प्रश्न- एकाधिकारिक प्रतियोगिता क्या है। एकाधिकारी प्रतियोगिता की मुख्य विशेषता क्या है? इस
बाजार में मूल्य का निर्धारण किस प्रकार होता है?
उत्तर- एकाधिकारिक
प्रतियोगिता बाजार की वास्तविक स्थिति है। वास्तविक जीवन में न तो पूर्ण प्रतियोगिता
पायी जाती है और न एकाधिकार ही पाया जाता है। एकाधिकारिक प्रतियोगिता का प्रतिपादन
अमेरिकी अर्थशास्त्री ई. एच. चेम्बरलिन ने अपनी पुस्तक "एकाधिकारिक प्रतियोगिता
का सिद्धांत" में किया।
एकाधिकारिक प्रतियोगिता की धारणा अर्थशास्त्र में क्रांतिकारी
और महत्त्वपूर्ण धारणा है। प्रो.
चेम्बरलिन के अनुसार -
"एकाधिकारिक प्रतियोगिता की धारणा अर्थशास्त्र की परम्परागत
विचारधारा की चुनौती है जिसमे कि प्रतियोगिता और एकाधिकार को दो वैकल्पिक अवस्थाएँ
माना जाता है और व्यक्तिगत कीमतों की या तो प्रतियोगिता के अन्तर्गत या एकाधिकार के
अन्तर्गत व्याख्या की जाती है। परन्तु इसके विपरीत मेरे विचार में अधिकांश आर्थिक अवस्थाएँ
प्रतियोगिता और एकाधिकार का मिश्रण होती है"।
अतः एकाधिकारिक प्रतियोगिता बाजार का वह रूप है जिसमे बहुत
से छोटे फर्म होते है और उनमें से प्रत्येक फर्म मिलती जुलती वस्तुएँ बेचता है। परन्तु
वस्तुएँ एकरूप नहीं होती बल्कि वस्तुओं में थोड़ी भिन्नता होती है।
वस्तु विभेद के कारण प्रत्येक विक्रेता एक सीमा तक वस्तु
की कीमत को प्रभावित कर सकता है और इस प्रकार वह अपने क्षेत्र में एक छोटा सा एकाधिकारी
होता है। परन्तु इन एकाधिकारी विक्रेताओं में बड़ी तीव्र प्रतियोगिता होती है। इसी
को चेम्बरलिन ने एकाधिकारिक प्रतियोगिता कहा है। उदाहरण के लिए कोलगेट, फोरहेन्स, बिनाका,
एक टूथपेस्ट है, फिर भी उनका अलग-अलग नाम होने के कारण एक सीमा के अन्तर्गत उनमे आपसी
प्रतियोगिता नहीं पायी जाती है। लेकिन फिर भी
विभिन्न विक्रेता बाजार में अपनी वस्तुओ की बिक्री बढ़ाने के लिए प्रतियोगिता करते
है। इसलिए, इसे एकाधिकारिक प्रतियोगिता कहते है।
एकाधिकारिक प्रतियोगिता की विशेषताएँ
एकाधिकारिक प्रतियोगिता की निम्नलिखित विशेषताएँ है
(1) विक्रेताओं की अधिक संख्या :-
एकाधिकारिक प्रतियोगिता के अन्तर्गत स्वतंत रूप से कार्य करने वाले विक्रेताओं
अथवा फर्मे की अधिक सरुया होती है, लेकिन उनकी सख्या पूर्ण प्रतियोगिता के
अन्तर्गत वाये जाने वाले फर्मे की अधिक संख्या होती है, लेकिन उनकी संख्या पूर्ण
प्रतियोगिता के अन्तर्गत पाये जाने वाले फर्में की संख्या के बराबर नहीं होती।
प्रत्येक व्यक्तिगत फर्म कुल उत्पत्ति का एक छोटा भाग ही बेचता है तथा वस्तु के
मूल्य पर सीमित नियंत्रण रखता है। एकाधिकारिक प्रतियोगिता के अन्तर्गत प्रत्येक
फर्म स्वतंत्र मूल्य एवं उत्पादन की नीति अपनाता है तथा विरोधी फर्मों से प्रायः
कम ही प्रभावित होती है।
(2) फर्मों का स्वतंत्र प्रवेश :-
एकाधिकारिक प्रतियोगिता में उद्योग में किसी फर्म को प्रवेश में पूर्ण स्वतंत्रता
रहती है, परन्तु पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में इनका प्रवेश कुछ कठिन होता है।
इसका कारण है- वस्तु विभेद का होना।
(3) गैर प्रतियोगिता मूल्य :-
