खोरठा शिष्ट कहानियां - छाॅंहइर

खोरठा शिष्ट कहानियां - छाॅंहइर

खोरठा शिष्ट कहानियां - छाॅंहइर

छाॅंहइर

बाहर बजा रउद रहइ । वैशाख महीनाक दिन दुपहर रउदे बाजले रोहन आर मोहन लाल सूरूज नारायण के नावाँ छात घार बनावे खातिर मजौरा में काम कईर के कलवा खायले आपन आपन घार आव हेलथ। जइसन अकबकी रहइन रोहन आर मोहन लाल के ओइसन चमचमी गादर रउद रहइ वैशाख महीनाको। सूरूज नारायणेक नावाँ छात घार जाहाँ बने हेलइ हुआं ले जदियों एक कोसले कमे धूर रहइन रोहन आर मोहन लाल कर घार मगुर डहरे रउद से बचेले छहुँराई खोजे लागला । डहरे ताड़ आर खिजुर कर बोड़-बोड़, ऊँच-ऊँच कायगो गाछ रहइ। ओखिन दुइयो छँहिरायले एगो ताड़ गाछेक हैंठें (छाँहइरे) पोंहचला मगुर ओखिनकर ताड़ गाछेक छाँहइरे ना तन जुड़ालइन ना मन । ताड़ गाछेक छाँहइरे जाहाँ-ताहाँ रहइ धूर-धूर। तनी-मनी छाँहइर तो लागलइन मगर अगल-बगल कर गरम हवा ओखिन दुइयोक गरमल देही के जुड़ावे नी पारेहेलइ । समय ओखिन ठीन कम रहइन । खाय के फईर पहर ले कामे लागेक रहइन सूरूज नारायण चौधरीक नावाँ कामें छात बनवेक कामें । बोड-बोड़ ऊँच-ऊँच ताड़ आर खिजुर गाछेक छाँहइर छोड़ी ओखिन कुदला चार बाठे। थोड़केहें धूरे पतवइर तनी-तनी फरके आम, जामुन, कोरंज आर महुआक छोटे-छोटे मगर झबरल गाछ रहइ । तनी खुन दुइयो रोहन आर मोहन लाल हुआँ छँहिराला । शरीरके थकानी तनी कम हेलइन मने तनी शांति पावला दुइयो। डीह नझीक पीपर आर बोर कर गाछ तो रहबे करइन हुआँ किटी खुन (खन) सुस्ताला फईर, खाय पीके उल्टी पहर कर कामें घुरी गेला । एहे लेखे सूरज बाबूक सड़क धाइर नावाँ छात- घार बनवेले आवा जाही करे लागला ।

सूरजू बाबूक काम चलते रहइ पन्दरह-बीस दिन ले छड़-सिमइठ तो रहइ मकिन बालू सिराइल रहइ तकर चलते काम एके बेरा चललइन । फूरसइत रहइन दुइयो के रोहनो के आर मोहन लालो के । दुइयो गते गते गाछेक छाँहइरे पोहचला आर बइठी के सुस्ताय लागला ।

रोहन आर मोहन दुइयो आपन आपन धारक बात उँचावरला सुस्ताते-सुस्ताते । रोहन पुछल मोहन के 'रे भाय मोहन, तोंय हामर संग माटी काटे हैं, माटी ढ़ोवें हें, ईंटा उठावे हैं, सीमइठेक बोरा ढोवे हैं, गिलवा आर मसाला उठावे हें हामरा आपने-आपने में बड़ी ताज्जुब लागे हे।' मोहन चुप रहल। ऊ रोहन कर सवालेक कोनों उत्तर नी देले रहे काहेकि एखनों रोहन कर सवाल सिरायल (खत्म) नीं रहइ। ऊ एकले दू दू ले तीन सवाल एक बारगी मोहन के पूछले जा हेलइ ।

रोहन फडर बोले लागल- 'तोर बेटा सोब पढल लिखल, कोय बीए पढे लागल हउ तो कोय मेटरिक आर जे छोट हथु ओखिनो ईस्कूल जावे कर हथु। आखिर तौय एतना कइसे संभारे पारsहीन ?

मोहन कते देरी तइक चुप रहे पारतल। आखिर रोहन कर सोब सवाल कर जवाब ओकरा देने रहई। रोहन बोलले जा हेल-

काहे कि हाम ना तो एकोगो छउआ के बेस लेखे ईस्कूले पढ़ावे पारलीअइन ना खिआवे-पीआवे। बेस लेखे कहियो बेस पिंधनों ओढ़नों नीं दिए पारलीअइन । रोहन बोलते-बोलते चुप हइगेल रहे। ओकर आँइख डबडबाय गेल रहइ । आब तो ओकर आँइखले लोरे चुवेक बाकी रहइ ।

मोहन कुछो जवाब दिए जा हेलक। ओकर मुँह ले जवाबकर बकार फुटलहो नी रहइ कि फइर रोहन काँदी-काँदी बोले लागल 'हामर किसमइतें एहे लिखल रहे, हामर परिवार के एहे लेखे मेहनइत मजदुरी करी के दिन बितवे हेतक आर एहेतरी मोरी-मीटी के माटी में मिली जाय हेतक ।'

एतना सुनी के मोहन चुप नीं रहे पारल। ऊ बोले लागल - 'रोहन ! तोंय काँदा-कुँदी हइके एतना सवाल हामरा जे पुछलें कि हाम सुनते-सुनते थाइक गेलों । तोर कोन सवालेक जबाब (उत्तर) हाम कइसे दीए पारीअउ एहे सोंचे लागल हो। तोर पहिल सवालेक जबाब (उत्तर) आगू दीअउ कि सबले पाछूक सवालेक। मोहन लम्बा साँस लइके सोंचे लागल। तनी देरी बाद मोहन बोले लागल - 'रोहन' तोंयतो जानेहें कि पन्दरह बीस बछर पहिले हाम तोरो से कतना गरीब रही । तोंय हामर से धन संपइत, बुधि गियाने जबर रहें।'

रोहन हामी भोरल । मोहन के कहेले आरो दाब मिललइ । ऊ आगू कहे . लागल - 'तोय बोड़ गाछेक छाँहइर तरे रहें आर हाम छोट-छोट गाछेक छाँहइरे।' मोहनकर बतिया सिराइलो नीं रहइ कि रोहन बोली उठल-तोर ई बात (पहेली) हाम बुझे नी पारलीअउ फूरछाय के कह।

फूरछाये के कहहिअउ - 'रोहन तोंय जमीनदार बाबू साहेब सूरज

बाबूक गोडतरे रहे हैं। सूरज बाबू (सूर्य नारायण चौधरी) ओकर बाप विरजू चौधरी तोरा जखन हँकउथू तखन तोय हाजिर रहे हेलें । हाजिर रहे हैं कि नी, बोल!"

'हाँ' तखनो आर एखनों। रोहन उत्तर देल ।

'फईर आइझ काँदे काहे लागल हैं दोसर के देखी के, हामरा देखी के? तोय तो जिमीदारेक संग रहवईया जिगीदारी बुधिजानवईया, तोरो तो जिमीदारे लेखे हेवेक रहउ तोय गरीब हामरोले गरीब कइसे भइगेले ? मोहन एक साँसे कही के पार हइगेल ।

रोहन चुप रहल ! ओकर ठीन मोहन कर सवाल कर जबाब जदियों रहइ थेथेरवइल नी करल, काहेकि ऊ सचाई के बेस लेखे जानी गेल रहे। रोहन के चूप देखी के मोहनों आगू बात नीं बढ़ावल ।

रोहन सोंचे लागल ! मोहन तो ठीके कहे हे! हाम, हामर बापो आर हामर जावल जनमल सोब तो आब बिरजूबाबू आर सूरजूबाबूक वफादारी करते रहली आर एखनो करे लागल हीअइन । ओखिन कर वफादारी करइते हामिन के जिनगी बीते लागल हे। एखनो तो ओहे काम करे लागल ही।

जउ रे फलना हुआँ, जउ रे चिलना हियाँ, नहायेक पानी भोरी दे, पूजाक फूल लानी दे, ओकरा हंकाय देसी, आइझ तनी ई समानवा रोड पोहचाय देंभी, काइल बेटवा पढ़े जातइ ओकरा टेरेन (ट्रेन) बइठाइ देंभी......बस ओर्डर उपर ओर्डर । कहियो कहतउ हामर 'शीशी' घटल हे, ले ले आय देवे, ले पच्चास गो रूपया तहूँ पाँच रूपया के पी लेबे ।

रोहन उबी गेल रहे जिमीदार घारेक वफादारीक ईयाइदें। तखन मोहन टोकल 'का करे लागलें रोहन ? कहाँ हेराय गेलें ? का सोचे लागले ?

मोहन के टोकल से अच्चके जइसे रोहन कर नींद टूटलइ । हाम तो एखनो ओहे काम करे लागल हो, हामर मेहरारू आर हामर छउआ-पूता ओकरे जोगाडे रह हथी । कखनूं-कखनूं आपन पेटेक जोगाड़ खातिर सूरजू बाबू आर ओकर घारेक लोगेक नजईर बचाइके हिन्दे - हुन्दे मर-मजदुरी करी के घार चलवे लागल हथ आर हाम ? रोहन फइर चुप भईगेल। एखन तइक रोहन पूरे उदास हइगेल रहे। ओकर भीतर जइसे जागे हेलइ । मगुर दरूपियाक कोंदारोवाक का विश्वास ? तनी देरी आगुओ तो काम ले छुट्टी ल आगू बगल के घरवा बुकल रहे। गिलास दू गिलास लइये के आइल रहे। मुँह ले गमक आहे हेलइ मगर मोहन का कहतलाई ?

मगुर मोहन के तो कहते हेतलइ काहेकि रोहन सवाल उपर सवाल लादले रहइ तोय लग्ना गाछतरे रहें, बोड गाछकर धूर-धूर ले फइलल पसरल छोईर देखले ओकर सोन कम कर सवाद चाखले, नजदीको (नइझकोले) ले आर धूरो लें। तोय ढईर-दईर बुद्धि गियान सीखले जाहाँ ठकाहारी, बेईमानी आर शोषण करेक तौर तरीका देखले सुनले आर सीखले। हामूँ एगो गाछतरे रहल सीखल हो उठन बइठन, खान-पान, सुतल जागल हाम्हूं एगो छोट-मोट फंकरल, डाइर-पात झुकल निहरल गाछ तरे बोड़ हेल ही, ओकरे दोहाय आर ओकरे किरपा (कृपा) से आइझ हाम शान से चले भूले, आर रेंगे पारे लागल ही। ओहे हामरा ई बुढ़ारी में एतना मेहनइतवाला काम करेले सिखवला, बुढ़ारी में जवानी कर जोश जगावला आर उनखरे शिक्षा दान से आइझ हाम खुश ही. माटीओ कार्ट में हामरा लाज नीं लागे हे, बाजारे सब्जियो लइके जाय में कोनो अपमान नी बुझही, घारकों कोनों कामें ना तो असकईत लागे हे ना अमनख ।

बड़ी देरी से रोहन मोहन कर पारखी भाषण सुनल। आब ओहो भूखे पियासे अनसाय लागल। आखिर पूछी बइठल कोन गाछेक बात करे हें ? मोहन तनी फुरछाय के कह।"

मोहन हँसी उठल आर कहल- 'का तोंय नी जानहीं नीमगाछतरेक देव नारायण चौधरी के ।

'हाँ' ऊ गुरूजी, देवा चौधरी, सीधा साधा मास्टर जी रोहन उपहास करल !

"हाँ" आहे! आहे गुरूजी आहे मास्टरजी, ओहे मास्टरजी देवा चौधरी आहे हामर गुरू, ओहे हामर गाछ ओखरे छाँहईरे हाम जनमली, फुनगली, पनपली, जवान हेली, आर बुढ़ो हुई गेली । हामर छउआ पुता ओखरे छाँहइरे पढ़ला लिखला एखन आपन आपन कामें लागल हथ । ओखिनो आपन आपन कर हथ, हाम्हूँ आपन जे लागल ही से करते हों। मगर सुखे ही, शांति है। मोहन सोझवारी बोलते रहल। 'सुख शांति आर ताकइत उनखरे देल लागे । कतनों

काम करले थकानी नीं आवे हे। सांइझ एक गिलास गरम-गरम दूध जे पीलेहीअइ। मोध-दारू, हंडिया असमये खाले-पीले काम नाशे हे, नाम नाशे हे, सुभाव नाशे है। सेले एकर सेवन डाम नाहींए करहीं। बिहो शादी, छट्टी छिलनों में नाहीं । सर शिकार सोब हेतउ मगर हामर घारे दारू-मोध नीं. चलत। अगले बगले पराय एक दूगों के छोड़ी के सोमें पीडीअहथ, चुआबबों करहथ, बेचबो करहथ मकिन माझें माझें झगड़ा झंझट हेते, रहहइन, सर-सिपाही आवते-जाते रह हथीन । ओखिन के सोब सोभहइन सेले ओखिनो तोरे तरी हथ । मोहन आपन घार दूराक हाल सुनावे लागल। बोलते-बोलते मुँह बथ्थे लागलइ तखन तनी देरी खातिर चुप हड़ गेल ।

रोहन उठी के खड़ा हइ गेल 'चाल भाय' बड़ी जोर भूख लागी गेल है। "हाँ चाल' हामरो पेटे मूसा कूदे लागल हथ, पेट गड़गड़ाय लागल हे।' मोहन उठी गेल। ऐहे पहर एगो ताड़ी ओला पार हेल जाहेल । ताड़ी ओला के देखी के रोहन पुछल 'कुछो बचल-खुचल हउ हो ?'

'बचले हइकि एखन ई गाँवे शुरूए कहाँ करलेहिअइ ।' ताड़ी ओला बोलल ।

'दे' एकाध गिलास तनी पियास मेटावब। रोहन ताड़ी ओला के हँकावल ।

रोहन सटसटाय के दू गिलास ताड़ी सोंढ़ी लेल तनीके में 'मोहनों के पियास लागल रहइ । ओहो मांगलइ-- 'बाबू एकाध गिलास पानी हउ तो हामरो दे, हामरो बड़ी जोर पियास लागल हे ।'

ताड़ी ओला बोलल- 'बाबा, हामर टीन बेस पानी तो दुइये-चाइरे गिलास हे एक गिलास पानी ले बेसी नीं दिए पारवउ, ताड़ी हउ जत्ते पारबे पी, हाथ धोवेक पानी एक बाल्टी हे, बोल का चाही ?"

