रखा है कि वह जनता की हित
चिन्तक है। इसी कारण उस पर विश्वास करके जनता उसकी बात मानती है। कुछ स्वार्थवश भी
उसका सहयोग करते हैं। सत्ता विरोध बरदाश्त नहीं करती और विरोधी को ताकत के साथ कुचल
देती है। वह जनहित के नाम पर अपना हित साधती है।
प्रश्न 3. शेर के मुँह और रोजगार के दफ्तर के बीच क्या अंतर है?
अथवा
शेर के मुँह और रोजगार के दफ्तर के बीच क्या अंतर बताया गया है? इस
लघुकथा के माध्यम से लेखक ने हमारे समाज की किस व्यवस्था पर व्यंग्य किया है?
उत्तर
: शेर के मुँह में जो एक बार जाता है, वहाँ से वापस नहीं आता। रोजगार दफ्तर के लोग
बार-बार चक्कर लगाते हैं, अर्जी देते हैं पर उन्हें नौकरी नहीं मिलती। शेर जानवरों
को निगल लेता है पर रोजगार दफ्तर नौकरी चाहने वालों को निगलता नहीं लेकिन उन्हें रोजगार
प्रदान करके जीने का अवसर भी उनको नहीं देता। इस लघुकथा के माध्यम से लेखक ने वर्तमान
शासन व्यवस्था पर व्यंग्य किया है?
प्रश्न 4. 'प्रमाण से अधिक महत्त्वपूर्ण है विश्वास' कहानी के आधार
पर टिप्पणी कीजिए।
अथवा
असगर वजाहत की 'शेर' लघुकथा के आलोक में प्रतिपादित कीजिए कि 'प्रमाण
से भी अधिक महत्वपूर्ण है विश्वास'।
उत्तर
: लेखक ने जब सब जानवरों को एक-एक करके शेर के मुँह में जाते देखा तो विचार किया कि
ऐसा वे लालच और प्रलोभन के वशीभूत होकर कर रहे हैं। लेखक ने असलियत जानने के लिये जब
शेर के दफ्तर.जाकर स्टाफ से पूछा कि क्या यह सच है कि शेर के पेट के अंदर रोजगार दफ्तर
है तो उत्तर मिला - 'हाँ, यह सच है।' जब लेखक ने पूछा-कैसे ?
तो
उत्तर मिला कि सब ऐसा ही मानते हैं। जब लेखक ने प्रमाण माँगा तो बताया गया कि 'प्रमाण
से अधिक महत्वपूर्ण है विश्वास' अर्थात् जानवरों को यह विश्वास था कि शेर के पेट में
रोजगार दफ्तर है जहाँ उन्हें नौकरी मिल जाएगी इसीलिये वे उसमें निरन्तर समाते चले जा
रहे थे। ठीक इसी तरह बेरोजगार लोगों को यह विश्वास है कि रोजगार दफ्तर में पंजीकरण
कराने से उन्हें नौकरी मिल जाएगी पर ऐसा होता नहीं। यह तो शेर का पेट. है जिसमें सब
समाते जा रहे हैं, कल्याण किसी का नहीं होता।
पहचान
प्रश्न 1. राजा ने जनता को हुक्म क्यों दिया कि सब लोग अपनी आँखें बंद
कर लें?
उत्तर
: राजा ने जनता को आँख बंद कर लेने का हुक्म दिया और कहा इससे शांति मिलती रहेगी पर
उसके पीछे असली कारण यह था कि जनता बिना कुछ देखे, बिना कुछ सोचे-विचारे आँख बंद करके
उसकी आज्ञा का पालन करती रहे। यदि प्रजा आँखें खोलकर देखेगी तो उसे प्रजा के हित के
नाम पर राजा द्वारा किया गया शोषण दिखाई देगा। उसे सत्ता के स्वार्थ सिद्ध करने वाले
काम समझ में आ जायेंगे।
प्रश्न 2. आँखें बंद रखने और आँखें खोलकर देखने के क्या परिणाम निकले?
उत्तर
: प्रजा के आँखें बंद रखने से धीरे-धीरे राजा का प्रभुत्व सर्वत्र व्याप्त हो गया और
वह निरंकुश हो गया। जनता को राजा द्वारा किए जाने वाले अपने ही शोषण का पता नहीं चला।
जब प्रजाजनों. खैराती, रामू और छिद् ने आँख खोलकर देखा तो वे एक-दूसरे को न देख सके,
सर्वत्र राजा ही उन्हें दिखाई दिया। अर्थात् राजा ने उत्पादन के साधनों पर धीरे-धीरे
अपना अधिकार जमा लिया और प्रजाजनों को भुलावे में रखकर ऐसा बना दिया कि अब वे एकजुट
होकर उसके खिलाफ खड़े होने का दुस्साहस नहीं कर सकें। पूँजीपति भी तो यही करता है।
प्रश्न 3. राजा ने कौन-कौन से हुक्म निकाले ? सूची बनाइए और इनके निहितार्थ
लिखिए।
उत्तर
: राजा ने निम्नलिखित हुक्म निकाले राजा के हुक्म -
प्रजाजन
अपनी आँखें बंद रखें।
प्रजाजन
अपने कानों में पिघला सीसा डाल लें।
प्रजाजन
अपने होंठ सिलवा लें।
प्रजाजनों
को कई तरह की चीजें कटवाने और जुड़वाने के हुक्म मिलते रहे।
राजा
चाहता था कि उसकी प्रजा अंधी, गूंगी और बहरी बनकर चुपचाप बिना विरोध किये उसकी समस्त
आज्ञाओं का पालन करती रहे। प्रजा उसके बुरे कार्यों को देख न सके, किसी के द्वारा उसके
विरुद्ध कही गई बातों को सुन न सके। मुँह से उसके विरुद्ध आवाज न उठा सके। वह लोगों
के जीवन को स्वर्ग जैसा बनाने का झांसा देकर अपना जीवन स्वर्गमय बनाता रहा। वह जनता
को एकजुट होने से रोकता रहा और उन्हें भुलावे में रखता रहा।
प्रश्न 4. जनता राज्य की स्थिति की ओर से आँखें बंद कर ले तो उसका राज्य
पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: जिस देश की जनता राज्य की ओर से आँखें बंद कर लेती है वहाँ का शासक स्वेच्छाचारी
हो जाता है और जनता के सारे अधिकार छिन जाते हैं। शासक तो यही चाहता है कि प्रजा गूंगी-बहरी
और अंधी रहे तथा उसकी आज्ञा का चुपचाप पालन करे किन्तु इससे राजा का ही भला होता है,
प्रजा का नहीं। आँख बंद कर राजा के हुक्म का पालन करने वाली प्रजा का कोई कल्याण नहीं
होता। सत्ता को निरंकुश होने से रोकने के लिए प्रज़ा को सजग रहना चाहिए तथा आँखें खोलकर
शासन के कार्यों को नियंत्रित करना चाहिए।
प्रश्न 5. खैराती, रामू और छिद् ने जब आँखें खोली तो उन्हें सामने राजा
ही क्यों दिखाई दिया ?
उत्तर
: खैराती, रामू और छिद् ने वर्षों तक आँखें बंद रखने के बाद जब आँखें खोली तो उन्हें
अपने सामने सर्वत्र राजा ही दिखाई दिया। वे यह सोच रहे थे कि उनका राज्य अब तक स्वर्ग
जैसा हो गया होगा किन्तु यह उनका भ्रम.था। राजा ने अपनी स्थिति पहले से मजबूत कर ली
थी और वही सर्वत्र व्याप्त था। यही नहीं वर्षों बाद आँखें खुलने पर वे तीनों एक-दूसरे
को भी न देख सके। प्रजाजन एकजुट न हो पाएँ यही राजा का उसकी आज्ञाओं के पीछे उद्देश्य
था जिसमें उसे सफलता मिल गयी थी। तीनों एक दूसरे को न देख सके का आशय यह है कि उनको
प्रजाहित का कोई काम दिखाई नहीं दिया सर्वत्र राजा - का ही प्रभुत्व दिखाई दिया।
चार हाथ
प्रश्न 1. मजदूरों को चार हाथ देने के लिये मिल मालिक ने क्या किया
और उसका क्या परिणाम निकला ?
उत्तर
: मिल मालिक ने सोचा कि अगर मजदूरों के चार हाथ होते त्तो उत्पादन दुगुना हो जाता।
उसने वैज्ञानिकों की मोटी तनख्वाह पर नौकर रखा और उनसे इस दिशा में कार्य करने को कहा
पर उन्होंने कहा कि यह असंभव है। तब उसने लकड़ी के हाथ लगवाये पर काम न बना। फिर उसने
मजदूरों के लोहे के हाथ लगवा दिये इससे मजदूर मर गए।
प्रश्न 2. चार हाथ न लग पाने पर मिल मालिक की समझ में क्या बात आ गई
?
उत्तर
: चार हाथ न लग पाने पर मिल मालिक की समझ में यह बात आ गई कि इस तरह उत्पादन दूना नहीं
किया जा ने तय किया कि उत्पादन बढ़ाने और खर्च उतना ही रखने के लिये मजदूरों की संख्या
दुगुनी कर दी जाए और मजदूरी आधी कर दी जाए। उसने ऐसा ही किया और बेबसलाचार मजदूर आधी
मजदूरी पर ही काम करने लगे।
साझा
प्रश्न 1. साझे की खेती के बारे में हाथी ने किसान को क्या बताया ?