एकाधिकारिक प्रतियोगिता में वस्तुएँ भेदित होती है। इसलिए फर्मों में तीव्र गैर
मूल्य प्रतियोगिता होती है। इसका अर्थ है कि एकाधिकारिक प्रतियोगिता में स्पर्धा
केवल मूल्य पर आधारित नहीं होती बल्कि वस्तु के गुण, वस्तु के विक्रय से संबंधित
दशाओं या सेवाओं, विज्ञापन इत्यादि पर आधारित होती है ऐसी प्रतियोगिता को गैर
मूल्य प्रतियोगिता कहते है।
(4) वस्तु विभेद :-
वस्तु विभेद एकाधिकारिक प्रतियोगिता का मूल आधार है। सभी फर्मों द्वारा उत्पादित
वस्तुएँ अधिकांश अंशों में एक दूसरे की स्थापन्न होती है। परन्तु वे एक जैसी नहीं
होती है। प्रत्येक फर्म जिस वस्तु को उत्पन्न करता है, वह किसी न किसी रूप से अन्य
फर्मों की वस्तुओं से भिन्न होती है। वस्तु विभेद दो प्रकार का हो सकता है (a) वास्तविक वस्तु
विभेद और (b) कृत्रिम वस्तु विभेद ।
एकाधिकारिक प्रतियोगिता के संतुलन की शर्ते
एकाधिकारिक प्रतियोगिता के अन्तर्गत
संतुलन के दो शर्ते निम्नलिखित है
(1) सीमांत आय सीमांत लागत के बराबर
हो
MR = MC
(2) सीमांत आय वक्र सीमांत लागत वक्र
को नीचे से काटे
हम जानते हैं कि कुल आय एवं कुल लागत
का अंतर कुल लाभ होता है।
π
= R – C
जहां , π
= लाभ , R = आय , C = लागत
We find first derivatives with Respect to X
`\frac{d\pi}{dx}=\frac{dR}{dx}-\frac{dC}{dx}`
लाभ अधिकतम करने पर ;`\frac{d\pi}{dx}=` 0
`or,\frac{dR}{dx}=\frac{dC}{dx}`
⸫ MR = MC
We find first derivatives with Respect to X
`\frac{d\pi}{dx}=\frac{dR}{dx}-\frac{dC}{dx}`
लाभ अधिकतम करने पर ;`\frac{d\pi}{dx}=` 0
`\frac{dR}{dX}-\frac{dC}{dX}=0`
`or,\frac{dR}{dx}=\frac{dC}{dx}`
⸫ MR = MC
We find Second derivatives With Respect To X
`\frac{d^2\pi}{dx^2}=\frac{d^2R}{d^2x}-\frac{d^2C}{d^2x}`
लाभ अधिकतम करने पर ; `\frac{d^2\pi}{dx^2}`< 0
`or,\frac{d^2R}{d^2x}-\frac{d^2C}{d^2x}<0`
`or,\frac{d^2R}{d^2x}<\frac{d^2C}{d^2x}`
`or,\frac{d^2C}{d^2x}>\frac{d^2R}{d^2x}`
`or,\frac d{dx}\left(\frac{dC}{dx}\right)>\frac d{dx}\left(\frac{dR}{dx}\right)`
अतः , Slope of (MC) > Slope of (MR)
अर्थात् सीमांत आय वक्र को सीमांत लागत वक्र नीचे से काटे
इसे चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
उपर्युक्त रेखा चित्र में,
MC = सीमांत लागत
MR = सीमांत आय
AC = औसत लागत
AR = औसत आय
चित्र में संतुलन की दोनों शर्तें पूरी हो
रही है अर्थात् MR = MC है एवं MC रेखा MR रेखा को नीचे से काटती है। अतः वस्तु का
मूल्य OP निर्धारित होगा
चित्र से,
एकाधिकार में AR रेखा मांग एवं मूल्य की रेखा होती है। AR तथा MR दोनों रेखाएं नीचे की ओर झुकती है। परंतु MR रेखा AR रेखा से दुगनी गति से झुकती है। इसे गणितीय रूप से सिद्ध कर सकते हैं।
According to Figure Slope of
MR = 2 ( Slope of AR )
Let, TR = ax – bx2---------------(1)
`AR=\frac{TR}x=\frac{ax}x-\frac{bx^2}x=a-bx`
`Slope\;of\;AR=\frac{d(AR)}{dx}=-b`-------(2)
Again, TR = ax – bx2
MR = 1st Order derivatives of TR
`\frac{d(TR)}{dx}=MR=a-2bx`
