9.पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह (Flow of Energy in Ecosystem)
प्रश्न : पारिस्थितिकी तंत्र में वायुमण्डल
के माध्यम से ऊर्जा के प्रवाह एवं उसके उपभोग की व्याख्या कीजिये।
☞ "पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह
एकमार्गीय और लगातार होता है।" तर्कपूर्ण उत्तर दें।
☞ पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा के प्रवाह से
आप क्या समझते हैं? ऊर्जा के प्रवाह पर सम्यक रूप से प्रकाश डालिये।
उत्तर : अधिकांश जीवों के लिए ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत सूर्य
है। सूर्य ही ऊर्जा का अंतिम स्रोत भी है। सच तो यह है कि पृथ्वी पर जीवन का पोषण करनेवाला
स्त्रोत सूर्य ही है और वही ऊर्जा का भी मुख्य स्रोत है।
सौर्य विकिरण अंतरिक्ष के माध्यम से पृथ्वी पर पहुँचता है।
सौर्य विकिरण तरंगों के रूप में पृथ्वी पर आता है। इन तरंगों की लम्बाई 0.03 Å से लेकर
कई किलोमीटर तक लम्बी होती है लेकिन सौर्य विकिरण का एक अरब का मात्र 1/50 वाँ भाग
(1/50 millionth) ही पृथ्वी के वायुमण्डल में पहुँच पाता है। सौर्य विकिरण का इतना
न्यून भाग भी पृथ्वी के लिए बहुत अधिक है। पृथ्वी के ऊपरी वायुमण्डल में यह ऊर्जा लगभग
1732 वाट/मीटर है। लेकिन बायुमण्डल से यह समस्त ऊर्जा पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाती। इसमें
से आधी से अधिक ऊर्जा या तो वापस लौट जाती है या वायुमण्डलीय बादलों, धूलकणों और गैसों
के द्वारा सोख ली जाती है। विशेषकर हानिकारक लघुतंरग विकिरण वायुमण्डलीय गैसों द्वारा
छन जाते हैं, जैसे; ओजोन का आच्छादन इसे छान डालता है। शेष बचा हुआ विकिरण का अंश अर्थात्
लगभग 50% पृथ्वी तक पहुँच पाता है। ऊर्जा की इस कमी के बावजूद सूर्य जैवमण्डल के कामभर
के लिए पर्याप्त ऊर्जा उपलब्ध कराता रहता है।
पृथ्वी पर पहुँचने वाला सौर्य विकिरण का 10% पराबैंगनी विकिरण
है, 45% दृश्य बिकिरण है और 45% अवरक्त (infrared) विकिरण है। इनमें अधिकांश विकिरण
पृथ्वी या जल द्वारा अवशोषित होते हैं अथवा बर्फ, जल या भूपृष्ठों के माध्यम से अंतरिक्ष
में प्रत्यावर्त्तित हो जाते हैं। सौभाग्य से ऊर्जा का कुछ भाग जीवों (विशेषकर प्राथमिक
उत्पादकों) द्वारा प्रकाश-संश्लेषण के माध्यम से ग्रहण कर लिये जाते हैं। इसका उपयोग
वे कार्बनिक पदार्थों के उत्पादन के लिए करते हैं। यह प्रक्रम हमारे लिए वरदान स्वरूप
है। यह तथ्य उल्लेखनीय है कि प्रकाश-संश्लेषण केवल दृश्य प्रकाश क्षेत्र की तरंगों
का ही उपयोग करता है।
प्रकाश-संश्लेषण का समीकरण निम्नवत् है-
