प्रो. जे. आर. हिक्स ने 1956 में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'A Contribution to the Theory of Trade Cycle' यह स्पष्ट किया है कि व्यापार चक्र गुणक एवं त्वरक की परस्पर क्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न होता है।
प्रो . हिक्स के व्यापार चक्र के सिद्धांत के महत्वपूर्ण तत्व निम्नलिखित
हैः
1. विकास की आवश्यक दर: जब वास्तविक निवेश तथा वास्तविक बचत एक ही समान
दर से हो रही हो तो कहा जाता है कि अर्थव्यवस्था विकास की आवश्यक दर से वृद्धि कर रही
है। हिक्स के अनुसार गुणक-त्वरक क्रिया ही है जो विकास की आवश्यक दर के इर्द-गिर्द
आर्थिक उतार-चढ़ाव का मार्ग प्रशस्त करती है।
2. उपभोग फलन: वास्तविक उपभोग व्यय निकट भूत में वास्तविक आय का फलन है। अर्थात उपभोग फलन
Ct = bYt-1
का रुप ले लेता है।
3. स्वायत्त निवेश : स्वतः विनियोग वह विनियोग है जो उत्पादन की मात्रा
में परिवर्तनो से स्वतंत्र होता है ।
4. प्रेरित निवेश : प्ररित निवेश वह निवेश है जो उत्पादन की मात्रा में
परिवर्तनो के द्वारा प्रेरित होता है।
मान्यताएं
हिक्स का व्यापार चक्र सिद्धांत निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है।
1. हिक्स यह मान लेते है कि अर्थव्यवस्था गतिशील है जिसमें स्वायत्त
विनियोग स्थिर दर से इस तरह बढ़ता है ताकि व्यवस्था गतिमान संतुलन में रहे।
2. बचत एवं विनियोग के तत्व ऐसे है कि यदि वे एक बार संतुलन पथ से दूर
हट जाते है तो बाद वे संतुलन से और दूर होते चले जाते है।
3. गुणक और त्वरक के मूल्य स्थिर रहते हैं।
4. अर्थव्यवस्था उत्पादन के पूर्ण रोजगार स्तर से आगे विस्तार नही कर
सकता ।
5. अवनति में त्वरक का कार्यकरण अर्थव्यवस्था के नीचे की ओर गति पर अप्रत्यक्ष
नियन्त्रण प्रदान करता है। त्वरक में कमी की दर को अवनति मे मूल्य हास की दर सीमित
करती है।
6. चूँकि यह मान लिया गया है कि उपभोग तथा प्रेरित विनियोग समयान्तर
के साथ कार्यकरण करते है अतः गुणक तथा त्वरक के बीच सम्बंध समयान्तर ढंग से ग्रहण किया
जाता है।
7. यह मान लिया जाता है कि औसत पूँजी उत्पाद अनुपात इकाई से अधिक है
और सकल विनियोजन शून्य से नीचे नही गिरता।
इस प्रकार चक्र स्वाभाविक रूप से विस्फोटात्मक है परन्तु वे अर्थव्यवस्था के शिखरो और तलो के भीतर रहते है।
प्रो . हिक्स के व्यापार चक्र मे निम्न समीकरण है : -
Ct = bYt-1 ……………(1)
It = IIt + IIIt
…………(2)
III = Ao (1 +g)t …….(3)
IIIt = K (Yt-1 – Yt-2)
…(4)
Yt = Ct + It …………(5)
जहां,
b = MPC
It = Total Investment
IIt = Induced Investment (प्रेरित निवेश)
IIIt= Autonomous Investment(स्वायत्त निवेश)
Autonomous investment in the Hicksion model is not constant but
grow that the rate (1+ g)t Induced Investment depends on the
vareation in total demand.