उत्तर
: हाथी ने किसान के सामने यह प्रस्ताव रखा कि वह उसके साथ साझे की खेती करे। हाथी ने
उसे बहुत देर तक पट्टी पढ़ाई और कहा कि उसके साथ साझे की खेती करने से यह लाभ होगा
कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर खेतों को नुकसान पहुँचा सकेंगे और खेती की अच्छी रखवाली
हो जाएगी। हाथी की बातों में आकर किसान साझे में खेती करने के लिये तैयार हो गया और
उसने हाथी के साथ साझा करते हुए गन्मा बोया।
प्रश्न 2. हाथी ने खेत की रखवाली के लिये क्या घोषणा की?
उत्तर
: हाथी पूरे जंगल में घूमकर डुग्गी पीट आया कि गन्ने की खेती में उसका साझा है अतः
कोई जानवर खेत को नुकसान न पहुँचाए, नहीं तो अच्छा न होगा।
प्रश्न 3. आधी-आधी फसल हाथी ने किस तरह बाँटी ?
उत्तर
: गन्ना तैयार हो जाने पर किसान ने प्रस्ताव किया कि फसल आधी-आधी बाँट ली जाय तो हाथी
बहुत बिगड़ा और कहा मेरे-तेरे की बात मत करो, यह छोटी बात है। हम दोनों ने मेहनत की
है तो दोनों मिलकर गन्ना खायेंगे। किसान के कुछ कहने से पहले ही हाथी ने आगे बढ़कर
अपनी सूंड से एक गन्ना तोड़ लिया और आदमी से कहा- "आओ खाएँ।" गन्ने का एक
छोर हाथी की सूंड में था और दूसरा आदमी के मुँह में। गन्ने के साथ-साथ आदमी भी हाथी
के मुँह की तरफ खिंचने लगा तो उसने गन्ना छोड़ दिया। हाथी ने कहा-देखो हमने एक गन्ना
खा लिया। इस तरह वह पूरे खेत के गन्ने खा गया और इस प्रकार हाथी और आदमी के बीच खेती
बँट गई।
योग्यता विस्तार
शेर
प्रश्न 1. इस कहानी से हमारी व्यवस्था पर जो व्यंग्य किया गया है, उसे
स्पष्ट कीजिए।
अथवा
'शेर' कहानी के आधार पर हमारी सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था पर टिप्पणी
कीजिए।
अथवा
'शेर' लघुकथा के व्यंग्य को आज के सामाजिक राजनीतिक संदर्भो में स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर
: शेर इस लघुकथा में व्यवस्था का प्रतीक है। लेखक ने इसके माध्यम से हमारी व्यवस्था
(शासनतंत्र) पर व्यंग्य किया है। झूठे प्रचार के माध्यम से शासन जनता को खुशहाली का
झांसा देता है पर जनता का कछ भी भला नहीं होता। सब कुछ शासकों की जेब में समा जाता
है। लोगों को तरह-तरह के सपने दिखाए जाते हैं कि तुम्हें अच्छा भोजन मिलेगा, जीवन खुशहाल
होगा और सबको रोजगार मिलेगा।
लोग
इन प्रलोभनों में फंसकर शासन की बात मानकर उसका सहयोग करते हैं। जब तक जनता सत्ता की
आज्ञा का पालन करती है तब तक वह खामोश रहती है किन्तु जब कोई व्यवस्था पर उँगली उठाता
है तब विरोध में उठे स्वर को वह कुचलने का प्रयोस करती है। इस लघुकथा के माध्यम से
लेखक ने सुविधाभोगियों, छम क्रांतिकारियों, अहिंसावादियों और सहअस्तित्ववादियों के
ढोंग पर प्रहार किया है।
प्रश्न 2. यदि आपके भी सींग निकल आते तो आप क्या करते ?
उत्तर
: सींग निकलने का तात्पर्य है व्यवस्था से हटकर चलना या बनी-बनाई लीक से अलग चलना।
मैं भी सींग निकलने पर वही करता जो हर समझदार आदमी करता है। मैं व्यवस्था का अंधानुकरण
नहीं करता। मैं जनहित के काम तो करता परन्तु जनहित के नाम पर जनता का शोषण कभी नहीं
करता।
पहचान
प्रश्न 1. गाँधीजी के तीनों बंदर आँख, कान, मुँह बंद करते थे किन्तु
उनका उद्देश्य अलग था कि वे बुरा न देखेंगे, न सुनेंगे, न बोलेंगे। यहाँ राजा ने अपने
लाभ के लिये या राज्य की प्रगति के लिये ऐसा किया। दोनों की तुलना कीजिए।
उत्तर
: गांधीजी के तीन बंदर क्रमश: अपनी आँखें, कान, मुँह बंद किये रहते थे और इस प्रकार
यह व्यक्त करते थे कि हम न तो बुरा देखेंगे, न बुरा सुनेंगे और न बुरा कहेंगे। किन्तु
यहाँ जो लघु कथा दी गई है उसमें राजा प्रजाजनों को इसलिये अपनी आँखें, कान और मुँह
बंद करने को कहता है कि जिससे वह मनमानी कर सके। वह चाहता है कि उसकी प्रजा व्यवस्था
का किसी भी रूप रूप में विरोध न करे। यहाँ राजा का आदेश अपनी प्रगति के लिये था, जनकल्याण
के लिये नहीं। इस प्रकार गांधीजी के बंदरों का उद्देश्य अलग था और राजा के आदेश का
उद्देश्य उससे नितांत भिन्न था।
प्रश्न 2. भारतेंदु हरिश्चंद्र का 'अंधेर नगरी चौपट राजा' नाटक देखिए
और उस राजा से 'पहचान' के राजा की तुलना कीजिए।
उत्तर
: भारतेंदु के 'अंधेर नगरी चौपट राजा' नाटक में एक ऐसे राजा का उल्लेख है जिसके राज्य
में अंधेर व्याप्त है, कुशासन है, अव्यवस्था है, अन्याय है, अत्याचार है। ऐसे राज्य
में रहना ठीक नहीं है जहाँ अपराध कोई करता है और दण्ड किसी और को मिलता है। 'पहचान'
में जिस राजा का उल्लेख है वह प्रजा को गूंगी-बहरी और अधी बनाकर अपने शासनतंत्र का
विरोध करने से रोक देता है। वह अपना घर भरता है, प्रजा को मूर्ख समझता है। 'अंधेरे
नगरी' का राजा मूर्ख है तो 'पहचान' का राजा चालाक है।
चार हाथ
प्रश्न 1. आप यदि मिल मालिक होते तो उत्पादन दो गुना करने के लिये क्या
करते ?
उत्तर
: मैं यदि मिल मालिक होता तो उत्पादन दो गुना करने के लिये श्रमिकों और कारीगरों को
अधिकाधिक सुविधायें देता तथा अपने उद्योग के लाभ में से मजदूरों को 'बोनस' भी देता।
जब मजदूर बोनस पायेंगे और उद्योग के लाभ में अपना भाग पायेंगे तो उत्पादन बढ़ाने के
लिये दुगुना परिश्रम करेंगे। इस उपाय से मैं अपनी मिल का उत्पादन दो गुना कर लेता।
साझा
प्रश्न 1. 'पंचतंत्र की कथाएँ' भी पढ़िए।
उत्तर
: 'पंचतंत्र' में विष्णु शर्मा द्वारा रचित नीतिपरक एवं उपदेशपरक कथाएँ हैं। कथा-कहानियों
के माध्यम से एक राजा के चार बिगड़े हुए राजकुमारों को विष्णु शर्मा ने शिक्षित कर
उन्हें नीति निपुण एवं विद्या विशारद् बनाया था। विद्यार्थी पुस्तकालय से 'पंचतंत्र'
नामक पुस्तक लेकर उसे पढ़ें।
प्रश्न 2. 'भेड़ और भेड़िए' हरिशंकर परसाई की रचना पढ़िए।
उत्तर
: 'भेड़ और भेड़िए' हरिशंकर परसाई की एक व्यंग्य रचना है जिसमें जनता को भेड़ और नेताओं
को भेड़िया कहा गया है। चुनाव का वक्त आने पर भेड़िया यह घोषणा करवा देता है कि वह
अहिंसक हो गया है, घास खाने लगा है, माला पहनकर एवं वस्त्र बदलकर वह पूरा संत बनने
का ढोंग भी करता है किन्तु चुनाव जीतने के बाद वह फरमान जारी करता है कि उसके नाश्ते
में, दोपहर के खाने में और शाम के खाने में भेड़ परोसी जाए। इस प्रकार उसकी कथनी-करनी
में जमीन आसमान का अंतर है। यह कथा प्रस्तुत लघु कथा 'शेर' से तुलनीय है।
प्रश्न 3. कहानी और लघु कथा में अंतर जानिए।
उत्तर
: कहानी और लघु कथा हिन्दी गद्य की दो विधाएँ हैं। इनमें निम्नलिखित अन्तर हैं -
कहानी
का आकार बड़ा और लघु कथा का छोटा होता है।
लघु
कथाएँ प्रायः प्रतीकात्मक होती हैं, जबकि कहानी के लिये ऐसा होना आवश्यक नहीं है।
कहानी
में आरम्भ, विकास और समापन अलग-अलग दिखाई देते हैं पर लघु कथा का अस्तित्व चरमबिन्दु
पर टिका होता है।
कहानी
के छः तत्व बताए गए हैं पर लघु कथा में ये सभी तत्व नहीं होते।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. शहर तथा आदमियों से डरकर लेखक कहाँ पहुँचा?
उत्तर
: शहर तथा आदमियों से डरकर लेखक जंगल में पहुँचा।
प्रश्न 2. बहरी, गूंगी और अंधी प्रजा किसको पसन्द है?
उत्तर
: बहरी, गूंगी और अंधी प्रजा राजा को पसन्द है।
प्रश्न 3. मिल मालिक को मजदूरों के प्रति क्या विचार आया?
