माल्थस का अति उत्पादन का सिद्धांत (Malthus theory of overproduction)

माल्थस का अति उत्पादन का सिद्धांत (Malthus theory of overproduction)

भारत की जनसंख्या नीतियाँ (POPULATION POLICIES OF INDIA)

प्रश्नः माल्थस के अति उत्पादन के सिद्धांत को समझाइए?

प्रभावी मांग की कमी के सिद्धांत की व्याख्या करें?

उत्तरः- अर्थशास्त्र के पिता एडम स्मिथ के अनुयायीथा प्राचीन सम्प्रदाय के प्रख्यात अर्थशास्त्री माल्थस का जन्म 14 फरवरी 1766 को रोकरी नामक स्थान में सरे, इंगलैंड में हुआ। इनके पिता डिनाइल माल्थस आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न व्यक्ति थे। इसकी शिक्षा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में हुई1788 में उन्होंने दर्शन और धर्मशास्त्र लेकर बी. ए. किया। शिक्षण कार्य के बाद एक स्थानीय गिरजाघर में पादरी के रूप में कार्य किया। यहीं से इन्होने सन् 1798 ई. में अपना प्रसिद्ध ऐतिहासिक निबंध 'An Essay on the principle of Population' प्रकाशित कराकर अपना जनसंख्या संबंधी दृष्टिकोण व्यक्त किया था।

माल्थस का विवाह सन् 1805 ई. में हुआ। सन् 1807 ई में माल्थस ईस्ट इण्डिया कम्पनी के हैलीबरी कॉलेज में इतिहास तथा राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक नियुक्त हुए। 1820 में उनका ग्रन्थ 'The principles of political Economy Considered with a view to their practical Application' प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक में उन्होने 'से' के बाजार नियम का खण्डन करते हुए 'अति उत्पादन' के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। सन् 1834 ई. में माल्थस का देहावसान हो गया।

माल्थस का अति उत्पादन का  सिद्धांत

माल्थस ने अति उत्पादन सिद्धांत में 'से' के बाजार नियम का खण्डन किया। उन्होंने बताया कि पूँजीवादी अर्थ-व्यवस्था में ही अति उत्पादन के कारण पाये जाते है।

माल्थस के अनुसार पूंजी संचयन की दर में वृद्धि होने पर श्रम की माँग बढ़ती है। इससे जनसंख्या विकास को प्रोत्साहन मिलता है परन्तु केवल जनसंख्या विकास से न में वृद्धि नहीं होती है। जनसंख्या वृद्धि से न में वृद्धि केवल तभी होती है जब इससे प्रभावी माँग में वृद्धि हो और यह प्रभावी माँग ही है जिससे न में वृद्धि होती है।

माल्थस ने उत्पादन और वितरण को "न के दो मुख्य तत्त्व" के रूप में स्वीकार किया है। यदि न दोनो तत्वों को सही अनुपात में मिलाया जाए तो वे देश के न को थोड़े समय में ही बढ़ा सकते है, और नही तो इसमें हजारों साल लग सकते है। इसलिए माल्थस ने अल्पावधि में देश का न बढ़ाने के लिए अधिकतम उत्पादन और संसाधनों के इष्टतम आवंटन पर बल दिया है।

माल्थस 'से' के इस विचार से सहमत नहीं है कि बाजार में अति उत्पादन नहीं होता । उनके अनुसार यह बिल्कुल भी सच नहीं है कि वस्तुओं का विनिमय वस्तुओं में होता है। वास्तव में वस्तुओं की अधिक मात्रा का विनिमय वस्तु‌ओं की अपेक्षा प्रत्यक्ष तौर पर श्रम से होता है। चूंकि श्रमिक जो उपभोक्ता है, अपने द्वारा उत्पादित उत्पाद के मूल्य से कम पारिश्रमिक प्राप्त करते है। इस प्रकार बाजार में माँग की तुलना में वस्तुओं की अधिक आपूर्ति है। आपूर्ति और माँग के इस अन्तर को पूँजीपतियों की माँग से भी पूरा नही किया जा सकता। पूँजीपति मितव्ययिता मे विश्वास रखते है और राजस्व से बचने एवं अपनी पूँजी में वृद्धि करने के लिए स्वयं को रोजमर्रा की सुविधाओं एवं विलासपूर्ण वस्तुओं से वंचित रखते हैं। मितव्ययी बनने से वे अधिक उत्पादनशील श्रमिको को नियोजित करते है। इस प्रकार बाजार में प्रभावी माँग की कमी के कारण अति उत्पादन हो जाती है। इससे मूल्य, लाभ, बचत, निवेश और पूँजी- संचयन में कमी होती है।

