किसी भी सांख्यिकीय अनुसंधान के लिए सर्वप्रथम आंकड़ों का संकलन किया जाता है। ऐसी स्थिति में आंकड़ों का संकलन कार्य शुरू करने से पूर्व आंकड़े संकलन की विधि निश्चित करना आवश्यक है। संमको को निम्न दो विधियों द्वारा एकत्र किया जा सकता है :
(A) संगणना विधि :-
सिम्पसन तथा काफ्का के अनुसार," समग्र या जनसंख्या की परिभाषा एक जैसी विशेषता या विशेषताओं वाले संपूर्ण मदों के रुप में दी जा सकती है।"
उपयुक्तता:
1. जिनका अनुसंधान
क्षेत्र सीमित आकार का हो।
2. जब समग्र
में विभिन्न गुणों वाली इकाइयां पायी जाती हों।
3. जहां शुद्धता
की अत्यधिक मात्रा अपेक्षित हो।
4. जहां
प्रत्येक इकाई का गहन अध्ययन करना हो।
गुण/लाभ:
चूंकि
अनुसंधान क्षेत्र की सभी इकाइयों से इस विधि में जानकारी प्राप्त की जाती है,
अतः इस विधि के परिणामों के विश्वसनीय होने की संभावनाएं अधिक होती है।
संगणना अनुसंधान चुकि बड़े पैमाने पर किया जाता है, अतः इससे अनेक महत्वपूर्ण तथ्य सामने आते हैं
तथा समग्र के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त हो पाती है।
एक समग्र
में विभिन्न प्रकार की मदे होती
है जिन सबका अध्ययन इस विधि में किया जाता है।
अगर समग्र बहुत बड़ा हो तो प्रत्येक इकाई से सूचना प्राप्त
करने में काफी श्रम एवं वित्तीय साधनों की आवश्यकता होती है।
ऐसा हो सकता है कि किसी अनुसंधान पर होने वाला खर्च उससे मिलने वाले लाभ से
ज्यादा हो।
अगर अनुसंधान क्षेत्र बहुत बड़ा है,
तो संगणना का काम बहुत से अन्वेषको
से कराया जाता है तथा अगर अन्वेषको की
संख्या ज्यादा हो तो उनपर नियंत्रण मुश्किल हो जाता है। इससे
गलत एवं काल्पनिक सूचनाओं की संभावना बहुत ज्यादा रहती है।
जब समग्र में कुछ इकाइयां नाशवान
होती है तब भी इस विधि का प्रयोग नहीं किया जा सकता क्योंकि कुछ इकाइयां संगणना
की प्रक्रिया में नष्ट हो जाएगी।
5. विश्वसनीयता की कमी
6. सांख्यिकीय अशुद्धियां
7. अत्यधिक समय
(B) निदर्शन विधि या प्रतिदर्श विधि :-
समग्र की इकाइयों का
एक
नमूना
को
निदर्श
या
प्रतिदर्श
कहा
जाता
है, उदाहरण - जब हम चावल
खरीदने
जाते
हैं तो सिर्फ एक मुट्ठी चावल
से समूचे बोंरे का अनुमान लगाते
हैं।
1. जब
अनुसंधान का क्षेत्र विस्तृत हो।
2. जहां
बहुत उच्च स्तर की शुद्धता प्राप्त करना आवश्यक न हो।
3. जहां गहन
एवं अति सूक्ष्म अध्ययन की आवश्यकता न हो।
4. जहां व्यापक
दृष्टि से नियमों का प्रतिपादन करना हो।
1. मितव्ययी
:- यह
विधि मितव्ययी है जिसमें समय, धन एवं श्रम की बचत
होती है।
2. उपयुक्तता
:- विस्तृत अध्ययन क्षेत्र से सम्बन्धित निष्कर्ष निकालने में उपयोगी है।
3. वैज्ञानिक
:- यह
विधि वैज्ञानिक है क्योंकि समग्र में से दूसरा निदर्श लेकर परिणामों
की शुद्धता की जांच की जा सकती है।
4. सरल :-
यह
विधि सरल है जिसे आसानी से समझा जा सकता है।
5. शीघ्र निष्कर्ष
:- इस
विधि से निष्कर्ष जल्दी एवं आसानी से निकाले जा सकते हैं।
1. भ्रामक
निष्कर्ष की सम्भावना होती है क्योंकि निष्कर्ष समग्र
