भाइ - बहिन के शुभ प्यार के प्रतीक 'करम' (निबंध)
'राखी'
आर 'भइया दूज' जइसन भाई-बहिन के 'शुभ्र' प्यार से सराबोर परब-तिहार भारतेक संस्कृति
के अछय संपइत हेके। झारखण्ड छेतरेक अनुठा और महान परब 'करम', भाई-बहिन के शुभ्रप्यार
के प्रतीक परब हके। जेतरी राखी आर भाइदूज पर भाई-बहिन एक दोसर के मंगल कामना कर हथ
सइतरी करम पुजाँव बहिन आपन भाइ गुलइनेक लागिन करम राजा से आपन अंचरा पसाइर के सुख-संपइत
माँग-हथ।
भादो
इंजोरिया पछेक एकादसी तिथि करम पूजाक दिन हके। ई अवसरें पइत भाइ आपन बहिन के ससुराइर
से नइहर आदरपूर्वक लियाइ लान- हथ। की ले कि ओइखने डंगुआ बेटी छउवा गुलइन तो लगाथे
'करमइतिन' मेनेक करम के पुजारिन ।
ई
परबेक संगे ढेइर-ढेइर लोक विसुवास आर मान्यता जुटल हे। जेतरि-एक बटे धरमेक उपर करमेक
जीत के खुसीक परब जे धरमेक 'अपेखा करमेक महत के कथा कहे हे, तो दोसर बटे करम सुन्दर-सुन्दर
छऊआ-पुता पावेक लागिन मनउतिक परब हेके। सइले करमइतिन आपन पूजाक थारी एगो गोल-मटोल पुष्टगर
खीरा राख-हथ आर करम राजा से कामना कर हथ कि ओकरा सुन्दर सुडौल बेटा मिले। आपन कोइ प्रियजन
के परदेस से घार घुइर आवेक खुशी मनावेक परब करम हेके तो बगरा धान-धुर हवेक लागिन मनउतिको
परब हेके । करम एक बटे युवक-युवती लागिन रस आर राग, लय और ताल के परब हेके तो दोसर
बटे धान रोपनीक हाड़टुटा काम से फुरसइत पावल किसानेक मनेक हिआखलास के भी अभिव्यक्ति
मिल-हे, ई परबें। तइयो मुझ्ख रूपें भाइयेक सुख-संपइतेक लागिन बहिन गुला जे पूजा कर-हथ,
ऊ परबेक नाम हे करम । पइत बहिन बड़ी मनोजोग आरं निठा भाव से करम पूजा कर-हथ । बहिन
गुला गोटा बछर ई परबेक प्रतीक्षा करथ की ले कि ई परबें जुनजुनार नइहर जाइक रीति है
चाहे आन दिन जाइक मोका मिले ना मिले।
करम
परबेक सात दिन, पाँच दिन, तीन दिन आगू बाला उठवल जाहे से दिन सब करमइतिन बिहानेक बेरा
गीतेनादें गाँव से दूर कोन्हों नदी नालाक धाइरें जा हथ आर हुआ नहाइ धोइ के दुगो बाँसेक
नाँवा पथियाय जकरा कि 'डाला' कहल जाहे बालू उठाइ ले हथ। ई बालू भोरल डालाय धान, गेहूं,
जिनरा, बुट, उरीद, कुरथीक गोटा बुइन दे हथा आब ई 'डाला' के सेवा बइरदास लागिन तीन या
पाँच गो टनक करमइ तन जकरा 'डलइतिन' कहल जाहे, बाछल जा हथ। डाला के गाँवेक पहान आर नाँय
तो मुझ्ख डलइतिनेक घारें राखल जाहे । पइत दिन बेरा डुबल कर पाछु गाँवेंक अखराँय डाला
के लाइन के करमइतिन गुलिन डाला के चारों ओर घेरा बनाइ के घुइर-घुइर आर गीत गाइ गाइ
के जगाव- हथ एकरा जावा जगवेक कहल जाहे आर गीत के 'जावा जागा' गीत। डालाक ठावीं घीवक
दिया जरावेक रीति है। चार पाँच दिनेक पेछु डालाँय बनल गोटा अंकुर जाहे आर पीयर पीयर
तीन-चाइर ईंच के पौधा बइन जाहे । एकरा 'जावा फूल' कहल जाहे । आँधार घारे राखल के चलते
जावा फूल पीयर रंग के हव हे मकिन आरो पीयर करेक लागिन करमइतिन ओकरा हरदी पानी में पटाव-हथ
। बाला उठावेक दिन से लइके करम पूजाक दिन तक करमइतिन बड़ी निठा आर संजम से रह हथ ।
ई मांझे जरल-पोड़ल, तीता-आमत, मांस-मछरी आर जुठा भोजन ओखिन नाँय कर हथ ।
करम
