सामान्य ज्ञान इतिहास-मौर्योत्तरकालीन भारत पर विदेशी आक्रमण

सामान्य ज्ञान इतिहास-मौर्योत्तरकालीन भारत पर विदेशी आक्रमण

सामान्य ज्ञान इतिहास-मौर्योत्तरकालीन भारत पर विदेशी आक्रमण

मौर्योत्तरकालीन भारत पर विदेशी आक्रमण

पश्चिमोत्तर भारत में विदेशियों का आक्रमण सम्भवत: मौर्योत्तर काल की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना थी।

➤ भारत पर आक्रमण करने वाले इन विदेशी आक्रमणकारियों का क्रम है- हिन्द-यूनानी शक पहल्‌व कुषाण । हिन्द-यूनानी/बैक्ट्रियाई यूनानी

➤ सेल्यूकस के द्वारा स्थापति पश्चिमी तथा मध्य एशिया के विशाल साम्राज्य को इसके उत्तराधिकारी ऐन्टिओकास –I ने अक्षुण्ण बनाये रखा।

➤ एन्टिओकस-II के शासन काल में विद्रोह के फलस्वरूप उसके अनेक प्रांत स्वतन्त्र हो गये।

➤ बैक्ट्रिया के विद्रोह का नेतृत्व डियोडोट्‌स-I ने किया था। बैक्ट्रिया पर डियोडोट्‌स-Iके साथ शासन करने वाले राजाओं के नाम हैं- डियोडोट्‌स-II, यूथिडेमस, डेमिट्रियस, मिनेण्डर, यूक्रेटाइडस, एण्टी आलकीडस तथा हर्मिक्स।

➤ भारत पर सबसे पहला आक्रमण बैक्ट्रिया के शासक डेमिट्रियस ने किया। सम्भवत: सिकंदर के बाद डेमिट्रियस ही पहला यूनानी शासक था जिसकी सेनाएँ भारतीय सीमा में प्रवेश पा सकी।

➤ डेमिट्रियस के अभियान की पुष्टि महाभाष्य, गार्गीसंहिता एवं मालविकाग्निमित्रम से होती है।

➤ डेमिट्रियस एक बड़ी सेना के साथ लगभग 183 ई.पू. में हिन्दूकुश पहाड़ी को पार कर सिन्ध और पंजाब पर अधिकार कर लिया। इसने साकल को अपनी राजधानी बनाया। साकल की पहचान वर्तमान सियालकोट से की गयी है। इस प्रकार डेमिट्रियस ने पश्चिमोत्तर भारत में इंडो-यूनानी सत्ता की स्थापना की। उसने भारतीय राजाओं की उपाधि धारण कर यूनानी तथा खरोष्ठी लिपि में सिक्के चलाये। डेमिट्रियस को हिन्द-यूनानी या बैक्ट्रियाई यूनानी कहा गया है।

➤ हिन्द-यूनानी शासकों में सबसे प्रसिद्ध मेनांडर/मिनान्दर (165-145 ई.पू.) था। इसकी राजधानी शाकल शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। यह मिलिन्द नाम से भी जाना जाता था।

➤ मेनांडर ने नागसेन (नागार्जुन) नामक बौद्ध भिक्षु से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।

➤ मेनांडर के प्रश्न एवं नागसेन द्वारा दिये गये उत्तर मिलिन्दपञ्हो नामक पुस्तक में संकलित है। मिलिन्दपन्हो अर्थात्‌ मिलिन्द के प्रश्न या मिलिन्दप्रश्न में मेनांडर एवं बौद्ध भिक्षु नागसेन के मध्य सम्पन्न वाद-विवाद एवं उसके परिणामस्वरूप मेनांडर के बौद्ध धर्म स्वीकार करने की कथा वर्णित है।

➤ हिन्द-यूनानी भारत के पहले शासक हुए जिनके जारी किये गये सिक्के के बारे में निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि सिक्के किन-किन राजाओं के हैं।

➤ भारत में सबसे पहले हिन्द-यूनानियों ने ही सोने के सिक्के जारी किये, जिनकी मात्रा कुषाणों के शासन में बढ़ी।

➤ हिन्द-यूनानी शासकों ने भारत के पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में यूनान की प्राचीन कला चलाई जिसे हेलेनिस्टिक आर्ट कहते हैं। यह कला सिकंदर की मृत्यु के बाद विजित गैर-यूनानियों के साथ यूनानियों के सम्पर्क से उदित हुई थी। भारत में गंधार कला इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।

मौर्योत्तर विदेशी आक्रमणकारियों के भारतीय संस्कृत साहित्य में नाम

क्र. स.

