प्रश्न :- एजवर्थ
के द्वारा प्रतिपादित अल्पाधिकार के मॉडल की व्याख्या करे?
उत्तर :- एफ.वाई. एजवर्थ जो कि एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री थे, ने
भी कूर्नो के द्वि-अधिकार मॉडल की आलोचना की। उसने कूर्नो की इस मान्यता की आलोचना की कि प्रत्येक द्वि-अधिकार यह सोचता है कि
वह जितनी मात्रा का चाहे उत्पादन करे परन्तु उसका
प्रतिद्वन्द्वी उतनी ही मात्रा का उत्पादन करता रहेगा जितना कि वह वर्त्तमान में
कर रहा है। एजवर्थ के अनुसार
प्रत्येक द्वि-अधिकारी यह सोचता है कि वह चाहे जो कीमत निर्धारित करे, परन्तु उसका
प्रतिद्वन्द्वी अपनी कीमत में कोई परिवर्तन नहीं करेंगा इस मान्यता तथा कूर्नो के खनिज कुओं के उदाहरण को लेकर एजवर्थ ने यह बताया कि द्वि अधिकार में कोई भी निश्चित
सन्तुलन स्थापित नहीं हो सकता।
एजवर्थ तथा बरट्रेन्ड
के मॉडलों में मूल अन्तर यह है कि बरट्रेन्ड ने जबकि यह माना कि प्रत्येक द्वि-अधिकारी की उत्पादन
क्षमता असीमित है और इस कारण वह असीमित बाजार मांग को पूरा कर सकता है, एजवर्थ ने अपने मॉडल में प्रत्येक द्वि-अधिकारी की
उत्पादन क्षमता को सीमित माना जिस कारण निम्न कीमत स्तरों पर भी उत्पादक सम्पूर्ण
बाजार-मांग को पूरा नहीं कर सकता। प्रत्येक द्वि-अधिकारी एक कीमत पर, इतनी मांग को
स्वीकार करता है जितनी को वह पूरा कर सकता है। एजवर्थ के माॅडल
में यह आवश्यक नहीं है कि द्वि-अधिकारियों के पदार्थ पूर्ण रूप से समान हो , इसका
तर्क उस समय भी लागू होता है, जबकि विभिन्न पदार्थ एक दूसरे के निकट स्थानापन्न हो
जिस कारण इनमें तनिक से कीमत-अन्तर के कारण उपभोक्ता अधिक कीमत वाले पदार्थ को
छोड़ कर कम कीमत वाले पदार्थ पर चले जाते हैं। फिर भी हम निम्न विश्लेषण में यह
मान लेंगे कि दोनों द्वि-अधिकारियों के पदार्थ पूर्ण रूप से समान है। इसके
अतिरिक्त, दोनों द्वि-अधिकारियों के लिए
लागत दशाओं का समरूप होना आवश्यक नहीं है यद्यपि वे समान हो सकती है।
एजवर्थ के द्वि-अधिकारी मॉडल को चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
यहाँ चूंकि यह मान लिया गया है कि दोनों द्वि-अधिकारियों के पदार्थ पूर्णरूप से समान है, इसलिए पदार्थ की एक ही कीमत पर बाजार दोनों द्वि-अधिकारियों में बराबर-बराबर बाँटा हुआ होगा। मान लीजिए कि DC तथा DC' प्रत्येक द्वि-अधिकारी के माँग वक्र है तथा OB तथा OB' अधिकतम सम्भव उत्पादन मात्राएँ है जिनका उत्पादन दोनों द्वि-अधिकारी क्रमशः कर सकते है। यदि दोनों द्वि-अधिकारी कपट सन्धि कर ले तो वे OP एकाधिकारी कीमत का निर्धारण कर सकेंगे और उनके संयुक्त लाभ अधिकतम होगे। OQ कीमत का प्रतिनिधित्व करती है जिस पर दोनों द्वि-अधिकारी अपने अधिकतम उत्पादनों को बेच सकते है।
