सीमावर्ती राजवंशों का अभ्युदय
पाल वंश
➤ पाल
वंश की स्थापना (750 ई.) कुछ प्रमुख व्यक्तियों द्वारा चुने गये (ग्रहीता) बौद्ध अनुयायी
गोपाल (750-770 ई.) ने की थी।
➤ इस
वंश की राजधानी मुंगेर थी।
➤ तिब्बती
लामा एवं इतिहासकार तारानाथ के अनुसार गोपाल ने ओदन्तपुरी में एक मठ और विश्वविद्यालय
की स्थापना की।
➤ पाल
वंश के प्रमुख शासक थे- धर्मपाल (770-810 ई.), देवपाल (810-850 ई.), नारायणपाल
(860-915 ई.), महिपाल - 1 (988-1038 ई.), नयपाल (1038-1055 ई.) आदि।
➤ पाल
वंश का सबसे महान शासक धर्मपाल था। उसने बहुत से मठ एवं विहार का निर्माण करवाया था।
धर्मपाल ने प्रसिद्ध विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना पाथरघाट, भागलपुर (बिहार)
में की थी। उसने नालंदा विश्वविद्यालय के खर्च के लिए भी 200 गाँव दान में दिया था।
➤ कन्नौज
के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष पाल वंश, गुर्जर-प्रतिहार वंश एवं राष्ट्रकूट वंश के बीच
हुआ। इसमें पाल वंश की ओर से सर्वप्रथम धर्मपाल शामिल हुआ था।
➤ 11 वीं शताब्दी
के गुजराती कवि सोड्ठल ने धर्मपाल को उत्तरापथस्वामिन की उपाधि से सम्बोधित किया था।
➤ धर्मपाल का पुत्र
एवं उत्तराधिकारी देवपाल इस वंश का सर्वाधिक प्रतापी शासक था। इसने अपने समकालीन अनेक
शासकों को पराजित किया। पराजित शासकों में सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रतिहार शासक मिहिरभोज
था।
➤ अरब यात्री सुलेमान
ने देवपाल को राष्ट्रकूट एवं प्रतिहार शासकों में सबसे अधिक शक्तिशाली बताया है।
➤ पालों की राजधानी
मुंगेर की स्थापना देवपाल ने ही की थी।
➤ देवपाल के काल में
ही जावा के शैलेन्द्र वंश के बलपुत्र देव ने नालंदा में एक बौद्ध मठ की स्थापना की
जिसके खर्च हेतु देवपाल ने पाँच गाँव दान में दिये।
➤ महिपाल - । को पाल
वंश का द्वितीय संस्थापक कहा जाता है।
➤ महिपाल के उत्तराधिकारी
नयपाल का अधिकांश समय कलचुरी नरेश कर्ण के साथ संघर्ष में ही बीता। पाल वंश के शासक
बौद्ध मतानुयायी थे। उन्होंने ऐसे
समय बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया जब भारत में उसका पतन हो रहा था।
➤ इस काल के प्रमुख
विद्वानों में संध्याकर नंदी का नाम उल्लेखनीय है जिन्होंने रामचरित नामक ऐतिहासिक
काव्यग्रन्थ की रचना की। इस ग्रन्थ में पाल वंश के राजा रामपाल (1077-1120 ई.) और कैवर्त्त
जाति के किसानों के मध्य संघर्ष का वर्णन है। • गौड़ीरीति नामक साहित्यिक विधा पालों
की समय ही विकसित हुई।
➤ पाल काल के अन्य
विद्वानों में हरिभद्र चक्रपाणिदत्त और वज्रदत्त आदि उल्लेखनीय हैं। सेन वंश
➤ सेन वंश की स्थापना
सामंत सेन ने राढ़ में की थी।
➤ इसकी राजधानी नदिया
(लखनौती) थी।
➤ सेन वंश के प्रमुख
शासक थे- विजयसेन (1095-1158 ई.), बल्लालसेन (1158-1178 ई.) एवं लक्ष्मण सेन
(1178-1205 ई.) ।
➤ विजयसेन सेनवंश
का प्रथम स्वतन्त्र एवं पराक्रमी शासक था। वह शैव धर्म का अनुयायी था।
➤ देवपाड़ा में प्रद्युम्नेश्वर
मंदिर (शिव का मंदिर) की स्थापना विजयसेन ने ही की थी।
➤ विजयसेन के उत्तराधिकारी
बल्लाल सेन ने अपने राजनीतिक क्षेत्र का विस्तार किया।
लघुभारत एवं बल्लालचरित ग्रन्थ के उल्लेख से प्रमाणित होता है कि बल्लाल का अधिकार
मिथिला और उत्तरी बिहार पर था। इसके अतिरिक्त बल्लाल सेन के अन्य चार प्रांत-राधा,
