
झारखण्ड
में वन एवं वन्यजीव अभयारण्य
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वन संसाधन की दृष्टि से झारखण्ड एक सम्पन्न राज्य है। राज्य में प्राकृतिक वनस्पति
अधिक मात्रा में होने के कारण ही इसका नाम ‘झारखण्ड’ पड़ा।
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झारखण्ड को स्थानीय स्तर पर इसके समृद्ध वन संसाधनों के कारण ‘वनांचल’ के रूप में भी
जाना जाता है।
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इण्डिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट, 2021 के अनुसार, झारखण्ड में कुल वनावरण
23,721.14 वर्ग किमी है जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 29.76% है। इस वनावरण के
23,605 वर्ग किमी क्षेत्र में वन स्थित है। भारत के कुल वन क्षेत्र का झारखण्ड में
3.4% है।
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इण्डिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट, के अनुसार, राज्य में अति सघन वन 2,601.05 वर्ग
किमी, मध्यम सघन वन 9,688.91 वर्ग किमी तथा 11, 431.18 वर्ग किमी खुले वन क्षेत्र हैं।
2021
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वर्ष 2019 की अपेक्षा वर्ष 2021 में वनावरण में 109.73 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है
।
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झारखण्ड में सर्वाधिक वन क्षेत्र वाला जिला पश्चिमी सिंहभूम (3368.44 वर्ग किमी) तथा
न्यूनतम वन क्षेत्र वाला जिला जामताड़ा (106.02 वर्ग किमी) है।
प्रशासनिक दृष्टि से वनों का वर्गीकरण
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प्रशासनिक दृष्टि से राज्य में वनों को तीन भागों में बाँटा गया है
(i)
आरक्षित वन
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इन वनों में लकड़ी काटने व पशु चराने की अनुमति नहीं होती। इन वनों को सरकारी संरक्षण
में रखा जाता है । इन वनों को सरकारी सम्पत्ति माना जाता है ।
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इण्डिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 के अनुसार, झारखण्ड के कुल भू-भाग पर आरक्षित
वन 4,387 वर्ग किमी है जो वन क्षेत्र का 18.58% है। कुल
(ii)
संरक्षित वन
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इन वनों में लकड़ी काटने व पशुओं को चराने के लिए सरकार द्वारा एक सीमा निर्धारित की
जाती है ।
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इण्डिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 के अनुसार झारखण्ड के रिकॉर्डेड वन क्षेत्र
में राज्य के कुल भू-भाग पर संरक्षित वन 19,185 वर्ग किमी है जो कुल वन क्षेत्र का
81.28% है।
(iii)
अवर्गीकृत वन
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इन वनों में पशुओं की चराई और लकड़ी काटने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता, किन्तु सरकार
इसके लिए शुल्क लेती है। इण्डिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 के अनुसार राज्य के
कुल भू-भाग पर अवर्गीकृत वन 33 वर्ग किमी है जो कुल वन क्षेत्र का 0.14% है।
झारखण्ड में वनों के प्रकार
राज्य
में तीन प्रकार के वन पाए जाते हैं, जिनका वर्णन निम्न प्रकार है
उष्णकटिबन्धीय
आर्द्र पतझड़ वन
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इन वनों का विकास राज्य के ऐसे क्षेत्रों में हुआ है, जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 120 सेमी
से अधिक होती है। राज्य में इन वनों का विस्तार गुमला, रांची, सरायकेला, सिमडेगा, पश्चिमी
व पूर्वी सिंहभूम व सन्थाल परगना में मुख्य रूप से है ।