उत्तर
: मिल मालिक को मजदूरों के प्रति मजदूरों के चार-चार हाथ लग जाएँ, विचार आया।
प्रश्न 4. हाथी ने किसान के साथ साझे में किसकी खेती की?
उत्तर
: हाथी ने किसान के साथ साझे में ईख की खेती की।
प्रश्न 5. साझा कहानी का प्रतीकार्थ क्या है?
उत्तर
: पूँजीपतियों की नजर उद्योगों पर एकाधिकार करने के बाद किसानों की जमीन पर है। यह
साझा कहानी का प्रतीकार्थ है।
प्रश्न 6. शेर का पात्रं कहानी में किस ओर इशारा करता है?
उत्तर
: शेर का पात्र कहानी में सत्ता की ओर इशारा कर रहा है।
प्रश्न 7. खेत की रखवाली के लिए हाथी ने क्या शर्त रखी थी?
उत्तर
: खेत की रखवाली के लिए हाथी ने किसान से कहा कि उपजे हुए फसल में उसका भी हिस्सा होगा।
प्रश्न 8. लेखक किससे डरकर झाड़ी के पीछे छुप गया?
उत्तर
: शेर से डरकर लेखक झाड़ी के पीछे छुप गया।
प्रश्न 9. आँखें बंद करने से क्या हासिल होने वाला था?
उत्तर
: राजा के आदेशानुसार आँखें बंद करने से मन की शांति मिलने वाली थी।
प्रश्न 10. मिल मालिक ने दोगुना उत्पादन करने के लिए क्या किया?
उत्तर
: मिल मालिक ने दोगुना उत्पादन करने के लिए मजदूरी आधी कर दी और दोगुने मजदूर नौकर
रख लिए।
प्रश्न 11. कार्यालय और शेर
के मुँह में क्या फर्क है?
उत्तर
: रोजगार कार्यालयों में लोगों की आशाएँ समाप्त हो जाती हैं, जबकि शेर के मुँह में
गए जानवरों का जीवन ही समाप्त हो जाता है।
प्रश्न 12. मजदूरों के हाथ चार नहीं होने पर मिल मालिक को क्या एहसास
हुआ?
उत्तर
: मजदूरों के हाथ चार नहीं होने पर मिल भालिक को यह एहसास हो गया था कि यह प्रयास व्यर्थ
है, तो उसने मजदूरों की मजदूरी में दी जाने वाली रकम कम कर, मजदूरों की संख्या बढ़ा
दी।
प्रश्न 13. आँखें बंद करवाने के पीछे राजा का क्या मकसद था?
उत्तर
: राजा ने जनता को अपनी आँखें बंद रखने का आदेश दिया, ताकि लोग राजा के शोषण और अराजकता
के खिलाफ न बोल सकें। एक बार आँखें बंद हो जाने के बाद राजा अपनी मनमानी से जनता का
शोषण करता रहा।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. 'साझा' लघु कथा के निहितार्थ (व्यंग्य) को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: इस लघु कथा के माध्यम से लेखक ने उन पूँजीपतियों
की प्रवृत्ति उजागर की है जिनकी गिद्ध दृष्टि किसान की खेती पर टिकी है। लेखक यह बताना
चाहता है कि पूँजीपति किसानों को पट्टी पढ़ा रहे हैं कि उनके साथ साझे में खेती करने
से किसान को लाभ होगा पर वास्तविकता यह है कि हाथी की तरह वे सब कुछ हड़प जायेंगे और
किसान को कुछ भी न मिलेगा। हाथी यहाँ धनाढ्यों एवं पूँजीपतियों का प्रतीक है। किसान
को पता भी न चलेगा और उसकी कमाई हाथी रूपी पूँजीपति हड़प जायेगा। अपने खून-पसीने की
कमाई उसे हाथी को देनी ही पड़ेगी, यही इस कहानी का निहितार्थ है।
प्रश्न 2. 'पहचान' लघु कथा के कथ्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
: पहचान' असगर वजाहत की लघु कथा है जिसमें एक ऐसे राजा की कहानी है जिसने अपनी प्रजा
को आँखें बंद रखने, कानों में पिघला सीसा डाल लेने और होंठ सिलवा लेने की आज्ञा दी।
प्रजा ने राजा की आज्ञा का पालन किया। उसने प्रजा को यह झाँसा दिया था कि ऐसा करने
से हमारा राज्य स्वर्ग हो जायेगा। बहुत दिनों बाद जब प्रजा के कुछ लोगों ने आँख खोलकर
उस स्वर्ग को देखना चाहा तो पता चला कि वे अब एक-दूसरे को भी नहीं देख सकते। सर्वत्र
उन्हें राजा ही राजा दिख रहा था।
प्रश्न 3. लेखक जंगल में क्यों गया और वहाँ जाकर उसने क्या देखा ?
उत्तर
: लेखक कहता है कि अचानक उसके सींग निकल आए, वह डर गया कि कसाई उसे जानवर समझकर काट
डालेंगे। अत: वह उनसे डरकर जंगल की ओर भागा। जंगल में उसे एक पेड़ के नीचे शेर बैठा
दिखाई दिया जिसका मुख खुला हुआ था। लेखक शेर से डरकर झाड़ियों की ओट में छिपकर बैठ
गया। उसने वहाँ से देखा कि जंगल के जानवर पंक्तिबद्ध होकर शेर के मुख में चले जा रहे
हैं और शेर उन्हें चबाए बिना ही निगलता जा रहा है।
इन
जानवरों में लोमड़ी, कुत्ते, गधे, उल्लू सब थे। जब उसने इन जानवरों से यह पूछा कि आप
लोग शेर के मुख में क्यों जा रहे हैं तो किसी ने उसे बताया कि शेर के मुख में हरी घास
का मैदान है, किसी ने कहा वहाँ स्वर्ग है तो किसी ने उत्तर दिया कि वहाँ रोजगार का
दफ्तर है। इस प्रकार लोभ-लालच और प्रलोभन में फंसकर जंगल के जानवर शेर के पेट में समाते
जा रहे थे।
प्रश्न 4. 'शेर' नामक लघु कथा से लेखक क्या प्रतिपादित करना चाहता है
?
उत्तर
: इस लघु कथा के माध्यम से लेखक यह प्रतिपादित करना चाहता है कि शासनतंत्र (व्यवस्था)
शेर की तरह है। सारी जनता किसी न किसी प्रलोभन में फंसकर उसका शिकार बनती है। वह प्रचार
करता है कि वह अहिंसावादी एवं सह-अस्तित्ववाद का समर्थक बन गया है। शासनतंत्र तब तक
खामोश रहता है जब तक लोग चुपचाप उसकी बातें मानते रहें और उसका स्वार्थ पूरा होता रहे।
पर जब लेखक जैसा कोई लीक से हटकर चलने वाला व्यक्ति शासनतंत्र का विरोध करता है तो
शासन तंत्र भयानक हो उठता है और विरोध में उठे स्वर को कुचलने का प्रयास करता है।
प्रश्न 5. 'साझा' लघु कथा का संदेश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
: 'साझा' कहानी के माध्यम से लेखक ने संदेश दिया है कि उद्योगों पर कब्जा करने के बाद
पूँजीपति किसानों की जमीन और उत्पाद को भी हड़पना चाहते हैं। साझा खेती का उनका प्रस्ताव
एक झाँसा है। वे किसान के श्रम का शोषण तथा उसकी फसल पर कब्जा करना चाहते हैं। किसान
धोखे में रहता है और उसकी सारी कमाई धनाढ्य लोगों की जेब में चली जाती है। साझा खेती
में किसान का हित नहीं है। यह किसान की जमीन तथा उसकी कमाई छीनने का पूँजीपतियों का
प्रयास है। इससे किसानों को सतर्क रहना चाहिए।
प्रश्न 6. लोमड़ी शेर के मुँह में चली जा रही थी? लेखक का भाव स्पष्ट
करें।
उत्तर
: यहाँ लेखक ने लोमड़ी की तुलना बेरोजगार युवक से की है और शेर का मतलब रोजगार कार्यालय
से है। एक बेरोजगार युवक को रोजी-रोटी चलाने के लिए रोजगार चाहिए, वह युवक यह जानता
है कि रोजगार कार्यालय शेर की भाँति है लेकिन फिर भी वह रोजगार कार्यालय में चला जाता
है।
प्रश्न 7. आँख खोलने पर रामू, खैराती और छिद्दू को सिर्फ राजा ही दिखाई
दिया। क्यों?
उत्तर
: लम्बे समय तक राजा के आदेश पर, आँखें बंद रखने की वजह से प्रजा ने अपना अस्तित्व
ही खो दिया था, वह पूरी तरीके से राजा के गुलाम बन गये थे। वे राजा की कठपुतली बन गये
थे। अतः यह लाजमी था कि जब खैराती, रामू औ. छिदू ने आँखें खोलीं, तो उन्हें सामने बस
राजा ही दिखाई दे रहा था। यह कथन मानसिक गुलामी को प्रस्तुत करता है।
प्रश्न 8. आँखें बंद रखने से जनता को क्या क्षति हुई?
उत्तर
: राजा ने जनता की आँखें को बंद कराकर, लोगों का बहुत शोषण किया। वह उनसे अपने मन मुताबिक
काम कराता और उसका फायदा सिर्फ राजा को ही होता था। उसने लोगों को अपना गुलाम बना,
नौकर की भाँति रखा था। कुछ समय पश्चात जब उन्होंने आँखें खोली, तो पता चला कि राजा
उनसे झूठ बोलता था कि विकास और उत्पादन हुआ है। असल में सिर्फ राजा को ही लाभ हुआ था।
जनता का तो सिर्फ और सिर्फ शोषण हुआ था।
प्रश्न 9. फसल का बँटवारा किस तरह से हुआ ?