वारेन्द्र, बाग्डी एवं वंगा थे।
➤ बल्लाल सेन कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ योग्य लेखक भी था।
उसने स्मृति पर दानसागर एवं खगोल विज्ञान पर अद्भुतसागर नामक ग्रन्थ की रचना की थी।
अद्भुतसागर को लक्ष्मण सेन ने पूर्णरूप दिया था।
➤ अपने शासन काल में बल्लालसेन ने जाति प्रथा एवं कुलीन प्रथा
को प्रोत्साहन दिया।
➤ लक्ष्मण सेन भी सेन वंश का महत्त्वपूर्ण शासक था। इसके काल में
1202 ई. में इख्तयारूद्दीन बख्तियार खिलजी ने राजधानी लखनौती पर आक्रमण कर उसे नष्ट
कर दिया था।
➤ लक्ष्मण सेन का काल सांस्कृति गतिविधियों के लिए जाना जाता है।
इसके दरबार में गीतगोविंद के लेखक जयदेव, पवनदूत के लेखक धोयी एवं ब्राह्मणसर्वस्व
के लेखक हलायुद्ध रहते थे।
➤ हलायुद्ध लक्ष्मणसेन का प्रधान न्यायाधीश एवं मुख्यमन्त्री था।
➤ सेन राजवंश प्रथम राजवंश था, जिसने अपना अभिलेख सर्वप्रथम हिन्दी
में उत्कीर्ण करवाया।
➤ लक्ष्मण सेन बंगाल का अंतिम हिन्दू शासक था। उसके बाद विश्वरूप
सेन तथा केशवसेन ने कमजोर उत्तराधिकारी के रूप में शासन किया।
कश्मीर के राजवंश
➤ कश्मीर के हिन्दू राज्य के विषय में हमें कल्हण की राजतरंगिणी
से जानकारी मिलती है।
➤ 800 से 1200 ई. के मध्य कश्मीर में तीन राजवंशों- कर्कोट वंश, उत्पल वंश एवं लोहार वंश ने शासन किया।
कर्कोट वंश
➤ 7वीं शताब्दी (627 ई०) में दुर्लभवर्धन ने कश्मीर में कर्कोट
वंश की स्थापना की।
➤ कर्कोट वंश के प्रमुख शासकों में दुर्लभक (632-682 ई.), ललितादित्य
मुक्तापीड (724-770 ई.) एवं जयापीड विनयादित्य (770-810 ई.) का नाम उल्लेखनीय है।
➤ दुर्लभक, दुर्लभवर्धन का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। उसने प्रतापादित्य
की उपाधि धारण कर सिंहासन ग्रहण किया। प्रतापपुर नगर की स्थापना दुर्लभक द्वारा की
गयी।
➤ दुर्लभक के तीन पुत्रों का क्रम इस प्रकार था-चन्द्रपीड, तारापीड
एवं मुक्तापीड अथवा ब्रजादित्य, उदयादित्य एवं ललितादित्य। इन तीनों में तारापीड को
कल्हण ने क्रूर शासक बताया है।
➤ ललितादित्य मुक्तापीड कर्कोट वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक
था। उसने अपने समकालीन अनेक राजाओं को पराजित किया।
➤ विजेता होने के साथ-साथ ललितादित्य मुक्तापीड एक महान निर्माता
भी था। धार्मिक दृष्टि से उदार होने के कारण उसने अनेक बौद्ध मठों एवं हिन्दू मंदिरों
का निर्माण करवाया था। उसके महत्त्वपूर्ण निर्माण-कार्यों में सूर्य का प्रसिद्ध मर्तण्ड
मंदिर शामिल था।
➤ जयापीड विनयादित्य के राजदरबार को क्षीर, उद्भट भट्ट एवं दामोदर
गुप्त आदि विद्वान सुशोभित करते थे।
➤ जयापीड विनयादित्य की मृत्यु (810 ई.) के साथ ही कर्कोट वंश
का अंत हो गया।
उत्पल वंश
➤ कश्मीर में उत्पल वंश की स्थापना अवन्ति वर्मन ने की थी।
➤ उत्पल वंश के प्रमुख शासक थे- अवन्ति वर्मन (855-883 ई.), शंकर
वर्मन (885-902 ई.) एवं गोपाल वर्मन (902-904 ई.) ।
➤ अवन्ति वर्मन का अधिकांश समय लोकोपकारी कार्यों में व्यतीत हुआ।
उसने कृषि के विकास के लिए अभियंता (Engineer) सुरा के नेतृत्व में अनेक नहरों का निर्माण
करवाया।
➤ नगरों एवं कस्बों के निर्माण के अंतर्गत अवन्ति वर्मन ने अवन्तिपुर
नामक नगर एवं सुच्चापुरा (आधुनिक सोपार) नामक कस्बे का निर्माण करवाया।
