चाभी-काठी खोरठा नाटक (श्रीनिवास पाजुरी)

चाभी-काठी खोरठा नाटक (श्रीनिवास पाजुरी)

 खोरठा व्याकरण

 पात्र-परिचय

पुरुष पात्र

1. शंभु : एक क्रांतिकारी युवक (नायक)

2. कालूराम : साहूकार / जमींदार

3. बाबा : गाँव का एक बूढ़ा

4. नाती : एक लड़का

5. राघो : शहरी युवक

6. रतीराम : शहरी युवक

7. संतू : कालूराम का लठैत

8. सिंह जी : कालूराम का लठैत

9. श्रीपति : ग्रामीण

10. फकीरा : कालूराम का मुंशी

11. जादू : ग्रामीण

12. मोती (चुटरा बाप) : बिदूषक

13. खेपा : ग्रामीण

14. रोहण : कालूराम का बेटा

स्त्री पात्र

1. शोहागी : शंभू की माँ

2. समरी : ग्रामीण

3. चुटरी माय : विदुषक की पत्नी

4. दमयन्ती : एक शिक्षित युवती

5. करमी : दलाल औरत

पहिल दृश्य

शम्भु - ओह! गरीबी की अभिशाप ! गरीब के समीन हीन दृष्टि देखत- तुच्छ बुझथ विद्या, बुद्धि तेज एकर आगू बेकार एकदम बेकार। कोइ मानुष नाय बुझथ- कोइ आँइख नाय लगये। चाहे ऊ पंडित होक-गुणवान होक ज्ञानवान होक रूपवान होक कुलवान होक ओह! साँपेक दिष झरे, किन्तु गरीबीक विष झारले नाय झरे, इ जुवान के असमर्थ बूढ़ा कर देय। गली-गली भीख मँगाइ छोड़े। एकर चलते मानुष की नाय करे? सुन्दरी रूप बेंचे । अबोध शिशु गली-गली भीख माँगे। हे भगवान! इ कौन पापेक प्रायश्चित। हमर ऐसन गुणवान लोग के गरीबीक आगी झुलसे होवे है। ओह! कि आश्चर्य! मुरखो हमरा मुरूख बुझथ जकर ठीन दू पैसा हे ऊ आपन के भगवान बुझथ पुण्यवान बुझथ। ऊ आपन के भगवानेक असल बेटा मानता किन्तु सभेक भीतर ऊ सब कौन पाप नाय करे। ताब समाजे ओहे सभेक पूछ होवें हें ओहे सब गन्य-मान्य अगुवा। ताव कि मानुष के परित्राण नाय? दस-पाँच लोक सुख करते रहता बाकी ऊ सभेक गोड धोते रहता।

भगवान! हाय भगवान! डाकते रहता। सूधे भाइग के दोस देत । तो त्रिया चरित्रम् पुरुषस्य भाग्यम् देवो न जानाति कुतः मनुष्यः केर कथा 'टा बेकार? जोदी बेकार तो गरीब के भगवान मुँह काहे देलथीन? साधं काई देलथीन? पेंट काहे देलथीन? राज पुत्र कि धनी-मानीक बेटियों तो कखनू -कखनू गरीब, किन्तु सुन्दर स्वस्थ जुवक के आपन हृदय देय के तृप्ति पावें, निश्चय एकर में भेद हय. चली-इ भेद के खोज कइर देखी।

(प्रस्थान )

दोसर दृश्य

सोहागी - बेटा, तोरा झूठे एते पदैली रे । दस बच्छरेक नाय हलें तखन तोर बाप' मोइर गेलथुन । ताब हम हिम्मत करली। नाय खाय के तोरा खियली। सास-ससुरेक देल जमीन-बारी बेंइच देली । ताव सोचली तॉय पढ़। तॉय मानुष हो । किन्तु?

शम्भु - किन्तु कि माँय? एखनू हमर मानुष होते कसर हे। मानुषेक घरम • पालन कि हम नायं कर ही? हम कधियो तीरां अपमान करल हियो? कोन्हो बाते कधियो! दुख देल. हियो? तोरे नाय गाँव घरेक ककरो? डॉ. राड़ी-रूड़क, दीन-दुखीक सम्पति हडपेले जे डाइन . ऐसन डकडकाय बुले जे बातेंक ठीक नाय । ओकरा तोंय मानुष 'बुझे! तो-तोर इटा भूल। मानुस भेलें हृदय चाही। दीन-दुखीक उपर प्यार चाही आर नाय तो मानुष आर गोरु फरक नाय ।

सोहागी - नाय - बेटा नाय! तोय उल्टा बुझे हे हम तोरां शकेक आँखी देखी। हम कि तोरा नाय जानी रे तोर ऐसन गुणवान चरितक बेटा पाय के हम आपन भाइग मनवे ही किन्तु आझुक युगे व • खातिर टाका चाही बेटा।

शम्भु - टाका! हम जानी नाय! टाका नाय भेले मान नाय, सम्मान ना किन्तु कि करी । जाव तक नौकरी नाय मिलेहे।

सोहागी - हम तो नोकरी-ए करे कह-हीं बेटा।

शम्भु - किन्तु नोकरी मिलले ने?

