Class 11 Political Science 10. संविधान का राजनीतिक दर्शन

Class 11 Political Science 10. संविधान का राजनीतिक दर्शन

 Class 11 Political Science 10. संविधान का राजनीतिक दर्शन

प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

Class - 11

राजनीति विज्ञान (Political Science)

10. संविधान का राजनीतिक दर्शन

स्मरणीय तथ्य

भारतीय संविधान का आधारभूत दर्शन लोकतांत्रिक समाजवाद है।

संविधान को एक ऐसे दस्तावेज के रूप में देखना चाहिए जिसके पीछे एक नैतिक दृष्टि काम कर रही है।

संविधान का निर्माण कुछ अवधारणाओं के आधार पर हुआ है जैसे अधिकार, नागरिकता, अल्पसंख्यक और लोकतंत्र आदि।

संविधान को समझने के लिए उसके राजनीतिक दर्शन को जानना आवश्यक है।

सन 1947 के जापानी संविधान को बोलचाल में शांति संविधान कहा जाता है।

संविधान को अंगीकार करने का एक बड़ा कारण सत्ता को निरंकुश होने से रोकना है।

भारतीय संविधान का इतिहास अब भी हमारे वर्तमान का इतिहास है।

संविधान का जोर इस बात पर है कि उसके दर्शन पर शांतिपूर्ण तथा लोकतांत्रिक तरीके से अमल किया जाए।

ब्रिटिश शासन के दौरान कुख्यात रोलेट ऐक्ट ने व्यक्ति की स्वतंत्रता का अपहरण करने का प्रयास किया था।

शास्त्रीय उदारवाद (classical liberalism) सामाजिक न्याय और सामुदायिक जीवन मूल्यों के ऊपर हमेशा व्यक्ति को तरजीह देता है।

के एम पाणिक्कर के अनुसार भारतीय उदारवाद की दो धाराएं हैं। पहली धारा की शुरुआत राममोहन राय से होती है और दूसरी धारा में स्वामी विवेकानंद, के. सी. सेन और जस्टिस रानाडे जैसे चिंतक शामिल है।

पारस्परिक निषेध (mutual exclusion) शब्द का अर्थ होता है- धर्म और राज्य दोनों एक दूसरे के अंदरूनी मामले से दूर रहेंगे।

मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट 1928 ई में 24 वर्ष की आयु के हर व्यक्ति को (स्त्री हो या पुरुष) लोकसभा के लिए मतदान करने का अधिकारी माना था।

भारतीय संघ में जम्मू-कश्मीर का विलय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत किया गया था।

केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त करके जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो केंद्र शासित प्रदेश बनाया है।

भारत के लिए संविधान सभा का विचार सर्वप्रथम स्वराज पार्टी के द्वारा 1924 ई में प्रस्तुत किया गया था। 9.

कैबिनेट मिशन की सिफारिश के आधार पर भारतीय संविधान के निर्माण करने के लिए संविधान सभा का गठन जुलाई 1946 ई में किया गया।

संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 ई को संविधान को पारित किया गया। उस समय संविधान में कुल 22 भाग, 395 अनुच्छेद एवं 08 अनुसूचियां थी। वर्तमान समय में संविधान में 25 भाग, 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. संविधान सभा में समाजवादी सूत्रों को अपनाने का सबसे प्रभावशाली समर्थन किसने किया?

a. डॉ राजेंद्र प्रसाद

b. डॉ भीमराव अंबेडकर

c. सरदार पटेल

d. जवाहरलाल नेहरू

2. भारत के संविधान के दर्शन के अनुसार भारत में किस प्रकार के राज्य की स्थापना हुई है?

a. समाजवादी राज्य

b. लोक कल्याणकारी राज्य

c. प्राधिकारवादी राज

d. पुलिस राज

3. भारतीय संविधान का मूल दर्शन क्या है

a. वैज्ञानिक समाजवाद

b. उदारवाद

c. लोकतांत्रिक समाजवाद

d. गांधीवाद

4. भारतीय संविधान की संशोधन प्रक्रिया कैसी है?

a. बहुत कठोर

b. कठोर

c. सरल

d. सरल और कठोर

5. संविधान भारत को किस प्रकार का संघ वर्णित करता है?

a. एक अर्ध संघ

b. एक सहकारी संघ

c. राज्यों का संघ

d. एक संघ

6. अनुच्छेद 371 A का संबंध किस राज्य से है?