'बाबू हामरा एक गिलास पानी दे हागरा मंजूर हउ, बदला में तोंय एकरो दाम लेवे तउओ मगर एक दू गिलास पानी पीआव।' मोहन परेम से ताड़ी ओला के बोलल, फुसबावल । दूइयो संगी दूदू गिलास पीके आत्मा जुड़ावला । रोहन ताड़ी आर मोहन पानी पीके ।

ताड़ी ओला चइल गेल। मोहन से पानीक दाम नीं लेल दूइयो फईर बइठी घुरला । भूख पियास तनी देरी खातिर मेटाय गेलइन । झबरल तेतइर (ईमली) गाछ तरे दूइयो नींदाय गेला । नींद टूटलइन तखन साइझेक पाँच बजे हेलइ । मोहन-रोहन के चलावलड़ 'चाल गोतिया आव तो चाल घार। देरी हेले छउआ पुता अंदेसा में पड़ी जाता। दिनहुँ खायले नीं गेल ही, सेले चाल ।'

'ठीक कहे हें गोतिया।' रोहनों दोहरावल । दुइयो एक खुंटेक जाइते-माय रहथ मगर रहे हेला दोसर - दोसर टोला में।

मोहन आर रोहन दुइयो उठी के चलला । दुइयोक डिंडा-ढीपा एखन नी आइल रहइन। डहरे में एगो सावकर दारू दोकान रहइ। मुँहडे माने बाहरे टोलाक छउआके ठके रीझावे खातिर बिस्कुट, दालमोट, लेमनचुस बगेरह.. रहइ, तनी भीतरे गरम-गरम पकौड़ी आर आलूचाप, धुसका, पियाजी छँकाइत रहतलइ, दारू पीये खातिर ।

छगन साव कर बाहइरले छोट मगर भीतर ले बोड़ कारबार रहइ । विस्कुट, नेमन चुस, पकौड़ी, आलुचाप, दारू-मोध कर जे कारबार रहइ से तो रहबे करइ महाजनीको कारबार रहइ । सूद बट्टा में, इरबी गिरबी, पैंचा - उधार सोब चले हेलइ। गांवे देखले छोट मगर कारबार बड़ी बोड़ रहइ । एकर छाँहईर जकर टीन पड़तलइ तकर उवार नीं रहइ ।

जखन मोहन आर सोहन छगन सावकर दोकान ठीन पोहचला ऊ बाहईरे में रहे। रोहन कर सुभाव तो जानवे करे हेल मगुर मोहन के ओकर संगे देखी के मजाक करी के हँसल 'मोहन' आव हो, बइठीले दारू नीं पीवे -नीं पीवे, पकौड़ी तो दू-चाईरगो खाइले ।

मोहन ना चाहइतहूँ ठिठकी गेलक। रोहनो ठदुआइल। मन ना रहलइहूँ मोहन बांका बेंचे बइठ गेल। रोहनो बइठल । भूखल तो रहबे करथ सेले पकौड़ी आर आलूचाप खाय लेल मोहन । संगे संगे रोहनों खायल । खायल पाछू जखन मोहन छगन साव के पैसा दीए लागलइ, छगन साव बोलल 'आइझ पहिल झीक तोय हामर दोकाने खायल हैं, तोर से पैसा नीं लेबउ । आइन्दे कधियो खाबें तकर पइसा लेबउ ।

'ना' ई तो नाइ हइ सके है। हाम तोर दोकाने खाले हीअउ तोरा ओकर दाम दीएक हामर करतप लागे । हाम तोर महिमान लेखे नेखिअउ आइल, "जेदिना महिमान तरी आबबउ से दिन जे सेवा-सत्कार करबे हारभ माइन

लेवउ, आइझ नाइ आर मोहन पइसा दइके निकलल रोहनो निकलल ।

दुइयो चलला । रोहनो पुछल मोहन से पइसा नी मांगे हेलउ आर नीं लीए खोजे हेलउ तो काहे देल्ही, हाम अचरज में पड़ी गेली।'

'बोका' एतनो नी बुझे पारले ऊ हामरा लोभ दइके फंसवे खोजे है, बझवे खोजहे बिना कारण हामरा कृतज्ञ बनावे चाहे हे हिंसकाइल बाद उधरा- पधरा दीएक शुरू करतउ, फईर पीये-पीआवे ले जोर मारतउ । आपन चंगुल में फंसवे खातिर फेके चाहहउ जाल हाम का एतना बुड़बक लागी कि एतनो नीं बुझही। खैर जाय दे ई सोब बात के चाल आपन आपन घार हामीन कर डीह पोंहचीये गेलक आर दुइयो डिहराला ।

महिना दिन बादे जखन मोहन शहर ले घुरल आवे हेल डहरे रोहन संग भेंटाइल। रोहन सूरजू बाबूक बिल्डिंग (छातघर) कर काम करी के घार जाहेल तखन ।

मोहन पुछल रोहन के ठीके चलहइ ।' ' का हाल चाल हइ गोतिया । काम-धाम तो ठीके चलहइ।'

"हाँ गोतिया ! पहिल से बहुते आछा ही। आब हुकुमदारी कम हइ गल हे। ( काम करही ढेढाई के दाम लेहीअइ ठेठाई की दारूओ मोध कम हेई गल हे... कहियो कहियो पीअही नीं पीअही से नीं मगर पौधे-पइटी में सन्तोक करी लेही । दिन भइर काम करही राइत भईर सुतही, छउआ पुता नीके-सुखे काम-काज करअहथ, खाहथ । बांते चीते मोहन आर रोहन डिंडा धाईर आईला रोहन के मने आइझ का जे अचच्के हुचुक भेलइ कि ऊ कही उठल मोहन आइझ तोर गुरूजी संग तनी हाम्हूँ भेंट करबइ ।

'हाँ चाल- कोनो रोकावट, नांइ हउ हुआँ जायले । 'मोहन जबाब देल । दुइयो देवनारायण चौधरी घार पोंहची गेला तनिके में। देवनारायण चौधरी तखन घारक बाहईर बरण्डे (ढावे) में बइठल रहथ । नझीक जायके मोहन गोड लागल, परनाम गुरूजी । रोहनो परनाम करल ।

'आव बइठ, बइठ रोहन! आइझ कइसे हिन्दे डहर भुलाय गेले ।' देवनारायण चौधरी रोहन के कहला ।

'अइसही' आइझ मन हइ गेलक मोहन संग बोलते बतिआते आय गेली  तोहर ठीन ढईर दिनले तोहर संग भेंटो नीं रहे आर कोनो ओइसन कामों नीं। रोहन हँसियारी करी के बोलल।

'गुरूजी, मोहन कहे लागल 'आइझ रोहन तोहर से आपन शंका समाधान करे चाहहो। एहे विचार लड़के तोहरे ठीन आइलहो। तनी ठहरी के फईर •मोहन बोलल- पुछाक एकरा ई का जाने खोज हो ?

देवनारायण गुरूजी हँसी के बोलला समसिया हउ ।' - 'हाँ रोहन, बोलतोय, तोर का समसिया हउ।'

हामर कोनो समसिया नेखे गुरूजी! अइसही कुछो-कुछो गुरूजी ठीन सीखेले आइलही । रोहन कहल ।

'अरे' सीखे खातिर गुरु दक्षिणा दीए हेवे हे, अइसही शिक्छा (शिक्षा) मिले हे का ? देवनारायण मजाक करला 'एक दू बोतल खर्च नीं करबे तो सीखबे - कइसे ?"

कहा हाय तो आनबइ, मगुर ..रोहन आपन बात पुरो नी करे पारल रहे कि देवनारायण चौधरी बोलला - अगर मगर कुछ नाञ । चौधरी घार आइल हैं। कुछो-मुछो कोनों-मोनों सीखे ले दान-दक्षिणा तो लागवे करतउ ।

'हाँ' गुरूजी देबोन! का कहा हाय बोला ? 'रोहन साहस के साथ हिमइत से बोलल ।

पछुआवे तो नाञ, देख? हामर फीस बड़ा भारी पड़तउ दीए पारबे तो हाँ कर, नीं पारबे हामर सीख मइत ले। तोंय ना तो दीए पारबे आर ना करें पारबे।' गुरूजी देवा चौधरी रोहन के धिराई के कहला ।

'कोसीस करबो गुरूजी । कुछ तो हाम्हूँ दीएहे ले सोंची के आइल ही तोहर ठीन। ऐते दिन नीं आवे हेलिओन ।' रोहन हिमइत धारल।

'हामर फीस दारू-मोध साफ। बोल तोंय दारू-मोध पीये छोड़े पारबे तो हाम आपन गुन- गियान शिक्षा-दीक्षा देबउ, आर नीं तो नाम नासे ले हाम आपन सीख ककरो नीञ दीए चाहहिअइन।' गुरूजी देवा चौधरी कसम दीएक लेखे बोलला ।

हाँ गुरुजी हामरा मंजुर है, आइझ काइल दारू छोड़ले जइसन हे हामर। रोहन गुरुजी के भरोसा दियावल ।

'तो बोल, का जाने चाहे हैं तोय हामर से 'गुरुजी पुछला'

ओहे छौंहइर ओला कहनियाँ' -रोहन बोलल ।

छाँहइर ओला कहनियाँ' अचरज हइके पूछला ।

'हाँ' गुरुजी मोहन तो हामरा एहे कहल रोहन दोहरावल ।

छोहईर कर कोनो कहनी तो नीं हेवे हे, रोहन गुरूजी कहला, मगुर रोहन, गुरूजी देवनारायण चौधरी कर गुरू-सीख लीएले असिन्नियाँ मोड़ी के बइठ गेलक । देवा चौधरी बोले लागला - 'रोहन गुरु दक्षिणा में तोरा तीनगो चीज लागतउ, बड़ा कठिन काम हउ दान दीए पड़तउ आर हाम जानहिअउ कि तोंय ई दान हामरा नीं दीए पारब ।

कोरनिस करवइ गुरूजी । जखन हाम्हू संकल्प करीए आइल ही तखन एक झीक चेस्टा तो करवई । एकर में जे तोहरा कहबाय हाम गरीब आदमी जे पारबो से जुटावबोन। रोहन बड़ा हिम्मइत से कहल । 'तोय्हें नाम तो करा | काम तो बताया । देखबइ जोदि तोहर सीखे हामर धार सुधरे पारल।' रोहन आपन फरियाद ( याचना ) कही सुनावल।

आदमीड मन जखन जाइग जाहे तखन मनों में उत्साह गोरी जाहे तखन ऊ इच्छा पूरा करे खातिर तन-मन-धन लगावेले तइयार हुई जाहे ।

ढईर चोट खाइल बाद, आल्मा आपन मन-तन तिरपित (तृपित) करे खातिर आकुल- बाकुल (बेयाकुल) रहे है। जेमे ओकरा तो आपन बचल जिनगी में शांति-सुख मिलतई ओकर आवे ओला पीढ़ी के आगू बढ़े, चले में आसानी पोहचतई ।

रोहन मोहन कर खुशहाल परिवार देखी के आपने-आपने में बड़ी कुंठाई गेल रहे। ओकर मने शांति नांञ रहई, ऊ एकर खातिर छटपटाय हेलक ।

'गुरुजी देवनारायण रोहन कर भाव-भासा बुझी गेल रहथ । सेले ऊ-आब- आपन गुरू सीख दीए लागला । रोहन, तोर पहिल काम हेतउ 'मन' कर दान दोसर दान हेतउ तन के आर आखरी में तोरा 'धन' करो दान करे पड़तउ ।'

'फुरछाय के कहा गुरूजी। एतना जानतली तो हामर ई दशा नीं हेल रहतल । आब हामर का ? हामर सवाग कर तो दिन गनल-गुथल है, साफ-साफ कहा हामरा का करे पड़त ? रोहन (अपने आपको) गुरूजीक आगू समर्पित हई के बोलल विनती करल।

तो सुन, मन सोबले बोड़ चीज लागइ। ई बोड़-बोड़ गाछो ले बोड़ आए ऊँच है, आकाशो ले ऊपर आर धरतीयो ले नीच (हेंठे)। एकर दउड़ चलइल.. रह-हई। इच्छा, आकांक्षा, महत्वकांक्षा एकरे रूप लागई। एकर दान करें पारदे माने मन के जीते पारबे, चंचल नीं राखी के कोनो एगो डहर चुने हेतउ। बोड़ गाछेक छाँहईर हियाँ हुआ है। जेटा तोर जरूरी हउ ओकरे पीछांञ रह ।

रोहन चुप रहे। गुरूजीओ थाकी गेल रहथ बोलते-बोलते सुनावते-सुनावते ।

'एखनो हाम कुछो नीं बुझलिओन गुरूजी।' रोहन बोलल ।

नी बुझले, तो बुझाय देहिअउ ।' देवा चौधरी बोलला ।

'हाँ, बुझाय दाय, रोहन ।'

मोहन एखनो बइठी के गुरूजी देवनारायण चौधरी आर गोतिया रोहन कर कहा पुछी (वार्तालाप) सुनते रहे। मोहनो अनसाय हेलक एखन तईक । मोहने कही उठल "हाँ गुरूजी झटपट कही देहाक। लम्बा लिफाफा करले - हथ, मंगनी। असल बतिया ऊ सुनतोन, बुझतोन तबे नीं कहे पारतोन। रोहन के सामरथ बुझातई, ऊ हाँ करतो नी करतो। एकर में तोहर कोनो घटी हेतोन का ?