सोहागी : - एते बड़ कोलफील्ड- झरिया, धनबाइद, सिन्दरी, माराफी लाख-लाख लोक काम कर हथ । आर एहे धरती सरंगेक सु लुट - हथ । किन्तु तोर खातिर एगो छोटे-मोटे कोन्हों सों-पचा टाकाक काम नाय बेटा।

शम्भु - कोलफील्ड ! झरिया ! धनबाइद! सिन्दरी! आइझ आपन लोकेक पूछ नोकरी खाली होवे है, किन्तु अफसर सभेक आपन लोक आगवे । नम्बर लगाय के बैसल हथं । तोंय नाय जाने माँय ।

आइझ सब आफिसें आपन आपन झंडा गाइड़ के. पालथी माइर अजगर ऐसन बैसल हथ लोक । .

सोहागी - हिम्मत नाय हार बेटा! एक बेइर जो देख जोदी कहूँ बाबू भैया दया करथुन ।

शम्भु - अच्छा, हम देख ही ।

(शम्भुक प्रस्थान)

तीसरा दृश्य

बाबा - आइझ - काइल तोहनी जुवान छोड़ा सब हमनी के कुछ बुझवे ना. करा हा । हमनी ऐसीं रोदें चुइल नाय पकवल-ही-रे । जाने. ए उमरी कतै कते, कि नाय देखली । कते लोक उजइर गेला क बइन गेला ।

नाती - आर किं-कि देखलें बाबा?

बाबा - सुना थिर होइय के सूना हम तोरा दुनिया दारीक बात सुनवऽ- ही पोथी लिखल इ गुला नाय पैवें के एते खोइल के लिखत ई गुल 1 हमर ऐसन बूढ़ा पूरनिया ठीन पइवें ।

नाती - हाँ बाबा! कालूराम ने कि भीख माँगते माँगते हीयाँ आइल हलइ त तुरते एते बड़ धनी कैसे भै गेल?

बाबा - ओहटो सुनव-ही रे बोका। जाने! पहिल जे दिन ऊ डीओ आइल हल- देही लूगा नाय हल सड़क घारे भूखे-पियास आय के एगों गाछ तरे बैसल जेठ महिनाक दिन लूक चल-हले भूखे लोक टा झमेर गेल। हमनी दोड़ा-दोड़ी कदर पानी लापा थापी करली- खिऐली- पिऐली तकर बादे, तवे होस आइल, महतो सब काड़ा-बगाल गोरखिया राखलथीन तकर बादे धीरे-धीरे दू, तीन बच्छरे सन सनाय उठला दिन महर तो महतोक काड़ा टेके आर राती मैड़े बहियार खेते धान । अब सूदे टाका लगवे लागलक भौरी करे लागलक। पाँच बच्छर भैते-भूते तो दोकानदार बैन गेला आर आइझ देखे हैं? की गह-यही!

चौया दृश्य

शम्भू - अब कहाँ जाय! एते बड़ धनबाद किन्तु जानल-सुनल ए गो लोक नाय जेकर ठीन उड़ाय के दुगो बातो करी। किन्तु राती जागल हे चौधरी जी ना! ना!! ऊ तो अब देहात दिगो ताकियो नाय देखय। एगो बेचारा बावर्ची है, जे काबलिक भात पकवे। किन्तु ओकर आपने ठीक नाय, (मने-मने) और काहे देरी करी चली टिसने राइत काटी। किन्तु सिपाही से बेसी तंग तो हमरा हमर पेट कइर • रहल है। आइझ बेचारा के कुछ नाय देल ही। ओह! अब तो पेटेक जलन नाय सहल जा है। भला, गोटे दिन पानी पी-पी ही। आइझ मांगे होवत ।

केकर से मांगी। के हमर ऐसन जुवान लोक के भीख देत । झूठे दूगो बात कहता पासों ऐसन कुछ नाय जेकरा बेचीए (पाकीटे कलम टा देखे है हाथे कैसे हमर प्रिय कलम एकर से तो हम बी. ए. पास करल डी ई हमर बन्धू एकरा बेचें होत? एंकर हम नाय बेचव। आइझ भीख मांगे हे होत किन्तु आइझ हम लाचार प्राण बचवे हे होत। माय आशा लगाय के बेसल होती। देवी-देवता मनव होती ।

(कुछ आगू चैल जा हे)

पाँचवा दृश्य

( एगो दुकानदार ठीन)

शम्भू - भाई एक सवाल है।

राघो - सवाल बवाल रात में नहीं और तुम्हारे जैसा हट्टा-कट्टा आदमी को सवाल कहते शर्म नहीं आती।

शम्भू - कुछ पहले तक शर्म आती थी संकोच होता था, किन्तु अब नहीं ।

रतिराम - (सामने खडा था) बोलो जी! क्या बात है।

शम्भू बात कुछ नहीं साहब। आज दिन भर कुछ खाया तहीं। भूख से देह थर-थर कर रही है खड़ा नही रहा जा रहा है।

राधो कहाँ घर है जी? इसी जिले के लगते हो।

शम्भू - हाँ बाबू! मैं इसी जिले का रहने वाला हूँ।

राघो - इस जिले के लोग बड़े कोहीं होते है आलसी होते है। आज घर में खाना है, तो काम ही नहीं करेगे तो दुख भोगोगा कौन? हम तुमको काम देते है पैसा चाहिये? तो उठाव उस गाठ को चलो स्टेशन जायेंगे! इतने पैसे के तो मै टिकेट कटा सकता हूँ। किन्तु तेरे लिए पैदल चल लूँगा ।

शम्भू - क्षमा करेगे बाबू! आपने इस जिले के भिखमंगा को देखा है। यहाँ भी आदमी रहते है। लेकिन अच्छा बाबू आपने बड़ी कृपा की है यदि मुझे चार आने पैसे दे दें तो कुछ खातुं । और लेकर चलूँ।

राघो - और भाग गया तो?