विदेशी आक्रमणकारी के नाम

 भारतीय नाम

1.

बैक्ट्रियन

यवन

2.

सीथियन

शक

3.

पार्थियन

पहल्‌व

4.

यूची

कुषाण

शक

➤ यूनानियों के बाद शक आये। यूनानियों ने भारत के जितने भाग पर कब्जा किया था उससे कहीं अधिक भाग पर शकों ने किया।

➤ शकों की पाँच शाखाएँ थीं और प्रत्येक शाखा की राजधानी भारत और अफगानिस्तान में अलग-अलग भागों में थीं।

➤ शकों की पहली शाखा ने अफगानिस्तान में, दूसरी शाखा ने पंजाब (राजधानी तक्षशिला) में, तीसरी शाखा ने मथुरा में, चौथी शाखा ने पश्चिमी भारत में एवं पाँचवीं शाखा ने ऊपरी दक्कन पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया।

➤ शक मूलत: मध्य एशिया के निवासी थे और चरागाह की खोज में भारत आये थे।

➤ शकों को न तो भारत के शासकों का और न जनता का ही प्रतिरोध झेलना पड़ा। कहा जाता है कि लगभग 58 ई.पू. में उज्जैन में एक स्थानीय राजा ने शकों से युद्ध कर उन्हें पराजित किया और उन्हें बाहर खदेड़ने में सफल हो गया। वह अपने को विक्रमादित्य कहता था।

➤ विक्रम संवत्‌ नाम का एक नया संवत्‌ 57 ई.पू. में शकों पर विजय से आरंभ हुआ। तब से विक्रमादित्य एक लोकप्रिय उपाधि हो गया, उँची प्रतिष्ठा और सत्ता का प्रतीक बन गया। इस प्रथा का परिणाम यह हुआ कि भारतीय इतिहास में विक्रमादित्यों की संख्या 14 तक पहुँच गयी है। गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त –II सबसे अधिक विख्यात विक्रमादित्य था।

➤ शकों ने भारत के कई भागों में अपना-अपना राज्य स्थापित किया, लेकिन जिन्होंने पश्चिम में राज्य स्थापित किया उन्होंने कुछ लंबे अरसे (लगभग चार सदी तक) तक शासन किया।

➤ शकों की इस शाखा (पश्चिमी शाखा) को गुजरात में चल रहे समुद्री व्यापार से काफी लाभ पहुँचा। इन्होंने भारी संख्या में चाँदी के सिक्के जारी किये।

➤ शकों का सबसे प्रतापी शासक रूद्रदामन –I (130-150 ई.) था। उसका शासन न केवल सिंध में बल्कि कोंकण, नर्मदा घाटी, मालवा, काठियावाड़ और गुजरात के एक बड़े भाग पर था।

➤ रूद्रदामन –I इतिहास में इसलिए प्रसिद्ध है कि उसने काठियावाड़ के अर्धशुष्क क्षेत्र की मशहूर झील सुदर्शन सर का जीर्णोद्धार किया। यह झील मौर्यों के समय निर्मित हुई थी।

➤ रूद्रदामन –I संस्कृत का बड़ा प्रेमी था। उसने ही सबसे पहले विशुद्ध संस्कृत भाषा में लंबा अभिलेख जारी किया। इसके पहले के जो भी लंबे अभिलेख भारत में पाये गये हैं, सभी प्राकृत भाषा में रचित हैं।

➤ भारत में शक शासक अपने को क्षत्रप कहते थे। पह्‌लव

➤ पश्चिमोत्तर भारत में शकों के आधिपत्य के बाद पार्थियाई (पह्‌लव) लोगों का आधिपत्य हुआ।

➤ पह्‌लव लोगों का मूल निवास स्थान ईरान में था।

➤ यूनानियों और शकों के विपरीत, पह्‌लव लोग ईसा की पहली सदी में पश्चिमोत्तर भारत के एक छोटे से भाग पर ही सत्ता जमा सके।

➤ पह्‌लव शासकों में सबसे प्रसिद्ध गोन्दोफिर्नस था। कहा जाता है कि उसके शासन काल में सेंट टॉमस नामक ईसाई धर्म प्रचारक भारत में ईसाई धर्म के प्रचार हेतु आया था।