माना कि द्वि-अधिकारी OP कीमत प्राप्त कर रहे है और पहला व दूसरा द्वि-अधिकारी क्रमशः OA तथा OA' मात्रा का उत्पादन करके बेच रहा है। अब मान लीजिए कि पहला उत्पादक अपनी कीमत को कम करने की सोचता है। पहला उत्पादक यह मान लेगा कि वह चाहे जो भी कीमत निर्धारित करे परन्तु दूसरा उत्पादक OP कीमत ही वसूल करता रहेगा। दूसरे उत्पादक की कीमत OP पर स्थिर रहने की दशा में, पहला उत्पादक यह सोचता है कि वह यदि अपनी कीमत को OP से तनिक कम कर दे तो वह दूसरे उत्पादक के उपभोक्ताओं को आकर्षित कर सकेगा और इस कारण वह अपने सम्पूर्ण अधिकतम उत्पादन को बेच सकेंगा। इस परिवर्तन के कारण पहले उत्पादक के लाभ पहले की तुलना में बढ़ जाएँगे। इस प्रकार चित्र में यदि पहला उत्पादक अपनी कीमत को OP से घटा कर OR कर देता है तो वह अपना सम्पूर्ण अधिकतम उत्पादन OB बेच सकता है जिससे उसको OBSR के समान लाभ प्राप्त होगा जो पहले वाले OA EP लाभ से अधिक है। अतः उत्पादक A अपनी कीमत को कम करके अपने लाभों में वृद्धि कर सकेगा।
परन्तु जब पहला उत्पादक अपनी कीमत को कम कर देता है तो दूसरा उत्पादक यह देखता है कि उसके बहुत से क्रेता उसको छोड़ कर जा रहे है जिसके कारण उसकी बिक्री गिर रही है। इस कारण दूसरे उत्पादक के लाभों में काफी कमी हो जाएगी। परिणामस्वरूप वह कुछ करने की सोचेगा, परन्तु वह यह भी अनुमान कर लेगा कि पहला उत्पादक अपनी कीमत OR पर स्थिर रखेगा। दूसरा उत्पादक यह देखता है कि यदि वह अपनी कीमत पहले उत्पादक की कीमत OR से तनिक कम कर दे, मान लो OR' कीमत निर्धारित कर दें, तो वह अपने अधिकतम सम्भव उत्पादन OB' को बेचने के लिए पहले उत्पादक के काफी क्रेताओं को आकर्षित कर सकता है। इस प्रकार जब उत्पादक अपनी कीमत को घटा कर OR' कर देता है तो वह अपने समस्त उत्पादन OB' को बेच देता है और OR'S'B' के बराबर लाभ प्राप्त करता है जोकि पहले प्राप्त हो रहे लाभों से अधिक है। पहले उत्पादक की इसके प्रति प्रतिक्रिया होगी और वह सोचेगा कि यदि वह अपनी कीमत को OR' से थोडा कम कर दे, तो वह अपने समस्त उत्पादन OB को दूसरे उत्पादक के क्रेताओं को आकर्षित करके बेचने में सफल हो जाएगा। वह तब भी सोचेगा कि दूसरा उत्पादक अपनी कीमत OR' वर स्थिर रखेगा। इस प्रकार, जब पहला उत्पादक अपनी कीमत कम कर देता है तो उसके लाभ उस समय के लिए बढ़ जाते हैं। परन्तु इसके कारण दूसरे उत्पादक की प्रतिक्रिया होगी और वह अपने लाभों को बढ़ाने के लिए अपनी कीमत को कम कर देगा। इस प्रकार एजवर्थ के अनुसार दोनो उत्पादको द्वारा कीमत में कटौतियां की जाती रहेंगी जब तक कि कीमत गिर कर OQ नही हो जाती जिस पर कि दोनों उत्पादक अपना अधिकतम उत्पादन बेच सकते हैं।
चित्र से यह स्पष्ट है कि कीमत OQ पर पहले तथा दूसरे उत्पादक क्रमशः OB तथा OB' (OB = OB') मात्राओं को बेच रहे है और क्रमश: OBTQ तथा OBT'Q लाभों को प्राप्त कर रहे है। जब कीमत गिरकर OQ स्तर पर पहुंच जाती है तो किसी भी उत्पादक की कीमत में कटौती करने से कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा। OQ कीमत पर चूंकि प्रत्येक उत्पादक अपने समस्त उत्पादन जिसका वह उत्पादन कर सकता है को बेच रहा है, वह अपने लाभों में वृद्धि नहीं कर सकेंगा वयोंकि वह अपने उत्पादन में और अधिक वृद्धि नहीं कर सकता। परन्तु एजवर्थ के अनुसार सन्तुलन कीमत OQ पर स्थापित नहीं होता। एजवर्थ का तर्क यह है कि यद्यपि किसी