प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 11
संस्कृत (Sanskrit)
4. सौवर्णशकटिका
स्मरणीयः तथ्यः
महाकवि शूद्रक-प्रणीत 'मृच्छकटिकम्' प्रकरण तत्कालीन समाज
का दर्पण माना जाता है। अपने दानशील स्वभाव के कारण धनहीन ब्राह्मण सार्थवाह आर्य चारुदत्त
तथा उज्जयिनी नगर की गणिका वसन्तसेना की प्रणयकथा पर आधारित यह नाट्यकृति उस युग की
अराजकता, समाज में व्याप्त कुरीति, द्यूतव्यसन, चौर्यवृत्ति, न्यायालय में व्याप्त
पक्षपात तथा राजा के सगे-संबन्धियों के स्वैराचार का प्रामाणिक वृत्त प्रस्तुत करती
है।
प्रस्तुत नाट्यांश 'मृच्छकटिकम्' के छठे अंक से लिया गया
है। इसमें शिशु मन को उद्वेलित करने वाली बालसुलभ इच्छा को मार्मिक ढंग से व्यक्त किया
गया है। धनी मानी पड़ोसी के बच्चे की सोने की गाड़ी देख, धनहीन चारुदत्त का बेटा रोहसेन
अशांत हो उठता है । दासी रदनिका मिट्टी की गाड़ी देकर उसे फुसलाने का प्रयत्न करती
है, परन्तु भोला शिशु अपनी जिद पर अड़ा रहता है। रदनिका उर्स वसन्तसेना के पास ले जाती
है। बच्चे का परिचय तथा उसके रोने का कारण जानकर वात्सल्यमयी वसन्तसेना अपने सारे आभूषण
बच्चे को सौंप देती है और कहती है इनसे तुम भी सोने की गाड़ी बनवा लेना । इस प्रकार,
प्रस्तुत नाट्यांश शिशुओं के निर्मल अन्तःकरण तथा स्नेहशौला नारी की वत्सलता को प्रकाशित
करता है।
बहुविकल्पीयाः प्रश्नाः
उत्तरार्थम् उचितविकल्पं चिनुत ।
1. 'मृच्छकटिकम्'
इति नाटकस्य रचयिता कः?
क. शूद्रकः
ख. कालिदासः
ग. श्रीहर्षः
घ. विष्णुशर्मा
2. दारकः (रोहसेनः) रदनिकां किमयाचत?
क. अश्वकटिकम्
ख. काष्ठकटिकम्
ग. मृच्छकटिकम्
घ. सौवर्णशकटिकां
3. रोहसेनः
कस्य पुत्रः आसीत्?
क. चारुदत्तस्य
ख. रदनिकायाः
ग. वासवदत्तायाः
घ. हर्षस्य
4. वसन्तसेना कैः मृच्छकटिकां पूरयति?
क. क्रीडनकैः
ख. अलंकारैः
ग. वस्त्रैः
घ. धनैः
5. रोहसेनेन स्वपितुः किं अनुकृतम् ?
क. वस्त्रम्
ख. रूपम्
ग. स्वरम्
घ. कपालम्
6. तत्कालीन समाजस्य दर्पणं किं मन्यते?
क.
मेघदूतम्
ख. मृच्छकटिकम्
ग.
पञ्चतन्त्रम्
घ.
गीतगोविन्दम्
7. वसन्तसेना का आसीत्?
क. गणिका
ख.
गायिका
ग.
सेविका
घ.
नर्तकी
8. वसन्तसेनानुसारेण परसम्पत्या कः सन्तप्यते?
क.
वसन्तसेना
ख.
हरीसेनः
ग. रोहसेनः
घ.
चारूदत्तः
9. 'सौवर्णशकटिका' पाठः कुतः संकलितः?
क.
रामायणात्
ख.
मेघदूतात्
ग.
पञ्चतन्त्रात्
घ. मृच्छकटिकात्
10. सुवर्णशकटिकां दृष्ट्वा कः अशान्तो भवति ?
क.
चारूदत्तः
ख. रोहसेनः
ग.
वसन्तसेना
घ.
नरः
11. दारकः रोहसेनः कस्याः आग्रहं करोति?
क. सौवर्णशकटिकायाः
ख.
मृच्छकटिकायाः
ग.
काष्ठकटिकायाः
घ.
अश्वकटिकायाः
12. 'शकटिकया' इति पदे का विभक्तिः?
क.
प्रथमा
ख. तृतीया
ग.
पंचमी
घ.
सप्तमी
13. 'जननी' इति पदस्य पर्यायपदं किम्?
क. माता
ख.
धाता
ग.
सेविका
घ.