Putting the value of ct and It in Yt
Yt = bYt-1 + KYt-1 – KYt-2 +
Ao (1+g)t
Yt = Yt-1 (b+K) – KYt-2 + Ao
(1+g)t
Yt - Yt-1 (b+K) + KYt-2 = Ao (1+g)t ……(6)
Try `Y_t=\overline{Y_0}(1+g)^t`
`\overline{Y_0}(1+g)^t-\overline{Y_0}(1+g)^{t-1}(b+K)+K\overline{Y_0}(1+g)^{t-2}=A_0(1+g)^t`
`(1+g)^{t-2}\left[\overline{Y_0}(1+g)^2-\overline{Y_0}(1+g)(b+K)+K\overline{Y_0}-A_0(1+g)^2\right]=0`
`\therefore` `\overline{Y_0}(1+g)^2-\overline{Y_0}(1+g)(b+K)+K\overline{Y_0}-A_0(1+g)^2=0`
`\overline{Y_0}\{(1+g)^2-(1+g)(b+K)+K\}=A_0(1+g)^2`
The corresponding homogeneous eqution of
eqution (6) is
λt - λt-1 (b+K) + K λt-2 = 0
λt-2 [ λ2 - λ (b+K) + K ] = 0
λ2 - λ (b+K) + K = 0 ----------(8)
We Apply the Stability Conditioned
1 - (b+K) + K > 0
or.
1- b -K + K > 0
1- K > 0
1 + (b+K) + K > 0
All eqution (9) is
The first stability condition is satisfeid
because 'b' that is MPC is always less than 1. The third Stability condition is
satisfeid because L.H.S is a sum of all positive Quantites. The cruciel
inequality condition is than the IInd one . Thus the Hicksian stability
condition is
1- K > 0
or, 1 > K
or, K < 1 ---------------(10)
Note :- K < 1(Demped or Stable or Convergent)
K > 1 (Explosive or Unstable or Divargent)
The discriminent
of equation (8) is
∆ = b2 -
4ac
= ( b + K)2 -4K
= b2 + 2bK + K2 - 4K
∆ = K2 -
K(4-2b) + b2
∆>=< 0 if K2
- K (4 -2b) + b2 >=<
`=2-b\pm2\sqrt{1-b}`
`=1+1-b\pm2\sqrt{1-b}`
`=1+S\pm2\sqrt S`
`K_1K_2=\left(1\pm\sqrt S\right)^2`
Note :- Δ > 0 or Δ = 0 (Roots Real,
Monotonic) , Δ < 0 ( Roots
Complex, Oscillatory)
`\frac{-b\pm\sqrt{b^2-4ac}}{2a}` ; b = MPC or 1 – b = MPS (S)
R= Real; E = Equal ; C = Complex ; D = Distinct ;
μ = Modvlies
Region A: Every point in this region lies below K = (1 - √S)2 and also below K = 1, Thus K < 1 and K < (1 - √S)2 the stability condition is satisfied and roots are real. The result is monotonically, damped
Region B: Every point in this region lies below K=1 and above K = (1 - √S)2 .Thus K < 1 and K > (1 - √S)2 .The stability condition is satisfied and roots are Complex. The result is a damped osscillation.
Region C: Every point in this region lies above K=1 and below K =(1 + √S)2.Thus K > 1 and K < (1 + √S)2 .The stability condition is not satisfied and the roots are complex. The result is an explosive oscillation
Region D: Every point in this region lies above K = 1 and also above K = (1 + √S)2 .Thus K > 1 and K >(1 + √S)2.This stability condition is not satisfied and the roots are real. The result is monotonically explosive
प्रो. हिक्स ने व्यापार-चक्र की विभिन्न अवस्थाओं को चित्र द्वारा समझाया है :
चित्र में AA रेखा स्वतन्त्र
विनियोग को दर्शाती है। यह रेखा एक सीधी पड़ी रेखा है जो यह दिखाती
है कि इस प्रकार का विनियोग
एक निश्चित दर पर बढ़ता है। EE रेखा गुणक तथा त्वरक दोनों को परस्पर क्रिया द्वारा