उत्तर
: किसान और हाथी के बीच हुए साझे में यह तय हुआ था कि खेत की फसल को आधा-आधा दोनों
आपस में बाँट लेंगे। लेकिन जब किसान ने गन्ना खाना प्रारम्भ किया, तो हाथी ने गन्ना
अपनी तरफ खींचते हुए अपने मुँह में ले जाने लगा। किसान ने, हार मानकर गन्ना छोड़ दिया।
किसान के गन्ना छोड़ देने पर हाथी अकेले पूरा गन्ना खा गया। इस पाठ में हाथी सबल था,
जबकि किसान दुर्बल था, इसलिए किसान को हार माननी पड़ी।
प्रश्न 10. मिल मालिक के स्वभाव पर टिप्पणी करें।
उत्तर
: मिल मालिक के दिमाग में अजीब-अजीब ख्याल आया करते थे। जैसे सारा संसार मिल हो जाएगा
और सभी लोग उसके नौकर हो जाएँ। वह लालची और निर्दयी किस्म का आदमी था। वह अपने मिल
को सबसे बड़ा मिल और खुद को सबसे अमीर इंसान बनाना चाहता था। वह चाहता था कि काम खूब
हो और उसके बदले मजदूरी कम देनी पड़े, ताकि उसका खूब मुनाफा हो सके। वह शोषण करने वाला
व्यक्ति था।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. 'शेर' लघु कथा में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: 'शेर' असगर वजाहत द्वारा लिखी गई लघु कथा है जिसमें लेखक ने शासन व्यवस्था पर व्यंग्य
किया है। शेर व्यवस्था का प्रतीक है जिसके पेट में जंगल के सभी जानवर किसी प्रलोभन
या लोभ-लालच के वशीभूत होकर समाते जा रहे हैं। शेर का प्रचारतंत्र मजबूत है। वह ऊपर
से अहिंसावादी, न्यायप्रिय होने का ढोंग करता है किन्तु वास्तव में वह हिंसक एवं अन्यायी
है।
शासनतंत्र
तब तक खामोश रहता है जब तक उसकी आज्ञा का पालन एवं स्वार्थ की पूर्ति होती रहे। जब
लेखक शेर के मुँह में न जाने का संकल्प करता है तभी शेर दहाड़ने लगता है। इसके द्वारा
लेखक यह व्यक्त करता है कि सत्ता तभी तक चुप रहती है जब तक कोई उसकी व्यवस्था पर उँगली
न उठाए किन्तु जब कोई उसकी आज्ञा मानने से इन्कार करता है तब वह भयानक रूप धारण कर
विरोधी स्वरों को कुचलने का भरपूर प्रयास करती है।
प्रश्न 2. 'साझा' लघु कथा के कथ्य को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
असगर
वजाहत की कहानी 'साझा' में हाथी ने किसान से गन्ने की फसल का बँटवारा कैसे किया? कहानी
में 'हाथी' के प्रतीकार्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: 'साझा' नामक लघु कथा असगर वजाहत द्वारा लिखी गई है जिसमें एक किसान और हाथी द्वारा
साझे की खेती . करने का उल्लेख है। दोनों ने 'गन्ने की खेती साझे में की। किसान इसके
लिये तैयार न था पर हाथी ने उसे ऐसी पट्टी पढ़ाई कि अन्ततः किसान साझे की खेती करने
हेतु तैयार हो गया। हाथी जंगल में जाकर मुनादी करवा आया कि गन्ने का खेत उसका है अतः
कोई जानवर उसे हानि पहुँचाने का दुस्साहस न करे अन्यथा ठीक न होगा।
फसल
तैयार होने पर किसान हाथी को लेकर खेत पर गया और कहा कि आधी-आधी फसल बाँट लें, पर हाथी
ने नाराज होकर कह....हम दोनों ने नेहनत की है, मेरा-तेरा कैसा ? बस आओ मिलकर गन्ने
खायें। यह कहकर हाथी ने एक गन्ना सैंड से तोड़ा तथा उसके दूसरे सिरे को आदमी को पकड़ाया।
एक सिरे पर,हाथी ने खाना आरम्भ किया। गन्ने के साथ जब आदमी भी हाथों की ओर खिंचने लगा
तो उसने गन्ना छोड़ दिया। हाथी ने कहा देखो हमने एक गन्ना खा लिया। इस तरह हाथी खेत
के पूरे गन्ने खा गया। इस.कहानी में धनाढ्यों एवं पूँजीपतियों का प्रतीक है।
प्रश्न 3. 'चार हाथ' लघु कथा के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
अथवा
'चार हाथ' लघु कहानी शोषण पर आधारित व्यवस्था का परदाफास करती है। स्पष्ट
कीजिए। (उ. मा. प. 2013)
अथवा
असगर वजाहत की 'चार हाथ' लघुकथा "पूँजीवादी व्यवस्था में मजदूरों
के शोषण को उजागर करती है"- इस कथन का विवेचन कीजिए।
उत्तर
: असगर वजाहत की लघु कथा 'चार हाथ' का उद्देश्य इस तथ्य को उजागर करना है कि मिल-मालिक
मजदूरों का शोषण करते हैं। वे उत्पादन बढ़ाने के लिये निर्दयता की सीमाओं का भी उल्लंघन
कर जाते हैं। एक मिल-मालिक ने सोचा कि यदि मजदूरों के चार हाथ हों तो उत्पादन दुगुना
हो सकता है। तरह-तरह के उपाय करके उसने मजदूरों के चार हाथ लगाने का प्रयास किया पर
सफलता न मिली।
लोहे
के हाथ जबरदस्ती मजदूरों के फिट करवा दिए परिणामतः मजदूर मर गये। अचानक उसके दिमाग
में यह बात कौंध गई कि यदि मजदूरी आधी कर दूँ और दुगुने मजदूर काम पर रख लूँ तो उतनी
ही मजदूरी में उत्पादन दोगुना हो जायेगा। उसने यही किया। बेचारे लाचार मजदूर आधी मजदूरी
पर काम करने लगे क्योंकि उनके पास और कोई चारा न था। पूँजीपति संवेदनहीन हैं, वे अधिक
से अधिक लाभ कमा रहे हैं और मजदूरों की लाचारी का फायदा उठा रहे हैं। लेखक का दृष्टिकोण
इस लघु कथा में पूर्णतः प्रगतिवादी है।
प्रश्न 4. 'पहचान' लघु कथा में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: 'पहचान' शीर्षक लघु कथा में निम्नलिखित व्यंग्य निहित हैं -
हर
राजा गूंगी, बहरी और अंधी प्रजा पसंद करता है।
हर
राजा चाहता है कि उसकी प्रजा बेजुबान (गूंगी) हो और उसके खिलाफ आवाज न उठाये।
प्रजाजनों
के एकजुट होने से राजा को हानि होने की संभावना है इसलिये वह उन्हें एकजुट नहीं होने
देता।
राजा
प्रजाजनों को यह झाँसा देता है कि उसकी हर आज्ञा राज्य के हित में है और राज्य को स्वर्ग
बनाने के लिये है।
छद्म
प्रगति और विकास के बहाने धीरे-धीरे राजा उत्पादन के सभी साधनों पर अपनी पकड़ मजबूत
कर लेता है।
राजा
लोगों को यह झाँसा देता है कि वह उनके जीवन को स्वर्ग जैसा बना देगा पर वास्तव में
प्रजा का जीवन और भी खराब हो जाता है। हाँ, राजा अपना जीवन स्वर्ग जैसा अवश्य बना लेता
है।
साहित्यिक परिचय का प्रश्न
प्रश्न : असगर वजाहत का साहित्यिक परिचय लिखिए।
उत्तर
: साहित्यिक परिचय - असगर वजाहत ने अपनी भाषा में तद्भव शब्दों के साथ-साथ उर्दू
शब्दों और मुहावरों का प्रयोग किया है। इससे उनकी भाषा में सहजता और सादगी आ गई है।
उनकी भाषा सशक्त, भावानुकूल तथा गम्भीरता लिये हुये प्रतीकात्मक है। लेखक ने वर्णनात्मक,
विवरणात्मक शैलियों के साथ व्यंग्यात्मक शैली को भी अपनाया है। उनके व्यंग्य पैने तथा
प्रभावशाली होते हैं।
कहानी
संग्रह दिल्ली पहुँचना है, स्विमिंग पूल, सब कहाँ कुछ, आधी बानी,
मैं हिन्दू हूँ।
उपन्यास-रात
में जागने वाले, पहर दोपहर तथा सात आसमान, कैसी आगि लगाई।
नाटक-फिरंगी
लौट आये, इन्ना की आवाज, वीरगति, समिधा, जिस लाहौर नई देख्या।
नुक्कड़
नाटक
सबसे सस्ता गोश्त। इसके साथ ही उन्होंने 'गजल की कहानी' वृत्तचित्र का निर्देशन किया
है। उन्होंने 'बूंद-बूंद' धारावाहिक की पटकथा भी लिखी है।
शेर, पहचान, चार हाथ, साझा (सारांश)
लेखक परिचय
जन्म सन्
1946 ई.। स्थान - फतेहपुर (उ.प्र.)। प्रारम्भिक शिक्षा - फतेहपुर में। उच्च शिक्षा
- अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में। जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय, दिल्ली में अध्यापक
रहे। लेखन 1955 से आरम्भ।
साहित्यिक
परिचय - भाषा-असगर वजाहत ने अपनी भाषा में तद्भव शब्दों के साथ-साथ
उर्दू शब्दों और मुहावरों का प्रयोग किया है। इससे उनकी भाषा में सहजता और सादगी आ
गई है। उनकी भाषा सशक्त, भावानुकूल तथा गम्भीरता लिये हुये प्रतीकात्मक है।
शैली
- लेखक ने वर्णनात्मक, विवरणात्मक शैलियों के साथ व्यंग्यात्मक शैली को भी अपनाया है।
उनके व्यंग्य पैने तथा प्रभावशाली होते हैं।
कृतियाँ
- असगर वजाहत ने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लिखकर अपना कार्य शुरू किया। उन्होंने
कहानी, उपन्यास, नाटक और लघु कथाएँ लिखीं। उन्होंने फिल्मों और धारावाहिकों के लिए
पटकथा लेखन भी किया। उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं
कहानी
संग्रह - (1) दिल्ली पहुँचना है, (2) स्विमिंग पूल, (3) सब कहाँ
कुछ, (4) आधी बानी, (5) मैं हिन्दू हूँ।
उपन्यास
- (1) रात में जागने वाले, (2) पहर दोपहर तथा सात आसमान, (3) कैसी आगि लगाई।
नाटक
(1)
फिरंगी लौट आये, (2) इन्ना की आवाज, (3) वीरगति, (4) समिधा, (5) जिस लाहौर नई देख्या,
(6) अकी।
नुक्कड़
नाटक
- सबसे सस्ता गोश्त।
इसके
साथ ही उन्होंने 'गजल की कहानी' वृत्तचित्र का निर्देशन किया है। उन्होंने 'बूंद-बूंद'
धारावाहिक की पटकथा भी लिखी है।
पाठ सारांश
'लघु कथाएँ' पाठ में निम्नलिखित लघु कथाएँ हैं। प्रत्येक का सारांश
नीचे दिया गया है -
1. शेर - शहर
या आदमियों से डरकर लेखक जंगल में पहुँचा। वहाँ बरगद के पेड़ के नीचे एक शेर बैठा था।
उसका मुँह खुला था। जंगली जानवर एक-एक कर उसमें घुसते जा रहे थे। शेर उनको निगल रहा
था। शेर ने प्रचार कर रखा था कि वह अहिंसावादी और सहअस्तित्व का समर्थक है। वह जंगली
जानवरों का शिकार नहीं करता।
उसके
पेट में घास का मैदान, रोजगार दफ्तर यहाँ तक कि स्वर्ग का सख भी है। इसी लालच में जानवर
स्वेच्छा से उसके पेट में जा रहे थे। शेर व्यवस्था का प्रतीक है। सत्ता द्वारा प्रचारित
भ्रम में पड़कर जनता उसे न्यायप्रिय, अहिंसक और हितैषी समझकर उसका आदेश मानती है। जब
कोई उसका विरोध करता है तो वह खुंखार हो उठती है और विरोध को कुचल देती है। कथाकार
ने इस कहानी के द्वारा सुविधाभोगियों, अहिंसावादियों, छद्म क्रान्तिकारियों, सह-अस्तित्ववादियों
पर कठोर व्यंग्य किया है।
2.
