खोरठा शिष्ट कहानियां - छाॅंहइर
छाॅंहइर बाहर
बजा रउद रहइ । वैशाख महीनाक दिन दुपहर रउदे बाजले रोहन आर मोहन लाल सूरूज नारायण के
नावाँ छात घार बनावे खातिर मजौरा में काम कईर के कलवा खायले
आपन आपन घार आव हेलथ। जइसन अकबकी रहइन रोहन आर मोहन लाल के ओइसन चमचमी गादर रउद रहइ
वैशाख महीनाको। सूरूज नारायणेक नावाँ छात घार जाहाँ बने हेलइ हुआं ले जदियों एक कोसले
कमे धूर रहइन रोहन आर मोहन लाल कर घार मगुर डहरे रउद से बचेले छहुँराई खोजे लागला ।
डहरे ताड़ आर खिजुर कर बोड़-बोड़, ऊँच-ऊँच कायगो गाछ रहइ। ओखिन दुइयो छँहिरायले एगो
ताड़ गाछेक हैंठें (छाँहइरे) पोंहचला मगुर ओखिनकर ताड़ गाछेक छाँहइरे ना तन जुड़ालइन
ना मन । ताड़ गाछेक छाँहइरे जाहाँ-ताहाँ रहइ धूर-धूर। तनी-मनी छाँहइर तो लागलइन मगर
अगल-बगल कर गरम हवा ओखिन दुइयोक गरमल देही के जुड़ावे नी पारेहेलइ । समय ओखिन ठीन कम
रहइन । खाय के फईर पहर ले कामे लागेक रहइन सूरूज नारायण चौधरीक नावाँ कामें छात बनवेक
कामें । बोड-बोड़ ऊँच-ऊँच ताड़ आर खिजुर गाछेक छाँहइर छोड़ी ओखिन कुदला चार बाठे। थोड़केहें
धूरे पतवइर तनी-तनी फरके आम, जामुन, कोरंज आर महुआक छोटे-छोटे मगर झबरल गाछ रहइ । तनी
खुन दुइयो रोहन आर मोहन…