पैदा की गयी आय की वृद्धि को दर्शाती है। FF पूर्ण रोजगार की उच्चतम सीमा है। इससे
अधिक राष्ट्रीय उत्पादन नहीं हो सकता तथा LL धरातलीय रेखा है जिससे कम राष्ट्रीय आय नहीं हो सकती।
मान लीजिए, PO साम्य की स्थिति है और इस स्थिति में किसी आविष्कार के कारण नया विनियोग एकदम बढ़कर P1 पर पहुँच जाता है और आय बढ़ती है। इस वृद्धि के कारण त्वरक द्वारा और अधिक विनियोग किया जाता है। जब गुणक क्रियाशील हो जाता है जिससे आय में कई गुना वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार गुणक तथा त्वरक दोनों के परस्पर प्रभाव द्वारा राष्ट्रीय आय PP मार्ग पर ऊपर चढ़ती रहती है, परन्तु यह वृद्धि P1पर रुक जायेगी क्योंकि FF पूर्ण रोजगार की उच्चतम सीमा है। चूँकि P1 पर पहुँचकर राष्ट्रीय आय में वृद्धि मन्द गति से बढ़ती है, इसीलिए प्रेरित विनियोग घटने लगता है। प्रेरित बिनियोग के घटने से व्यापार-चक्र नीचे को चल पड़ता है। अत: P2 से राष्ट्रीय आय पुनः EE रेखा की ओर चल पड़ती है। विनियोग घटता जाता है और गुणक की विपरीत दिशा में क्रियाशीलता के कारण अर्थव्यवस्था P2 से नीचे चलकर Q1 पर पहुँच जाती है। Q1 धरातलीय रेखा है अर्थात् राष्ट्रीय आय इससे कम नहीं हो सकती, अत: व्यापारिक चक्र इससे और नीचे नहीं जायेगा। अर्थव्यवस्था Q1 से Q2 तक सरकती जायेगी। वहाँ आय-स्तर में कुछ वृद्धि होती है जिससे प्रेरित विनियोग कुछ प्रोत्साहित होता है तथा मन्दी दूर होती है। इस प्रकार व्यापार-चक्र ऊपर से नीचे की ओर चलता है।
हिक्स के सिद्धान्त के ऊपरी मोड़ बिन्दु पर पूर्ण रोजगार स्तर पर उत्पादन साधनों के उपयोग द्वारा उत्पादन तथा आय में वृद्धि की सम्भावनाएँ समाप्त हो जाती है। यह बिन्दु हैरोड़ के प्राकृतिक विकास दर की भाँति अर्थव्यवस्था के विकास की अधिकतम सीमा दर्शाती है।
सबल मोड़ वाला और प्रतिबन्धित चक्र वे हैं जहाँ सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति और त्वरक के मूल्य ऐसे हैं कि यदि बाहरी अवरोधक कारक न हो तो विस्तार अधिकतम आर्थिक विकास में परिणत होता है और साथ ही साथ अर्थव्यवस्था से ऊपरी और निचले दोनों मोड़ बिन्दुओं को स्पर्श करती है। चूँकि ऐसे व्यापार-चक्र अधिकतम विकास-पथ और न्यूनतम विकास-पथ को स्पर्श करते हैं और इनके ऊपर या नीचे नहीं जा सकते इसलिए इन्हें प्रतिबन्धित चक्र कहा जाता है क्योंकि इनका विस्तार अधिकतम सीमा द्वारा प्रतिबन्धित हो जाता है। इन्हें सबल मोड़ वाला चक्र भी कहते हैं क्योंकि इन चक्रों का मोड़ अधिकतम सीमा के पूर्व नहीं होता है।
जहाँ तक कमजोर या स्वतन्त्र मोड़ वाले चक्रों का प्रश्न है, ये अर्थव्यवस्था की अधिकतम और न्यूनतम सीमाओं को स्पर्श किये बिना ही मुड़ जाते हैं। चूँकि इन चक्रों का मुड़ना बिना किसी अवरोध के हो जाता है अत: इन्हें स्वतन्त्र चक्र कहते है। प्रतिबन्धित और स्वतन्त्र चक्रों को नीचे रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है।
1. 1. Gn प्राकृतिक विकास दर दर्शाता है जो वास्तविक आय वृद्धि की अधिकतम सीमा को व्यक्त करता है।
2. 2. Cs
फलन उपभोग का न्यूनतम निर्वाह स्तर है जिसे प्रत्येक स्थिति में
बनाये रखना आवश्यक है अत: C वक्र विकास की न्यूनतम सीमा है।
3. 3. कमजोर व स्वतन्त्र मोड़ बिन्दु वाले व्यापार-चक्र को FF वक्र द्वारा तथा सबल और प्रतिबन्धित मोड़ वाले चक्र को PH वक्र द्वारा दर्शाया गया है।
