विनियोग फलन (Investment Function)

विनियोग फलन (Investment Function)

विनियोग फलन (Investment Function)

प्रश्न :- विनियोग फन से आप क्या समझते है? इसे निर्धारित करने वाले त्त्वों की व्याख्या करे?

"निवेश क्रिया में होने वाले उच्चावचन प्रथमत: पूँजी की सीमांत उत्पादकता के परिवर्तन पर निर्भर करते हैं "- विवेचना करे

→" पूँजी की सीमांत क्षमता की धारणा अस्पष्ट तथा असंगतिपूर्ण है" व्याख्या कीजिए।

→" पूँजी के सीमान्त उत्पादकता की आलोचनात्मक व्याख्या करें ?

उत्तर :- विनियोग फलन, विनियोग करने की प्रेरणा अथवा विनियोग माँग को बताता है। केन्स के अनुसार, " पूँजीवादी र्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार के लिए विनियोग एक आवश्यक शर्त तथा समृद्धि की कुंजी है।"

प्रो. केन्स ने प्रत्येक प्रकार के विनियोग को विनियोग नहीं बताया। केन्स के शब्दों में "विनियोग से हमारा अभिप्रायः पूँजीगत पदार्थों में होनेवाली वृद्धि से है"

विनियोग के प्रकार

(1) प्रेरित विनियोग :- प्रेरित विनियोग वह विनियोग है जिसमे आ में परिवर्तन की स्थिती में परिवर्तन होता है। आय में वृद्धि होने पर प्रेरित निवेश में वृद्धि होती है।

विनियोग फलन (Investment Function)

चित्र में, प्रेरित विनियोग वक्र की ढलान ऊपर की ओर होती है अर्थात् आय में वृद्धि के कारण विनियोग भी बढ़ता है। प्रेरित विनियोग आय के प्रति लोचदार होता है।

(2) स्वायत्त विनियोग :- इसे स्वायत्त विनियोग इसलिए कहते हैं क्योंकि आय में परिवर्तन से यह स्वतंत्र रहता है तथा आय का इस पर प्रभाव नहीं पड़ता अर्थात् यह आय के प्रति बेलोचदार होती है इसे सार्वजनिक विनियोग भी कहा जाता है।

विनियोग फलन (Investment Function)

स्वायत्त तथा प्रेरित विनियोग से संतुलित आय का स्पष्ट ज्ञान होता है। कुल विनियोग, स्वायत्त तथा प्रेरित विनियोग का योग होता है

`I_{t_{}}=I_t^1+I_t^{11}---(1)` 

जहां It = कुल विनियोग, I't = प्रेरित विनियोग , I''t = स्वायत्त विनियोग

`C_t=bY_{t-1}---(2)` 

उपभोग निर्भर करता है पिछले समय की आय पर , स्थिर 'b' सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) है।

`I_t^{11}=G---(3)`

स्वायत्त विनियोग, सार्वजनिक व्यय है जो स्थिर है।

`I_t^1=K\left(C_t-C_{t-1}\right)---(4)`

प्रेरित निवेश निर्भर करता है मांग और उपभोग वस्तुओं पर संतुलन करने में

`Y_t=C_t+I_t---(5)`

Putting the value of `C_t,I_t^1` and in `Y_t`

`Y_t=bY_{t-1}+KC_t-KC_{t-1}+G`

`Y_t=bY_{t-1}+KbY_{t-1}-KbY_{t-2}+G`

`Y_t=bY_{t-1}\left(1+K\right)-KbY_{t-2}+G`

`Y_t-bY_{t-1}\left(1+K\right)+KbY_{t-2}=G---(6)`

Try `\overline Y` for all Y

`\overline Y-b\overline Y\left(1+K\right)+Kb\overline Y=G`

`\overline Y\left[1-b\left(1+K\right)+Kb\right]=G`

`\overline Y\left[1-b-Kb+Kb\right]=G`

`\therefore\overline Y=\frac G{1-b}---(7)`

यह संतुलित आय है जो गुणक `\frac1{1-b}` तथा स्वायत्त निवेश G के बराबर है।

केन्स के अनुसार निवेश के लिए प्रेरणा तब मिलती है जब पूँजी की सीमांत क्षमता व्याज की दर से अधिक होती है। इस प्रकार निवेश की दर को  पूँजी की सीमांत क्षमता तथा ब्याज की दर निर्धारित करता है।

`\therefore I=ƒ\left(MEC,r\right)---(8)`

पूँजी की सीमांत क्षमता

साधारण रूप में पूँजी की सीमांत क्षमता का अर्थ विनियोग से प्राप्त होने वाले लाभ की अनु‌मानित दर से लिया जाता है।