➤ अवन्ति वर्मन के संरक्षण में दो कवि रत्नाकर एवं आनंद वर्धन
उसके दरबार की शोभा बढ़ाते थे।
➤ लगातार युद्धों के कारण हुए धनाभाव की पूर्ति हेतु शंकर वर्मन
ने अपनी प्रजा पर करों का बोझ बढ़ा दिया था। अतः वह एक अलोकप्रिय शासक हो गया था।
➤ गोपाल वर्मन के शासन काल में कश्मीर में चारों ओर अव्यवस्था
एवं अशान्ति की स्थिति व्याप्त हो गयी। ब्राह्मणों की एक सभा ने इसे पच्युत कर यशस्कर
को शासक बनाया। यशस्कर के काल में कश्मीर में शान्ति-व्यवस्था की स्थिति पुनः बहाल
हो सकी।
➤ 948 ई. में यशस्कर की मृत्यु के बाद उसका मन्त्री पूर्वगुप्त
सिंहासनरूढ़ हुआ।
➤ पूर्वगुप्त का पुत्र एवं उत्तराधिकारी क्षेमगुप्त 950 ई. में
कश्मीर की गद्दी पर बैठा। क्षेमगुप्त ने लोहार वंश की राजकुमारी दिद्दा से विवाह किया।
➤ क्षेमगुप्त की मृत्यु के बाद लोहार वंश की रानी दिद्दा ने शासन
की बागडोर सम्भाली।
लोहार वंश
➤ रानी दिद्दा की मृत्यु (1003 ई.) के बाद उसके भतीजे संग्रामराज
ने कश्मीर में लोहार वंश की स्थापना की।
➤ संग्राम राज के बाद लोहार वंश के प्रमुख शासक थे- अनन्त, हर्ष
एवं जयसिंह।
➤ अनन्त ने अपने शासन काल में सामंतों के विद्रोह को कुचला। उसके
प्रशासन में उसकी पत्नी सूर्यमती सहयोग करती थी।
➤ हर्ष का काल सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए जाना जाता है।
➤ हर्ष स्वयं विद्वान, कवि एवं कई भाषाओं एवं विद्याओं का जानकार
था। राजतरंगिणी का लेखक कल्हण हर्ष का आश्रित था।
➤ लोहार वंश का अंतिम शासक जयसिंह (1128-1155 ई.) था। अपने शासन
काल में उसने यवनों को परास्त किया था।
➤ जयसिंह के समय में ही कल्हण ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ राजतरंगिणी
की रचना की थी। संस्कृत भाषा के इस ग्रन्थ से कश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी
मिलती है।
➤ जयसिंह के शासन के साथ ही कल्हण की राजतरंगिणी का विवरण समाप्त
हो जाता है।
➤ 1339 ई. में कश्मीर तुर्कों के कब्जे में आ गया। तुर्क शासकों में सर्वाधिक लोकप्रिय शासक जैन-उल-आबेदीन था।
कामरूप (असम) का वर्मन वंश
➤ कामरूप में वर्मन वंश का उदय चौथी शताब्दी के मध्य हुआ।
➤ इस वंश का प्रथम प्रतिष्ठित शासक पुष्यवर्मन था।
➤ पुष्यवर्मन ने प्राग्यज्योतिषपुर को अपनी राजधानी बनाया था।
➤ भूतिवर्मन के शासन काल में वर्मन वंश की राजनैतिक प्रभुसत्ता
का विकास हुआ।
➤ इस वंश का अंतिम महान शासक भास्कर वर्मन था। उसने कन्नौज के
शासक हर्ष से मित्रता की। इसके विषय में चीनी यात्री ह्वेनसांग के विवरण से जानकारी
मिलती है।
➤ भास्कर वर्मन के बाद वर्मन वंश का अंत हो गया तथा कालांतर में
कामरूप पाल-साम्राज्य का एक अंग बन गया।
ओडिशा के पूर्वी गंग
➤ पूर्वी गंग वंश का सर्वाधिक प्रतापी शासक अनन्तवर्मा चोदगंग/चोड़गंज
(1076-1148 ई.) था।
➤ चोड़गंग ने पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करवाया।
पुरी स्थित यह मंदिर एक विष्णु मंदिर है।
➤ पूर्वी गंग शासक नरसिंह। ने प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर का
निर्माण करवाया।
➤ पूर्वी गंग वंश के शासकों ने उत्तरी भारत के मुसलमानों और दक्षिण
के बहमनी सुल्तानो के आक्रमण से ओडिशा व जाजनगर की रक्षा का अंतिम समय तक प्रयत्न किया,
फिर भी 14वीं शताब्दी में ओडिशा पर मुसलमानों ने आधिपत्य स्थापित कर लिया।