प्रश्न :- प्रजननता से आप क्या समझते हैं।
प्रजननता को प्रभावित करने वाले विभिन्न घटको का उल्लेख कीजिए। शिक्षा का स्तर,
ग्रामीण शहरी निवास, विवाह की आयु एवं धर्म प्रजननता को किस तरह प्रभावित करते है?
उत्तर :- सामान्यतया प्रजननशीलता का अभिप्राय किसी स्त्री
या किसी समूह स्त्री द्वारा किसी समय विशेष में कुछ सजीव जन्मे बच्चों की वास्तविक
संख्या से है। यदि कभी भी किसी स्त्री ने किसी बच्चे को जन्म दिया है तो उसको
प्रजननशील स्त्री कहा जाएगा।
सन्तानोत्पादन शक्ति से युक्त स्त्रियों में ही प्रजननशीलता
हो सकती है। अतः उन सब स्त्रियों में जिनमें प्रजननशीलता होती है, उनमें
सन्तानोत्पादन शक्ति भी होती है परन्तु सभी सन्तानोत्पादन शक्ति से सम्पन्न स्निया
में प्रजननशीलता का होना अनिवार्य नहीं है। साथ ही जो स्त्रियां सन्तानोत्पादन में
अक्षम है (स्त्री बांझ हो सकती है या पति नपुंसक हो सकता है) उनमें प्रजननशीलता का
प्रश्न ही नहीं उठता है।
प्रो. थामसन एवं लेविस के शब्दों में, "जनसंख्या विषय
के अधिकांश विधार्थी प्रजननशीलता शब्द का प्रयोग स्त्री या स्त्रियों के एक समूह
द्वारा जनित बच्चों की वास्तविक संख्या के लिए करते हैं। जबकि सन्तानोत्पादकता वह
शारीरिक क्षमता होती है जिससे स्त्रियां गर्भधारण के योग्य होती है। स्त्रियों में
से कितनी प्रजनन के लिए सक्षम है और कितनी नहीं इसका निश्चित माप कर पाना कठिन है"।
प्रो बर्कले के अनुसार "प्रजननशीलता का मूलभूत अर्थ
किसी समय विशेष में जन्म लिए हुए शिशुओं के कारण जनसंख्या के वास्तविक स्तर में
परिवर्तन से है। सन्तानोत्पादन शक्ति प्रजननशीलता से मिन्न होती है तथा यह बच्चों
को जन्म देने की क्षमता से सम्बंधित होती है। यह क्षमता गर्भ धारण करने एवं जन्म
देने की शारीरिक क्षमता की माप है। प्रजननशीलता को तो जन्म के आंकड़ों से मापा जा
सकता है परन्तु सन्तानोत्पादन क्षमता का कोई प्रत्यक्ष माप नहीं है"।
प्रजनन क्रिया मूल रूप से तीन बातो से प्रभावित होती है।
1. प्रजनन की शक्ति।
2. प्रजनन के अवसर ।
3. प्रजनन के सम्बन्ध में निर्णय लेना।
प्रजननशीलता के निर्धारक सभी तत्व इन तीन प्राथमिक कारकों
को प्रभावित करके ही प्रजनन दर को बढ़ा अथवा घटा सकते हैं।
एक राष्ट्र की प्रजनन दर दूसरे से भिन्न होती है। यही नहीं
प्रत्येक राष्ट्र में भी विशिष्ट विशेषता वाले समूहों अर्थात्, विभिन्न जातियों,
प्रजातियों, धर्मानुयायियों आदि की प्रजनन दर में भी भिन्नता पाई जाती है। कुछ
सामाजिक, आर्थिक या जाति तथा धर्म सम्बन्धी उप समूहों की प्रजनन दर राष्ट्र की
प्रजनन दर से अधिक होती है और कुछ की कम। इसके पीछे प्रजननशीलता के निर्धारक
तत्त्वों का योगदान होता है जो निम्नलिखित हैं -
(1) शैक्षिक स्तर (Educational Status) - शिक्षा प्रजननशीलता के निर्धारक तत्वों में प्रमुख एवं
सबसे महत्वपूर्ण है। शिक्षा मनुष्य को बुद्धिमान एवं युक्तिपरक बनाकर उसे प्रेरणा
प्रदान करती है। शिक्षित व्यक्ति छोटे परिवार के महत्व को ठीक प्रकार से समझते है
और परिवार को नियन्त्रित करने को प्रेरित होता है।
इसके अतिरिक्त जो समाज अशिक्षित होता है, वह निश्चित ही
