प्रजननशीलता की माप (Measurement of Fertility)

प्रजननशीलता की माप (Measurement of Fertility)

प्रजननशीलता की माप (Measurement of Fertility)

प्रश्न :- प्रजननशीलता से क्या तात्पर्य है? इसको मापने की विभिन्न दरों का संक्षेप में वर्णन करें?

प्रजनन की क्षमता के अध्ययन की आवश्यकता बताएँ तथा पूर्ण एवं शुद्ध प्रजनन दर की व्याख्या करें?

उत्तर :- प्रो. थामसन एवं लेविस की धारणा है कि प्रजननशीलता का विषय व्यक्ति के लिए सदा से ही महत्वपूर्ण रहा है। इस सम्बंध में एन. बी. राइडर का कथन उल्लेखनीय है कि "किसी भी व्यक्ति के जीवन में माँ-बाप बनने से बड़ी कोई महत्त्वपूर्ण घटना नहीं होप्रजननशीलता की माप सकती तथा किसी भी समाज को जीवित बनाएँ रखने के लिए अपनी प्रजननशीलता को पर्याप्त बनाए रखने से अधिक आवश्यक कोई बात नहीं हो सकती है"। राइडर के इस कथन से प्रजननशीलता के सामाजिक महत्त्व को अच्छी तरह समझा जा सकता है। प्राचीन काल से ही वंश परम्परा को कायम रखने के लिए यज्ञ आदि क्रियाओ के माध्यम से स्त्रियों में प्रजननशीलता का संचार किया जाता था। इन क्रियाओं की विफलता पर अनेक सामाजिक रीति-रिवाजों में इस प्रकार अल्पकालिक वांछित परिवर्तन किया जाता रहा है ताकि वंश चलता रहे, जैसे-विधवा विवाह, बहुपत्नी प्रथा, नियोग आदि। इस तरह स्पष्ट है कि प्राचीन काल से ही प्रजननशीलता को बनाए रखना महत्वपूर्ण समझा जाता रहा है।

प्राचीन काल से ही प्रजननशीलता की दर के बारे में जानने की जिज्ञासा लोगों में रही है। परन्तु यह जिज्ञासा निरपेक्ष रूप में ही रही यथा अमुक स्त्री के कितने बच्चे पैदा हुए, या अमुक स्त्री के कोई बच्चा पैदा नहीं हुआ अथवा कौन सी स्त्री बांझ ही रही। परन्तु समय के साथ परिस्थितियों में बदलाव आया है। आज प्रत्येक देश तीव्रगति से आर्थिक विकास करने अथवा स्थिरता के साथ विकास की दर को बनाए रखकर जन कल्याण में अधिकाधिक वृद्धि के लिए प्रयत्नशील है। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु प्रत्येक देश अपने देश की जनांकिकीय गतिविधियों की जानकारी चाहता है ताकि उसमें समय-समय पर वांछित परिवर्तन लाया जा सके। इस तरह प्रत्येक देश प्रजनन की क्षमता के अध्ययन की आवश्यकता को महसूस कर रही है।

सामान्यतया प्रजननशीलता का अभिप्राय किसी स्त्री या किसी समूह स्त्री द्वारा किसी समय विशेष में कुल सजीव जन्मे बच्चों की वास्तविक संख्या से है। यदि कभी भी किसी स्त्री ने किसी बच्चे को जन्म दिया है तो उसको प्रजननशील स्त्री कहा जाएगा। इस तरह, प्रजननशीलता की माप किसी समय विशेष में सजीव जन्मे बच्चों की आवृत्ति से की जा सकती है।

प्रो. थामसन एवं लेविस के शब्दों में, "जनसंख्या विषय के अधिकांश विद्यार्थी प्रजननशीलता शब्द का प्रयोग स्त्री या स्त्रियों के एक समूह द्वारा जनित बच्चों की वास्तविक संख्या के लिए करते हैं। जबकि सन्तानोत्पाद‌कता का शारीरिक क्षमता होती है जिससे स्त्रियाँ गर्भधारण के योग्य होती है। स्त्रियों में से कितनी प्रजनन के लिए सक्षम है और कितनी नहीं इसकी निश्चित माप कर पाना कठिन है"

