प्रश्न- उच्च गुणक सिद्धांत की व्याख्या करें
?
→ अति-गुणक की नई धारणा अथवा गुणक एवं त्वरक की परस्पर
क्रिया की व्याख्या कीजिये ?
उत्तर- गुणक, जो प्रारम्भिक विनियोग में होने वाली वृद्धि
और कुल आय में होने वाली वृद्धि के बीच आनुपातिक सम्बंध दर्शाता है। कुल आय में वृद्धि
से उपभोग वस्तुओं की मांग में भी वृद्धि होती है जबकि त्वरक, उपभोग में होने वाली वृद्धि
का कुल विनियोग पर होने वाले प्रभाव को मापता है। जब त्वरक के फलस्वरूप कुल विनियोग
में वृद्धि होती है तो पुनः गुणक क्रियाशील हो जाता है तथा आय और उपभोग में वृद्धि
होती है। । इस प्रकार गुणक और त्वरक दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते है। विनियोग की
मात्रा बढ़ते ही गुणक क्रियाशील हो जाता है और उपभोग की मात्रा बढ़ते ही त्वरक गतिशील
हो जाता है। प्रो. हैन्सन ने गुणक एवं त्वरक के इस मिश्रित प्रभाव को 'लीवर के प्रयोग
से प्राप्त शक्ति प्रभाव' के नाम से पुकारा है। यह उक्ति हैन्सन ने 1951 में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'Business
cycles and Natishal Income में कहा
है।
प्रारम्भिक व्यय के फलस्वरूप राष्ट्रीय आय पर पड़ने वाले
कुल प्रभाव को जानने के लिए हैन्सन के अतिरिक्त हैरोड, सैम्युलसन, हिक्स तथा कुरिहारा ने भी गुणक एवं त्वरक को एक साथ सम्मिलित किया है। गुणक एवं त्वरक के जोड़ अथवा
सम्मेलन को अति गुणक कहा जाता है तथा इनकी सम्मिलित कार्यशीलता को गुणक
एवं त्वरक की परस्पर क्रिया कहते है।
केन्स के गुणक विश्लेषण में केवल प्रेरित उपभोग पर विचार किया जाता है लेकिन स्वतंत्र विनियोग
में वृद्धि के प्रभाव दो तरह के हो सकते है
- प्रेरित उपभोग तथा प्रेरित विनियोग । प्रेरित विनियोग से तात्पर्य है उपभोग में वृद्धि
होने के कारण विनियोग में होने वाली वृद्धि। गुणक सिद्धांत में आय में गुणक वृद्धि
का कारण है प्रेरित उपभोग में वृद्धि
प्रारम्भिक विनियोग में वृद्धि के फलस्वरूप । त्वरक सिद्धांत में उपभोग मे वृद्धि के
कारण आय में जो वृद्धि होती है वह प्रेरित विनियोग में वृद्धि का परिणाम होती है। इसलिए विनियोग में प्रारम्भिक वृद्धि के
फलस्वरूप आय में कुल कितनी वृद्धि होगी। इसे जानने के लिए गुणक तथा त्वरक दोनों पर विचार करने की जरूरत पड़ती है। इसी सिलसिले में
"सुपर गुणक" की विवेचना की जाती है।
आय पर गुणक-त्वरक के संयुक्त प्रभाव को सूत्र से प्रकट कर सकते
है। मान लिया कि प्रेरक उपभोग तथा प्रेरक विनियोग का योग प्रेरक व्यय (MPX) है,
अर्थात् MPX = MPC + MPI
जहां MPI = विनियोग की सीमांत प्रवृत्ति
एवं सरल गुणक `=\frac1{1-MPC}`
उदाहरण द्वारा दोनों के
मूल्य के अन्तर को स्पष्ट किया गया है
माना, MPC`=\frac{3}5=0.6`
MPI `=\frac{1}5=0.2`
सरल गुणक `=\frac1{1-MPC}=\frac1{1-0.6}=2.5`
सुपर गुणक `=\frac1{1-MPX}`
`=\frac1{1-(0.6+0.2)}=\frac1{0.2}=5`
आर्थिक मन्दी की स्थिति में
उद्योगों में अतिरिक्त क्षमता विद्यमान रहती है, लेकिन समस्त मांग के अपर्याप्त