शम्भू - अच्छा बाबू! चलो। 'माइ गॉड'- हे भगवान.. (कहते हुए उठाने लगता है ।)

रतिराम शम्भू - तुम पढ़ा लिखा आदमी मालुम होते हो जी ।

शम्भु - बी. ए. पास हूँ बाबू -!

रति - ऐसी बात । आवो मेरे साथ छोड़ दो गठरी। देखो जी! कल से हमारे स्कूल में काम करो, लो 200/- दो से रूपये हैं। इन्हे घर भेज दो। अभी जब तक रहने का बन्दोबस्त नही हो जाता है। तुम हमारे स्कूल में ही रहो मैंने होटल वाले से कह दिया हैं।

(दोनो जाते है)

छठा दृश्य

(कालुराम - संतू)

कालूराम - जो तो मंगला के डाइक आन। धान काटल-माइल भइ गेल । किन्तु हमर टाकाक कोन्हों चिन्ता नाय । घरे नाय रहतो-तो ओकर बेटा-टा के कैह दीहें ऐलें पठाय देत । हम बेस केह के छोइड़ देही तो ऊ फूलल जाहे ।

संतु - अच्छा मालिक।

(श्री पतिक प्रवेश)

श्री पति - जोहाइर मालिक!

कालुराम श्री पति? आइझ बहुत दिन बाद।

श्रीपति -हाँ मालिक! आझ काइल घरे नाय रह-ही। तभी तनी आवा-जावा कम होवे हे।

कालुराम - आर चास वास?

श्रीपति - भतीजा-टा कर हे ।

कालुराम - तो, आइझ इ दिगें कैसे?

श्रीपति - थोड़े टाका चाही मालिका भतीजा टा के बीहा देबै।

कालुराम - जरूर ! जरूर !! हम इ कामें बाधा नाय देबो । इटा तो तोर आपन घर जतना चाही ले जो। तोहीं काहे? गाँवे ककरा नाय देल-ही (तनी सोइच के) पाछे आगुओक कुछ बाकी हो ने?

श्रीपति - नाय मालिक, हम छेदाम-छेदाम वसूल कइर देल हली।

कालुराम - वसूल कराय खँसीआ नाय देल होवें। हम तखनी कहल इलियो एगो खेस्सी लागतो। नाय तो खातॉय नाम चढ़ले रहतो।

श्रीपति - नाय मालिक! उटा नाय पारवो।

कालुराम - नाय कहले कैसे चलतों। हमनीक एहे टा तो लाभ।

(बाहर दिगे देख के) -रे फैकरा सादा कागजे टिप ले लिहे तो ।

(फकीरा आवे हे, आर चार-पाँच गो सादा कागजे लै-ले हैं।)

श्रीपति - कते टीप लेबे बाबा!

कालुराम - हमें तो आर बेमानी नाँय करs हियो । -

श्रीपति - टाका टाके गाठी बाँधे हैं आर राम-राम कैह के जा है।

कालुराम - (मनें - मनें) अबरी बेटाक हीरे-टॉय बड़ी दिन से आइख हल।

सातवाँ दृश्य

(कालुराम - जनताक संग)

कालुराम - भाई सब हम मुखिया खातिर डॅड़ाइल ही हम आशा करी तोहनी हमरा भोट बैंके जीतैबा, जनताक सेवा ओहे करे पारे जकर उपर लक्ष्मी, मायेक कृपा है। शंकर बाबाक आशिर्वाद है। ऊं कि सेवा करत जकर घरें चुटरी गिरले राम-राम करे। हमर कि गुण हे कि नांय उटा तोहनी समीने बेस से जाना। हम कैसन? हमर दिल कैसन कते उदार कते दयाक भावे भरल। तोहनी के कहे नाँय हो तो ।

जादू - प्रतिवादे बेसल एखन तो मुखिया भेले एकेक सो - तो नाँय एकेक दशा बाबा मुखिया कहा सरपंच कहा एम. एलें. कहा एम-पी कहा सब आपन पेट भरत जनताक कंकरी चिंता नाँय

आठवाँ दृश्य

रतिराम - शम्भु बाबु आप कविता भी करते है कल रात आपने गजब की कविता पढ़ी। मैं आवाक रह गया।

शम्भु - धन्यबाद सेठ जी अच्छा हुआ आपसे भेट हो गई। कवि सम्मेलन से वापस आने के बाद मैंने तय किया है कि अब नौकरी नहीं करूगा मैं गाँवों में जाँऊगा और जनता जनार्दन की सेवा करूंगा।

रति - यह क्या बक रहे है आप शम्भु बाबु आप जैसा योग्य शिक्षक पाकर मैं अपने स्कूल का भाग्य सराहता था। किन्तु आज यह क्या बक रहे हैं आप?