पहचान - राजा को बहरी, गूंगी और अंधी प्रजा पसन्द है, जो न सुने,
न बोले और न देखे, केवल राजा की आज्ञा मानती रहे। शासक और शासित के इसी यथार्थ को
'पहचान' कहानी में प्रकट किया गया है। भूमण्डलीकरण और उदारीकरण के कारण होने वाली छद्म
प्रगति और बनावटी विकास के पीछे शासनं सत्ता की यही प्रवृत्ति है। इससे जनता के हित
के नाम पर जनतंत्र के सत्ताधारी स्वयं अपना हित साधते हैं और शक्ति तथा धन के स्रोतों
पर अपनी पकड़ मजबूत करते हैं। जनता की एकता को रोककर वे विरोध की संभावना को समाप्त
करते हैं। यही उनकी सफलता का रहस्य है।
3.
चार-हाथ - एक मिल मालिक के दिमाग में धनवान होने के लिए विचित्र
विचार आते हैं, जैसे सारा संसार मिल हो जाय, सभी लोग मजदूर हो जायें, मिल में सामान
नहीं मजदूर पैदा हों, मजदूरों के चार-चार हाथ लग जायें और सारी सम्पत्ति पर उसका अधिकार
हो जाये। आखिर एक दिन उसने मजदूरी आधी कर दी और मजदूरों की संख्या दूनी कर दी। इस कहानी
में लेखक ने पूँजीवादी व्यवस्था में मजदूरों के शोषण को प्रकाशित किया है। इसमें असंगठित
मजदूरों की विवशता तथा पूँजीपति का शोषक चरित्र उजागर हुआ है।
4.
साझा हाथी ने किसान से साझे में खेती करने को कहा। किसान अकेले
खेती करना नहीं चाहता था और साझे की खेती में लाभ नहीं था। हाथी ने उसे छोटे जानवरों
से खेती की रक्षा का विश्वास दिलाया। दोनों ने मिलकर गन्ना बोया। फसल तैयार होने पर
बँटवारे पर हाथी ने चालाकी से सारे गन्ने खा लिये। इस कहानी का प्रतीकार्थ यह है कि
पूँजीपतियों की नजर उद्योगों पर एकाधिकार करने के बाद किसानों की जमीन पर है। गाँव
के बड़े और सम्पन्न लोग भी इस षड्यन्त्र में शामिल हैं। किसान की सारी कमाई पूँजीपतियों
तथा बड़े लोगों के पेट में जा रही है। इसमें स्वाधीन भारत के शासन की किसान विरोधी
नीतियों पर व्यंग्य किया गया है।
कठिन शब्दार्थ
सिर
पर सींग निकलना = गधे के सिर पर सींग निकलना मुहावरा है। इसका अर्थ है-व्यवस्था (या
बनी-बनाई लीक) से अलग रहना।
ओट
= आड़।
गटकना
= बिना चबाए खाना (निगल लेना)।
बेवकूफी
= मूर्खता।
सख्त
गुस्सा = अत्यधिक क्रोध।
दरख्वास्त
= प्रार्थना-पत्र।
निर्वाण
= मोक्ष।
दुम
= पूँछ।
सह-अस्तित्ववाद
= साथ-साथ अस्तित्व बनाए रखने का सिद्धांत।
स्टाफ
= कर्मचारी।
निपटा
रहा = पूरा कर रहा।
प्रमाण
= सबूत, साक्ष्य।
रोजगार
का दफ्तर = सेवायोजन कार्यालय जहाँ बेरोजगार अपना पंजीकरण नौकरी पाने के लिये कराते
हैं।
मिथ्या
= झूठ।
अनिवार्य
= जिसे मानना ही हो।
हुक्म
= आदेश।
उत्पादन
= उपज, पैदावार।
होंठ
सिलवा लें = मुँह बन्द रखें (कुछ न बोलें)।
राज
= राज्य।
मिल
मालिक = उद्योगपति, कारखानेदार।
अजीब
= विचित्र।
वगैरा
= इत्यादि।
खयाल
= विचार।
मुनाफा
= लाभ।
किस
मर्ज की दवा = क्या उपयोग है।
तनख्वाह
= वेतन।
शोध
= खोज।
साझा
= मिलकर कार्य करना।
साहस
= हिम्मत।
पट्टी
पढ़ाई = सीख देना (मुहावरा)।
डुग्गी
पीटना = प्रचार करना।
उल्लू
बनाना = मूर्ख बनाना।
स्वामी
= मालिक।
महत्त्वपूर्ण व्याख्याएँ
मैंने देखा कि झाड़ी की ओट भी गजब की चीज है। अगर झाड़ियाँ न हों तो
शेर का मुँह-ही-मुंह हो और फिर उससे बच पाना बहुत कठिन हो जाए। कुछ देर के बाद मैंने
देखा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर एक लाइन से चले आ रहे हैं और शेर के मुँह में घुसते
चले जा रहे हैं। शेर बिना हिले-डुले, बिना चबाए, जानवरों को गटेकता जा रहा है। यह दृश्य
देखकर मैं बेहोश होते-होते बचा।
संदर्भ
:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा-2' में संकलित ‘लघु कथाएँ' नामक पाठ
की 'शेर' नामक लघु कथा से ली गई हैं। इसके लेखक असगर वजाहत हैं।
प्रसंग
:
लेखक आदमियों से डरकर जंगल में भाग आया था जहाँ उसने बरगद के पेड़ के नीचे एक शेर को
बैठे देखा जिसका मुख खुला हुआ था। लेखक झाड़ियों की ओट में छिपकर आगे का. दृश्य देखने
लगा।
व्याख्या
: जंगल में जब लेखक पहुँचा तब उसने देखा कि शेर एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठा है और
उसका मुख खुला हुआ है। यह देखकर वह डर गया और झाड़ी की ओट में छिप गया। झाड़ियों की
ओट भी गजब की चीज है। इस ओट से व्यक्ति शेर के मुँह में जाने से बच जाता है और उसकी
असलियत को निहारने-जानने का अवसर भी पा लेता है।
कुछ
देर के बाद लेखक ने झाड़ियों की ओट से देखा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर पंक्तिबद्ध
होकर चले आ रहे हैं और शेर के. मुँह में घुसते चले जा रहे हैं और शेर उन्हें बिना चबाए
निगलता जा रहा है। यह दृश्य देखकर लेखक को इतना आश्चर्य हुआ कि वह बेहोश होते-होते
बचा। वह सोच रहा था कि लोग तो शेर से बचने का उपाय करते हैं पर ये जानवर किस लोभ-लालच
के वशीभूत होकर स्वतः ही शेर के खुले मुख में प्रवेश करते जा रहे हैं।
विशेष
:
शेर
यहाँ व्यवस्था (शासन तंत्र) का प्रतीक है जिसके पेट में सभी जानवर किसी प्रलोभन के
चलते समाते जा रहे हैं।
शेर
का प्रचार तंत्र मजबूत है। उसने जंगल में यह प्रचार करवा रखा है कि शेर के मुँह में
हरी घास का मैदान है, रोजगार दफ्तर है, यही नहीं वहाँ स्वर्ग है। इन्हीं सब कारणों
से जानवर एक-एक करके उसके मुख में समाते जा रहे थे।
भाषा
-
भाषा सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है।
शैली
-
प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग है।
फिर मुझे एक लोमड़ी मिली। मैंने उससे पूछा, "तुम शेर के मुँह में
क्यों जा रही हो?" उसने कहा, "शेर के मुँह के अंदर रोजगार का दफ्तर है। मैं
वहाँ दरख्वास्त दूंगी, फिर मुझे नौकरी मिल जाएगी।" मैंने पूछा, "तुम्हें