कुषाण

➤ पह्‌लवों के बाद कुषाण आये, जो यूची और तोखारी भी कहलाते हैं।

➤ कुषाण, यूची नामक कबीला जो पाँच कुलों में बँट गया था, उन्हीं में से एक कुल के थे।

➤ कुषाण वंश का संस्थापक कुंजुल कडफिसेस (कडफिसेस –I ) था।

➤ हम कुषाणों के दो राजवंश पाते हैं जो एक के बाद एक आये।

➤ कुषाणों के पहले राजवंश की स्थापना कडफिसेस-I ने की। इस राजवंश में दो राजा हुए, पहला कडफिसेस-Iऔर दूसरा कडफिससे –II

➤ कडफिसेस-I ने हिन्दूकुश के दक्षिण में सिक्के चलाये। उसने रोमन सिक्कों की नकल करके ताँबे के सिक्के ढलवाये। कडफिसेस-Iने बड़ी संख्या में स्वर्ण-मुद्राएँ जारी की और अपना राज्य सिंधु नदी के पूरब में फैलाया।

➤ कुषाण वंश का सबसे प्रतापी राजा कनिष्क था। कनिष्क राजवंश कुषाणों का दूसरा वंश था।

➤ कनिष्क की पहली राजधानी पुरुषपुर या पेशावर में थी, जहाँ कनिष्क ने एक मठ और एक विशाल स्तूप का निर्माण करवाया था। कुषाणों की द्वितीय राजधानी मथुरा थी।

➤ कनिष्क सर्वाधिक विख्यात कुषाण शासक था। इतिहास में दो कारणों से उसका नाम है। पहला, उसने 78 ई. में शक संवत्‌ चलाया जो भारत सरकार द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। दूसरा, उसने बौद्ध धर्म का मुक्त हृदय से सम्पोषण-संरक्षण किया।

➤ कनिष्क के समय में कश्मीर (कुंडलवन) में बौद्धों का चौथा सम्मेलन आयोजित हुआ जिसमें बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय को अंतिम रूप दिया गया। इस सम्मेलन के अध्यक्ष वसुमित्र एवं उपाध्यक्ष अश्वघोष थे।

➤ चौथे सम्मेलन में ही बौद्ध धर्म दो भागों- हीनयान और महायान में बँट गया। इस सम्मेलन में नागार्जुन एवं पार्श्व भी शामिल हुए। इसी सम्मेलन में तीनों पिटकों पर टीकाएँ लिखी गयी जिनको महाविभाष नाम की पुस्तक में संकलित किया गया। महाविभाष को बौद्ध धर्म का विश्वकोष कहा जाता है।

➤ कनिष्क बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय का अनुयायी था।

➤ आरंभिक कुषाण शासकों ने भारी संख्या में स्वर्ण मुद्राएँ जारी कीं, जिनकी शुद्धता गुप्त काल की स्वर्ण मुद्राओं से उत्कृष्ट है।

➤ कनिष्क कला और विद्वता का आश्रयदाता था। इसके दरबार का सबसे महान साहित्यिक व्यक्ति अश्वघोष था। अश्वघोष की रचनाओं की तुलना महान मिल्टन, गेटे, कांट एवं वॉल्टेयर से की गयी है। अश्वघोष ने बुद्धचरित, सौन्दरनंद, सारिपुत्रप्रकरण एवं सूत्रालंकार की रचना की। बुद्धचरित को बौद्ध धर्म का महाकाव्य कहा जाता है। बुद्धचरित की तुलना वाल्मीकि के रामायण से की जाती है।

➤ कनिष्क के दरबार में एक अन्य विभूति नागार्जुन दार्शनिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक भी था। इसकी तुलना मार्टिन लूथर से की जाती है। इसे भारत का र्आइंसटाइन कहा गया है। नागार्जुन ने अपनी पुस्तक माध्यमिक सूत्र में सापेक्षता के सिद्धान्त को प्रस्तुत किया।

➤ कनिष्क के दरबार में राजवैद्य और आयुर्वेद चिकित्सक चरक रहता था। चरक ने औषधि पर चरक संहिता की रचना की।

➤ कनिष्क की मृत्यु 102 ई. में हुई थी।

➤ कुषाण वंश का अंतिम शासक वासुदेव था। यह विष्णु एवं शिव का उपासक था।

➤ गंधार शैली एवं मथुरा शैली का विकास कनिष्क के शासन काल में हुआ था।

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