झारखण्ड
की भौगोलिक संरचना
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झारखण्ड, भारत का 28वाँ राज्य है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह देश का 16वाँ सबसे बड़ा
राज्य है। इसका क्षेत्रफल 79,714 वर्ग किमी है। झारखण्ड भारत के 2.42% भू-भाग पर विस्तृत
है।
भौगोलिक स्थिति
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झारखण्ड भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पूर्वी भाग में अवस्थित है, जिसकी भौगोलिक स्थिति
21°58’10” से 25°1915″ उत्तरी अक्षांश तथा 83°19’50” से 87°57’40” पूर्वी देशान्तर
के मध्य है।
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राज्य का पूर्व से पश्चिम तक विस्तार 463 किमी तथा उत्तर से दक्षिण तक विस्तार 380
किमी है। राज्य की समुद्र से निकटतम दूरी 90 किमी है।
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कर्क रेखा राज्य के मध्य से होकर गुजरती है। यह राज्य के किस्को, ओरमांझी, (रांची)
नेतरहाट, गोला, गोपालपुर, मुरहुलसुदी, पोखन्ना, झालबरदा, गोसाईडीह, काँके व पालकुदरी
स्थानों से होकर गुजरती है।
सीमाओं का विस्तार
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झारखण्ड एक स्थलबद्ध (भू-आवेष्ठित) राज्य है, क्योंकि इसकी भौगोलिक सीमा समुद्र से
स्पर्श नहीं करती है।
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राज्य की सीमाएँ 5 राज्यों को स्पर्श करती हैं। झारखण्ड के उत्तर में बिहार, दक्षिण
में ओडिशा, पूर्व में पश्चिम बंगाल तथा पश्चिम में उत्तर प्रदेश व छत्तीसगढ़ हैं।
> पड़ोसी राज्यों की सीमाओं को स्पर्श करने वाले झारखण्ड के जिले निम्न हैं- बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश
भू-गर्भिक संरचना
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झारखण्ड की भू-गर्भिक संरचना में एक ओर जहाँ प्राचीनतम अर्कियन काल की चट्टानें पाई
जाती हैं, वहीं नवीनतम चतुर्थ कल्प के जलोढ़ निक्षेपण भी प्राप्त होते हैं ।
झारखण्ड
की भू-गर्भिक संरचना में निम्न आठ प्रमुख चरण थे –
(i)
आर्कियन क्रम की चट्टानें
(ii)
विन्ध्यन श्रेणी क्रम की चट्टानें
(iii)
कार्बोनीफेरस क्रम की चट्टानें
(iv)
पर्मियन-ट्रियासिक क्रम की चट्टानें
(v)
गोण्डवाना क्रम की चट्टानें
(vi)
दक्कन लावा की चट्टानें एवं राजमहल ट्रैप
(vii)
सिनोजोइक क्रम की चट्टानें
(viii)
नवीनतम जलोढ़ निक्षेप
आर्कियन
क्रम की चट्टानें
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ये चट्टानें भू-पटल की प्राचीनतम चट्टानें हैं तथा झारखण्ड क्षेत्र के निर्माण में
इनका सर्वाधिक योगदान है।
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इस प्रकार की चट्टानों को दो भागों आर्कियन एवं धारवाड़ क्रम में विभाजित किया गया है।
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पृथ्वी की तरल अवस्था के पश्चात् ठोस होने के क्रम में जिस शैल का निर्माण हुआ, उसे ही आर्कियन क्रम की चट्टानें कहते हैं।
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आर्कियन क्रम की आधारभूत चट्टानों पर प्रथम अपरदन क्रिया द्वारा निक्षेपित पहली परतदार
चट्टानों को कहा गया है। समूह