शम्भु - ना! सेठ जी मैं पागल नही। मैं ठीक ही कह रहा हूँ। मुझे गाँव पुकार रहा है, गाँव भूख प्यास से तड़प रहा है। मुझे बुला रहा है। मुझे जाना ही पड़ेगा। किन्तु मैं ऋणी हूँ। आपने मुझे मुसीबत के समग्र मदद की है। -शरण दी है- यह मैं नहीं भूलूंगा अच्छा सेठ जी मुझे क्षमा करेगे ।

रति - जैसी आपकी मरजी । मेरी शुभ कामनाऐं आपके साथ है।

नौवाँ दृश्य

(चुटरा-चुटरी)

मोती - देख चुटरी माय! हमर ऊ दिन नाय जखन हम किरानी कर - हली। अब हम साहेब, आफिसे हमरा समीने साहब कह हथ । किन्तु तोर : खातिर हम ओहे चुटरा बाप । चुटरा - बाप कहलें अब नाय चलतो । अब हमरा साहेब कहे होतो । जल्दीए हमर बदली पटने होइ रहल हे । जोदी तोंय हूँवा हमरा चुटरा बाप कहें तो लोकें की कहता ?

चुटरी माय - ओहो ! अब तोहें साहेब । किन्तु साहबो कि करिया होवे? ऐसन साहेब हम नाय देखल हीं बाबा!

मोती - देख चुटरी माय- ईटा हाँसी ठाढ़ा नाय बुझिहें। हमू तोरा चुटरी माय नाय कहबो हम तोरा मेम साहेब कहइके डाकबों ।

चुटरी माय - तो हम मेम कैसे होबइ ?

मोती - होवे - हे होतो तोरा उच्चा ऐडी के चप्पल पिन्धे होतो। हाथै बेग राखे होतो । गालें पावडर रगडे होतो- आर ओठे लिपिस्टीक ।

(बीचे टोइक के)

चुटरी माय - लिपिस्टीक कि?

मोती - बुद्ध कहिं के, लिपस्टीकों नाय जाने। ओठ रागेक रंग।

चुटरी माय - ओ हो... आलता हमर सात गुष्टियों नाय देखल है। मोती - तोर सात गुष्टी गाधा हलथुन तो हमरो गाधा होवे होत?

(तनी तेजें)

चुटरी माय - देखा, तनी मुँह सम्हाइर के हमर माय-बाप के नाय घाँटिहा । ऊ सब नाय घसें आइल हलथून? तोहरे सात गुष्टी जाय के नाक रगड़ल हलो -तबे हमर संग तोहर बीहा नाय तो रहतला थुबडा सहरा गाछेक भूत ।

मोती - ओ....हो....तो......तो...तोर माय-बापेक एते गुमान!

चुटरी माय - रहत नाय तोकि?

मोती - हाँ! ! हाँ!! देखल हियो तोर भाई सब के तीन तल्ला उपर वैस के दिने तारा गनते ।

चुटरी माय - हाँ! हाँ तोहर माय गुला ऐसन डक डकाय नाय बुल-हत ।

(कैह के प्रस्थान )

दशवों दृश्य

(सोहागी - शम्भु)

शम्भु - माय ! आर हम नोकरी नाय करब । अब हमरा गाँव घारेक सेवा करे होत। गाँवें बडी गरीबी। भूखे लोक छटपटा हत-रोगें तड़प-हथ । लूगा बिना नारीक लाज बचवा हथ, शिक्षा बिना मुरूख बैन के सियार-कुकुरेक जीवन बीतव-हथ ।

ऊ समेक मुॅहें अन्न दियेक चेष्टा करब-लूगा पीन्धेक युक्ति करब शिक्षा देव- मानुष बनवब आपन पेट तो कुकुरो भरे माय !

सोहागी - जे तोर मन बेटा।

(प्रस्थान )

ग्यारहवाँ दृश्य

खेपा - भगवान ककरो बेटा देत तो शम्भु ऐसन वाह रे बेटा आपन संगे गोटे गाँवक नाम इंजोर कर देला की तेयाग! पैढ़-लिख के लोकेक सेवा करे हे। से दिन रमुवा-बहू, बेमार परले जरें

कपसह-हली हमनी तो मने करली भेलै । किन्तु शम्भु डाकटर आनले ओकर खाटी घारें गोटे राइत बैस रहल। मानुषेक उपर कि प्यार। आपन हाथ दवाय पीव-हल। एतने काहे- बेटी छाँवा सब सिलाई बुना सीख गेला बूढ़ा सब पढ़े लागला । फलना दिन सोमरा मोरल । गुष्टि-भेयाद भोज खाइले मुँह पजैला - खैबे नाय करवा- एक सांझ पर्ककी- एक सांझ कच्ची चाहवे करी। - चाहे खेत- बेचुक आर घर बूढ़ा मोरल-हइय। किन्तु ! शम्भु सब के फटकाइर देला- सब ठिसुआइ रहला बाह रे बेटा! वाह! बाप दादाक नाम चमकाय देलका ।

(नेपथ्य से)

आर ऊ चोरा गोरू-टा साँनी मुँह दुकवल से दुकवल है। कन्धु देखेक फुरसइत नाय ।

बारहवाँ दृश्य

(समरी - शम्भु)

समरी - बाबू! हम एगो गरीब राँड़ । नूनूक बापेक भोजेक समय 30 मनेक खेत के दाय देल हली। सात बच्छर खातिर। किन्तु दस बच्छर पार भै गेल । अब छोड़वे नाय करे हे। कहे हे बेंइच देल हे । कोन्हो उपाय है तो करा बाबू । भगवान तोहरा दूधें-पूतें देबथुन । हम बड़ी गरीब। हली तो कखनू मानुष, किन्तु आइझ महाजनेक कारने - .. (चुप होइ जा हे मुँह-टा आँचरे ढाँइप के फफके लागली)

शम्भु - (तनी गंभीर होइके ) जो हम उपाय करबो काइल कालूराम से भेट करबे।

(प्रस्थान )

तेरहवाँ दृश्य

( मंगला - कालूराम)

मंगल - ई बछर तो टाकाक उपाय नाय मालिक! राँगा-घुटुक खेतवा तो चोरे काइट लेला । छोड़ा नोकरी कर हल मनें करली कुछ टाका देत ओहो सोसराइर ओगरे लागल। बहू के हीऔं भने नाय लाग -हइय। अब हूँदे रहती - एते लिखैली पदैली सब झुठे!