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इन वनों का प्रमुख वृक्ष साल है, जिसे पर्णपाती वनों का राजा भी कहते हैं ।
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इन वनों में पाए जाने वाले अन्य वृक्ष शीशम, पलाश, सेमल, जामुन, करमा, बाँस इत्यादि
हैं।
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ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाने के कारण इस प्रकार के वनों को आर्द्र प्रायद्वीपीय
वन भी कहते हैं ।
उष्णकटिबन्धीय
शुष्क पतझड़ वन
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इन वनों का विस्तार राज्य के ऐसे क्षेत्रों में हुआ है, जहाँ औसत वार्षिक वर्षा
120 सेमी से कम होती है।
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इस प्रकार के वनों के प्रमुख वृक्ष अमलतास, साल, महुआ, शीशम, सेमल, पलाश, बाँस आदि
हैं।
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इन वनों का विस्तार राज्य के तीन क्षेत्रों में मुख्य रूप से मिलता है
(i)
पलामू, गढ़वा एवं चतरा ।
(ii)
कोडरमा, देवघर, गिरिडीह व हजारीबाग।
(iii)
राजमहल पहाड़ी के पश्चिमी ढाल वाले क्षेत्र ।
शुष्क
प्रायद्वीपीय वन
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इन वनों का विस्तार राज्य के ऐसे क्षेत्रों में है जहाँ वर्षा मध्यम श्रेणी की होती
है।
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झारखण्ड में ऐसे वनों का विस्तार हजारीबाग पठार क्षेत्र, लातेहार, बोकारो, रांची, लोहरदगा
व जामताड़ा, धनबाद, गुमला, सिमडेगा में है।
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इस वन क्षेत्र में साल वृक्षों की अधिकता है तथा साथ-साथ कुसुम, गुलर, जामुन, कटहल,
आम, बाँस इत्यादि के वृक्ष भी पाए जाते हैं।
झारखण्ड में वन उत्पाद
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राज्य में मुख्यतः वनों से मुख्य उपज व गौण उपज के रूप में उत्पादों की प्राप्ति होती
है।
मुख्य
उत्पाद
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साल इस वृक्ष को झारखण्ड में राजकीय वृक्ष का दर्जा प्राप्त है तथा इस वृक्ष को जनजातीय
समाज में धार्मिक महत्त्व के रूप में प्राप्त है। यह राज्य के सम्पूर्ण क्षेत्र में
पाए जाते हैं। इस वृक्ष की लकड़ी कठोर होती है। जिसका उपयोग इमारतों की लकड़ियों में
फर्नीचर, रेल के डिब्बे, रेल पटरियाँ आदि बनाने में किया जाता है। झारखण्ड की स्थानीय
भाषा में साल वृक्ष को सखुआ भी कहा जाता है। साल के बीजों से तेल निकाला जाता है, जिसे
‘कुजरी तेल’ कहते हैं।
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शीशम यह वृक्ष सम्पूर्ण झारखण्ड में पाया जाता है। इस वृक्ष की लकड़ी काफी मजबूत होती
है। फर्नीचर बनाने में इसका विशेष रूप से उपयोग होता है।
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सागौन यह वृक्ष राज्य के आर्द्र जलवायु क्षेत्रों ( सारण्डा, पोरहाट एवं कोल्हान) में
पाया जाता है। इसकी लकड़ी सुन्दर और मजबूत होती है। इसका उपयोग रेल के डिब्बे, फर्नीचर
आदि के निर्माण में होता है।
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महुआ यह वृक्ष राज्य के पठारी भागों के वनों में बहुतायत पाया जाता है। इस वृक्ष की
लकड़ी, फल, फूल तथा बीज किसी-न-किसी रूप में उपयोग में लाए जाते हैं। इसके बीजों से
तेल निकाला जाता है तथा फूलों का उपयोग शराब बनाने में किया जाता है व इसके कच्चे फलों
को सब्जी के रूप में खाया जाता है ।
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सेमल / हर्रे बहेडा सेमल की लकड़ी का उपयोग मुख्यतः पैकिग की पेटियाँ व खिलौने बनाने
में किया जाता है। इसकी लकड़ी हल्की व मुलायम होती है। हर्रे का प्रयोग दवाई बनाने
में किया जाता है।
गौण
उत्पाद