प्राथमिक उत्पादकों द्वारा उत्पादित कार्बनिक पदार्थों का पारिस्थितिक में रूपांतरण होता रहता है। पौधे शाकाहारी जीवों द्वारा खाये जाते हैं। शाकाहारी जीवों की भोजन के रूप में मांसाहारी खाते हैं। इस प्रकार खाद्य के रूप में ऊर्जा एक जीव से दूसरे जीव में परस्पर अंतरित (transferred) होती रहती है। इस प्रकार ऊर्जा का यह एकमार्गीय प्रवाह जीव-मण्डल की प्रणाली के माध्यम से लगातार चलता रहता है। जीवों के द्वारा भोजन के रूप में सौर्य ऊर्जा का उपभोग होता है। सौर्य ऊर्जा का रूपांतरण 'ऊष्मा गतिकी' (thermodynamics) के सिद्धान्न के अनुरूप होता है। ऊष्मा गतिकी के प्रथम सिद्धान्त के अनुसार कर्जा का सृजन नहीं किया जा सकता और न ही इसे नष्ट किया जा सकता है परन्तु इसका रूपांतरणा संभव है। ऊष्मागतिकी के दूसरे सिद्धान्त के अनुसार ऊर्जा के एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित रूप शत-प्रतिशत सक्षम नहीं होता। इस प्रक्रम को निम्नलिखित रूप में समझा जा सकता है-
प्रत्येक दिन की औसत आपतित ऊर्जा 3,000 Kcal/ मीटर / दिन
होती है। इस ऊर्जा का आपतन ऐसे क्षेत्रों में भी हो सकता है, जहाँ उत्पादक उपलब्ध न
हों। इस तरह 50% ऊर्जा का ह्रास हो जाता है और केबल 1,500 kcal/मीटर/दिन पारिस्थितिकी
तंत्र द्वारा अवशोषित होती है। इस ऊर्जा में से एक बड़ा अंश पौधों द्वारा अन्य प्रयोजनों,
जैसे ऊष्मा के हांस (उत्सर्जन) और वाहन के लिए उपयोग में लाया जाता है। इस तरह ऊर्जा
का एक बहुत छोटा भाग हो कार्बनिक पदार्थों के रूप में रूपांतरित हो पाता है। सभी उत्पादित
कार्बनिक पदार्थ तुरत उपलब्ध नहीं हो जाते क्योंकि इनमें से कुछ का ह्रास श्वसन द्वारा
हो जाता है जबकि अवशेषांश कुल जैवभार (बायोमास) के उत्पादन के बराबर होता है। पृथ्वी
की पारिस्थितिकी इस तरह की प्राप्त ऊर्जा लगभग 15 kcal/मीटर2/ प्रतिदिन होती है।
श्वसन का समीकरण इस प्रकार है-
इस
प्रकार कुल आपतित ऊर्जा का लगभग 1% ऊर्जा अवशोषित हो जाती है। जीवन का मूल आधार है।
बॉयोमास मात्र 0.5% प्रतिशत ही होता है और ऊर्जा का यह लघवांश ही वास्तव में इस ग्रह
पर
ऊर्जा
के प्रवाह प्रक्रम में यह लक्ष्य किया गया है कि पौधे रासायनिक ऊर्जा प्रकाश संश्लेषण
द्वारा प्राप्त करते हैं। यह ऊर्जा उनमें कार्बनिक पदार्थों के रूप में संग्रहीत हो
जाती है। यही ऊर्जा पौधों के पिण्ड Biomass की वृद्धि का भी कारण बनती है। पादपों में
संग्रहीत कार्बनिक पदार्थ का कुछ अंश श्वसन के क्रम में विच्छेदित हो जाता है और उसका
अल्पांश कोशिकाओं में होनेवाले संश्लेषण आदि क्रियाओं के उपयोग में काम आता है शेष
बचा अंश ऊष्मा के रूप में बदल जाता है। खाद्य-श्रृंखला में पौधों में निहित संश्लिष्ट
खाद्य को प्राथमिक उपभोक्ता अपना आहार बनाते हैं। शाकाहारी उपभोक्ताओं (जैवों) में
खाद्य रूप में प्राप्त कार्बनिक पदार्थ का कुछ अंश ही उनके शरीर में टिक पाता है और
उसका शेष बड़ा भाग तो श्वसन के उत्सर्जन के रूप में नष्ट हो जाता है। जो ऊर्जा ताप
या ऊष्मा के रूप में जीवों के शरीर से उत्सर्जित होती है, वह अंतरिक्ष में विलीन हो