प्रजननशीलता की माप

किसी भी जनसंख्या की प्रजननशीलता मापने का मुख्य आधार उस जनसंख्या में होने वाली वार्षिक वृद्धि होती है। एक वर्ष विशेष में एक देश में कुल कितने बच्चों ने जन्म लिया तथा उनका वहाँ की जनसंख्या से क्या अनुपात है? जन्म लिए बच्चों का अनुपात जिस जनसंख्या से निकाला जाता है वह कुल जनसंख्या अथवा कुल स्त्रियों की संख्या अथवा केवल प्रजनन आयु वर्ग की स्त्रियों की संख्या हो सकती है। इन विभिन्न आधारों पर निकाले गए भिन्न-भिन्न अनुपात ही प्रजननशीलता को मापने की भिन्न-भिन्न विधियां होती है।

आज, प्रजननशीलता को मापने की बहुत ही शुद्ध एवं यथार्थ विधियां प्रयोग में लायी जाती है। जो निम्नलिखित है।

(1) अशोधित जन्म दरा :- यह प्रजननशीलता को मापने की सबसे सहज विधि है। यह किसी वर्ष विशेष में जन्मे कुल बच्चों की संख्या तथा उस वर्ष की कुल जनसंख्या के मध्य अनुपात को व्यक्त करता है। प्रायः इसे प्रति हजार में व्यक्त किया जाता है। अशोधित जन्म दर को ज्ञात करने के लिए निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है।

`CBR=\frac BP\times1000`

जहाँ

CBR = अशोधित जन्म दर

B = किसी वर्ष विशेष में किसी दिए गये क्षेत्र में जन्मे बच्चों की संख्या

P = उस वर्ष विशेष में क्षेत्र विशेष की कुल जनसंख्या

इसको अशोधित दर इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसकी गणना करते समय किसी भी समुदाय की जनसंख्या के गठन अर्थात् आयु और लिंग आदि के अन्तरों को ध्यान में नहीं रखा जाता ।

यह प्रजननशीलता को मापने की उपयुक्त अथवा शुद्ध माप नहीं समझा जाता क्योंकि यह माप बच्चों एवं वृद्धों, जो कि या तो सन्तानोत्पत्ति कर सकने की श्रेणी में अभी आए नहीं है या उस अवस्था को पार कर चुके है, का विचार करता है। जहाँ स्त्रियों की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक होती है वहाँ की प्रजनन दर उस स्थान की अपेक्षा अधिक होती है जहाँ पुरुषों की संख्या स्त्रियों की तुलना में अधिक होती है। अतः अशोधित जन्म दर को केवल जनसंख्या के विकास की सामान्य दिशा को जानने के लिए ही उपयुक्त समझना चाहिए।

(2) संशोधित जन्म पर:- कभी कभी ग्रामीण क्षेत्रों में जो बच्चे पैदा होते समय या कुछ दिनों के बाद ही मर जाते है उनका रिकार्ड भी नहीं रखा जाता। जबकि उनके जन्म एवं मृत्यु दोनों का लेखा होना चाहिए। ऐसी दशा में सही जन्म दर की गणना के लिए ऐसे जन्मों की सम्भावित संख्या को अनु‌मान से पंजीकृत जन्मों की संख्या में जोड़ दिया जाता है। यह अनुमानित संख्या सम्पूर्ण पंजीकृत संख्या का एक छोटा हिस्सा (कुल जन्मों का लगभग 5% या कुछ कम ज्यादा) हो सकती है। इस आधार पर गणना की गयी जन्म र को संशोधित जन्म दर कहा जाता है। संशोधित जन्म दर सदैव अशोधित जन्म दर से अधिक होती है क्योंकि सामान्यतया यह सम्भव नहीं होता है कि किसी व्यक्ति के यहाँ बच्चापैदा हुआ हो और वह उसके जन्म का पंजीकरण करा दें।