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राज्य में सबसे अधिक आर्कियन क्रम का शैल समूह पाया जाता है। ये चट्टानें पूर्वी तथा
पश्चिमी सिंहभूम, सिमडेगा एवं दक्षिणी-पूर्वी भाग में हैं।
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आर्कियन क्रम की चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाए जाते हैं। ग्रेनाइट एवं नीस चट्टानें
इसका प्रमुख उदाहरण हैं।
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आग्नेय चट्टानों के रन्ध्रों में मुख्यतः सिंहभूम क्षेत्र में क्रोमाइट व एस्बेस्टस
का निक्षेपण मिलता है।
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धारवाड़ युगीन चट्टानी समूहों को धात्विक खनिजों का भण्डार गृह कहा जाता है । भारत
में सर्वाधिक लोहा, ताँबा, बॉक्साइट, सोना, निकेल, मैंगनीज, चाँदी तथा टिन का उत्खनन
इसी क्रम की शैलों में होता है। ये सभी धात्विक खनिज कोल्हान उच्च भूमि क्षेत्र में
पाए जाते हैं। धारवाड़ युगीन चट्टानों में लौह की प्रमुखता के कारण इन्हें लौह क्रम
की चट्टानें भी कहा जाता है।
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ये चट्टानें लौह-अयस्क श्रेणी संघ के नाम से जानी जाती हैं। पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी
सिंहभूम तथा सरायकेला खरसाँवा में इस क्रम की चट्टान को कोल्हान श्रेणी कहा जाता है।
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इस प्रकार परतदार चट्टानों की पट्टी हजारीबाग से मुंगेर तक स्थित है, जिसमें विश्व
विख्यात अभ्रक की पेटी उपस्थित है। इस क्रम की चट्टानों के अन्तर्गत आग्नेय चट्टानों
का भी निर्माण हुआ, जो क्रोमाइट, एस्बेस्टस की निक्षेपण प्रक्रिया है।
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इस प्रकार की चट्टानें राज्य के सिंहभूम क्षेत्र में मिलती हैं
तथा इनमें चूना-पत्थर, बलुआ पत्थर, क्वार्जाइट एवं डोलोमाइट की बहुलता है।
विन्ध्यन
श्रेणी क्रम की चट्टानें
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धारवाड़ क्रम की चट्टानों के विखण्डन के बाद कुड़प्पा क्रम व विन्ध्यन क्रम की चट्टानों
का निर्माण हुआ।
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इस क्रम की चट्टानों के अवशेष उत्तर-पश्चिम में सोन नदी क्षेत्र में पाए जाते हैं।
यहाँ परतदार चट्टानें क्षैतिज रूप में पाई जाती हैं तथा इनमें शैल, चूना-पत्थर तथा
बालुकाश्म मुख्य रूप से पाए जाते हैं ।
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यहाँ की परतदार चट्टानों को क्षैतिज रूप में पाया जाता है, इस चट्टान के आगे की ओर
निकले हुए भाग को पारसनाथ कहा जाता है।
कार्बोनीफेरस
क्रम की चट्टानें
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कार्बोनीफेरस में ही गोण्डवाना लैण्ड का युग विखण्डन हुआ एवं प्रायद्वीपीय भाग हिमचादरों
से ढक गया। जिसके परिणामस्वरूप प्रारम्भिक भू-आकृतियों का लोप हो गया ।
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झारखण्ड राज्य के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित तालचेर श्रेणी में कार्बोनीफेरस क्रम
के अवशेष प्राप्त हुए।