पूजाक दिन गाँवेक पहान बोन जाइके करम गाछेक दूगो पुसुद आर सुडौल डइर के काइट के आन
है। हाँ, करमेक दूइयो डाइर के एक गाछेक हवेक टा आँया जरूरी। ई दुइयो डाइर के पहान गाँवेक
बाइहरें, राइख छोड़-हे, जकरा गाँवेक बेटा छउआ मेनेक करमइतिन के भाई गुला. ढोल नगारा
बजाइ के गीतें-नादें गाँवेक अखराँय लाइन के गाइड दे हथ । गाँबेक पहान एकर पेछु हाँक
पाइर के करमइतिन के अखरांय आवेक नेवता दे है। भादो महहनाक अंधरिया राहतें गाँवेक करमइतिन
घीवेक दिया जगमगउले पूजाक थारी हाँथे लइके जखन पांता-पांती चले लाग हथ तखन इसन बुझा
हे जइसे आकासेक तरींगन आइझ झारखण्डेक गाँवे नाइम के घुइर फिर रहल हथ। आर जखन करमइतिन
करम डाइरेक चाइरो-चगुरदे गोल घेरा बनाइ के पूजाक थारी धाइर के बइठ जा हथ तखन अइसन दीसे
हे, जइसे आइझ आकासेक तारा गुलीन हेंठे नाइभ के मिटिंग कइर रहल हथ। पूजाक लागिन बाँसेक
टोकीं राखल कमल, कुमुदनी, केवरा आर कादो फूलेक हलुक- हलुक सुगंध आर करमइतिन के गात
ले उठइत काँचा हरदीक उबटन आर मेंहदीक मेसर कोसर गंध, लुहकी भदइया - बसातेक सँगे करे
करे लकमे-लकमे चाइरो बठे पसइर जाहे तरवन अइसन बुझा हे कि साक्षात स्वर्ग (जोदि कहूं हवे) आइझ धरती
नाइभ गेल हे ।
गांवेक
पहान करम कहनी कह- हे करमइतिन गुला फूल छींट के पूजा कर-हथ। करम पूजाक दोसर दिन थारांय
जावा फूल राइख के करमइतिन गुला आपन भाइ ठीन जाइ के भाइयेक कानें जावा फूल खोइस के कह-
हथ - " 'आपन करम महआम धरम" ई मंतर के ओखिन पूजाक मधें काइ-काइ बेइर दोहराव
- हथ । मेनेक बहिन गुला कह- हथ कि हामर जे धरम आर करतइब रहे ऊ तो करली, भाइयेक लागिन
करम राजा से सुख संपइत मांगली आब तो भाइयेक करमेक ( करतइब) उपर निर्भर कर - हे इटा
पूरा हवेक । भाइ गिला आपन सामरथ भइर बहिन के उपहार दे हथ। एकरा " अंकरी - बंटरी
" अंकरी - बंटरी" कहल जाहे । करमइतिन के "खी. रा- बेटा" के करमइतिन
के बापे खाहे की ले कि ऊ ओकर नाना लागतक । खीरा-बेटा के करमइतिन के भाइ के खाय नाय
बने हे कीले कि ऊ तो मामा लागतक। आर झाखण्डे तो भइगना मामाक लागिन देवताक जुकुर होव
हथ। ई तरी करमइतिन आपन छउआ-पुता लागिन आपन भाइ बाठे - ले सुरछा के गारंटी करवाइ ले
हथ । ई टा झारखंडी समाजेक परिहास आर परिहार (हंसनतुआ) (Jocking & Avoidance) के
बड़का सुंदर पटत इर हेके । भाइ आर बहिन के शुभ्रप्यार' आर अलोकिक प्यार से सराबो करम
गीतेक एगो ढांगा लेताइर ( श्रृंखला) है। भाइ-बहिन के विजोग सुख-दुःख नइहरेक प्रति बेटी
छउआक मोह ममता के बड़ी सुन्दर चित्र ई लोकगीत गुलइनें पावा है।
भादो
मइहनाक परथी बहिन आपन नइहर जाइ के भाइये आसरा देखे लाग-हथ। अंगुरीं गिन-गिन के करम
परब के दिन नइझकाइ अनुमान लगावे लाग-हथ। घारेक भीतें गोबरेक टीका बा डांडी खीच गनती
कइर के दिन नइझकाइक मालूम कइर ले हथ। आर नाय तो उमड़ आवइत नदी-नाला, टाले टीपे भोरल
आहार- पोखइर आर आकासे मतदा - हाथीक गोठ लेखे मड़राइत करिया-कजरा बदरी तो कहिये दे हे
भादोव कथा। जोदि एहव टांय कोन्हों रकम चूक भइ जाए तो खेत गोठेक अ इरें-गोहरें नदी जोरयिाक
करघाय फूटल बोकेक पांइख लेखे झक सफे कांसेक फूल जइसन भादोक चिन्हो के कोइ बिसरे पारे
?
