देशान्तरण (अथवा प्रवास) (Migration)

देशान्तरण (अथवा प्रवास) (Migration)

देशान्तरण (अथवा प्रवास) (Migration)

प्रश्न- देशान्तरण (प्रवास) की परिभाषा दीजिए? इसकी मापने की विधियों की विवेचना कीजिए? इसको प्रभावित करने वाले तत्त्व तथा बाधक तत्त्वों पर प्रकाश डालिए?

उत्तर- मनुष्य एक स्थान से दूसरे स्थान को आता-जाता रहता है, जिसके परिणामस्वरूप उसका निवास बदल जाता है। मनुष्य के निवास स्थान के परिवर्तन की इस घटना को देशान्तरण कते है।

डेविड एम. हीर के अनुसार," देशान्तरण का अर्थ है अपने स्वाभाविक निवास को परिवर्तित कर देना"

संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, "देशान्तरण निवास स्थान को परिवर्तित करते हुए एक भौगोलिक इकाई से अन्य भौगोलिक इकाई में विचरण का एक स्वरूप है"।

देशान्तरण के अन्तर्गत दो प्रकार की गतिशीलता हो सकती है। जब कोई व्यक्ति अपना देश छोड़कर दूसरे देश में जाकर बसता है तो उसे परदेशवासी या बहिर्गन्तुक या उत्प्रवासी तथा स्वदेश छोड़ कर बाहर जाकर बसने की क्रिया को उत्प्रवास या बहिर्गमन कहा जाता है। इसी तरह, जब कोई व्यक्ति दूसरे देश में जाकर किसी देश में बसता है तो उसे आगन्तुक या अप्रवासी तथा आकर बसने को अन्तर्गमन या अप्रवास कहा जाता है।

संयुक्त राज्य अमेरिका के जनगणना ब्यूरो में उन व्यक्तियों को जो एक देश छोड़‌कर दूसरे देश में चले जाते है उन्हें देशान्तर अथवा प्रवास में सम्मिलित किया जाता है। जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते है उन्हें विचरणकर्ताओं में सम्मिलित किया जाता है।

प्रो. अल्फ्रेड सौवे ने देशान्तरण का वर्गीकरण दो तरह से किया है-

आर्थिक देशान्तरण :-  आर्थिक देशान्तरण से आशय उस स्थानान्तरण से है जिसका उद्देश्य आर्थिक स्थिति में सुधार करना होता है।

जनांकिकी देशान्तरण :- जनांकिकी देशान्तरण से तात्पर्य स्थायी प्रवास से है जिसमें मनुष्य अपने परिवार के साथ देशान्तरित हो जाता है।

देशान्तरण को एक अन्य तरह से भी वर्गीकृत किया जा सकता है यथा -

(i) स्वतः प्रवर्तित देशान्तरण :- यदि लोग एकाएक बिना किसी पूर्व योजना के एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान को चले जाते है तब इसे स्वतः प्रवर्तित प्रवास कहा जाता है।

(ii) सुनियोजित देशान्तरण :- सुनियोजित देशान्तरण के अन्तर्गत कुछ लोग किसी स्थान विशेष पर जाकर बस जाते है फिर धीरे-धीरे अपने मित्रों सम्बन्धियों को भी वही बुला लेते हैं।

देशान्तरण का वर्गीकरण सामान्यतया निम्न रूप में किया जाता है:

(1) आन्तरिक देशान्तरण

जब किसी देश के निवासी अपने देश की सीमाओं के अन्तर्गत एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते है तो उनका यह स्थानान्तरण आन्तरिक देशान्तरण कहलाता है।

प्रो डोनाल्ड जे बोग की धारणा है कि आन्तरिक प्रवास के अन्तर्गत अन्तर्गमन के लिए In-migration शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए। जबकि बहिर्गमन के लिए out-migration शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए। In-migration से तात्पर्य ऐसे प्रवासी से है जो एक राष्ट्र की सीमाओं के अन्तर्गत अपने मूल निवास को छोड़कर दूसरी जगह जाकर बस जाता है, जबकि दूसरे देश से आकर बसने को आव्रजन कहा जाता है।

आन्तरिक देशान्तरण का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है

(a) वैवाहिक देशान्तरण - वैवाहिक देशान्तरण वर अथवा वधू के कारण घटित होता है। इस तरह का देशान्तरण गाँव से शहर, शहर से शहर, शहर से गाँव अवा गाँव से गाँव को हो सकता है। कभी-कभी इस तरह का देशान्तरण अन्तर्राष्ट्रीय भी हो सकता है, परन्तु इनकी संख्या नगण्य होती है।