a. नागालैंड

b. मिजोरम

c. अरुणाचल प्रदेश

d. असम

7. निम्न में से किस देश के संविधान को आम बोलचाल में शांति संविधान कहा जाता है?

a. रूस

b. इंग्लैंड

c. जापान

d. पाकिस्तान

8. भारत के लिए अनौपचारिक रूप से संविधान तैयार करने का पहला प्रयास 'कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ़ इंडिया बिल' के नाम से कब हुआ था?

a. 1895

b. 1800

c. 1857

d. 1757

9. 19वीं सदी के शुरुआत में किस भारतीय ने प्रेस की आजादी की मांग किया?

a. विवेकानंद

b. राजा राममोहन राय

c. सुभाष चंद्र बोस

d. महात्मा गांधी

10. भारतीय संघ में किस राज्य का विलय अनुच्छेद 370 के तहत किया गया था?

a. जम्मू कश्मीर

b. हैदराबाद

c. जूनागढ़

d. इनमें से कोई नहीं

11. संविधान में स्वतंत्र व निष्पक्ष न्यायपालिका के द्वारा व्यक्तियों की स्वतंत्रता को सुरक्षित करना, किस विचारधारा के अंतर्गत आता है?

a. समाजवाद

b. गांधीवाद

c. उदारवाद

d. इनमें से कोई नहीं

12. भारतीय संविधान को विचारधारा की दृष्टि से तटस्थ माना जाता क्योंकि-

a. यह समाजवादी दस्तावेज है

b. यह उदारवाद पर आधारित है

c. यह गांधीवादी है

d. यह इतना लचीला है कि इसमें उदारवाद से समाजवाद तक के गुण समाहित है।

13. निम्नलिखित में से किस विद्वान ने भारतीय संविधान को समाजवादी दस्तावेज कहा है?

a. एच बी कॉमथ

b. के टी शाह

c. ग्रेनविल ऑस्टिन

d. हॉब हाऊस

14. निम्नलिखित में से भारतीय संविधान पर सर्वाधिक प्रभाव किसका है?

a. अमेरिका का संविधान

b. भारत सरकार अधिनियम, 1935

c. ऑस्ट्रेलिया का संविधान

d. ब्रिटिश संविधान

15. भारत का संविधान कब लागू हुआ?

a. 26 जनवरी 1950

b. 26 नवंबर 1948

c. 15 अगस्त 1947

d. 15 अगस्त 1950

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

1. भारतीय संविधान का निर्माण किसके द्वारा किया गया?

उत्तर- भारतीय संविधान का निर्माण संविधान सभा के द्वारा किया गया है।

2. संविधान दर्शन का क्या अर्थ है?

उत्तर- संविधान दर्शन का अर्थ उन आदर्शों से है जिसे लक्ष्य रखकर नियम बनाए गए हैं, जिससे शासन-व्यवस्था संचालित होती है।

3. भारत किस प्रकार का संघ है?

उत्तर- भारतीय संविधान के अनुसार भारत, राज्यों का संघ है।

4. सार्वभौमिक मताधिकार का क्या अर्थ है?

उत्तर- सार्वभौमिक मताधिकार सभी वयस्क नागरिकों को धर्म, जाति, भाषा, लिंग, सामाजिक स्थिति आदि का अंतर किए बिना सभी को मत देने का अधिकार है।

5. व्यक्तिगत गरिमा का क्या अर्थ है?

उत्तर- व्यक्तिगत गरिमा व्यक्ति का एक अधिकार है जिसमें उचित सम्मान के साथ व्यवहार करने की बात है।

6. संविधान को स्वीकार करने का प्रमुख बड़ा कारण क्या है?

उत्तर- संविधान को स्वीकार करने का एक प्रमुख बड़ा कारण है 'सत्ता को निरंकुश होने से रोकना'।

7. भारत का संविधान किस राजनीतिक दर्शन पर आधारित है?

उत्तर- भारत का संविधान उदारवादी एवं लोकतांत्रिक समाजवादी विचारों के मिश्रण पर आधारित स्वतंत्रता, समानता, सामाजिक न्याय तथा राष्ट्रीय एकता के लिए प्रतिबद्ध है।

8. शास्त्रीय उदारवाद (classical liberalism) किसे कहते हैं?

उत्तर- ऐसी विचारधारा जिसमें सामाजिक न्याय और सामुदायिक जीवन मूल्यों के ऊपर हमेशा व्यक्ति को तरजीह देता हैं।

9. भारतीय संविधान में राष्ट्रीय पहचान पर क्यों जोर दिया गया है?