भादो
तो हरहरइते आइ पोंहचलक मकिन हाय ! ओक (करमइतिनके) भाइ तो नांय अइलक लियन करे। बेचारिक
मन उड़ के दूर आपन बापेक नगर पोंहइच जाहे । ऊ आपन भाइके आवेक प्रतीष करे लाग-हीक।
एहे
भावेक एगो करमगीत ई तरी हे -
गोमतीक
धारी-धारी फुटलइ कांसी गे
नुनीक
मन नइहर चली गेल।
कांसी
फूल फूटी गेल, नदी-नाला भोरी गेल
'आस
देखी अंखिया टटाय,
रे
भादर कुहकल आय।
आपन
भाइयेक प्रतिखांय बहिनेक आंइख टटाइ जाहे तइयो भ नाय पोहचे है । ऊ अनुमान लगाव-हीक भाइ
के तो माइ जुनजुनार पठवइत हतइ लियन करे ले । मकिन भाइ तो एक हके काम-काजी, कमनिहार
की - जानी इयाद हतइ ना बिसइर गेल हतक। एहे भावेक एगो गीत ई तरी हे-
परलइ
भादर मास, लागलइ नइहरेक आस
मइया
कहि कहि भइया के पहठाइ
भादर
कुहकल आय।
करमइतिन
मने - मन सोंच-हीक भाइ तो आवइते हतक लियन करे। फिन ऊ अटकर लगाव हीक की जानी कोन भाइ
अइतक? बड़का दादा अइतक कि मंइझला दादा । की जानी कि छोटके भाइयो आवे पारे । ऊ मनेमन
सोंच ही बड़का दादा आर मझ्झला दादा नी अइता सइटा बेस की ले कि ओखिन दुइयो तो बड़लोक,
की जाने हमर ससुर घारेक लोक ओखनिक मानमरजजाद बेस से करें पारता नी पारता तो बड़ी बेजाइ
मइजितइ। छोटका भाइ आवे सइटा सोबले बेस की ले की जोदि हामर ससुर घारेक लोक हामरा नइहर
भेजे में कटमट करता तो ऊ (छोटभाइ) कांदी - कुंदी के कोन्हो रकम विदाइ कराइये लेतक।
गीत ई तइर हे।
बड़का
हो भइया मति लेगे अइहा,
कहाँ
पावब पाकल पान हो, अरे होऽ
मइझला
हो भइया मति लेगे अइहा,
कहाँ
पावब बांधल खसिया, अरे हो
छोटका
हो भइया तोहें चइल अइहा
कांदि
- कांदि मांगभें विदाइ हो, अरे हो-ऽ
दीदी
के कहर दे विदाइ हो, अरे हो-ऽ
मकिन
एतना दिन तक जब ओकर भाइ लियन करे नांय पोहचलर तो करमइतिन के मन नइहर जाइक लागिन हुंचइक
जाहे। नइहर जाइ लालसा ओकर भनें एतना बढ जा हे कि डहरें बाटें जवइया राही गिल के देइख
ओकरा बुझाइ लाग-हइ जइसे ओकर भाइये आइ रहल है। आपन गुइया करमडाइर (सहेली) से पूइछ बइठ-हीक
देखा तो गुरु पोखहर भीडे कोन कोन लोक आव-हथ। ओकर गुइया कह-ही-
तोहर
ससुर लागथुन।
तो
ऊ कह ही ना!
के
जन तोहर भुंसर लागथुन ।
तो
ऊ कह ही ना! ना! एखिन दुइयो में केउ नाय। ऊ तो हम सहोदर पीठिया छोट भाइ आइ रहल हे।
देखा देखा ठीक से चिन्हा तो छोट भाइयेक 'कल्पनामात्र' से ऊ दजर पर हीक अगवानी लाइ
पोखरिके
भिंडियें कोन लोक आवे
चिन्ही
दीहें ।
नाहि
लागइ ससुरा, नाहि लागइ भेंसुरा
चिन्हीं
दीहें।
ई
तो लागे सहोदर भाइ हो
चिन्ही
दोहें।
फिन
ऊ कटि ठिठइक के ठाढ़ भइ जाही आर आपन घारेक दस देख के सोंच ही कहाँ जे बइठवी आपन भाइ
के। खाटी बइठवी कि मार्च बइठवी । ना! ना! खाटी, माचीं तो सुसर आर भैंसुर बइठता। छोट
भाइयेव लाइ तो सोनाक पलंक ठीक हतइ । गीत ई तइर है-
काके
देबइ खटिया, काके देव मचिया हो, अरे हो
काके
देबइ सोने पलकिया हो, अरे हो
ससुर
के देवइन खटिया, भेंसुरे देबइन मचि।हो अरे हो
सहोदर
के सोने पलकिया, अरे हो......