(b) अन्तर्प्रान्तीय देशान्तरण - इस तरह का देशान्तरण किसी देश की सीमा के अन्तर्गत एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त को होता है। इस तरह के देशान्तरण का निर्धारण प्रान्तीय सीमाओं के अन्तर्गत होता है।

(c) गाँव-शहर देशान्तरण- गाँव शहर देशान्तरण चार प्रकार के हो सकते हैं:-

(i) गाँव से शहरों की ओर देशान्तरण

(ii) गाँव से गाँव की ओर देशान्तरण

(iii) शहरों से गाँव की ओर देशान्तरण

(iv) शहरों से शहरों की र देशान्तरण

(d) सम्बद्धताजन्य देशान्तरण -  इस तरह के देशान्तरण से अर्थ विदेश में नौकरी या व्यवसाय करने गए देशान्तरकारी के साथ उसके आश्रितों के देशान्तरण से है। कमाने वाले सदस्यों का देशान्तरण प्रायः एकाकी देशान्तरण के रूप में होता है। वे शहरों में रहकर धन कमाते है और गाँव में रहने वाले आश्रितों को धनराशि भेजते रहते हैं। परन्तु एकाकी परिवार में वृद्धि के साथ सम्बद्धताजन्य देशान्तरण की प्रवृ‌त्ति भी बढ़ती जा रही है।

(2) अन्तर्राष्ट्रीय देशान्तरण

अन्तर्राष्ट्रीय देशान्तरण से तात्पर्य विभिन्न राष्ट्रो के बीच होने वाले गमनागमन से है। अन्य शब्दो में जब कोई व्यक्ति अथवा व्यक्तियो का समुदाय एक देश की सीमाओं को लां कर दूसरे देश में जाकर बस जाता है तो ऐसे देशान्तरण को अन्तर्राष्ट्रीय देशान्तरण कहा जाता है। इस प्रकार के देशान्तरण मे नागरिकता, भाषा, संस्कृति तथा व्यवसाय सभी बदल जाते हैं।

प्रो. एल्फ्रेड सौवे के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास के सम्बन्ध में दो बातों की जानकारी महत्त्वपूर्ण होती है- एक, समाज का कौन सा व्यक्ति, वर्ग अथवा संगठन देश छोड़कर जाता है तथा दूसरा वह इस तरह का कदम उठाने को क्यो मजबूर हुआ।

अन्तर्राष्ट्रीय देशान्तरण दो तरह के हो सकते है:

(a) स्वैच्छिक देशान्तरण :- जब कोई व्यक्ति अपने प्रवास का स्थान तथा प्रस्थान का समय चुनने के लिए स्वतंत्र होता है तब इस तरह के देशान्तरण को स्वैच्छिक देशान्तरण कहा जाता है।

(b) बलात या अनैच्छिक देशान्तरण :- अनैच्छिक देशान्तरण वह देशान्तरण होता है जिसमे प्रवास का स्थान तथा प्रस्थान का समय चुनने की कोई स्वतंत्रता नहीं होती है।

सामान्यतया युद्ध की विभीषिका से बचने के लिए, राजनैतिक आधार पर विभाजन के समय, किसी देश की सत्ता द्वारा एकाएक निकाले जाने आदि के कारण बलात या अनैच्छिक देशान्तरण होते हैं।

देशान्तरण को प्रभावित करने वाले घटक

देशान्तरण को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित है-

(1) प्राकृतिक कारक - प्राकृतिक अथवा भौगोलिक कारणों को प्राय: लोग प्रवास करते है। प्राकृतिक कारकों के अन्तर्गत जलवायु सम्बन्धी परिवर्तन, प्राकृतिक प्रकोप, सूखा, बाढ़, दुर्भिक्ष, महामारियाँ, भूकम्प, ज्वालामुखी आदि घटनाएं आती है जो देशान्तरण को प्रोत्साहित करती है।

सामान्यतया लोग खराब जलवायु तथा दुर्गम भौगोलिक दशाओं वाले क्षेत्रों से स्वास्थ्य-वर्द्धक जलवायु वाले क्षेत्रों में प्रवासित होते है। जहाँ निरन्तर ज्वालामुखी फूटते रहते हैं तथा भूकम्प के झटके आते रहते है, वहाँ से जनसंख्या सुरक्षित स्थानों की ओर स्थानान्तरित होने लगती है। उप‌जाऊ मिट्टी भी जनसंख्या को आकर्षित करती है तथा अनुपजाऊ मिट्टी जनसंख्या के स्थानान्तरण को बढ़ावा देती है। यही कारण है कि मानव सभ्यता का विकास एवं संकेन्द्रण नदियों की घाटियों एवं उपजाऊ दोनो क्षेत्रों में हुआ।