रहने के कारण उनका उपयोग नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति में प्रारम्भिक विनियोग के
कारण प्रेरित उपभोग के सृजन होने पर प्रेरित विनियोग की आवश्यकता नहीं होती है।
विद्यमान अतिरिक्त क्षमता का उपयोग करके ही उपभोग वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ाना
सम्भव हो जाता है। इसलिए मन्दी काल में सरल गुणक ही आय सृजन का सही परिणाम देने
में सक्षम है। अतिरिक्त उत्पादन क्षमता के समाप्त होने पर गुणक एवं त्वरक की
अन्तक्रिया ही आय सृजन का सही परिणाम देगे ।
रेखाचित्र द्वारा गुणक-त्वरक अन्तक्रिया का स्पष्टीकरण-
चित्र में SS बचत वक्र तथा II निवेश वक्र है। ये दोनों
रेखाएँ एक दूसरे को P बिन्दु पर काटती है। यह संतुलन बिन्दु है जिस पर आय OM के बराबर है। बचत और निवेश OI1
के बराबर है। निवेश में वृद्धि होने पर
I'I' निवेश की रेखा हो जाती है। अब आय
बढ़कर OM2 के बराबर होगी। निवेश की वृद्धि में स्वतः निवेश
का आकार यदि I1I2 के बराबर मान लिया जाय तो गुणक के प्रभाव में आय
में वृद्धि केवल MM1 के बराबर होगी। I2I3 के बराबर
निवेश में वृद्धि प्रेरित निवेश का परिणाम है। अतः M1M2 के बराबर आय में वृद्धि त्वरक प्रभाव के कारण हुई। इस
प्रकार MM2 के बराबर आय में वृद्धि गुणक
तथा त्वरक की परस्पर क्रिया का परिणाम है।
गुणत व त्वरक के सम्मिलित प्रभावो को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट
कर सकते हैं। इस उदाहरण में हम यह मान लेगे कि (i)
MPC = 1/2 = 0.5 तथा (ii) त्वरक गुणांक का मूल्य 2 है
इसे निम्नांकित तालिका में
स्पष्ट किया गया है-
आय पर गुणक एवं त्वरक का अन्तक्रिया
(करोड़ रु. में)
अवधि |
प्रारम्भिक निवेश |
उपभोग |
प्रेरित निवेश |
कुल आय में वृद्धि |
0 |
10 |
0 |
0 |
10 |
1 |
10 |
5 |
10 |
25 |
2 |
10 |
12.50 |
15 |
37.50 |
3 |
10 |
18.75 |
12.50 |
41.25 |
4 |
10 |
20.62 |
3.74 |
34.36 |
5 |
10 |
17.18 |
-6.88 |
20.30 |
6 |
10 |
10.15 |
-14.06 |
6.09 |
7 |
10 |
3.04 |
-14.22 |
-0.18 |
8 |
10 |
0.09 |
-5.90 |
4.19 |
9 |
10 |
2.10 |
4.02 |
16.12 |
10 |
10 |
8.06 |
11.92 |
29.98 |
यदि 10 करोड़ रूपये का
प्रारम्भिक निवेश किया जाता है तो कुल आय में भी 10 करोड़ रुपये की ही वृद्धि
होगी, क्योंकि प्रारम्भिक अवधि मे न तो गुणक और न ही त्वरक कार्यशील हो पाते है।
इसके बाद प्रथम अवधि में इस 10 करोड़ रुपये की बढ़ी हुई आय में से 5 करोड़ रुपये की
राशि उपभोग पर व्यय कर ली जाती है। परिणामस्वरूप, इस अवधि में 10 करोड़ रुपये का
प्रेरित निवेश किया जाता है, क्योंकि त्वरक गुणांक 2
है। इस अवधि में कुल आय 25 करोड़ रुपये हो जाती है। दूसरी अवधि में प्रेरित उपभोग
की राशि 12.50 करोड़ रुपये है जो प्रथम अवधि की आय का 50% है। प्रेरित निवेश 15
करोड़ रुपये है, जो पहली व दूसरी अवधि में प्रेरित उपभोगों के अन्तर
(12.50-5.00=7.50) का दुगुना है। इस अवधि में कुल आय