की केवल
कुछ
इकाइयों के आधार पर निकाले जाते हैं।
2. इस विधि
से प्राप्त निष्कर्षों में उच्च स्तरीय शुद्धता नहीं पाई जाती।
3. समग्र की
इकाइयां समरूप न होने पर यह विधि उपयुक्त
नहीं होती।
4. प्रतिनिधि
निदर्श
के चयन के लिए उच्च स्तरीय ज्ञान आवश्यक है।
5. यदि समग्र
का आकार छोटा है, तब यह विधि उपयुक्त
नहीं होती।
श्रेष्ठ निदर्शन की विशेषताएं
एक श्रेष्ठ निदर्शन के
लिए
यह
आवश्यक
है कि उसकी समस्त निर्वाचित इकाइयां
समूचे समग्र का उचित प्रतिनिधित्व करती हो। यह तभी
संभव हो सकता है, जबकि समूह की प्रत्येक इकाई को निदर्श में
शामिल होने का समान अवसर दिया जाए।
निदर्श का आकार पर्याप्त होना चाहिए। यदि
समग्र के लिये गये निदर्श
का आकार पर्याप्त नहीं है तो निदर्श को समग्र
का उचित प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता है।
समग्र की
सभी इकाइयां आपस में स्वतंत्र होनी चाहिए और प्रत्येक इकाई को निदर्श
में चुन लिये जाने का समान अवसर दिया जाना चाहिए।
एक श्रेष्ठ निदर्शन वही हो सकता है जिसका चयन सामान्य ज्ञान और तर्क दोनों के संयोग पर आधारित होता है।
निदर्शन चयन की विधियां
इस विधि को
सम्भावित
निदर्शन
भी
कहा
जाता
है। इस विधि के
अंतर्गत
समग्र
की
प्रत्येक
इकाई
को
समान
महत्व
प्रदान
किया
जाता
है।
इस विधि के अनुसार समग्र इकाइयों के नाम अलग-अलग
चिटों पर लिख दिए जाते हैं, उसके बाद उन्हें किसी बर्तन या डिब्बे में
डालकर इस प्रकार हिलाया जाता है ताकि वे मिल जायें, फिर उनमें से
इच्छित संख्या में चिटों को निकाल लिया जाता है और उन्हें निदर्श में शामिल कर
लिया जाता है।
इस प्रणाली में
निदर्श/प्रतिदर्श
का
चयन
यादृच्छिक
संख्याओ(Random
Number) के आधार पर किया
जाता
है।
यादृच्छिक संख्याओं की बहुत सी सारणीयां (Tables)
उपलब्ध है, उनमें मुख्य टिपिट रैंड, यूल
कैंडोल
आदि
द्वारा तैयार की गई है।
Random Numbers |
||||
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
10480 |
15011 |
01536 |
02017 |
81647 |
22368 |
46373 |
25595 |
85393 |
30995 |
24130 |
48360 |
22527 |
93265 |
76393 |
42167 |
93093 |
06243 |
61680 |
07856 |
37570 |
39975 |
81887 |
16656 |
06121 |
77921 |
06907 |
11008 |
42751 |
2755 |
99562 |
72905 |
56420 |
69994 |
98872 |
96301 |
91977 |
05463 |
07972 |
18876 |
89579 |
14342 |
63661 |
10281 |
17453 |
85475 |
36857 |
53342 |
53988 |
53060 |
28918 |
69578 |
88231 |
33276 |
70997 |
63553 |
20951 |
48235 |
03427 |
49626 |
09429 |
93969 |
52636 |
92737 |
88974 |
10365 |
61129 |
87529 |
85689 |
48237 |
07119 |
97336 |
71048 |
08178 |
77233 |
उदाहरणस्वरूप, अगर हम मान ले कि
पहले स्तंभ(Column) को ले तथा लम्बवत रूप से देखें तो हमें
निम्नलिखित संख्याएं प्राप्त होती है- 10480 ,22368, 24130,
42167, 37570, 77921, 99562, 96301, 89579, 85475, 28918, हम संख्याओं में
प्रथम दो अंक(Digit) देखेंगे, ये