माल्थस के अनुसार, 'विशेष माँग के परिणामस्वरूप 16 या 18 वर्षों के अन्तराल के बाद जनसंख्या की प्रकृति से, बाजार में श्रमिको की बढ़ोत्तरी नहीं की जा सकती परन्तु पूँजी की आपूर्ति में जनसंख्या की अपेक्षा अधिक तेजी से वृद्धि हो सकती है। जब पूँजीपति पूँजी की आपूर्ति बढ़ाने के लिए उत्पादनशील श्रम में निवेश करता है तो प्रतियोगिता के कारण मजदूरी मे वृद्धि होती है। मजदूरी में वृद्धि से प्रभावी माँग नही बढ़ती क्योंकि श्रमिक बढ़े हुए उपभोग की अपेक्षा आराम करना अधिक पसन्द करते है। इसलिए अति उत्पादन की स्थिती होती है।

माल्थस ने अति उत्पादन की समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये

(1) संतुलित विकास :- माल्थस ने देश के आर्थिक विकास के लिए कृषि और औद्योगिक दोनो क्षेत्रों के संतुलित विकास का समर्थन किया। भूमि पर बढ़े हुए रोजगार के घटते हुए प्रतिफल से केवल तभी बचा जा  सकता है जब औद्योगिक क्षेत्र में तकनीकी प्रगति काफी तेज है और यदि इस निवेश से औद्योगिक क्षेत्र की जनसंख्या वृद्धि को रोजगार उपलब्ध कराया है और भूमि श्रमिकों के जीवन निर्वाह की लागत को कम किया जा सके और उनकी मजदूरी दरो में कमी की अनु‌मति ली जा सके।

(2) प्रभावी मांग को बढाना :- यद्यपि, तकनीकी प्रगति अकेले ही आर्थिक विकास की ओर तब तक नही ले जा सकती जब तक प्रभावी मांग न बजाए। माल्थस ने प्रभावी मांग बढ़ाने के लिए अनेक उपाय सुझाए है

(a) धन और भू-सम्पदा के अधिक समान वितरण से प्रभावी माँग को बढ़ाना संभव है।

(b) प्रभावी मांग को आन्तरिक और विदेशी व्यापार का विस्तार करके बढ़ाया जा सकता है।

(c) माल्थस ने प्रभावी मांग बढ़ाने के लिए गैर उत्पादनशील उपभोक्ताओं के रख-रखाव पर बल दिया। उन्होंने गैर - उत्पादनशील उपभोक्ताओं की परिभाषा उन व्यक्तियों के रूप में दी जो भौतिक वस्तुओं का उत्पादन नहीं करते यह कम उपभोग ही है जिससे वस्तुओं की भरमार आती है। इसलिए, उत्पादन में उपभोग को बढ़ाकर वृद्धि की जा सकती है।

(3) स्थिर अवस्था :- माल्थस के अनुसार, दीर्घकाल में मजदूरी समाज के जीवन स्तर को स्थिर बनाए रखने की प्रवृत्ति रखती है जिससे श्रमिको के परिवार इस पर निर्वाह कर सके। अर्थात् जब भी मजदूरी की दर न्यूनतम से अधिक होगी तो कार्यकारी जनसंख्या तीव्र दर से बढ़ेगी क्योंकि इससे श्रम शक्ति में वृद्धि होगी व जीवन स्तर ऊँचा होगा। अन्ततः घते प्रतिफलों की प्रवृत्ति लागू होगी और मांग व पूर्ति की स्थिति कार्यकारी जनसंख्या को निर्वाह स्तर पर कायम रखेगी।