पर
हाय! सोब अनुमान टाय गलत भइ गेल। ऊ राही-बटोही तो केउ दोसर लोक रहे, ओकर भाइ तो रहे
नांय । करमइतिन फिन सोंच ही । आखिर ओकर भाइ की ले नांय अइलक एखन तक लियन करे। ऊ रकम
रकम के अटकर लगावही, हमर छोट भाइ तो गरीब लोक की - जाने कोन्हों संदेस- तंदेस जुटबे
पारल हवत ना नांय, की जाने सइले ऊ संकोचेक बसें नांय आइ रहल हे । एतना मंहगी बेसांय
ऊ ओ कीने पा. रतक भला ! तो की सइ संकोचे नाय आइ रहल है। ना! ना! हामरा कुछ नाय चाही
तोर से। न तो पंइजनी, ना सोना ना चाँदी, ना लुगा-फाटा। बस सिरिफ तोंय चइल अइहें हमर
भाइ तोंय छुछे हांथे अइहें मकिन अइहें जरूर। कटिको देरी ना करिहें। कटिको ना सुसतइहें
संकोच ना करिहें। गीत ई तरी हे-
भइया
हो बइसबो ना करिहें,
ना
लानिहें पंइरिया संदेस।
नाहि
हामें मांग- ही सोना रे चंदिया
कुदल
अइहें दीदी के देस।
भइया
हो सभे रे महँगा भेल
एक
तिला सोनवा महँगा भेल,
ना
लानिहें पंइरिया संदेस।
चाहे
जे भी ओजह रहे आखिर करमइतिन के 'माइ नाहिये पारलक लियन करे। नदी-नाल थिराइ जाहे, आहार
पोखइर धीर-धुम जाहे बोकेक पांइख लेखे चरक कांस फूल झड़र जाहे। मैनेक पादोद सोब चिन्हा
मुदा मेटाइ जाहे, सिराइ जाहे करमइतिन के बाँचल-खुच आसरा टुइट जाहे । ऊ दुखे बयाकुल
हड़ जाहि आर आंख ले दर लोर बोहे लागे हे।
गीत
ई तइर हे-
कांसी
फूल झरी गेल, आसा मोर टुटी गेल
कांदि
- कांदि छतिया धोवाइ
रे
भादर चलल सिराइ
तइयो
मोर भइया नाहीं आइ
रे
भादर चलल सिराइ ।
ईतरी
भादो महीनाय अइसन बुझा हे जइसे पइत धान व खे मकइयेक खेत, नदी-नालाक कछार, आर कांस गाजार
ले भाइ-ब इन प्रेमें पागाइल गीत बहराइ रहल हे आर बहिन आपन भाइ से लिया कर के लइ जाइक
आग्रह कइर रहल ही। भला कोन अइसन भाइ हवे पारे आपन बहिनेक ई करून आग्रह के अनसुना कइर
दे।
फूल कर परब सरहुल आर तकर प्रासंगिकता
सभ्यता
और संस्कृति के विकारों परिबेसेक महत बहुत भारी रहल ह। मेनेक जे रंगेक प्राकृतिक साधन
वा प्राकृतिक बाताबरण वा परिवेश जे कोन्हो छेतरेक हवे हे करे अनुरूप सभ्यता और संस्कृति
के विकास हव- हे । भारतें एक बटे नदी गिला आर समुंदरेक कछारें, "नदी घाटी सभ्यता"
पोंगाइल तो दोसर बटे एके समइयें बोन- पहारें दोसरे रकमेक सभ्यता पोंगाइल जे अरण्य-सभ्यता-संस्कृति
कहइलक ईभिनु-भिनु सभ्यता संस्कृति गिलांय आपन आपन छेतरेक परिवेसेक रंफ आर छाप झलक है।
झारखण्ड,
जइसन कि एकर नाम से पता चल-हे, अइसन भूखण्ड जे बोन-पहार, झार झंखार से भरल हे, काइल
है। अइसन छेतरें जो रंगक सभयता आर संस्व ति पोंगइलक ओकर पहारी झरना जइसन उन्मुक्तता
हे तो बड़का बड़ा पाखनेक माँझे बोहनिहार हारी नाला जइसन अनुशासन बाद्धता भी। सेक गाछ
नियर बैडोलपन उपर बौनापन हे तो सरग के छुविनिहार सरइ गाछेक ऊँचाइ आर सुडौलपन भी हिआं
चलनायं टा नाच आर बइचकनाय टा गीत । एहे भावेक एगो मंडारी गीत देखा-
सेन
ते सुसुन, कजि गे दुरंग
तिगि
थबिड़ि मांग सडि ।
सइयेक