37.50 करोड़ रुपये है। तृतीय अवधि में गुणक व त्वरक की परस्पर क्रिया के कारण कुल आय
41.25 करोड़ रुपये ही रह जाती है। परन्तु चौथी अवधि में कुल आय घटकर 34.36 करोड़ रूपये
ही रह जाती है, क्योंकि इस स्थिति तक पहुंचते-पहुंचते प्रेरित निवेश की मात्रा बहुत
ही कम रह जाती है। अगली अवधि में उपभोग व्यय में कमी हो जाती है। परिणामस्वरुप प्रेरित
निवेश गिर जाता है और आय में
काफी कमी होती है। आय में
कमी का क्रम तब तक चलता रहता है जब तक गुणांक तथा त्वरक पुनः क्रियाशील नहीं हो जाते
है।
स्पष्ट है कि गुणक व त्वरक के सामूहिक प्रभावों के कारण आय में इतनी तीव्र गति से वृद्धि होती है कि अकेले गुणक के प्रभाव से इतनी वृद्धि नहीं हो सकती थी। आरम्भ में त्वरक प्रभावों के कारण प्रेरित निवेश की मात्रा अधिक होती है और आय में तेजी से बढ़ती है। आगे चलकर त्वरक की कार्यशीलता में जैसे ही कमी आती है तो प्रेरित निवेश में कमी के साथ-साथ आय भी गिरने लगती है। सातवी अवधि में तो यह थोड़ी ऋणात्मक हो जाती है। इसके बाद पुनः वृद्धि आरम्भ होती है। अलग-अलग अवधियों में परिवर्तन की दर अलग-अलग है। यदि इन परिवर्तनों को एक रेखाचित्र के द्वारा दिखाया जाय तो यह चक्रीय परिवर्तनों की रेखा के समान होगा।
उपर्युक्त
उदाहरण में गुणक तथा त्वरक को स्थिर
माना है, परन्तु व्यावहारिक रूप में
में स्थिर नहीं रहते हैं। कुल आय में परिवर्तनों के कारण भी इनके मूल्यों में परिवर्तन
हो जाता है। इनकी परस्पर क्रिया का प्रभावपूर्ण होना इनके मूल्यों पर निर्भर करता है।
गुणक-त्वरक अन्तक्रिया की विशेषताएँ
गुणक
- त्वरक अन्तक्रिया सिद्धांत की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है:-
(1)
व्यापार चक्रों की वैज्ञानिक व्याख्या- व्यापार चक्रों के ऐसे सिद्धांत है जो अर्थव्यवस्था
के आन्तरिक कारणों को व्यापार चक्र का जनक मानते है।
उनकी तुलना में प्रो. सैम्युलसन का गुणक-त्वरक अन्तक्रिया सिद्धांत व्यापार चक्र
के सर्वाधिक सन्तोषप्रद एवं वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत करता है।
(2) उपभोक्ताओं एवं
उत्पादकों के सम्बंधित व्यवहार का परिणाम-
प्रो. सैम्युलसन के अनुसार व्यापार चक्र उपभोक्ताओ एवं उत्पादकों के सम्बंधित
व्यवहार का परिणाम है। इस प्रकार यह विश्लेषण अपने पूर्ववर्ती महान अर्थशास्त्रियो-
मार्शल एव केन्स की व्याख्या की पुष्टि करता है।
(3) अवमन्दित एवं
प्रतिमन्दित चक्र- प्रो. सैम्युलसन की व्याख्या के अनुसार व्यवहार में कुछ चक्र
कभी अवमन्दित होते है और कुछ चक्र प्रतिमन्दित । इनमें कुछ चक्र अपेक्षाकृत अधिक
अवधि के तथा अधिक तीव्र होते हैं और कुछ कम अवधि के तथा कमजोर विस्तार वाले होते
है। कुछ चक्रों में तेजी का पक्ष अधिक प्रबल होता है तो कुछ भी सुस्ती और मन्दी
का।
(4)
अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखने के लिए उचित मार्गदर्शन- गुणक
तथा त्वरक पर आधारित प्रो. सैम्युलसन सिद्धांत का महत्त्व इसलिए भी है कि यह न