(2) आर्थिक कारक :- लोग सुखी एवं समृद्धशाली जीवन व्यतीत करने की लालसा में अपने मूल एवं स्वाभाविक निवास को छोड़कर अन्यत्र जा बसते हैं। देशान्तरण को प्रोत्साहित करने वाले कुछ प्रमुख आर्थिक कारक निम्नलिखित है:

(a) कृषि योग्य भूमि का अभाव :- किसी देश की भूमि पर उसकी जनसंख्या का अधिक भार होने से उस देश में खाद्य सामग्री का अभाव हो जाता है जिसके कारण मानव भोजन की प्राप्ति हेतु उन स्थानों की और पलायन करता है जहाँ कृषि योग्य भूमि सहजता से उपलब्ध हो जाती है। भारत में केरल तथा बंगाल से अन्य राज्यों की ओर प्रवास इसी प्रकार के कारणों से हुआ।

(b) औद्योगीकरण :- औद्योगीकरण भी देशान्तरण को प्रोत्साहित करता है। औद्योगीकरण से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है जिसकी तलाश में लोगों को गाँव से शहरों की ओर प्रवासित होना पड़ता है। औद्योगीकरण से नगरीकरण को बढ़ावा मिलता है लोग नगरो में उपलब्ध विभिन्न सुविधाओं यथा- मनोरंजन, सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाओ की सुलभता, आदि से आकृष्ट होकर वहाँ बसने लगते है। भारत में कोलकाता, मुम्बई, अहमदाबाद, कानपुर आदि नगरों में जनसंख्या का प्रवास उद्योगों के कारण ही हुआ है।

(c) यातायात की सुविधाएँ: सस्ती, सुगम तथा सुरक्षित यातायात की सुविधाएं न केवल देशान्तरण के लिए प्रेरित करती है वरन् देशान्तरण की आवृत्ति को भी बढ़ाती है तथा देशान्तरण की दशाएं निर्धारित करती है।

(d) सामान्य आर्थिक स्थिति में सुधार :- रोजगार के अवसर तथा आर्थिक स्थिति में सुधार की लालसा में लोग अनेक कविनाइयों के बावजूद देशान्तरण के लिए प्रोत्साहित होते है। प्रो. थाम्पसन एवं लेविस ने लिखा है कि," यह सर्वस्वीकृत तथ्य है कि यूरोप से बड़े उत्प्रवास का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण आर्थिक स्तर में सुधार लाना था"

(3) राजनैतिक कारक :- ग्रामीण क्षेत्रों में नए उद्योगों की स्थापना एक राजनैतिक निर्णय होता है ताकि ग्रामीण क्षेत्रो से नगरो की ओर प्रवास को कम किया जा सके।

युद्ध का प्रभाव भी देशान्तरण पर पड़ता है। युद्ध में जो विजयी होता है, वह जीति हुई भूमि पर बस जाता है और जो हारता है वह स्थान छोड़कर अन्यत्र बस जाता है। जैसे- 1971 में बंग्लादेश में स्वतन्त्रता संग्राम के समय पाकिस्तान के सैनिको की यातनाओं से पीड़ित होकर लाखो शरणार्थी भारत में चले आए और स्वतंत्र बंग्लादेश के उदय होने पर वापस चले गए।

उपनिवेशवाद तथा रंग भेद की नीति भी देशान्तरण को प्रोत्साहित करती है। जैसे- गत वर्षों में अफ्रीकी देशों ने भारतीय मूल के व्यक्तियो को निष्कासन कर दिया

(4) सामाजिक कारण :- देशान्तरण के लिए सामाजिक रीति-रिवाज तथा परम्पराएं भी उत्तरदायी होती है। जैसे विवाह के उपरान्त लड़‌कियाँ अपने पति के घर चली जाती है तथा उसका पति यदि किन्ही कारणों से प्रवासित होता है तो साथ-साथ उसे भी जाना पड़ता है। संयुक्त परिवार प्रथा प्रवास के मार्ग में बाधक थी, परन्तु आज इस पारिवारिक अशान्ति तथा गृह कलह से मुक्ति पाने के लिए व्यक्ति घर से बाहर रहने का प्रयास करता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, मानसिक विकास एवं बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना भी व्यक्ति को गाँव से शहर में प्रवास हेतु प्रेरित करती है।