4. 4. प्रतिबन्धित चक्र (देखिए PH वक्र) ऊपरी अधिकतम सीमा को BD बिन्दुओं पर तथा निचली सीमा को A व G बिन्दुओं पर स्पर्श करता हुआ जाता है। इस चक्र की आय की वृद्धि जो A से B तक होती है व B बिन्दु पर Gn सीमा द्वारा प्रतिबन्धित हो जाती है। इस प्रकार चक्र अपने प्रबल मोड़ के साथ B से C की ओर मुड़ता है। संकुचन की इस स्थिति में कमी C बिन्दु से नीचे नहीं हो सकती अत: आर्थिक क्रियाओं का पुन: Cs से प्रतिबन्धित होकर C से D की ओर अग्रसर होता है।
5. 5. EF वक्र जो निर्बल व स्वतन्त्र मोड़ वाले व्यापार-चक्र को दर्शाता है, वह अधिकतम विकास की सीमा (Gn) और न्यूनतम विकास की सीमा (Cs) को बिना स्पर्श किये ही उनके पूर्व मुड़ जाता है। अत: इस चक्र का पथ और इसके मोड़ बिन्दु Gn तथा Cs सीमाओं से प्रतिबन्धित है।
आलोचनात्मक मूल्यांकन (Critical Evaluation)—
व्यापार-चक्र का आधुनिक सिद्धान्त व्यापार-चक्र की विभिन्न अवस्थाओं तथा मोड़ बिन्दुओं का विश्लेषण अत्यन्त सन्तोषजनक ढंग से प्रस्तुत करता है तथा चक्रों की सामयिकता पर भी प्रकाश डालता है। व्यापार-चक्र के आधुनिक सिद्धान्त में ऊपरी सीमा और निचली सतह की कल्पना की गयी है अत: उत्पादन आय और रोजगार का उच्चावचन इन्हीं दो सीमाओं के भीतर होता रहता है। ऊपरी सीमा और निचली सतह की कल्पना से ही व्यापार-चक्र की सामयिकता का कुछ आभास हो जाता है।
आधुनिक सिद्धान्त में हैरोड की आर्थिक विकास की प्राकृतिक दर की अवधारणा का अनुकरण करके व्यापार-चक्र के ऊपर मोड़ बिन्दु का अध्ययन सन्तोषप्रद विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। इसी प्रकार निचले मोड़ के सम्बन्ध में यह प्रदर्शित करके कि किस प्रकार पूँजीगत सम्पत्तियों में उत्पादन क्षमता का आधिक्य ऊर्ध्वमुखी प्रवृत्ति के प्रारम्भ होने में विलम्ब ला देता है, हिक्स ने व्यापार-चक्र के सिद्धान्त के सम्बन्ध में अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान किया है।
उपर्युक्त गुणों के बावजूद हिक्स के सिद्धान्त की निम्नलिखित आधारों पर आलोचनाएँ की जाती हैं :
1.
अवास्तविक मान्यताएँ (Unrealistic Assumptions)—(अ) कीन्स के सिद्धान्त में यह मान
लिया गया है कि व्यापार-चक्र की विभिन्न अवस्थाओं के दौरान गुणक
और त्वरक का मान स्थिर रहता है। यह कीन्स के
स्थिर उपभोग फलन पर आधारित है, पर यह वास्तविक नहीं है। कीन्सोपरान्त अनुभवगम्य शोध कार्यों जिनमें प्रो. मिल्टन फ्रीडमैन तथा प्रो. ड्यूसेनबरी के कार्य प्रमुख हैं, ने यह प्रदर्शित किया है कि जब आय में चक्रीय उच्चावचन हो रहे हों तो उस समय उपभोग फलन या उपभोग की सीमान्त प्रवृत्ति स्थिर नहीं रहती है। जैसा मिल्टन फ्रीडमैन ने स्पष्ट किया कि अल्पकालिक आय तथा उपभोग के बीच निश्चित तथा स्थानीय सम्बन्ध नहीं होता है। इस प्रकार उनके अनुसार व्यापार-चक्र को विभिन्न अवस्थाओं में गुणक का मान परिवर्तित हो जाता है।
(ब) हिक्स ने त्वरक के मान को भी स्थिर मान लिया है। त्वरक की स्थिरता पहले से स्थिर पूँजी-उत्पादन अनुपात मानकर चलती है। ये मान्यताएँ अवास्तविक है, क्योंकि तकनीकी साधन विनियोजन की प्रवृत्ति तथा संरचना, पूँजी वस्तुओं का गर्भाधान अवधि इत्यादि के कारण पूँजी-उत्पाद अनुपात स्वयं परिवर्तनशील है। इसलिए प्रो, लुंडबर्ग ने सुझाव दिया है कि व्यापार-चक्रों को समझाने की वास्तविक पद्धति के लिए त्वरक में स्थिरता की मान्यता छोड़ दी जाय।