अंत में कहा जा सकता है कि प्रगतिशील व्यवस्था में निवेश का उच्चा स्तर पाया जाता है जो सामान्य कुल उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होता है, जो मजदूरी को भी ऊँचा रखता है और आगे जनसंख्या में वृद्धि लाता है। जब जनसंख्या बढ़ती है तो मजदूरी निवेश की लाभदायकता को कम करती है जब तक कि निवेश की प्रेरणा समाप्त नहीं हो जाती है तथा अर्थव्यवस्था स्थिर अवस्था को प्राप्त होती है। माल्थस की स्थिर अवस्था को चित्र से दिखाया जा सकता है-

माल्थस का अति उत्पादन का सिद्धांत (Malthus theory of overproduction)

चित्र में देश की जनसंख्या को क्षैतिज अक्ष पर व जीवन स्तर को अनुलम्ब अक्ष पर मापा गया है। रेखा SW जीवन के निर्वाह स्तर को दर्शाती है जबकि वक्र LL1 वास्तविक जीवन स्तर को बताता है जिसे जनसंख्या की मात्रा को अन्य संसाधनों को स्थिर मात्रा के साथ लागू करके कायम रखा जाता है। वक्र LL1 का आकार यह स्पष्ट कर रहा है कि प्रारम्भिक अवस्था में जनसंख्या मजदूरी के साथ बढ़ती है जिससे जीवन स्तर ऊँचा होता है।

इस वक्र का उच्चतम स्तर बिन्दु M है जहाँ इष्टतम जनसंख्या OP व PM उच्च जीवन स्तर को दर्शो रहा है। बिन्दु M के पश्चात् वक्र LL1 नीचे की ओर गिरता है। इसका कारण यह है कि बढ़ रही जनसंख्या को अन्य संसाधनों की स्थिर मात्रा पर लागू किया जाता है तब ऐसी स्थिति में, घटते प्रतिफलो की प्रवृत्ति लागू होने लगती है।

चित्र में  OS जीवन का निर्वाह स्तर है जिस पर OP1 जनसंख्या का संतुलन आकार है। यदि जनसंख्या OP1 से बढ़ जाती है तो वास्तविक जीवन स्तर निर्वाह स्तर से नीचा होगा जिससे जनसंख्या कम हो जायेगी व निर्वाह स्तर बढ़ेगा। इसके विपरीत यदि जनसंख्या OP1 से कम होती है तब ऐसी स्थिति में वास्तविक जीवन स्तर निर्वाह स्तर से ऊँचा होगा जिसमे जनसंख्या बढ़ेगी व वास्तविक जीवन स्तर गिर जायेगा, इस प्रकार निर्वाह स्तर दीर्घकाल मे स्थिर अवस्था में प्राप्त होगा।

मूल्यांकन

केन्स की जनरल थ्योरी नामक पुस्तक के प्रकाशन के बाद माल्थस के इस सिद्धांत का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ गया है क्योंकि केन्स का सिद्धांत माल्थस के अति उत्पादन के विचार पर ही आधारित है। केन्स ने भी माना है कि धन के असमान वितरण में समाज में समर्थ माँग कम होती है।

परन्तु केन्स ने मुद्रा और साख के विस्तार के द्वारा माँग बढ़ाने का परामर्श दिया था जो माल्थस ने नहीं स्वीकार किया वस्तुतः स्वर्णमान के युग में मुद्रा प्रसार सम्भव भी नहीं था। माल्थस की तारीफ में केन्स ने लिखा है, "यदि रिकार्डों के स्थान पर माल्थस के आधार पर उन्नीसवी शताब्दी के अर्थशास्त्र का विकास होता तो आज का संसार बहुत अधिक बुद्धिमान और सम्पन्न होता।"

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