कालूराम - ना! बाबू! ऊ सब सुना-सुनी नाय होतो जैसे पारे हमर टाका - बसूल कर जाने, सूधे मुरे पाँच सो में गेल हो ।

मंगला - इ बच्छर तो हम लचार मालिक।

कालूराम - (तनी जोरें) लाचार - फाचार कहले नाय चलतो सुन - काइल से पारा दाय।

मंगला - नाय! मालिक नाय!! (कैह के गोड़ धरे खोजे हे -एतने में कालूराम सनेक गेल आर कि संतू के कहल)

कालूराम - सिंह जी ! साले को धक्का देकर बाहर कर दो और कल इसका - गाय-बैल को ले आओ।

सिंह जी – मंगलाक हाथ धइर के टान-हे मंगलाक पारा चढलै गेरेज-गेरेज कहे लागला

मंगला - सूद-सूदेक सूद, तकर सूद तकर सूद-तकर सूद देते-देते हमर - दूयों हाथ गट्ठा में गेल ताव तोर वसुले नाय भेलो। बापेक लेल ऋण एखनू हमर मार्थे चढले हे। जिहें पुरा लोग -जन लैके जी हैं. शम्भु बाबूक नाम सुनल हे कालू।

(कैह के प्रस्थान)

चौदहवाँ दृश्य

( कालूराम - समरी - शम्भु)

समरी - मालिक, हमर जमीन-टा बहुत दिन खैइले अब घुराय दे ।

कालूराम - (आश्चर्य कइर के) तोर जमीन! तोर कैसन जमीन!! ऊटा तो हम ले लेल हियो- जखन कचहरीं ठेपा देल हले-मने हो-कैसन बजायं-बजाय के टाका लेल हलें । सेटा भुइल गेलें । तखन मोज अटकल हलो । एखन चोज लागो हो। बाहर जाहें कि नाय?

(शम्भू -प्रवेश)

शम्भु - एकरा बाहर होवे होवत, जे एहे गाँवें जनमल-बादल। जकर सात गुष्टीक हाड़ हीऑक मार्टी हे। ओकरा बाहर होवें होत - ई कि कहे हे कालू चाचा!

कालूराम - ओह तो तोंय एकर पेर्छु हे। तभीं आइझ सिंहेक आगू कुकुर भूके हे (शम्भू दिगो देखके) तोंय इ पगलीक पेछु काहे पागल होवें हे बाबू! जमीन-टाक हमर ठीन पक्का दलील है। चुनाव बाद फुरसत मेलें हम तोरा डाइक के फारें-फारे बुझाय देवो ।

शम्भु - अछा- कालू चाचा! किन्तु जमीन-टा छोड़ होतो ।

(प्रस्थान )

पन्द्रहवाँ दृश्य

(धनीराम- कालूरामु)

धनीराम - राम! राम!! मुखिया जी

कालूराम - राम ! राम !! भाई अरे रामा-तनी पंचायत आफिस-टा के खोलिएँ मेरे ! आर चाह बनाय के ले आन अच्छा कचकचाय के तनी आदा आर तेजपात दीहें ।

धनीराम - ना! ना!! चाह-चू छोड़ा। देरी होय जाइत आपसे भेंट कर ली। नहीं तो आप कहते धनीराम आये ही नहीं। आप तो जानते ही है लोगों के कहने पर मुझको खड़ा होना पडा है। और मैं तो इसी थाने का निवासी हूँ। जरा ख्याल करियेगा। जीतने से आप ही को लाभ होगा-

सन्तु - काग्रेस के उम्मीयवार पंचानन बाबूक मिटिग हइय पिपराटाड़ी। तोहरा जाय होतो एक बजे गाड़ी अइतो लिये ले। तैयार रहे कैह गेल हो-

कालूराम (मने-मने) अच्छा माय! काग्रेसेक हार्थे सरकार- सिपाही 1 - पुलिस लाइसेंस परमीट - नाम तो नाय लियेक मन करे हे किन्तु उपाय नाय। बड़ी राड़

(नेपथ्य से)

( लेकर रहेंगे झारखंड ,लेकर रहेंगे झारखंड )

सोलहवाँ दृश्य

(चुटरा- चुटरी)

मोती (चुटरा) - देख चुटरी भॉय !

चुटरी - फइर चुटरी माँय?