लाइ हिआँक परब-तिहारें, गीत-नादें, नाचना- डेगनांय आदि संस्कृतिक इकाइ गुल उपरें उखरबल
गुण टा पावा है। करम, सोहराइ, दुसु-भादु, जतरा - सेन्दरा आदिक लेताइरें
"" रहुल" झा, खण्डेक एगो प्रमुख आर बड़का परब ।
सरहुल
सबद दु सवदेक मेल से बनल हे सरइ+फूल, जे बाद 'सरहुल' बइन गेलक। मैनेक सरह फूल के परब
मकिन एकर माने ईं नाथ बुझल जाए तजे सरहुल छुछे सरइये फूल के परब लागे। मैनेक सरहुल
हेक सोब फूलेक परब। जइसन कि ई परब के आरो दोसर तेसर नाम से टावान मिल-हइ । हाँ एतना
बात आँया हे कि झारखंड छेतरें सरइ गाछ कचरकुट पावा हे सइयेक लागिन सरइफूल सब फूल लागिन
रूढ़ भइ गेलक । सरहुल सबद कटि कटि टटका सबद बुझा हे जे सांयत सदान गिला के जनजाति गिला
के मेल-जोल के बाद बनल हे झारखंडेक भिन्न-भिन्नु जनजाति गोठें ई परब के अलग-अलग नाम
से जानल जाहे। पटतइर रूपे मुंडारी में एकरा "बा पोरोब" कहल जाहे बा फूल परब
- परब। मेनेक फूलेक परब मैनेक नांवा फूल पतइ के परब । खड़िया भाखांय एकरा 'जाङकोर'.
कइल जाहे जाङ = बीज (गोटा) एकोर प्रक्रिया। मेनेक गोटा (बीज) = बनेक उता - सूता ( प्रक्रिया)।
आर ई बीज बनेक उपाय पतर टा फूल टॉय संभव है। एकरो माने फुरछा हे कि फूल के परब हेके
सरहुल
सरहुल
परब पइत बछर चइत बइसाख महिनांय गोटे झारखंड ठोठाँय बड़ी हुलास से मानव हथ। झारखंडेक
पइत गाँबेक बाहइरें एगो छोटे-मोटे बोन ठाँव पाँवा हे जहाँ सरहुल के पूजा हवे हे। ई
राखा लेखे बोन टाय सरइ, महुआ आरो दोसर तेसर गाछ के जोगाइ के राखल जाहे । तइयो ई ठावें
सरइये गाछ बेसी रह है। ई ठाँव के सरना कहल जाहे । मुँडारी आर हो भखाँय एकरा 'जाएरा)
(पवित्रवन खण्ड) बा देसउली (पवित्रवन खण्ड । खड़िया भाखाय एकरा 'जाङकोर" (बीज
बनेक उता-सूता के ठाँव) कहल जाहे। गाँवेक पहान सरना ठाँवे सरहुल पूजा करे हे जकर ओइजी
सरसमाज बाटे ले ओकरा कुछ जमीन जायदाद देल जा हे जरा 'पहनइ' जमीन कहल जाहें।
बसंत
रितुक पोहचर्थी गाछ बिरिछ गुलाय नांवा नांवा पतड़पाल्हा गाइ लागे है । सोब गाछ की सरइ
की आम, जामन, महुआ और परास गाछ फूल से लदाइ जाहें। भँवरा आर मधुमखी गुजार कर उठ हथा
चाइ चगुरदा महमहाइ उठ है। गोटे बोन पतरा हरियरे-हरियर दिसे लागे है। झारखंडे आदिम काल
ले रहबइया लोकेक पतझर देइख उदास भेल मन प्रकृति के नाँवाँ रूप देख के नाचे लागे हे
प्रकृति के रूप परिवर्तन देख के लोक बुझ जा हथ कि एक बछर बीत गेलक आर नाँवाँ साल पोहइच
गेलक । कते - कते लोक ई संसार जातरांय पेछु छुइट गेला। गाँवेक पहान सरहुल परबेक दिन
ऊ पुरखाक 'आत्मा के डाक हे है हमर बोंगा। है हमर पुरखा सब आइझ एक बछर आर सिराइ गेलक
। आइझ के दिन हाम तोहिन से नेहोर बिनती कर ही कि हामिन सभे एकजुट होइ के रही; हामिन
के गोरू - छगरी बाढ्थ; हामिन के फसल में रसुन आर आदि लेखे मोबाइर बँधाय, खूब पानी बइरसे,
हामिन के बोन- पतरा सोब दिन हरियर रहे सरइ - गाछे खूब फूल-फर लागे । "
पूजाक
नेग चार-सरहुल पूजा तीन खेड़ी में हव हे -
१.