रूढ़ियों एवं अन्धविश्वासों का शिकार हो सकता है। अशिक्षा के कारण जनसाधारण को
परिवार नियोजन के तरीके अपनाने में जीवन का भय लगता है।
सर्वेक्षणों से यह सिद्ध होता है कि शिक्षा के स्तर में
वृद्धि से जन्म दर घटती है। इसके साथ ही जनांकिकीविदों की धारणा है कि शिक्षा के
स्तर के बढ़ने के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक तथा ऐसे जनांकिकीय
परिवर्तन हो जाते हैं जिससे कि अन्त में जन्म दर निश्चय ही घटती है। इस प्रकार जो
समाज जितना अधिक शिक्षित होता है वहां प्रजनन दर उतनी ही कम तथा उसके विपरीत,
अशिक्षित समाज की प्रजनन दर सबसे अधिक रहती है।
बहुत सारे सर्वेक्षणों से भी इस बात की पुष्टि हुई है कि उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों की जन्म-दर नीची रहती है। इस सम्बन्ध की व्याख्या तालिका द्वारा की जा सकती है -
उपर्युक्त तालिका को देखकर हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते
हैं कि पति की शिक्षा के स्तर में वृद्धि होने से जन्म दर में कमी आती है।
इसी तरह हम स्त्री की शिक्षा के अनुसार बच्चों की संख्या का वितरण को स्पष्ट कर सकते हैं -
इस तरह, शिक्षितों में परिवार नियोजन की विधियों के प्रयोग
की प्रथा अधिक पाई जाती है इसके अतिरिक्त, परिवार नियोजन में विश्वास, परिवार
नियोजन की विधियों की जानकारी, निष्कीटन के प्रति धारणा तथा उसका प्रयोग आदि
शिक्षित व्यक्तियों में अधिक पाया जाता है।
(2) वैवाहिक स्तर (Marital Status) :- जहां विवाह देर से होते हैं अथवा ऐसी सामाजिक एवं आर्थिक
दशाएं विद्यमान रहती हैं कि बिना विवाह के भी रहा जा सकता है , वहां प्रजनन दर कम होती है। इसके विपरीत जहां विवाह आवश्यक
और कम आयु में होता है वहां की प्रजनन दर अधिक होती है। विवाह की आयु कम होने से
बच्चे पैदा करने के लिए सम्पूर्ण प्रजनन सामर्थ्य का समय मिल जाता है और इसलिए
बच्चे अधिक होते हैं और जन्म दर ऊंचे स्तर की होती है। इसके अतिरिक्त तलाक के बाद
पुनर्विवाह, विधवा विवाह और बहु-विवाह सम्बन्धी नियम भी प्रजनन दर पर बहुत अधिक
प्रभाव डालते हैं। जैसे भारत में निम्न जातियों की अपेक्षा उच्च जातियों में
प्रजनन दर कम होने का कारण यह है कि उनमें विधवा विवाह, पुनर्विवाह और बहु विवाह
को हेय की दृष्टि से देखा जाता है। जहां तलाक का प्रचलन है और पुनर्विवाह का नही, वहां
प्रजनन दर कम होगी क्योंकि तलाक के बाद प्रजनन की कोई सम्भावना नहीं रह जाती। भारत
में तलाक की अपेक्षा विलगाव (पति का पत्नी से दूर रहना) अधिक पाया जाता है जिसका
प्रजनन दर पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
इस तरह निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि शीघ्र विवाह
अधिक प्रजनन का मौका देता है, तथा देर विवाह से प्रजनन के अवसर कुछ कम प्राप्त होते हैं।
फलस्वरूप जन्म दर घटती है। सर्वेक्षणों से यह सिद्ध होता है -
नीचे तालिका से यह स्पष्ट होता है कि जिन स्त्रियों का विवाह कम आयु में होता है उन्हें प्रजनन का अधिक अवसर प्राप्त होता है, फलत: जन्म दर में वृद्धि होती है।
3.