एकर में हामर घटी का ? मगर जखन कोई शरण में आवेहे आर सीखेले आइल हउ तखन तो ओकरा सोब उपर हेंठ बताउके पड़तउ । गुरूजी कहला ।

तनी देरी सांस लईके फईर गुरूजी रोहन बाठे देखी के कहे लांगला - रोहन, तोरा दारू-मोध पीयेले छोड़े पड़तउ पहिल एकरे से तोर मन कन्ट्रोल हेतउ। मन कन्ट्रोल (मन के थांभल बाद) हेल बाद शरीर (तन) कंट्रोल करे पड़तउ माने शरीर से खटी के खून पसीना गाईर के खाये हेतउ। छतरल छाँहइरे बईठी उठी सुती नीं रहे हेतउ । माने तनी खुन कमाले आर फर आराम फरमावे लागले तो तोर आगू बाढेक (विकास) जे मन (ईच्छा) हउ सेटा 'नीं देवे पारतउ। जतना खटवे ओतने भूख जागतउ आर समये पेट भईर खावे. सोबदिन शरीर (तन) बनल रहतउ ।

तेसर छाँहइर हउ छोट-मोट गाछेक संगे नानां रकम कर लर फर O छाँहइर 10 क लागल छाँहइर। ई लोभ रूपी छाँहइर लागइ, जीव ललकावे ओला, तनी खुन १५ छँहिराले फईर छाँहइर अनते पनते घरी गेलउ ई बड़ा ललकउवा छाँहइर लागे, एकरो जोदि तोंय दान करे पारव तो सचमें बुढ़ारियों में हामर चेला बहन 3 भार सके हैं। 'गुरुजी' देवा कही के चुप हई गेला।

छाँहइर माने छाँहइर, हेंठे छाँहईर ऊपरे छाँहइर, अगले-बगले छाँहइर, छाँहइरे कर छाँहइर, फईर ओकरो छाँहइर। जे ऊपर हे ओकर छाँहइर ओकर 197 ले जे हेंठे हे, ओकर छाँहइर ओकरो ले जे हेंठे हे ओकरो छाँहइर, छाँहइर करें ऊपरो छाँहइर, छाँहइर कर हेंठो छाँहइर, बीच हूँ छाँहइर। मन छाँहइर, तन स्कू छाँहइर, धन छाँहइर । छाँहइर बुझा दाय। बोड़ छाँहइर हिन्दे - हुन्दे । मांझ छाँहइर सोब बाठे।' बोड़ गाछेक ठूंठगा छाँहईर, मंझला झबरल गाछकर गादर छाँहइर, झूरी–झांटीक, लर - फर खनिक ( तनिक) छाँहईर हेवे करे हे।

देखबई कोरनिस करबई गुरूजी, जोदि तोहर सीख लीए पारलिओ तो छव महीना साल भईर में फईर हाम आपन सफलता-विफलता सुनावे आवबोन | कही के रोहन उठल । मोहनो उठल ।

"तो आइझ जाही, गुरूजी, गोड़ लागहिओन" कही के दुइयो रोहन आर मोहन घार गेला ।

बोनेक लोर

जाड़ सिराइल जा हेलई। भिनसोर-भिनसोर विहान तनी जाड़ लागे हेलई। महुजाड़ा रहई। बोने जाहाँ महुआ केन्दुआ रहइ, छोट-मोट दुंगरीज, बोड़-बोड़ पहाड़ेक हेंते आइग लागलहीं रहइ। पइत बछर अइसने आइग लागे हेलइ आर छोट-गोट गाछ विरीछ लर-पाल्हा जइर-पोइड़ जा हेलई । ई जरन-पोड़न अपसुखिये आपने-आपने हेवे हेलई कि कोनो आदमीजन आइग लगाय दे हेल्थी तकर चलते सगरे आइग लागी जा हेलई आर अठवारा पन्द्रहियों ले जलते धधकते रहतलइ। बेसी से बेसी आदमी सोचतला महुआ फोर बीछे खातिर गाछ तरेक लर-फर काँटा कुसा साफा करेले आइग जोरले हथ। आदमी जन एकर खातिर हाला काइन नीं हेतला कोनो झगड़ा झंझट नीं हेतलइन । कोनो कोनो समये लोकजन आपन सुइवधा देखी के काठो बाँसो, धरना खातिर परिआ खातिर, कांड खातिर, ठाठ खातिर आनवे करे हेला। एखनो आनइते हथ। ईटा कोनो दुखेक बात नाञ । आदमी जन कर सुइवधा खातिर, ओखिन के फल-फुल दीए खातिर, जलावन बेंच-डेस्क, कुरसी-टेबुल खपरा घार, छात घार बनावे खातिर हाम आपन बोनक काठ बांस देबे करे हेलिओन, देबेकरहिओन, हियाँ तइक कि आपन बोनेक छोट-मोट काठ कटुआ कांड-बांस लइके एखनो कते-कते धारक चुल्हा धरहईन, कते-कते घारक खाइन-पीअन चलहइन, कते-कते घारक आमदनी हेवहइन । आपन जीविका चलवे खातिर जे सोब कांड कोरवा लेगहथ ओखिन कर तो खमा हइन, मगुर जखिन कर खायेक पीयेक चलहइन ओखिन चोराय लुकाय के बेस-बेस वाढ़े ओ गाछ के काटी के, कटवाय के बाजारे बेइच आपन संपइत (सम्पति) बढ़वे ले लागल रह हथ, ओखिने से हामरचीढ़ है। ओखिने के हाम फुटले नजइरे देखहिइन। एखन जोदि हामरा कांदाय के कल्पाय के ओखिन चोराइ लुकाइ के हामर सुन्दर घार, हामर सुन्दर बगैचा, हामर सुन्दर फूलवारी उचराई के लेगहथ, तकर चलते हामरा अमनख हे। बोनआपन भाखान बोलते -रहल जे बुझे पारला ओखिन कसम खाला- 'हे बोन राजा! तोर गिरल-परल डहुरा - पात डाइर-पात, सुखल -मोरल, झाड़-फूड़, टहनी-टोइया लानवे करबड़ आखिर हामिनों तो तोर बेटा-बेटी लागिउ, जावल-जनमल लागिउ, तोरे आसराञ तो हामिनो तोर आगू-पाछु, हिन्दे - हून्दे, बाँव-दहिन रहहिओ, हामिन के तोंय कहाँ फेकवें?"

आदमी जन कहे लागला- तोहें जतना दुखी हाय ओकर ले हामीन कम दुखी नेखी। जइसने तोहर लोर कोंयनी देखहरू, बुझहउ ओइसने हामीनों कर लो ना तो सरकार आर ना ओकर नोकर चाकर बुझहथी ।

अन्धरी सरकार कर बईमान नोकर-चाकर (जंगल विभाग के सिपाही एवं वन-पाल) हामीन के सतावहथ, चुल्हा जोरेक काठी लाने में हामीन कर बहु-बेटी के बेइज्जत करहथीन, जवान बेटी छउआ के तो आरो डेराय- धमकाय के 'ईज्जत लुटेक कोरनिस करहथीन, मगर एखिन दस-पाँच कर जमाइत में रहहथ तखन ओखिन कर खराब नेइतओलाकाम नीं हेवे पारहइन तखन लकड़ी-चोरीक दोस देखाय के, ओखिन से पइसा रूपया अँइठहथीन । आर तनी तेज बोलले (विरोध करले) जनीओ बेटी के माइर पीट करहथीन । हामीन जोदि आपन घारक कोनो जरूरी काठेक खातिर एकोगो डांगो लाने गेले तो सिपाही धारबथु, मारबथु आर फइर केसो कइर देवथु। थाना ओला पकड़ के जेहल में डाइल देव हथ । हामीन कर आदमी जिनगी भइर जेहले में सड़इत - मोरइत रह हथ । बोलते-बोलते थाकी गेल रहे सेले तनी ठहइर के फइर बोले लागल- 'हामीन कर केस कहियो खतम नीं हेवे हे । हामीन के छोड़वे जमानत लीए कोइयो नी जाहे । हामीन कर जिनगी का तोहे नीं देखाहाय, बोनराजा ?

अरे हाम तो सोब देखहियोन, सोब बुझहियोन, सोब लेखे मन-मसुआइ के रही जाही।' बोन कहे लागल ।'

जखन बोनेक राजाक आँइखेलोर देखला तखन आरो कोइयो कुछो नीं बोले पारला। ओखिन के चुप देखी के फइर बोन बोले लागल तोहिन आपन दुखे दुखी हइके काँदे लागल हाय । तोहिन के ईटा एगो परिवारेक दुख लागोन, आदमीक दुख । एकरले वेसी तोहिन सोंचहें नीं पारवाय, काहेकि • तोहिन आपन सवारथ ले वेसी सोंचहों नीं पारवाय एतना दूर दृष्टि तोहिन के नेखोन। आदमी भगवान कर सोबले 'श्रेष्ट' (ऊँच-बोड़, बुद्धिमान, चालाक) बनावले लागाय कि दोसर जीव रेंगेओला, बिना रेंगेओला, उड़े ओला, पैरेओला सोब के काबू में करीलेहान। आपन सवारथ खातिर बचावबो करा हाय, खाइको पीयको देहाय पालबो पोसबो करा हाय आर जे नीं करेक से सोब तोहिने करा हाय ।' बोन राजा जोर-जोर बाले लागल |

जोर-जोर बोलते-बोलते बोनक राजाक आँइखे लोर डबडबाय लागलइ । ओकर मुँहले कोनो बकार नीं फूटे पारे लागलइ । सेले ऊ तनी थिराइ लेल ।

फइर बोले लागल।

'मंत्री, ओफिसर, पदाधिकारी, सिपाही हामर नाम लइक हामरा बचवेक नामें कते-कते योजना बनव हथ, आर सोब खाय-पी जाहथ। नवा-नवा बोन लगवे खातिर अरबों खरबों कर योजना बनवहथ। हजार दू हजार पाँच हजार, दस हजार कि लाखों खर्चा देखाय के सोब गबन करी ले हथ। का हाम ई सोब नीं जानहिअई ? का हाम एत्ना अचेत ही जे तोहिन के पोरोगराम कर जानकारी हामरा नीं हेवहे ? हामरो शरीरे लहू हे, हामरो शरीरे पानी कुदे है, हाहूँ हवा पावही, हामरो तोहिने जइसन सूरूज कर रोशिनी मिले है, हाम्हूँ.. ओहे माटी ऊपर निर्भर ही जकर में तोहिनो हाय।' बोनक राजा फइर काँदा.. कुँदी हईगेल ।

आदमी जन बोनेक राजाक संवाल कर कोनो जबाव नीं दीए पारला । आदमी जन हइचोक, मुँह-हेंठ करी लेला । बोनेक राजाक सवालेक ओखिन.. तीन कोनो जबावो नीं रहइन ।

बोनेक राजा फइर बोले लागल तोहिन हामर सुन्दर बाग-बगैचा जे 1 उजड़ावलाय, जवानो नी हेली आर काटलाय, सर सिपाही मोटाला, फोरेस्टर माला-माल हेला, हामरा बचवे खातिर रकम रकम कर नाटक करलाय। मगुर हामरा बचवेक तो ढईर धूर, धूर-धूर ले हामरा उजाइड़ देलाय। हामर सोब गाछ पाल्हा, लर-फर काइट के लइ गेलाई । हाम उजाड़ हई गेली । हामर संग रहवइयन शेर, बाघ, हाथी, लाकरा, सियार, खेरहा, मूसा - चिड़रा सोब खतम हइ गेला। साँप विछू जे हामर दोसर छोट-मोट रखवाला रहथ ओखिनो खतम हइ गेला। नाना रकम कर पंछी चील्ह, कौआ, सुग्गा-मैना, पंडकी-गुंडरी सोब सिराय गेला । पानीक दिने नाचे गावे हेली जकर संग ऊ मोर-मोरनी हेराय-विसराय गेला। कोयल कर कूको जाने नीं पारी कहाँ-कहाँ सुना है।

झर-झर लोर बोहे लागलइ बोन राजा कर आँइख ले। ऊ फरक लागल - 'हामर सोब बेसी शुभ-चिन्तक हाथी कर घार तोहिन उजाइड देलाय, से ले तो ओखिन खायले, रहे ले, छीपे ले हिन्दे-हुन्दे कुदी भूल हथ । खेत बारी खुदले रौंदले, खाले, उजाड़ले घारो-बस्तियो में दुकी जाहथ। हामर ले कम दुख ओखिन के नेखइन, बेसिये हइन। जखन तोहिन ओखिन कर घार-मकान उजाड़ाहान ओखिनो तो जीवे लागथी। तोहिन जइसन चिन्तनशील, मननशील, भाव पूण, भाखा-पूर्ण ओखिनो कर समाज हइन, सेले जखन ओखिन के कूसट देहान ओखीनो तो बदला लेबथुन । जकर सोबले आगू पूजा कराहाय ओकरे घार उजाड़वाय तो के भोगतई ?

बोनेक राजा ढईरे भावुक हइ गेल रहे कॉंदते-काँदते ओकर आँइखेक | लोर सुखी गेल रहइ । मने मने सोचल आदमी बड़ा चालाक हेवहथ, - छलाय-फुसलाय के सोब जीव-निर्जीव, चल-अचल के आपन काबू में करी - ले हथ, आपन सवारथ खातिर मगर आदमी के एक दिन बुझे में अइतइन जखन हामर दरकार पड़तइन । हाम नीं रहले पानी बिनु तरसता हाम नीं रहले शुद्ध हवा नीं पावता। नाइट्रोजन आर कार्बन-डाई-ऑक्साइड एतना बढ़तइन कि बिना हामर गोड़ तर गिरल कोनो उपाय नी चलतइन । एतना कही के बोनेक राजा चुपहइ गेल ।

 

हाम जीयब कइसे

महेसर आर पारवती दस-पन्द्रह दिन खातिर हित-कुटुम्ब से मिले-जुले भेंट मुलाकाइत करे ले निकलल रहथ दिने एगो गाँव पुरवल बादें मुँह अंधरा पोहचला मुरपा। मुरपाज ओकर, महेसर कर गौतिया भइतजा सोब रहे. हेलथी महेसर बीहा दाने एक दू झीक आइल गेल रहे. मुदा पारवती कधियो ई ईलका ( ईलाका) नी आइल रहीक । महेसर कर टेक्सी-गाडी जइसीहीं उदुवालाइ, मरद बेटा तो सोब हिन्दे-हुन्दे भागी गेला। मेहरारूओ कोय गाड़ीक नझीक आवेक हिमइत नीं करला लाचार हइके महेसर गाड़ी ले नामल आर रघुनाथेक घारक, दूरा खटखटावे लागल, हँकावे लागल 'रघु' एहो रघु' हाम तोर काका महेसर लागीअउ, दोरजा खोल देख! कधियो नीं से तोर काकीओ आइल हउ । डेराइक कोनो बात नाहीं लागइ सर सिपाही हामीन संग नेखत रे बाबा। एगो रघु बहू-बड़की, भंदरूआ माय, 'एहेगो पितिआइन साइस आइज तोहिन के खोजले आइल होन आर तोहिन छवे बजे साइंझ भाउल (भालू) बांदर, सियार कर डरे समाय लुकाय गेलाय।' पारवती हँकावलीक।

