प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 11 Hindi Core
आरोह भाग -1 काव्य-खंड
पाठ 5. गज़ल -दुष्यंत कुमार
जीवन-सह-साहित्यिक परिचय
जन्म- सन् 1933 (उत्तर प्रदेश के राजपुर नवादा गांव)
मूल नाम- दुष्यंत कुमार त्यागी
पिता का नाम- अगवत सहाय
माता का नाम- रामकिशोरी देवी
पत्नी का नाम- राजेश्वरी कौशिक
रचनाएँ- इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
काव्य- सूर्य का स्वागत, आवाज़ों के घेरे, जलते हुए वन का वसंत
गज़ल संग्रह- साये में धूप (सन् 1975)
गौति-नाट्य- एक कंठ विषपायी (1963)
उपन्यास - छोटे-छोटे सवाल, आँगन में एक वृक्ष, दोहरी जिंदगी
मृत्यु- सन 1975
साहित्यिक परिचय- दुष्यंत कुमार का साहित्यिक जीवन इलाहाबाद में आरंभ हुआ।
वहाँ की साहित्यिक संस्था परिमल की गोष्ठियों में वे सक्रिय रूप से भाग लेते रहे और
नए पत्ते जैसे महत्त्वपूर्ण पत्र के साथ भी जुड़े रहे। इन्होंने आजीविका के लिए आकाशवाणी
और मध्य प्रदेश के राजभाषा विभाग में काम किया। अल्पायु में ही इनका निधन हो गया किंतु
इस छोटे जीवन की साहित्यिक उपलब्धियाँ अद्भुत हैं। गज़ल की विधा को हिंदी में प्रतिष्ठित
करने का श्रेय अर्कैले दुष्यंत कुमार को ही जाता है। उनके कई शेर साहित्यिक एवं राजनीतिक
जमावड़ों में लोकोक्तियों की तरह दुहराए जाते हैं। साहित्यिक गुणवत्ता से समझौता न
करते हुए भी दुष्यंत ने लोकप्रियता के नए प्रतिमान कायम किए हैं। 'एक कंठ विषपायी शीर्षक
गीति-नाट्य हिंदी साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण एवं बहुप्रशंसित कृति है।
पाठ-परिचय
यहाँ दुष्यंत कुमार की जो गज़ल दी गई है, वह उनके गज़ल संग्रह
साये में धूप' से ली गई है। गजलों में शीर्षक देने का कोई चलन नहीं है, इसीलिए यहाँ
कोई शीर्षक नहीं दिया जा रहा है।
गज़ल एक ऐसी विधा है, जिसमें सभी शेर अपने-आप में मुकम्मिल
और स्वतंत्र होते हैं। उन्हें किसी क्रम-व्यवस्था के तहत पढ़े जाने की दरकार नहीं रहती।
इसके बावजूद दो चीजें ऐसी हैं, जो इन शेरों को आपस में गूंथकर एक रचना की शक्ल देती
हैं-एक, रूप के स्तर पर तुक का निर्वाह और दो, अंतर्वस्तु के स्तर पर मिजाज का निर्वाह।
इस गजल के पहले शेर की दोनों पंक्तियों का तुक मिलता है और उसके बाद सभी शेरों की दूसरी
पंक्ति में उस तुक का निर्वाह होता है। इस गज़ल में राजनीति और समाज में जो कुछ चल
रहा है. उसे खारिज करने और विकल्प की तलाश को मान्यता देने का भाव प्रमुख बिंदु है।
कवि राजनीतिज्ञों के झूठे वायदों पर व्यंग्य करता है कि वे
हर घर में चिराग उपलब्ध कराने का वायदा करते हैं, परन्तु यहाँ तो पूरे शहर में एक भी
एक चिराग नहीं है। कवि को पेड़ों के साये में धूप लगती है अर्थात् आश्रयदाताओं के यहाँ
भी कष्ट मिलते हैं। इसलिए वह हमेशा के लिए इन्हें छोड़कर जाना चाहता है। वह उन लोगों
के जिंदगी के सफर को आसान बताता है जो परिस्थिति के अनुसार स्वयं को ढाल लेते हैं।
मनुष्य को खुदा न मिले तो कोई बात नहीं, उसे अपना सपना नहीं छोड़ना चाहिए। कुछ समय
के लिए ही सही, हसीन सपना तो देखने को मिलता हैं। कुछ लोगों का विश्वास है कि पत्थर
पिघल नहीं सकते। कवि आवाज़ के असर को देखने के लिए बेचैन है। शासक शायर की आवाज़ को
दबाने की कोशिश करता है, क्योंकि वह उसकी सत्ता को चुनौती देता है। कवि कहता है कि
वह किसी दूसरे के आश्रय में रहने के स्थान पर वह अपने घर में जीना चाहता है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
गजल के साथ
1. आखिरी
शेर में गुलमोहर की चर्चा हुई है। क्या उसका आशय एक खास तरह के फूलदार वृक्ष से है
या उसमें कोई सांकेतिक अर्थ निहित है? समझाकर लिखें।
उत्तर- गुलमोहर एक फूलदार वृक्ष है। कवि ने गजल के शेर में
गुलमोहर शब्द का प्रयोग विशेष अर्थ में किया है। कविता में 'गुलमोहर' स्वाभिमान के
सांकेतिक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। कवि हमें गुलमोहर के द्वारा घर और बाहर दोनों स्थानों
पर स्वाभिमान से जीने की प्रेरणा प्रदान करता है और आजादी से रहने का अहसास करवाना
चाहता है।
2. पहले
शेर में चिराग शब्द एक बार बहवचन में आया है और दूसरी बार एकवचन में। अर्थ एवं काव्य-सौंदर्य
की दृष्टि से इसका क्या महत्व है?
