सर्वप्रथम फ्रांस के खगोलशास्त्री ब्रावे ने इसके मूल तत्त्वों का प्रतिपादन किया था। तत्पश्चात् इस सिद्धान्त को आधुनिक रूप फ्रांसिस गाल्टन तथा कार्ल पियर्सन ने दिया।
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वास्तविक जीवन में दो या दो से अधिक श्रृंखलाओं में परस्पर संबंध पाया जाता है। उदाहरण के लिए कीमत के बढ़ने पर माँग में कमी होती है। मुद्रा की पूर्ति बढ़ने पर कीमत स्तर में वृद्धि होती है। रोजगार में वृद्धि होने पर उत्पादन में वृद्धि होती है। ऐसी परिस्थितियों में दो या दो से अधिक सांख्यिकी श्रृंखलाओं का एक साथ अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है। इस अध्ययन का उद्देश्य विभिन्न सांख्यिकीय शृंखलाओं में पारस्परिक संबंधों की जानकारी प्राप्त करना होता है। सहसंबंध इन पारस्परिक संबंधों की गणना करने की सांख्यिकीय विधि है।
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जब दो चर राशियों में से एक
चर राशि के बढ़ने से दूसरी चर राशि (variable) में वृद्धि हो या कमी हो एवं एक चर
राशि की कमी से दूसरी चर राशि में वृद्धि हो या कमी हो तो उन दोनों चर राशियों में
सहसंबंध पाया जाता है। सहसंबंध की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
प्रो० किंग के अनुसार- “यदि
यह सत्य होता है कि अधिकांश उदाहरणों में दो चर (two variables) सदैव एक ही दिशा
में या विपरीत दिशा में घटने-बढ़ने की प्रवृत्ति रखते हैं तो हम यह मानते हैं कि
उनमें सहसंबंध पाया जाता है।”
प्रो० कॉनर के अनुसार- “जब
दो या दो से अधिक परिमाण सहानुभूति में परिवर्तित होते हैं। जिससे एक के परिवर्तन
के फलस्वरूप दूसरे में भी परिवर्तन हो जाता है तो वे राशियाँ ‘सहसंबंधित’ कहलाती
हैं।”
प्रो० बोडिंगटन के अनुसार-
“जब कभी दो या अधिक समूहों अथवा वर्गों अथवा समंकमालाओं में निश्चित संबंध
विद्यमान हो तो उनमें सहसंबंध का होना कहा जाता है।”
सह-सम्बन्ध की विशेषताएं
1. सह-सम्बन्ध
एक सांख्यिकीय तकनीक है जिसका प्रयोग
दो या अधिक चरों के बीच पाये जाने वाले संबंधों को मापने के लिए किया जाता है।
2. सह-सम्बन्ध
दो या अधिक चरों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध की दिशा बताता है।
3. सह-सम्बन्ध दो या अधिक चरों में पारस्परिक सम्बन्धों की मात्रा (Degree) भी बताता है।
4. सह-सम्बन्ध दो
या अधिक चरों के बीच कारण-
परिणाम सम्बन्ध को बताता है।
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सहसंबंध का महत्त्व
सांख्यिकीय में सहसंबंध का
सिद्धांत अत्यंत उपयोगी है। इस सिद्धांत का विकास फ्रांसिस गाल्टन व कार्ल पियर्सन
ने प्राणिशास्त्र तथा जनन-विद्या की अनेक समस्याओं के आधार पर किया था।
अर्थशास्त्र में सहसंबंध के महत्त्व के बारे में नीसकेंजर लिखते हैं-“सहसंबंध