संशोधित जन्म द `CBR=\frac{B+b}P\times K`

जहाँ

 B = वर्ष विशेष में पंजीकृत जन्मों की संख्या

b = वर्ष विशेष में अपंजीकृत जन्मों की संख्या

P = वर्ष विशेष की सम्पूर्ण जनसंख्या

K = स्थिरांक 1000 को दर्शाता है।

(3) सामान्य प्रजनन दर :- सामान्य प्रजनन दर (GFR) कुल जीव जन्मे बच्चों एवं सन्तानोत्पादन योग्य आयु की स्त्रियों की संख्या से सम्बन्धित है। सामान्य प्रजनन दर किसी वर्ष विशेष में कुल सजी जन्मे बच्चों तथा सन्तानोत्पादक आयु वर्ग के प्रति हजार स्त्रियों का अनुपात होता है, जो यह दर्शाता है कि सन्तानोत्पादक आयु वर्ग की स्त्रियाँ सजीव बच्चों को जन्म देकर किस प्रकार वर्तमान जनसंख्या में वृद्धि करती है।

प्रो. बोग के अनुसार, "सामान्य प्रजनन दर से अर्थ पुनरुत्पादन आयु वर्ग की प्रति हजार स्त्रियों द्वारा प्रति वर्ष जन्म लिए बच्चों की संख्या से है"। सूत्र से

`CFR=\frac B{\sum_{W_1}^{W_2}FP_X}`

जहाँ B = वर्ष विशेष में किसी क्षेत्र के अन्तर्गत सजीव जन्मे बच्चो की संख्या

FPx = सन्तानोत्पादन आयु वर्ग X की स्त्रियों की उस क्षेत्र एवं वर्ष विशेष में कुल संख्या ।

W1W2 = सन्तानोत्पादन आयु वर्ग की क्रमशः निम्नतम एवं उच्चतम सीमा

यह विधि प्रजनन दर ज्ञात करने के लिए 15-49 आयु वर्ग की सभी स्त्रियों पर विचार करती है। यह उन स्त्रियों को भी शामिल कर लेती है जो इस आयु काल में अविवाहित, विधवा या बांझ रहती है तथा इस आयु वर्ग में होने के बाद भी प्रजननशीलता को प्रभावित नहीं कर पाती है।

(4) आयु विशिष्ट प्रजनन दर (A.S.F.R) :- इस रीति को विशिष्ट इसलिए कहा जाता है क्योंकि जन्म सम्बंधी आंकड़ों को माता-पिता की आयु वर्ग के अनुसार एकत्र किया जाता है। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि यह आवश्यक नहीं है कि माता तथा पिता दोनों समान आयु के हो। अतः जन्म सम्बंधी आंकड़ों को एकत्र करते समय माता या पिता के आयु वर्ग का चयन करना पड़ता है। आयु विशिष्ट प्रजनन दर प्रायः स्त्रियों के दृष्टिकोण से ज्ञात की जाती है क्योकि प्रजनन की दर माँ की आयु पर ही आधारित होती है।

आयु विशिष्ट प्रजनन दर में विभिन्न आयु वर्ग की स्त्रियो का अनुपात, प्रत्येक आयु वर्ग विशेष की 1000 स्त्रियो के उस वर्ग में जन्मे बच्चों की संख्या से निकाला जाता है।

प्रो बोग के अनुसार," किसी विशेष आयु वर्ग की प्रति हजार स्त्रियों द्वारा जन्मित बच्चों की संख्या ही आयु विशिष्ट प्रजनन दर है। सूत्र से

`A.S.F.R.=\frac{B_x}{FP_x}\times1000`

जहाँ, A.S.F.R. = आयु विशिष्ट प्रजनन दर

Bx = विशेष आयु वर्ग की स्त्रियों के वर्ष विशेष में जन्मे बच्चों की संख्या

FPx = उस आयु विशेष की स्त्रियों की उस वर्ष विशेष में संख्या

यह दर जैविक सिद्धांतों की जाँच एवं विवाह - आयु की नीति निर्धारित करने में सहायता पहुँचा सकती है। इसके अतिरिक्त, इसकी सहायता से कम अपराध की आयु तथा अवैध बच्चों की माताओं की आयु तथा अन्य भ्रष्टाचार आदि के सम्बंध में अध्ययन एवं विश्लेषण किया जा सकता है।

इस तरह, आयु विशिष्ट प्रजनन दरे किसी समाज में व्याप्त प्रजननशीलता का स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करती है। फिर भी इसकी सहायता से दो क्षेत्रों में प्रजननशीलता की दशा की तुलना करना आसान नहीं है। यह हो सकता है कि एक क्षेत्र में दूसरे की उपेक्षा किसी आयु वर्ग में दर अधिक हो, किसी में कम। ऐसी स्थिति में, इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि किसी क्षेत्र की प्रजननशीलता दूसरे से कम या अधिक है।