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कार्बोनीफेरस हिमानीकरण के बाद इस क्षेत्र में तरंगित स्थलाकृतियों का निर्माण हुआ
और धीरे-धीरे नदियों का विस्तार हुआ।
पर्मियन-ट्रियासिक
क्रम की चट्टानें
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कार्बोन युग की समाप्ति के बाद छोटानागपुर पठारी भागों में अनेक भू-आकृतिक परिवर्तन
हुए। जिसमें सबसे महत्त्वपूर्ण घटना दामोदर एवं सोन नदी घाटी में भ्रंश का निर्माण
होना माना जाता है ।
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इस घटना के कारण प्रदेश की प्रवाह प्रणाली में व्यापक परिवर्तन हुए। इस घाटी में भ्रंश
पड़ने का मुख्य कारण काराकोरम श्रेणी का उत्थान था ।
गोण्डवाना
क्रम की चट्टानें
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पर्मियन एवं जुरैसिक कालखण्ड को गोण्डवाना काल कहा जाता है। झारखण्ड में कोयले का निर्माण
इसी क्रम की चट्टानों हुआ, जिस कारण इसे कोयला युग कहा जाता है।
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सोन एवं दामोदर नदी घाटी में भ्रंशन के कारण जो वनस्पतियाँ नीचे धँस गई थीं, वे इस
कालखण्ड के समय तक कोयले में परिवर्तित हो गई थी ।
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गोण्डवाना क्रम की चट्टानों को तीन भागों उच्च गोण्डवाना, मध्य गोण्डवाना व निम्न गोण्डवाना
में बाँटा जाता है।
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राज्य में निम्न व मध्य गोण्डवाना का निक्षेप मुख्य रूप से पाया जाता है। उत्तरी कोयले
की घाटी, गिरिडीह एवं राजमहल की पहाड़ियों में ऐसी चट्टानें मिलती हैं।
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गोण्डवाना क्रम की चट्टानें आर्थिक दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं |
दक्कन
लावा की चट्टानें एवं राजमहल ट्रैप
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ये क्षेत्र झारखण्ड के दुमका, गोड्डा एवं साहेबगंज जिलों में विस्तृत है।
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राजमहल ट्रैप का निर्माण क्रिटेशियस युग में ज्वालामुखी उद्गार से हुआ था।
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दक्कन ट्रैप का संरचना काल जुरैसिक से क्रिटेशियस तक सीमित है। रांची में पश्चिमी लोहरदगा,
पलामू एवं लातेहार में बॉक्साइट का निर्माण दक्कन ट्रैप के रूपान्तरण के कारण हुआ।
सिनोजोइक
क्रम की चट्टानें
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इस क्रम की चट्टानों का निर्माण नदियों के पुनर्जीवित होने के फलस्वरूप हुआ। इससे अपरदन
चक्र में तीव्रता आई और इस कारण कांची, स्वर्ण रेखा, उत्तरी कोयल, रारू एवं शंख नदियों
के ऊपरी मार्ग पर जलप्रपात का निर्माण हुआ। हिमालय निर्माण के कारण छोटानागपुर के पठार
का निर्माण भी निम्न तीन अवस्थाओं में हुआ
a.
पहली अवस्था इस अवस्था में पाट क्षेत्र रांची- हजारीबाग पठार से 1000 फीट ऊपर उठ गया
तथा रांची- हजारीबाग के पठार का निर्माण 1000 फीट तक हो गया। इस पठार को दामोदर नदी
दो भागों में विभाजित करती है ।
b.
दूसरी अवस्था इस अवस्था में पाट क्षेत्र रांची-हजारीबाग पठार के साथ पुनः 2000 फीट
तक ऊपर उठ गया।
c.