उत्तर- राष्ट्रीय पहचान का संबंध राष्ट्रीय एकता से है। अलग- अलग भाषा, समुदाय, जाति, धर्म, संस्कृति और क्षेत्र से होने के बावजूद यह विश्वास की 'हम सब एक है' सबको एकता के सूत्र में बांधती है

10. संयुक्त राज्य अमेरिका में सकारात्मक कार्य योजना कब प्रारंभ हुई

उत्तर- संयुक्त राज्य अमेरिका में सकारात्मक कार्य योजना 1964 के नागरिक अधिकार आंदोलन के बाद प्रारंभ हुई।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. संविधान के दर्शन का क्या आशय है?

उत्तर- संविधान सिर्फ कानूनों की सूची नहीं होती बल्कि उन कानूनों के पीछे कुछ नैतिकता और मानवीय मूल्य से जुड़ी हुई अवधारणा होती है जैसे संविधान का एक दर्शन व्यक्तियों के बीच समानता स्थापित करना है। इसके लिए संविधान में ऐसे कानून बनाए जाते हैं, जो भाषा अथवा धर्म के आधार पर व्यक्तियों के बीच भेदभाव की मनाही कर सकता है।

संविधान के प्रति राजनीतिक दर्शन के नजरिया में मुख्य तौर पर तीन बातें शामिल है-

1. भारत का संविधान कुछ अवधारणाओं के आधार पर बनाया गया है जैसे स्वतंत्रता, समानता लोकतंत्र, सामाजिक न्याय, राष्ट्रीय एकता तथा अल्पसंख्यक सुरक्षा आदि।

2. हमारे सामने एक ऐसे समाज और शासन व्यवस्था की तस्वीर साफ-साफ होनी चाहिए जो संविधान की बुनियादी अवधारणाओं की हमारी व्याख्या से मेल खाती हो।

3. भारतीय संविधान को संविधान सभा की बहसों के साथ जोड़कर पढ़ा जाना चाहिए ताकि सैद्धांतिक रूप से यह पता चले कि यह आदर्श कहां तक और क्यों ठीक है तथा आगे उनमें कौन सी सुधार की आवश्यकता है।

2. सामाजिक न्याय के दर्शन से क्या अभिप्राय है?

उत्तर- सामाजिक न्याय समाज में वास्तविक अर्थों में समानता लाने की एक विधा है। समाज में व्यक्तियों को समानता के अधिकार मात्र प्रदान करने से सही अर्थों में समानता स्थापित नहीं हो सकती है बल्कि इस बात पर भी विशेष जोर दिया जाना चाहिए कि अगर कोई वर्ग विशेष जो वर्षों से शोषण से पीड़ित रहा हो तो उसे कुछ विशेष अधिकार प्रदान किया जाए। संविधान में इसके लिए विशेष संवैधानिक उपाय करने होते हैं तभी सच्चे अर्थों में समानता स्थापित होती है। भारत के संविधान में इसकी समुचित व्यवस्था की गई है उदाहरण स्वरूप अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का विधायिका में आरक्षण तथा सरकारी नौकरियों में आरक्षण आदि।

3. भारतीय संघवाद किस प्रकार का है?

उत्तर- संविधान के प्रथम अनुच्छेद में कहा गया है कि 'भारत, राज्यों का एक संघ होगा।' लेकिन संविधान निर्माता ने संघीय व्यवस्था की कमियों को दूर करने के लिए एकात्मक शासन के कछ लक्षणों को स्वीकार किया है। एकात्मक शासन में शौक्त का झुकाव केंद्र की तरफ होता है। भारत के संविधान का झुकाव केंद्र की तरफ तो है लेकिन राज्यों को भी अधिकार प्रमुखता से प्रदान किया गया है। कुछ विशेष स्थितियों में राज्यों को विशेष दर्जा भी दिया गया है जैसे अनुच्छेद 371A द्वारा नागालैंड को विशेष दर्जा, कुछ अन्य राज्यों को भी विशेष प्रावधान का लाभ आदि। संविधान के अनुसार विभिन्न राज्यों के साथ इस असमान व्यवहार में कोई बुराई नहीं है।

भारतीय संघवाद संवैधानिक रूप से असमतोल है जबकि अमेरिकी संघवाद की संवैधानिक बनावट समतोल है।