(5) सम्पूर्ण या कुल प्रजनन दर :- कुल प्रजनन दर या TFR बच्चों की वह संख्या है जो किसी भी स्त्री के सम्पूर्ण प्रजनन काल में उत्पन्न होते हैं। यदि किसी स्त्री के पूरे प्रजनन काल में कुल तीन बच्चे पैदा होते हैं तब उस स्त्री की कुल प्रजनन दर = 3 है। इसी तरह, यदि 3,000 स्त्रियों के उनके सम्पूर्ण प्रजनन काल में 12,000 बच्चे पैदा होते हैं तो,

`TFR=\frac{12000}{3000}=4` प्रति स्त्री हुआ।

परन्तु व्यवहार में यह दर ज्ञात करना कठिन है क्योंकि उसके लिए किसी महिला का इंतजार उसके सम्पूर्ण प्रजनन काल (49-50) वर्ष तक करना पड़ता है। कुल प्रजनन दर ज्ञात करने के लिए सर्वप्रथम समस्त आयु वर्ग की आयु-विशिष्ट दरों का योग करना होता है और आयु के वर्गांतर से इस योग का बाद में गुणा कर दिया जाता है। इसमें यह मान कर चला जाता है कि प्रत्येक स्त्री पैदा होने के समय से सन्तानोत्पादन आयु की समाप्ति तक जीवित रहती है।

सूत्रानुसार, कुल प्रजनन दर = (आयु-विशिष्ट दरों का योग) × (आयु वर्गातर)

इस सूत्र को इस प्रकार भी लिख सकते हैं -

`TFR=\sum_{W_1}^{W_2}I_x`

जहाँ,

जहां, Ix = आयु-विशिष्ट प्रजनन दर, आयु x पर

W = सन्तानोत्पादन आयु की निम्नतम सीमा

W2 = सन्तानोत्पादन आयु की उच्चतम सीमा

यदि 5 वर्षीय आयु वर्ग पर प्रजनन दर उपलब्ध है तो,

TFR = 5 × Σ5 Ιx

इस सूत्र को इस प्रकार भी व्यक्त किया जा सकता है- 

`TFR=\sum_{W_1}^{W_2}\frac{B_x}{FP_x}` (`\frac{B_x}{FP_x}`= आयु विशिष्ट प्रजनन दर)

(6) योगात्मक प्रजनन दर :- इसमें इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि 1000 स्त्रियों का एक सहगण अपने सन्तानोत्पादन काल में कितने बच्चों को जन्म देता है। इस तरह, 1000 स्त्रियां अपने सम्पूर्ण प्रजनन काल में जितने बच्चों को जन्म देती हैं उसी को योगात्मक प्रजनन दर कहा जाता है। इसी की गणना आयु-विशिष्ट प्रजनन दर की सहायता से की जा सकती है। सर्वप्रथम आयु-विशिष्ट दरें ज्ञात कर ली जाती हैं। फिर इन दरों की आयु को वर्गातर से गुणा कर दिया जाता है तथा गुणनफल का संचयी योग करते जाते हैं। यह संचयी योग का मूल्य इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि 1000 स्त्रियां जब रजोनिवृत्ति (menopause) पर पहुंचती हैं अर्थात जब उनकी प्रजनन शक्ति समाप्त हो जाती है (सामान्यतया यह सीमा 45 या 49 वर्ष तक होती है। इस आयु के बाद किसी बच्चे की जन्म की सम्भावना नहीं रहती।) तो वे अपने प्रतिस्थापन के लिए कितनी जनसंख्या छोड़ जाती हैं।

(7) पूर्ण प्रजनन दर :- इसकी गणना करते समय ऐसी स्त्रियों की संख्या ज्ञात कर ली जाती है जिन्होंने अपना सन्तानोत्पादन काल को पूरा कर लिया हो अर्थात् जो अपनी रजोनिवृत्ति की आयु पर पहुंच चुकी होती हैं। इन समस्त स्त्रियों द्वारा जनित कुल बच्चों की संख्या में इन स्त्रियों की संख्या से भाग देकर अन्त में 1000 से गुणा कर दिया जाता है। सूत्रानुसार,