Slope of MR =`\frac{d\left(MR\right)}{dx}`=-2b .......(3)
From equation (2) and (3) we get
Slope of MR = 2 ( slope of AR )
परिवर्तनशील
अनुपात के नियमानुसार एवं अन्य कारणों से औसत लागत वक्र एवं सीमांत लागत वक्र 'U' आकार
की होती है।
अल्पकालीन संतुलन
यहाँ
संतुलन के लिए एक ही आवश्यक शर्तें है (MR=MC) चूंकि अल्पकाल में फर्म अपनी उत्पादन
क्षमता को मांग के अनुसार समायोजित नहीं कर पाता इसलिए अल्पकाल में तीन संभावनाएँ देखने
को मिलती है।
(1) असामान्य लाभ की स्थिति :-
उपर्युक्त चित्र में E संतुलन बिंदु है जहां MR = MC है। E बिन्दु से होती हुई खड़ी
रेखा को खींचने से वह AR
रेखा को R बिन्दु पर मिलती है। चूँकि AR (कीमत), AC के ऊपर
है, इसलिए फर्म को RQ प्रति इकाई लाभ होगा, अतः मूल्य =
OP तथा उत्पादन की मात्रा = OQ
We Know that
असामान्य लाभ = TR - TC
TR = AR ( output ) TC = AC ( output )
TR = QR ( OQ ) TC = MQ ( OQ )
TR = OPRQ TC = OSMQ
असामान्य लाभ = OPRQ - OSMQ. = PRMS
रेखाचित्र में MR = MC, E बिन्दु पर बराबर हो रहा है। अतः यह संतुलन बिन्दु है। E
बिन्दु से होती हुई खड़ी रेखा AR रेखा को P बिन्दु पर मिलती है। P बिन्दु पर AR रेखा AC
रेखा को स्पर्श करती हुई निकलती है।
इसलिए AR = AC
अर्थात् फर्म को केवल सामान्य लाभ प्राप्त होता है,
अतः मूल्य = PN तथा उत्पादन की मात्रा ON निर्धारित होगी।
AR = NP = OQ, output = ON
TR = (AR) (output)
TR = (NP) (ON) = ONPQ
AC = (NP), output = ON
TC = (AC) (output)
TC = (NP) (ON) = ONPQ
Profit = TR - TC = ONPQ - ONPQ
Profit = 0 (शून्य )(सामान्य लाभ)
(3) हानि की स्थिति :-
उपर्युक्त रेखाचित्र में E बिन्दु पर MR = MC है। E
बिन्दु से होती हुई खड़ी रेखा AR रेखा को P बिन्दु पर मिलती है, इसलिए मूल्य PN
हुई। चूंकि AC रेखा AR रेखा (कीमत) से ऊपर है, इसलिए फर्म को RP के बराबर प्रति
इकाई हानि होगी।
AR = NP , output = ON
TR = (AR) (output)
TR = (NP) (ON)
TR = ONPQ
AC = (RN), output = ON
TC = (AC) (output)
TC = (RN) (ON)
TC = ONRS
Loss = TC - TR
Loss = ONRS - ONPQ
Loss = QPRS (हानि)
अब प्रश्न उठता है कि क्या एकाधिकृत प्रतियोगिता का फर्म हानि की अवस्था में अपना फर्म या उत्पादन जारी रखेगा अथवा बंद कर देगा। स्पष्टतः प्रो. हिपडन ने इसका जोरदार ढंग से खण्डन किया है कि Loss की किसी भी अवस्था में फर्म जारी रहेगा और उन्होने तर्क दिया की अगर एकाधिकृत प्रतियोगिता का फर्म बंद कर देता है तो वहाँ पर कार्यरत सारे श्रमिक बेरोजगार हो जाऐंगे जो मानवता के नाम पर एक बहुत बड़ा पाप होगा। साथ ही भविष्य में यदि वह फर्म का मालिक श्रमिको का समर्थन चाहेगा तो उसे कभी भी यह समर्थन प्राप्त नहीं होगा। परन्तु अल्पकाल की अवस्था में एकाधिकृत प्रतियोगिता का फर्म एक ऐसे बिन्दु पर पहुँचता है जहाँ पर वह हानि को बर्दाश्त नहीं कर सकता और अन्ततः वह फर्म उत्पादन बंद कर देता है।
TC = FC +VC
If Price > AVC
Firm will be run
If Price = AVC
Firm as to as
If Price < AVC
Firm will be droped.