गणिका
14. 'गृहीत्वा' इति पदे कः प्रत्ययः?
क.
तव्यत्
ख.
ल्यप्
ग. क्त्वा
घ.
शानच्
15. 'पुनः+अपि' इति पदस्य सन्धिपदं किम् ?
क.
पुनअपि
ख.
पुनड्पि
ग.
पुनरेपि
घ. पुनरपि
16. 'परसम्पत्या' इति पदे का विभक्तिः ?
क.
प्रथमा
ख. तृतीया
ग.
चतुर्थी
घ.
षष्ठी
17. 'अलीकम्' इत्यस्य विलोमपदं किम् ?
क. सत्यम्
ख.
असत्यम्
ग.
मधुरम्
घ.
श्रेष्ठम्
18. 'दारकः' इति पदस्य पर्यायपदं किम्?
क.
पिता
ख.
जननी
ग. पुत्रः
घ.
पौत्रः
19. 'रोदिति' इति पदे कः लकारः?
क.
लोट्
ख.
लृट्
ग.
लड्
घ. लट्
20. कस्मिन् पदे तृतीया विभक्तिः अस्ति?
क.
रोहसेन
ख. दारकेन
ग.
दारकः
घ.
दारके
अतिलघूत्तरीयाः प्रश्नाः
उचितक्रियापदानि
चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत।
1.
एहि वत्स ! आवां …… क्रीडावः ……… । (क्रीडामि,
क्रीडन्ति क्रीडावः)
2.
अहं स्वमित्रं संगीतेन … विनोदयामि ………. । (विनोदयामि,
विनोदयन्ति, विनोदयामः)
3.
त्वं सुवर्णशकटिकया …… क्रीडिष्यसि …….। (क्रीडिष्यति,
क्रीडिष्यसि, क्रीडिष्यामि)
4.
त्वं अलीकं …… भणसि ……. । (भणसि, भणति, भणन्सि)
5.
किं निमित्तं बालोऽयं …… रोदिति ……… । (रोदिसि,
रुदन्ति, रोदिति)
अधोलिखितानां
पदानां मञ्जूषातः उचितपर्यायवाचिपदानि चित्वा लिखत ।
6.
दारकः …… पुत्रः ………. (नरः, पुत्रः, सुता)
7.
पितुः …… जनकस्य ……. (जनकस्य, जनकः, पिता)
8.
तर्कयामि …… विचारयामि ……. (गच्छामि, विचारयामि)
9.
जननी …… माता ……. (दाता, रीता, माता)
10.
नीता …… आदाय ……. (आदाय, प्रदाय, गीता)
11.
भणति … वदति……. (वदति, हसति, वदसि)
12.
अलीकम् … मृषा ………. (मृषा, सत्यम्, अलिकम्)
लघुत्तरीयाः प्रश्नाः
अधोदत्तनाट्यांशं
पठित्वा प्रदत्तप्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखन्तु।
रदनिका
- न केवलं रूपं शीलमपि तर्कयामि। एतेन आर्यचारुदत्त आत्मानं विनोदयति।
वसन्तसेना
- अथ
किन्निमित्तमेष रोदिति?
रदनिका
- एतेन प्रातिवेशिकगृहपतिदारकस्य सुवर्णशकटिकया क्रीडितम्। तेन च सा नीता। ततः पुनस्तां
मार्गयतो मयेयं मृत्तिकाशकटिका कृत्वा दत्ता। ततो भणति रदनिके! किम्मम एतया मृत्तिकाशकटिकया?
तामेव सौवर्णशकटिकां देहि इति।
वसन्तसेना-
हा धिक् हा धिक् अयमपि नाम परसम्पत्त्या सन्तप्यते? भगवन्
कृतान्त। पुष्करपत्रपतित- जलबिन्दुसदृशैः क्रीडसि त्वं पुरुषभागधेयैः। (इति सास्त्रा)। जात! मा रुदिहि ! सौवर्णशकटिकया क्रीडिष्यसि।
1. वसन्तसेना दारकस्य विषये किं पृच्छति?
उत्तर : वसन्तसेना दारकस्य विषये अपृच्छत् यत् एषः
किं निमित्तम् रोदिषि।
2. आर्य चारुदत्तः केन आत्मानं विनोदयति?
उत्तर : आर्यचारुदत्तः स्वपुत्रेण रोहसेनेन आत्मानं
विनोदयति ।
3. 'जात! मा रुदिहि ! सौवर्णशकटिकया क्रीडिष्यसि ।' इति का कथयति?
उत्तर : 'जात!
मा रुदिहि! सौवर्णशकटिकया क्रीडिष्यसि ।' इति वसन्तसेना कथयति ।
4. 'सुवर्णशकटिकया' इति पदे का विभक्तिः?