इसी प्रकार त्वरक सिद्धान्त यह मानता है कि पूँजी यन्त्रों में उत्पादन क्षमता का आधिक्य नहीं। पर ऐसे उद्योग जिन पर चक्रीय उच्चावचनों का प्रभाव पड़ता है, सामान्यतया सिद्धान्तत: उत्पादन क्षमता का आधिक्य बनाये रखते हैं।
(स) हिक्स के सिद्धान्त की यह मान्यता भी अवास्तविक है कि व्यापार-चक्र की विभिन्न अवस्थाओं में सतत गति से निरन्तर स्वायत्त विनियोजन होता रहता है। कारण यह है कि मन्दी की अवधि में वित्तीय संकट स्वायत्त विनियोजन को उसके सामान्य स्तर से नीचे गिरा सकता है।
2. पूर्ण रोजगार सीमा (Full Employment Limit)—इस सिद्धान्त में पूर्ण रोजगार सीमा की परिभाषा उत्पादन पथ से स्वतन्त्र रूप में की गयी है। पूर्ण रोजगार सीमा को हिक्स ने हैरोड की प्राकृतिक विकास दर पर आधरित करते हुए जनसंख्या वृद्धि और तकनीकी विकास आदि पर निर्भर माना है। इस आधार पर उन्होंने यह मान लिया है कि शिखर या सीमा वृद्धि पर स्वत: विनियोग वृद्धि दर से बढ़ रही है लेकिन इसके विपरीत पूर्ण रोजगार से सम्बन्धित का स्तर अर्थव्यवस्था में उपलब्ध पूंजी स्टाक आद साधनों की मात्रा पर निर्भर करता है फलत: जिस समयावधि में पूंजी स्टॉक में वृद्धि होती है, इसमें इस उच्चतम या शिखर सीमा में भी वृद्धि हो जाती है जिसका विश्लेषण हिक्स के सिद्धान्त में नहीं किया गया है।
3.व्यापार-चक्र की तकनीकी व्याख्या (Technical Explanation of Business cycle)- इस सिद्धांत में व्यापार-चक्र जैसी जटिल समस्या को पूर्णतया तकनीकी या यांत्रिक कारण माना गया है। गुणक व त्वरक की तकनीकी प्रक्रिया यद्यपि व्यापार चक्र के उदय होने में महत्वपूर्ण हो सकती है, परन्तु वास्तविक जीवन में आर्थिक क्रियाओं में इतने यांत्रिक परिवर्तन नहीं होते जिसकी कल्पना हिक्स ने की। हिक्स के सिद्धान में व्यापारिक क्रियाओं में होने वाले चक्रिय परिवर्तनों की व्याख्या के सम्बन्ध में उन मनोवैज्ञानिक कारणों को ध्यान में नहीं रखा गया है जो भविष्य की अनिश्चितओ तथा प्रत्याशाओं के कारण उत्पन होते हैं तथा एक प्रावैगिक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में इनका बहुत अधिक महत्व है।
4.
स्वायत और प्रेरित विनियोग में अमान्य अन्तर (Non-logical Difference between
Autonomous and Induced Investment)- ड्यूसेनबरी एवं लुण्डबर्ग आदि अर्थशास्त्रियों
का कहना है कि स्वायत्त और प्रेरित विनियोन के बीच किया गया अन्तर बहुत मान्य नही है। वास्तव में, विनियोग का यह भेद समयावधि
से सम्बन्धित है। प्रत्येक विनियोजन अल्पकाल में स्वायत्त होता है और स्वायत्त विनियोजन की अधिकांश
मात्रा दीर्घकाल में प्रेरित बन जाती है। यह भी सम्भव है कि किसी
विशिष्ट विनियोजन का कुछ भाग
स्वायत्त हो और कुछ भाग प्रेरित,
जैसा कि मशीनरी की स्थिति में। अतः स्वायत्त और प्रेरित विनियोग में किया
गया अन्तर बहुत युक्तिसंगत नहीं है।
प्रो. शुम्पीटर के नवप्रवर्तन सिद्धांत में यह स्पष्ट किया गया है कि तकनीकी विकास और नवप्रवर्तन से स्वायत्त विनियोग की दर में परिवर्तन होता रहता है और यह परिवर्तन न केवल चक्रिय उतार-चढ़ाव को प्रभावित करता है अपितु अधिकतम सीमा को भी उपर नीचे कर सकता है।
5.