रूसा या बाँगुरी
२.
सरना पूजा.
३.
फुलखोंसी
रूसा
या बांगुरी - चइत बइसाख महिनाय गाँवेक पहान सरहुल के दिन तिथि तय कर हे जकर खभइर पहान,
गाँवेक गोड़ाइत एक दिन पहले कर दे हे कि फलन तिथि के रूसा रहतो से दिन गांवेक लोक एकदम
छुट्टी मानव-हथ, कोन्हों किसिमेक काम खास कर के हा. रफार करेक, मूंडू- धरती कोडेंक,
खेतें पानी पटबेक जइसन काम एकदम नांय करल जाहे । जोदि केठ जाइन- बुइझ बा भूल-चूक से
कोड़े-खोंधेक काम करे हे तो ओकरा डंड-कुरंड लेल जाहे। आइझेक दिन गाँवेक लोग आपन आपन
घार दूरा चिकनाव हथ। मरद बेटा बोन-झारें सिकार करे जा हथ। रूसा के सरहुल परबेक तइयारी
दिन कहल जाय पारे ।
सरना
पूजा- रूसाक दोसर दिन गांवेक लोग सरना ठांवे जोहड़ हथ हानि-लाभ, आर सरनाक गाछ- बिरीछ
के पूजा कर हथ। सइ दिन कोन्हों प्राकृतिक संकेत के आधारें गांवेक पहान बरखा- -बुंदी,
हवा-बसात, पर पइदाबार के भविसबानी करे हे हिंआ एक बात जाइन लिएक दरकाकर हे जे सरना
के भिन्न-भिन्न जनजातीय समाजें भिन्न-भिन्न नाम से जानल जाहे । जइसे कि मुण्डा में
'जाहेर', हो में 'देसाउली, खड़िया 'जाङकोर' कोन्हो-कोन्हो गांवे एके संगे जाहेर, देसाउली
आर सरना तीनों पावल जाहे । एकर से ई साबित हवे हे कि ढइर पुरना परियांय ऊ गांवे मुण्डा,
हो, खडिया, उराँव सभे जनजातीय कबीला रह - हलथ ।
फूल
खोंसी तेसरका दिन पहान एगो नांवा सूपें सरइ फूल लड़के पहनाइन संगे घारे घारे बुले हे
आर किसानेक घारेक दुराय सरइ फूल खोइस देहे । पहान के पइत घारें आदर मरजाद से पटिया
डिसाइ के बइठावल जाहे। घारेक गोमकाइन पहान के मोड़ थारांय राइख के धोव - ही आर उबटन
लगाव - ही। गोड़ धोवल पानी के घरेक छाइनें फेंइक देहथ आर शुभ के अरज कर - हथ । ई रीति
से पहान आर सरहुलेक प्रति लोक जीवन के आस्था के पता लागे हे।
सरहुल
के सुरूआत के संभावना- झारखंडेक मूल बासिंदा लोक के ढहर पुरना परियांय जीविका के मुइखं
साधन रहे बीनेक फल-फूल, कंद-मूल और पशु शिकार। हिआंक बोनें सरइ गाछ बेसी पावा हे जोदि
हिआंक बोन के सरइ-बोन कहल जाय तो कोन्हों बेजाय नाय । सरइ गोटा आदिवासिक लागिन मुइख
आर सुस्वादु आहार रहे। सरइ गोटा के जामा कइर के सुखाइ के खांचा आर डीमनीं राख हलथ।
समय पहर जरूरइत के मोताबिक निकलाइ के सिझाव हलथ । सिझवल सरइ गोटा के चिआ महुआ आर सरगुज
के संगे भुंइज के लाटा (गोंद) बनाइ के खा हलथे। कटि-कोटि कंसकुट कटि-कटि गुरूआ आर सोंध
सोंध गमक वाला सवादी लाठा एखनों काकरों आपन बातें टाने में समरथ है। ई एगो आयां बात
है कि जे स्त्रोत से भोजन भेंटा हे ऊ आपन्हीं पूजाक जुकुर प जाहे । जखन आदिवासी वा
आदिम मानव गिला बसंत रितु सरइ, महुआ, आम, जामुन के गाछ गिलाय नांवा नांवा नवगजा देखल
हता, गाछ गिला के मंजर से लदाइल देखल हता, तो आपन्हीं ओखनिक मन खुसिक मारे नाइच उठल
हतइन, मानें एगो आसाक-भोरसाक रंफ पोंगाइ गेल हतइन जे आबरी फिन हामिन के बेस से भोजन
मिले पारे। आर कइह उठल हता- जाङकोर, खद्धी, सरहुल आइगेलक आर हइचक नजइरें प्रकृति के