किसने बताया।" उसने कहा, "शेर ने" और वह शेर के मुँह के अंदर चली गई।
फिर एक उल्लू आता हुआ दिखाई दिया। मैंने उल्लू से वही . सवाल किया। उल्लू ने कहा,
"शेर के मुँह के अंदर स्वर्ग है।" मैंने कहा, "नहीं, यह कैसे हो सकता
है।" उल्लू बोला, "नहीं, यह सच है और यही निर्वाण का एकमात्र रास्ता है।"
और उल्लू भी शेर के मुँह में चला गया।
संदर्भ
: प्रस्तुत गद्यावतरण असगर वजाहत द्वारा रचित 'लघु कथाएँ' पाठ की 'शेर' नामक लघु कथा
से लिया गया है। यह पाठ हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा भाग-2' में संकलित है।
प्रसंग
: लेखक ने जंगल में जब बरगद के पेड़ के नीचे मुँह खोलकर बैठे शेर को देखा तो डरकर झाड़ियों
की ओट में छिप गया। उसने देखा कि जानवर स्वेच्छा से पंक्तिबद्ध होकर शेर के खुले मुख
में घुसते जा रहे थे। जब लेखक ने इन जानवरों से पूछा कि आप लोग शेर के मुँह में क्यों
जा रहे हैं तब उन्होंने जो कारण बताया उसी का उल्लेख इस अवतरण में है।
व्याख्या
: लेखक ने देखा कि लोमड़ी जैसा चालाक जानवर भी शेर के खुले मुख में प्रवेश कर रहा है।
उसने जब लोमड़ी से इसका कारण पूछा तो लोमड़ी ने बताया कि शेर के मुख में रोजगार दफ्तर
है और वहाँ जाने पर मुझे नौकरी मिल जाएगी, ऐसा उसे शेर ने ही बताया है। इसी प्रकार
जब उल्लू (मूर्ख का प्रतीक) से पूछा कि तुम शेर के मुख में क्यों जा रहे हो तो उसने
कहा कि शेर के मुख में स्वर्ग है, वहाँ जाने पर मुझे जन्म और मृत्यु से मुक्ति प्राप्त
हो जाएगी और मेरा कल्याण होगा।
जब
लेखक ने कहा कि शेर के मुख में भला स्वर्ग कैसे हो सकता है तो उल्लू कहने लगा कि यह
सच है और निर्वाण का यही एकमात्र रास्ता है। यह कहते हुए वह शेर के मुख में चला गया।
लेखक यह कहना चाहता है कि शेर सब जानवरों को झांसा देकर अपना शिकार बनाता है। उसका
प्रचार तंत्र मजबूत है परिणामतः मूर्ख और चतुर सब उसके झाँसे में आकर उसकी झूठी बातों
पर विश्वास कर लेते हैं।
विशेष
:
लोमड़ी
चालाक तो उल्लू मूर्ख व्यक्ति का प्रतीक है। शेर के झाँसे में दोनों आते हैं।
भाषा-भाषा
सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है।
शैली
- प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग है।
कुछ दिनों के बाद के बाद मैंने सना किशेर अहिंसा और सह-अस्तित्ववाद
का बडा जबरदस्त समर्थक है इसलिए जंगली जानवरों का शिकार नहीं करता। मैं सोचने लगा,
शायद शेर के पेट में वे सारी चीजें हैं, जिनके लिये लोग वहाँ जाते हैं और मैं भी एक
दिन शेर के पास गया। शेर आँखें बंद किये पड़ा था और उसका स्टाफ आफिस का काम निपटा रहा
था। मैंने वहाँ पूछा, "क्या यह सच है कि शेर साहब के पेट के अन्दर रोजगार का दफ्तर
है?" बताया गया कि यह सच है।
संदर्भ
: प्रस्तुत पंक्तियाँ 'असगर वजाहत' की लघु कथा 'शेर' से ली गई हैं जो हमारी पाठ्य-पुस्तक
'अंतरा भाग-2' में 'लघु कथाएँ' शीर्षक पाठ में संकलित है।
प्रसंग
: जंगल में बरगद के पेड़ के नीचे एक शेर अपना मुँह खोलकर बैठा था और जंगल के जानवर
पंक्तिबद्ध होकर किसी प्रलोभन या लालच के वशीभूत होकर उसके पेट में समाते जा रहे थे।
लेखक ने शेर के बारे में सुना था और शेर के पास जाने पर उसने क्या देखा इसका वर्णन
यहाँ किया गया है।
व्याख्या
: शेर का प्रचारतंत्र बहुत मजबूत था। उसने अपने बारे में यह प्रचारित करवा दिया था
कि अब वह अहिंसावादी हो गया है और दूसरे जानवरों के साथ शांतिपूर्वक रहने में उसका
विश्वास है। वह सह-अस्तित्ववाद और अहिंसा का जबरदस्त समर्थक हो गया है अब वह जानवरों
का शिकार नहीं करता अत: जंगली जानवरों को उससे डरने की कोई आवश्यकता नहीं है।
लेखक
विचार करने लगा कि हो सकता है कि शेर के पेट में हरी घास का मैदान, रोजगार का दफ्तर
और स्वर्ग विद्यमान हो, जिसके प्रलोभन में फंसकर जंगली जानवर उसके मुँह में प्रवेश
करते जा रहे हैं। वास्तविकता का पता लगाने लेखक एक दिन शेर के पास गया। उसने देखा शेर
आँखें बन्द किये लेटा था और उसके ऑफिस के कर्मचारी काम निपटा रहे थे। जब लेखक ने पूछा
कि क्या यह सच है कि शेर के पेट में रोजगार कार्यालय है तब उसे बताया गया कि यह सच
है।
लेखक
का अभिप्राय यह है कि शासन व्यवस्था (शासनतंत्र) अपने विषय में जो कुछ कहती है उसे
सच मान लेने के अतिरिक्त जनता के पास क्या चारा है। शेर के पेट में रोजगार दफ्तर है
यह शेर के द्वारा प्रचारित किया गया झूठ था पर जंगल के जानवर (जनता) इसे सत्य समझकर
उसके मुख में समाते जा रहे थे।
विशेष :
शेर
व्यवस्था (शासन-तंत्र) का प्रतीक है।
राज्य
व्यवस्था जो कुछ झूठ-सच अपने बारे में प्रचारित करती है, उसे जनता मान ही लेती है।
शेर
ने बाकायदा अपना ऑफिस बनाया हुआ था जो उसके प्रचार का काम निपटा रहा था और उसके बारे
में गलत तथ्य जनता में प्रचारित किया करता था।
भाषा-सरल,
सहज और प्रवाहपूर्ण भाषा है।
शैली-प्रतीकात्मक
शैली का प्रयोग है।
राजा ने हुक्म दिया कि उसके राज में सब लोग अपनी आँखें बंद रखेंगे ताकि
उन्हें शांति मिलती रहे। लोगों ने ऐसा ही किया क्योंकि राजा की आज्ञा मानना जनता के
लिये अनिवार्य है। जनता आँखें बंद किए-किए सारा काम करती थी और आश्चर्य की बात यह कि
काम पहले की तुलना में बहुत अधिक और अच्छा हो रहा था। फिर हुक्म निकला कि लोग अपने-अपने
कानों में पिघला हुआ सीसा डलवा लें क्योंकि सुनना जीवित रहने के लिये बिलकुल जरूरी
नहीं है। लोगों ने ऐसा ही किया और उत्पादन आश्चर्यजनक तरीके से बढ़ गया।
संदर्भ
: प्रस्तुत पंक्तियाँ 'पहचान' नामक लघु कथा से ली गई हैं। ये 'लघु कथाएँ' असगर वजाहत
ने लिखी हैं जिन्हें हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित किया गया है। .