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लाह राज्य का लाह उत्पादन की दृष्टि से देश में प्रथम स्थान है। राज्य में देश के कुल
लाह उत्पादन का 50% होता है। लाह के कीड़े, लैसीफर लक्का या लैक-बैग जाति के होते हैं।
राज्य में हजारीबाग, पलामू, रांची, सन्थाल परगना आदि जिलों में बड़ी मात्रा में लाह
का उत्पादन किया जाता है ।
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लाह के कीड़ों की वृद्धि मुख्य रूप से बरगद, रीठा, पीपल, बबूल आदि वृक्षों पर होती
हैं। खूँटी राज्य का सबसे बड़ा लाह उत्पादक जिला है। लाह से सम्बन्धित शोध कार्यों
के लिए राज्य में वर्ष 1924 में भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् के अन्तर्गत, भारतीय
लाह शोध अनुसन्धान केन्द्र की स्थापना नामकोम, राँची में की गई।
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टसर (रेशम) राज्य का टसर उत्पादन में देश में प्रथम स्थान है। देश के कुल टसर उत्पादन
का 60% झारखण्ड में ही होता है । भारत सरकार द्वारा रांची के नगड़ी में टसर अनुसन्धान
केन्द्र की स्थापना की गई। इसके उत्पादन में मुख्य रूप से आसन, साल, शहतूत व अर्जुन
के वृक्षों की आवश्यकता होती है। राज्य में रेशम आधारित उत्पादों के विकास हेतु सरकार
ने वर्ष 2006 में झारखण्ड सिल्क, टेक्सटाइल एवं हैंडीक्राफ्ट डेवलपमेंट कॉरर्पोरेशन
की स्थापना की गई।
वन्यजीव संरक्षण
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झारखण्ड में अनेक वन्यप्राणी क्षेत्रों की स्थापना की गई है, जिनका उद्देश्य वन्यप्राणियों
को संरक्षण देना है। वर्तमान में झारखण्ड में 1 राष्ट्रीय उद्यान, 11 वन्यजीव अभयारण्य
तथा अनेक जैविक उद्यान हैं।
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राज्य में इन अभयारण्यों व राष्ट्रीय उद्यान का विस्तार राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र
का 2.74% है।
राष्ट्रीय
उद्यान
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राज्य के एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान का विवरण इस प्रकार है
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बेतला राष्ट्रीय उद्यान
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इस राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना वर्ष 1986 में की गई थी।
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यह राष्ट्रीय उद्यान जिला लातेहार में 231.67 वर्ग किमी में विस्तृत है, यहाँ वर्ष
1932 में पहली बार शेर की गणना की गई थी। भारत सरकार द्वारा यहाँ वर्ष 1973 से बाघ
परियोजना चलाई जा रही है । ।
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इस राष्ट्रीय उद्यान में बाघ, शेर, हाथी, चीतल, साम्भर, चिंकारा, गौर, भालू, बन्दर,
मोर, धनेश इत्यादि प्राणियों का निवास है।
वन्यजीव अभयारण्य
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राज्य में वन्यजीव अभयारण्यों का विवरण इस प्रकार है
हजारीबाग
अभयारण्य
इस
अभयारण की स्थापना मई, 1976 में की गई थी। यह हजारीबाग जिले में अवस्थित है, जो
मुख्य शहर से लगभग 22 किमी की दूरी पर है। यह राज्य का सबसे पुराना अभयारण्य है।
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यह अभयारण्य 186.25 वर्ग किमी के इसे क्षेत्रफल में फैला हुआ है। तेन्दुआ, हिरण साम्भर
इत्यादि यहाँ के प्रमुख वन्यप्राणी हैं ।
पलामू
अभयारण्य
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यह अभयारण्य लातेहर जिले में स्थित है। इस अभयारण्य की स्थापना वर्ष 1976 में की गई
थी। यह 794.33 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। यह झारखण्ड का सबसे बड़ा अभयारण्य