मोती - हाँ! हा!! मेम साहेब । तोंय तो सिखे है। हॉ. अब गीदर सबके नुनु-बाबू नाय कहे पैबे ऊ सब के बेबी कहे होतो। आर नाम गुलो बदले होतो चुटरा-घुटरी मुडरा-मुडरी- डेमरा डेमरी गोबरा - गोबरी कहले नाय चलतो । अब कहे होतो- मिन्टु, फिन्दु, इन्टु-टु-टु....।।

किन्तु । हाँ, गीदर सबो अब हमरा बाप नाय कहे पैता ऊ सब सबके कहे होतो पापा ।

चुटरी मॉय - ए माँय कि कहेगे ! बाप नाँय कैह के पापा कहे होतो (चुटरी दिगो घुइर के) आर पापा सुइन के गीदर सब कहूँ घॅंटरा पीठा खातिर राइक उठत तबइ।

चुटरा (तनी हॉइस के मनें-मने) सच्चे तो पापा कहते पहिल- पहिल दायें परे होत । किन्तु कि करी. एक दिग ठीक कर ही तो दूसर दिक मैसेंक जाहे। (चुटरी दिगे देख के) हाँ आर सुन-मात नाय कहे पैता । भात के चावल कहे होतो रोटी के ब्रेड, .. । कते दिन जंगली रहने। हाँ, आर सुना गीदर सब अब तोरा मॉय नाय कहवथुन । ऊ सब तोरा माम्मी कहबथुन ।

चुटरी - (रागें तेजें ) मामी तोर मोटकी बहिनीया के कहनथुन। हमरा मामी कहता! मामी बनेक हल तो एहे थुथुर मुँहा ठीन।

चुटरा - ओह! तोंय राइग गेलें । अग्रेज सब माय के माम्मी कहथीन ।

चुटरी - (फट से कहे हे) आर बहिन के भोजी ।

मोठी - देख चुटरी मॉय । माथा खाराप नाय करिहें। एखन बहुत सीखे ले बाकी हो। अब खोरठा- हिन्दी, बंगला, फारसी से काम नाय चलतो । अब अंग्रेजी बोलें होतो। कह-'आइ एम ए मैन, मैं एक आदमी हूँ।

(बीचे हॉसते- हॉसते दमयन्तीक प्रवेश)

दमयन्ती - नहीं ! नहीं!! आप एक गदहा है।

(चुटरा-चुटरी ताइक देखे हे)

चुटरी - अच्छा, बहिन तोही इनखाँ पारबें। हम जाही।

(प्रस्थान चुटरीक)

दमयन्ती - जी हाँ ।

मोती - और क्या खबर है।

दमयन्ती - सब ठीक है। अच्छा आप ने आज का पेपर पढ़ा?

मोठी - नहीं तो? क्या बात है?

दमयन्ती -  एक अजीब जबर छपी है।

मोती -  कैसी खबर है भाई।

दमयन्ती - हां सुनाती हूँ- कान खोलकर सुनिये।

मोती - सुनाओ. ..

दमयन्ती - अमेरिका के कुत्ते अब राम! राम!! बोलने लगे हैं।

मोती - तो भो - भो कौन करेगे?

(प्रस्थान चुटरीक)

दमयन्ती - आप जैसे जो विलायती बोली- भाषा- चाल -ढ़ाल रहन-सहन में अपनी शान देखते हैं।

सतरहवाँ दृश्य

शम्भु - एगो सर्भे भाषण) भाई सब! हमनीक घर-दुवार जमीवारी नदी-नाला, • पहाड-पर्वत, वन जंगल, हाट-घाट-वाट। किन्तु कौन्हों-टा हमनिक नाय सभे टे लोकेक अधिकार आइझ हमनी बोका- हमनी दीन-हीन पतित। हमनीक धरती सोना उगले है किन्तु मजाल कि जे एक दुना उठाइ ली। ओह! आइझ हमनी आपने घरे भिखारी - शरणार्थी हमनीक कहूँ ठहर नाय हमनीक बाटेक समे रास्ता बन्द । स रास्तें फन पसाइर के बैसल हे दुधिया नाग ज आपन दिगे एतें देखले फॅफुआय उठे हे आइझ हीऑ सरगेक सुद्रा । किन्तु हमनीक के रोटीक ठीक नाय- आझ हमनी टुअर ऐसन टोआय बुल- ही।

आइझ दलवंदीक युग- आइझ जातीयताक युग । आइझ राष्ट्रप्रेम नाय देश भक्ति नाय- मानुषेक उपर प्यार आर आइझ सूधे स्वार्थ- घर भरेक चेष्टा । आपन बाढेक उपाय । कोई मोरे चाहे बाचे। हमनी खातिर के चेष्टा करतो। नोकरी-चाकरी खातिर के चेष्टा करतो- दिल्ली केउ नाय, पटनों हमनीक केउ नाय । जे हमनीक सुख-दुख के दुनियाक सुनवता । हमनीक हिस्सा खातिर लड़त? केकरा एते गरज परल हे । हाँ, आइझ हमनी निरूपाय । हमनीक धरती हमनीयेक टीका दाय। किन्तु कान्दले कुछ नाय होतो भागले प्राण नाय बाचतो। जीयेक काँटा- जहाँ जा, संग जीतो- गड़ते रहतो । हमनीये के उपाय करे होत । विशाल भारतेक मान-चित्रे हमनीके एगो आपन स्थान बनवे होत। हम जानी, हम मानी- हम खोजी जे हमर क्षेत्रे हिन्दुस्तानेक हर क्षेत्रेक लोक रहता- रोजी रोटी कमैता । ऐसन जोदी नाय होवे तो भारतेक- एक राष्ट्रेक कोन्हो माने नाय. किन्तु । सबके हमनीक भाई बैन के रहे होत- मालिक बैन के नौय । जखन हमनीक क्षेत्र तखन इ क्षेत्रेक चाभी-काठी हमनीक हाथ रहत ऊ समेक हाथे नाय ।

भाई सब आर समय नाँय अब एक मत होइ के आगू बाढ़ा ।

जय हिन्द ।

अठारहवाँ दृश्य (संतु-कालूराम )