उत्तर- पहले शेर में चिराग शब्द का बहुवचन 'चिरागा का प्रयोग
हुआ है जिसका अर्थ है- अत्यधिक सुख- सुविधाएँ। दूसरी बार यह एकवचन के रूप में प्रयुक्त
हुआ है जिसका अर्थ है- सीमित सुख-सुविधाओं का मिलना। दोनों का ही अपना महत्त्व है।
बहुवचन के रूप में यह शब्द कल्पना को दर्शाता है; वहीं एकवचन शब्द जीवन की यथार्थता
को दर्शाता है। इस प्रकार दोनों बार आया हुआ एक ही शब्द अपने-अपने संदर्भ में भिन्न-भिन्न
प्रभाव रखता है। कवि द्वारा एक ही शब्द का प्रतीकात्मक व लाक्षणिक शब्द प्रयोग करना
उनकी अद्भुत कल्पना क्षमता का परिचायक है।
3. गज़ल के तीसरे शेर को गौर से पढ़ें। यहाँ दुष्यंत का इशारा किस तरह
के लोगों की ओर है?
उत्तर-
गजल के तीसरे शेर से कवि दुष्यंत का इशारा समयानुसार अपने आपको ढाल लेने वालों से हैं।
कवि कहते हैं कि ये ऐसे लोग हैं जिनकी आवश्यकताएँ बहुत सीमित होती है और इसलिए ये अपना
सफर आराम से काट लेते हैं। ऐसे लोग उत्साहहीन, दीन-हीन हैं जो हर स्थिति को आसानी से
स्वीकार कर लेते हैं और अन्याय का विरोध भी नहीं करते । उनकी प्रतिरोध- शक्ति लगभग
समाप्त हो चुकी है। जनता की इसी उदासीनता का लाभ राजनेता और अफसरशाही उठाते हैं और
उनका शोषण करते हैं।
4. आशय स्पष्ट करें :
तेरा
निज़ाम है सिल दे जुबान शायर की,
ये
एहतियात जरुरी है इस बहर के लिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियों' दुष्यंत कुमार' की गजल 'साये में धूप • से ली गई हैं। इन पंक्तियों
में कवि द्वारा 'शासक वर्ग' पर व्यंग्य किया गया है। चूंकि शायर सत्ता के खिलाफ लोगों
को जागरुक करता है जिससे सत्ता को क्रांति का खतरा लगता है। शासक वर्ग की सत्ता होने
के कारण वे स्वयं को बचाने के लिए किसी भी शायर की जुबान पर पाबंदी अर्थात् अभिव्यक्ति
पर पाबंदी लगा देते हैं। जैसे गज़ल के छंद के लिए बंधन की सावधानी जरूरी है, उसी तरह
शासक को अपनी सत्ता कायम रखने के लिए इस प्रकार की सावधानी रखना भी जरूरी होता है परंतु
ये सर्वथा अनुचित है। यदि बदलाव लाना है तो ओभव्यक्ति की स्वतंत्रता आवश्यक है।
गज़ल के आस-पास
1. दुष्यंत की इस गजल का मिजाज बदलाव के पक्ष में हैं। इस कथन पर विचार
करें।
उत्तर-
कवि बदलाव का पक्षधर है। वह जनता, समाज, शासक, प्रशासन और मानव के मूल्यों में आई गिरावट
से चिंतित है और उसमें बदलाव लाना चाहता है। दुष्यंत की यह गज़ल सामाजिक और राजनीतिक
व्यवस्था में परिवर्तन की माँग करती है। कवि अपनी आवाज़ से लोगों को जागरुक कर रहा
है। तभी तो कवि 'मैं बेकरार हैं आवाज़ में असर के लिए', 'यहाँ दरख्तों के साए मैं धूप
लगती है' आदि बातें कहता है। वह पत्थरदिल लोर्गा को पिघलाने में विश्वास रखता है। वह
अपनी शर्तों पर जीना चाहता है और ये तभी संभव है जब परिस्थिति में बदलाव आए।
2. हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन दिल के खुश रखने को गालिब ये
खयाल अच्छा है
दुष्यंत की गजल का चौथा शेर पढ़ें और बताएँ कि गालिब के उपर्युक्त शेर
से वह किस तरह जुड़ता है?