प्रसंग राजा ने अपनी प्रजा को आदेश दिया कि वह आँख, कान बंद कर ले, होंठ भी सिलवा ले।
प्रजाजनों ने आदेश का पालन किया और उत्पादन बढ़ गया। इस लघु कथा के माध्यम से लेखक
यह कहना चाहता है कि हर राजा को गूंगी बहरी और अंधी प्रजा पसंद है। वह नहीं चाहता कि
प्रजा समझदार हो और उसके विरुद्ध आवाज उठाए।
व्याख्या
: राजा ने प्रजाजनों को आदेश दिया कि सब लोग अपनी आँखें बंद रखें जिससे उन्हें शांति
मिलती रहे। राजा की आज्ञा का पालन जनता ने किया। अब वह आँख बंद करके काम करती थी और
आश्चर्य की बात यह थी कि काम पहले की तुलना में ज्यादा और बेहतर हो रहा था। फिर राजा
का हुक्म आया कि लोग अपने कानों में पिघला हुआ सीसा डाल लें क्योंकि सुनना जीवित रहने
के लिये आवश्यक नहीं है। लोगों ने राजा की इस आज्ञा को भी पालन किया और उत्पादन आश्चर्यजनक
ढंग से बढ़ गया।
लेखक
यह प्रतिपादित करता है कि राजा को गूंगी-बहरी और अंधी प्रजा ही पसंद आती है जो बिना
कुछ बोले, बिना कुछ सुने और बिना कुछ देखे उसकी आज्ञा का पालन करती रहे। वस्तुतः वह
जनता को एकजुट होने से रोकता है और उन्हें भुलावे में रखता है।
विशेष
:
राजा
अंधी, बहरी और गूंगी प्रजा को इसलिये पसंद करता है जिससे उसके खिलाफ कोई आवाज न उठाए।
राजा
प्रजा को इस भुलावे में रखता है कि उसकी बात मानने से प्रजा का कल्याण होगा पर वास्तव
में उसकी हर बात अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिये होती है।
भाषा-सरल,
सहज और प्रवाहपूर्ण भाषा प्रयुक्त है।
शैली
व्यंग्यात्मक एवं प्रतीकात्मक शैली है। कहानी का निहितार्थ मूल शब्दों से नहीं अपितु
उसमें छिपे व्यंग्य में है।
फिर हम ये निकला कि लोग अपने-अपने होंठसिलवा लें.क्योंकि बोलना उत्पादन
में सदा से बाधक रहा है। लोगों ने काफी सस्ती दरों पर होंठ सिलवा लिए और फिर उन्हें
पता लगा कि अब वे खा भी नहीं सकते हैं। लेकिन खाना भी काम करने के लिए बहुत आवश्यक
नहीं माना गया। फिर उन्हें कई तरह की चीजें कटवाने और जुड़वाने के हुक्म मिलते रहे
और वे वैसा ही करवाते रहे। राज रातदिन प्रगति करता रहा।
संदर्भ
: प्रस्तुत पंक्तियाँ 'पहचान' नामक लघु कथा से ली गई हैं जिसके लेखक असगर वजाहत हैं।
इसे 'लघु कथाएँ शीर्षक से हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा भाग-2' में संकलित किया गया है।
प्रसंग
: राजा अपनी प्रजा को तरह-तरह के हक्म दे रहा था। कभी आँखें बंद रखने के, तो कभी कान
बन्द रखने के। इस बार उसने हुक्म दिया कि लोग अपने-अपने होंठ सिलवा लें, क्योंकि बोलना
उत्पादन में बाधक है। लोगों का खाना-पीना ... भी बंद हो गया। राजा का हुक्म मानने से
राज्य स्वर्ग हो जाएगा ऐसा प्रचार राजा ने किया था।
व्याख्या
: हर राजा सदा से बहरी, गूंगी और अंधी प्रजा पसंद करता है जो उसका विरोध न करे और बिना
बोले, बिना सुने और बिना देखे उसकी आज्ञा का चुपचाप पालन करती रहे। इस बार राजा ने
अपनी प्रजा को आदेश दिया कि लोग अपने-अपने होंठ सिलवा, लें क्योंकि बोलना उत्पादन में
बाधक रहा है।
लोगों
ने काफी सस्ती दरों पर होंठ सिलवा लिए और तब उन्हें पता लगा कि वे लोग खा-पी नहीं सकते।
उसने यह भी कहा कि खाना-पीना काम के लिए बहुत आवश्यक नहीं है। ऐसी ही कई आज्ञाएँ जनता
को मिलती रहीं और जनता उनका चुपचाप पालन करती रही। ये कटवा दो, वो जुड़वा लो आदि। राजा
का तर्क यह होता था कि ऐसा राज्य के हित में किया जा रहा है। इससे हमारा राज्य प्रगति
करेगा।
विशेष
:
यहाँ
व्यंग्य के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि हर शासक गूंगी-बहरी और अंधी जनता को
ही अपने राज्य के लिए बेहतर मानता है क्योंकि वह तभी शोषण कर पाएगा जब किसी स्तर पर
उसका विरोध न हो।
राज्य
के हित के नाम पर जो आज्ञायें दी जाती हैं वे राजा के हित में होती हैं, राज्य (या
जनता) के हित में नहीं।
शैली
व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग है।
भाषा-भाषा
सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण हिन्दी है।
फिर एक दिन खैराती, रामू और छिद् ने सोचा कि लाओ आँखें खोलकर तो देखें।
अब तक अपना राज स्वर्ग हो गया होगा। उन तीनों ने आँखें खोली तो उन सबको अपने सामने
राजा दिखाई दिया। वे एक-दूसरे को न देख सके।
संदर्भ
: 'पहचान' नामक लघु कथा से संकलित इन पंक्तियों के लेखक असगर वजाहत हैं। उनकी 'लघु
कथाएँ' हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित हैं।
प्रसंग राजा
ने प्रजाजनों को आदेश दिया कि राज्य की उन्नति के लिए वह अपनी आँखें बन्द रखें, कानों
में पिघला सीसा डलवा लें और होंठ सिलवा लें। प्रजा ने उसकी आज्ञा का पालन किया। कुछ
दिनों के बाद प्रजा के कुछ लोगों ने राज्य में कितनी प्रगति हुई यह देखने के लिए अपनी
आँखें खोली।।
व्याख्या
: एक दिन खैराती, रामू और छिद् ने सोचा कि आँखें बंद किये बहुत दिन हो गये लाओ आँखें
खोलकर देखें तो सही कि अपना राज्य कितनी तरक्की कर चुका है। अब तक तो अपना राज्य स्वर्ग
जैसा हो गया होगा किन्तु जब उन तीनों ने आँखें खोली तो उन्हें सर्वत्र राजा ही राजा
दिखा। वे एक-दूसरे को भी न देख सके।
अर्थात
राजा ने प्रजाजनों के जीवन को स्वर्ग जैसा बनाने का झांसा देकर अपना जीवन स्वर्गमय
बना लिया था। प्रजा के जीवन में कोई सुधार नहीं हो सका था। वह जनता को एकजुट होने से
रोकता था, यही उसकी सफलता का राज था। तीनों व्यक्ति एक-दूसरे को न देख सकते थे, जब्कि
राजा उन्हें सर्वत्र दिख रहा था अर्थात् उत्पादन के समग्र साधनों पर राजा ने अधिकार
कर लिया था और प्रजा में अब इतना साहस न था कि वह राजा का रंचमात्र भी विरोध कर सके।
प्रजा को एकजुट .होने से रोकने में राजा सफल रहा, यही उसकी सफलता का राज था।
विशेष
:
लघु
कथा का निहितार्थ यह है कि राजा (या शासक) जनता को एकजुट नहीं होने देता। वे आपस में
एक-दूसरे को न देख सकें, न सुन सकें, न विचार-विमर्श कर सकें, इसी में उसकी सफलता निहित
है।
राजा
अपनी हर आज्ञा के औचित्य को यह कहकर सिद्ध करता है कि इससे प्रजा का कल्याण होगा और
अपना राज्य स्वर्ग जैसा हो जाएगा। किन्तु यह कोरा आश्वासन या झाँसा मात्र है।
भाषा-भाषा
सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है।
शैली
प्रतीकात्मक शैली एवं व्यंग्यात्मक शैली है।
एक मिल मालिक के दिमाग में अजीब-अजीब खयाल आया करते थे जैसे सारा संसार
मिल हो जाएगा, सारे लोग मजदूर और वह उनका मालिक या मिल में और चीजों की तरह आदमी भी
बनने लगेंगे, तब मजदूरी भी नहीं देनी पड़ेगी, वगैरा-वगैरा। एक दिन उसके दिमाग में खयाल
आया कि अगर मजदूरों के चार हाथ हों तो काम कितनी तेजी से हो और मुनाफा कितना ज्यादा।
लेकिन यह काम करेगा कौन? उसने सोचा, वैज्ञानिक करेंगे, ये हैं किस मर्ज
की दवा? उसने यह काम करने के लिए बड़े वैज्ञानिकों को मोटी तनख्वाहों पर नौकर रखा और
वे नौकर हो गए। कई साल तक शोध और प्रयोग करने के बाद वैज्ञानिकों ने कहा कि ऐसा असंभव
है कि आदमी के चार हाथ हो जाएँ। मिल मालिक वैज्ञानिकों से नाराज हो गया। उसने उन्हें
नौकरी से निकाल दिया और अपने आप इस काम को पूरा करने के लिए जुट गया।
संदर्भ
: प्रस्तुत पंक्तियाँ असगर वजाहत द्वारा रचित 'लघु कथाएँ' पाठ में संकलित कथा 'चार
हाथ' से ली गई हैं। लघु कथाएँ शीर्षक पाठ को हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा भाग-2' में
संकलित किया गया है।
मिल
मालिक के मन में यह विचार आया कि यदि मजदूरों के चार हाथ हो जाएँ तो उत्पादन बढ़ जाएगा।
अपनी सोच को कार्यरूप में परिणत करने के लिए उसने यह कार्य कुछ वैज्ञानिकों को सौंपा।
व्याख्या
: एक मिल मालिक के मन में अजीब से खयाल आया करते थे जैसे सारा संसार मिल है और यहाँ
के सारे लोग उस मिल में काम करने वाले मजदूर तथा वह उस पूरी मिल का मालिक। कभी वह यह
भी सोचता कि जैसे मिल में और चीजें बनती हैं वैसे ही यदि आदमी भी बनने लगें तो उन्हें