उत्तर : 'सुवर्णशकटिकया'
इति पदे तृतीया विभक्तिः ।
5. 'पुष्करपत्रपतित-जलबिन्दुसदृशैः क्रीडसि त्वं पुरुषभागधेयैः।' अत्र
'त्वं इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तर : 'पुष्करपत्रपतित-जलबिन्दुसदृशैः
क्रीडसि त्वं पुरुषभागधेयैः।' अत्र 'त्वं इति पदं ईश्वराय प्रयुक्तम्।
6. रोहसेनः कीदृशीं शकटिकां याचते?
उत्तर : रोहसेनः
सौवर्णशकटिकां याचते।
7. वसन्तसेना किमुक्त्वा दारकं सान्त्वयामास?
उत्तर : जात!
मा रुदिहि। सौवर्णशकटिकया क्रीडिष्यसि इत्युक्त्वा दारक सान्त्वयामास।
अधोलिखिताः
पङ्क्तयः केन के प्रति उक्ता?
8. एहि वत्स ! शकटिकया क्रीडावः।
उत्तर : रदनिकया
दारकं प्रति।
9. आर्यायाः वसन्तसेनायाः समीपम् उपसर्पिष्यामि ।
उत्तर : रदनिकया
स्वगतम्।
10. एहि मे पुत्रक! आलिङ्ङ्ग।
उत्तर : वसन्तसेनया-दारकं
प्रति।
11. किं निमित्तम् एष रोदिति ।
उत्तर : वसन्तसेनया-रदनिकां
प्रति।
12. रदनिके! का एषा?
उत्तर : दारकेन
रदनिकां प्रति ।
13. जात! कारय सौवर्णशकटिकाम् ।
उत्तर : वसन्तसेनया
दारकं प्रति।
दीर्घोत्तरीयाः प्रश्नाः
हिन्दीभाषया
व्याख्यां लिखत ।
1. अनलङ्कृतशरीरोऽपि आनन्दयति मम हृदयम्।
व्याख्या-
यद्यपि इस बालक रोहसेन के शरीर पर कोई आभूषण नहीं है परन्तु फिर भी चन्द्रमा के समान
सुन्दर मुख वाला यह बालक मेरे हृदय को आनन्दित कर रहा हैं। अर्थात् बालक को देखकर वसन्तसेना
के हृदय को अत्यधिक आनन्दानुभूति हो रही है।
2. न केवलं रूपं शीलमपि तर्कयामि।
व्याख्या-
यह कथन रदनिका का है। वसन्तसेना के यह कहने पर कि यह बालक अपने पिता के रूप का (सौन्दर्य
का) अनुकरण करता है, रदनिका तुरन्त कहती है न केवल रूप का अपितु शील अर्थात् सदाचरण
व सद्व्यवहार में भी अपने पिता का अनुकरण करता है।
3. पुष्करपत्र-पतित-जलबिन्दु सदृशैः क्रीडसि त्वं पुरुष- भागधेयैः।
व्याख्या-
प्रस्तुत कथन वसन्तसेना का है। बालक रोहसेन पड़ोसी बालक की सोने की गाड़ी से खेलना
चाहता है। वसन्तसेना इसे बालक की पराये धन के प्रति ईर्ष्या समझती है। वह कहती है,
हे भगवान् यमराज ! तुम कमल के पत्ते पर पड़ी पानी की बंद के समान मनुष्य के भाग्य से
खिलवाड़ करते हो। जैसे कमल के चिकने पत्ते पर पड़ी पानी की बूंद मोती के समान चमकती
है परन्तु अगले ही क्षण वह लुढ़ककर समाप्त हो जाती है। इसी प्रकार मानव का भाग्य भी
क्षणिक है।
4. जात! मुग्धेन मुखेन अतिकरुणं मंत्रयसि।
व्याख्या-
यह कथन वसन्तसेना का है। रदनिका जब वसन्तसेना को उसकी माँ कहती है तो बालक रोहसेन उसे
स्वीकार नहीं करता तथा रदनिका से कहता है कि वह झूठ बोल रही है क्योंकि हमारी माँ होती
तो उसके पास गहने कहाँ से आते क्योंकि हम तो गरीब हैं। बालक के इस कथन से प्रभावित
होकर वसन्तसेना ने कहा-हे पुत्र ! (तुम) भोले मुख से अत्यन्त करुण बात कह रहे हो।
5. अधोलिखितानां पदानां स्वसंस्कृतवाक्येषु प्रयोगं कुरुत।
क.
मृच्छशकटिकया = रोहसेनः मृच्छशकटिकया क्रीडितुं न इच्छति।
ख.