उत्तर-
दुष्यंत की गजल का चौथा शेर है-
खुदा
नहीं, न सही, आदमी का ख्वाब सही,
कोई
हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए।
यह
शेर गालिब के शेर से पूरी तरह प्रभावित है। दोनों का अर्थ लगभग एक जैसा है। गालिब
'जन्नत' को तथा दुष्यंत 'खुदा'
को मानव की कल्पना मानते हैं। ग़ालिब स्वर्ग की वास्तविकता से परिचित है परंतु उनका
मानना है कि दिल को खुश करने के लिए उसकी सुंदर कल्पना करना ब्रा नहीं है। ठीक उसी
प्रकार कौवे दुष्यंत भी खुदा को मानव की कल्पना मानते हैं परंतु उनका भी मानना है कि
दिल को खुश रखने के लिए खुदा की हसीन कल्पना करना कोई बुरी बात नहीं है। दोनों शेरों
के शायर काल्पनिक दुनिया में विचरण को बुरा नहीं समझते। दोनों के लिए खुदा और जन्नत
के विचार ठीक हैं क्योंकि दोनों ही अनुभूति के विषय है।
3. यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है'
यह वाक्य मुहावरे की तरह अलग-अलग परिस्थितियों में अर्थ दे सकता है मसलन, यह ऐसी अदालतों
पर लागू होता है, जहाँ इंसाफ नहीं मिल पाता। कुछ ऐसी परिस्थितियों की कल्पना करते हुए
निम्नांकित अधूरे वाक्यों को पूरा करें।
(क) यह ऐसे नाते-रिश्तों पर लागू होता है......
(ख) यह ऐसे विद्यालयों पर लागू होता है......
(ग) यह ऐसे अस्पतालों पर लागू होता है....
(घ) यह ऐसी पुलिस व्यवस्था पर लागू होता है.......
उत्तर-
(क) यह ऐसे नाते-रिश्तों पर लागू होता है जहाँ रिश्ते- नाते
प्रेम देने की बजाय दुःख देते हैं।
(ख) यह ऐसे विद्यालयों पर लागू होता है, जहाँ विद्या के
नाम पर अविद्या सिखाई जाती है।
(ग) यह ऐसे अस्पतालों पर लागू होता है, जहाँ इलाज की जगह
रोग बढ़ता है।
(घ) यह ऐसी पुलिस-व्यवस्था पर लागू होता है, जहाँ सुरक्षा
के बजाय भय मिलता है।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोतर (बहुविकल्पीय प्रश्न)
1. दुष्यंत कुमार का जन्म कब हुआ था?
क. सन् 1933
ख. सन् 1934
ग. सन् 1935
घ. सन् 1936
2. 'एक कंठ विषपायी' की विधा क्या है?
क. कविता
ख. कहानी
ग. गीतिनाट्य
घ. उपन्यास
3. 'सूर्य का स्वागत' के रचयिता कौन हैं?
क. त्रिलोचन
ख. अवतार सिंह पाश
ग. दुष्यंत कुमार
घ. भवानी प्रसाद मिश्र
4. 'साये में धूप' के रचनाकार कौन हैं?
क. दुष्यंत कुमार
ख. कृष्णनाथ
ग. भवानी प्रसाद मिश्र
घ. शेखर जोशी
5. हर एक घर के लिए क्या तय था?
क. दीपक
ख. बल्ब
ग. ट्यूब
घ. चिरागाँ
6. चिराग किसके लिए उपलब्ध नहीं है?
क. गाँव
ख. कस्बा
ग. बस्ती
घ. शहर
7. 'मयस्सर' शब्द है-
क. हिंदी
ख. संस्कृत
ग. उर्दू
घ. फ्रेंच
8. किसके साये में धूप लगती है?
क. पेड़ों
ख. छत्त
ग. छतरी
घ. पहाड़ों
9. कमीज़ न होने पर पेट किस से ढंक लेंगे?
क. हाथों
ख. लज्जा
ग. भूख
घ. पाँवों
10. कवि कितने समय के लिए भाग जाना चाहता है?