दीर्घकाल संतुलन
दीर्घकाल में एकाधिकारिक फर्म का संतुलन दो शर्तों पर निर्भर है
(1) MR = MC
(2) AR = AC
दीर्घकाल में असामान्य लाभ गायब हो जाता है। लम्बी अवधि में उद्योग मे नये फर्म आ सकते है और उद्योग से बाहर निकल सकते है। यदि AR > AC है तो असामान्य लाभ की स्थिति होगी। इस लाभ से आकर्षित होकर नया फर्म उद्योग में प्रवेश करेगा। पूर्ति बढ़ेगी अतः कीमत (AR) कम हो जायेगी। इसके ठीक विपरीत यदि AC > AR तो कुछ फर्म उद्योग को छोड़कर निकल जायेगे। अतः पूर्ति कम हो जायेगी और कीमत बढ़ जायेगी। अतः दीर्घकाल में फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होता है।
AR = NP = OQ, output = ON
TR = (AR) (output)
TR = (NP) (ON) = ONPQ
AC = (NP), output = ON
TC = (AC) (output)
TC = (NP) (ON) = ONPQ
Profit = TR - TC = ONPQ - ONPQ
Profit = 0 (शून्य )(सामान्य लाभ)
सामूहिक संतुलन
एकाधिकारिक प्रतियोगिता के अन्तर्गत विभिन्न फर्म होते है जो एक दूसरे के निकट प्रतिस्थापक पदार्थों का उत्पादन करते है। परन्तु विभिन्न फर्मों की माँग तथा लागत दशाओं में विविधता रहती है। प्रो. चेम्बरलीन के अनुसार "पदार्थ का विभेदीकरण समरूप नहीं होता। यह समूह के विभिन्न पदार्थों में समान रूप से विपरित नहीं होता। प्रत्येक फर्म का अपना व्यक्तित्व होता है और इसके बाजार का आकार अन्य किस्मों की तुलना में इसके लिए अधिमान की मात्रा पर निर्भर करता है"।
समूह के संतुलन की व्याख्या के दो शीर्षको के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है
(1) अल्पकालीन समूह संतुलन -
रेखाचित्र में E संतुलन बिन्दु है जहां MR = MC
है। चूंकि AR > AC इसलिए समूह के सभी फर्म असामान्य लाभ प्राप्त करेंगे। ऐसा केवल अल्पकाल में
ही संभव है।
(2) दीर्घकालीन समूह संतुलत-
रेखाचित्र में E संतुलन बिन्दु है । OQ कीमत है। ON उत्पादन की
मात्रा है। चूँकि P बिन्दु पर AR = AC है अतः सभी को केवल सामान्य लाभ प्राप्त
होता है।
आलोचनाएँ
चैम्बरलिन के एकाधिकारिक प्रतियोगिता के सिद्धांत
की इतनी प्रशंसा होने के बावजूद भी सिद्धांत की कटु आलोचना की गई है जो निम्नलिखित
है:-
(1) एक रूपता की मान्यता को चुनौती
(2) समरूपता की मान्यता की आलोचना
(3) चैम्बरलिन की समूह की धारणा अस्पस्ट है
(4) चैम्बरलिन एकाधिकारिक प्रतियोगिता सिद्धांत में
सीमांत आय की धारणा को अधिक महत्त्व नहीं दिया
(5) चैम्बरलिन ने फर्मों की संख्या, माँग लोच तथा
बाजार अपूर्णता में सम्बंध को ठीक प्रकार से नहीं समझा
(6) प्रवेश की स्वतंत्रता अस्पष्ट
निष्कर्ष
उपर्युक्त विवेचनाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि
अल्पकाल में फर्मों के संतुलन के लिए MR = MC होना आवश्यक शर्तें है परन्तु
दीर्घकाल में MR = MC तथा AR = AC होना आवश्यक है।
अल्पकाल में फर्मों को लाभ-हानि दोनों होता है परन्तु
दीर्घकाल में फर्मों को केवल सामान्य लाभ प्राप्त होता है।
प्रो. स्टिंगलर ने चैम्बरलिन के सिद्धांत के कटु आलोचना करते हुए कहा है, "एकाधिकारिक प्रतियोगिता सिद्धांत का सामान्य योगदान, मुझको विवाद रहित लगता है; इसके कारण एकाधिकार पर हमारे चिन्तन का पुनर्विन्यास व परिष्कार हुआ। अब हम उद्योग तथा वस्तुओं की परिभाषा देते हुए तर्कपूर्ण बातो के बारे में अधिक सचेत हो गये है। हम इसके उचित प्रयोग के बारे में भी सावधान हो गए है। ट्रेड मार्क तथा विज्ञापन के महत्त्व तथा पदार्थ सरंचना तथा विकास के अध्ययन की आवश्यकता को अधिक सामान्य स्वीकृति प्राप्त हो गई है"।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)