अर्थशास्त्र - यथार्थ अथवा आदर्श विज्ञान (Positive or Normative Science)

अर्थशास्त्र - यथार्थ अथवा आदर्श विज्ञान (Positive or Normative Science)

अर्थशास्त्र - यथार्थ अथवा आदर्श विज्ञान (Positive or Normative Science)

अर्थशास्त्र - यथार्थ अथवा आदर्श विज्ञान (Positive or Normative Science)

प्रश्न :- "अर्थशास्त्र के विज्ञान के यथार्थ और आदर्श दोनों पक्ष है। विवेचना कीजिए

अर्थशास्त्र की यथार्थ विज्ञान और आदर्श विज्ञान के रूप में प्रकृति की व्याख्या कीजिए। क्या यह सामाजिक विज्ञान है?

→ "आर्थिक विश्लेषण का उद्देश्य केवल सत्य की खोज करना ही नहीं बल्कि यथार्थ समस्याओं के हल में सहायता करना भी है।" व्याख्या करें

" अर्थशास्त्री का कार्य खोज और व्याख्या करना है, न कि समर्थन या खण्डन करना।" विवेचना कीजिए।

उत्तर:- अर्थशास्त्र - यथार्थ अथवा आदर्श विज्ञान है, इसकी व्याख्या J. N. Keynes ने अपनी पुस्तक ' The scope and method of Political Economy' में किया। उनके अनुसार, "एक यथार्थ विज्ञान को ज्ञान का ऐसा व्यवस्थित अंग परिभाषित किया जा सकता है जो क्या है से संबंधित है; एक आदर्श विज्ञान ज्ञान का ऐसा व्यवस्थित अंग है जो क्या होना चाहिए के मापदंड से संबद्ध है, और वास्तविक से भिन्न आदर्श से संबंधित है।"

इस प्रकार, यथार्थ विज्ञान का संबंध "क्या है" से है और आदर्श विज्ञान का "क्या होना चाहिए" से है।

अर्थशास्त्र यथार्थ विज्ञान के रूप में

रॉबिन्स  ने अपनी पुस्तक An Essay on the Nature and Significance of Economic Science में इस विवाद को तीव्र रुप दिया कि क्या अर्थशास्त्र एक यथार्थ विज्ञान है अथवा आदर्श विज्ञान। रॉबिन्स अर्थशास्त्र को क्या है का विशुद्ध विज्ञान मानता है जिसका संबंध नैतिक या नीतिशास्त्र विषयक प्रश्नों से नहीं है। अर्थशास्त्र लक्ष्यों के प्रति तटस्थ रहता है। अर्थशास्त्री को लक्ष्यों की अपनी बुद्धिमत्ता या मूर्खता के संबंध में निर्णय देने का कोई अधिकार नहीं है। वह केवल इच्छित लक्ष्यों के संबंध में संसाधनों की समस्या से सरोकार रखता है। सिगरेटो तथा शराब का निर्माण तथा क्रय स्वास्थ्य के लिए हानिकर हो सकता है, और इसलिए नैतिक दृष्टि से अनुचित है, परन्तु अर्थशास्त्री को इस सम्बंध में निर्णय देने का कोई अधिकार नहीं, क्योंकि दोनों ही मानव इच्छाओं को संतुष्ट करती है और दोनों में आर्थिक क्रिया शामिल रहती है।

क्लासिकी अर्थशास्त्रियो का अनुसरण करते हुए, रॉबिन्स उन प्रस्थापनाओं को, जिनमें "चाहिए" शामिल है, उन प्रस्थापनाओं से भिन्न प्रकार की मानता है जिनमें "है" शामिल रहता है। वह समझता है कि पूछताछ के यथार्थ तथा आदर्श क्षेत्रों के बीच एक 'तार्किक खाई' है क्योंकि वे "विचार - विमर्श के एक ही धरातल पर नहीं है।" क्योकि "अर्थशास्त्र निर्णय-योग्य तथ्यों पर विचार करता है" और नीतिशास्त्र "मूल्यनो तथा कर्त्तव्यो पर" इसलिए" उन्हें अलग न रखने, या उनके अनिवार्य अन्तर को स्वीकार न करने का वह कोई कारण नहीं देखता। इसलिए, उनका मत है कि "अर्थशास्त्रियों का काम यह है कि वे खोज और व्याख्या करे, न कि समर्थन और खण्डन। इस प्रकार एक अर्थशास्त्री को लक्ष्य का चुनाव नहीं करना चाहिए, बल्कि तटस्थ रहना चाहिए और केवल उन साधनों का संकेत करना चाहिए जिनसे लक्ष्य की प्राप्ति हो सके।