(5) जनांकिकीय कारक :- जिन स्थानो पर जनसंख्या का दबाव अधिक होता है वहाँ से जनसख्या का प्रवास उस तरफ होता है जहाँ जन‌संख्या का दबाव अपेक्षाकृत कम होता है। देशान्तरण जनसंख्या के गुणात्मक पहलू पर भी निर्भर करता है। यदि किसी स्थान विशेष पर अधिक लोग है परन्तु वे किसी कार्य विशेष के लिए अकुशल है तो वहाँ के लिए कुशल व्यक्तियों को अन्यत्र से प्रवासित करना आवश्यक हो जाता है।

देशान्तरण पर जन्म दर तथा मृत्यु दर का भी प्रभाव पड़ता है। जहां जन्म दर कम है जो कि बहुत से घटकों द्वारा निर्धारित होती है, वहाँ यदि पुरुष विशिष्ट जन्म दर कम है तो सन्तुलन बनाए रखने के लिए प्रवासी बनकर युवको को दूसरे देश से आना होगा क्योंकि पुरुषों की पूर्ति उनकी माँग की तुलना में इन स्थानों पर कम होती है। इसके लिए विपरीत, स्त्री विशिष्ट जन्म दर भी कम है तो दोनों ही लिंगों को प्रवासी बनकर आना होगा।

देशान्तरण से श्रम शक्ति के गुणात्मक पहलू को भी परिवर्तित किया जा सकता है। एक विकासशील देश सामान्यतया कुशल एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों के आगमन को प्रोत्साहित करेगा परन्तु अकुशल श्रमिको के बहिर्गमन को प्रेरित करेगा।

(6) धार्मिक एवं सांस्कृतिक कारक :- धर्म प्रचार तथा प्रसार के उद्देश्य से संचालित ईसाई, इस्लाम तथा बौद्ध आन्दोलनों से प्रभावित देशान्तरण के बहुत से उदाहरण इतिहास में देखने को मिलते है। जीवन के अन्तिम दिनों में तीर्थ स्थानों में बस जाने की प्रवृत्ति लोगों में धार्मिक प्रभावों के कारण ही होती है।

सांस्कृतिक सम्पर्को को बढ़ाने में शिक्षा, यातायात की सुविधाओं तथा संचार के माध्यमों का विशेष हाथ होता है। सामाजिक-सांस्कृतिक परम्पराएं तथा भाषा भी किसी देश के प्रवास की मात्रा और दिशा को प्रभावित करती है। जैसे- हिन्दीभाषी प्रदेशों के लोग सामान्यतया उन प्रदेशों में प्रवास करते है जो या तो हिन्दीभाषी होते है अथवा जहां विचार विनिमय की सुविधा होती है। सांस्कृतिक भिन्नता वाले देशो में जाने से सामान्यतया लोग परहेज करते हैं।

देशान्तरण के विभिन्न कारको पर टिप्पणी करते हुए प्रो.थाम्पसन एवं लेविस ने लिखा है कि," प्रवास के लिए उत्तरदायी कारक आर्थिक तथा गैर आर्थिक दोनो ही हो सकते है। सामान्यता आर्थिक प्रवास स्वैच्छिक होते है जबकि गैर आर्थिक प्रवास अनैच्छिक एवं बलात होते है। जब व्यक्तियों को धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक अथवा अन्य किसी आधार पर यातना दी जाती है या परेशान किया जाता है तो वे इस यातना से बचने के लिए स्थान छोड़ना ही उपयुक्त समझते है। परन्तु इन दोनों प्रकार के कारको में आर्थिक कारक ही अधिक महत्त्वपूर्ण है"।

देशान्तरण के मार्ग में बाधाएँ

मनुष्य स्वभावतः विवेकशील प्राणी है। वह किसी कार्य को करने से पहले सोचता-विचारता है और उसके लाभों एवं हानियों की पूरी विवेचना करता है। यही बात प्रवास के सम्बन्ध में भी लागू होती है वह किसी स्थान को अपनी इच्छा से तब तक नहीं छोड़ना पसन्द करता है जब तक कि गन्तव्य स्थान उसके वर्तमान स्थान से अधिक लाभप्रद अथवा हितकर नहीं लगता। कभी-कभी उसे अपनी इच्छा के विरुद्ध सामाजिक, आर्थिक एवं प्रशासनिक बाध्यता के कारण एक देश से दूसरे देश (या स्थान) को प्रवासित होना पड़ता है। परन्तु कभी-कभी वह प्रवास की इच्छा रखते हुए भी स्थानान्तरण नहीं कर पाता है क्योंकि उसे स्वराष्ट्र त्याग की अनुमति या प्रवेश पत्तन नहीं दिया जाता है। सामान्यतया देशान्तरण के मार्ग में निम्न तत्त्व बाधा उत्पन्न करते हैं:

(1) दूरी :- दूरी देशान्तरण को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करती है। निवास स्थान से गन्तव्य स्थान की दूरी जितनी अधिक होती है प्रवास की सम्भावना उतनी ही कम रहती है। अधिक दूरी वाले स्थानों पर जाने में जोखिम तथा व्यय दोनों में वृद्धि हो जाती है। कम दिनों के अवकाश अथवा किसी आकस्मिकता के पड़ जाने पर घर वापस आना कठिन होता है।

(2) भाषा, संस्कृति एवं रीति-रिवाज :- स्थान परिवर्तन से भाषा, संस्कृति और सामाजिक रीति-रिवाज बदल जाते हैं। मानव का यह स्वभाव है कि वह अपनी बोली, भाषा, खान-पान, संस्कृति तथा सह-धर्मियों में ही उठना बैठना पसन्द करता है। अतः इन सबसे वंचित हो जाने तथा अपने आपको अलग या अकेला पाने का भय उसे देशान्तरित होने से रोकता है।

(3) वर्तमान व्यवसाय व स्थान से लगाव :- व्यक्तियों का अपने वर्तमान व्यवसाय, स्थान, परिवार, समाज तथा पास-पड़ोस के लोगों से इतना भावनात्मक लगाव होता है कि वे दूसरे स्थान या देश में प्रोन्नति एवं अधिक आय प्राप्त करने की सम्भावना के बावजूद प्रवास को पसन्द नहीं करते है। भारतीय श्रमिको में यह प्रवृत्ति विशेष रूप से देखने को मिलती है। वे शहरों में मजदूरी करने जाते हैं, परन्तु वहाँ, वे अपना काम चलाऊ आवास ही बनाते हैं, जब भी अवसर मिलता है या गाँव में घर पर कोई प्रयोजन पड़ता है या त्योहरों के अवसर पर वे अपने-अपने गाँवों को चले जाते हैं।

(4) मार्ग व्यय :- एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने में मार्ग व्यय वहन करना पड़ता है। जैसे-जैसे दूरी बढ़ती जाती है मार्ग व्यय बढ़ता जाता है। मार्ग व्यय जितना अधिक होगा प्रवास उतना ही कम होगा। यदि मार्ग व्यय अधिक नहीं है तो व्यक्ति यात्रा से वंचित नहीं होना चाहेगा।

(5) प्रवास क्षमता:- एक स्थान छोड़कर दूसरे स्थान पर जाकर बसने के लिए एक विशेष प्रकार की क्षमता, निडरता तथा प्रगतिशीलता की आवश्यकता होती है। ग्रामीण व्यक्तियों में इन गुणों की प्रायः कमी देखने को मिलती है। उन्हें शहर के वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने में कठिनाई होती है। वे स्वभावतः संकोची एवं अशिक्षित होते है तथा शहरो में जाने से हिचकिचाते है। भारत में पंजाब के व्यक्तियों की प्रवास क्षमता अपेक्षाकृत अधिक है।

(6) प्रवास के नियम:- अन्तर्राष्ट्रीय देशान्तरण में सबसे प्रभावपूर्ण बाधा विभिन्न देशों द्वारा बनाए गए प्रवास नियमों से होती है। विश्व के अधिकांश देशों ने समय-समय पर अपने देश के अन्दर आने पर रोक लगाने के लिए प्रवास नियमों का निर्माण किया है। इसी तरह कुछ देश अपने देश के निवासी को दूसरे देश में बसने की आज्ञा नहीं देते।

प्रायः आन्तरिक देशान्तरण पर किसी तरह का प्रतिबन्ध नहीं होता। यही कारण है कि अन्तर्राष्ट्रीय देशान्तरण की अपेक्षा आन्तरिक देशान्तरण अधिक होता है।

देशान्तरण की माप

विश्वसनीय आंकड़ों के अभाव में देशान्तरण को संख्यात्मक रूप से मापना बहुत कठिन है। देशान्तरण सम्बंधी सूचनाओं का संकलन विभिन्न संस्थाओं द्वारा भिन्न-भिन्न उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किया जाता है। वास्तव में प्रवास सम्बन्धी आंकड़ों के संकलन का उद्देश्य देशान्तरण का अध्ययन करना नहीं होता है बल्कि वे प्रशासनिक, आर्थिक व अन्य उद्देश्यों से संकलित किए जाते है। बर्कले के अनुसार "यहां तक कि अन्तर्राष्ट्रीय प्रवासी भी उपेक्षित समूह है। जिन सूचनाओं को दर्ज किया जाता है वे अशुद्ध होती हैं, कभी-कभी एक बड़े वर्ग को सम्मिलित ही नहीं किया जाता है तथा इन संमको के प्रशासन की व्यवस्था भी दोषपूर्ण है। विभिन्न देशों के देशान्तरण सम्बन्धी संमको की तुलना करने में उनमें व्याप्त अशुद्धियों, विसंगतियों, रिक्तियों, परस्पर छादन अथवा निरन्तरता का अभाव आदि दोष स्पष्ट हो जाते हैं"। इस तरह, देशान्तरण से सम्बन्धित संमको में पूर्ण शुद्धता लाना अत्यन्त दुरूह कार्य है।