है। यहाँ बाघों को संरक्षित किया जाता है। यह एक ‘टाइगर रिजर्व’ है। यहाँ का प्रमुख
वन्यप्राणी हाथी है।
दालमा
अभयारण्य
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यह अभयारण्य पूर्वी सिंहभूम जिले में स्थित है। इस अभयारण्य की स्थापना वर्ष 1976 में
की गई थी। इसका क्षेत्रफल 193.22 वर्ग किमी है। हाथी, तेन्दुआ, हिरण यहाँ के प्रमुख
वन्यप्राणी हैं। हाथी यहाँ आकर्षण का मुख्य केन्द्र है।
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हाथी परियोजना की शुरुआत दालमा अभयारण्य से ही हुई थी।
महुआडाण्ड
भेड़िया अभयारण्य
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यह अभयारण्य राज्य के लातेहार जिले में स्थित है इस अभयारण्य की स्थापना वर्ष 1976
में की गई
थी ।
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इस अभयारण्य का क्षेत्रफल 63.25 वर्ग किमी है। भौगोलिक क्षेत्रफल की दृष्टि से यह झारखण्ड
का सबसे बड़ा वन्यप्राणी अभयारण्य है। इस अभयारण्य में अनेक प्रकार के वन्यप्राणी पाए
जाते हैं, जिनमें हिरण व भेड़ियों की बहुलता है।
गौतमबुद्ध
अभयारण्य
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यह अभयारण्य राज्य कोडरमा जिले में स्थित है। इसकी स्थापना वर्ष 1976 में की गई थी।
यह अभयारण्य लगभग 259 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैला हुआ है।
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यहाँ पर बाघ, तेन्दुआ, भेड़िया, चीता, भालू, चिंकारा तथा पक्षियों की कई प्रजातियाँ
पाई जाती हैं।
तोपचाँची
अभयारण्य
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यह अभयारण्य राज्य के धनबाद जिले में अवस्थित है। इस अभयारण्य की स्थापना वर्ष
1978 में की गई थी। यह अभयारण्य 8.75 वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है। इस अभयारण्य
के मध्य में हरी पहाड़ी झील स्थित है।
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यहाँ के प्रमुख वन्यप्राणियों में तेन्दुआ, हिरण, जंगली भालू हैं।
लावालौंग
अभयारण्य
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यह अभयारण्य राज्य के चतरा जिले में स्थित है। इस अभयारण्य की स्थापना वर्ष 1978 में
हुई थी। यह 207 वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है।
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इस अभयारण्य के प्रमुख वन्यप्राणी बाघ, तेन्दुओं, नीलगाय, हिरण, साम्भर इत्यादि हैं।
पारसनाथ
अभयारण्य
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यह अभयारण्य राज्य के गिरिडीह जिले में स्थित है। इस अभयारण्य की स्थापना वर्ष
1981 में की गई थी। इस अभयारण्य का क्षेत्रफल 49.33 वर्ग किमी है।
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यहाँ के प्रमुख वन्यप्राणियों में तेन्दुआ, हिरण, नीलगाय हैं।
कोडरमा
अभयारण्य
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यह अभयारण्य राज्य के कोडरमा जिले में स्थित है। इसकी स्थापना वर्ष 1985 में की गई
थी। इस अभयारण्य का क्षेत्रफल 177.35 वर्ग किमी है। तेन्दुआ, साम्भर, हिरण प्रमुख वन्यप्राणी
हैं।
पालकोट
अभयारण्य
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यह अभ्यारण्य गुमला जिले में स्थित है। इसकी स्थापना वर्ष 1990 में हुई थी। इस अभयारण्य
का क्षेत्रफल 183.18 वर्ग किमी है।
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यह अभयारण्य चारों ओर से नदियों से घिरा हुआ है। तेन्दुआ, जंगली भालू की इस अभयारण्य
में बहुलता है।
उधवा
जल पक्षी अभयारण्य
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यह अभयारण्य राज्य के साहेबगंज जिले में स्थित है।
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इस अभयारण्य की स्थापना वर्ष 1991 में की गई थी। इस अभयारण्य का क्षेत्रफल लगभग