नगरीकरण (Urbanization) :- सर्वेक्षणों के आधार पर
यह देखा गया है कि जैसे-जैसे ग्रामों की जनसंख्या नगरों में बसने लगती है वैसे-वैसे उसकी
प्रजनन दर भी घटने लगती है। भारत के सन्दर्भ में यह तथ्य स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इस
तथ्य की पुष्टि हेतु अनेक अनुसन्धानकर्ताओं एवं जनांकिकीविदों ने ग्रामीण एवं नगरीय
परिवारों के आकार में विभिन्नता के आंकड़ों को प्रस्तुत किया है। ग्रामीण परिवारों
की अपेक्षा नगरीय परिवारों के छोटे होने के कई कारण हो सकते हैं यथा
(a)
नगरों में रहने वाले परिवारों के सदस्य भिन्न-भिन्न संस्थाओं में कार्यरत रहते हैं
जिससे उनके सम्बन्ध परिवार से बाहर
भिन्न-भिन्न तरह के लोगों से रहते हैं इससे उनके पारिवारिक जीवन में भिन्नता पाई जाती
है।
(b)
ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के यहां बालश्रम के कारण बच्चों को दायित्व
न समझकर उन्हें सम्पत्ति के रूप में समझा जाता है, जबकि नगरों में इस तरह की संस्कृति
कम ही देखने में आती है।
(c)
गाँव के लोग बच्चों को भगवान की देन मानते है जबकि नगरों में लोग अपने परिवार का आकार
विवेक की आधार पर निर्धारित करते है।
इसी
नगरीय मनोवृत्ति से प्रभावित नगरों के लोग गाँव के लोगों की अपेक्षा अधिक शिक्षित होने
के फलस्वरूप प्रजनन
नियंत्रण उपायो को सहजता एवं सरलता से अपना लेते है जिससे नगरो में प्रजनन दर वहाँ
कम रहती है।
(4)
आर्थिक स्तर :- किसी देश के निवासियों की आर्थिक स्थिति
एवं रहन-सहन का स्तर भी प्रजननशीलता को प्रभावित कर परिवार के आकार को निर्धारित करने में
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। धनी
व्यक्तियों की अपेक्षा निर्धनों के अधिक बच्चे होते है। प्रजनन दरों में इस तरह के
अन्तर के कई कारण हो सकते हैं। जैसे-धन
मनुष्य के मनोरंजन के लिए तरह-तरह के मार्ग खोल देता है। जहाँ मनुष्य अपना खाली समय व्यतीत कर सकता है जबकि गरीब धन के अभाव में इन मनोरंजन के
साधनों को अपनाने में असमर्थ रहता है। अतिरिक्त बच्चों के जन्म से धनवान भी
मनोरंजन के इन साधनों एवं सुख सुविधाओं से वंचित होने लगता है।
रहन-सहन का नीचा स्तर वास्तव में लोगों के मस्तिष्क से यह
डर निकाल देता है कि एक बच्चा होने से रहन-सहन का स्तर और नीचा हो सकता है। परिवार
के बढ़ते जाने पर वह गरीबों में घबराहट का कारण नहीं बनता। यह भी देखा जाता है कि
निर्धन लोगों के लिए बच्चे आर्थिक दृष्टि से सहायक हो जाते हैं इसलिए निर्धन
परिवार के लोग बच्चों की संख्या कम करने में कोई विशेष रुचि नहीं दिखाते हैं।