क. दो वर्ष
ख. बीस वर्ष
ग. पाँच वर्ष
घ. उमभर
11. कवि किसे अपनी जुबान सिल देने के लिए कहता
है-
क. शासक को
ख. मालिक को
ग. नेता को
घ. जनता को
12. 'बहर' क्या है?
क. गजल के शब्द
ख. गजल का आव
ग. गजल के छंद
घ. गज़ल की प्रस्तुति
13. 'वे मुतमइन हैं' में 'मुतमइन' का क्या
अर्थ है?
क. आश्वस्त होना
ख. संदेह होना
ग. इनकार होना
घ. अनावश्यक होना
14. 'वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता'
कथन में 'पत्थर' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
क. निम्न वर्ग
ख. उच्च वर्ग
ग. मध्यम वर्ग
घ. शासक वर्ग
15. गजल के रचनाकार कौन है?
क. दुष्यंत कुमार
ख. पाश
ग. त्रिलोचन
घ. भवानी प्रसाद मिश्र
16. दुष्यंत कुमार का साहित्यिक जीवन कहाँ
से आरंभ हुआ?
क. ग्वालियर
ख. इलाहाबाद
ग. लखनऊ
घ. बरेली
17. 'कहाँ तो तय था चिरागों हरेक घर के लिए'
इस पंक्ति में चिरागाँ किसका प्रतीक है ?
क. प्रकाश का
ख. धन-दौलत क
ग. सुख-समृद्धि का
घ. संघर्ष का
18. 'वे मुतमइन हैं' में मुतमइन का क्या अर्थ
है ?
क. विश्वासी
ख. अस्वस्थ
ग. बेचैन
घ. सत्ताधारी
19. 'ये एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए पंक्ति
में 'बहर' का अर्थ क्या है?
क. छंद
ख. गजल
ग. संसार
घ. कविता
20. 'कहाँ तो तय था चिरागों हरेक घर के लिए'
पंक्ति में कवि ने किस ओर इशारा किया है?
क. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की खुशियों
की ओर
ख. स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले की खुशियों की ओर
ग. कार्यालय में जलाए गए चिराग की ओर
घ. मंदिर में जलाने वाले दीपक की ओर
21. 'गजल'
किस संग्रह से उद्धृत है?
क. आवाजों के घेरे
ख. सूर्य का स्वागत
ग. साये में धूप
घ. जलते हुए वन का बसंत
22. 'गजल'
में किसका चलन नहीं है?
क. तुक निर्वाह का
ख. मिजाज का निर्वाह
ग. शीर्षक
घ. स्वतंत्र वजूद का
23. 'गजल'
के माध्यम से क्या संदेश दिया गया है?
क. समाज सेवा
ख. जन-जाग्रति का
ग. आंदोलन
घ. इनमें से कोई नहीं
24. 'न हो कमीज तो पाँवों से पेट ढंक लेंगे'
पंक्ति में कवि ने भारतीयों की किस मनोवृत्ति पर व्यंग्य किया है?
क. संतोषी वृत्ति
ख. निर्धनता
ग. संघर्ष
घ. भक्ति वृत्ति
25. "यहाँ
दरख्तों के साये में धूप लगती है"। इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है ?
क. दृष्टांत
ख. उदाहरण
ग. विरोधाभास
घ अंन्त्यानुप्रास
26. गज़ल संग्रह 'साये में धूप' का प्रकाशन
वर्ष कब है?
क. सन् 1971
ख. सन् 1972
ग. सन् 1973
घ. सन् 1975
27. दुष्यंत कुमार का मूल नाम क्या था ?
क. दुष्यंत कुमार त्याग
ख. दुष्यंत कुमार दास
ग. दुष्यंत कुमार कौशिक
घ. दुष्यंत साहनी
28. दुष्यंत कुमार के पिताजी का क्या नाम था?
क. भगवत सहाय
ख. भगवत प्रसा
ग. भगवत कौशिक
घ. भगवत उपाध्याय
29. किस विधा को हिंदी में प्रतिष्ठित करने
का श्रेय अकेले दुष्यंत कुमार को जाता है?
क. कहानी
ख. उपन्यास
ग. गजल
घ. कविता
30. 'आँगन
में एक वृक्ष' किसका उपन्यास है ?
क. जयशंकर प्रसाद
ख. दुष्यंत कुमार
ग. सुमित्रानंदन पंत
घ. महादेवी वर्मा
अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. आजादी के बाद क्या तय हुआ था?
उत्तर- आजादी के बाद नेताओं ने जनता को यह आश्वासन दिया था
कि देश की हर घर में सुख-सुविधाएँ उपलब्ध होंगी।
2. कवि
उम्र भर के लिए पलायन क्यों करना चाहता है?