प्रो. डिलार्ड के शब्दों में," किसी पूँजीगत साधन की अतिरिक्त या सीमांत इकाई लगाने से लागत पर आ की जो अधिकतम दर प्राप्त होने की आशा हो उसे पूँजी की सीमांत क्षमता कहा जाता है।"

प्रो. कुरिहारा के अनुसार 

`MEC=\frac QP`

जहां MEC = पूँजी की सीमांत क्षमता, Q = प्रत्याशित आय , P =  पूँजी का पूर्ति मूल्य

इस प्रकार प्रो. कुरिहारा के विचार में  पूँजी की सीमांत क्षमता दो बातों पर निर्भर करती है।

(1) पूँजीगत साधन की प्रत्याशित आय :- एक व्यापारिक फर्म पूँजीगत साधन का विनियोग करने के बाद प्राप्त हुई उत्पादन को बेचकर जितनी रकम की आशा करती है, वहीं प्रत्याशित आय कहलाती है। दूसरे शब्दों में, प्रत्याशित आय का अर्थ किसी नये पूँजीगत साधन से भविष्य में प्राप्त होने वाली अनु‌मानित आय से होता है।

(2) पूँजीगत साधन की पूर्ति कीमत :- पूँजीगत साधन की पूर्ति कीमत वह कीमत है जिस पर वह साधन बाजार से खरीदा गया है। केन्स ने साधन के पूर्ति मूल्य के स्थान पर पुनर्स्थापन लागत का प्रयोग किया है। एक उदाहरण द्वारा पूँजी की सीमांत क्षमता को समझ सकते हैं-

साधन की पुनर्स्थापना लागत (पूर्ति कीमत) = Cr

प्रत्याशित आय = Q

शुद्ध प्रत्याशित आय = Q - Cr

यदि पूँजीगत साधन का जीवनकाल एक वर्ष मान लें तो,

विनियोग फलन (Investment Function)

Let, MEC = e

`\therefore e=\frac{Q-C_r}{C_r}=\frac Q{C_r}-\frac{C_r}{C_r}`

`e=\frac Q{C_r}-1`

`or,\frac Q{C_r}=1+e`

`or,C_r=\frac Q{1+e}`

इसी प्रकार यदि पूंजीगत साधन का जीवनकाल n वर्ष हो तो

`or,C_r=\frac{Q_1}{1+e}+\frac{Q_2}{\left(1+e\right)^2}+\frac{Q_3}{\left(1+e\right)^3}+---+\frac{Qn}{\left(1+e\right)^n}`

केन्स के अनुसार,"पूंजी की सीमांत क्षमता ट्टे कि उस र के बराबर होती है जो पूंजी परिसम्पत्तियों के जीवन काल में प्राप्त होने वाले कुल वार्षिक प्रतिफलों की मात्रा के वर्तमान मूल्य को उसकी पूर्ति कीमत के बराबर कर दे।" इस प्रकार -

पूँजी कीमत = कटौती की हुई प्रत्याशित भावी प्राप्तियाँ

इस प्रकार उपर्युक्त सूत्र को निम्न रूप से व्यक्त किया जा सकता है

`or,C_r=\frac{Q_1}{1+r}+\frac{Q_2}{\left(1+r\right)^2}+\frac{Q_3}{\left(1+r\right)^3}+---+\frac{Qn}{\left(1+r\right)^n}`

जहाँ Cr = पुनः स्थापन लागत

Q1, Q2, Q3, Qn = प्रत्याशित वार्षिक प्राप्तियाँ (यह एक समान प्रति वर्ष नहीं रहता)

r = पूँजी की सीमांत क्षमता

उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि पूँजी की सीमांत क्षमता दो तत्वो

(ⅰ) प्रत्याशित आय तथा

(ⅱ) पूर्ति कीमत पर निर्भर करता है।

यदि पूर्ति कीमत बढ़ जाये और प्रत्याशित आय घट जाये तो पूँजी की सीमांत क्षमता (MEC) कम हो जायेगी और इसके विपरीत पूर्ति कीमत घट जाये तथा प्रत्याशित आय बढ़ जाये तो पूँजी की सीमांत क्षमता भी बढ़ जायेगी। अर्थव्यवस्था में जैसे-जैसे विनियोग बढ़ता है, अल्पकाल में परिवर्तनशील अनुपात के नियम लागू होने के कारण भौतिक उत्पादकता घटती जाती है। भौतिक उत्पादकता में कमी होने के कारण प्रत्याशित आय कम हो जाती है। पूँजीगत साधन का उत्पादन प्रक्रिया में प्रयोग करने पर चालू खर्च भी बढ़ जाते हैं। इसका प्रभाव यह होता है कि शुद्ध वार्षिक आय घट जाती है। इसे काल्पनिक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है-

विनियोग (करोड़ रु. में)

MEC / ब्याज की दर (% में)