देशान्तरण सम्बंधी आंकड़ों की अनिश्चितताओं एवं अशुद्धियो के बावजूद भी इसे दो प्रकार से मापा जा सकता है:

(A) प्रत्यक्ष माप

इस विधि में उन सभी व्यक्तियों की गणना की जाती है तो देशान्तरण करते है। इसके अन्तर्गत जब कोई व्यक्ति एक स्थान से निवास बदल कर दूसरे स्थान पर जाता है तब उससे सम्बन्धित विभिन्न सूचनाओं यथा- नाम, आयु, लिंग, व्यवसाय, कहाँ से निवास छोड़कर आया तथा कहाँ आकर बसा, आदि का पंजीकरण किया जाता है। इन सूचनाओं का पंजीकरण न किए जाने पर देशान्तरण की प्रत्यक्ष माप करना संभव नहीं है। देशान्तरण के सम्बंध में एकत्र किए जाने वाले संमको को दो भागो में बाँटा जा सकता है- प्रथम प्रकार के संमको को पारगमन समंक कहते है जो किसी प्रशासनिक सीमा को पार करते समय एकत्रित किए जाते है। दूसरे प्रकार की गणना से सम्बन्धित संमको को जनगणना- संमक कहते है जो किसी स्थान विशेष पर बाहर से आए व्यक्तियों की संख्या, स्थान व समय के सम्बन्ध में सूचना देते हैं। इन दोनों प्रकार के संमकों को एकत्र करने में निम्नलिखित समस्याएँ सामने आती है:

(1) क्षेत्रीय सीमा:- कोई व्यक्ति प्रवासी तभी कहलाता है तब वह किसी प्रशासनिक सीमा को पार करता है। एक देश के अन्तर्गत प्रवास को आन्तरिक प्रवास तथा देश की सीमा को पार करने वाले प्रवास को अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास कहते है। कोलकाता तथा ढाका यद्यपि बहुत निकट है, परन्तु उनके बीच का प्रवास अन्तर्राष्ट्रीय होगा जबकि कोलकाता तथा दिल्ली के बीच का प्रवास आन्तरिक कहलाएगा जबकि दोनों स्थानों के बीच की दूरी अपेक्षाकृत अधिक है। अतः आन्तरिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास का अध्ययन राष्ट्र की भौगोलिक इकाई को ध्यान में रखें बिना उचित नहीं होगा।

(2) कुल तथा वास्तविक प्रवासियों की संख्या:- पारगमन संमक किसी समय विशेष से सम्बन्धित होते हैं। यह समंक बताते है कि किसी निश्चित समय में किसी क्षेत्र विशेष में कितने लोग बाहर से आए तथा कितने लोग यहाँ से बाहर गए। इस प्रकार के आंकड़े प्रशासनिक दृष्टि से अलग- अलग उद्देश्यों को ध्यान में रखकर एकत्र किए जाते है, परन्तु जनांकिकी में इसका केवल यही उपयोग होता है कि आव्रजन तथा परिव्रजन का अन्तर निकाल कर शुद्ध प्रवास मालूम किया जाए। इसमें यदि देश के अन्दर आए किसी व्यक्ति की मृत्यु (आने के बाद) हो जाती है तब भी वह व्यक्ति जीवित ही माना जाएगा क्योंकि ये आंकड़े एक अवधि के सभी आव्रजित एवं परिव्रजित के घोतक है। इस तरह, पारगमन आंकड़ों से सही स्थिति की जानकारी नहीं हो पाती । वास्तविक प्रवासी तो वहीं व्यक्ति है जिसने सीमा पार की तथा जो जनगणना दिवस तक जीवित रहे।

(3) निवास की अवधि :- ऐसे सभी व्यक्ति जो सीमा पार कर लेते हैं तथा जीवित रहते हैं, को प्रवासित मान लेना उचित नहीं है। प्रवासी तो केवल वे व्यक्ति है जो दीर्घकाल तक किसी स्थान पर रहते है। जो व्यक्ति कुछ ही महीनों के लिए आए है उन्हें प्रवासी कैसे माना जा सकता है।