तीसरी अवस्था इस अवस्था में रांची- हजारीबाग के पठारों के निचले क्रम का भी उत्थान
हुआ तथा पुनः पाट क्षेत्र 3000 से 3600 फीट व रांची- हजारीबाग पठार में 1000-2000 फीट
ऊपर की ओर उत्थान हुआ।
नवीनतम
जलोढ निक्षेप
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नदी घाटी क्षेत्रों में जलोढ़ निक्षेप से निर्मित संरचना पाई जाती है ।
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ऐसी संरचना झारखण्ड के राजमहल के पूर्वी भाग, सोन घाटी, स्वर्ण रेखा की निचली घाटी
आदि में पाई जाती है ।
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राज्य की ज्यादातर नदियाँ समतल मैदानी क्षेत्रों में घुमावदार रूप में प्रवाहित होती
हैं, जो सामान्यतः समतल मैदानी भू-भाग में प्रकट होती हैं ।
भौतिक विभाजन
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झारखण्ड के धरातलीय स्वरूप को उच्चावच के आधार पर मुख्य रूप से पाँच वर्गों में वर्गीकृत
किया गया है
(i)
पाट क्षेत्र (पश्चिमी पठार)
(ii)
रांची एवं हजारीबाग का पठार (मध्यवर्ती पठार)
(iii)
छोटानागपुर का पठार
iv)
राजमहल की पहाड़ियाँ
(v)
चाईबासा का मैदान
पाट
क्षेत्र (पश्चिमी पठार)
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छोटानागपुर पठार के पश्चिम भाग की उच्च भूमि को पाट क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।
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इस भू-भाग में अनेक छोटे-छोटे समतल पठार होने के कारण इस क्षेत्र को पाट क्षेत्र कहा
जाता है।
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इस क्षेत्र का विस्तार रांची जिले के उत्तर-पश्चिमी भाग से लेकर पलामू के दक्षिणी छोर
तक है।
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रांची पठार के पश्चिमी भाग में पाट क्षेत्र का विस्तार अधिक मिलता है ।
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यह झारखण्ड का सबसे ऊँचा (पारसनाथ पहाड़ी को छोड़कर) भू-भाग है। इस क्षेत्र की औसत
ऊँचाई 900-1100 मी है।
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बारवे का मैदान इसी क्षेत्र में पाया जाता है, जिसका आकार तश्तरीनुमा है।
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इस क्षेत्र के ऊँचे पाटों में नेतरहाट पाट (1070 मी), गणेशपुर पाट एवं जमीरा पाट प्रमुख
हैं। नेतरहाट इस क्षेत्र का सबसे ऊँचा भाग है। यह झारखण्ड का सर्वाधिक ठण्डा स्थल है,
जो लातेहार जिले में स्थित है।
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इस प्रदेश का समतल मैदानी भाग चौबीस का मैदान कहलाता है।
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सानु एवं सारऊ इस क्षेत्र की प्रमुख पहाड़ियाँ तथा उत्तरी कोयल, फूलझर, शंख आदि इस
क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ हैं।
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इस क्षेत्र में दक्कन लावा के अवशेष पाए जाते हैं।
रांची
एवं हजारीबाग का पठार (मध्यवर्ती पठार)
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रांची का पठार व हजारीबाग का पठार प्राचीन समय में एक ही थे जो बाद में दामोदर नदी
द्वारा विभाजित हो गए थे। इस सम्पूर्ण पठार की औसत ऊँचाई 600 मी है।
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रांची पठार क्षेत्र की समुद्र तल से औसत ऊँचाई 700 मी है, जो नीस तथा ग्रेनाइट से निर्मित
है। इस पठार के भी ऊपरी भाग को टाण्ड तथा निचले भाग को दोन कहते हैं।
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छोटानागपुर के वर्तमान धरातल का निर्माण भी ग्रेनाइट व नीस चट्टानों से हुआ है।
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चौरस आकार वाले रांची पठार से अनेक नदियाँ निकलती हैं, जो पठार के किनारों पर झरनों