हैं
10, 22, 24, 42, 37, 77, 99, 96, 89, 85, तथा 28 इसमें
77, 99, 96, 89 तथा 85, 50 से बड़े हैं तथा
छात्रों की संख्या है 50 है। अतः इन्हें
प्रतिदर्श में सम्मिलित नहीं किया जाएगा। अतः इस प्रतिदर्श
में हम क्रमांक 10, 22, 24, 42, 37 तथा 28 को
शामिल करेंगे।
इस पद्धति
से चुनाव के पक्षपात की कोई संभावना नहीं रहती क्योंकि सभी इकाइयों के चुने जाने का
समान अवसर होता है।
इस
रीति
से एक विशेष लाभ यह है कि इसमें निदर्श
इकाईयों द्वारा समग्र का एक संक्षिप्त चित्र लिया जाता है।
इस रीति में
निदर्श
की शुद्धता की जांच अन्य निदर्श विभ्रमों का
माप भी किया जा सकता है।
यह
प्रणाली मितव्ययी मानी गई है।
इसका कारण यह है कि इस प्रणाली के अनुसार अनुसंधान करने से समय, श्रम
एवं धन की बचत होती है।
इस प्रणाली को सबसे अधिक वैज्ञानिक
पद्धति माना गया है क्योंकि यह विधि पक्षपात
रहित
है।
निदर्श का
छोटा आकार होने पर दैव निदर्श द्वारा
समग्र
का उचित ढंग से प्रतिनिधित्व नहीं
हो पाता
यदि अनुसंधान का
क्षेत्र छोटा हो तो निदर्श की इकाइयों का चुनाव करने
में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
यदि
समग्र की इकाइयों में विविधता होती है अर्थात इकाइयों के मध्य अंतर काफी बढ़
जाता है, तब यह विधि अनुपयुक्त
हो जाती है।
यह विधि तब प्रयोग की जाती है जब समग्र
में विजातीयता होती है या समग्र की (समष्टि) की इकाइयों में
विविधता पायी जाती है। इस विधि में पहले समग्र की इकाइयों को
गुणों के आधार पर उपवर्गों में बांट लिया जाता है। प्रत्येक वर्ग या
उपवर्ग की इकाइयों में सजातीयता रहती है। तत्पश्चात समग्र के प्रत्येक
सजातीय वर्गों या उपवर्गों से उचित व निर्धारित मात्रा में दैव
निदर्शन
की किसी भी उपयुक्त प्रणाली को अपनाकर निदर्श चुन लिया
जाता है। यहां प्राय: यह
ध्यान
रखा
जाता
है
कि
प्रत्येक
वर्ग
या
उपवर्ग
का
समग्र
में
जो
अनुपात
है,
वहीं
अनुपात निदर्शनों में
भी
उसकी
निदर्शन
इकाइयों
का
हो।
हमें एक ग्राम
का
आर्थिक
सर्वेक्षण
करना
है।
ग्राम
की जनसंख्या 3000 है जिसमें कार्यशील व्यक्ति
1000 है। इन 1000 व्यक्तियों से ही जानकारी प्राप्त
की जा सकती है। अतः इन्हें ही समग्र मान लेते हैं।
इनकी
विशेषताओं के बारे में प्राप्त जानकारी के आधार पर हम इन्हें
निम्नलिखित वर्गों में विभक्त कर सकते हैं :
कृषि |
व्यापार |
नौकरी |
दस्तकारी |
मजदूरी |
योग |
200 |
100 |
150 |
500 |
50 |
1000 |
यदि हमें
10% निदर्श लेना है तो
विभिन्न
संस्तरणों
से
निम्नलिखित
मात्रा
में
व्यक्ति
लिये
जायेंगे
कृषि |
व्यापार |
नौकरी |
दस्तकारी |
मजदूरी |
योग |
20 |
10 |
15 |
50 |
5 |
100 |
इस प्रकार
चुने
गए
100 निदर्शों का अध्ययन करके
स्मगलर
के लिए निष्कर्ष निकाले
जायेंगे।
2. विषमता में उपयोगी :-
जिस समग्र
में विषमता पायी जाती है, उसमें
स्तरित निदर्शन उपयोगी रहता
है।
दसवें निदर्श
की
इकाइयां
चुनने में अधिक नियंत्रण बना रहता है तथा प्रत्येक समूह का प्रतिनिधित्व किया