केवल व्यापार चक्र की घटना उत्पन्न होने की स्पष्ट व्याख्या करता है बल्कि
अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखने के लिए उचित मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।
(5) व्यापार चक्र के उपयोगी
उपकरणों का आविष्कार-
प्रो. कुरिहारा के अनुसार, "सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (एक से कम होने) की धारणा
पर आधारित गुणक विश्लेषण से मिलकर ही त्वरक नियम व्यापार चक्र के उपयोगी उपकरणों
के रूप में तथा व्यापार चक्र नीति के मार्गदर्शन के रूप में कार्य करता है "।
हिक्स के विचार में
अर्थव्यवस्था में स्वायत्त निवेश सर्वदा रहता है जिससे अर्थव्यवस्था सन्तुलन पथ पर
अग्रसर रहती है। चक्रीय परिवर्तन प्रेरित निवेश में परिवर्तनों का परिणाम होते है।
सन्तुलित उत्पादन तथा
स्वायत्त निवेश के बीच अनुपात को व्यक्त करने के लिए हिक्स ने 'अति
गुणक' की धारणा का प्रयोग किया है। अति गुणक की सहायता से हम यह जान सकते है कि
स्वायत्त निवेश के एक निश्चित स्तर पर संतुलित आय अथवा उत्पादन का स्तर क्या होगा।
प्रारम्भिक सन्तुलन के स्तर
पर आय में होने वाली वृद्धि में तीन तत्व सम्मिलित होते हैं
(1) स्वायत्त निवेश में
वृद्धि
(2) उपभोग में प्रेरित
वृद्धि तथा
(3) प्रेरित निवेश
इस प्रकार कुल आय (Y)
में उपभोग व्यय (C); स्वायत्त निवेश (IA), तथा प्रेरित निवेश (IP)
सम्मिलित होगे।
Y = C + IA +
IP
प्रेरित निवेश में परिवर्तन उपभोग व्यय में परिवर्तन का परिणाम होता
है। वर्त्तमान समय में उपभोग में परिवर्तन का सम्बंध पूर्वकाल में आय के परिवर्तन से है। आय में परिवर्तन होने पर उपभोग
में भी परिवर्तन होता है जिसका निर्धारण उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति (MPC) के द्वारा होता है जो ∆C/∆Y के बराबर होती है। इसी
प्रकार, निवेश की सीमांत प्रवृत्ति (MPI) कुल आय में परिवर्तन तथा कुल प्रेरित
निवेश में परिवर्तन के बीच अनुपात (∆I/∆Y) व्यक्त करती है। यदि MPC को a के
रूप
मे तथा MPI को b के रूप में व्यक्त किया जाये
तो संतुलित आय की स्थिति इस प्रकार होगी-
Y = C + IA +
IP
= aY + IA + bY
Y – aY – bY = IA
Y (1 – a -b) = IA
`\therefore Y=\frac{I_A}{1-a-b}`
जहां
Y = कुल आय , IA
= स्वायत्त निवेश, a = MPC, b = MPI
माना ∆IA =10
करोड़ रुपये a = 0.5 तथा b
= 0.3 है, तो
`\Delta Y=10\times\frac1{1-0.5-0.3}` करोड़ रूपये
`\Delta Y=10\times\frac1{0.2}=50` करोड़ रूपये
10 करोड़ रुपये का
अतिरिक्त स्वायत्त निवेश होने पर 50 करोड़ रूपये की अतिरिक्त आय प्राप्त होती है।
इस प्रकार, K' = 5
है।
निष्कर्ष
गुणक त्वरक की परस्पर क्रिया के राष्ट्रीय आय पर पड़ने वाले प्रभावों की माप करने में अनेक व्यावहारिक कठिनाइयां है। परन्तु सैद्धान्तिक रूप में इनके अध्ययन से चक्रीय परिवर्तनों को समझने में सहायता मिलती है। सरकार द्वारा स्थिरता सम्बंधी नीति निर्धारित करने में भी इससे सहायता मिलती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)