20

12

40

10

60

8

80

6

100

4

120

2


विनियोग फलन (Investment Function)

चित्र से स्पष्ट है कि ब्याज की दर / MEC बढ़ने से विनियोग घटने लगता है

पूंजी की सीमात क्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व

पूँजी की सीमांत क्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्वों को दो भागों में बाँटा जा सकता है

(A) अल्पकालीन तत्त्व

 पूँजी की सीमांत क्षमता को प्रभावित करने वाले अल्पकालीन तत्वों में निम्नलिखित प्रमुख है -

(1) उपभोग प्रवृत्ति :- उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाने पर उपभोग वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है जिसके फलस्वरुप विनियोग की मांग तथा पूँजी की सीमांत क्षमता में वृद्धि होती है।

(2) आय में परिवर्तन :- आय का परिवर्तन उपभोग को परिवर्तित करता है, फलस्वरूप पूँजी की सीमांत क्षमता भी परिवर्तित हो जाती है।

(3) अनु‌मानित लागत :- पूँजीगत साधन की अनुमानित लागत तथा पूँजी की सीमांत क्षमता में विपरीत सम्बंध पाया जाता है अर्थात् अनुमानित लागत की कमी पूँजी की सीमांत क्षमता को बढायेगी तथा अनु‌मानित लागत में वृद्धि  पूँजी की सीमांत क्षमता को घटायेगी।

(4) अनु‌मानित मांग :- भविष्य में वस्तु की माँग बढने की सम्भावना निश्चित रूप से पूँजी की सीमांत क्षमता को बढायेगी।

(5) तरल परिसम्पत्ति :- यदि उद्यमियों के पास तरल परिसम्पत्तियों के भण्डार में वृद्धि हो जाये तो विनियोग की प्रेरणा में वृद्धि होने के कारण पूँजी की सीमांत क्षमता में वृद्धि हो जाती है।

(6) कराधान नीति :- ऊँची कर की दर विनियोग को हतोत्साहित करके पूँजी की सीमांत क्षमता को कम करती है तथा नीची कर की दर विनियोग को प्रोत्साहित करके पूँजी की सीमांत क्षमता को अधिक करती है।

(7) आशावादी एवं निराशावादी दृष्टिकोण :- अर्थव्यवस्था में व्यावसायिक क्षेत्र में आशा एवं निराशा की लहर आती रहती है। आशा की लहरे होने पर पूँजी की सीमांत क्षमता अधिक होती है तथा इसके विपरीत निराशा की लहर होने पर पूँजी की सीमांत क्षमता कम होती है।

(B) दीर्घकालीन तत्त्व

दीर्घकालीन तत्त्वों में निम्नलिखित प्रमुख है-

(1) जनसंख्या :- देश की जनसंख्या बढ़ने से वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग बढ़ने के कारण पूँजी की सीमांत क्षमता बढ़ती है।

(2) तकनीकी सुधार :- उत्पादन की तकनीक में सुधार होते से साधनों की उत्पादकता बढ़ती है और लागत में कमी आती है जिसके फलस्वरूप पूँजी की सीमांत क्षमता में वृद्धि होती है।

(3) नये क्षेत्रों का विकास :- अर्थव्यवस्था मे नये क्षेत्रों का विकास विनियोग के अवसरों को बढ़ाता है जिससे पूँजी की सीमांत क्षमता में वृद्धि होती है।

(4) राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिति :- देश में राजनीतिक स्थिरता, शांति, सुरक्षा एवं सन्तुलित समाज संचना पूँजी की सीमांत क्षमता को बढ़ाती है। विपरीत स्थिति में पूँजी की सीमांत क्षमता कम होगी।

(5) सरकार की आर्थिक नीति :- सरकार की मौद्रिक, वित्तीय एवं कीमत नीतियां भी पूंजी की सीमांत क्षमता को प्रभावित करते हैं।

अल्पकाल :-`C=\frac R{1+r}t`

दीर्घकाल :`MEC=\frac R{1+r}=C---(9)`

Where,

C = Cost of an investment Project

R = Expected Yeild to return in one year

r = Rate of discount/MEC

`C=\frac{R_1}{1+r}+\frac{R_2}{\left(1+r\right)^2}+--+\frac{R_n}{\left(1+r\right)^n}`

`C=R_1\left(1+r\right)^{-1}+R_2\left(1+r\right)^{-2}+---R_n\left(1+r\right)^{-n}`

Assuming that

R = R1= R2 = R3---= Rn

`C=R\left(1+r\right)^{-1}+R\left(1+r\right)^{-2}+---R\left(1+r\right)^{-n}--(10)`

Multiplying both sides by `\left(1+r\right)^{-1}`

`C\left(1+r\right)^{-1}=R\left(1+r\right)^{-2}+R\left(1+r\right)^{-3}+---R\left(1+r\right)^{-\left(n+1\right)}--(11)`