4. भारतीय संविधान की आलोचना के प्रमुख बिंदु लिखिए।

उत्तर- भारतीय संविधान की निम्नलिखित आलोचनाएं है-

A. भारतीय संविधान को अस्त-व्यस्त या ढीला डाला बताया जाता है। इसके पीछे यह धारणा काम करती है कि किसी देश का संविधान एक कसे हुए दस्तावेज के रूप में मौजूद होना चाहिए।

B. संविधान बनाने वाली संविधान सभा का निर्माण सार्वभौम मताधिकार के द्वारा नहीं हआ था। उसके अधिकांश सदस्य समाज के अगडौं तबके के थे अर्थात सभी वर्गों की नुमाइंदगी नहीं हो सकी।

C. भारतीय संविधान एक विदेशी दस्तावेज है इसका हर अनुच्छेद पश्चिमी संविधानों की नकल है और भारतीय जनता के सांस्कृतिक भावबोध से इसका मेल नहीं बैठता।

5. भारतीय संविधान की सीमाएं क्या है? बताएं।

उत्तर- संविधान सभा के द्वारा व्यापक वाद-विवाद विचार-विमर्श के उपरांत संविधान का निर्माण किया गया फिर भी इसे हर तरह से पूर्ण और त्रुटिहीन दस्तावेज नहीं कहा जा सकता। भारत के संविधान की कुछ सीमाएं निम्नलिखित है-

A. भारतीय संविधान में राष्ट्रीय एकता की धारणा बहुत केंद्रीकृत है।

B. भारतीय संविधान में लिंगगत-न्याय के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं खासकर परिवार से जुड़े मुद्दों पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया है।

C. संविधान में भारत जैसे विकासशील देश के कछ बुनियादी तत्व सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को मौलिक अधिकारों का अभिन्न अंग बनाने के बजाय उसे राज्य के नीति निर्देशक तत्व वाले खंड में डाल दिया गया है।

इस प्रकार भारत के संविधान की कुछ सीमाएं जो समय के दबाव में पैदा हुई है फिर भी यह सीमाएं इतनी गंभीर नहीं है कि यह सैविधान के दर्शन के लिए खतरा पैदा कर दें।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. भारतीय संविधान की मूलभूत विशेषताएं क्या है? समझाइए।

उत्तर- भारतीय संविधान की मूलभूत विशेषताएं निम्नलिखित है-

A. भारतीय संविधान एक लिखित संविधान है। इसे बनाने के लिए एक संविधान सभा का गठन किया गया था, जिसके सदस्यों के व्यापक वाद-विवाद और बहसों के उपरांत इसे लिखा गया है।

B. भारत का संविधान दुनिया का सबसे विशाल संविधान है। वर्तमान में कुल 395 अनुच्छेद 25 भाग और 12 अनुसूचियां हैं।

C. संविधान लचीलेपन और कठोरता का मिश्रण है अर्थात कुछ कानून संसद के साधारण बहुमत से संशोधित होते हैं जबकि कठोर होने का अर्थ है संसद के दोनों सदनों के विशेष बहमत से तथा आधे राज्यों के विधानसभा से भी स्वौकृत होने पर ही संशोधित किये जा सकते हैं।

D. संविधान संघात्मक और एकात्मक गुणों से युक्त है अर्थात संविधान भारत को राज्यों का संघ कहता है और राज्यों को अधिकार दिए गए है किंतु केंद्र को ज्यादा शक्तिशाली बनाकर एकात्मक गुणों को भी स्वीकार किया है।

E. संविधान लोकतांत्रिक गणराज्य के दर्शन पर आधारित है अर्थात देश के राष्ट्रीय अध्यक्ष जनता के द्वारा निर्वाचित होते है।

F. संविधान में एकल नागरिकता का प्रावधान है। सभी राज्यों के निवासी भारत के नागरिक है। किसी राज्य विशेष के नागरिक नहीं समझे जाते हैं।

G. संविधान में संसदीय प्रणाली को स्वीकार किया है अर्थात सरकार संसद के माध्यम से संचालित की जाती है।

H. संविधान में संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न राज की घोषणा की गई है अर्थात भारत एक पूर्ण रूप से स्वतंत्र राष्ट्र है तथा अंतरराष्ट्रीय दबाव से मुक्त है

I. संविधान भारत को समाजवादी राज्य घोषित करता है।

J. संविधान में संसदीय संप्रभुता और पंथनिरपेक्षता का प्रावधान है।

K. संविधान में मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्य, राज्य के नीति निर्देशक तत्व के प्रावधान किए गए हैं।