बड़ी देरी में आवधा चिन्ही के रघु कर बहू बाहइर बहरालथी । देखलथी- चिन्हलथी ओकर गोतिया घारेक छोट काका-काकी लागथी। निडर हइके दुइयों के आँगना-घार ढुकावलथीन रघु बहू आर ओकर पुतउ सोब। पुरखा आइल हथीन सेले झांपा-झंइप तीनों साइस पुतउ गोड़ लागलथीन महेसर आर पारवती के लोटा पानी देलथीन । गोड-हाथ धोइके बइढला महेसर आर पारवती । रघुके बहू खातिर तो ओकर काका काकी एखन महादेव आर पार्वती जइसन भगवान खड़ा हइ गेल रहथीन । जकर कहियो छाँहईरकर आसरा नीं रहइ ओकर गोड़ पोंहची गेल रहइ । ऊ आदमी जकर मान-सम्मान घार ले डेग ना देलूहूँ, जग-दुनिआये रह-हय, मिल-हइ, चाहे जेकारने हेवइ. धन बल वा विध्या ऊ जदि कोनो साधारण परिचित परिवारे अचक्के पोहची जाउ (जकर पहिल से पूरा परिचय रहहइ ) तो भगवान कर अचक्के दरसनले कमनी बुझल जाहे । अइसने खुशी कर मोका रहइ रघुनाथ के परिवारे । रघु बहु खुश रहीक ओकर घार आँगनाञ भगवान आर भगवती पोहचल हथी बिनहँकावले, ओतने ओकर मने चिन्ता बादलय । भगवान-भगवती रूपे आइल काका-काकी के का लेखे सेवा करे पारबइ । जबकि सोब बेटा छऊआ गाड़ीक ईजोर देखी के भागी गेला । कइसे हाम काका - काकी कर आव-भगत (सत्कार) करे पारी? ई चिन्ताज ऊ डुबेलागइल। तखने पारवती ओकर काकी कही उठलई- 'बहू' तोरा कोनो चिन्ता फिकिर करेक दरकार नेखउ, एखने हामीन खाँखडाले तोरे ननद मोहरी हियाँले खाय पीके आवे लागल ही आव जे खिआवबे-पिआवबे- विहान अनगुते काहेकि हामीन के आर एगो जगह काइल्हे पुरावेक हे आर फइर अन्ते जायेक है।

रघुनाथेक बहू पारवतीक बातें विसवास करीके थिराइल, मगर सादा-माठा, खायेक तो बनबेके रहइ । बड़की पुतउ के हंकाय के रघुक बहू फूलसरी कहलइ- 'बेटी! काका ससुर तो काय झीक आइल गेल हथ मगुर काकी साइस कर ई पहिल आवना लागइन, काजन फइरों कहियो एते धूर आवे पारता सेल गोली कोंटरिया मार आर काका-काकी के खिआवहीन । एखिन कर गाड़ीज आर दूलोग आहथ ओखिनों के भइजायेक चाही ।

सोब आपन आपन कामें लागला । फुरसइत पावल महेसर। पारवती तो आपनो ले बूढ़ी पुतउ संग घार- घार कर सर - समाचार बोले लागइल सुने लागलइल ।

महेसर खाटी ले उठल । दोरजा खोली बाहर निकलले रहे कि ओकर भतीजा रघुनाथ भेंटाइल जनमे बोड़ रहतहूँ गोड़ धुई के गोड़ लागलइ रघुनाथ, आर पूछल कइसे कइसे आइझ हिन्दे गोड राखलाय काका ?

'का' कहिअउ घुरेहेले बहराइल ही तोर काकी संगे हित कुटुम्ब कर घार - दूरा देखेक मन भेलक । सोचली आपन आदमियों से भेंट मुलाकाइत करब आर ई ईलाकाञ कायगो देखेक-सुनेक जगहो हे घुरी आवब गोटा पन्दरह- दिनकर पोरोगराम लईके चलल ही । लुगुधाम जायेक विचार हे, फइर पारसनाथ धाम जाब, आर जन्दे-जन्दे लोगें कहता तन्दे-तन्दे जायेक विचार राखले ही । तनी रूकी के 'देखी जाय, पोहचे पारही कि नीं। हिंये तोहिन कर गाँव आइल से तो हामरा दूरे बुझाय गेलक । सोभे मरदाना टेक्सी गाड़ी देखी के भागी गेला, लुकाय गेला। हामरा तो बड़ा अचरज लागल। एते डर आखिर तोहिन के काहे ?

महेसर रघुनाथ कर जवाब कर आसरा करे लागल। 'काका' पुलिसेक डरे सोब मरदाना हियें नीं, आस पासेक सोभे गाँवक लुकाय-छिपाय, लागहथ । पुलिस, एम. सी. सी. एरिया कही के कुदावइत रह हथीन सेले। रघु एके निनासे कहे लागल |

मुँह आँधरा रहइ, तोहिन जखन गाँव दुकलाय तखन भाँफेनी पारलथुन कि टेक्सी गाड़ी कि कार गाड़ी लागइ। कार गाड़ी, मारूति गाड़ी देखले डर भय नी लागहइन, मगुर पुलिस गाड़ी देखलहीं भवाँ चमके लागलहइन, कम रहथ तखन बोने-झारें लुकाय जाहथ, बेसी रहले पुलिस से मुठभेड़ करे लागहथ। एखन हियाँ मरदाना कम रह-हथ सेले हिन्दे-हुन्दै लुकाय-छिपाय के हथुन जानले कि दुसमन कर गाड़ी नीं लागइ गते-गते सोब घार घुरबथुन।' रघु काका के सोब रिपोर्ट दिए लागल ।

रघु कहे लागल- 'काजे कहिअउ आर काजे सुनाविअउ ई ईलकांक दुःख दरद। ई. एम. सी. सी. आर पुलिस कर झगड़ा में हाम गरीब सोब पिसाइ लागल हो। बाजार-शहर ले धूर बोन-झार झंखाड में शांति आर सुख खातिर बपौती घार दुरा छोड़ी के वसला, खेती बारी, कांड़ कोरबा करी के जिये खोजला मगर हियाँ जे हालाकाइन हेवे लागल हइ से तो हियाँक रहवईये आव जाने लागला ।

रघु तनी चुप भइ गेल, दूराक पिंडा ऊपरे बइठी- बइठी आव दुइयो उठी के चले लागला। एखन तइक रघु पीले नीं रहे । ऊ महुआदारू पीये ले छटपटाय लागल |

रघु सोंचल ओकर महेसर काको पीअहथ नीं का सेले गुरूजी काका के चलावल-'चला काका तनी हेंठ टोला। हेंठ टोलाक गरीब गुरबाक हाल --चाल लेभान, ऊ (रघु) सोजबारी ई नीं कहे पारल कि चला तनी पी-पायके दिनभइर कर थकानी धूर करी लेब ।

काका महेसर के का मालूम कि ओकर रघू भतीजाक नसटाने लागल हइ आर ऊ मोद-दारू पीये खातिर जोगाड़ - जुगत में है। चलला महेसर रघु कर संगे हेंठ टोला- बेदिया टोला ।

बेदिया टोला जायके रघु चाल देहे' के गो! बहुरिया करमी माय । दोरजा खोला। खोलागो, खोला। हाम लागिओन....।'

रघुक बात पूरी नीं भेल रहइ कि दोरजा खुलल रघुकर आवघा चिन्हीं के। रघु दुकल संगे संगे महेसरो दुकल आँगनाञ ।

आँगनाञ खटिया बिछाई देलई करमी माय - चुनिया ।

"दे एक बोतल दारू आर गिलास।" रघु कहल।

धुनिया तनी देरी बादे एगो बोतल भोरी के दूगो गिलास लानी के  अगुआय देलइन रघुक आगूतर ।

रघुनाथ दुइयो गिलासे दारू भोरल एगो गिलास काका महेसर बाठे घसकावल, फइर हाथे उठाय के देलइन काका, लाय।' महेसर गिलास नीं झोंकल । ऊ कहल हाम दारू-मोद नाञ पीअही भतीजा।

'अच्छा! काका! तो हाम शुरू करहिअइ ।'

'हाँ, हो! तोंय आपन काम पूरा कर एकर में हाम कोनो बाधा विधिन (वृघ्न) नी देबउ । तोय खा, पी, कोनो मना नेखोन । महेसर रघुकर लाज शरम तोड़ल |

रघु दारू पीये लागल | महेसर पास ही बइठल चुनिया के देखल, चुनियो महेसर के आँइखे - आँइख मिलावइल |

चुनियाक मुँह-कान देखी के महेसर कर मने नाना रकम कर सवाल उठे लागलइ । ऊ परसफुटे (प्रस्फूट) पूछे लागलइ-'आयगो तोर घारक मालिक कहाँ हऊ ?

चुनिया कोनो जबाब नीं देइल । गते गतें ओकर आँइख ले लोर बहराइ लागलइ । ऊ कोनो बोले खोजे हेइल मगर आपन, आँइखेक लोर छिपावेक कोरनिस (कोशश) करइतें, महेसर फइर पूछल-तों तोहें हामर सवाल कर कोनो जबाब नीं दइके लोर ढरकाय देलाय आर चुप रहीं गेलाइ ।'

"बाबा तोहर सवालकर काजे जबाब देबोन' चुनिया आँइखेक लोर पोछले-पोछले बोलइल। ' घारक मालिक एम. सी. सी. आर पुलिसेक लड़ाइये (मुठभेड़) मराय गेला। छोटे-छोटे खेत-बारी हे दू चाइरगो करहो नीं पारही कोनो लेखे छउआ पूता पोसे लागल ही।' चुनियाक आँइखले फइर लोर ढरके लागल। तनी देरी तइक सोभे चुप रहला । महेसर कोनो बोलतला कि चुनिया / आपन आरो कोनो दुख सुनावतलीक- रघुनाथ बोली उठल-गुरूजी बेचरंगी बड़ी दुखे जीये लागल हीक। एकर मरद के एम. सी. सी. ओलाइन ठकी समझाय के आपन गुटे जबरजस्ती राखलथीन, मेंबर बनावलथीन । बेचारा ''डमरू' बेस इंसियार तो नीं रहे, मगर आपन हिकमइत से आपन पइरवार (परिवार) वेसे चलवे हेल। एकर ओकर साझा-बुझा करी के बैसे खाय पीये हेलक। एम. सी. सी. ओलाइन के संग लागी के एकर घारेक ई दूरदसा हेल-हइ । 'रघुनाथ बोलते-बोलते ठहर गेलक ।

मोका मिललइ महेसर के आगू बात बढावेले ऊ पूछल- 'कायगो छउआ हथी एकर।'

रघुनाथ के ना कुछो जबाब देते चुनिया बोले लागइल-हामर दूगो बेटी आर एगो बेटा हेक बाबा लड़कियाइन बोड़ लागथी, बेटवा छोट लागे। एहे. तीन चार बछर कर हे। एखन तो एहे चाइरगो जीव पोसेक हामर परदबाय हइ गेल है। कोनोलेखे जे मानुस करे पारिअइन सेले कहियो बोनेक दतुन-पोतइ लइके गाँव-शहर-बाजार जाहि बेची-खुची के दू दाना लानहीं, छउयाक आर आपन पेट पोसही । कहियो कहियो जे बुधि-गियान माय-बाप ठीन सीखल ही ससुराइरे जे देखले करले आइल ही महुआ दारू चुआवही । दू पइसा हेवे हे, नून तेल जुटावही । चुनियाक आँइखेक लोर एखन थामाय गेल रहइ ।

रघुनाथ तो उठेले अकबकाय हेल। मगर महेसर के कहल पर कि-'रह सुने दे बेचारी कर दुख-सुख, धारे नीं आब जायेक हे ? रघुनाथ घुरी बइठी गेल रहे खटिये ऊपर ।

महेसर फइर पूछल चुनिया के बेटिआइन के ईस्कूल भेजहीन कि नीं। 'ईस्कूल का भेजे पारवइन, बाबा, एगो छउयाटी घार ओगरहीक, बबुआ के टेकहइ खेलावहइ, राखहइ । बड़की छगरी-पठरू दूगो हथी ओखिने के चरवे-बजवे में रही जाहइ । बपा रहतलथी तो छउयाइनों ईस्कूल जातलथी । हा हूँ छउयाइन के पढाबतलिअइन । मगर का करों, जखन हामर किस्मइत फूटल हे, तखन ककरा दोस देबइ। नइहरोले कोनो आसा भरोसा, मदइत पावेक नेखे, सेले जे हेतइ ऊपरओलाक जखन एहे मरजी हइ तखन आर का करे पारिआइ । चुनिया निडर हइ के बाबा महेसर के आगू आपन दुख-सुख खोलीके राखे लागइल।

'तोहें तो कहा हाय ठीके, बाबा, मगर सोंची देखही सोची आवही हाम छउयाके ईस्कूल एखन भेजहे नी पारवइन 'चुनिया बोलइल ।

'से काहे ? पूछल महेसर ।

बोड छउयाटी छगरी पठरू नीं देखी देइत तो छउयाके लूगा-फाटा 'काहीँ ले देवइन। छोटकी बाबुटाके जोदिना राखइ तो हाम पर पेठिया, हाट बाजार कहूँ जाय नी पारब। फइर एखिन के खिआववइन कइसे ? जकरठीन धान संपइत रहे हे, सवांग निचुत रहे हे ओखिने छउआ-पूता पढ़वे पारहत एहो गाँवे देखहिअन जखीन के थोड़ कुछ हइन ओखिने के छउआ पढ़े-लिखे लागल हथीन । ई टोला-गाँवे दुइये-चाइरे घारक छउआ पढ़ल- लिखल हथीन बाकी सोब हामरे जइसन हथ। ' चुनिया गियानी लेखे महेसर के गियान दिए लागलइन ।

'कोनो अइसन घार ई आसे पासे टोलाञ नेखे जाहाँ हाम धंगरोनो रही - के छउआ के ईस्कूले पढ़ावतलिअइन आर धंगरीनो रहले हामर सोब छउआ के पोसी पासी देतलों का ? चुनिया बोलते रहइलं । महेसर आर रघुनाथ चुप रहथ।

चुनिया फइर बोले लागइल आपन सोब लाज-बीज छोइड़ के ककरो - लौड़ीनो रहले तो हामर ई छउआ पूता के नीं देखी संभराय देतक । सेले जखन तइक हाम आपन छउआ के पउध नी करे पारिअइन तखन तइक आरो हामर सोंचेक उपाये नेखे। एम. सी. सी. आर सरकार कर, पुलिसकर मारल हाम उठहे जे नीं पारे लागल हीं । राइत दिन सोचही 'हाम जीअब कइसे । चुनिया एक बारगी चुप हइ गेइल । रघुनाथ आर महेसरो उठी के चल लागला ।

 

नावाँ छोट जिमीदार

आखरा एगो बइठकी नीयर चउक जगह के कह हथ। रउद दिने दिन दुपहरे हिन्दे हुन्दे ई घार ले ऊ घार ले निकली के जुमहथ। अवरी दिन-महीनाञ पराय सांझे के जुटहथ । आपन आपन खेती-बारी बर बेपार कर दुख-सुख सुनाव- हथ । करम- सोहराइ आर अइसने सामाजिक काम-धामे, परवे-आखरा में कार्य बेवहार हेवे हे। सर शिकायतो हेवे हे लइ चुगली हेवे हे, झर-झंझट कर जगहों एहे रहे हे वेसी गाँव-गरामे आर दारू-मोद पीके डींग हाँका-हाँकी हिंये वेसी हेवहे। गाँवेक, टोलाक पर पंचइतीयो हिएँ हेवे हे। 1