प्रजननशीलता की माप (Measurement of Fertility)

(8) समूह प्रजनन दर :- किसी देश की कामकाजी महिलाओं को एक समूह (Cohort) के रूप में लेकर उनकी प्रजननशीलता की दर ज्ञात की जा सकती है। इसके अन्तर्गत यह जानकारी प्राप्त की जाती है कि एक वर्ष विशेष में कितनी कन्याओं ने जन्म लिया और इन कन्याओं ने अपने सम्पूर्ण मातृत्व काल में कुल कितने बच्चों को जन्म दिया।

इसे एक उदाहरण द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है। मान लीजिए किसी देश में एक वर्ष विशेष में 1000 कन्याओं का जन्म हुआ। इन कन्याओं में से केवल 800 ऐसी रहीं जिन्होंने मातृत्व का कार्य पूरा किया शेष कन्याएं या तो मर गयीं अथवा बांझ रहीं। मातृत्व कार्य में लगी इन स्त्रियों ने एक समय विशेष में (या एक निश्चित मातृत्व काल में) कुल जितने बच्चे पैदा किए उनकी गणना कर ली जाती है। माना इन स्त्रियों द्वारा उत्पन्न बच्चों की सम्पूर्ण संख्या 500 है, तब

समूह प्रजनन दर `=\frac{500}{800}\times1000=725`प्रति हजार

(9) प्रामाणिक प्रजनन दर :- दो समाजों की प्रजननशीलता के वास्तविक अन्तर को समझने के लिए अन्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही प्रामाणिक प्रजनन दरों की सहायता ली जाती है। प्रामाणिक प्रजनन दर ज्ञात करने के लिए जीवन-तालिका (Life Table) की सहायता से जनसंख्या का प्रामाणिक आयु वितरण ज्ञात कर लिया जाता है। किसी समाज के लिए आयु का एक प्रमाप वितरण स्वीकार कर लिया जाता है। वितरण तुलना का आधार होता है। फिर, विशिष्ट दरों का प्रयोग कर अनुमान किया जा सकता है कि यदि जनसंख्या का वितरण इसी प्रकार है तो प्रजनन दर क्या होगी। सूत्र से

प्रजननशीलता की माप (Measurement of Fertility)

प्रजनन दरों की सीमाएं

उपर्युक्त प्रजनन दरों के अपने-अपने गुण एवं दोष हैं। प्रत्येक दर की अपनी कुछ विशिष्टताएं हैं अतः प्रत्येक दर का उपयोग किसी न किसी क्षेत्र में होता रहता है। फिर भी यह कहा जा सकता है कि जनसंख्या वृद्धि की दर का अनुमान लगाने के लिए प्रजनन दरें अधिक उपयुक्त नहीं समझी जाती हैं क्योंकि ये नवजात शिशुओं के लिंग और उनकी मृत्यु को ध्यान में नहीं रखती हैं। यदि उत्पन्न होने वाले शिशुओं में से अधिकांश लड़के हैं तो जनसंख्या अवश्यमेव घटेगी और इसके विपरीत अधिकांश लड़कियां हैं तो जनसंख्या निःसन्देह बढ़ती हुई होगी। इसी तरह यदि मृत्यु दर को भी ध्यान में न रखा जाय तो भी जनसंख्या वृद्धि की सही जानकारी नहीं प्राप्त की जा सकती क्योंकि यह तो हो सकता है कि लड़कियों की एक बड़ी संख्या प्रजनन योग्य आयु प्राप्त करने से पूर्व ही मर जाय। अतः जनसंख्या में होने वाली वास्तविक वृद्धि की जानकारी प्राप्ति हेतु सदैव पुनरुत्पादन दरों की गणना की जाती है।

जनांकिकीविदों द्वारा निम्न दो प्रकार की पुनरुत्पादन दरों की व्याख्या की गयी है :