इस प्रकार भारत का संविधान अनेक गुर्णों से युक्त होने के कारण विश्व में एक विशिष्ट स्थान रखता है।

2. धर्मनिरपेक्षता क्या है? भारतीय धर्मनिरपेक्षता और पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता में क्या अंतर है? बताएं।

उत्तर- धर्मनिरपेक्षता का संबंध व्यक्ति और राज्य के बीच धर्म के अधिकार को लेकर है। धर्म को व्यक्ति का निजी मामला बताया गया है वहीं राज्य को धर्म से पारस्परिक निषेध अर्थात धर्म और राज्य एक दूसरे से अलग रहेंगे। भारतीय संविधान का मूल स्वभाव धर्मनिरपेक्ष रहा है। धर्म और राज्य को एकदम अलग रखने के इस विचार का उद्देश्य व्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान करना है अगर कोई राज्य किसी संगठित धर्म को समर्थन देता है तो वह पहले से ही एक मजबूत धर्म को और भी ताकतवर बनाता है। ऐसी स्थिति में जब धार्मिक संगठन व्यक्ति के धार्मिक जीवन को नियंत्रित करने का प्रयास करेंगे, उस स्थिति में व्यक्ति के पास धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए राज्य से अपेक्षा रखने का विकल्प होना चाहिए।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता और पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता में मूल अंतर यह है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता धर्म में आई हई बुराइयों को दूर करने के लिए हस्तक्षेप कर सकता है वही पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता में राज्य और धर्म दोनों पूर्णतः अलग-अलग हैं, वे एक दूसरे के मामले में दखल नहीं देते हैं। भारतीय धर्मनिरपेक्षता और पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता में अंतर होने के दो अलग-अलग कारण है- धार्मिक समूहों के अधिकार-भारतीय संविधान विभिन्न समुदायों के बीच बराबरी के रिश्ते को उतना ही जरूरी मानता है जितना विभिन्न व्यक्तियों के बीच बराबरी को। किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता और आत्म सम्मान का भाव सीधे-सीधे उसके समुदाय की हैसियत पर निर्भर करता है। यदि एक समुदाय दूसरे समुदाय के प्रभुत्व में होगा तो उसके सदस्य भी कम स्वतंत्र होंगे। दूसरी तरफ अगर दो समुदायों के बीच बराबरी का संबंध होगा तो इन समुदायों के सदस्य आत्म सम्मान और आजादी के भाव से भरे होंगे। इसलिए भारतीय संविधान सभी धार्मिक समुदायों को शिक्षा संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार प्रदान करता है।

राज्य का हस्तक्षेप करने का अधिकार-धर्म और राज्य के अलग-अलग होने का अर्थ भारत में पारस्परिक निषेध नहीं है ऐसा इसलिए क्योंकि धर्म से निकला हुआ रिवाज जैसे छुआछूत आदि व्यक्ति को उसके बुनियादी गरिमा और आत्म सम्मान से वंचित करता है। इन रिवाजों की जड़े इतनी गहरी होती है कि राज्य के सक्रिय हस्तक्षेप के बिना इसे समाप्त नहीं किया जा सकता है। राज्य को धर्म के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप करना ही पड़ता है। ऐसे हस्तक्षेप हमेशा नकारात्मक नहीं होते। राज्य ऐसे में धार्मिक समुदायों की मदद भी कर सकता है उदाहरण के तौर पर धार्मिक संगठन द्वारा चलाए जा रहे शिक्षा संस्थान को वह धन दे सकता है अर्थात राज्य धार्मिक समुदायों की मदद भी कर सकता है और बाधा भी पहुंचा सकता है। यह इस बात पर निर्भर है कि राज्य के किन कदमों से स्वतंत्रता और समता जैसे मूल्यों को बढ़ावा मिलता है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता राज्य की धर्म से एक सिद्धांतगत दूरी है वहीं पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता में धर्म और राज्य दोनों एक दूसरे के अंदरूनी मामले से दूर रहते हैं।

3. संविधान के दर्शन का क्या आशय है? इसको समझना क्यों जरूरी है?