जा सकता है। इस विधि में एकांगीपन
की संभावना न्यूनतम हो जाती है।
खण्डों में
से
इकाइयों
का चुनाव भौगोलिक आधार पर करने से अनुसंधान करने में धन, समय
और श्रम की बचत होती है।
समग्र
का उचित खण्डों में विभाजन सम्भव न
होने पर निदर्श का उचित चयन नहीं
कर पाता
इस विधि में खण्ड निर्माण करने में अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना होता है।
समग्र के उपवर्गों
की विभिन्न इकाइयों को भार देने में भी
कठिनाइयां उपस्थित हो जाती है।
इस
रीति को अर्द्ध-दैव निदर्शन भी कहा जाता है। इस
रीति
के
अनुसार
समग्र
की
सभी
इकाइयों
को
संख्यात्मक
(Numerical), वर्णात्मक (Alphabetical) तथा भौगोलिक(Geographical)
आधार
पर क्रमबद्ध किया जाता है
तत्पश्चात आवश्यकतानुसार निदर्श इकाइयां चुन ली जाती है।
इस विधि में केवल पहली निदर्श इकाई को दैव
निदर्शन
(Random) के आधार पर छांटा जाता है, जबकि
शेष इकाइयां एक निश्चित क्रम में अपने आप ही छंटती
जाती है। उदाहरण के लिए, यदि
60 छात्रों में से 6 छात्रों का प्रतिदर्श चुनना है तो
सबसे पहले उन्हें एक क्रम में विन्यसित कर देंगे फिर
प्रारंभ के 10 छात्रों में से किसी एक का दैव आधार पर
चयन किया जाएगा और उसके आगे हर दसवें क्रम के छात्र को प्रतिदर्श में शामिल कर लिया जाएगा।
जैसे यदि यदि पहला प्रतिदर्श 10वां
छात्र
है, तब अगले प्रतिदर्श मे 20वें
,30वें,
40वें,50वें
तथा 60वें छात्र का चयन किया जाएगा और इस प्रकार
6 छात्रों का प्रतिदर्श, व्यवस्थित निदर्शन में कर
लिया जाता है।
1. व्यवस्थित
निदर्शन रीति दैव निदर्शन या स्तरित निदर्शन की तुलना में अधिक सुविधाजनक है।
2. इस
रीति
में
परिणाम
लगभग
उतने
ही
शुद्ध
होते
हैं
जितने कि अन्य रीतियों
द्वारा
प्राप्त।
3. इस
रीति
मे
समय तथा परिश्रम बहुत कम लगता है।
1. निदर्श
पक्षपातपूर्ण हो सकता है यदि दैव आधार पर प्रतिदर्शित इकाई में कोई सामयिक दोष हो।
2. यह
रीति
उस
अवस्था में अपनाई जा सकती है जहां पर इकाइयों के पूर्ण सूची उपलब्ध हो।
ऐसा व्यवहार में बहुत कम होता है।
3. समग्र का
आकार अनन्त होने की स्थिति में यह विधि अनुपयुक्त है।
4. निदर्श
की
यह
रीति
उचित
यादृच्छिक
निदर्श
रीति
नहीं
है क्योंकि प्रथम इकाई का चयन करने
के बाद अन्य इकाइयों का चयन स्वत: ही एक निश्चित
अंतराल के बाद हो जाता है।
इस रीति के अनुसार अनुसंधानकर्ता सम्पूर्ण
क्षेत्र में से अपनी इच्छानुसार समग्र से संबंधित व्यक्तिगत ज्ञान के आधार पर ऐसी इकाइयां
चुन लेता है जिन्हें उसकी आधारभूत मान्यता पर
स्वीकार किया जा सकता है कि अनुसंधानकर्ता समग्र की
समस्त विशेषताओं से पूर्वरुपेण परिचित
है।
उदाहरण के लिए मजदूरों की ऋणग्रस्तता
की
स्थिति
के बारे में निदर्शन अनुसंधान करना हो तो सविचार
निदर्शन रीति के अनुसार अनुसंधानकर्ता ऐसे मजदूरों को निदर्श में
शामिल
करेगा जो उसके विचार में सभी मजदूरों का प्रतिनिधित्व
करते हो। इस प्रकार इस
प्रणाली की प्रमुख मान्यताएं निम्नलिखित हैं :
(क) अनुसंधानकर्ता
स्मगलर