मौद्रिक शक्तियों को अस्पष्ट भूमिका (Unspecific Role of Monetary Forces)- इस सिद्धान्त
में मौद्रिक साधनों की भूमिका स्पष्ट नहीं है। हिक्स ने अपने इस मॉडल के द्वारा “जहाँ
मौद्रिक अर्थशास्त्रियों की इस व्याख्या को कि "व्यापार-चक्र एक पूर्णतया मौद्रिक
घटना है" समाप्त करने का प्रयास किया है, वहीं उन्होंने वास्तविक शक्तियों के
प्रभाव को आवश्यकता से अधिक स्थापित किया है परन्तु इस बात को स्वयं हिक्स ने अपने
सिद्धान्त में स्वीकार किया है कि मौद्रिक शक्तियों के प्रवेश से व्यापार-चक्र का रूप और सीमा-पथ प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए, उनका कहना है कि यदि बैंक दुर्लभ मुद्रा नीति का अनुसरण करें तो शिखर के आने से पहले ही अवनति प्रारम्भ हो सकती है। एक और स्थान पर उन्होंने तर्क दिया है कि 1929 से 1933 तक का दीर्घकालिक संकुचन अधिकतर मौद्रिक संकट के कारण था। पुन: वे कहते हैं कि मौद्रिक साधन निचला मोड़ ला सकते हैं। इस प्रकार व्यापार-चक्र के हिक्सीय विश्लेषण में मौद्रिक साधनों की भूमिका स्पष्ट नहीं है।"
6. ऊपरी सीमा और निम्न सीमा की असन्तोषजनक व्याख्या (Unsatisfactory Explanation of Upper Limit and Lower Limit)- (अ) ड्यूसेनबरी के मतानुसार हिक्स का सिद्धान्त शिखर से मंदी के शुरू होने की समुचित व्याख्या करने में असमर्थ है। कारण यह है कि साधनों की कमी विनियोजन में आकस्मिक पतन और इस प्रकार मंदी नहीं ला सकती। उदाहरण के लिए, 1875-1921 के बीच जो अमेरिका में मंदी आई, वह साधनों की कमी के कारण नहीं आई थी।
(ब) हिक्स का यह मत है कि यह स्वायत्त विनियोग ही है जो धीरे-धीरे निचली सीमा की ओर गति प्रदान करता है और फिर निचली सीमा पर स्वायत्त विनियोजन में वृद्धि से ही निम्न मोड़ बिन्दु आता है। हैरोड ने इस तर्क पर सन्देह व्यक्त किया है कि मन्दी के तल (Floor) पर स्वायत्त विनियोजन बढ़ेगा। मन्दी तो स्वायत्त विनियोजन को प्रोत्साहित करने के स्थान पर कम कर सकती है।
7. अन्य आलोचनाएँ (Other Criticisms)— (अ) हिक्स ने कहा कि व्यापार-चक्र की विस्तार अवस्था की अपेक्षा संकुचन अवस्था अधिक लम्बी होती है परन्तु युद्धोत्तरकालीन चक्रों ने वास्तविक व्यवहार में स्पष्ट कर दिया है कि व्यापार-चक्र की विस्तारशील व्यवस्था उसकी संकुचनशील अवस्था की अपेक्षाकृत बहुत अधिक लम्बी होती है।
(ब) इस सिद्धान्त में यह मान लिया गया है कि औसत पूँजी-उत्पाद एक वर्ष या इससे कम समयान्तर के लिए इकाई से अधिक होता है, परन्तु व्यवहार में ऐसा देखने को नहीं मिलता।
निष्कर्ष– उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद भी निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि हिक्स का सिद्धान्त व्यापार-चक्र का सबसे पूर्ण व व्यवस्थित सिद्धान्त है और यह पिछले सभी सिद्धान्तों से श्रेष्ठ है।