5. व्यवसाय (Occupation) - प्रारम्भिक व्यवसायों एवं शारीरिक श्रम करने वाले
व्यक्तियों की प्रजनन दर मानसिक श्रम करने वाले व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक होती
है। भारत में कृषकों में प्रजनन दर व्यापारियों एवं सेवा संवर्ग से जुड़े लोगों की
अपेक्षा अधिक होती है। साथ ही खेतिहर मजदूरों की प्रजनन दर, भूस्वामियों की
अपेक्षा अधिक होती है। कारण स्पष्ट है- खेतिहर मजदूरों एवं प्रारम्भिक व्यवसाय से
सम्बद्ध लोगों के परिवार में शिक्षा का स्तर नीचा रहता है तथा यह सामाजिक
रीति-रिवाजों एवं प्रथाओं से अपेक्षाकृत अधिक सम्बद्ध रहते हैं, इनके विवाह की आयु
नीची रहती है, आर्थिक दृष्टि से रहन-सहन का स्तर नीचा रहता है तथा इस प्रकार के
परिवारों में गर्भ निरोधक उपाय भी कम ही प्रयोग में लाए जाते हैं।
इसके अतिरिक्त स्त्रियों का आर्थिक स्तर तथा व्यवसाय भी
उनकी प्रजनन दर को बहुत अधिक प्रभावित करता है। नौकरी करने वाली स्त्रियों की
प्रजनन दर, नौकरी न करने वाली स्त्रियो की अपेक्षा कम होती है।
6. धर्म एवं सामाजिक रीति-रिवाज
(Religion and Social Customs) - प्रजनन
निर्धारण में धर्म की भी महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। बच्चों की आवश्यकता एवं
उनके संख्या संबंधित विचार मुख्य रूप से समाज एवं देश में प्रचलित सामाजिक एवं
धार्मिक मान्यताओं एवं विचारों से प्रभावित होते हैं। उदाहरण के लिए, संसार के
विभिन्न देशों में देखा गया है कि सर्वाधिक प्रजनन दर कैथोलिक ईसाइयों में पाई
जाती है तथा सबसे कम यहूदियों में।
लोग परम्पराओं एवं रूढ़ियों से अधिक प्रभावित एवं सम्बद्ध
रहते हैं और सामान्यतया उससे हटने का प्रयास नहीं करते। भारत में मुसलमान धार्मिक
परम्पराओं एवं रूढ़ियों में जकड़े होने के फलस्वरूप सामान्यतया संतति निग्रह का
विरोध करते हैं और परिवार नियोजन की किसी विधि को नहीं अपनाते फलस्वरूप उनकी
प्रजनन दर अपेक्षाकृत अधिक है।
7. सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) - समाज में प्रत्येक व्यक्ति चाहता है तथा उसका उद्देश्य
होता है कि वह सदैव प्रगति के पथ पर बढ़ता रहे। मनुष्य इस उद्देश्य की प्राप्ति
हेतु परिवार को सीमित रखने हेतु बाध्य हो जाता है। प्रजनन की अधिक दर सामाजिक
गतिशीलता पर रोक लगा देती है, क्योंकि बच्चों के जन्म के लिए धन, समय एवं प्रयासों
की आवश्यकता पड़ती है जिनको बच्चों के अभाव में सामाजिक गतिशीलता की वृद्धि में
लगाया जा सकता है। इस तरह. अधिक प्रजनन दर की अपेक्षा कम प्रजनन दर रहने पर
सामाजिक गतिशीलता को बनाए रखा जा सकता है।
8.