सुवर्ण व्यवहारः = कुतोऽस्माकं
सुवर्ण व्यवहारः?
ग.
अश्रूणि = सा अश्रूणि प्रमृज्य
कथयति।
घ.
विनोदयति = सः कन्दुकेन आत्मानं
विनोदयति।
ङ.
प्रातिवेशिकः = श्री
बिहारीलालः मम प्रातिवेशिकः अस्ति।
च.
ऋद्ध्या = पुनरपि ऋद्ध्या
सः सुवर्णशकटिकया क्रीडिष्यति ।
छ.
रोदिति = बालोऽयं कथं रोदिति?
6. अधोलिखितानां पदानां सन्धिविच्छेदं कुरुत ।
क.
कुतोऽस्माकम् = … कुतः + अस्माकम् ….
ख.
पुनरपि = .... पुनः + अपि......
ग.
किन्निमित्तम् = .... किम् + निमित्तम्......
घ.
पुनस्ताम् = ... पुनः + ताम.......
ङ.
यद्यस्माकम् = .. यदि + अस्माकम्.....
च.
आभरणान्यवतार्य = .... आभरणानि + अवतार्य......
7.
निर्दिष्टं प्रकृति-प्रत्यय-निर्मितं पदं लिखत-
क.
निः + श्वस् + ल्यप् = … निःश्वस्य …….
ख.
अनु + कृ + क्त = … अनुकृतम् …….
ग.
अलम् + कृ+ क्त + टाप् = … अलङ्कृता …….
घ.
अव + तृ + णिच् + ल्यप् = …
अवतार्य …….
ङ.
पूर् + क्त्वा = … पूरयित्वा …….
च.
आ + दा + ल्यप् = … आदाय …….
छ.
ग्रह् + क्त्वा = ...... गृहीत्वा......
ज.
उप + सृ+ ल्यप् = .... उपसृत्य........
झ.
क्रीड़ + क्त = … क्रीडितः …….
ञ.
प्र + मृज् + ल्यप् = … प्रमृज्य …….
8. अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि लिखत।
क. सौवर्णशकटिका - मृच्छशकटिका
ख. अलीकम् - - सत्यम्
ग. अलङ्कृता - अनलङ्कृता
घ. निष्क्रान्ता - प्रविष्टा
ङ. अपेहि - उपेहि
च. परसम्पत्त्या - स्वसम्पत्त्या
9. पाठमाश्रित्य सोदाहरणं वसन्तसेनायाः चारित्रिक- वैशिष्टयम् हिन्दीभाषायां
लिखत ।
उत्तर : वसन्तसेना - वसन्तसेना एक गणिका है। वह आर्य चारुदत्त के प्रति आसक्त है। चारुदत्त के
पुत्र रोहसेन के प्रति भी उसकी आसक्ति है। वह गरीबी को एक अभिशाप मानती है। रोहसेन
की भोली आकृति व उसकी बातों पर वह मुग्ध हो जाती है तथा उसके लिए सोने की गाड़ी बनाने
हेतु अपने स्वर्णाभूषणों को उतारकर मिट्टी की गाड़ी को भर देती है। वह रोहसेन को प्रसन्न
करने के लिए बाहरी तौर पर तो रोना बन्द कर देती है परन्तु उसका हृदय अन्दर से रोता
रहता है। वह दरिद्रता को पुरुषों का भाग्य समझती है। इस पाठ में वसन्तसेना की उदारता
एवं वात्सल्य भाव को दर्शाया गया है।
10. पाठमाश्रित्य सोदाहरणं रोहसेनस्य चारित्रिक वैशिष्टयम् हिन्दीभाषायां
लिखत ।
उत्तर : रोहसेन - रोहसेन आर्य चारुदत्त का पुत्र है। उसमें बालसुलभ लालसा एवं लोभ की भावना
है। बालहठ उसमें विद्यमान है। वह रूप-सौन्दर्य तथा शील दोनों में अपने पिता के समान
है। मातृ-सुलभ ममत्व को वह भली प्रकार समझता है। वह धनाढ्य पड़ोसी बालक की सोने की
गाड़ी देखकर अशान्त हो जाता है। रदनिका मिट्टी की गाड़ी बनाकर उसे देती है परन्तु वह
उसे न लेकर उसी सोने की गाड़ी में खेलने का आग्रह करता है। पाठ में अनेक स्थलों पर
बाल सुलभ भोलापन देखने को मिलता है। रदनिका जब वसन्तसेना को उसकी माता बतलाती है तो
वह कहता है..."अरी रदनिका ! तू झूठ बोल रही है। यदि आर्या हमारी माँ है तो यह
आभूषण क्यों पहनी हुई हैं?"
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