एहे लेखे, सांझ के आखरा में जुटल रहथ टोला-पाड़ाक बुढ़ा-जवान युवक । हिन्दे-हुन्देक सर शिकायत, टोला-पड़ाक देस-दुनिआय कर समाचार हेल बादे उठल चरचा भ्रष्टाचार कर। फईर उठल शोषणकर आर फईर पटतइर (तुलना) हेवे लागल राजतंत्र कर शासन बेवस्था आर प्रजातंत्र कर शासन बेवस्थाक । कोय-कोय राजतंत्र के दोहाय दीए लगला, तो - कोय- कोय प्रजातंत्र के अइसन बुझाहेलइ जईसे राजतंत्र आर प्रजातंत्र विषय उपर वाद-विवाद चले लागल हईन ।

एगो बुढ़ा सत्तर- अस्सी ले उपर हेवइत हेतइ ओकर उमइर बोले लागल - तखन कर राजा बराबर एखन कर मंतरी, तखन कर जिमींदार-बोड़ जिमींदार, छोट-जिमींदार, पेटी- जिमींदार माने डी. सी. कलक्टर एसडीओ सी. ओ., करमचारी, दरोगा पुलिस सिपाहीं । अंगरेजी सरकारें दरोगा सिपाहीक दरकार पड़े हेलइ । राजाक राइजे दफादार, गोड़ाइत, चउकीदार, से काम चले हेलइ । अंगरेजी सरकारें चौधरी, सामन्तो, गंझू, महतो, ओहदार टिकइत विकास कामें आर सरकारी काम-काजे अंगरेज सरकार के मदइत करे ओलाईन के पदवी रहईन अंगरेज सरकार कर चमचा आर बेलचा ।

बुढ़ा तनी दईरे बुढ़ा-बुजुर्ग रहे से ले कोइयो कोनो रोक-टोक नीं करें हेल्थीन । सोब बुढ़ाक कहनी कहल तरी ओकर अनुभव सुने हेला। बुढ़ाक समाजे ईज्जइत-सम्मान, मान-मरजाद रहइ सेले नातीयो पोता कोय हँसी मजाक नी करलथी ।

एगो बीड़ी धराय के एक-दू टान टानी के फईर बोले लागल 'बी. - डी.ओ., पंचायत सेवक, ग्राम सेवक एखन कर सरकार कर चमचा बेलचा लागथ । तखन कर सोसन-सासन आर एखन कर सोसन सासन में बेसी फरक नेखे। तखन कर सोसन जुल्म कहा हेल एखन कर सोसन जुर्माना, माने दण्ड बिना दोसे टैक्स माने फीस बिना चुकावल तौर काम कतनो जरूरी रहउ नी हेतउ चाहे तोर मोरन जीयन के हेवउ कि कोनो दोसर काम रहउ। राजाक राइजें अंगरेजी राइजें वफादार, चौकीदार गोड़ाइत के खुशनामा एक गिलास कि एक दू पइसा दइ देल्ही रइयत कर सोब दोस खतम हइ जाहेल वा वेसी से वेसी जिमीदार के गोड़लगाय कहूँ कहूँ एक कोहिया गुर (गुड) चढ़ाय देल्ही दोस खतम हइ जाहेल ।'

बुढ़ा फईर एगो बिड़ी धरावल आर बोले लागल - 'तखन दस-पाँच रूपइया जिमींदार के सलामी देले गैर मजुरवा वकास्त आर जिरात, जमीन पच्चीस पचास डिसमिल कि एकड़ो भईर बन्दोबस्त करी दे हेलथीन, एखन ओइसन जमीन बंदोबस्ती में करमचारी सी. आई, सी ओ एस डी ओ तइक के सलामी नाहीं घूस दीए पड़ हईन । महीना दू महीना, साल-दू साल तइक ओखिन कर पाछू - पाछू गुडइत रहे पड़ हईन । तखन कर बन्दोबस्ती जरूरती पर हेवे हेल सेले ओकर दाम आर नाम सलामी तइक में हेवे हेलइ । आब कर बन्दोबस्ती बाजार हिसाबे, बेगारी नीयर मोल-तोल करी के बेइमानीक डहरें देवे है। सेले ओकर दाम आर नाम 'घुस' जइसन बदनामी से करल जाहे। ई सोर छोट छोट जिमींदार लागण । पहिलेक जिमींदार रइयत के बढ़वे ले सलामीए में खुश हइ जाहेलय, आवके जिमींदार आपन बाढ़ा आगू देखहथ, पाछू रइयत के। भूसो पेंच देल बाद रइयत कर काम राफ-साफ नाञ हेवे पारे । जदि रइयत दुगुना तीन गुना मुँह बन्दी खरच करे पारे तवे हेले ओकर काम सुवइधा नुसार हेतइ, आर नी तो नाइ। आर तो आब ई वेपार-मंडल बनी गेल हो । एजेन्ट उपर एजेन्ट फीट हथु जिमींदार कर दुआइर तइक जे जतना लइके कोनो बेस एजेन्ट के संग जातक ओकरे काम बनतइ आर नीं तो अइसही बोंउड़ाय के घुरते - घुरते मोर (मर) ।

बुढ़ा बोलते-बोलते थाकी गेल रहे । साँस लइ के एगो छोट जिमींदार के पटतईर दीए लागल ।

बुढ़ा जगरनाथ चौधरी बोले लागल 'तखन बलराम सिंह थानाक दरोगा रहो। ऊ दस दिन, पन्दरह दिने गाँव-गाँव घुरइतलो। गाँवे गाँवे चोरी, चमारीक केस धारइतलउ। जकर नाम उठतलइ ओकर से मुठभेड़ हेले सौ पचास लइ के जोर-जोर माय बहिन के गारी दइ के चली जातलउ । जे असल चोर रहथीन ओकरा लइ धमकाय के छोड़ी दे हेलइन बिन दोसी साउध सोब के धारी-बांधी के थानाक हाजत दुकाय दे हेलइन। ओकर पीछा छोडवइया जे जातला ओकर से सौ-पाँच सौ लेतल और थाना से छोड़ी देतल । जे नीं देतलथीन ओकर उपर हिन्दे हुन्देक केस झूठो लादी के जेहेल भेजवाय देतलइन । नाना रकम ओकर नामे चोरी-डकइतीक केस लदाय जातलइ । बेचारा बिन गुनाहे जेहल खटइत रहतल । ओकर परिवार के एतना सामरथ नी रहतलइ कि ओंकरा केस लड़ी के जेहल ले बहरावतलथी । जिनगी भइर बेचारा ई जेहेल खटी के रही जातल।

बलराम सिंघ दरोगा कर सांइट-गाइठ छोटका चोर-चुहाड़ से लइके बोड़-बोड़ डकइत लुट-मार करे ओला बनिया वेपारी से लइके बड़का-बड़का कालाबजारी धंधा करे ओलाइनो संगे रहइ । सेठ-मारवाड़ीओ ओकर आगू-आगू रहहलथीन ऊ पाछू - पाछू । दिन गांना आर महीनबारी ओकर बांधल रहइ । दिनगाना आर महीनवारी नीं मिलले फइर ऊ पोहची जातल भंड़उ भंड़उ गोरी देले ।

तनी सांथाय के जगरनाथ चौधरी फइर बोले लागल का कहीओन रे बाबू, हामीन कर देखल आर तोहिन कर सुनल। सरवा गरीबो दुखिया के नीं छोड़इन सतावे ले । तइनको गुनाहें पीटी के पहीले तो डर चढ़ाय दे हेलइन, दे फइर डेराय-धमकाय के सौ दू सौ लइये के उठतलइन ।

चौधरी फइर बोले लागल - 'गाँवे घारे जोदी कोय मोध- दारू आपनो पीयेले बनावतल तो पता पावले ओकरो घार अपकारी पुलिस लेले आनतलइन आर डेराय - धमकाय के ओकरो से कुछनीं कुछ वसूल करतलक ऊ दरोगा । आपनो लेतलक आर अपकारियो के दिआवतल ।

'फइर का हेलइ बूबा ? कोय छउआ पूछल ।

चौधरी जी कहें लागल का कहीओन रे बाबु ऊ सरवा दरोगाक हाल। कुछे दिने तो बड़का बनीं गेल रहे। बड़कागो एगो बिल्डिंग बनावल, कारो राखे लागल आपन । बलराम सिंघ दरोगाक नाम बिकाय लागलइ। गरीब-दुखा ओकर नाम से डेराय लागलथ ।'

'फइर का हेलइ बूबा ? दोसर एगो छउआ पूछल ।

गरीब - दुखा के सतवल के जे हेवहे से हेलइ सारवा के तो एकोगो आपन बाल-बच्चा मुँहें आइगो दीएले नीं बचलथी । ओकर मवइत तो बादे हेलइ । हाथे-गोड़े गोटे घाव-घोस हेल रहइ । गोटे शरीरे ओकर पानी चढ़ी गेल रहइ ओकर बेटा-पूतउ ओकर मोरल आगुए आपने कार गाड़ीक एक्सीडेन्ट जहींक-तहीं मोरल रहथी। बेचारी बलराम सिंह दरोगाक बहू सोब दिन घूस-पेंच लूट-खसोट, चोरी-चमारीक पइसा से खूब शौक मौउज करले रहीक। बीतल दिन इयाइद करी-करी काँदे हेलीक ।

राइत भइ गेल रहइ सेले सोब छउआ उठी उठी आपन घार जाय लागला। बुढ़ा जगरनाथो आखरा ले उठी के अपन घार सुते ले चली गेल। आखरा सुन भइ गेल ।

*****

उबार

अदमीक लसतंगा आदमीयत से हेवे हे। अदमी उदार देवे तब देवता हे आर नीच हेवे तब सइतान एहे अदमीक बीरतियो है। मकिन का सहर का गाँव आइझ ईरसा-दोस, काल्हा-कुविचार तनी बेसी ले बाइढ़ गेलक इनसानी जिंनगी दइब रहल है। इकर पाछें जे कारन हेतक मूदा आइझ जब साइंस बाढ़लक, बुइध आर गियान अगुवालक तकर ताताताही में गाँवेक रहवइयाक दसा में कोनो सुपट सुतार नाय भेलका गाँवेक आगु-अगुवाइक में देस अगुवातक, मगर का लखें? झबरू जइसन टूट पुँजिया किसान के ढाढ़स तोइर के? आरो नाय तो गरीब पढ़वइया छउवाक डहर काइट के ?

गोटे गाँव में झबरू एक टूट पुँजिया किसान रहे। नाज् कोनो वैस नियर हार-कोदार, डाँगर-गोरू आर नाञ् कोनो पीठपार। असगरे हे झबरू मगर करेजा सूप भइर। गाँवेक किसान परकीरतिक पहलवान हेकथ, केकर कूबइत जे ओखनिक पछारता। पानी आर हावा साथ देलें किंसानेक छाती चाकर हो जाहइन । झबरू भिनसारे उइठ के हार- कोदार लड़के टाइड़-बारी जाहे । हुवें बिहारिक माय कलवा पानी पंइठा दे हथी । उगला से डूबला तइक दुइयो बेगइत बारी झारीम ओझराइल रहे हथ। घाम चुवाई रहल हथ, भूदा किले? बिहारीक पढ़ावे खातिर, इंसान बनावे खातिर। जखन बिहारीक आजी जीओ हलथी तखनहें असीस देले हेलिक कि झबरूक बेटा, बिहारी एक दिन पुलिस निसपिटर बनतक, जरूर बनतक।

झबरूक परिवार खाॅंट रहे। मोट पाॅंच गो बेगइत, दुइयों परानी आपने, एक बिहारी आर दुइयों बेटी परबतिया आर सुमियाँ। गाँवेक पुरूष पहटे छोटगरे घार, घार के ओसरा में जुवाठ टाँगेक जगहा, घारेक पीछुवाइर में दू कठाक बारी ई साथ हेलक झबरूक आपन दुनियाय । आइझ बिहारीक मेटरिक पास करले दुगो बछर हइ गेल मुदा पइसाक दुखें ऊ नाजू तो कोलेजे नाँव लिखायें। पारे आर नाज् कोनो नउकरियो खातिर कुदा कुदी करे पारे। झबरूक मुंडे एग फिकिर रहे, सोंच हलक अबरी अगहन के आरू बेइच के बिहारीक नांव कौलेजे लिखाइ देव, रीन-महाजन तो लागले हथ। कुँढ़ा-माँड़ से गुजरो कइर लेब, मगर जे तीहा करे हो से दइब नाञ राखे देहे। हौं, आब बिहारियो कोनो चेंगा नखे, आठारह बरीस कं हो गेलक ।

एक दिन झबरू बिहारीक अउरी बइसल देख के हँकाय कहलक.. बेटा ! बइसल से काम नाञ, हिदें-हुदें रीरकलें काम नाञ चले बेटा! तनीकुन टरो-टिसनी करलें चाह पकउड़ी भइर जोगाड़ हो जेतलउ । तखनी बिहारीक मुंड तनी हेंठ होइ गेल। बिहारी मने सोचे कि राँची भागी जेतलक आर कोनो बाबू घरें आर नाञ् तो कोनो होटलें मजुरी करतक। एहे सोंचेक मांझे माय कहलथिन बेटा! तॉय किले एते मसांस करलें हैं, सोंचमत बेटा! हाम आपन हाड़ो बेइच के तोर नांव कॉलेजें लिखाइ देबउ ।

