8.उत्पादक, उपभोक्ता और अपघटक (Producer, Consumer and Decomposer)

8.उत्पादक, उपभोक्ता और अपघटक (Producer, Consumer and Decomposer)

8.उत्पादक, उपभोक्ता और अपघटक (Producer, Consumer and Decomposer)

8.उत्पादक, उपभोक्ता और अपघटक (Producer, Consumer and Decomposer)

प्रश्न : उत्पादक, उपभोक्ता और अपघटक से आप क्या समझते हैं? सोदाहरण समझाइये।

उत्तर: कार्यों के आधार पर पारिस्थितिकी तंत्र के जैविक संघटकों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है

(1) उत्पादक

(2) उपभोक्ता

(3) अपघटक-

1. उत्पादक (Producer): जो सूर्य की ऊर्जा से ग्रहण कर अपना भोजन स्वयं तैयार करते हैं उत्पादक कहलाते हैं। हरे पौधे क्लोरोफील (अथवा क्लोरोप्लास्ट) की उपस्थिति में सूर्य की किरणों में उपस्थित उसकी ऊर्जा को ग्रहण कर जल तथा कार्बनडायऑक्साइड जैसे सरल अकार्बनिक पदार्थों को अधिक ऊर्जा युक्त जटिल अकार्बनिक पदार्थों में बदल डालते हैं। इस प्रकार पौधे अपना भोजन स्वयं तैयार करते हैं। हरे वृक्षों को उनके इसी गुण और विशेषता के कारण उत्पादक (producer) कहा जाता है।

2. उपभोक्ता (Consumer): जो जीव अपने भोजन के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्राथमिक उत्पादकों (primary producers) पर निर्भर करते हैं, उन्हें परपोषी (hetrotrophi) या उपभोक्ता कहा जाता है। जो पशु शाकाहारी होते हैं, जैसे गाय, बकरी, हिरण, खरगोश आदि उन्हें प्राथमिक चरण का उपभोक्ता कहा जाता है। प्राथमिक बरण के उपभोक्ता (consumer of first order) अर्थात् शाकाहारी पशुओं को खानेवाले जन्तुओं को (जैसे टिड्डे को मेंढक खाते हैं) दूसरे चरण का उपभोक्ता (consumer of second order) कहलाते हैं। लेकिन जो जीव-जन्तु दूसरे चरण के उपभोक्ताओं को खाते हैं, उन्हें तृतीय चरण का उपभोक्ता (consumer of third order) कहलाते हैं। जैसे मेंढक को साँप खाता है, छोटी मछलियों को बड़ी मछलियाँ खा जाती हैं। ये सब तृतीय चरण के उपभोक्ता कहलाते हैं। इस कड़ी के अन्तिम उपभोक्ता मांसाहारी पशु हैं। मांसाहारी पशुओं को दूसरे जानवर मारकर नहीं खाते। अतः तृतीय चरण के ऐसे उपभोक्ताओं को चरम सीमा के मांसाहारी कहे जाते हैं। जैसे शेर, चीता, तेंदुआ और गिद्ध इत्यादि।

3. अपघटक (Decomposer): जब प्रथम एवं द्वितीय चरण के उत्पादक जीव भर जाते हैं तब निम्नश्रेणी के अनेक सूक्ष्म जीव, जैसे बैक्टिरिया या कवक (fungi) आदि उनके मृत शरीर को अपघटित करके खाते अपत्रा अपना भोजन प्राप्त करते हैं। ये मृत जीवों के कार्बनिक पदार्थों को मड़ा गला कर पुनः सरल कार्बनिक पदार्थों में बदल डालते हैं। इस क्रिया में जीवाणु ऊर्जा प्राप्त करते हैं। अपघटन करनेवाले इन जीवों को अपघटक (decomposer) कहा जाता है। ये जीव मृत पशुओं अथवा पौधों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। अतः इन्हें मृतोपजीवी (Saprophytes) भी कहते हैं।

अपघटन के क्रम में तरह-तरह के बैक्ट्रिरिया और कवक (Fungi) अपने आए भोजन प्राप्त करते हैं। इस प्रकार के जीवों में ओक प्रकार के एञ्जाइमों के समूह होते हैं। विशेष प्रकार की एज्जाइमों के ये समूह रासायनिक क्रियाओं में सहायक होते हैं। इन्हीं एञ्जाइमों की सहायता से मृत पदार्थों का अपघटन होता है जिसके चलते उत्पादों का कुछ भाग भोजन के रूप में जीवों में अवशोषित हो जाता है। शेषांश वाताबरण में समाहित हो जाता है। जैवमण्डल में अपघटकों की अनेक प्रकार की प्रजातियाँ हैं जो मृत पदार्थों को धीरे-धीरे अपघटित करती रहती हैं। मृत शरीरों के विभिन्न अंग अलग-अलग गति से अपघटित होते हैं।

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