Q. Explain the mathematical sum economic
Properties of the static multiplier?
Ans:- 19 वी शताब्दी के आरम्भ में स्वीडेन के प्रमुख अर्थशास्त्री
नट विकसेल ने अपनी 'Interest and price' नामक पुस्तक में मुद्रा सफीति
में गुणक सिद्धांत का प्रयोग अप्रत्यक्षा के रूप से किया था। 1903 में जर्मन अर्थशास्त्री
एन जोहानसेन ने गुणक प्रक्रिया
का सविस्तार वर्णन किया । 1931 से अग्रेज
अर्थशास्त्री आर. एफ. काहन ने अपने
लेख 'The Relation of home Investment to unemployment' जो 'Economic Journal' में प्रकाशित हुआ, मे गुणक सिद्धांत का
विकास किया। 1936 में केन्स ने 'The General theory of Employment Interest and
money' में गुणक सिद्धांत की विस्तृत व्याख्या की। केन्स का कहना है कि गुणक विनियोग में हुए परिवर्तन के फलस्वरूप आय में होने वाले परिवर्तन के अनुपात को बताता है।
जे. एम. केन्स की धारणा है कि जब किसी क्षेत्र में नयी राशि का विनियोग किया जाता है तब वहाँ उस विनियोग से एक ऐसी
आर्थिक प्रक्रिया का जन्म होता है जो विनियोग की राशि की तुलना में कही अधिक आय प्रदान कर देती
है। उदाहरण स्वरुप प्रारम्भिक विनियोग आय को बढायेगा, उत्पादन के बढ़ने से आय बढ़ेगी, आय वृद्धि का प्रभाव व्यय को बढ़ायेगा। समाज
और व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला यह व्यय एक दूसरे व्यक्ति की आय बन जायेगी । इसी आय को पुनः व्यय किया
जाता है जो उत्पादन, रोजगार, आय और व्यय को फिर से बढ़ा देती है। इसी प्रकार माँग, उत्पादन, रोजगार, आय वृद्धि का यह क्रम लगातार चलता ही
रहता है और अंत में आय स्तर विनियोग के स्तर से कई गुणा अधिक
बढ़ जाता है। इस प्रकार आय के प्रारम्भिक निवेश से जितनी गुणी अधिक आय बढ़ती है, गुणक कहलाता
है।
`or,K=\frac{\Delta Y}{\Delta I}`
जहाँ K= गुणक, ∆Y = आय में परिवर्तन ∆I = विनियोग में परिवर्तन
आय उपभोग और निवेश के बराबर
होता है
Y = C + I ----(1)
साथ ही आय उपभोग और बचत का
भी योग होता है। अतः
Y = C + S ----(2)
Y का मान समीकरण (2) में
बैठाने पर
C + I = C + S
I = S
उपभोग आय पर निर्भर करता
है, लेकिन इसका एक अंश Autonomous होता है, जो आय पर निर्भर नहीं करता
इसलिए C = Co+
C(Y) - -(3)
where Co =
Autonomous consumption
C(Y) = Consumption
depends upon income
इस प्रकार समीकरण (1) को
हम निम्न रूप में व्यक्त कर सकते है
Y = Co +
C(Y) + I ----(4)
केन्स ने अपने गुणक सिद्धांत
में सम्पूर्ण विनियोग को Autonomous माना है। अतः समीकरण (4) होगा
Y= Co +
C(Y)+ Ao
जहां Ao is
Autonomous investment तथा Co is Autonomous consumption expenditure प्राप्त
होगा। अत: Autonomous expenditure
Y = C(Y) + A---(5)
यदि Autonomous
investment में थोडा परिवर्तन आ जाए तो हम समीकरण (5) को A के respect में
differentiale करके गुणक समीकरण प्राप्त कर सकते है। अतः Differentiating equation
(5) with respect to A
`\frac{dY}{dA}=\frac{dC}{dA}.\frac{dY}{dY}+\frac{dA}{dA}`
`\frac{dY}{dA}=\frac{dC}{dA}.\frac{dY}{dY}+1`
`\frac{dY}{dA}=\frac{dC}{dY}.\frac{dY}{dA}+1`
`\frac{dY}{dA}-\frac{dC}{dY}.\frac{dY}{dA}=1`
`\frac{dY}{dA}\left(1-\frac{dC}{dY}\right)=1`
`\frac{dY}{dA}\left(1-C\right)=1\left[\because\frac{dC}{dY}=MPC=C\right]`
`\frac{dY}{dA}=\frac1{1-C}`
`dY=\frac1{1-C}dA`
Since, C + S = 1
S = 1 – C
`dY=\frac{1}SdA`
This `\frac1{1-C}=\frac1S=K` is the Multiplier
R.G.D. Allen ने
अपनी
पुस्तक ' Mathematical Economist' में लिखा है-
"If autonomous
investment changes by an amount ∆A, then equilibrium income changes by an amount
which is a multiple of ∆A, the multiple being