अबरी बछर झबरूक किसमइत चम चमाइ लागलक । आरू अइसन उपजल कि गोटे परिवार के मन अहुलासें भइर गेलक । बिहारी तो आरो अहुलासें अघाइ गेलक । मुदा गाँव में एक के बढ़ोत्तरी दोसरेक बड़का इरसाक कारन हाइ जाहे तकरो पर गरीब के सोब दुसमने हेवे हथ । कहलो हथि, 'माछी खोजे घाव, आर बादी खोजे दाव' एग जमाना हेल तखन घरे-घरे रमाइन, वेद, पुरानेक चोपाइ गावे-हलथ, ओकर सिक्छा पर ध्यान दें हलथ, मकिन आइझ कहाँ गाँव में ऊ मिलतंक! हाँ, दु-चाइर गो पोलटिस करवइया जरूर मिल जेइथु, जे सब के कामें रहइन गरीब के फंसाय के आपन उल्लू सीधा करना। झबरूक गाँवों आइझ इकरीन से बाँल नखे। एक दिन जखन अवरु तिलका कुम्हार के छउवाक छठी में हजामत वनवे हेल तखनहें गनेस बाबू आर महेस बाबू बाते उपचाइर नतिएलथ; अबरीक आरुक उपजा झबरूक किसमइत बदइल देलक। झबरू, आब झबरू नाञ, मकिन झबरू बाबू बइन गेलक । कि झबरू, गलति कहे हियो कि ? गनेस पुछले रहइ । झबरू कहलड़, हो गनु दा ई तरें किले कहलें, हाम तो एग गिरपरता किसान ही आर किसान रहब हमरा हरा जोतेक हे जोततहे रहब, के छोड़ातड़ हमरा हार ठेलड़ से? नांञ् झबरू तोय तो किसमइत वाला हैं, बिहारी जइसन सुपट बेटा; हर-हर ने पट-पट, सीधा और पढ़हो में तेज । अइसन छउवा गोटे गाँवे नाञ् । दुइयो अइसन बतिअइला जइसें झबरू एकदम अनारिए रहे, ई चुटकीक नाञ् समझें पारे। गनेस बाबू बादल पेटें करूवा तेल माखतेहें कहलई, झबरू! तोंय तो धनखेत बेंची-बेंची बिहारिक मेटरिक पास कराउलें मुदा कि पउलें। ई-धंधा रहलें तोंय भीख-मँगा हो जइबें, गोइठाम घीव सुखवलें कि हेतउ । आरो आगु लं पढ़ोलें घरेक खपरा बिक जीतउ, आइझ काइल नरो--नउकरिक कोनो ठेकान नाञ् जे पढ़लाक बादें टटका नउकरी पकइर लेतउ। हमरीन जाइन रहल ही कि तोर छँउड़ा साइंस में बेसी मन धेयान लगावे हे, मुदा साइंस आगु जाइके - आरां सकत हो जाइ हे। टुटपुंजिया खातिर साइंस नखे, इंजीनियर, डाक्डर का कउडी में बने हथ ? लाखो लाख के संपइत चाही । तोंय तोएक कमाइवाला आर सोब बइठुवा खाय वाला। जोदि बिहारी तनी दू-चाइर पइसाक मदत करे पारतठ तब तोर अन्न आने खेतउ, सेले बिहारिक कोनो दउरी- दोकाने लगाइ दीहीं, हमरीन नाञ् चाही कि तोंय तंगहाल हो जो ।

झबरूक हजामुइत बनवल पुरा हो गेलक । खइटला से उठल, करूवा तेल के थापी लेके आपन डहर धारलक । दिन भइर काम करइत-करइत थाकल फझाइल झबरू सांझ बेरा खइटला । लाइन के बोर गाछेक छाहुर तरे बिछावलक। हुवें ओगारी करे आइल बुधना जेकर बारी झबरूक खेत से सटलहे रहे। राम-सलाम भेलक, फिन डाँड़े खोसल खेनिक चुनउटी निकालला। एकरे मइधें बुधन से राइ-सलहा लियेक नेति झबरू टोकलक-एहो बुधन। बिहारिक नाँव कॉलेजें लिखवइलें सोंचले हेलु, हिन्दे दुगो बेटियो छठवा हथ, बीहा-सादी करेक में कुछ जोगाड़ो चाही। तखने बुधन कहले हेल, तोंय जोदि बिहारिक नाँव कालेजें लिखाय देवहीं तो सोनाले सुगंध हेतठ काहे कि आइझ जे नवें से काइल काटवें। बिहारिक जोड़ी-पाड़ी छउवा दिनेस, परेम, बिरजु कॉलेज जाहथ हुवें असगरे छंटाय के बिहारिए रहइ गेलक । गंवाती मइयाक किरपा हेतइ तब जरूरे लिखाइ जितइ। झबरू तनी देरी गुम रहल बादें कहलक हाँ रे बुधन! काइल हामर छउंड़ा घरेक हालइत देखी के कपइस-कपइस के काँदे हेल-मगुर हाम ढाढस देलिअइ, बेटा! धउर बाँध, अदमीक सदो आपन उपर बिसवास करेक चाही। हमरीन के एक अछर से भेंटनखे, मुदा जानो ही कि सबले बड़का धन हे सन्तोख, कहलो गेल हे 'संतोख के डाइरें मेवा फरे हे'। बात फेर के कहला हाँ बुधन भाइ! एहे महीना जाइके ओकर नांव कालेजें लिखाइ देवइ । एहे बतिआइ-चितीआइ में राइत बाढ़े लागलक। दुइयो आपन बियारी खेलका आर फाटल लेदरा डिसाइ के पटाइ गेला। भला पुरवइयाक सिरहिरि, नींद अउते देरीनाञ् मुदा किसानेक नींद अधकचीए रहे हे, धेयान रहे लागल फसिल पर, सुअर-तुवरेक डर, सेले कखनो हो हारियो दे-देहथ ।

चाइर नींद सुतलाक बादें मुरगा बाँइग देलक। झबरू उठल, फरसा कांधे लइके घार दने डिहर गेल, किले कि ओकरा तो मेलानो खोलेक रहे। आइझ पछिम, पहटें मेलान खोलल रहे। चराउत रहे बेसे, मुदा ओनहें रहइन गनेसबाबूक धन खेती। गहूम कर सीजन रहे, हरियरी गुंज मारे।

गनेस बाबू आर महेस बाबू गाँवेक मानीन अदमी रहथ, सगरे से भरल-पूरल, पुराना बी० ए० मकिन रहथ घुरपेंच । दोसरेक बाइढ़ देखनहार नाञ्। बीरू रहे बीड़ साहुकार के बेटा। तिनिओं कते कतेक फँसाइ के एक के चाहर बनवथ भुलथ। गाँवेक पोलटिस गाँबेक रंग उड़ाइ देहे। नरक बन जाहे गाँवेक जिनगी। दोसर दिन झबरू पछिम पहले मेलान खोललक गर्नस बाबू डेगइत डेगइत आइ के झबरू से रागाइ कहलइ, झबरू। तोंय तनि सँभ्याइर के मेलान खोललकर, तोर बरदा काइल-खोइर हामर गहूम खा गेलट। नाज् चेतलें कांजीहाउस दुकाइ देबउ आर एक के चाइर लेबउ झबरू कहलड़ नाज् गनुदा हामर डांगर एते चोर नखा। काइल हाम आपनेहें मेलान खोललें हेलूँ सेले तनी बुझ्झ समझ के बात कर। गनेस बाबू एकदमे ढोढ़सल, मुँह मत लगाउ नाज् तो बेकार हाइ जेतउ।

दोसर दिन बीरू आर महेस बाबूक कानें ई खभइर मिल गेल। ओख. निक छाती तो ऊँचा हो गेलइन । एगो मछरी अउरी उफइर के परल ओखनिक जाल पर। फिन का बीरू आर महेस अधरतिएँ उइठ के झबरूक गोहाइल से डांगर खोइल गनेस बाबूक गेहूम खेतें हाँइक देलथिन । बिहान भेलें गनेस बाबुक खभइर देलथी। गनेस तो दाव खोजलहे बुले हेल। मिल गेलक बेस दाव। आपन खेतें कुदा कुदी गेलक आर चरल देखी के मुंडे हाथ धरी लेलक । - हाय रे गहूम! झवरूक बरद गेहुम खाइ के अघाइ बइसल हथ । ओने झवरू उठल तो बेरा सरे, गोहाइल गेल मुदा हुवाँ बरद नदारद। टुकूर टुकूर देखें लागल। बेचारा चले लागल ओनहें जने रोजे जाहेला। एक-एक डेग अइसन उठावे जाइसें कोनो अनाथ विधवा थाना फरियाद करे ले जाइ रहल है। गनेस बाबूक खेतें आंटते मातर झबरू हाइ-मुँह काठ बइन गेलक । गनेसक मुँहें आइग कर वरिसा, मारे ले दउरल अइसन जइसे कोनो भुखल बाघ आपन सिकार पर दउरे हे। झवरूबा तोय हामर गेहूम सदे सदे चाटाइ देलें, आइहा तो एकदमें उड़ाइ देलें । बेचारा झबरू माटीक मेंढ़ बइन ठाड़ रहे । हजार गो गाइर सुनलक। आर तो आर आपन बरध के कसाइ नियर ढढ़वइत देखी आँखीम लोर लाइन झबरू बेचारा सिसकी लिये लागल। बरध आब काँजीहाउस के चउखट पर। झबरू पर पंचाइतोम केस कर देलक। ओने झबरूक घारेक हालइत दिनो-दिन खराप होवे लागलक। बिहारीक सपना खांटी सपना बड़न रइह गेल । मुदा चार दिन बीतल बादें बीरु मांझा-मांझी रही के आंखनिक मधें पंचाइतेक बेबस्था करा देलक। दुइयो दने से बाह-वाही लुटे ले, मनेक सांपो मईर जाइ आर लाठियो नाज् टूटे पारे; पंचाइत करावेक आर झबरूक निसाफ दिआवे में बीस गो रूपिया झबरू से घुसो लेलक ।

घुइर एतवार, गाँवेक हेंठ टोलें बोर गाछेक छांहुर तरें पंचाइत वइनल। पंच के मुइख रहे वीरू आर महेस। दुइयोक आपन आपनं आरजू सुनबेक मउका मिललक। आखिर में गुनाह झबरू पर उतरल। 200 रू० (दू साँ रूपिया) हरजाना लगाइ देल थिन, उपर से डांइट के कहलथिन कि झबरू आबसे मेलान नाञ खोलतक। बेचारा गरीब झबरू दू-सो रूपिया कहाँ से लानतक । गोड़ो मुंड परलक मुदा, कोनो लाभ नाञ्। झबरू मने कलपे, आर सोंचे, बिना कसूर के ऊ साभिन हमरा सतावे लागल हथी। भगवान तोंय कहाँ सुतल हा? जबर अदमीक जबर बात। कोनो दोस करलें कोनो दोस नाञ् आइझ नाञ होतक पंच परमेश्वर ।

झबरू आपन घरबारिक गँहकी लागाय के पांच सउ रूपिया में बेंच देलक। दू सउ रूपिया हरजाना दे के करिखा मेटालक। बाकी तीन सउ रूपिया से सेहै बछर बिहारिक नांव कौलेजें लिखाइ देलक । आइ० ए० के परिछा में बिहारी प्रथम आइल आर गुरूवो के लउ पालक ।

सच कहल गेल हे विपति जखन आवे हे तर खने खने आवे हे। ई बात हियों भेलक। कॉलेजें करल के तीन बछर बाद बिहारिक बाप झबरू आकचके सिराइ गेलक । सुरुज लखें बाप बेटाक बिना पुलिस बरदी में देखलें डूइब गेलक । तले बिहारिक माय आपन धेंचाक हंसुली बेइच के ओकरा बी० ए० करालिक। सेहे बछर तीन महीना बादें पुलिस इनसपेक्टर खातिर परिछा में बिहारी चुनाइयो गेलक । आझ बिहारी पुलिस इन्सपेक्टर हे, मुदा आपन

बाप के नाञ पावलें मने मन कलपे हे; आइझ बाप रहतल ! मुदा आबकि ? झबरूक सपना पूरा हो गेल हेल। ओकर मोरलहों उबार हइ गेलड़। जेकर आँइखें गड़े हेल ओकर आरो आँइख फूइटगेल। आइझ दुसमनों सहिया में बदइल गेल।

***

जिनगीक डोंआनी

से दिन अंधरे के बेरा रहे। चरय-चिनगुन कर काँव पेंच ललकवारी हावा सँगै मेसाई के वातावरन के सुन्दर बनाइ देल रहे। जंगली आपन घरेक ओसरा में बइसल सोइच हेलक जोदि ओहो कोनो चरंय रहतल।

अदमी के परकीरति से कुछ सीखेक-पढ़ेक बतर मिलते रहे है। मुदा आइझ अदमी परकीरतिक गोड़ा घाइर संग चलता? कखन फुरसइत हेत्रे हड़न कि तनी बोनो झार दने टहलउवा करता? बस पइसा कमाइक आलइत हड़न! ई तो पइसा कउड़ीक दुनियांय लागे। एग हाम ही जे बी० ए० पास करलाक बादो नउकरी खातिंग भटकल बुले ही। नखे पाकिटें पइसा जे कोनो हमरा बेस कहता। आपन घरे में कइ बेर देखले रही, माइओ - बाप कमासू बेटाल कते दुलार करे हथ, सगरे ओकर माइन। हामर टीन कि हे, बस आव तो पेन्सन भोगियो (बेरोजगारी भत्ता लेवइया) होइ गेलूँ। शिक्षित बेकारी भत्ता उठाइ रहल हों। रकम रकम के सवाल जंगलियाक दिमाइगें उठल रहे से दिन ।

जंगली रहे पढ़ल-लिखेल, घर बइत में एकेन बी० ए० । पेट काइट ओकर बाप-पितिया पढ़उलथीन । ऊ आइझ पढ़ लिख तो लेलक मुदा नडकरी नदारद। जंगलीक बड़का भाइ कोलियरीक आफिसें बड़ा बाबू रहा। मंझला भाइ पराभीर सवारी गाड़ीक दलाल। आई० ए० में जंगली हेलक तखनहे ओकर बाप सिराइ गेलथी। माइ पर पढ़ावेक बोझा। बेचारी घेंचाक हँसुली बेची आर दू भइर सोनाक सीकरी बाँधीक धाइर जंगलीक पढ़ावेक खरचा पुरा करलिक । एग आस रहे कि जंगली कमातक तखनी सोब घुइर जाइत आर जंगलीक जिनगियो बइन जाइत। मुदा ई का ? बेचारा कहाँ ना देलक दरखास नडकरी खातिर। सउ-दू-सउ ओकरोग जुवाड़ी नियर खेलाइ देखलक, मुदा छेदामां से भेंट नाम्। कमपीटसनो बहसल-दू-तीगयेर एक बेर तो दरोगाक कम्पटीसने पास हो गेल रहे मुदा चाँदीक जुताक नजीक सोब खैखरी-पटपर। माइ तो पाकीट खरचा आर हेन तेन खरचा देते आजिज हो गेलथी। उनखर आसरा तो आगे टुइट गेलन जखन जंगलीक नठकरी पावेक उमइर पार हो गेलक ।

माइयो गुमे रहे हेलिथ। फिकिरें अनो पानी बाइर देलथि। एके बात - रहइन उनखर मुंड पर जंगलिया पढ़-लिख के बेकार हाइ गेल हे। तीन भाइ में एहे सोबले हीन है। काइल का हेतक जखन तीनोओं फरक-फरक हो जड़ता। बीहो-सादी नाव् करे पारलूँ। जंगली कहे हेल, माइ! नठकरी धारल बीहा करलें बेस होत। परिवार लानेक पहिले कुछ जोगाड़ी चाही। मुदा आब का होतक ने भेल नठकरी, नेभेल वीहा। आइझ हामरो हालइत दिनों-दिन खराप. हेवे लागल है।