(जलप्रपातों) का निर्माण करती हैं। इन झरनों में बूढ़ाघाट, हुण्डरू (स्वर्णरेखा नदी
पर), सदनी घाट (शंख नदी), दाशम घाट (कांची नदी पर ), घाघरी, जोन्हा इत्यादि शामिल हैं।
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हजारीबाग पठार को दो भागों ऊपरी तथा निचला पठार में विभाजित किया गया है। निचले हजारीबाग
पठार की समुद्र तल से ऊँचाई 450 मी और ऊपरी हजारीबाग पठार की समुद्र तल से ऊँचाई
300 मी है ।
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ऊपरी हजारीबाग पठार में गिरिडीह पठार पर बराकर नदी घाटी के निकट पारसनाथ की पहाड़ी
स्थित है, जो राज्य की सबसे ऊँची चोटी मानी जाती है। इसकी ऊँचाई 1365 मी है। पारसनाथ
की सबसे ऊँची चोटी को सम्मेद शिखर कहा जाता है ।
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हजारीबाग का पठार पश्चिम तथा दक्षिणपश्चिम में उत्तरी कोयल नदी घाटी एवं उत्तर में
अभ्रक पेटी के बीच स्थित है। हजारीबाग तथा रांची के पठार को दामोदर नदी एक-दूसरे से
अलग करती है।
छोटानागपुर
का पठार
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झारखण्ड के धरातलीय स्वरूप के निर्माण में छोटानागपुर पठार की महत्त्वपूर्ण भूमिका
है, जो प्रायद्वीपीय पठारी भाग का उत्तर-पूर्वी भाग है। राज्य के छोटानागपुर पठार को
रूर प्रदेश कहा जाता है।
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छोटानागपुर का पठार, रांची, गिरिडीह, धनबाद, पूर्वी व पश्चिमी सिंहभूम, हजारीबाग, गोड्डा,
दुमका, देवघर, पलामू, साहेबगंज आदि तक विस्तृत है।
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राज्य के कुल भू-भाग का 47.8% क्षेत्र छोटानागपुर के पठार में सम्मिलित है। यह पठार
पूर्व-कैम्ब्रियन युगीन चट्टानों से बना है।
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यह पठार गोंडवाना – लैण्ड का एक भाग है। यह घाटियों एवं
पहाड़ियों का क्षेत्र है।
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इस पठार का निर्माण अवशिष्ट स्थलाकृतियों एवं समप्राय धरातल द्वारा हुआ है। इसकी चट्टानें
कायान्तरित तथा क्रिस्टलीय प्रकार की हैं। इस पठार को खनिजों का गोदाम के नाम से भी
जाना जाता है।
राजमहल
की पहाड़ियाँ
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राजमहल पहाड़ियों का निर्माण जुरैसिक काल में लावा प्रवाह द्वारा हुआ था। इस पहाड़ी
की औसत ऊँचाई 400 मी है। यह क्षेत्र सन्थाल परगना क्षेत्र में 150 से 300 मी ऊंचा है।
इस पहाड़ी के चट्टानों का निर्माण ‘बेसाल्ट’ से हुआ है।
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झारखण्ड के उत्तरी भाग में राजमहल पहाड़ी कैमूर पहाड़ी, मध्य निचली नदी घाटी एवं मैदानी
क्षेत्र विस्तृत है।
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इसका पूर्ण विस्तार क्षेत्र देवघर, दुमका, गोड्डा, पाकुड़ का पश्चिमी भाग तथा साहेबगंज
के मध्यवर्ती व दक्षिणी भाग तक है।
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इस क्षेत्र की बड़ी नदी घाटियों में स्वर्णरेखा, दामोदर, बराकर, शंख, उत्तरी कोयल,
दक्षिणी कोयल, ब्राह्मणी, मोर, अजय व गुमानी इत्यादि शामिल हैं।
चाईबासा
का मैदान
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मैदानी क्षेत्रों में चाईबासा का मैदान प्रमुख है, जो पश्चिमी सिंहभूम के पूर्वी मध्यवर्ती
भाग में स्थित है। इस मैदान की औसत ऊँचाई 150 मी है।
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यह मैदान दालमा श्रेणी, ढालभूम श्रेणी, कोल्हान पहाड़ी तथा पोरहाट पहाड़ी के मध्य स्थित
है।
> इस क्षेत्र में स्थित नुकीली पहाड़ियों को ‘टोंगरी’ एवं गुम्बदनुमा पहाड़ियों को ‘डोंगरी’ कहते हैं।