उत्तर- कवि कहता है कि देश में अनेक ऐसी संस्थाएँ हैं जो लोगों का
कल्याण करने के बजाय उनका शोषण कर रही हैं। यहां दरख्तों के नीचे छाया मिलने की बजाय
धूप मिलती है अर्थात् ये संस्थाएँ ही आम आदमी का शोषण करने लगी है। चारों तरफ भ्रष्टाचार
फैला हुआ है। इस कारण वह इस भ्रष्ट-तंत्र से दूर जाना जाता है।
3. कवि किस कारण असंतुष्ट है?
उत्तर- कवि के असंतोष के दो मुख्य कारण है-पहला यह कि मुख्य व्यवस्था
में सुख-सुविधा की कमी तथा दूसरा लोगों में परिवर्तन की इच्छा-शक्ति का न होना।
4. कवि
ने किस व्यवस्था पर कटाक्ष किया है? इसका जनसामान्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर- कवि ने नेताओं की झूठी घोषणाओं तथा सरकारी भ्रष्ट तंत्र पर
करारा व्यंग्य किया है। झूठी घोषणाओं तथा भ्रष्टाचार के कारण आम आदमी में घोर
निराशा फैली हुई है।
5. कवि किसके लिए
बेकरार है ?
उत्तर- कवि का मानना है कि अगर आवाज में प्रभाव हो तो पत्थर भी पिघल जाते हैं। वह क्रांति का समर्थक है। इसलिए असरदार आवाज़ के लिए बेचैन है।
6. पाँवों से पेट बँकने का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-
इसका अर्थ यह है कि गरीबी और शोषण
के कारण लोगों में विरोध करने की क्षमता समाप्त हो चुकी है। वे हर स्थिति को आसानी
से स्वीकार कर लेते हैं। वे न्यूनतम वस्तुएँ उपलब्ध न होने पर भी अपना गुज़ारा कर लेते
हैं।
7. दुष्यंत किसे मानवीय कल्पना बताते हैं?
उत्तर- दुष्यंत ईश्वर को मानवीय कल्पना मानते हैं। इसी मानवीय
कल्पना के जरिए आकर्षक दृश्य दिखाते हैं और इनके अस्तित्व को मन संतुष्ट रखने का कारण
मानते हैं।
8. शायर की बेकरारी का क्या कारण है?
उत्तर-
शायर जानता है कि शासन कठोर होता
है, व्यवस्था हृदयहीन हुआ करती है। उसके बदलने और सहानुभूतिपूर्ण होने का विश्वास लोगों
को नहीं है। लेकिन शायर बदलाव का पक्षधर है। उसको विश्वास है कि उसकी कविता और जनता
के दृढ़ विरोध से एक दिन व्यवस्था अवश्य बदलेगी। इस परिवर्तन को देखने के लिए वह बेकरार है।
9. खुदा के बारे में कवि ने क्या व्यंग्य किया
है ?
उत्तर-
खुदा के बारे में कवि ने व्यंग्य
किया है कि खुदा का अस्तित्व नहीं है। खुदा मानव की कल्पना मात्र है। इस कल्पना के
जरिए उसे आकर्षक दृश्य देखने के लिए मिल जाते हैं और इसी के सहारे उसका जीवन कट जाता
है।
10. 'साये में धूप' गज़ल का केंद्रीय भाव क्या है
?
उत्तर-
साधारणतया गजल के शेरों में केंद्रीय
भाव होना जरूरी नहीं है लेकिन 'साये में धूप' पूरी गजल एक खास मनःस्थिति में लिखी गई
है। इस गज़ल का केंद्रीय भाव है-राजनीति और समाज में जो कुछ चल रहा है, उसे खारिज करना
और नए विकल्प की तलाश करना।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. गज़ल की क्या विशेषताएँ होती हैं ?