एक दिन माइ जंगलीक हँकाय के कही देलथी कि बेटा । तोंय कुछ बरो-विजनीस कर, वइसल से काम नाञ् आर नव् तो टिसनी पढ़ाठ। जंगली ठाढ़ होके माय के वचन सुनलक आर आखिर में माइ के कहलय, माय । कहाँ पावव पुँजी जे बिजनीस करब ? बैंकों के करजा ठीक नां । करजो निकाले में पइरवी आर कमीसन दिये पारे हे। हमर लयाकतो नखे जे दस-बीस हजार रूपियो जोगाड़ कइरलेबक कोनो जबाव नाञ् रहे माय ठीन ।

बेरोजगार जंगली भाइयो-भउजाई के नजरें दूध के माछी हो गेल । भइया, भटजी से बतिआथ तखनी मखमली बोली, आर हुवें जंगली से बतिआथ तखनी मरचाइ लहरल बोली हाँ जखन कोनो काम करावेक हेतक तखनी बजका मिसरी घोरल तरी हेवे। भउजी के वेहे हाल रहइन । गोड़ में तनी धुइर नाव् लागेक चाही, घंटे-घंटे चाह चाही। कधियो पुछबो नाञ् करथ कि जंगली चाह पीना? बस काम घरी जंगलीक ईआइद हेवे हइन। जंगली हाटेंजा, फलना सउदा किनो पारतो। एतने नाञ हँकावे हथी जंगलीआ कहीके, ए जंगलिया ....... ए जंगलिया। डाँके लागेहाथ ठीक बडसनहें जइसे कोनो कचहरी में भुजरिम के डाँकल जाहे फलना हाजिर हो......। कते सुथर नांव हे जंगली मनेक जंगल मे रहेवाला बुइधगर, गियनगर, गंवार नान्। मुदा कहे हथिन कोई जंगली? बुझे पारला असली माने, करें सुथर नांव के बिगाइर के राइखदेलथीन । मनेक कहथ जंगलिया गंवार-बोंका।

जखन जंगली घार से बाहर निकलतक चेंगवइन तनि चउलें कहथ, बुढ़ावा ददा, देखा रे बुढ़वा ददा जा लागल है। तखनी जंगली मुरइक जाहे, मुंडेक केस टमड़े लागे है । मने मन कहे हे, हाँ रे चेंगवइन तीस बरीस के बुढ़ा ही, पढ़-पउस ही। कही लाय तोहनी । तोहनियोक नउकरी नाव् भेटलें - मारल- फिरल चलबें हमरे नियर। अभी रिरका समय हो तोहनिक। सोंचते पागल हो जातक जंगली। कॉलेज जीवन के ईआइद कर के कलपे है। कहाँ गेल ऊ सोब-सँगी साथी ? खराब दिनेक कोइ सँगी-साथी नाञ् । जखन पाकिटें चाइर गो पइसा रहे हेल तखन चाइर गो सँगी-साथी रहे हेला। आइझ बेरोजगार ही तब हामर सँगियो हामर से मिलेक में लजा है। एक बेर ईआइद हे अशांक के बीहा घरी गेल रही। हाँथ छुछे रहे । मुदा साथीक पेयार हुवाँ तड़क ले गेलक । गेलाक बादें खाइ - पीएक पुछहाइर तो भेलक मुदा ऊ ललक नाज जे संगी-साथी में रहे हे। अशोक बड़का नउकरी वाला आदमी हे आर हाम ही छा । सेहे पाँइज के हामरा सुनाक ओकर बोड़ भाइ कहीए देलथी, 'जंगली एकदम जंगली है; कट्सी नहीं जानता है। ई बात हामर करेजाम लागलक। सेहे मने कहलूँ कि हाँ दस-बीसगो रूपिया नाज् दिये पारलूँ सइले कट्सी नाञ जानी हाम। बस आर का कहीं संगी-साथीक घार नाज् जाय के किरिया खाइ ले लूँ।

अकासें तनी-तनी बदरी छितराइल रहे। आइझ जंगलीक माइक हालइत ठीक नाञ्। सोब भाई-भउजाई खाटी संग ओठइंग के बइसल हथ। माय आब पर ताब हेलिक । जंगली ठावें बइसल टुकूर टुकूर माइक मुँह देख के कपसे हेलक। ऊ हालइतें माय जंगलीक दसा पर भीतरे भीतरें कलपे हेलिक। मायके ममता जागलक कोरसिस कइर के कहे पारलिक, जंगली बेटा ! आब हाम 1 जाइ रहल हियो, जहाँ तोर बपा गेलथी।

तोंय बेस के रहवें, आर सुन तो तनि भीरें आइके, "हामर हरकें (100) सउ गो रूपिया हे । तोंय पान के गुमटी लगाइ के बिजनीस नधोंहियों" गाँवादेती तोर बिजनीस बढ़ाइ देब्यू कही के माय टटके सिराइ गेलिक।

***

ओद दीदा

असाढ़ेक राइत, झिमिर झिमिर झइर लागल रहे। रेसमी माइ घारेक ओसरा में बइसल फुटका-खुखरीक तियन चाइखे हेलिक। ढीबरीक इंजोर गोटे धार पसरल रहे । मुदा फतींगाक पौखीक उतपाइतें अनसाइ के रोटी राँधेक छोइड़ देलिक आर बखरिएँ से लानल खुदीक भात आर कंदाक साग खाय लागलिक ।

रेसमी गो, रेसमी! चल गो सुकर महतो घारें तनि अँगना जगाइ आनबइ। सुगिया आर हेमिया दुनू सहलोरिन रेसमीक डाँके लागलथिन । उत्तरी छोटानागपरेक गाँवे अइसन रेवाज रहे हे कि केकरो घारें बिहा हेवे तो गाँवेक मेहरारू बिहाक घारें बिहाक गीत गावे आर हरदी माखे जाहथा ई. काम तो बिहा होवेक दु-चार दिन पहिलेहें शुरू हे जाहे। हाँ तो रेसमीक नाम सुनलें रेसमीक माय कही देलथी कि रेसमी तो तखनहें से सुकर घारें ओगरले हिक।

चानोवलीक घारेक नजीकें सुकर महतोक घार रहे। सुकर घारें ओकर बेटाक बीहा रहे। अँगना जगवेक गोटे गाँव बोलाहइट परल हेलक। सुगिया आर हेमिया दुइयो सहलोरिन रेसमीक डाँके लागलथिन । रेसमी तो पहिलहीं घार से निपता रहे। भला कोनो जुवान बेटी छउवाक बिन नाचल-डेगल बीहाक घारें निचुत नींद परतक? रेसमीक नाँय पाएके दुइयो सहलोरिन सुकराक घारें दने मोहेड गेला ।

रेसमी माय मसोमाइत मेहरारू रहे। गोटे गाँवेक लोक रेसमी मायेक चानोवली के नाँचे जाने हेला किले कि चानोवली 'चानो' गाँवेक जनमल-बादल रहे। जेगाँवेक ऊ रहीक सेहे गाँवेक नाँवे ओकरो नाम चानोवली हेल रहे। गाँवेक घरे-घरेक खभइर चानोवलीक रहे हेलइ केकर घारे छठी हे केकर घारें पूजा हेतइ बा हेवे लागल हइ मानेकि घर-घर कर लेखा जोखा राखे हेलिक । गाँवेक महतो मालिक घारें गोबर बाढ़इन करेक कामें जोहड़ल रहे। महतों घारें कोनो जग-जाजन बा कोनो बिहासादी हेवे सोब घरी चानोवली आपन घार नियर निपेक-पोतेक, चिकन-सुथर करेक फिकिर करे हेलिथ। नेक, नियत के साफ अदमी आइझेक जमाना में कमे भेटा हथ। भुखल अदमीक नियत आर नेक कि सुझे । बोड़-बोड़ मोटाइल अंदमी अइन पइसा - धइन देखी के नियत् आर ईमान धरखा पर धइर देहथ। मुदा आइझ तइक चानोवली कोनी करिखा नांय लगावे पारला। बेचारी आपन पेट-भात चलावे ले, दुगो परिवार के परबस्ती उठवे ले महतो परिवारेक सँग आपने के जोहड़बल हेलिक । बिहाने जखन मुर्गा कोंकरों चों-कोकरो चों करे हेल तेखने से साँझ तइक महतोक दुवरियें लागल रहे हेलिक । हामनियों आपन गाँवेक घारें जखन सहर से जइतलों तो ए चानोवाली मामा, ए चानोवली मामा हिदें आव। मोटा ले ले आइल ही, आइझ तोरे खियाबउ । मारे खुसी से चानोवली ममा नाचो लागे हेलिक जइसे ओकरे कोनो छउवा सहरें कमाइ के घर घुरलक है । महतों घारें लुगा-भात कर बेवस्था हइ जाहेलक। तइयो आपन सँगे एक बेटा कोलहा आर बेटी समीक आहे बखरिएँ रही के पाले पोसे पार लिक । गाँवें आइझो अइसन बेवस्था पावल जाहे कि जोदि कोनो आन (दोसर) अदमी केकरो परिबार में मेसाई गेलक तो ओकर जिनगीक परबस्ती गोटे परिबारेक सदइस पर हो जाहे। जीवन-मरन कर फिकिर उठा ले हथी।

चानोवालीक परिवार तो खाँट रहे। दुगो-बेटी, जीरवा आर रेसमी तकर पीठीएँ एकेग बेटा कोलहा। मोटे चाइर गो बेगइत। माहतोक बनवल. घर में रहेक आर महतोंक खेत-बारी में खटेक, कमाएक ओखनिक नियत बइन गेल रहे।

माहतोक घारेक सोब अदमी चानोवलीक लउ पीरित दे हलथिन। कोनो सवासिन आपन ससुराइर जाइ लागल हे तो पहुँचवं ले बा गाड़ी पकरवे ले सँगे जरुर जइतलिक। कोनो बेटी छउवाक बीहाक बाद बिदाई गिरी हेवे लागल हे तो ऊ लोकदिन बइन के सँगे चइल जाइ हेलिक जइसे ओहे बेटी छडवाक गारजियन है। कि नियर ससुरा रहेक चाही, असगर-दोसगर हिंदें-हुदें ना जाइक चाही, आरो-आरो बातेक फरिछाइ के बतबे वाली चानोवली महतोक परिवार के एक अंग बइन गेल रहे । मुदा गा- बेगाह अइसन बतर आवे हेलक जखन ओकर भीतरेक भाव के ठेस लागे हेलइ आर ताब ओकर सुरइत अइसने बइन जा हेलक जइसे कोनो टुवर छउवा टुकूर टुकूर ताइक के मुंह लटकउले हे।

जखन कोनो अदमी से काम लिएक रहे हे तखन लउ आर अपनउतीक नाता गोता हइ जाहे। सवारथ बस परेम बाइढ़ जाहे । मुदा बतर सिरें लउआर अपनउतीक परीछा हो जाहे। चानोवली संग एहे बात रहे। बेचारी आपन के महतोक परिवार सँग मेसाइक-फेंटाइक न्यिर जोहड़वल रहे । मुदा बतर सिरें सोब बेकार । आइझ जब सुकराक बेटाक बीहा रहें तो चानोवाली आपन घारे असगरे बइसल मने भाम हेलिक कि हामनि गरीब लोकेक एहे बात है। हामनी महतोक परिवार खातिर कि नाव् करे ही। ओखनी के आपन आपन नियर बुझे हिअइन। लठ-पीरित बाँटे भूले ही आर ओकरिन हमरा आपन बुझने नाज् करथ। कएक बेर देखले रहौं सहरेस जखन महतोक छउवा-पूता, नाती-नतीनी आवे हथ तखन ओखनी सब बोडके गोड़ छुवे हथ आर हाम हुवें रहे ही मुदा हामर गोड़ सुन रहे हे। कई बेर सुनलहों रहों कि हाम भुनी ही, गोबरकढ़ी ही, से ले कोई हामर गोड़ नाञ् लागे हथ। सोब भले चानोवली ममा कहे हथ मुदा केकरो दिसा नाञ् कि हामहों ओखनिक सँग बइसके बचके पारों। जखन कोई हामरा ममा कहे हथ तखने हामहों नितरा ही। सोचें ही सोब हमरेहे नाती - नतकुर हथ आर धउर बाँइध एहे बखरिएँ रहे ही। कि ओखनी हमर गोड़ लागेसे छोट हइ जेतला? आब हामर अवस्था तो मोरेक गुंकुर हो गेलक । आपन जिनगी बखरिएँ खपाइ देली मुदा आइझेक पढुवा - लिखुवा छउवइन हामरा -दहिनाइ दे हथ | हामनी जइसन देहाती मेहरारू से कोनो हालो चाल नाञ् पूछे हथ । ई बात के टीस चानोवलीक गोदिएँ उठल रहे। ओकर भाभनाक ठेंस लागल रहे, आइझ - काइल के परिबेस से।

एक दिनेक बात ईआइद है। दूर्गा पूजाक बेरें हाम राँची से घार पहुँचल हेलो। घारें पोहेच के आजा, आजी, माय, बाबुजी, काका, काकी आर बोड़ सोब के गोड़ लागलूँ मुदा हुवें ओसराक दुवारिएँ चानोवली नमा ठाढ़ हेलिक सेकरा गोड़ नाञ् लागलों । ई बेबहार ओकरा एकदम पसिद नाञ् परलइ । ओकर मुँह लरकल देइख के कोनो चेंगओ कही देतल कि आइझ ओकर उपरे कोनो भारी बिपइत पइर गेल हे । हामतो तलबीच करे लागलों कि आइझ हामर से भारी गलती हो गेल है। मने देइरे बिचार उठला सोंचलों अबरी कधियो राँची वा कहीं से आवब तखन जरूर चानोवाली ममा के गोड़ लोग और आपन ई गलती के पाठ करब से दिन से चानोवाली मामा महतोक परिवार के, जेकरा ऊ बखरी कहे हेलिक तकर से आपन के दूर समझे लागलिक । हाम से दिन-राइत सोंचतहें रहलों कि चानोवाली ममा हमनीक परिवार के राइत दिन सेवा करेहिक, अंग बढ़न गेलिक, मुदा हामनी कि बेस माइनता दिए पारलिअइ ? सोबकर मइथें एके बात दुकल रहे- 'छोट जाइत घराक गोबर कढ़ी'। एग आरो बात ईआइद हे - दशहरा के बतर रहे। बखरिएँ सोब अदमी नावा नावा लुगा पेंइघ, पइसा कउडी लइ के मेला चले लागला । केकर मन बेस-बेस पिंधेक- खाएक नाञ् खोजे । मुदा चानोवाली ममाक नसीब कहाँ? हियाँ समाज के बेवस्था गड़बड़ाइल हे। एक बेबस लचार हे तो दोसर मोटाइल। एक के- पासें चवन्नी तो दोसरेक पासें चार लाख बैंक बाइलेंस। आँचरा में बाँधल चवन्नी लइ के चानोवली ममा मेला डहइर गेलिक । डहरें भेंटाइल रहों तो कहलिक- तोहनी हामर ले एक लडूवा ले ले अहियाँ। नाञ् लानबाय तो आपन दुवारिएँ छिनबउ। कहेक भाव एते मोलाइम रहे कि हामर आँइख गिल हो गेलक ।

