Trade Reforms व्यापार सुधार (1991)

Trade Reforms व्यापार सुधार (1991)

Trade Reforms व्यापार सुधार (1991)

Trade Reforms व्यापार सुधार (1991)

प्रश्न: 1991 के बाद से व्यापार सुधारों का भुगतान संतुलन पर क्या प्रभाव पड़ा है?

Q. What is the impact of trade reforms since 1991 on the Balance of Payments.

Ans:- जून 1991 तक भुगतान संतुलन का संक इतना गंभीर हो चुका था कि उस पर काबू पाना सरकार की प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था। सरकार ने भुगतान संतुलन की समस्या को दूर करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए -

(1) स्वर्ण विक्रय तथा गिवी :- 24 मई 1991 को भारत में ज्यूरिख स्थित यूनियन बैंक ऑफ स्विट्जरलैंड को 20 न सोना बेच दिया जिससे 11.7 मिलियन डालर प्रति टन की दर से 234 मिलियन डालर प्राप्त हुए।

(2) विनिमय की दर का समायोजन :- 1 जुलाई और पुन: 3 ज‌लाई 1991 को रूपये का अवमूल्यन किया गया जिससे कि निर्यातों को प्रोत्साहन दिया जा सके। 1 मार्च 1992 से उदारीकृत विदेशी मुद्रा प्रबंध प्रणाली (LERMS) के अन्तर्गत दोहरी विनिमय दर प्रणाली अपनायी गयी । 1 मार्च 1993 से दोहरी दर प्रणाली की जगह एकीकृत प्रणाली अपनायी गयी जिसमे विदेशी मुद्रा की दर बाजार शक्तियों द्वारा निर्धारित की जाती है।

(3) भुगतान संतुलन की वित्त व्यवस्था :- सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और एशिया विकास बैंक जैसी बहुपक्षीय वित्तीय संस्था तथा द्विपक्षीय दाताओं से भुगतान संतुलन के लिए समर्थन जुटाने का प्रयास किया।

(4) स्वर्ण आयात योजना :- 1992-93 के बजट में वित्त मंत्री ने स्वर्ण आयात की नयी योजना लागू करने की घोषणा की जिसके अंतर्गत कोई भारतीय कम से कम छह महीने के विदेश प्रवास के पश्चात भारत लौटने पर पाँच किलोग्राम तक सोना बिस्कुट या सिल्लियों के रूप मे (धाभूषण नहीं) अपने साला सकेगा इस स्वर्ण पर प्रति 10 ग्राम पर 450 रुपये की दर से आयात शुल्क चुकाना होगा जो विदेशी मुद्रा में देय होगा। बाद में सरकार ने इस स्वर्ण आयात पर शुल्क को घटाकर 220रू प्रति 10 ग्राम कर दिया।

(5) विदेशी निवेशकों को पूंजी बाजार में प्रवेश की अनुमति :- 14 सितंबर 1992 को विदेशी पूंजी निवेश को भारत की ओर आकर्षित करने के उद्देश्य से सरकार ने साह‌सिक कदम उठाते हुए विदेशी संस्थागत निवेशकों को भारतीय पूंजी बाजार में प्रवेश की अनुमति दे दी है। इन निवेशकों के लिए करों में रियायतों की भी घोषणा की गयी।

(6) यात-निर्यात नीति का उदारीकरण :- 31 मार्च 1992 को भारत सरकार ने आठवी योजना के पाँच वर्षों के लिए नयी आयात-निर्यात नीति की घोषणा की जिसका मुख्य उद्देश्य विदेशी मुद्रा अर्जित करने हेतु निर्यातों को प्रोत्साहन देना था।

नयी आयात-निर्यात नीति 1997-2002 तथा आयात निर्यात नीति 2002-2007 में निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए कई प्रावधान किये गये ।

(7) अप्रवासी भारतीयों द्वारा अपने रिश्तेदारी को उपहार में शेयर दान :- वित्त मंत्रालय ने 15 सितंबर 1992 को घोषणा की कि प्रवासी भारतीय किसी भी भारतीय कंपनी के शेयर भारत में अपने कानून परिभाषित (कंपनी अधिनियम; 1956 के अनुसार) निकट संबंधियों को उपहार के रूप में दे सकेंगे उन पर विदेशी मुद्रा निमन कानून की धारा 19 की उपधारा 5 लागू नहीं होगी।

(8) रुपये की पूर्ण परिवर्तनीयता :- मार्च 1994 से रूपया चालू खाते पर पूर्ण रूप से परिवर्तनीय हो गया है। अब चालू खाते पर निर्यातकों को विदेशी मुद्रा की समस्त कमाई बाजार निर्धारित दर पर रूपये में परिवर्तनीय है। जब पूँजी खाते पर भी रूपये को परिवर्तनीय बना दिया जायेगा, तब देश की समस्त प्राप्तियां और अदायगिया एक दूसरे से जुड़ जायेंगी।

(9) औद्योगिक नीति संबंधी सुधा :- 90 दशक के दौरान पहले से प्राप्त लाभों को समेकित करने के लिए तथा रेलू उद्योगों को बड़ी मात्रा में स्पर्धात्मक प्रदान करने के लिए औद्योगिक नीति में बहुत से सुधार लागू किये गये

(10) सरकारी क्षेत्र में सुधार :- सरकारी क्षेत्र ने भारत के औद्योगिक ढांचे के विविधीकरण के लिए काफी अधिक योगदान दिया है, लेकिन और अधिक विस्तार के लिए आंतरिक संसाधन जुटाने की दिशा में इसके योगदान में, प्रत्याशाओं की अपेक्षा कमी आयी है। इस प्रवृत्ति को बदलने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में मौलिक सुधार किये गये

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