उत्तर- गज़ल को हिन्दी में लाने का श्रेय दुष्यन्त कुमार को जाता
है। गज़ल एक ऐसी काव्य-विधा है जिसमें सभी शेर अपने-आप में पूर्ण तथा एक-दूसरे से स्वतन्त्र
होते हैं। उनमें किसी प्रकार का कोई क्रस नहीं होता। इन शेरों को आपस में गूंधकर एक
रचना (गज़ल) का रूप देने के लिए दो बार्ता का ध्यान रखा जाता है। गजल में पहले शेर की
दोनों पंक्तियों का तुक मिलाता है और उसके बाद सभी शेरों की दूसरी पंक्ति में उस तुक
का निर्वाह होता है। जैसे-
कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए,
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है,
चलो यहाँ से चलें उम्र भर के लिए।
दूसरी बात है कि विषय-वस्तु के स्तर पर, मिजाज का ध्यान रखना।
गज़ल में शीर्षक देने का चलन नहीं होता। प्रत्येक शेर अपने आप में स्वतन्त्र होने के
कारण उसका कोई केन्द्रीय भव नहीं होता।
2. निम्नलिखित पंक्ति में निहित भाव को स्पष्ट
कीजिए- 'यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है'
उत्तर- 'दरख्त' विशाल वृक्ष को कहते हैं। उनकी छाया घनी और शीतल
होती है और यह धूप से रक्षा करती है। परन्तु दरख्तों की छाया में भी धूप लगने का निहितार्थ
भिन्न है। दरख्त भारत के भ्रष्ट और अयोग्य राजनेताओं की ओर इंगित करता है। जिन भारतीय
शासकों और नेताओं ने लोगों को यह आश्वासन दिया था कि हर घर में सुख-सुविधाएँ उपलब्ध
होंगी, वे अपने भ्रष्ट आचरण और अकुशलता के कारण लोगों के कष्टों को बढ़ा रहे हैं। कवि
ने यह बात "वृक्ष और छाया" के प्रतीकों द्वारा कही है।
3. 'कहाँ तो तय था चिरागों हरेक घर के लिए'
का तात्पर्य क्या है ?
उत्तर- यहाँ कवि ने स्वतन्त्रता से पूर्व भारत के लोगों की आकांक्षाओं
का वर्णन किया है। लोग देश की स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहे थे और वे सोच रहे थे
कि आजादी के बाद प्रत्येक घर में दीपक जलाये जायेंगे, हर घर रोशनी से जगमगा उठेगा।
अर्थात् आजाद भारत में प्रत्येक नागरिक शोषण से मुक्त होगा और हर घर में सुख-सुविधाएँ
उपलब्ध होंगी, लोगों को इस बात पर पूरा यकीन था, परन्तु कुटिल और स्वार्थी राजनीतिों
के कारण देश शोषण, गैरीबी और आर्थिक बदहाली से त्रस्त है।
4. 'खुदा को आदमी का ख्वाब' कहने का क्या आशय
है
उत्तर- शायर ईश्वर को मानव की कल्पना मानता है। पाश्चात्य विचारक
एवं समाजशास्त्रियों के अनुसार भी ईश्वर मनुष्य की कल्पना की उपज है। यह कल्पना एक
हसीन नजारे की तरह है, जिससे आदमी को सुख मिलता है। आदमी अपनी सफलता असफलता का श्रेय
ईश्वर को देकर जिम्मेदारी से बच जाता है। किसी अजात शक्ति से भय तथा उपकृत होने की
भावना ही ईश्वर को उसके मन में जन्म देती है। इस तरह ईश्वर मनुष्य की एक सुन्दर कल्पना
है जिसके जरिए उसे आकर्षक दृश्य देखने के लिए मिल जाते हैं। कवि मानता है की दिल को
खुश रखने के लिए ईश्वर की हसीन कल्पना करना कोई बुरी बात नहीं है।
5. "ये एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए"
कवि ने यहाँ किस एहतियात का जिक्र किया है ?
उत्तर- 'बहर' उर्दू कविता में छन्द को कहते हैं। इस गजल में शायर
अपनी बात छन्दों में ही व्यक्त किया है। शायर शोषण भरी शासन-व्यवस्था का विरोध करता
है और वही लोगों को संघर्ष की प्रेरणा भी देता है। परन्तु शासन व्यवस्था कठोर और निर्दयी
होती है। वह शायर का दमन करती है. उनकी जुबान पर पाबंदी अर्थात् अभिव्यक्ति पर पाबंदी
लगा देती है। ऐसी अवस्था मैं शायर को सावधानी रखनी पड़ती है। लोगों को जगाने और शोषण
का विरोध करने जैसे कर्तव्यों को सावधानी से पूरा करना होता है। सावधानी बहर (छन्द)
से नहीं छन्द के रचनाकार अर्थात् शायर को रखनी होती है। अर्थात कवि को समाजिक चेतना
लाने का कार्य बहुत ही सावधानीपूर्वक करना पड़ता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोतर
1. 'साये में धूप' शीर्षक गज़ल का प्रतिपाद्य
क्या है?
अथवा
'साये में धूप' शीर्षक गज़ल में शायर ने क्या
संदेश दिया है?
