
झारखण्ड
का अपवाह तन्त्र
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झारखण्ड राज्य में बड़े आकार वाली नदियों का अभाव है तथा अधिकांश नदियाँ बरसात के मौसम
में तीव्र जल प्रवाह-युक्त होती हैं।
राज्य
में प्रवाहित होने वाली नदियों को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया जाता है
1.
पूर्व से दक्षिण की ओर प्रवाहित होने वाली नदियाँ ।
2.
उत्तर की ओर प्रवाहित होने वाली नदियाँ ।
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पूर्व से दक्षिण की ओर प्रवाहित होने वाली नदियाँ
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ये नदियाँ छोटानागपुर पठार के दक्षिणी भाग से निकलकर पूर्व और दक्षिण की ओर प्रवाहित
होती हैं।
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इसके अन्तर्गत दामोदर, बराकर, स्वर्ण रेखा, मयूराक्षी, शंख, अजय, गुमनी, व दक्षिणी
कोयल को मुख्य रूप से शामिल किया गया है। इन प्रमुख नदियों का विवरण निम्न प्रकार है
दामोदर
नदी
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दामोदर नदी का राज्य में उद्गम स्थल लातेहार जिला का टोरी क्षेत्र है ।
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प्राचीन साहित्य में इसका ‘देवनद’ (देवनदी) के नाम से उल्लेख है। इसकी कुल लम्बाई लगभग
592 किमी है। यह नदी झारखण्ड में 290 किमी की दूरी तय करती है।
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राज्य में बहने वाली नदियों में यह नदी सबसे लम्बी नदी है।
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यह नदी राज्य में लातेहार जिले से निकलने के पश्चात् हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद, बोकारो,
रांची व लोहरदगा से होती हुए पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है ।
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इस नदी पर दामोदर घाटी परियोजना (वर्ष 1948) स्थित है। यह परियोजना टेनेसी घाटी परियोजना
पर आधारित है, इसके अन्तर्गत कुल 8 बाँध निर्मित हुए हैं।
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दामोदर नदी को ‘बंगाल का शोक’ भी कहा जाता है। यह नदी राज्य की सबसे प्रदूषित नदी है।
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बराकर, कोनार, जमुनियाँ और कतरी इसकी सहायक नदियाँ हैं।
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यह हावड़ा के निकट हुगली में मिल जाती है।
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वर्तमान में दामोदर नदी घाटी क्षेत्र भारत का सबसे अधिक कोयला उत्पादक क्षेत्र है ।
बराकर
नदी
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यह नदी उत्तरी छोटानागपुर के पठार से निकलने के पश्चात् गिरिडीह, धनबाद व मानभूम से
प्रवाहित होती हुई दामोदर नदी में मिल जाती है।
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इस नदी का उल्लेख प्राचीन बौद्ध एवं जैन ग्रन्थों में भी हुआ है।
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यह एक बरसाती नदी है, जो वर्षा के समय जल से परिपूर्ण रहती है।
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यह नदी कोयला क्षेत्र के पास से प्रवाहित होती है तथा इस नदी की राज्य में लम्बाई
225 किमी है।
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सकरी, बकरी, चिकरी एवं इंगरा बराकर की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
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इस नदी पर दामोदर नदी घाटी परियोजना के अन्तर्गत मैथन बाँध बनाया गया है। यह बाँध बिजली
उत्पादन में सहायक है ।
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झारखण्ड के गिरिडीह जिले के बराकर नामक स्थान पर नदी के किनारे एक जैन मन्दिर निर्मित
है।
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बराकर नदी पर तिलैया एवं मैथन के समीप बिजली गृह स्थापित किए गए हैं ।
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मैथन बाँध के समीप बराकर नदी के तट पर कल्याणेश्वरी देवी का मन्दिर स्थित है ।
स्वर्ण
रेखा (सुवर्ण रेखा) नदी