(A) सकल (या कुल) पुनरुत्पादन दर :- जनसंख्या वृद्धि की उचित माप के लिए जनसंख्या के आयु-लिंग (age-sex) की संरचना के बारे में जानकारी प्राप्त करना आवश्यक होता है। चूंकि हम जनसंख्या वृद्धि की माप करना चाहते हैं अतः इसके लिए यह उचित होगा कि हम स्त्री जन्म अर्थात् कन्याओं के जन्म पर ही विचार करें क्योंकि आज की नवजात कन्याएं ही कल की माताएं होती हैं अतः जनसंख्या वृद्धि सही अर्थों में कन्याओं की संख्या पर ही निर्भर करती है। यही कारण है कि जनसंख्या वृद्धि की माप के लिए सकल पुनरुत्पादन दर (GRR) की गणना की जाती है। "सकल प्रजनन दर 15-49 वर्ष आयु वर्ग वाली स्त्रियों की केवल कन्या जन्म पर आधारित आयु विशिष्ट प्रजनन दरों का योग है।"

कन्याओं के जन्म पर आधारित आयु-विशिष्ट प्रजनन दरों को इस प्रकार लिख सकते हैं

`FI_x=\frac{FB_x}{FP_x}\times1000`

जहां, FBx = किसी समुदाय विशेष की आयु-x की स्त्रियों द्वारा किसी दिए गए समय में जन्म दी गयी कन्याओं की संख्या।

FPx = दिए गए समुदाय की समय विशेष पर आयु-x की स्त्रियों की कुल संख्या।

FIx = आयु-x पर स्त्री जन्म दर

यदि पूरे पुनरुत्पादन काल के समस्त आयु-वर्ग की इन दरों का योग कर लिया जाय तो जनसंख्या वृद्धि की माप की जो दर प्राप्त होगी वह सकल पुनरुत्पादन दर (GRR) कही जाती है। सूत्रानुसार, 

`G R R=\sum_{W_1}^{W_2}FI_x`

W1 तथा W2 स्त्रियों के पुनरुत्पादन काल की क्रमशः निम्नतम एवं उच्चतम आयु सीमा है। सामान्यतया W = 15 वर्ष तथा W2 = 49 वर्ष होती है।)

इस तरह, सकल प्रजनन दर इस तथ्य की ओर संकेत करती है कि प्रत्येक आयु वर्ग की स्त्रियों द्वारा औसत रूप से कितनी कन्याओं को जन्म दिया जाएगा।

यदि आयु-विशिष्ट प्रजनन दर 5 वर्षीय आयु वर्गों के लिए है तब इसे इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:

`F_5I_x=\frac{F_5B_x}{F_5P_x}`

GRR का मूल्य होगा = 5 ×  Σ F5 Ix

यहां, सभी पांच वर्षीय आयु वर्गों की स्त्री प्रजनन दर का योग किया गया है। GRR को TFR (कुल प्रजनन दर) की सहायता से भी ज्ञात किया जा सकता है। सूत्रानुसार,

GRR = TFR × sex ratio

या GRR = कुल प्रजनन दर × लिंग अनुपात

यदि किसी जनसंख्या में GRR का मूल्य 1 है तो इसका अर्थ यह होता है कि सम्बन्धित लिंग (अर्थात स्त्री जनसंख्या) अपने आपको पूरी तरह से प्रतिस्थापित कर रहा है और जनसंख्या स्थिर है। यदि GRR > 1 तो इसका अर्थ है भविष्य में जनसंख्या बढ़ेगी तथा यदि GRR < 1 तो जनसंख्या में कमी होगी क्योंकि भविष्य में माताओं की संख्या में निरन्तर कमी होती जायेगी।

गुण एवं सीमाएं

GRR का प्रयोग विभिन्न क्षेत्रों में अथवा एक ही क्षेत्र में विभिन्न समयावधियों के मध्य प्रजननशीलता को मापने के लिए किया जाता है। यह दर TFR की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ मानी जाती है, क्योंकि TFR की गणना करते समय बालक एवं बालिकाओं दोनों को सम्मिलित किया जाता है जबकि GRR की गणना में केवल जन्मित कन्याओं को ही सम्मिलित किया जाता है जो कि भविष्य की माताएं होती है।

इस दर में मुख्य दोष यह है कि इसमें वर्तमान मृत्यु दर (Current mortality) पर विचार नहीं किया जाता। चूंकि सभी कन्याएं को शिशु-जनन योग्य आयु तक जिन्दा नहीं रह पाती हैं अतः सकल प्रजनन दर का विचार भ्रामक हो जाता है। यह सम्भावित माताओं की संख्या को अनावश्यक रूप से बढ़ा देती है।

