कार्ल पियर्सन का सहसंबंध गुणांक (Karl Pearson's Coefficient of Correlation)

कार्ल पियर्सन का सहसंबंध गुणांक (Karl Pearson's Coefficient of Correlation)

कार्ल पियर्सन का सहसंबंध गुणांक (Karl Pearson's Coefficient of Correlation)
                           

सर्वप्रथम 1980 में कार्ल पियर्सन ने सह-सम्बन्ध की मात्रा की माप के लिए गणितीय विधि का प्रतिपादन किया जिसे कार्ल पियर्सन का सहसंबंध गुणांक कहते है।

कार्ल पियर्सन के अनुसार," सहसंबंध गुणांक विभिन्न माध्यो से ली गई विचलनों के गुणनफल के जोड़ को युग्ध मदो की संख्या तथा उनके प्रमाप विचलनों से विभाजित करके प्राप्त किया जा सकता है।"

इस विधि द्वारा दिशा व मात्रा का अनुमान ही नहीं बल्कि उसका परिमाणात्मक माप भी प्राप्त होता है। इसे 'r' द्वारा प्रदर्शित किया जाता है

        मान्यताएँ

1. दो घटनाओं के मध्य परस्पर कारण और परिणाम का सम्बन्ध पाया जाता है।

2. दोनों समंक श्रेणियों में रेखीय सहसम्बन्ध पाया जाता है।

       मुख्य विशेषताएँ

1. यह रीति गणितीय दृष्टि से उपयुक्त है क्योंकि यह प्रमाप विचलन एवं समान्तर माध्य पर आधारित

2. यह रीति बीजगणितीय दृष्टि से उत्तम है क्योंकि यह श्रेणी के सभी मूल्यों व पदों पर आधारित होती

3. इस रीति से सहसंबंध की दिशा, मात्रा व सीमाओं का ज्ञान सुविधापूर्वक हो जाता है।

4. यह सदैव +1 और - 1 के मध्य रहता है जिसके कारण सह-सम्बन्ध गुणांक का विस्तार (Range) 2 होता है। सह-सम्बन्ध अनुपस्थिति होने की दशा में सह-सम्बन्ध गुणांक शून्य होता है।

    सह-सम्बन्ध के गुण

1. व्यावहारिक तथा लोकप्रिय विधि :- कार्ल पियर्सन का सह-सम्बन्ध गुणांक दो घरों के बीच सह-सम्बन्ध मापने की व्यावहारिक एवं लोकप्रिय विधि है।

2. सार्थक निष्कर्ष :- यह सह-सम्बन्ध का उचित एवं स्पष्ट प्रस्तुत करता है जिसके आधार पर सरल एवं सार्थक निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

3. मात्रा तथा दिशा की एक साथ माप :- यह दो घरों के बीच एक ही समय में मात्रा तथा दिशा के सम्बन्ध को स्पष्ट करता है।यह सम्बन्ध को धनात्मक अथवा ऋणात्मक रूप में प्रदर्शित करता है जिससे सम्बन्ध की दिशा ज्ञात की जाती है।

    सह-सम्बन्ध की सीमाएं या दोष

1. चरम मदों का अधिक प्रभाव :- कार्ल पियर्सन का सह-सम्बन्ध गुणांक चरम मदों से अत्यधिक प्रभावित होता है

2. अधिक समय लेनेवाली गणना प्रक्रिया :- अन्य विधियों की तुलना में य विधि गणना- प्रक्रिया में अधिक समय लेती है

3. गलत निर्वचन की संभावना :- इस विधि द्वारा निर्वचन करते समय अत्यधिक सावधानी की आवश्यकता होती है अन्यथा बराबर गलत निर्वचन की संभावना बनी रहती है

4. रेखीय सम्बन्ध की मान्यता :- कार्ल पियर्सन का स-सम्बन्ध गुणांक चरों के रेखीय संबंध की मान्यता पर आधारित है जबकि ये संबंध सदा रेखीय नहीं होते 

कार्ल पियर्सन के सहसंबंध गुणांक की गणना या परिकलन

1. प्रत्यक्ष रीति

प्रश्न :- निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा पत्नी तथा पति की आयु में सह-सम्बन्ध ज्ञात कीजिए

पति की आयु पत्नी की आयु
21 18
22 20
28 25
32 30
35 31
36 32

प्रत्यक्ष रीति का प्रयोग उसी समय सरलता से किया जा सकता है, जबकि समान्तर माध्य पूर्ण अंक हो परन्तु जब माध्य दशमलव में आता है तो उससे विचलन निकालने और उन विचलनों का वर्ग करने आदि में बड़ी असुविधा होती है। इस असुविधा से बचने के लिए लघु रीति का प्रयोग किया जाता है

2. लघु रीति

प्रश्न :- पिताओं (x) और उनके पुत्रों (y) के कदों का माप नीचे इंचों में दिया गया है। इन दोनों के बीच सहसंबंध गुणांक को परिकलित कीजिए-

प्रश्न :- निम्न संमको से कार्ल पियर्सन का सह-सम्बन्ध गुणांक ज्ञात कीजिए

X Y
6 10
8 12
12 15
15 15
18 18
20 25
24 22
28 26
31 28

उत्तर :-

X

Y

A=6(dx)

A=15(dy)

dx2

dy2

dxdy

6

10

0

-5

0

25

0

8

12

2

-3

4

9

-6

12

15

6

0

36

0

0

15

15

9

0

81

0

0

18

18

12

3

144

9

36

20

25

14

10

196

100

140

24

22

18

7

324

49

126

28

26

22

11

484

121

242

31

28

25

13

625

169

325

 

 

=108

=36

=1894

=482

=863

r = `\frac{863-432}{9\sqrt{210.4-(12)^2}\sqrt{53.5-(4)^2}}`

`r=\frac{431}{9\sqrt{210.4-144}\sqrt{53.5-16}}`

`r=\frac{431}{9\sqrt{66.4}\sqrt{37.5}}=\frac{431}{9\(8.14)\(6.12)}`

`r=\frac{431}{448.35}=0.96`

(यह  उच्च  सहसंबंध है)

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