विश्लेषण आर्थिक व्यवहार, को समझने में योग देता है, विशेष महत्त्वपूर्ण चरों जिन
पर अन्य चर निर्भर करते हैं, को खोजने में सहायता देता है, अर्थशास्त्री को उन
सुझावों को स्पष्ट करता है, जिससे गड़बड़ी फैलती है तथा उसे उन उपायों का सुझाव
देता है जिनके द्वारा स्थिरता लाने वाली शक्तियाँ प्रभावित हो सकती हैं।
सांख्यिकीय विधि के रूप में सहसंबंध के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट
किया जा सकता है-
1. कारण एवं परिणाम में संबंध
स्पष्ट करना- सहसंबंध वैज्ञानिक, सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में दो या दो से अधिक
घटनाओं के आपसी संबंधों को स्पष्ट करता है। यह स्पष्ट करता है कि विभिन्न समस्याओं
के कारण और परिणाम में कितना और किस प्रकार का संबंध है।
2. नियमों तथा धारणाओं का
निर्माण- सहसंबंध के अध्ययन से चरों के पारस्परिक संबंध की दिशा और मात्रा का ज्ञान
होता है। जब यह विदित हुआ कि कीमत के बढ़ने पर माँग घट जाती है। और कीमत के घटने पर
माँग बढ़ जाती है तब माँग के नियम का निर्माण हुआ।
3. नीति निर्माण में सहायक-
सहसंबंध नीति निर्माण में सहायक होता है। कर की दर और कर संग्रह में ऋणात्मक संबंध
होने पर सरकार कर की दरों को कम करती है। इसी प्रकार मुद्रा की पूर्ति एवं मुद्रा स्फीति
की दर में धनात्मक सहसंबंध होने पर सरकार मुद्रा की पूर्ति को नियंत्रित करती है।
4. व्यापारिक निर्णय लेने
में सहायक- संहसंबंध विश्लेषण व्यापारिक निर्णय लेने में सहायक होता है। इसका कारण
यह है कि एक चर में परिवर्तन की प्रवृत्ति से दूसरे चरों में होने वाली प्रवृत्ति का
पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और इसी आधार पर व्यापारिक निर्णय लिए जाते हैं। माना
जाता है कि सहसंबंध विश्लेषण पर आधारित अनुमान अधिक विश्वसनीय और निश्चित होते हैं।
टिप्पेट के शब्दों में-
“सहसंबंध हमारी भविष्यवाणी की अनिश्चितता को कम करता है।”
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सहसंबंध
के प्रकार
धनात्मक सह-सम्बन्ध (दोनो चरों के मूल्य में वृद्धि) |
धनात्मक सह-सम्बन्ध (दोनो चरों के मूल्य में कमी) |
||
श्रेणी X |
श्रेणी Y |
श्रेणी X |
श्रेणी Y |
5 |
10 |
25 |
60 |
12 |
13 |
20 |
50 |
18 |
32 |
15 |
40 |
25 |
48 |
10 |
30 |
28 |
60 |
5 |
20 |
ऋणात्मक सह-सम्बन्ध
(एक चर में वृद्धि तथा दूसरे चर में कमी) |
ऋणात्मक सह-सम्बन्ध (एक चर में कमी तथा दूसरे चर में वृद्धि) |
||
श्रेणी X |
श्रेणी Y |
श्रेणी X |
श्रेणी Y |
10 |
80 |
50 |
30 |
20 |
70 |
40 |
45 |
30 |
55 |
30 |
55 |
40 |
45 |
20 |
70 |
50 |
30 |
10 |
80 |
2. सरल, आंशिक अथवा बहुगुणी सहसंबंध- दो चर मूल्यों
के सहसंबंध को सरल सहसंबंध कहते हैं। आंशिक सहसंबंध में दो मूल्यों में एक अन्य स्वतंत्र
चर मूल्य का समावेश करके सहसंबंध ज्ञात किया जाता है। बहुगुणी सहसंबंध में तीन या अधिक