जाती है। अतः खनिजों (पोषकों) के चक्रीकरण के विपरीत ऊर्जा का प्रवाह एकदिशीय ही रहता
है। यह ऊर्जा जीवों के शरीर में रवतंत्र रूप में न होकर कार्बनिक पदार्थों के रूप में
वाहित विभिन्न पोषण स्तरों मे प्रवाहित होती रहती है। प्रत्येक स्तर पर लगभग 90% ऊर्जाश
बर्बाद हो जाता है। ऊर्जा का यह हास पारिस्थितिकी तंत्र में उपस्थित पोषक स्तरों की
मात्र या संख्या को सीमित करता रहता है।
खाद्य-श्रृंखला
में विभिन्न पोषक स्तरों में पौधों के द्वारा जो ऊर्जा का प्रवाह होता है, उसे धारा,
वाहिका (channel) या पृष्ट-सर्पी वाहिका (grazing channels) कहते हैं। प्रथम उत्पादकों
में यह धारा दो दिशाओं में प्रवाहित होती है। प्राथमिक उत्पादों अर्थात् पादपों के
शरीर का कुछ अंश पतझड़ के प्रभाव के कारण नष्ट हो जाता है। प्राथमिक एवं द्वितीय उत्पादकों
के मृत शरीर को लघु उपभोक्ता (सूक्ष्म जीवाणु) अर्थात् decomposers अपघटित करते रहते
हैं। इस प्रकार प्राथमिक एवं द्वितीय उत्पादकों में ऊर्जा का क्षरण गा बर्बादी ऊष्मा
के रूप में भी होती है। ऊर्जा प्रवाह की इस धारा को 'अपरद धारा' (detritus
channel) कहा जाता है। 'अपरद' का यहाँ पारिभाषिक अर्थ जीवों द्वारा जीवों के शरीर का
अपघटन या विच्छेदन है।
इस प्रकार ऊर्जा का प्रारंभ, पारिस्थितिकी तंत्र में सूर्य
से होता है और वह विभिन्न खाद्य श्रृंखलाओं एवं पोषक स्तरों से गुजरता हुआ सदा प्रवाहमान
रहता है। पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा प्रवाह का संतुलन तभी बना रहता है जब तक विद्यमान
जीवों द्वारा उपयोग में लायी जा रही ऊर्जा रूपांतरित ऊर्जा के बराबर हो।
पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का उपयोग निम्नलिखित रूपों में होता है-
1. सूर्य का प्रकाश भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तनों के योग्य
अपेक्षित तापक्रम को बनाये रखने के निमित्त आवश्यक ताप उपलब्ध कराता है।
2. कुछ बैक्टिरिया लोहा एवं गंधक के ऑक्सीकरण
(oxidation) के द्वारा उपयोगी ऊर्जा प्राप्त करते हैं। लेकिन इस प्रकार प्राप्त ऊर्जा
की मात्रा अत्यल्प होती है क्योंकि अधिकांशतः लोहा एवं गंधक भूपृष्ठ पर ऑक्सीकृत हो
जाते हैं।
3. प्रकाश संश्लेषण के प्रक्रम में पादप अपने में निहित क्लोरोफिल की उपस्थिति में सूर्य के प्रकाश का उपयोग उसे रासायनिक ऊर्जा में बदलने के लिए करते हैं। यह ऊर्जा रासायनिक यौगिकों के रूप में पादपों (आहार) में संचित रहते हैं। इस रासायनिक यौगिक का जीव से जीव में आने-जाने का क्रम चलता रहता है। ऊष्मरक्तीय पशु इस तरह के आहार का उपयोग शरीर में आंतरिक ताप को बनाये रखने के लिए करते हैं। इस प्रकार वे अपने लिए उपयुक्त तापक्रम की अवस्था की व्यवस्था करते हैं। इसे अन्य जीव पर्यावरण में संचित सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा के रूप में ग्रहण करते हैं।