इस रीति के अनुसार, ग्राफ पेपर पर दोनों चरों को बिन्दुओं के रूप में
प्रकट किया जाता है। भुजाक्ष (X-axis) पर समय, स्थान आदि को लिया जाता है तथा कोटि-अक्ष
(Y-axis) पर श्रेणी के मूल्यों को अंकित किया जाता है। प्राप्त बिन्दुओं को मिला देने
से वक्र प्राप्त हो जाता है।
यदि सभी बिंदु बायी ओर के निचले कोने से दाहिनी ओर ऊपर वाले कोने तक एक सरल व सीधी रेखा के रुप में आ जाते तो धनात्मक सहसंबंध होगा।
यदि सभी बिंदु बायी ओर के ऊपर वाले कोने से दाहिनी ओर नीचे वाले कोने तक एक सरल व सीधी रेखा के रुप में आ जाते तो ऋणात्मक सहसंबंध हो
यदि दोनों रेखाएँ एक ही अनुपात में बढ़ती हैं तो उच्च स्तरीय धनात्मक सहसंबंध होगा।
यदि दोनों रेखाएँ समान गति से विपरीत दिशा में उच्चावचन करती हैं तो उच्च स्तरीय ऋणात्मक सहसंबंध होगा।
यदि रेखाओं में इस प्रकार की किसी प्रवृत्ति का आभास नहीं मिलता तो दोनों श्रेणियों में कोई संबंध नहीं होगा।
प्रश्न :- निम्नलिखित आंकड़ों से विक्षेप चित्र बनाइए
X |
3 |
6 |
9 |
12 |
15 |
18 |
Y |
5 |
10 |
15 |
20 |
25 |
30 |
उत्तर :-
ऊपर के चित्र की सहायता से X और Y मूल्यों के बीच सह-सम्बन्ध को ज्ञात कर सकते हैं। सभी अंकित बिंदु एक ही सरल रेखा में है, इसका अर्थ है कि पूर्ण धनात्मक सह-सम्बन्ध है।
विक्षेप चित्र के गुण
1. यह
विधि
दो
घरों
के बीच केवल दिशा का
ज्ञान
करवाती
है
अर्थात
धनात्मक
या
ऋणात्मक।
2. विक्षेप
चित्र
पर
एक
दृष्टि
डालते
ही
सह-सम्बन्ध
की
उपस्थिति
अथवा
अनुपस्थिति
का
पता
लग
जाता
है।
3. यह सह-सम्बन्ध
की प्रवृत्ति को दर्शाने की सरल रीति है।
विक्षेप चित्र के दोष
1. इस
विधि से केवल से सह-सम्बन्ध की
मात्रा का अनुमान लगाया जा सकता है, संख्यात्मक माप सम्भव
नहीं है।
2. यह
विधि सह-सम्बन्ध
का केवल प्रकार बताती है।
3. चरो की संख्या दो से अधिक होने की दशा में विक्षेप चित्र नहीं खींचा जा सकता।