greater than unity
`i,e\Delta Y=\frac1{1-C}\Delta A`
गुणक की प्रक्रिया को निम्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं
Fig-1
में 45° रेखा आय अथवा बचत एवं उपभोग के योग को व्यक्त करता है तथा इसके प्रत्येक
बिन्दु पर Y= C + I है। C
उपभोग रेखा है । प्रत्येक विनियोग में वृद्धि के साथ, नये बनी उपभोग रेखा की ढाल प्रारम्भिक
उपभोग रेखा (C) के ढाल के समान होगी।
वास्तविक आय स्तर Yo
है, जो 45° रेखा तथा C(Y)+A
वक्र के कटान बिन्दु से प्राप्त होता है।
Autonomous investment में ∆A की वृद्धि होने से एक नया
उपभोग वक्र C(Y)+A+∆A प्राप्त होता है जो पूर्व
के उपभोग वक्र से ऊँचा है। इस नये वक्र C(Y)+A+∆A को 45° रेखा बिन्दु E1
पर काटती है जिससे की नयी आय स्तर Y1
प्राप्त होता है जो पहले की अपेक्षा अधिक है। इसलिए आय में हुई वृद्धि (Y1-Yo)
= ∆Y है।
चित्र -1 से स्पष्ट है कि ∆Y
में वृद्धि ∆A के
अपेक्षा अधिक है। अर्थात् ∆Y>∆A
गुणक सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) के मान पर निर्भर करता है। MPC जितना ही बड़ा होगा गुणक उतना ही अधिक बड़ा होगा। सामान्यतः सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0 से 1 के बीच अर्थात् `0\leq C\leq1` रहता है। इस प्रकार यदि MPC = 0 हो तो
`K=\frac1{1-C}` [Where C = MPC]
`K=\frac1{1-0}=1`
अतः गुणक का मान एक (1) है।
गुणक का मान न तो शून्य हो
सकती है और न एक हो सकती है। शून्य का अर्थ होगा - उपभोक्ता आय के बढ़ने पर कुछ भी
व्यय में वृद्धि नहीं करता है अर्थात् आय की बढ़ी हुई सम्पूर्ण मात्रा को बचत करता
है। यह संभव नहीं है। गुणक 1 के बराबर नहीं होता है। इसका अर्थ है उपभोक्ता आय
बढ़ने पर उसमें से कुछ भी नहीं बचाता है, बल्कि सम्पूर्ण आय को उपभोग पर खर्च कर
देता है।
गुणक का मान एक होने का तात्पर्य यह होगा कि समस्त विनियोग जिसके कारण आय में वृद्धि होती है, प्रारम्भ में किये गये विनियोग के बराबर ही रह जायेगी और सभी अतिरिक्त आय बचत कर लिये जायेंगे। इस प्रकार आय प्रवाह में रूकावट आ जायेगा। इसे हम निम्न चित्त द्वारा दिखा सकते है
उपयुक्त रेखाचित्र में उपभोग
वक्र की ढाल X अक्ष के समानान्तर है, इसलिए C+I वक्र भी इसके समानान्तर होगा I C+I वक्र 45° रेखा को बिन्दु L पर काटती है जहाँ आय
Y0 है। अब विनियोग में ∆A की वृद्धि हो जाने से एक
नया ऊँचा उपभोग वक्र C+I+∆A प्राप्त होता है जो C+I रेखा के समानान्तर है। यह नयी उपभोग रेखा 45° रेखा को बिन्दु M पर काटती है जहाँ
आय Y1 है।
जब आय Y0 है उपभोग
QY0 था परन्तु जब आय बढ़कर Y1 हो जाता
है तो उपभोग PY1 है। चूंकि QY0 तथा PY1 बराबर है,
अतः उपभोग में कोई वृद्धि नहीं होगी। अतः
`\because OY_0=\angle\Y_0` [ Two sides of an iso scles right angled Δ]
`\therefore OY_0=C+I`
`\angle\Y_0=C+I`
Know MY1 = OY1
MY1 = C + I + ΔA
Similarl OY1 = C + I + ΔA
OY1 + Y0Y1 = C + I + ΔA
Y0Y1 = C + I + ΔA – OY0
From equation (1) OY0
ΔY = C + I + ΔA – C – I
ΔY = ΔA
अर्थात् आय में वृद्धि = विनियोग
में वृद्धि
Case - II
जब MPC =
1 अर्थात् MPS = 0 हो तो
C = 1
`\therefore K=\frac1{1-C}`
`=\frac1{1-1}=\frac{1}0=\infty`
अतः ऐसी अवस्था में आय परिणाम explosive होगा, क्योंकि विनियोग आय में उत्तोत्तर वृद्धि करता चला जायेगा, परिणामस्वरूप आय में अन्नत वृद्धि होगी। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में अति स्फीति आ जायेगा, क्योंकि आय प्राप्तकर्ता जैसे ही धन प्राप्त करेंगे उसे वह खर्च करते चले जायेगे और उपभोग में वृद्धि आय वृद्धि के अपेक्षा अधिक होता चला जायेगा।
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