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यह नदी छोटानागपुर पठार पर स्थित नगड़ी गाँव (रांची) से निकलती है। इसके पश्चात् यह
पूर्वी सिंहभूम जिले से होते हुए ओडिशा में प्रवेश करती है।
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नगड़ी गाँव में एक छोर पर दक्षिणी कोयल, तो दूसरे छोर पर स्वर्णरेखा नदी निकलती है।
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स्वर्ण रेखा नदी की रेत में सोने के अंश जाने के कारण इसका नाम स्वर्ण रेखा पड़ा।
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यह एक बरसाती नदी है, जो वर्षा के समय जल से परिपूर्ण रहती है।
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यह नदी अनेक जलप्रपात बनाती है, जिसमें हुण्डरू जलप्रपात (320 फीट) प्रसिद्ध है।
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रारू इसकी सहायक नदी है, जो जोन्हा के पास गौतमधारा जलप्रपात ( 150 फीट) बनाती है।
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स्वर्ण रेखा किसी भी नदी की सहायक नदी नहीं है एवं सीधे बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
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स्वर्ण रेखा नदी पर दो बाँध गेतलमूद और चाण्डिल बनाए गए हैं।
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खरकई, कांची, रारू, जमार एवं गारानाला स्वर्ण रेखा की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
मयूराक्षी
नदी
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यह नदी देवघर जिले में स्थित त्रिकूट पहाड़ी (उत्तर-पूर्वी किनारे पर) से निकलती है।
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यहाँ से निकलने के पश्चात् यह दुमका जिले के उत्तर-पश्चिमी भाग में प्रवेश करती है
तथा आमजोरा के समीप जाकर यह दुमका जिले से अलग होती है।
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अपने ऊपरी प्रवाह क्षेत्र में यह मोतीहारी के नाम से जानी जाती है ।
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यह नदी जब भूरभूरी नदी के साथ मिलकर बहती है, तो यह नदी मोर नाम से भी जानी जाती है।
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इस नदी की प्रमुख सहायक नदियाँ – भामरी, पूसरों, धोवाई आदि हैं।
> मयूराक्षी नदी गंगा नदी की सहायक नदी है।
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इस पर स्थित मयूराक्षी परियोजना झारखण्ड-पश्चिम बंगाल की संयुक्त परियोजना है।
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इस नदी पर कनाडा के सहयोग से मसानजोर बाँध अथवा कनाडा बाँध बनाया गया है।
शंख
नदी
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यह नदी पाट क्षेत्र के गुमला जिले के दक्षिण छोर से निकलती है। यह नदी नेतरहाट के पश्चिमी
छोर में उत्तरी कोयल के विपरीत बहती है ।
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प्रारम्भ में बहती हुई यह नदी गहरी व अत्यन्त सँकरी खाई का निर्माण करती है।
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यह नदी बहते हुए अपने मार्ग में स्थित राजाडेरा नामक स्थान के समीप सदनीघाघ जलप्रपात
(60 मी) का निर्माण करती है। ।
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झारखण्ड में स्थित बरवै का मैदान भी शंख नदी बेसिन पर स्थित है।
अजय
नदी
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यह नदी बिहार के मुंगेर जिले से निकलती है। इसके पश्चात् यहाँ से यह राज्य के देवघर
जिले में प्रवेश करती है ।
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सन्थाल परगना में यह नदी दक्षिण छोर पर बुसवेदिया से अफजलपुर तक बहती है। पश्चिम बंगाल
में यह गंगा नदी में मिलती है।
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पथरों व जयन्ती इसकी प्रमुख सहायक की नदियाँ हैं।
गुमानी
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यह नदी राजमहल की पहाड़ियों से निकलती है। यहाँ से निकलने के पश्चात् यह उत्तर-पूर्वी
खड्ड का निर्माण करती है ।
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साहेबगंज जिले के बरहैत में पहुँचने पर इसमें मेरेल नदी मिल जाती है। जिसके पश्चात्