के समस्त लक्षणों से पूर्णरुपेण
परिचित हैं।
(ख) निदर्श
के पीछे
एक विशिष्ट उद्देश्य है, अनेक उद्देश्य
नहीं।
(ग) इसमें अनुसंधानकर्ता अपनी इच्छानुसार केवल उन
इकाइयोंको
निदर्शन
में सम्मिलित करता है जिन्हें वह उपयुक्त या समग्र
का
प्रतिनिधि
समझता है।
1. निदर्शन
की यह पद्धति बहुत सरल है।
2. प्रमाप
निश्चित
करके निदर्श का चुनाव करने से चुनाव के ठीक होने
की संभावना होती है।
3. यह
उस अनुसंधान के लिए अधिक उपयुक्त है जहां कुछ महत्वपूर्ण इकाइयों को शामिल
करना अनिवार्य हो।
1. चयनकर्ता
की
पूर्व
धारणाओं
का निदर्श के चुनाव पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
इससे निष्कर्ष अशुद्ध
हो जाते हैं।
2. निदर्शन
विभ्रम ज्ञात नहीं किया जा सकता।
3. निदर्शन
अनुमानों की सत्यता की कोई गारण्टी नहीं होती।
4. न्यादर्शें
के परिणामों की तुलना अन्य न्यादर्शें के परिणामों
से नहीं की जा सकती।
इस प्रणाली में निदर्शन का चुनाव
करने के लिए अध्ययन विषय से संबंधित समग्र को उपयुक्त आधारों पर अनेक वर्गों में विभाजित
कर लिया जाता है फिर प्रत्येक वर्ग से कितनी इकाइयां निदर्शन
के रूप में चुनी है, इसका निर्धारण कर लिया जाता है
अर्थात निदर्शन इकाइयों का कोटा निश्चित कर
दिया जाता है। अतः: अंत में प्रशासको एवं कार्यकर्ताओं को यह कार्य
सौंप दिया जाता है कि वे प्रत्येक वर्ग
से निर्धारित मात्रा में निदर्शन इकाइयों का
चयन अपनी इच्छानुसार कर ले। कोटा
निदर्शन
को
प्राय:
प्रतिनिधि
(Representative) निदर्शन भी कहते हैं।
इस प्रणाली
में अनुसंधानकर्ता स्वयं अपनी सुविधा के अनुसार निदर्शन का
चुनाव करता है। अनुसन्धानकर्ता अपने
उद्देश्यों को ध्यान में रखकर अध्ययन के लिए सुविधाजनक इकाइयों को छांट
लेता है। यह विधि अवैज्ञानिक
है क्योंकि इसमें पक्षपात व मिथ्या-झुकाव
का
किसी
भी
सीमा
तक
समावेश
हो
सकता
है।
प्राय:
अनुसंधानकर्ता
इस विधि के प्रयोग से
बचता
है।
संगणना पद्धति |
निदर्शन पद्धति |
समग्र की सभी इकाइयों का अध्ययन किया जाता है। |
समग्र की केवल कुछ चुनी हुई इकाइयों का ही अध्ययन किया जाता है। |
अधिक समय,धन व कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है। |
अपेक्षाकृत कम समय,धन व कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है। |
व्यक्तिगत आधार पर आयोजन सम्भव नहीं होता। |
व्यक्तिगत आधार पर आयोजन सम्भव है। |
निष्कर्ष अधिक परिशुद्ध एवं विश्वसनीय होते हैं। |
निष्कर्ष अपेक्षाकृत कम शुद्ध एवं विश्वसनीय होते हैं। |
विशेष ज्ञान,प्रशिक्षण व अनुभव की आवश्यकता अपेक्षाकृत कम होती है। |
विशेष ज्ञान,प्रशिक्षण व अनुभव की अधिक आवश्यकता होती है। |
यह विधि सीमित आकार वाले अनुसंधान क्षेत्र के लिए उपयुक्त है। |
यह विधि विस्तृत आकार वाले अनुसंधान क्षेत्र के लिए उपयुक्त है। |
संगणना विधि उस दशा में उपयोगी होती है जब समग्र की मदें विजातीय होती हैं। |
निदर्शन विधि उस तब उपयोगी होती है जब समग्र की मदों में समानता पाई जाती हैं। |