5.6 वर्ग किमी में है ।
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प्रवासी पक्षियों के लिए यहाँ एक विस्तृत झील है । शरद ऋतु में प्रवासी पक्षियों को
पर्यटक देखने आते हैं।
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यहाँ पर जलकौवा, खंजन, बटान, किंगफिशर, वनमुर्गी, बुलबुल, नीलकण्ठ इत्यादि पक्षी पाए
जाते
हैं
।
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उधवा पक्षी विहार के अतिरिक्त राज्य में तिलैया पक्षी विहार (कोडरमा), तेनुघाट पक्षी
विहार (बोकारो), चन्द्रपुरा पक्षी विहार (बोकारो), ईचागढ़ पक्षी विहार (सरायकेला-खरसावाँ)
भी हैं।
नोट
वर्ष 2018 की पक्षी गणना के अनुसार राज्य में पक्षियों की संख्या 46,883 है।
राजमहल
अभयारण्य
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यह अभयारण्य राज्य के साहेबगंज जिले में अवस्थित है। यह राज्य का एकमात्र ऐसा अभयारण्य
है, जहाँ जीवाश्म पाए जाते हैं, इसलिए यह जीवाश्म अभयारण्य के नाम से भी जाना जाता
है ।
> इस अभयारण्य का विस्तार 6.65 वर्ग किमी के क्षेत्रफल
में है। चूंडूल, बुलबुल, कबूतर, खंजन इल्स अभयारण्य के प्रमुख वन्यप्राणी हैं।
झारखण्ड के जैविक उद्यान
>
राज्य के प्रमुख जैविक उद्यानों का विवरण इस प्रकार है
1.
बिरसा भगवान जैविक उद्यान यह जैविक उद्यान ओरमाँझी प्रखण्ड के अन्तर्गत चकला गाँव के
समीप स्थित है। इसकी स्थापना वर्ष 1954 में की गई थी। यह सपही नदी के तट पर अवस्थित
है। यहाँ विभिन्न प्रजातियों के जीव-जन्तु, पशु-पक्षियों को प्राकृतिक अवस्था में रखा
गया है।
2.
मगर प्रजनन केन्द्र यह प्रजनन केन्द्र राज्य के रांची जिले के रूक्का में स्थित है।
इसकी स्थापना IUCN कार्यक्रम के अन्तर्गत वर्ष 1987 में की गई थी। इस प्रजनन केन्द्र
के अतिरिक्त बिरला जैविक उद्यान के समीप मूटा में भी मगर प्रजनन केन्द्र स्थापित किया
गया है।
3.
बिरसा मृग विहार यह मृग बिहार राज्य के रांची जिले के काला माटी में स्थित है। इसकी
स्थापना राज्य में साम्भर व चीतल के संरक्षण हेतु की गई थी।
4.
जवाहर लाल नेहरू जैविक उद्यान यह राज्य के बोकारो जिले में बोकारो स्टील सिटी में स्थित
है। इसे सिटी पार्क के नाम से भी जाना जाता है।
वन एवं वन्यजीव संरक्षण परियोजनाएँ
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राज्य सरकार द्वारा वन तथा वन्यजीवों के संरक्षण हेतु निम्न प्रकार के कार्यक्रम चलाए
जा रहे हैं
मुख्यमन्त्री
जन वन योजना
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यह योजना वर्ष 2015 में प्रारम्भ की गई थी। इसका उद्देश्य राज्य में हरित क्षेत्र वृद्धि
हेतु निजी भूमि पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहन देकर किसानों की साधन में वृद्धि के साथ-साथ
राज्य के अधिसूचित वनों पर दबाब भी कम करना है।
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इस योजना के अन्तर्गत ग्रामीणों / लाभुकों को निजी भूमि पर वृक्षारोपण एवं खेत की मेड़
पर वृक्ष लगाने हेतु प्रोत्साहित किया जाएगा तथा वृक्षारोपण एवं रख-रखाव पर हुए व्यय
की आंशिक राशि प्रोत्साहन स्वरूप उन्हें वन विभाग द्वारा प्रदान की जाएगी।
हाथी
परियोजना
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यह परियोजना वर्ष 1992 में प्रारम्भ की गई थी । यह योजना केन्द्र सरकार द्वारा संचालित
योजना है, जिसमें केन्द्र व राज्य की 60:40 के अनुपात में हिस्सेदारी है।
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इस योजना के तहत राज्य में हाथियों के पुनर्वास के विकास तथा हाथी कॉरिडोर को विकसित
किया जा रहा है।
पलामू
व्याघ्र परियोजना