उत्तर- 'साये में धूप' दुष्यन्त कुमार द्वारा रचित हिन्दी गजल है।
इस गजल का प्रतिपादय है- व्यवस्था में परिवर्तन के लिए संघर्ष करना। कवि बदलाव के पक्ष
में है। व्यवस्था को बदले बगैर लोगों को शोषण से मुक्ति मिलने वाली नहीं है। इसके लिए
हर प्रकार के त्याग-बलिदान के लिए तत्पर रहना होगा। कवि राजनीतिज्ञों के झूठे वादे
पर व्यंग्य करता है कि वह हर घर में चिराग उपलब्ध कराने का वादा करते हैं, परंतु यहाँ
तो शहर में भी चिराग नहीं है। नेताओं ने जनता को आश्वासन दिया था कि हर घर में सुख-सुविधाएँ
उपलब्ध होंगी परंतु आज की तस्वीर कुछ अलग है। पूरा समाज इन सुख-सुविधाओं से वंचित है।
शासकीय उपेक्षा, भ्रष्टाचार और अकुशल तथा अदूरदर्शी नेतृत्व ने भारत की इन आकांक्षाओं
को पूरा नहीं किया है। कवि को दरख्तों के साए में धूप लगती है अर्थात् आश्रयदाताओं
के यहाँ भी कष्ट मिलते हैं। चारों ओर भ्रष्टाचार फैला हुआ है। अतः वह हमेशा के लिए
छोड़कर कहीं दूर जाना चाहता है।
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
भारत की शासन-व्यवस्था जनता के हित में नहीं है। इस व्यवस्था
को बदलने की जरूरत है। कवि का कहना है कि यहाँ के अधिकांश लोग आग्यवादी हैं। वे अभाव
में भी संतुष्ट रहते हैं और अपने अभाव को दूर करने के लिए परिश्रम करने के बजाय चुपचाप
उसे अपनी नियति मान लेते हैं। वे भाग्य का नाम लेकर अपनी अकर्मण्यता छिपा लेते हैं।
अर्थात् भारतीय गरीबी दूर करने के लिए संघर्ष करने के बजाय उसे छिपाने की चेष्टा में
लगे रहते हैं।
लोगों का विश्वास है कि शासन व्यवस्था, में परिवर्तन नहीं
हो सकता। (वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता)। परन्तु कवि इस विश्वास से सहमत
नहीं है। वह लोगों को निहित स्वार्थ तथा दोषपूर्ण व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष करने
के लिए प्रेरित करता है। कवि शोषण के विरोध में उठने वाली जनता की आवाज सुनने के लिए
बेचैन है वह कहता है-आपकी आवाज को असर अवश्य होगा। अर्थात उसकी कविता और जनता कितने
विश्वास से व्यवस्था अवश्य बदलेगी।
शायर का मानना है कि देश को जगाने वाले कवियों की कविता से
अयोग्य शासक घबराते हैं। वे कवियों की जुबान पर पाबंदी लगाना चाहते हैं। अतः कवि को
इस स्थिति के लिए सदैव सावधान और तत्पर रहना होगा। कवि का आशय है कि क्रान्ति का संदेश
देने वाले शायर को शासन की दमनकारी प्रवृत्ति से सतर्क रहना चाहिए तथा लोगों को भी
सावधान करते रहना चाहिए कि वे संगठित होकर निर्भीक भाव से शोषण का विरोध करें। सच्चे
कवि के लिए यह सावधानी बड़ी जरूरी है।
कवि कहता है कि हम अपने बगीचे में जिएँ तो बेशक उसमें उगे
गुलमोहर के लले जिएँ और यदि मरें तो परायों की गौलयों में इसी गुलमोहर के लिए मरें।
तात्पर्य यह है कि हमारा परम कर्तव्य है कि हम अपने देश की समृद्धि और विकास के लिए
अपना जीवन लगा दें। अपने देश की उन्नति के लिए यदि हमें मृत्यु को भी स्वीकार करना
पड़े तो भी हमें अपने कदम पीछे नहीं हटाना चाहिए। दूसरे शब्दों में हम कर सकते हैं
कि मानव जब तक जिंदा है उसे अपने मानवीय मूल्यों की रक्षा की रक्षा करते हुए जीना चाहिए
और जब परायों की गलियों में मरने की नौबत आए तो दूसरों के लिए भी इन्हीं मूल्यों की
रक्षा करते हुए मरे।
2. निम्नलिखित काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या
करें
कहाँ तो तय था चिरागों हरेक घर के लिए,
यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है,
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए।
उत्तर- कठिन शब्दार्थ- हरेक तय निश्चित। चिरागों दीपक। प्रत्येक। मयस्सर उपलब्ध
दरख्त पेड़, साये में छाया में। उम्र भर के लिए हमेशा के लिए, सदैव ।