चानोवली ममाक अवस्था दिनोंदिन गिरते हे जाहेलक । कहल गेल हे बुढ़ा आर चेंगाक स्वभाव एक नियर हे जाहे । किले कि बुढ़ा वा बुढ़ी खाइ खातीर बेस बेस खोजे हथा चेंगवइन नियर जीकसोवादी खोजे हथ । हाड़ पाँजर तनी ढ़ील हइ जाहन। चानोवली ममा के बेस- बेकार तो खाइ खातिर बखरिएँ मिलिए जाइ हेलइ । बखरिएँ लानल कलवा - बियारी से गुजर करे हेलिक । एक दिन जेकर डर रहे थे हे हो गेलक। ऊकइस के S बिमार पर गेलिक । बखरिएक दुवाइर छोइड ना कहीं गेलिक कहीं दवाइ खातिर, कोनो दउरा दउरी ना करलिक । आखिर में चानोवाली ममा पाँच दिन बेमार रहल के बाद सिराइ गेलिक ओकर गोड़ लागेक साघ हामरा नाञ पुरा भेलक। मोरल के खभइर जइसेंहे मिललक वइसेहैं हाम घर पहुँचलों। किले कि हामरा एक बात ईआइद हेलइ । ऊ जखन जिन्दा रहे से हे घरी कई बेर कहले रहे कि ओकर मोरल बाद बखरिक सोब नाती पूता टाँइग के नदी धइर लानथिन आर एक लोरहा काठीं दे दथिन । - बड़ी भारी मनें, आँखी लोर ले-ले चानोवली ममाक नदी पहुँचाइ आनली 1. एक लोरहा काठीओ दे देली।

मोरल बादे अदमीक गुन टा ईआइद परे है। ढेइरे दिन तइक महतोक बखरीक सोब अदमीक चानोवली मामाक ईआइदों भेल रहइन । आर तो आर एक दूध टूटा चेंगाक जे नियर बँचवल रहे सेकर उपगार तो ऊं जिनगी भइर नाञ भुलाइ जुकुर हे । हामर घारेक अगुवा में निरमल महतोक घार रहे। जखन चानोवली ममा मोरल रहे से घरी निरमल माहतोक माय छाती ढ़ेढाय काँदल रहे । "हाय रे दइबा, चानोवलीक कइसें लइ गेलें ' .......। हामर छउवा निरमल के आपन दूध पियाके पोसले हेलिक । अरे निरमल बेटा तोर माय आइझें मोरलव रे। हामर बोड़ दी दी तोय कहाँ चइल गेला हो रजवा । निरमल महंतोक माएक छाती-ढ़ढ़ाय काँदेत देइख कइ गो जेनी हुवाँ जमा हो गेलथिन । बतिआइ लागला जे निरमल के माय के दूध नाञ् हवत रहे से घरी आपन दूध पियाइ के चानोवली निरमल के पोसले रहीक ।

बखरिक सोब अदमीक दिसा भेलइन जे चानोवली मामा केतना महान रहे। आपन छातीक दूध दोसर छउवाक नावें दान कर देल रहे तखन-कहाँ छोइट जाइत के बात उठल । दूधेक, मायेक करजा कोई चुकावे पारल हे? एक लोरहा काठी दड़के ओकर उपगार से मुकति मिले पारे ? चानोवली ममाक ईआइद कइर सोव आपन दीदा ओद करी लेला ।

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हुब

पुस महिनाक दिन, अंधरेक बेरा कनकन सिलोही बोहे लागल हेलइ । घार के पेछुवाइर में दामोदर बोरसी ताइप ताइप गइसल हेल सेहे घरी गुनेस्सर बाबु डाँकलथिन, ऐ-रे दामोदर घारे हैं। आवाज आइल हाँ घारे ही, हिंदे बइसल ही, कि काम हेलय ? एक रे तनि बारि चासेक हलइ । तनि जाँय हारा जोइत दें, गुनेसर बाबु कहलथिन आर घार घुइर गेलथिन । घार घुड़र के तोसक लागल पलंग पर नेहाली ओइढ़ पसइर गेलथिन । पथरलेहें सिताराम-सिताराम जपे लागला । घड़ी बितल, दू घड़ी बितल, घंटो बित गेलइ मुदा दामोदर नाञ् आइल। आब तो गुनेसर बाबुक एडीक लहइर कपार चइघ गेलक । पलंगे पर बड़बड़ाय लागला सार भुंइया के दू चार सेर घरामें हय तकरे पर - फुटनिया करे लागल हैं। बड़का पढुवा भेल है। कॉलेज ने पढ़े लागल तो बड़का नेहाल करे लागल। किंसान घर कमाइल बिना गुजारो चलतइ । घार में भुँजल भाँग नाञ् एने-ओने टाँग । चाइर गो कुरय पहिलेहें उधार खइलक आर चलल 'हे बाबु बनइले। हार जोतेक नावें कलपतर जोरे हे। अच्छा बछा बुझइबठ । तुलसीदासो आपन रामाइन में ठीके लिखलथी हे 'ढोल गंवार - सुद्र पसु नारी ई सब ताड़न के अधिकारी । एहे बड़बड़इते घार से निकइल के दामोदर घार दने मोंहेड गेला ।

दामोदर घर जइसहें गेलथ देखे हथ कि दामोदर कॉलेज जाय ले संपरल है। दामोदरेक संपरोही देख के उनखर मास जरे लागलइन । दोढ़इस उठलथ सरम लागे हउ कि नाञ् हार जोतेक छोइड़ कॉलेज जाय लागल हँया कॉलेजें पढ़ीहाँ; पहिले पेट के जोगाड़ कइर ले, जहाँ तोंय खड़ा हैं ओह हमरे जमीन है। ई जमीन में हमर पुरखा तोर बापेक बसउलथुन । जो जोदि हमीन घारें नाञ् काम-धाम करबें तो हामर जमीन छोड़ड़ दें, कुरय 'करजा तोहर राख आर उइड़ जो ताबे तो बेस आर नाञ् तो निकाल बाहर करी देबउ । असल भुँइया हैं ते हाड़-कुइट के कमो-धम आर अजवाइ दिन ले मछरियो - खोखरा मार। पढ़ाई कोनो हाँसी ठठा नाव् । माइनस पलस पढ़लें तो गोदी पगलाइ जितउ। आरे कुछ कहतलथी लकर पहिलेहें दामोदर घर से बहराय गेल आर घुइर के गाँव नाम आवेक किरिया खाइलेलक ।

दामोदर सात भाई में सोब ले छोट रहे। ओकर बाप गुरदयाल राम गाँवेक जमींदार घर जिनगीभइर खइट मोरल। ओकर मोरल बाद छवी बेटवइन. चन्दननगर काम के खोजहाइ रें चइल गेलथिन। एकेले दामोदर घारें रहीगेल रहे। दामोदर गाँवेक बोड़ किसान गुनेसर बाबु घारें कमियां रूपें बहाल भेल रहे। दस रूपिया रोजाना पर खटे हेल रहे दस रूपिया रोजाना से कोनो नियर आपन आर आपन मायके पेट चलवे हेल। पेट काइट के गा- बेगाह कागज कलम किन पढ़ाइयो-लिखाई करतल। पढ़ेक ओकर सुरू से साध हेलय। सेले कोनो रकम मैट्रिक करी लेल रहे। आब ऊ कॉलेजें नामो लिखाइ लेलक । हरिजन होवेक चलते सातवीं से मेटरीक तइक 'छात्रवृतियो' पावला । एहे छात्रवृतिक पइसा से अंगो पेंट कइर ले हेल घार में असगर बुढ़िया माय घार ओगरे हेलिक ।

जे दिन दामोदर घर से हजारीबाग जाएक ले अकचके निकलल रहे से. घरी ओकर माय कहलें रहई बेटा तोंय । हमर खातिर फिन जल्दी घुरिहाँ । - पाकल आम के कोनो बिसवास नाञ् कखन जे गिर जाइ ब। माय के मुँह से ई बात सुइन के दामोदर के भइर भइर आंइख लोर हो गेल रहे । मुदा गुनेसर बाबुक ढ़ोढ़सल बात के ईआइद कर के, पढ़ लिख के एग बंस अदमी बने हुब के चलते मन मसोस कर के रही गेल। मने-मने माय के परनाम कइर चलल रहे से दिन।

हजारीबाग पहुँचल ते काम के खांजहारी करे लागल । मुदा ओकर लाइक कहीं काम ना भेट लइ तब रिक्सा चलवेक काम शुरू करलक । साँइझे से आधा राइत तइक रिक्सा चलवंक आर दिन में कॉलेज करेक ओंकर रोजिनाक रूटीन बइन गेलइ। अंधरेक बेराउ ले दू गो टिसनी पढ़बेक पकइर लेल रहे। अबरी बछर ऊ बी० ए० 'ऑनर्स' प्रथम श्रेणी से पासो करल ।

अपन रिजल्ट के लइ घार घुरल तो ओकर मायेक खुसीक ठेकाना नाञ् परेमेक जोरें लोर बहराइ गेल रहे। माय कहलड़ बेटा। आब एकेगो साथ हे जे तोंय बेस नउकरी पकड़ ले।

माय के आसिरबाद लेके दामोदर फिन सहर चइल आइल आर आपन धंधा में लाइग गेल। दिन के समये दरोगाक कम्पीटसनेक तयारी करें. धुवा लागल। मार्च महीना में परीछा में बसियो गेल रहे संकरे रिजल्ट के आसरा में कहीं नउकरी खातिर दउरा दउरी ना करल। मायेक चिन्ता मुँड़े राइख - कुछ पइसा जमा करे लागल। संजोगेक बात, एक दिन रिक्सा लड़ के धर बुरेक ले चललक । डहरे माय खातिर 2 किलो लड्डू आर सारी-झूलो किन लेल रहे ताल पेपर वाला भेटाय गेल रहे पेपर किनेक ले डॉकल, तो पेपर. - वाला आइल आर पेपर दे देलक । पेपर उघार के जइसेहें देखेहे दरोगाक - बनेक कम्पीटसन के रिजल्ट पर नजर पइर गेलड़। आपन रो० न० देखलक तो दामोदर मारे खुसी से नाचे लागल मने कहल आब मायके आखिरी साध टा पुरा हतय ।

घार घुरल तो देखे हे जे ओकर माय खाटी पर परल घर घरी करें लागल हिक। माय के गोड़ लाइग चाल करल तो माय चाले नाञ् करलिक । आँइख खोइल देखलिक तो चिन्ह लेलिक कि ओकर बेटा दामोदर ओकर नजीकें खड़ा है। हाथेक इसाड़ा से कहलिक बेटा हाम आब जाइ रहल हियो, निके सुखे रहियाँ माय के ई दसा देख के दामोदर कपसे लागलक । मुदा मन के धठर बँधाई माय के कान तर कहलक- माय ! हाम दारोगाक नउकरी खातिर चुनाई गेलहियो । माय के आँइख खुसी से लोर बहवे लागल | आपन हाथ दामोदरेक उपरे राइख माय सिराइ गेलिक ।

घर में दामोदर असकरूवा हइ गेल रहे। दरोगाक नउकरी पकरल तो गाँव से ढ़ेइरे दूर हो गेलक । सोब करजा महाजन से निपटल तो घुइर बछर आपन बिहो करलक । आब तो आपन परिवार संग नउकरीए पर धनबादे रहे लागल।

दुःख सुख अदमी जिनगी में बराबर लागले रहे हे। कखनो दुख तो कखनो सुख दुख में जे आदमी काम आये ओकर से बड़ढ़ के बड़ आदमी आर कोई ना। गुनेसर बाबु अपन परिवार सँग तिरिध करे ले गँगा सागर गेल रहथ । उनखर माय तिरिथ से घुरे घारी बेमार पइर गेल रहथी। हालइत एतन, खराप हर गेलइन कि बुद्धि आब पर ताब हइ गेलिक। ध इनबाद आइ के गुनेसर बाबु डाक्डर से देखइला आर अस्पतालें भरतियो कइर देलथी। चाइरे दिन में चार हजार टको खरच हइगेल । डाक्डर कहल जे पेटेक ऑपरेशन करे पारतइ। जल्दी ऑपरेसन नाञ् भेले बुढ़ियाक बचवे नाव् पारबाय। आबतों बड़का समसिया भइ गेल रहे। ऑपरेसन में पाँच हजार आरो खरच बइठतइ। आर कुछ पइसा तो पहिले हे जम्प करे पारतइ। कहाँ से तुरत अतना पइसा अवतइ? एहे सोंचे लागला गुनेसर बाबु । एतनेहें में ददा ददा करले दमोदर पहुंच गेलक । पहुंचतहें पुछल, कि बात हय? किले ओखनी हियाँ ई हालइत में बइसल हथ ? गुनेसर बावु नोब बात कही देलथी आर समसियो राखला। दामोदर ढाढ़स बँधोलइ आर झट रूपियोक जोगाड़ कइर देलय। ओतने नाञ् उनखर परिबार सोब के आपन डेरा लाइन खुब खातिर भाव करलक । डाक्डर के ऑपरेशन सफल रहल। बुढ़ी माय बाँइच गेलिक दस दिन तक अस्पताल में रहल बाद गुनेसर बाबु परिवार समेत घर घुरला जब तइक उनखर माय अस्पतालें रहलिक तब तइक उनकर खातिर दामोदर आपन माय नियर फल-फूल खिअउले रहल दामोदरेक ई उदारता गुनेसर बाबुक एकदम से बदइल देलक । गाँवे पहुँच के गुनेसर बाबु आपन मानसिकता पर बहुत अफसोस करला। जेकरा छोट जाइत कहीके तिरस्कार करेहेला, दुर दुरावे हेला ओहे उनखर इज्जइत बँचवलक। ऊ मने भाँफला, जे जाइत से कोई बड़-छोट नाञ हेवे सोबले परधान करम है। गाँवे जेतना पढ़ल - लिखल छउवा बढ़ता गाँव ओतने 'तरक्की' करतइ।'

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