ई रूप परिवर्तन के देखल हता । पइत बछर अइसने हवइत हवत । आर एहे तर सरहुल मनवेक रीति
सुरु भइ गेल हवत । पाछु कते-कते रकम के लोक विसुवास ई परबेक संगे जुइट गेल हवत । हमर
विचार से सांइत एहे टाय सरहुल के प्रारम्भ के इतिहास हवे पारे ।
सरहुल
आर झारखंड के खेती-बारी सरहुल परबेक संगे झारखंडेक खेती-बारीक अटुट नाता गोता । की
ले कि हिआंक खेती बारी तो निर्भर करे हे मानसुनेक उपरे । झारखंड पठारेक दखिनी हिसांय
मानसुन मोटा-मोटी १५ दिन आगुवे प्रभावी हइ जाहे आर खेती करेक बतर आर मउसम बइन जाहे
। सइले दखिनी हिसांय मेनेक रांची से लइके आर दखिन आर पूरब बाठें सरहुल चइत मइहनांय
हवे हे। की ले कि सरहुल पूजाक बाधी खेती-बारी करेक रीति है । चइत मइहनांय सरइ गाछें
मंजर लाइग जाहे आर सरहुल पूजांय सरइ फूल चढवल जाहे सइले दखिनी छेतरेक सरहुल के 'फूल
सरहुल' कहल जाहे। दोसर बाटे झारखड खेतरेक उतरी छेतरें १५ दिन पादु मानसून प्रभावी हवे
हे आर खेती-बारीक बतर कटि देरी से बन-हे। सइले सरहुल पूजा बइसाख मइहनांय करल जाहे।
ई बेरा तक सरइ गाछें फर लागइ जाहे आर एहे सरइ फोर चढवल जाहे सले झारखंडेक उत्तरी छेतरेक
सरहुलके 'फर सरहुल' कहल जाहे ।
सरहुल
पूजाक बाधीं खेती-बरीक बारिक बनार (योजना) बनवल जाहे । सरहुल के आगुवे खेतें-गोठें
मांइद-खद खाद देल जाहे। सरना पूजाक राइतें गांवेक पहान धानेक बिहिन (गोटा) के आपन खेतें
पाँच मुठा छींट देहे आर बाकी बांचल धान के घार लाइन के राखे है। तकर बाध दोसर - तेसर
किसान धान बुन हथ।
झारखंड
छेतरें धान के खेती दू रकमें कर हथ (१) बाटग (२) रोपनी । पइत किसान आपन आधा खेतें पइत
बछर बावग कर हथ आर आधा खेतें रोपनी । बावग आर रोपनी पइत बछर खेत के अदला-बदली कइर के
करल जा है। सरहुल पूजाक पेछु बावग धान बुइन देल जाहे। भादो मइहनाय ई बावग खेत के जोड़त
देल जाहे। ई तरी घांस-पात गइल-सइर जाहे, बाइच जाहे छुछे धानेक बुदा जकर लागिन पोचल
घांस-पात मांइद के काम करे हे। आधा खेतें रोपनी करल जाहे ।
सरहुल
पूजाक बाद से झारखंडी किसान आपन खेतें गोठें एके बेरा काम कर-हथ। खास कर के रोपा -
डोभा आर निकउनीक काम तो एके बेरा करले जाहे । आसार मइहनाय कोन्हों तिथि के पाहान फिर
'रुसा' के हांक पार हे। एकरा 'हरियरी रुसा' कहल जाहे । हरियरी रुसाक बाद से दुइयो बेरा
खेती-बारी आर घास निकउनि करेक रीति है। पुरना माइनता आखिर जे भी हवे पारे मकिन एकर
बिगियानी ओजह तो ई हे कि पाटुत ले बेसी काम-धाम जोहइड गेल के चलते अइसन नियम बनउले
हता। की ले कि भादोक मइहनांय तो किसानेक अनेक काम ।
धान
रोपनी घरी गांवेक मुध किसान आर पंहान किसान पहिल बान गाड़े हे तर पेछु दोसर तेसर किसान
धान रोप-हथ। एकरा "बन नभी" कहल जाहे ।
सरहुल
आर 'पर्यावरण'-ई तो जग जइजका आर आया बात हे कि प्रकृति के सब नियम कानून एगो संतुलन
(बैलेंस) के चलते चल - हे। जिनगीक पइत कामें, खाइयेक, पीएफ, हवा बोहेक, पानी बइरसेक,
आबादी बाढेक-घटेक, गाछ विरिल के जनमैक, मो. रेक, सिराइयक, रउद- जाड़ सब के ये एगो अजगडचवीं
संतुलन है। एगो मरजाद (आदर्श, स्टैण्डंड) अनवल है। आर जखन जखन ई प्रकृतिक नियम कानुने