को भी उत्पादक को कीमत OQ से नीचे कम करने के लिए कोई प्रेरणा नहीं होगी परन्तु उसकी कीमत OQ से बढ़ाने के लिए प्रेरणा होगी। अतः एजवर्थ का कहना है, "इस बिन्दु पर ऐसा लगेगा कि संतुलन प्राप्त हो जाएगा। निश्चित रूप से प्रत्येक एकाधिकारी के हित में कीमत को और कम करना नहीं है। परन्तु इसमें वृद्धि करना प्रत्येक के हित में है"। OQ कीमत पर दोनों में से एक उत्पादन, मान लीजिए पहला उत्पादक, यह सोच सकता है कि उसका प्रतिद्वन्द्वी दूसरा उत्पादक अपना सम्पूर्ण सम्भावित उत्पादन OB' कुल बाजार के आधे उपभोक्ताओं को बेच रहा है तथा अधिक उपभोक्ताओं को वह आकर्षित कर ही नहीं सकता क्योंकि उसके उत्पादन में और वृद्धि सम्भव ही नहीं है। इस प्रकार पहला उत्पादक सोचता है कि वह बाजार के आधे उपभोक्ताओं को उस कीमत पर पदार्थ बेच सकता है जो उसके लिए सबसे लाभप्रद है। वह कीमत पर प्राप्त हो रहे लाभ OBTQ क्षेत्र से अधिक है। अतः यह जानकर कि उसके प्रतिद्वन्द्वी ने अपने समस्त सम्मानित उत्पादन को बाजार में प्रस्तुत करके, जो कुछ बुरे से बुरे कर सकता था कर दिया है और वह उसकी OA मांग की किसी भी इकाई को आकर्षित नही कर सकता क्योंकि वह अधिक उत्पादन करने में असमर्थ है, पहला उत्पादक कीमत को OP तक बढ़ा देगा और इस प्रकार अपने लाभों को बढा लेगा।
परन्तु जब पहला उत्पादक कीमत को बढ़ा कर OP कर देता है तो दूसरा उत्पादक यह महसूस करेगा कि यदि वह OP से तनिक कम कीमत निर्धारित कर दे तो वह पहले उत्पादक के काफी क्रेताओं को आकर्षित करके OQ से ऊँची कीमत पर भी अपनी बिक्री को OB' कर सकेगा। वह मान लेता है कि पहला उत्पादक OP कीमत ही वसूल करता रहेगा।
इस प्रकार वह अपने लाभ बढ़ा लेगा। अतः दूसरा उत्पादक अपनी कीमत को बढ़ा देगा और अपनी कीमत OP से तनिक कम निश्चित करेगा परन्तु जब पहला उत्पादक यह देखता है कि उसके क्रेताओं के कम होने से उसकी बिक्री गिर रही है तो वह सोचता है कि यदि वह अपनी कीमत को कम करके, दूसरे उत्पादक की कीमत से कम कर दे तो वह अपने लाभों में वृद्धि कर सकता है। वह जब ऐसा करता है तो दूसरे उत्पादक की प्रतिक्रिया होती है और इस प्रकार यह क्रम चलता रहता है। इस प्रकार कीमत कटौतियों की प्रक्रिया एक बार फिर चालू हो जाती है और कीमत फिर OQ स्तर पर आ जाएगी। परन्तु कीमत के OQ पर पहुँचने के बाद कोई भी एक उत्पादक पुनः कीमत को बढ़ा देता है और इस प्रकार यह क्रम चलता रहेगा। इस प्रकार कीमत OP तथा OQ के बीच चक्कर काटती रहती है। यह धीरे- धीरे नीचे गिरती है परन्तु कूद कर ऊँपर पहुंच जाती है। जैसा कि ऊपर कहा गया OP कीमत एकाधिकारी कीमत है औरा OQ कीमत पूर्ण प्रतियोगी कीमत है।
निष्कर्ष
उपर्युक्त वर्णन से यह अर्थ निकलता है कि एजवर्थ का द्वि- अधिकारी समाधान निरन्तर असन्तुलन का है क्योंकि कीमत लागातार एकाधिकारी कीमत तथा पूर्ण प्रतियोगी कीमत के बीच चक्कर काटती रहती है। इस प्रकार एजवर्थ का द्वि-अधिकारी मॉडल किसी विलक्षण तथा निश्चित द्वि-अधिकारी संतुलन का वर्णन नहीं करता।
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