Subtracting equation (10) from equation (11)

`C-C\left(1+r\right)^{-1}=R\left(1+r\right)^{-1}+R\left(1+r\right)^{-2}+R\left(1+r\right)^{-3}+---+R\left(1+r\right)^{-n}`

`-R\left(1+r\right)^{-2}-R\left(1+r\right)^{-3}---R\left(1+r\right)^{-n}-R\left(1+r\right)^{-\left(n+1\right)}`

or,`C-C\left(1+r\right)^{-1}=R\left(1+r\right)^{-1}+---R\left(1+r\right)^{-\left(n+1\right)}`

As`\rightarrow\infty\therefore R\left(1+r\right)^{-\left(n+1\right)}\rightarrow0` and its ignored here

`\therefore C\left[1-\left(1+r\right)^{-1}\right]=R\left(1+r\right)^{-1}--(12)`

Multiplying both sides by (1+r)

`C\left[1-\left(1+r\right)^{-1}\right]\left(1+r\right)=R\left(1+r\right)^{-1}\left(1+r\right)`

`C\left[\left(1+r\right)-\left(1+r\right)^{-1+1}\right]=R\left(1+r\right)^{-1+1}`

`C\left[1+r-\left(1+r\right)^0\right]=R\left(1+r\right)^0`

`C\left[1+r-1\right]=R\left(1\right)\left[\because\left(1+r\right)^0=1\right]`

`C\left(r\right)=R`

`\therefore r=\frac RC\left[r=MEC\right]`

आलोचना

द्यपि प्रो केन्स ने पूँजी की सीमांत क्षमता का विश्लेषण कर विनियोग और उत्पाद‌न के महत्त्वपूर्ण तथ्यों की र हमारा ध्यान आकर्षित किया है, फिर भी निम् बिन्दुओ के अनुसार इस धारणा की आलोचना की गई है -

(1) अनिश्चित धारणा :- प्रो. हैजलिट के अनुसार, केन्स ने पूँजी की सीमांत क्षमता की व्याख्या निश्चितता के साथ नहीं की है वरन् विविध अर्थों में इसे प्रयुक्त किया है जिससे अस्पष्टता एवं अनिश्चिता का बोध होता है।

(2) पूर्ण प्रतियोगिता की अवास्तविक मान्यता पर आधारित :- प्रो. केन्स ने अपना पूँजी की सीमांत क्षमता का विश्लेषण पूर्ण प्रतियोगिता पर आधारित किया है किंतु पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता अवास्तविक है।

(3) सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित :- प्रो. केन्स ने MEC की धारणा को सम्पूर्ण र्थव्यवस्था से सम्बंधित किया है किन्तु यह एक वास्तविक है कि अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्रों के लिए MEC अलग-अलग होती है।

(4) विनियोग माँग वक्र की व्याख्या अपूर्ण :- प्रो. सौलनियर ने इस आधार पर केन्स की MEC की आलोचना की है कि उसमे कुल विनियोग माँग अनुसूची की समुचित व्याख्या नहीं की गई है। इसमें केन्स ने पूँजी को तो शामिल किया है, किन्तु अन्य तत्त्वों की व्याख्या इस सन्दर्भ में नहीं की है उनमें परिवर्तन होने पर या उन्हें स्थिर मान लेने पर MEC पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

(5) ब्याज दर पर आशांसाओ या प्रत्याशाओ का प्रभाव :- प्रो. केन्स ने यह स्पष्ट किया है कि MEC, भविष्य की आशंकाओं द्वारा प्रभावित होती है। इस दृष्टि से यह एक प्रावैगिक तत्त्व है किन्तु आलोचकों का कहना है कि ब्याज दर पर भी आशंसाओं का प्रभाव पड़ता है। अतः ब्याज दर को स्थैतिक आर्थिक क्रियाओं से सम्बंधित नहीं किया जा सकता।

उपरोक्त आलोचनाओं को दृष्टि में रखकर कहा जा सकता है कि MEC की धारणा अस्पष्ट एवं भ्रमिक तथा परस्पर विरोधी है।

ब्याज की दर

ब्याज की दर विनियोग फलन का एक महत्त्वपूर्ण निर्धारक त्त्व होता है। ब्याज की ऊँची दर विनियोजन को हतोत्साहित तथा नीची दर विनियोजन क्रिया को प्रोत्साहित करती है, परन्तु ब्याज की दर अल्पकाल में स्थिर होती है तथा विनियोजन स्तर को प्रभावित करने में असफल रहती है।

निष्कर्ष

हलाँकि पूँजी की सीमांत क्षमता तथा ब्याज की दर, दोनों में त्रुटियां है फिर भी दोनो संयुक्त रूप से विनियोग फलन को निर्धारित करने में सहायक है।

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