मजदूरी भी नहीं देनी पड़ेगी।
एक
दिन उसके मन में यह विचार आया कि आदमी के चार हाथ हो जाएँ तो उत्पादन दूना हो जाएगा
पर यह होगा कैसे ? उसने सोचा वैज्ञानिक यह कर देंगे। अतः उसने वैज्ञानिकों को मोटे
वेतन पर नौकर रख लिया। पर वे असफल हो गए और उन्होंने यह रिपोर्ट दी कि चार हाथ वाले
आदमी नहीं बन सकते। इस रिपोर्ट को पाकर मिल मालिक वैज्ञानिकों से नाराज हो गया और उन्हें
नौकरी से निकाल दिया। अब उसने स्वयं यह काम करने का विचार बनाया कि किसी तरह आदमी के
चार - हाथ हो जाएँ।
विशेष
:
यह
लघुकथा पूँजीवादी व्यवस्था में मजदूरों के शोषण को उजागर करती है।
पूँजीपति
भाँति-भाँति के उपाय कर मजदूरों को पंगु बनाने का प्रयास करते हैं।
भाषा
भाषा सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है।
शैली
शैली व्यंग्यात्मक है। पूँजीवादी शोषण पर प्रहार किया गया है।
उसने कटे हुए हाथ मँगवाए और अपने मजदूरों के फिट करवाने चाहे पर ऐसा
नहीं हो सका। फिर उसने मजदूरों के लकड़ी के हाथ लगवाने चाहे, पर उनसे काम नहीं हो सका।
फिर उसने लोहे के हाथ फिट करवा दिये, पर मजदूर मर गए। आखिर एक दिन बात उपकी समझ में
आ गई। उसने मजदूरी आधी कर दी और दुगुने मजदूर नौकर रख लिए।
संदर्भ
:
प्रस्तुत पंक्तियाँ असगर वजाहत की लघु कथा 'चार हाथ' से ली गई हैं। 'लघु कथाएँ' शीर्षक
से इसे हमारी - पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा भाग-2' में संकलित किया गया है।
प्रसंग
: एक मिल मालिक के मन में यह विचार आया कि यदि मजदूरों के चार हाथ होते तो उत्पादन
दुगुना हो जाता। इसके लिये उसने तरह-तरह के प्रयास किए।
व्याख्या
: मिल मालिक ने मजदूरों के चार हाथ लगवाने हेतु कटे हुए हाथ मँगवाये और मजदूरों के
फिट करवाने चाहे पर उसे सफलता नहीं मिली, तब उसने लकड़ी के हाथ फिट करवाने चाहे। पर
यह भी संभव नहीं हुआ। अंत में उसने मजदूरों के लोहे के हाथ फिट करवा दिये परिणामतः
मजदूर-मर गए। अंत में उसे एक उपाय सूझ गया। उसने मजदूरों की मजदूरी आधी कर दी और मजदूरों
की संख्या दुगुनी कर दी। लाचार मजदूर आधी मजदूरी पर ही काम करने को तैयार थे। इस प्रकार
उसका उत्पादन दुगुना हो गया।
विशेष
:
यह
लघुकथा मिल मालिकों द्वारा मजदूरों के शोषण की प्रवृत्ति और उनकी मानसिकता को उजागर
करती है।
मिल
मालिक संवेदनहीन होते हैं। वे मजदूरों की लाचारी का लाभ उठाते हैं और हर उपाय से अपना
उत्पादन (लाभ) बढ़ाने की फिराक में रहते हैं
लेखक
का प्रगतिवादी दृष्टिकोण यहाँ साफ झलकता है। वह मजदूरों के प्रति सहानुभूतिशील है।
भाषा-भाषा
सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है।
शैली-शैली
में प्रतीकात्मकता एवं व्यंग्यात्मकता है।
किसान ने उसको बताया कि साझे में उसका कभी गुजारा नहीं होता और अकेले
वह खेती कर नहीं सकता। इसलिए वह खेती करेगा ही नहीं। हाथी ने उसे बहुत देर तक पट्टी
पढ़ाई और यह भी कहा कि उसके साथ साझे की खेती करने से यह लाभ होगा कि जंगल के छोटे-मोटे
जानवर खेतों को नुकसान नहीं पहुँचा सकेंगे और खेती की अच्छी रखवाली हो जाएगी। किसान
किसी न किसी तरह तैयार हो गया और उसने हाथी से मिलकर गन्ना बोया।
संदर्भ
:
'साझा' नामक लघुकथा से ली गई ये पंक्तियाँ असगर वजाहत द्वारा रचित 'लघु कथाएँ' पाठ
से हैं जिसे हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा भाग-2' में संकलित किया गया है।
प्रसंग
: पूँजीपति किस प्रकार किसानों की खेती और पैदावार को हड़प रहे हैं इस ओर यहाँ संकेत
किया गया है। हाथी और किसान ने मिलकर गन्ने की खेती साझे में की। सारे गन्ने हाथी खा
गया और किसान देखता रह गया। यही इस लघुकथा के माध्यम से समझाया गया है।
व्याख्या
: हाथी ने जब किसान के साथ साझे में खेती करने का प्रस्ताव दिया तो किसान ने मना करते
हुए कहा कि वह एग में खेती नहीं करेगा क्योंकि इसमें उसका गुजारा नहीं होता परन्तु
हाथी ने उसे कुछ इस प्रकार समझाया कि अन्ततः वह साझे में खेती करने को राजी हो गया।
हाथी ने उसे यह तो कहा ही कि तुम्हें बहत लाभ होगा क्य जानवर मेरे भय के कारण हमारे
खेतों को नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे। इस तरह खेती की अच्छी तरह देखभाल होने से फसल
भी अच्छी होगी। किसान हाथी की बातों में आ गया और उसने उसके साझे में अपने खेत में
गन्ना बो दिया।
विशेष
:
हाथी
यहाँ पूँजीपति का प्रतीक है जो पैसे की दृष्टि से शक्तिशाली है। वह छोटे किसानों को
लाभ का लालच देकर झांसे में ले लेता है और फिर उनका शोषण करता है।
यह
व्यंग्य उन पूँजीपतियों पर है जो किसानों के लाभ की बात कहकर उनका ही शोषण करते हैं।
किसानों
की बदहाली.का चित्रण भी इस कथा में है। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था किसानों के श्रम से
होने वाले लाभ को हड़प जाती है।
भाषा-भाषा
सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है।
शैली
प्रतीकात्मक शैली तथा व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग लेखक ने किया है।
किसान फसल की सेवा करता रहा और समय पर जब गन्ने तैयार हो गए तो वह हाथी
को खेत पर बुला लाया। किसान चाहता था कि फसल आधी-आधी बाँट ली जाए। जब उसने हाथी से
यह बात कही तो हाथी काफी बिगड़ा। हाथी ने कहा, "अपने और पराए की बात मत करो। यह
छोटी बात है। हम दोनों ने मिलकर मेहनत की थी, हम दोनों उसके स्वामी हैं। आओ, हम मिलकर
गन्ने खाएँ।" किसान के कुछ कहने से पहले ही हाथी ने बढ़कर अपनी सूंड से एक गन्ना
तोड़ लिया और आदमी से कहा, "आओ खाएँ।"
संदर्भ
: प्रस्तुत पंक्तियाँ असगर वजाहत द्वारा लिखी गई लघु कथा ‘साझा' से ली गई हैं। यह लघु
कथा हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा भाग-2' में 'लघु कथाएँ' शीर्षक से संकलित है।
प्रसंग
: एक किसान ने हाथी के साथ साझे में गन्ने की खेती की। जब फसल तैयार हो गई और बँटवारे
की स्थिति आयी तब हाथी ने छलपूर्वक सारी फसल पर अधिकार कर लिया।
व्याख्या
: किसान ने गन्ने की खेती हाथी के साथ मिलकर साझे में की। किसान फसल की देखभाल करता
रहा और समय आने पर गन्ने तैयार हो गए। तब वह हाथी को लेकर खेत पर पहुँचा और कहा कि
हम फसल को आधा-आधा बाँट लें।
अन्तरा
(गद्य-खण्ड) 203 इस बात पर हाथी बहुत बिगड़ा (नाराज हुआ) और बोला कि अपने-पराए की बात
मत करो। हम दोनों ने मिलकर खेती की है अब आओ मिलकर गन्ने खाएँ। यह कहकर उसने सैंड़
से एक गन्ना तोड़कर किसान से कहा कि एक ओर से तुम खाओ दूसरी ओर से मैं खाता हूँ। गन्ने
के साथ आदमी भी हाथी की सूंड़ की तरफ खिंचने लगा तो डरकर आदमी ने गन्ना छोड़ दिया।
हाथी ने.कहा देखो हमने मिलकर एक गन्ना खा लिया। इस प्रकार हाथी सारे गन्ने खा गया और
कहा कि हमारे बीच साझे की खेती बँट गई।
विशेष
:
1.
यहाँ हाथी और आदमी के साझे के माध्यम से लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि पूँजीपति
चालाकी से किसान के श्रम का फल उससे छीन लेते हैं।
2.
साझेदारी बराबर वालों में होती है। बड़े और छोटे की साझेदारी में छोटा ही पिसता है।
कॉरपोरेट जगत के लोग यदि गाँव के किसान के साथ साझेदारी करेंगे तो किसान को कुछ भी
हासिल नहीं होगा।
3.
यह लघुकथा लेखक के इस दृष्टिकोण को व्यक्त कर रही है कि बड़े-बड़े कॉरपोरेट घराने अपने
लाभ के लिये किसानों के साथ साझे की खेती करने का झांसा देते हैं और फिर हाथी की तरह
किसान को चूस लेते हैं।
4.
उद्योगों पर कब्जा जमाने के बाद अब पूँजीपतियों की नजर किसानों की जमीन और उनके उत्पाद
पर टिकी है। गाँव के प्रभुत्वशाली लोग भी इसमें शामिल हैं। हाथी प्रतीक है समाज के
धनाढ्य और प्रभुत्त्वशाली वर्ग का जो किसानों को धोखे में डालकर उसकी सारी मेहनत हड़प
कर लेता है।
5. भाषा-सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण भाषा का प्रयोग है प्रतीकात्मक शैली है।