(4) एकल प्रवास और बहुल स्तरीय प्रवास :- एक व्यक्ति जो सीधे अपने प्रवास वाले देश में जाता है उसे एकल प्रवास कहते है। इसके विपरीत, कोई व्यक्ति पहले एक देश में जाता है उसके बाद फिर वहां से दूसरे देश में जाता है और अन्त में अन्य देश में बस जाता है तो इस प्रकार के प्रवास को बहुल स्तरीय प्रवास कहते है। जनगणना के माध्यम से प्रवास के जो आंकड़े एकत्र किए जाते है वे इस बात का ध्यान नहीं रखते कि यह देशान्तरण स्वाभाविक निवास से हुआ है अथवा किसी अन्तर्वर्ती स्थान से दूसरे स्थान की ओर है। प्रवास सम्बंधी सूचनाओं में अब तक ऐसी प्रणाली का विकास नहीं हो सका है जो देशान्तरण के इस पहलू की माप कर सके।

(5) मौसमी उच्चावचन एवं समय का प्रभाव :- देशान्तरण का बहाव अनियन्त्रित होता है। कभी अचानक बड़े पैमाने पर प्रवास होने लगता है तो कभी घट जाता है और फिर कभी बढ़ जाता है। परन्तु आंकडों के अध्ययन एवं विश्लेषण से यह स्पस्ट होता ना है है कि किसी मौसम या लदतु में एक ओर तो दूसरे मौसम में दूसरी ओर को प्रवास होता रहता है। अतः देशान्तरण के आंकडों को मौसम से सम्बन्धित करके अध्ययन करने से महत्त्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

(B) परोक्ष माप

(1) जीवन समंक विधि :- इस विधि द्वारा दो जनगणनाओं के बीच की अवधि के लिए देशान्तरण का अनुमान लगाया जाता है तथा देशान्तरण की माप के लिए जन्म एवं मृत्यु सम्बन्धी संमको का प्रयोग किया जाता है।

इस विधि द्वारा देशान्तरण की माप के लिए माना कि किसी देश की जनगणना क्रमशः दो वर्षों t1 तथा t2 मे पूर्ण शुद्धता के साथ की गयी तथा यह भी मान लिया जाए कि इन दो वर्षों की बीच की अवधि में जन्म एव मृत्यु सम्बंधी समस्त घटनाओं को पूर्ण शुद्धता के साथ पंजीकृत किया गया। यदि उक्त दोनो वर्षों की अवधि के लिए जन्मों को B तथा मृत्युओं की सख्या को D द्वारा प्रदर्शित किया जाता है तो द्वितीय वर्ष t2 की जनसंख्या, प्रथम वर्ष की जनसंख्या में जन्मों की संख्या को जोड देने व मृत्यु की संख्या को घटा देने से जो संख्या प्राप्त होगी, उसके बराबर होगी। साथ ही जो व्यक्ति बाहर से आकर बसे तथा जो बाहर चले गए उन्हें क्रमशः जोड़ तथा घटा दिया जाता है। उपरोक्त गणना के लिए निम्न सूत्र का प्रयोग किया जा सकता है:

P2 = P1 +B - D+(1-E)

जहां, P₂ = द्वितीय वर्ष t2 की जनसंख्या

P1 = प्रथम वर्ष t1 की जनसंख्या

B = सजीव जन्मो की संख्या

D = मृतकों की संख्या

I = अन्तर्गमन

E = बहिगर्मन

उपरोक्त समीकरण के आधार पर t1 तथा t2 समयावधि के बीच प्रवास अथवा देशान्तरण को भी मापा जा सकता है। इसके लिए निम्न सूत्र का प्रयोग किया जा सकता है:-

(1 - E) = (P2 - P1) - (B - D)

इस तरह उपरोक्त समीकरण की सहायता से दो समयावधियों के मध्य होने वाले देशान्तरण की गणना उस स्थान की कुल जनसंख्या वृद्धि में से जन्म त‌था मृत्यु के अन्तर को घटाकर की जा सकती है।