(B) शुद्ध पुनरुत्पादन दर :- "शुद्ध पुनरुत्पादन दर से आशय चालू प्रजनन दर के आधार पर और मरण दरों के समायोजन के पश्चात्, 1000 नवजात कन्याओं द्वारा अपने सम्पूर्ण प्रजनन काल में उत्पन्न की जाने वाली कन्याओं की संख्या से है।"

यह दर इस तथ्य की जानकारी देती है कि किस हद तक माताएं उन कन्याओं को जन्म देती हैं जो स्वयं उन्हें (माताओं को) प्रतिस्थापित करने के लिए पूरे प्रजनन काल तक जीवित बनी रहती हैं।

NRR की गणना सामान्यतया निम्न सूत्र की सहायता से की जाती है :

`N R R=\sum_{W_1}^{W_2}FI_x.F_xP_0`

जहां, `\sum_{W_1}^{W_2}FI_x`= GRR (कुल पुनरुत्पादन दर)

`F_xP_0=\frac{FI_x}{FI_0}` (स्त्रियों का जीवित अनुपात)

Ix उन व्यक्तियों की संख्या है जो ठीक आयु x तक जीवित रहते हैं तथा ।0 कुल (अनुमानित) जन्मों की संख्या है।

इसलिए N R R = (GRR) × (Survival ratio)

इस तरह NRR एक काल्पनिक संख्या (Hypthetical figure) है जो यह प्रदर्शित करती है कि किसी समूह की स्त्रियों के सम्पूर्ण प्रजनन काल में कुल कितनी कन्याओं का जन्म होता है यदि प्रजनन काल के दौरान उत्पत्ति एवं मृत्युक्रम को ध्यान में रखा जाय।

यहां यह बात उल्लेखनीय है कि NRR का मूल्य GRR से अधिक नहीं हो सकता अर्थात् GRR वह ऊपरी सीमा है जिससे अधिक NRR नहीं हो सकता क्योंकि मृत्यु होने से कुल जन्मी स्त्रियों की संख्या में कमी आ जाती है।

यदि NRR का मूल्य एक के बराबर है अर्थात् NRR = 1 तो यह कहा जा सकता है कि वर्तमान उत्पत्ति क्रम एवं मृत्युक्रम इस प्रकार है कि नयी जन्मी कन्याएं भविष्य में अपने आपको पूर्णतया प्रतिस्थापित कर लेंगी अर्थात् वर्तमान पीढ़ी अगली नयी पीढ़ी के बराबर होगी। ऐसी स्थिति में जनसंख्या में स्थिर रहने की प्रवृत्ति होती है। NRR >1 की दशा में जनसंख्या में वृद्धि की प्रवृत्ति तथा NRR < 1 की दशा में जनसंख्या में कमी की प्रवृत्ति होती है। क्योंकि NRR >1 की स्थिति में अगली पीढ़ी में स्त्री जनसंख्या का प्रतिस्थापन, वर्तमान स्त्री जनसंख्या से अधिक होगा तथा NRR < 1

 की स्थिति में स्त्री जनसंख्या का प्रतिस्थापन, वर्तमान स्त्री जनसंख्या से कम होगा।

गुण एवं दोष

सकल पुनरुत्पादन दर की अपेक्षा शुद्ध पुनरुत्पादन दर जनसंख्या वृद्धि (या प्रतिस्थापन) के माप का एक श्रेष्ठ सूचकांक है फिर भी NRR का प्रयोग भविष्य में जनसंख्या में होने - वाले परिवर्तन की भविष्यवाणी करने में नहीं किया जा सकता क्योंकि यह जनसंख्या के देशान्तरण (migration) पर ध्यान नहीं देता। इसके अतिरिक्त, इसके अन्तर्गत प्रजनन दर तथा मृत्यु दर की स्थिरता की मान्यता को स्वीकार किया जाता है। यह आवश्यक नहीं है कि ज़ो प्रजनन दरें तथा मृत्यु दरें आज विद्यमान हैं, वह भविष्य में भी बनी रहेंगी।

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