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यह परियोजना वर्ष 1974 में प्रारम्भ की गई थी।
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इस योजना में केन्द्र व राज्य सरकार का अनुपात 50:50 है।
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वन्यप्राणी पर्यावास की समेकित विकास योजना
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इस योजना के तहत राज्य में स्थित 11 वन्यजीव अभयारण्यों व एक राष्ट्रीय उद्यान के रख-रखाव
व विकास, उचित वातावरण इत्यादि पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
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इस योजना में केन्द्र व राज्य की हिस्सेदारी 60 : 40 है। यह केन्द्र प्रायोजित योजना
है।
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इन्टेसिफिकेशन ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेण्ट योजना
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यह केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजना है, जिसमें केन्द्र व राज्य की भागेदारी
60: 40 है।
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इस योजना के तहत राज्य में वनों की अग्नि सुरक्षा, सीमांकन, सर्वे तथा वन सीमा स्तम्भ
का निर्माण किया जा रहा है ।
राष्ट्रीय
वनीकरण कार्यक्रम
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इस योजना में केन्द्र तथा राज्य की हिस्सेदारी 60:40 है। यह योजना केन्द्र सरकार द्वारा
आयोजित है।
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इसका उद्देश्य वनों पर आश्रित लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाना तथा वनों के केयर
एण्ड शेयर प्रणाली को विकसित करना है।
नेशनल
प्लान फॉर कनजर्वेशन ऑफ एक्वाटिक इकोसिस्टम
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इस योजना के अन्तर्गत राज्य साहेबगंज जिले में स्थित उधवा झील पक्षी विहार तथा अन्य
पक्षी विहारों को संरक्षित कर इन्हें विकसित किया जा रहा है।
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यह केन्द्र सरकार द्वारा संचालित योजना है, जिसमें केन्द्र एवं
राज्य का अनुपात 60:40 है।
वनीकरण के अन्य प्रयास
वन
रोपण एवं वानिकी कालेज
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राज्य में 9 लाख हेक्टेयर से अधिक बंजर भूमि है। इस भूमि पर सरकार द्वारा वन रोपण किया
जा रहा है। राज्य में वन प्रबन्धन प्रशिक्षण हेतु बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (रांची)
से सम्बन्धित एक वानिकी कॉलेज की स्थापना की गई है।
अभिलेखों
का डिजिटलिकरण
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राज्य में प्राकृतिक संसाधनों के उचित प्रबन्ध हेतु वन के अभिलेखों को डिजिटल किया
है। जा रहा
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इस डिजिटल क्रियान्वयन के तहत वन भूमि से सम्बन्धित 15,000 केड्रस्टल मानचित्रों में
से 13,900 मानचित्रों का रिकॉर्ड अपडेट किया जा चुका है।
झारखण्ड वन प्रबन्ध नीति
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वर्ष 1882-85 में जे. एफ. हेबिट द्वारा सर्वप्रथम झारखण्ड में वन प्रबन्ध नीति को लागू
किया गया था। तत्कालीन बंगाल सरकार ने वर्ष 1909 में एक समिति का गठन किया, ताकि वनों
की सुरक्षा सुचारु रूप से हो सके।
>
वनों के अच्छे प्रबन्धन के लिए राज्य में वनों को अप्रादेशिक प्रमण्डलों में, 10 सामाजिक
वानिकी प्रमण्डलों तथा 4 विश्व खाद्य कार्यक्रम प्रमण्डलों में व्यवस्थित किया गया,
जिससे राज्य में वनों तथा वन्य प्राणियों के संवर्द्धन व विकास पर ध्यान दिया जा सके।
> वर्ष 2001 में राज्य की वन प्रबन्धन नीति में संशोधन कर वन प्रादेशिक प्रमण्डलों को 35 कर दिया गया।