यह पूर्व की दिशा में तेजी से बहती हुई दक्षिण की ओर मुड़ जाती है।
दक्षिणी
कोयल नदी
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यह नदी रांची जिले के नगड़ी गाँव से निकलती है।
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यहाँ से निकलकर यह पश्चिम की ओर बहती हुई लोहरदगा पहुँचती है। इसके पश्चात् यह अपनी
दिशा परिवर्तित कर लेती है और दक्षिण दिशा की ओर बहने लगती है।
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लोहरदगा से लगभग 8 किमी बहने के पश्चात् यह गुमला जिले से होते हुए सिंहभूम में प्रवेश
करती है। इसके पश्चात् यह गंगापुर के समीप शंख नदी में मिल जाती है।
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इस नदी की सबसे प्रमुख सहायक नदी कारो है तथा इस नदी पर कोयलाकारो परियोजना का निर्माण
किया गया है।
उत्तर की ओर प्रवाहित होने वाली नदियाँ
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ये नदियाँ उत्तर की ओर प्रवाहित होती है। इनके अन्तर्गत सोन, उत्तरी कोयल, बांसलोई
नदी, फल्गु नदी, चानन नदी, पुनपुन नदी, आदि नदियाँ आती है।
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इनका विवरण निम्न प्रकार है
सोन
नदी
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सोन नदी मध्य प्रदेश की मैकाल श्रेणी की अमरकण्टक पहाड़ी से निकलती है। इसकी कुल लम्बाई
780 किमी है।
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इस नदी की सुनहरी रेत में सोने के कण पाए जाते हैं, इसलिए इसे सोनभद्र और हिरण्यवाह
नामों से भी जाना जाता है।
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यह झारखण्ड तथा उत्तर प्रदेश राज्यों की सीमा का निर्धारण करती है। यह पलामू जिले की
उत्तरी सीमा बनाती हुई प्रवाहित होती है।
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उत्तरी कोयल तथा कन्हार इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
उत्तरी
कोयल नदी
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यह नदी रांची के पठार से निकलती है तथा इसके पश्चात् यह पाट क्षेत्र के ढालों से होती
हुई उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित होती है।
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यह नदी ग्रीष्म ऋतु में सूखी रहती है तथा वर्षा में अत्यन्त तेज प्रवाह के साथ ऋतु
बहने लगती है।
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यह नदी जब महुआ डाण्ड क्षेत्र से नि सेरेंगदाग पाट के समीप पहुँचती है, तब क्षिण से
इसमें बूढ़ी घाघ नदी मिलती है। इस नदी पर बूढ़ाघाघ जलप्रपात स्थित है। बूढ़ी घाघ नदी
बेतला नेशनल पार्क के समीप से प्रवाहित होती है ।
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औरंगा और अमानत उत्तरी कोयल नदी की महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ हैं।
कन्हार
(कन्हर) नदी
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यह नदी छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले से निकलती है। यह झारखण्ड के गढ़वा जिले में भण्डरिया
में राज्य की सीमा प्रवेश करती है ।
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यह नदी राज्य के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में पलामू जिले की दक्षिण-पश्चिम सीमा का निर्धारण
करती है। यह सरगुजा को पलामू से लगभग 80 किमी तक अलग करती है ।
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यह नदी पश्चिम की ओर मुड़कर उत्तर प्रदेश राज्य में प्रवेश करती है।
बांसलोई
नदी
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यह नदी राज्य के गोड्डा जिले के समीप बांस पहाड़ी से निकलती है। इसके पश्चात् यह पूर्व
की ओर बहती हुई दुमका जिले की उत्तरी सीमा का निर्धारण करती है तथा गोड्डा से अलग हो
जाती है।
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यह नदी झारखण्ड को महेशपुर (पाकुड़) जिले में छोड़ती है।
फल्गु
नदी
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फल्गु नदी छोटानागपुर के पठार के उत्तरी भाग से निकलती है। फल्गु नदी अनेक छोटी-छोटी
सरिताओं के मिलने से मुख्य धारा का निर्माण करती है। वर्षाकाल में यह नदी जल से भरी