अतिक्रमण हब-हे, तखन असंतुलन के स्थिति आइ जाहे । आइस आधुनिकताक ई उडियाधुपान दउरें
प्रकृतिक निजि काम-काजें बेसी से बेसी हस्तक्षेप भइ रहल है। पइत दिन हजारों-हजार कल-कारखाना
खड़ा भइ रहल हे आर ई कल- कारखाना गिला से पइत दिन हजारो-लाखों टन वेस्ट प्रोडक्ट कचड़ा
निक. इल रहल है । जे प्रकृति में मेसाइल जाइ रहल है। सइले वातावरन पइत दिन खराब ले
खराब आर दूसित भइ रहल है । जे रफतार से कल-कारखाना बइन रहल हे ठीक ओकर से तीन गुना
बेसी रफ्तार से प्रकृति के खोख. इर के सिराइ रहल हथ। बोन - झार के अंधाधुंध कटाइ से
बोन पहारेक सुंदरइ सिरइलक से तो सिरइलक एतने नांय एगो भीसन असंतुलन इंबैलेंस पइदा भइ
गेल हे । प्राकृतिक संतुलन तभी बनल रहे हे जब प्रकृ. तिक पइत प्राणी दोसर प्राणी के
आर पइत क्रिया दोसर क्रिया के पूरक हबे हे। मकिन ई मानुसेक जनमावल उपजावल ई 'वेस्ट
प्रोडक्टस' कच. छ- बिरिछ, जे एकर पूरक ड़ा गिला काकरो पूरक बनबे नांय करे हे। गाछ
- हवे पारे तो ऊ पइत दिन कटाइये रहल हे। परिणाम फल की हतइ ? तो 'परमाणु संकट' से भी
बेसी भीषण अजगड़ संकट 'पर्यावरण के संकट'- "इनवाइरमेंटल क्राइसिसि " मुँह
फारले डंडाइल हे, गोटा दुनियाइ के लीले ले।
झारखंडेक
फुलेक परब ई सरहुल मरजादा के परब, 'सीमाबद्धता' के परब हेके । सरना, जाएर, जाङकोर देसाउली
आदि ऊ सीमाबद्धता, मरजाद के परतइछ चिन्हा हेके परिणाम हेके । नाँय तो ई गाजार बोनें
छोटे-मोटे राखल सरना, जाएर, देसाउलीक राखेक की दरकार ? हामिन के पुरखा गिला ठीन 'दूर
दृष्टि' रहइन । जखन हामिन के पुरखा गिला बोन-झार के काइट-काइट गाँव बसउले हता, खेत
बढ़ाउले हता तो ओख आइझ अइसन बुझा हे जइसे सरना के खूब ऊँच-ऊँच सरंग के छुबइत सरइ गाछ
हजारो हजार बछर से खड़ा रइह के ईशोपषिद के तपेक बोले पवित्र ऋषि-साधु लेखा कइह रहल
हे. -
ईशा
वस्य इदं सर्व
यत्किन्च
जगत्यां जगत
तेन
त्यत्केन भुँजीथाः
मागृध
कश्चित धनम।
मेनेक-गोटा
दुनियाइ-ब्रह्माण्ड आपन में सोब जीव-जन्त के संगे प्रकृति मेसाइल हथ। प्रकृति में सोब
जीव एक समान हथ, सब के आपन महत हइन। कोन्हो जीव काकरो से बोड़ छोट नखे । कोन्हों जीव
के दोसर जीवेक निजगीक छंतरें दखल दिएक अधिकार नांय। पइंत प्राणी एगो सीमाक भीतरें रइह
के प्रकृति से लाभ उठवे पारे ।
आइझ
पर्यावरण संकट-इनभायरमेंटल क्राइसिस से उबरेक लागिन सरकारी कागजे गाछ-बिरिछ लगवेक दरकार
नांय । जोदि धरतीं एकरा रो. पियो देल जाइ तो बांचतक नांया । गाछ- बिरिछ के बंचवेक लागिन
दरकार हइ लोक के पर्यावरण के शिक्षा इनवायरमेंटल एडुकेसन' दिएक। आर ई पर्यावरण के सिछा
बंद कोठरी में बइठ के कोन्हों कितावेक पोका नांय But if yo plan for hundreds of
year, educate the people'
मेनेक
जोदि तोहें एक बछर के प्लान (बनार) बनाव हाय तो धान- फसल रोपा।
जोदि
तोहें दस बछर के प्लान (बनार) बनाव-हाय तो गाछ- बिरिछंपा, लगावा।
आर जोदि तोहें सौ बछर के प्लान (बनार) बनाव-हाय तो लोक के सिखित करा, गाछ बिरिछ के महत बतावा ।