संदर्भ एवं प्रसंग प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' भाग-एक में
संकलित कवि दुष्यंत कुमार की 'गजल' से लिया गया है। इस काव्यांश में कवि ने आजाद भारत
के कटु यथार्थ का चित्रण किया है। कवि को देश के स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों और
आशाओं को स्वतंत्र भारत में साकार न होते देखकर निराशा हो रही है।
व्याख्या-कवि कहता है कि जब भारत के लोग देश की स्वतन्त्रता के लिए लड़ रहे थे, तो यह निश्चय किया गया था
कि देश में प्रत्येक के घर में दीपक जलाये जायेंगे और सुख समृद्धि का प्रकाश फैलाया
जायेगा। किन्तु आज़ादी के बाद भ्रष्ट राजनीति एवं सामाजिक दुर्व्यवस्था के कारण हर
घर में तो क्या किसी एक शहर में भी चिराग अर्थात् दीपक उपलब्ध नहीं हो पाया। आशय यह
है कि स्वतन्त्रतापूर्व देशवासियों ने अपनी सुख-समृद्धि के जो सपने देखे थे, वे प्रजातन्त्र
में कुशासन के कारण अधूरे रह गए। यहाँ ऐसे दरख्त हैं कि जिनकी छाया धूप से रक्षा नहीं
कर पाती अर्थात् उन वृक्षों की छाया में भी यात्री को धूप की तपन सहनी पड़ती है। ऐसा
स्थान ठहरने योग्य नहीं होता। चलो इसे छोड़कर हमेशा के लिए किसी और स्थान पर चले जायें।
कवि का तात्पर्य है कि भारतीय जनतन्त्र के नेता तथा प्रशासक लोगों का कल्याण करने की
बजाय उनका शोषण कर रहे हैं। उनके शासन में जनता को सुख-शान्तिपूर्ण जीवन बिताने का
अवसर नहीं मिल रहा। कवि निराश होकर पलायन की प्रवृत्ति प्रकट करता है और ऐसे देश को
जहाँ जनता का शोषण और उत्पीडन हो रहा है, उसे त्यागकर सदा-सदा के लिए कहीं और अपना
जीवन व्यतीत करना चाहता है।
3. दुष्यंत कुमार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर- कवि-परिचय- हिंदी साहित्याकाश में दुष्यंत कुमार सूर्य की तरह देदीप्यमान
है। 'गजल' उर्दू की साहित्यिक विधा है। उसको हिन्दी में स्थापित करने का श्रेय दुष्यन्त
कुमार को जाता है। दुष्यन्त कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के राजपुर नवादा
गाँव में सन् 1933 को हुआ था। इनका मूल नाम दुष्यंत कुमार त्यागी था। आजौविका के लिए
दुष्यन्त ने आकाशवाणी तथा मध्यप्रदेश के राजभाषा विभाग में नौकरी की थी। दुष्यन्त का
देहावसान अल्पायु में ही सन् 1975 में हो गया था, किन्तु इस छोटे से जीवन की साहित्यिक
उपलब्धियों कम नहीं हैं।
रचनाएँ - दुष्यन्त कुमार की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-सूर्य का स्वागत', 'आवाजों
के घेरे, 'साये में धूप, 'जलते हुए वन का वसंत उनके काव्य-यन्थ हैं। 'एक कंठें विषपायी'
शीर्षक उनका गीति-नाट्य एक महत्त्वपूर्ण कृति है। उन्होंने 'छोटे-छोटे सवाल', 'आँगन
में एक वृक्ष' तथा 'दोहरी जिंदगी' शीर्षक उपन्यासों की भी रचना की है।
साहित्यिक परिचय- दुष्यंत कुमार की साहित्यिक उपलब्धियाँ अद्भुत हैं। इनका साहित्यिक जीवन इलाहाबाद में औरंभ हुआ । वे वहाँ 'परिमल' नामक साहित्यिक संस्था की गोष्ठियों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे। 'नए पत्ते' नामक महत्त्वपूर्ण पत्र से भी दुष्यन्त जुड़े हुए थे। समकालीन हिंदी कविता विशेषकर हिंदी गज़ल के क्षेत्र में जो लोकप्रियता है दुष्यंत कुमार को मिली वो दशकों के बाद विरले ही किसी कवि को नसीब होती है। उनकी गज़लों ने हिंदी गज़ल को नया आयाम दिया, उसे हर आम आदमी की संवेदना से जोड़ा । उनके काव्य में सामाजिक यथार्थ तथा शोषितों के हितों के लिए प्रतिबद्धता व्यंजित हुई है। साहित्यिक गुणवत्ता से समझौता न करके भी कवि ने खूब लौकप्रियता अर्जित की है। साहित्यिक एवं राजनैतिक गोष्ठियों में उनके शेर लोकोक्तियों की तरह दुहराए जाते हैं। दुष्यंत एक कालजयी कवि हैं और ऐसे कवि समय काल में परिवर्तन होने के बाद भी प्रासंगिक रहते हैं। दुष्यंत के लेखन का स्वर संसद से सड़क तक गूँजता है।