रहती है।
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इसे निरंजना, लीलाजन और अंतः सलिला भी कहा जाता है ।
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बिहार के बोधगया में मोहना नामक सहायक नदी से मिलकर यह विशाल रूप धारण करती है।
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इस नदी की चौड़ाई गया के निकट सबसे अधिक है।
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इस नदी में पितृपक्ष के समय देश के अनेक स्थानों से लोग स्नान करने के लिए आते हैं
और पिण्डदान करते हैं ।
चानन
नदी
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इस नदी का वास्तविक नाम पंचानन है, क्योंकि यह पाँच जलधाराओं से मिलकर बनी है। इस नदी
की सभी जलधाराएँ छोटानागपुर पठार से निकलती हैं।
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राजगीर की पहाड़ी के समीप मार्ग में अवरोध उत्पन्न होने के कारण सभी जलधाराएँ गिरियक
नामक स्थान पर आपस में मिल जाती हैं। इसके पश्चात् यह नदी बिहारशरीफ की ओर बढ़ती है।
पुनपुन
नदी
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यह नदी राज्य में हजारीबाग पठार एवं पलामू के उत्तरी क्षेत्र से निकलती है तथा सोन
नदी के समानान्तर प्रवाहित होती है।
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यह नदी कीकट और बमागधी के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह गंगा नदी की सहायक नदी है।
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पटना के समीप फतुहा में गंगा में मिलने से पहले इसमें दारधा एवं मोरहर नामक सहायक नदियाँ
मिलती हैं।
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हिन्दू धर्म में इस नदी का अत्यन्त महत्त्व है।
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इसका अपवाह क्षेत्र चतरा, गया, औरंगाबाद एवं पटना में विस्तृत है।
किऊल
नदी
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यह गंगा नदी की एक सहायक नदी है। किऊल नदी का उद्गम स्थल झारखण्ड के गिरिडीह जिले में
है।
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छोटानागपुर के पठार से निकलकर किऊल नदी बिहार के जमुई तथा लखीसराय जिलों से प्रवाहित
होकर गंगा में मिलती है।
झारखण्ड के प्रमुख जलप्रपात
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राज्य के प्रमुख जलप्रपातों का वर्णन निम्न हैं
1.
बूढ़ाघाघ जलप्रपात इसे लोधाघाघ भी कहा जाता है। यह लातेहार जिले में 450 फीट ऊँचाई
पर स्थित है तथा यह झारखण्ड का सबसे ऊँचा प्रपात है। यह उत्तरी कोयल नदी पर स्थित है
।
2.
हुण्डरू जलप्रपात रांची से 36 किमी पूर्व अनगड़ा प्रखण्ड में स्वर्ण रेखा नदी पर स्थित
यह जलप्रपात 320 फीट ऊँचा है । यह झारखण्ड राज्य का दूसरा सबसे ऊँचा जलप्रपात है।
3.
मोतीझरा जलप्रपात यह महाराजपुर के दक्षिण-पश्चिम में राजमहल पहाड़ियों पर 150 फीट ऊँचा
जलप्रपात है, जो अजय नदी पर स्थित है। इसकी बूंदे मोतियों के समान दिखाई देती हैं,
इसलिए इसे मोतीझरा जलप्रपात कहा जाता है ।
4.
घाघरी जलप्रपात 140 फीट ऊँचा यह प्रपात नेतरहाट (जिला लातेहार) में स्थित है । यह घाघरी
नदी पर अवस्थित है।
5.
उसरी जलप्रपात यह प्रपात गिरिडीह जिले की प्रसिद्ध उसरी नदी पर स्थित है। यह 40 फीट
ऊँचा जलप्रपात है।
6.
हिरणी जलप्रपात यह रांची- चाईबासा सड़क मार्ग पर चक्रधरपुर (पश्चिमी सिंहभूम) से
40 किमी उत्तर में स्थित है। यह गरहा नदी पर स्थित है।
7.
पंचघाघ जलप्रपात यह खूँटी जिले में स्थित पाँच बहनों की कथा से जुड़ा प्रपात है। यहाँ
पाँच जलप्रपात एक कतार में हैं ।
8.
जोन्हा जलप्रपात इस जलप्रपात को गौतमधारा के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि भगवान
बुद्ध ने यहाँ स्नान किया था । यह रांची जिले में रारू नदी पर स्थित है। यह 150 फीट
ऊँचा है ।
झारखण्ड के प्रमुख गर्म जलकुण्ड
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जहाँ भौम जल स्तर तथा धरातल का प्रतिच्छेदन होता है, वहाँ धरती का जल बाहर निकलने लगता
है, जिसे गर्म जलकुण्ड कहा जाता है। जलकुण्डों में पर्याप्त मात्रा में खनिज लवण एवं
गन्धक . मिलते हैं। इन जलकुण्डों के जल में रोगनाशक शक्ति पाई जाती है ।