कालूराम - संतु ई सब कि होइ रहल हे जे सब लोक आंगू तरें आय के खड़ा होवे नौय पारsडल, आइझ ओहे सब हमरा आँइख देखव हथ ।

दस बच्छर आगू भले बेढ़ो सबे के भुइज दथला- चमड़ा छाइल के गाछ टाइग देलथी । किन्तु अफसोस । आइझ समय बदैल गेल है।

संतु - हाँ मालिक। आइझ हाड़ी, डोम, चमार, मुची सब पैढ़ के- तनी नौकरी-चाकरी करें लागत है ने । आर जहिया से शम्भुआ गाँव आइल है गाँवेक हवे बदैल गेल हे-  (एतने में पासे जोरे आवाज भेले)

जय शम्भु बाबुक जय!!

कालूराम - ई कथीक आवाज संतु?

(संतु कान पाइत के सुने - हे आर हुलके-हुलके के देखे है।)

संतु - हाँ, तो मालिक! लोक गुला एहे दिगें आव हथ। आइझ देशेक हावा - खाराब। गरीब सब खेपाय गेल हथ महाजन सब के लुटे पाटे लागल हथ ।

कालूराम - संतु! जो तो। तनी बेस से दैख के - जाइन सुइन आव- पाछे सालैन --।

(संतु जाहे आर तुरते हड़बड़ाइल हावे हें)

संतु - ...... मालिक ! मालिक !! बड़ी लोक, बड़का भीड़ सब एहे दिकें आवे हे - शम्भुओं हे।

कालूराम - जो मोहन के बन्दुक लैके कोठे चैढ़ जय कहीं । कहियें तनिको गोल-माल करले सालैन के भुँइज देत । देखल जीतै-जे होते- से होतै। आर कोपाट घारें तोंय काँड़ धनुक नुकाय राख। आर हमर खातिर ओहे खूँटी टे फरसा-टा राखल है। जल्दी कर सब कोपाट बन्द कर दे।

(शम्भु प्रवेश)

शम्मु - प्रणाम चाचा! (कालूराम के)

कालूराम - (थरथराइ देही) कन्दे शम्भु! आइझ एते दलबल लेके ।

शम्भु - तोरे ठीन चाचा! तॉय घबरायल बुझा- हैं।

कालूराम - ना! ना! तोंर रहते हमर कथीक डर, कथीक भयइ ।

शम्भु - जरूर एहे आशा करी। किन्तु युग के चिन्हेक भूल नाँय करिहे चाचा!

कालूराम - हम भूल करनिहार लोक नाँय शम्भु ? अच्छा तो काहे ले अइले ।

शम्भु - गाँव एगो स्कूल बनवेक इच्छा है. तोरा एगो मोटा रकम दिये होतो ।

कालूराम - जैसन इच्छा। स्कूल होना तो बड़ी दरकार हइ संगे - संगे अस्पतालो खातिर चेष्टा कर।

शम्भु - अच्छा तो कते लिखियो तोर नामें।

कालूराम - दस टाका लिख ले।

शम्भु - दस टकें कैसे होतो चाचा! ईंटा ग्राम पूजा तो नॉय 50 टाका खरच हे।

कालूराम - जे तोर इच्छा लिख दे बाबू ।

शम्भु - 500 रू० चाचा ।

कालूराम - पाँच सो? कि कहे शम्भु पाँच सो!! पाँच सो ...बाप रे!

शम्भु - तोंय नाँय देवे तो के देतै चाचा ।

कालूराम - अच्छा जो काइलह परसुँ ऐहें हमर खनिहारो कहाँ हे - एगो बेटा हल सेउ कहीं चैल गेला -धरमों तो होक ..।

उन्नीसवाँ दृश्य

कालूराम - जो तो समरा आर मंगरा के डाक आन ई शम्भुवा के रहे देले काम नॉय चलतो काइल्हे बाछा के बाप से भेट करव - ही ।

संतु - सलाम कैर के चैल जाहे ।

(सुगिया प्रवेश)

करमी - गोड़ लागी मालिक

कालूराम - कदें सुगी! ऊ पींडा टा टाइन ले। आर बैस ।

करमी - मुँहेक भाव बनाय के अबरी हम नाँय मानवो - कोन्हो नाँय - सुनबो मालिक। बाप रे ! बाप रे!! एक मैहना से पटैते - पदैते पटवे पारल-ही पटवे नॉय करे - कते कि करल ही तब जाय के पटल हे जड़ी बूटी नगद पाँच टाका खरच ।

कालूराम - आर ने कोन्हों बूढ़ी- तुदी के ठीक कर राखल हैं।

करमी - बूढ़ी! कि कहे भाय! देखले गिर जीवे! 15 तो भेले नाँय हे ।

कालूराम - अच्छा तो भगवानेक प्रसाद पैसें देरी काहे । आइझो साझें एगो मुरगी काइट राखिहें ले दस गो टाका राख ।

(प्रस्थान संतुक प्रवेश)

संतु - जफरा तो घरे मालिक किन्तु मंगरा बाइद गेल हो। हमसब कह -सुनेली किन्तु शम्भुवाक नाम सुनते तैज भेलोह - बड़का - बड़का लाल-लाल आँइख कर के कहे लागलहों। शम्मुक देहीं एगो रोड़ी गिरले कलुआक एको खपराक पता नाँय रहते- बुझलें। जल्दी जाय के कालूराम के कह दे नाँय तो तोही बुझवें संतु- हमर अन्न खाय-खाय के मोटाय रहल है।