चर मूल्यों के मध्य सहसंबंध का अध्ययन किया जाता है।
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3. रेखीय तथा अरेखीय सहसंबंध-
यदि
दो चर मूल्यों के मध्य परिवर्तन का अनुपात समान होता है तो उनमें रेखीय सहसंबंध होगा।
इन चर मूल्यों को यदि बिन्दुरेखीय पत्र पर अंकित किया जाए तो बिन्दु एक सीधी रेखा के
रूप में होंगे।
रेखीय सह-सम्बन्ध |
|
X |
Y |
5 |
4 |
10 |
8 |
15 |
12 |
20 |
16 |
अरेखीय सहसंबंध जिसे वक्ररेखीय
सहसंबंध’ भी कहते हैं, में एक चर मूल्य के परिवर्तनों की मात्रा व दूसरे चर मूल्य के
परिवर्तनों की मात्रा एक अनुपात में नहीं होगी। इन चर मूल्यों को बिन्दु रेखा पर अंकित
करने पर वक्र बन जाता है।
अरेखीय सह-सम्बन्ध |
|
X |
Y |
5 |
4 |
10 |
7 |
15 |
12 |
20 |
19 |
सहसंबंध का परिमाण
सह-सम्बन्ध के परिणाम का अनुमान सह-सम्बन्ध के गुणांक द्वारा लगाया जाता है। सहसंबंध के निम्न परिमाण में हो सकता है-
1.पूर्ण सहसंबंध :- जब दो श्रेणियों में परिवर्तन एक ही दिशा में तथा समान अनुपात में
होते हैं। तो उनमें पूर्ण धनात्मक सहसंबंध पाया जाता है। ऐसी दशा में सहसंबंध गुणांक
(r) + 1 होता है।
जब दो श्रेणियों में परिवर्तन विपरीत दिशा में किंतु समान अनुपात में
होते हैं तो उनमें पूर्ण ऋणात्मक सहसंबंध पाया जाता है। ऐसी दशा में सहसंबंध गुणांक
(r) – 1 होता है। सामाजिक विज्ञान में पूर्ण सहसंबंध नहीं पाया जाता।
2. सहसंबंध का अभाव :- जब दो चरों अर्थात्
श्रेणियों में तनिक भी परस्पर आश्रितता नहीं पायी जाती अर्थात् वे एक श्रेणी के मूल्यों
को प्रभावित नहीं करते तो दोनों चरों अथवा श्रेणियों में सहसंबंध नहीं होता अर्थात्
उनमें सहसंबंध का अभाव पाया जाता है। ऐसी दशा में सहसंबंध गुणांक (r) शून्य (0) होता
है।
3. सीमित सहसंबंध :- जब दोनों श्रेणियों में परिवर्तन समान रूप में नहीं
होते, तो उनमें सहसंबंध सीमित मात्रा में पाया जाता है। इस प्रकार का सहसंबंध धनात्मक
व ऋणात्मक दोनों प्रकार का हो संकता है। सामान्यत: यह 1 के मध्य होता है। परिमाण की
दृष्टि से सीमित सहसंबंध तीन प्रकार के हो सकते हैं-
(क) उच्च स्तरीय सहसंबंध- यदि सहसंबंध गुणांक + 0.75 से लेकर + 1 के बीच होता है तो इसमें उच्च
मात्रा का सहसंबंध माना जाता है।
(ख) मध्यम स्तरीय सहसंबंध- जब सहसंबंध गुणांक + 0.25 से लेकर + 0.75 तक रहता है तो इसमें मध्यम
मात्रा का सहसंबंध पाया जाता है।
(ग) निम्न स्तरीय सहसंबंध- जब सहसंबंध गुणांक शून्य (0) से अधिक परंतु + 0.25 से कम रहता है तो इसमें निम्न स्तरीय सहसंबंध पाया जाता है।
सहसंबंध ज्ञात करने की रीतियाँ
सहसंबंध ज्ञात करने की प्रमुख रीतियाँ निम्नलिखित हैं-
(अ) बिन्दुरेखीय रीतियाँ| |
(ब) गणितीय रीतियाँ |
विक्षेप या बिन्दु चित्र रीति |
कार्ल पियर्सन का सहसंबंध गुणांक |
स्पियरमैन की श्रेणी अंतर विधि। |