फ्रीड‌मैन भी राबिन्स की तरह अर्थशास्त्र को एक यथार्थ विज्ञान मानता है। इन्होंने अपनी पुस्तक 'Essays in Positive Economics' में लिखा है, "एक यथार्थ विज्ञान का अन्तिम उद्देश्य एक सिद्धांत' या 'परिकल्पना का विकास करना है जो अभी तक न देखे गए तत्त्वो के बारे में मान्य और अर्थपूर्ण भविष्यवाणियां प्रदान करता है।" इस संदर्भ में, अर्थशास्त्र व्यवस्थित सामान्यीकरण प्रदान करता है जिन्हें सही भविष्यवाणियां करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। क्योकि अर्थशास्त्र की भविष्यवाणियों को टैस्ट किया जा सकता है, इसलिए भौतिकी की तरह अर्थशास्त्र एक यथार्थ विज्ञान है जो मूल्य निर्णयों से मुक्त होना चाहिए। फ्रीडमैन के अनुसार, एक अर्थशास्त्र का उद्देश्य एक सच्चे वैज्ञानिक की तरह होता है, जो नई परिकल्पनाओं और सिद्धांतो का निर्माण करता है। परिकल्पनाएं और सिद्धांत हमे भविष्य की घटनाओ के बारे में भविष्यवाणी करने की अनुमति देते है या केवल इस बात की व्याख्या देते है कि भूतकाल में क्या हुआ। परन्तु ऐसी परिकल्पनाओ और सिद्धांतों की भविष्यवाणियां घटनाओं द्वारा सीमित हो भी सकती है और नहीं भी। इस प्रकार, अर्थशास्त्र किसी अन्य प्राकृतिक विज्ञान की भांति एक यथार्थ विज्ञान होने का दावा करता है।

इस प्रकार अर्थशास्त्र एक यथार्थ विज्ञान है। यह इस बात की व्याख्या करने का प्रयत्न करता है कि वास्तव में क्या होता है, इस बात की नहीं कि क्या होना चाहिए। उन्नीसवीं शताब्दी के अर्थशास्त्रियों का भी यही मत था। सीनियर तथा जे. एस. मिल से लेकर बाद के लगभग सभी प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने यह घोषणा की है कि अर्थशास्त्र को 'क्या है' से सम्बंध रखना चाहिए न कि "क्या होना चाहिए।"

अर्थशास्त्र आदर्श विज्ञान के रूप में

अर्थशास्त्र क्या होना चाहिए "का आदर्श विज्ञान है। एक आदर्श विज्ञान के रूप में अर्थशास्त्र नैतिक दृष्टिकोण से आर्थिक घटनाओं का मूल्यांकन करता है। मार्शल, पीगू, हॉट्रे, फ्रेजर जैसे अर्थशास्त्री इस मत से सहमत नहीं कि अर्थशास्त्र केवल एक यथार्थ विज्ञान है। वे तर्क देते है कि अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है जिसमे मूल्य निर्णय पाए जाते है और मूल्य निर्णयों को प्रमाणित नहीं किया जा सकता कि वे सत्य है या असत्य। यह प्राकृतिक विज्ञानों की तरह वास्तविक विज्ञान नहीं है। इसके लिए निम्न तर्क दिए जाते हैं।

प्रथम, जिन मान्यताओं पर आर्थिक नियम और सिद्धांत आधारित है उनका संबंध मनुष्य और उसकी समस्याओं से है। जब हम उनके आधार पर आर्थिक घटनाओं की भविष्यवाणी और टैस्ट करते हैं, तो उनमें व्यक्तिपरक अंश सदैव प्रवेश कर जाता है।

दूसरे, क्योंकि अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, इसलिए आर्थिक सिद्धांत सामाजिक और राजनैतिक कारको द्वारा प्रभावित होते है। उनको टेस्ट करते समय, अर्थशास्त्रियों द्वारा व्यक्तिपरक मूल्य निर्णयों के प्रयोग करने की संभावना पाई जाती है।

तीसरे, प्राकृतिक नियमों में प्रयोग किए जाते है जिनके द्वारा नियमों का निर्माण होता है परन्तु अर्थशास्त्र में प्रयोगीकरण संभव नहीं है। इसलिए अर्थशास्त्र के नियम केवल प्रवृत्तियां ही बन कर रह जाते हैं।