मृत्यु दर (Mortality Rate)-
मृत्यु दर का भी प्रजनन दर पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ना है। जहां बाल एवं शिशु
मृत्यु दर अधिक होती है वहां प्रजनन दर भी अधिक होती है, क्योंकि व्यक्ति बच्चों
की लालसा के लिए परिवार को सीमित करने की नहीं सोचता। इसके विपरीत, बाल एवं शिशु
मृत्यु दर कम होने से बच्चों के जीवित रहने की प्रत्याशा बढ़ती है अतः लोग परिवार
को सीमित करना चाहेंगे। फलस्वरूप प्रजनन दर भी कम होगी।
9. भौगोलिक
कारण (Geographical Factors)-
किसी देश की जलवायु, भू-संरचना तथा उपलब्ध खाद्य सामग्री भी प्रजनन दर को प्रभावित
करती है। भूमध्य रेखा के निकट गरम प्रदेशों में प्रजनन दर शीत कटिबन्धीय प्रदेशों
की अपेक्षा अधिक होती है। ऊष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों की जलवायु इस तरह की होती है कि
वहां लड़कियों का शारीरिक विकास कम आयु में ही हो जाता है और वे शीघ्र ही शिशु जनन
आयु को प्राप्त कर लेती है। इसके विपरीत, शीत कटिबन्धीय प्रदेशों में स्त्रियों का
शारीरिक विकास इस तरह का होता है कि यहां शिशु-जनन-आयु विलम्ब से प्राप्त होती तथा
यहां का खान-पान भी अपेक्षाकृत कम कामोत्तेजक होता है। इन क्षेत्रों में प्रजनन दर
अपेक्षाकृत कम होती है।
10. अन्य कारण (Other Factors) - उपर्युक्त तत्त्वों के अतिरिक्त कुछ अन्य तत्व भी हैं जो
प्रजनन दर को प्रभावित करते हैं; जैसे-भोजन एवं आवास की कमी, आर्थिक असुरक्षा,
बरोजगारी आदि ऐसे कारक है जो प्रजनन दर को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते
हैं।
प्रजननशीलता को प्रभावित करने वाले तत्वों को प्रो. डी. एस.
नाग ने तीन वर्गों में विभाजित किया है :
(a) जैविकीय तत्व (Biological Factors) - प्रो. नाग के अनुसार प्रजननशीलता मुख्यतया व्यक्ति के
स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी उपलब्ध सुविधाओं से प्रभावित होती है। यदि
स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं में विस्तार होता है तो सन्तानोत्पादन शक्ति में
वृद्धि होती है। इस तरह, प्रजननशीलता पर, गुप्त रोगों, बीमारियों एवं बांझपन आदि
का प्रभाव पड़ता है। विगत वर्षों में स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं में वृद्धि से
मृत्यु दर में कमी तथा प्रजनन शक्ति मजबूत होने से विश्व जनसंख्या में तेजी से
वृद्धि हुई है।
(b) प्रत्यक्ष सामाजिक तत्व (Direct Social Factors)- प्रत्यक्ष सामाजिक तत्वों के अन्तर्गत उन तत्वों को
सम्मिलित किया जाता है, जो जनसंख्या वृद्धि को सीधे प्रभावित करते हैं। इन तत्वों
में जनसंख्या पर नियन्त्रण करने वाले कारकों यथा- आत्म संयम, संतति निग्रह
सम्बन्धी विभिन्न कृत्रिम उपायों, गर्भ समापन, भ्रूण हत्या, शिशु हत्या आदि को
सम्मिलित किया जाता है।
(c) अप्रत्यक्ष सामाजिक तत्व (Indirect Social Factors) - इसके अन्तर्गत उन सामाजिक तत्वों को सम्मिलित किया जाता
है, जो प्रजननशीलता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। यथा- विवाह की आयु,
तलाक एवं अलगाव, वैधव्य, बहुपत्नी प्रथा, पति-पत्नी के मध्य सामाजिक एवं धार्मिक
एवं अन्य रीति-रिवाजों के कारण से अलगाव, गर्भ धारण एवं प्रसवोपरान्त अलगाव, विवाह
के उपरान्त आत्म संयम आदि।
इस तरह किसी देश एवं समाज में प्रजननशीलता को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से प्रभावित करने वाले अनेक सामाजिक, आर्थिक एवं जनांकिकीय कारक हैं जिन्हें प्रभावित करके किसी देश की जनसंख्या को नियन्त्रित किया जा सकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
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