उत्तर- संविधान कानूनों का एक ऐसा दस्तावेज है जिसके पीछे कुछ नैतिक और राजनीतिक दृष्टि होती है। कानून के निर्माण में वही नैतिक एवं राजनीतिक दृष्टि संविधान का राजनीतिक दर्शन कहलाता है। भारतीय संविधान के राजनीतिक दर्शन में मुख्य तौर पर तीन बातें शामिल है-

1. अवधारणा-संविधान में अवधारणाओं को आधार बनाकर कानूनों का निर्माण किया गया है जैसे अधिकार, नागरि कता, अल्पसंख्यक, लोकतंत्र आदि।

2. आदर्श-एक ऐसी समाज की कल्पना स्पष्ट रूप से होनी चाहिए जो संविधान की बुनियादी अवधारणाओं की हमारी व्याख्या से मेल खाती हो। कहने का अर्थ है कि संविधान का निर्माण जिन आदर्शों की बुनियाद पर हुआ है उन पर हमारी गहरी पकड़ होनी चाहिए।

3. संविधान सभा के बहसों में राजनीतिक दर्शन के सैद्धांतिक पक्ष-भारतीय संविधान को संविधान सभा की बहसों के साथ जोड़कर पढ़ा जाना चाहिए ताकि सैद्धांतिक रूप से यह पता लग सके कि ये आदर्श कहां तक और क्यों ठीक है तथा आगे उनमें कौन से सुधार की आवश्यकता है। किसी मूल्य को अगर हम संविधान की बुनियाद बनाते हैं तो हमारे लिए यह जानना जरूरी हो जाता है कि यह मूल्य सही और सुसंगत क्यों है। इसके बिना संविधान के निर्माण में किसी मूल्य को आधार बनाना एकदम अधूरा कहा जाएगा। संविधान निर्माताओं ने समाज एवं राज्य व्यवस्था को निर्देशित एवं नियंत्रित करने के लिए किसी खास मूल्यों को छोड़कर किसी दूसरे मूल्यों को स्वीकार किया, इसके लिए उनके पास उन मूल्यों को जायज ठहराने के लिए कुछ तर्क रहे होंगे। संविधान के नियमों को समझने के लिए उसके अंतर्निहित राजनीतिक दर्शन को समझना जरूरी हो जाता है। जिससे संविधान के बुनियादी मूल्यों की अलग-अलग व्याख्याओं को एक कसौटी में जांच सके। आज संविधान के बहुत से आदर्श को चुनौती मिल रही है जैसे बार-बार अँदालत में जिरह होती है और यह हमारे राजनीतिक जीवन के अभिन्न अंग है। इस पर विभिन्न राजनीतिक हलकों जैसे विधायिका, राजनीतिक दल, मीडिया, स्कूल तथा विश्ववि‌द्यालय में विचार विमर्श होता है, बहस चलती है और इन पर सवाल उठाए जाते हैं।

कभी-कभी इन आदर्शों की व्याख्या अलग-अलग ढंग से कर दी जाती है और कभी तो अल्पकालिक क्षुद्र स्वार्थ के लिए उनके साथ चालबाजी भी की जाती है। इस कारण से यह आवश्यक हो जाता है कि संविधान के आदर्श और अन्य हलकों में इन आदर्शों के अभिव्यक्ति के बीच कहीं कोई गंभीर खाई तो नहीं। कभी-कभी विभिन्न संस्थाएं एक ही आदर्श की व्याख्या अलग-अलग ढंग से करती है। संविधान के उन मूल्यों व आदर्शों की व्याख्या अलग- अलग होने से उन व्याख्याओं के बीच विरोध पैदा होता है। तब यह जांचने की जरूरत पड़ती है कि कौन सी व्याख्या सही है। इस जांच-परख में संविधान के आदर्शों का इस्तेमाल एक कसौटी के रूप में होना चाहिए। इस लिहाज से हमारा संविधान एक पंच की भूमिका निभा सकता है।


JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

अध्याय सं.

अध्याय का नाम

भारत का संविधान सिद्धांत और व्यवहार

1

संविधान क्यों और कैसे?

2

भारतीय संविधान में अधिकार

3

चुनाव और प्रतिनिधित्व

4

कार्यपालिका

5

विधायिका

6

न्यायपालिका

7

संघवाद

8

स्थानीय स्वशासन

9

संविधान एक जीवंत दस्तावेज

10

संविधान का राजनीतिक दर्शन

राजनीतिक सिद्धांत

1

राजनीतिक सिद्धांत : एक परिचय

2

स्वतंत्रता

3

समानता

4

सामाजिक न्याय

5

अधिकार

6

नागरिकता

7

राष्ट्रवाद

8

धर्मनिरपेक्षता

JAC वार्षिक परीक्षा, 2023 प्रश्नोत्तर

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