निष्कर्ष

अतः यह दृष्टिकोण कि अर्थशास्त्र केवल यथार्थ विज्ञान है वास्तविकता से दूर है। अर्थशास्त्र को उसके आदर्श विज्ञान के पहलू से अलग नहीं किया जा सकता। कयोंकि अर्थशास्त्र मानव कल्याण से संबद्ध है, इसलिए इसमें नैतिक विचार पाए जाते है और अर्थशास्त्र एक आदर्श विज्ञान भी है। पीगू के अनुसार मार्शल का यह विश्वास था कि" आर्थिक विज्ञान प्रमुख रुप से न तो बौद्धिक कलाबाजी और न ही सत्य को उसके अपने निमित्त जीतने के साधन के रूप में है, बल्कि इसलिए मूल्यवान है कि वह नीतिशास्त्र की कर सेविका तथा व्यवहार की दासी है।" इन विचारो के आधार पर, अर्थशास्त्र केवल प्रकाशदायक' ही नहीं बल्कि 'फलदायक' भी है। अर्थशास्त्री केवल दर्शक या आरामकुर्सी में बैठे रहने वाले साहित्यिक ही नहीं बने रह सकते। फ्रेजर ने कहा कि "एक अर्थशास्त्री जब केवल अर्थशास्त्री ही बना रहता है तो बेचारी सुन्दर मछली के समान होता है"। आयोजन के इस युग में, जबकि सब राष्ट्र कल्याणकारी राज्य बनाना चाहते है, केवल अर्थशास्त्र ही इस स्थिति में है कि समर्थन, खण्डन, तथा आधुनिक जगत के आर्थिक रोगों का उपचार कर सके। पीगू ने अपनी पुस्तक 'The Economics of Welfare' में लिखा था कि "जब हम उन मानव उद्देश्यों के खेल को देखने लगते है- जो कि साधारण होते है- कुछ ऐसे कि क्षुद्र, तुच्छ और निकृष्ट होते है, तो हमारा आवेग एक दार्शनिक का आवेग नहीं होता, ज्ञान केवल ज्ञान के लिए नहीं होता, बल्कि चिकित्सक का वह ज्ञान होता है जो घावों को भरने में सहायक होता है"। अर्थशास्त्री के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है कि वह धन के असमान वितरण, औद्योगिक शान्ति, सामाजिक सुरक्षा इत्यादि की समस्याओं की व्याख्या और विश्लेषण करे, बल्कि उसका कार्य इनका समाधान करना भी है। यदि वह केवल सिद्धान्तवादी ही होता, तो मानव के भाग्य में केवल गरीबी, मुसीबत और वर्ग संघर्ष ही होते। यह तथ्य, कि अर्थशास्त्रियों को आर्थिक समस्याओ पर निर्णय तथा सुझाव देने को कहा जाता है, प्रकट करता है कि अबंध नीति की भावना के समाप्त होने के बाद से, आर्थिक विज्ञान के आदर्शात्मक पक्ष का पलड़ा भारी होता जा रहा है।'

वूटन ठीक ही कहती है कि "अर्थशास्त्रियों के लिए अपनी चर्चाओं में आदर्शात्मक पक्ष को पूर्ण रूप से छोड़ देना बहुत कठिन है।" मिर्डल अधिक स्पष्टतया कहता है कि अर्थशास्त्र मूल्य से भरा हुआ है और 'एक निस्वार्थ सामाजिक विज्ञान कभी भी अस्तित्व में नहीं रहा है, और तार्किक कारणों से, अस्तित्व में नहीं रह सकता है।"

आदर्श और यथार्थ अर्थशास्त्र के संबंध के बारे में, फ्रीडमैन का कथन है कि यथार्थ विज्ञान से निष्कर्ष महत्त्वपूर्ण आदर्श समस्याओं से, क्या करना चाहिए के प्रश्नों से और किस प्रकार दिया उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है से तत्काल संबद्ध है। यथार्थ विज्ञान से आदर्श विज्ञान स्वतंत्र नहीं हो सकता यद्यपि यथार्थ विज्ञान मूल्य निर्णयों से स्वतंत्र है। इसलिए अर्थशास्त्र न केवल "क्या है" का यथार्थ विज्ञान है, बल्कि "क्या होना चाहिए "का आदर्श विज्ञान भी है।

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