कालूराम - ऐसन ! (आश्चचं से) सिपाही - दरोगा - लठैत - ढकैत आइझ सब शम्भुक गोटे गाँव शम्भुक। आस-पास शम्भुक। जनी- मरद जुवान, बुढ़ा सभेक मुँहे शम्भु! जंदेक हवा पीठ तन्दे करे होत। एखन आर उपाय नाय आर हमर हइये के हे? जनी मोइर गेलो एगो बेटा हला से कन्दे चैल गेल। ई सम्पती के खाइतइ ककर खातिर एते छटपटी । काहे खातिर एते छटपटी । शम्भुओ तो मानुष लागे-जो संतु ! शम्भु के डाइक आना हम ओकरा सब दै के काशी बास करब । बड़ी पाप करल ही। अब तनी पुण्यों करी

(संतु जाहे - शम्भुक प्रवेश)

शम्भु - कि लागो चाचा!

कालूराम - काइल्ड बिहाने एगो मिटिंग कर - गाँवे सब लोक के जमा कर - हमरा कुछ कहेक हे तोही मानुष शम्भु । तोरो जीवन सार्थक । आइझ से हम तोर चेला।

शम्भु - ई कि कहे चाचा । एते विरक्ति कैसे भै गेलो ।

कालुराम - एते दिनें हमर नींद टुटल शम्भु । दुनियाँय पियाजेक बोकला । - सब तुछ। लोक खातिर जोदी जन हितें कुछ करल. जाय पारे तो ओइटे काम। हम तो आर पढ़ल-लिखल नाय हम, ताव इता बुझे पारे लागल ही ।

शम्भु - अच्छा- चाचा हम तैयार ही तोर जे इच्छा । किन्तु हम ऐसन कोन्हो काम नाय करबो जेटें समाजेक अमंगल होवे। हमर अमंगल होवे तोर अमंगल हे। हम सभके मंगल खातिर आपन के समर्पण कइर देल-ही चाचा! हमर ठीन भेद-भाव कहाँ? किन्तु दुष्टुक नाश करे हे होते चाचा । अच्छा तो फैर काइल्ड !

(प्रस्थान )

बीसवाँ दृश्य

(शम्मु-काल-गाँवेक कुछ लोक)

कालूराम - हम ई गाँवें 40 बकर आग आइल हली । भिखारी बैन के दर-दरेक ठोकर खाय के ही सें हमरा ठहर मिलल- ई गाँवे

लोक बडी सीधा-बडी सरल भावें भरल, प्रेमे डुबला हम फाइदा उठैली-देखते धनी-मानी भै उठली। रकतेक र के बाद आरो खूँखार भै उठे हमरो ओहे दश आरो-आरो-आरो। जते पारे आरो हमरा आरो-आ लागल | स्वार्थे हम काना भै गेली। मानुष के बोका बुझे दया-धरम हमरा छोइड़ गेल- रैह गेल-छल प्रपंच आर खूब लुटली । कि पाप नाय करली? किन्तु आइझ हमर खुइल गेल हे । हम पाप करल-ही। अब ई पापेक प्र करब । हम आपन सब सम्पति गाँव के देय के काशी जा करब- अब हमर एहे इच्छा।

शम्भु - ना! ना!! तोरा काशी नाय जाय मिलतो चाचा! तोय हमनियैव बीचें रहा तोर सम्पति हमनीके नाय चाही । तोय एते कर कि वाला के कैसे एक मुट्ठा अन्न मिले। कैसे नेयाय मिले। गाँ वाला सब- जय ! कालूरामेक जय! एतने मे कालूरामेक रोहन जे घर से भाइग गेल हल- मंचे खड़ा होई जाहे. ब प्रणाम करे हे आर कहे हे )

रोहन - आइझ हम आपन के कालूरामेक बेटा कहतें गर्व कर ही दिन हम बदनियत बापेक उत्पीड़न से उइब के घर छोइड़ गेल हली- ।

शम्भु - (बीचें टोइक के) सु-सुन शान्त हो रोहण हमरा कालूरा प्रार्थना जे आपन सम्पति आपन कब्जे राखुख। हमनी के अनखार सम्पति नाय संतमति चाही ।

कालूराम - ना! ना!! ई. होवे नाय पारे

रोहण - क्षमा करिहें शम्भु दा - हमरा देख के पाछे तोरा ग्लानि होत-हो- तोय हमर भविष्य लैके सोचे हे- किन्तु ईटा भूल शम्भु दा- कते-कते बूढ़ा - मोरेक घड़ी आपन गीदर बुतरूक चिन्ता लेके ई धरतीक पइरताग करथ- किन्तु रहेकवाला आपन हिसाब-किताब करिये लेत- । आइझ हमर तोर से गाँव वाला से निवेदन जे हमर 'बापेक गोटे सम्पति गाँवेक हिते लागत इमनी मिलजुल के खेती करब- आर सभीन बाइट लेब हमनी ई गाँव के सरंग बनवल अन्ने भइर के प्रेमेक धार बोलवल! भगवान हमनी के सुबुने

कालूराम - वाइद के ले शंभु! आपन चाभी- काठी ले

गाँव-वाला - कालूरामेक जय, रोहनेक जय, शंभु बाबुक जय ।

***पटाक्षेप***

Post a Comment

Hello Friends Please Post Kesi Lagi Jarur Bataye or Share Jurur Kare