उपरोक्त समीकरण द्वारा कुछ मान्यताओं के आधार पर ही शुद्ध परिणाम प्राप्त किया जा सकता है। परन्तु में मान्यताएँ सदैव प्रभावी नहीं हो पाती है। यथा- किसी गाँव से अनेक स्त्रियों प्रसव हेतु शहरों में अथवा अपने पिता के घर चली जाती है, ऐसी स्थिति में नवजात शिशुओं को प्रवासी मानना उचित नहीं होगा। परन्तु इन जन्मो को गाँव में भी नहीं शामिल किया जा सकता क्योंकि उपरोक्त सूत्र के अनुसार किसी स्थान विशेष में जन्मो तथा मृत्युओं के अन्तर को (P2 -P1) में से घटाया जाता है। इसी तरह कुछ व्यक्ति शहरी या अन्य स्थानों पर इलाज कराने जाते है और इनमें से कुछ वहीं पर मर जाते है उनकी मृत्यु का पंजीकरण मृत्यु स्थान पर किया जाता है। सूत्रानुसार उन व्यक्तियों को भी मूल स्थान में शामिल नहीं किया जाएगा क्योंकि समीकरण के अनुसार वे बहिर्गन्तुक हो जाएँगे।

उपर्युक्त समीकरण तभी प्रभावी हो सकता है जब किसी स्थान विशेष से सम्बन्धित सभी जन्म एवं मृत्यु उस स्थान में हो। शुद्ध परिणाम को प्राप्त करने के लिए समीकरण को निम्न रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।

P₂ = P1 + Bi - Di + Be - De+ (I - E)

उपरोक्त समीकरण में,

Bi = स्थान विशेष में जन्म

Be = स्थान विशेष से बाहर जन्म

Di = स्थान विशेष में मृत्यु

De = स्थान विशेष से बाहर मृत्यु

उपरोक्त सूत्र को निम्नानु‌सार भी व्यक्त किया जा सकता है

(P2 - P1) - (Bi - Di) = (I - E)+(Be - De)

or, (I-E) = (P2 - P1) - (Bi - Di) - (Be - De)

or, M = (P2 - P1)-(Bi - Di) - (Be - De)

जहां M = देशान्तरण

(2) सम्पूर्ण जीवन काल में सहगण के प्रवास की माप :- इस विधि द्वारा किसी सहगण के सम्पूर्ण जीवन काल में प्रवास के प्रभाव की माप की जाती है। इस विधि में यह मान लिया जाता है कि जन्म एवं मृत्यु की घटनाओं का शत प्रतिशत पंजीकरण होता है। इस विधि द्वारा एक सहगण के सम्पूर्ण जीवन काल या जन्म से लेकर किसी वर्ष विशेष तक के प्रवास की माप की जाती है। प्रवास को मापने के लिए सहगण के एक अवधि के पंजीकृत जन्मो में से पंजीकृत मृत्युओं की संख्या को घटा दिया जाता है एवं उस सहगण में से बचे व्यक्तियों की जनगणना से प्राप्त संख्या के योग को घटा दिया जाता है। जो शेष बचता है वहीं प्रवास-प्रभाव है।

अर्थात्,  प्रवास = किसी समय विशेष में किसी क्षेत्र में पंजीकृत जन्मों की संख्या - ( उस क्षेत्र में पंजीकृत मृत्युओं की संख्या + उस सहगण से सम्बंधित जीवित व्यक्तियों की संख्या जो जनगणना से प्राप्त हुई।)

सूत्रानुसार, M = B - (D+ Pe)

(3) उत्तर जीविता अनुपात विधि :- इस विधि द्वारा देशान्तरण की गणना के लिए आयु वर्गानुसार आयु विशिष्ट जन्म एवं मृत्यु दर के आधार पर उसके उपरान्त वास्तविक जनसंख्या और भविष्य की प्रक्षेपित जनसंख्या का अन्तर मालूम कर लिया जाता है। यह अन्तर ही देशान्तरण की मात्रा है।

(4) जन्म स्थान विधि :- इस विधि मे देशान्तरण का अनुमान जनगणना के आंकड़ों के आधार पर लगाया जाता है। जनगणना मे जन्म स्थान का उल्लेख किया जाता है। वर्तमान निवास स्थान से जन्म स्थान की तुलना करके अन्तर ज्ञात कर लिया जाता है। इसमे सबसे बड़ी कमी यह है कि इसमें देशान्तरण काल का पता नहीं चल पाता ।

(5) सर्वेक्षण विधि :- इस विधि द्वारा प्रवास की जानकारी हेतु क्षेत्र विशेष का सर्वेक्षण किया जाता है। सर्वेक्षण के अन्तर्गत प्रश्नावली के माध्यम से व्यक्ति विशेष के निवास स्थान, जन्म स्थान, कहाँ-कहाँ पिछला निवास रहा आदि की जानकारी एकत्र की जाती है। इन आंकड़ों के आधार पर प्रवास की गणना सहजता से की जा सकती है। यह विधि उन स्थानो पर अधिक उपयोगी होती है जहाँ जनगणना नहीं हुई होती है।

जनांकिकी (DEMOGRAPHY)

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