आंकड़ों के
व्यवस्थीकरण में इनके वर्गीकरण तथा सारणीयन की आवश्यकता
पड़ती है। सारणीयन से पहले
वर्गीकरण
किया
जाता है क्योंकि इसमें समान विशेषता
वाली
मदों
को
एकत्रित
कर
लिया
जाता
है तथा बाद में उन्हें
सारणीयन
द्वारा
प्रस्तुत
किया जाता है।
समंको को उनकी विशेषताओं के आधार पर विभिन्न वर्गों में
विभाजित किया जाता है। इसी क्रिया को वर्गीकरण कहते हैं।
प्रो. काॅनर के अनुसार,"वर्गीकरण तथ्यों को उनके समान गुणों के अनुसार समूहों या वर्गों में व्यवस्थित करने की एक प्रक्रिया है और यह विभिन्नता में स्थित लक्षणों की एकता को अभिव्यक्त करता है।"
1. वर्गीकरण
में
आंकड़ों को सजातीय समूहों में विभाजित किया जाता है।
एक
समूह में केवल समान विशेषता वाले तथ्यों या आंकड़ों
को ही रखा जाता है।
2. वर्गीकरण
विविधता में एकता प्रस्तुत करता है।
3. वर्गीकरण
वास्तविक या वैचारिक हो सकता है।
4. वर्गीकरण का आधार गुण,अकार अथवा मूल्य
हो सकता है।
5. वर्गीकरण आंकड़ों को तुलनीय एवं सहज बना देता है।
वर्गीकरण द्वारा कठिन व बिखरे हुए तथ्यों को संक्षिप्त,
सरल व तर्कयुक्त रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
वर्गीकरण से अस्त-व्यस्त
आंकड़े ऐसे ढंग से व्यवस्थित हो जाते हैं कि
उनसे आपस में तुलना की जा सकती है।
वर्गीकरण से
सांख्यिकीय
तथ्यों की उपयोगिता में वृद्धि होती है क्योंकि समान गुण वाले मद
एक साथ रखे जाते हैं।
वर्गीकरण द्वारा सांख्यिकीय
सामग्री के सारणीयन तथा सांख्यिकीय विश्लेषण के लिए वैज्ञानिक आधार तैयार किया
जाता है क्योंकि वर्गीकरण के बिना समंको का सारणीयन
करना संभव नहीं हो सकता।
वर्गीकरण द्वारा समंको को आकर्षक
बनाया जाता है
वर्गीकरण हमेशा एक ही सिद्धांत पर किया
जाना चाहिए। सिद्धांत में परिवर्तन
होने से आंकड़े तुलना योग्य नहीं रह जाते।
विभिन्न वर्गों में
पृथकता स्पष्ट होनी चाहिए। प्रत्येक वर्ग
का क्षेत्र निर्धारित होना चाहिए। किसी भी पद को एक
से अधिक वर्ग में नहीं रखना चाहिए।
वर्गीकरण अनुसंधान के उद्देश्य के मुताबिक किया जाना
चाहिए। यदि अनुसंधानकर्ता
को आय ज्ञात करने के लिए कहा गया हो तो उम्र के अनुसार वर्गीकरण करना निरर्थक होगा।
वर्गीकरण में लोच
का गुण होना चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर वर्गों को हटाकर नए वर्गों को बनाया
जा सके।
इसका मतलब यह है
कि विभिन्न वर्गों में शामिल मदें समग्र की मदों
के
बराबर होनी चाहिए।
वर्गीकरण के अंतर्गत आंकड़ों में स्पष्टता
होनी चाहिए। आंकड़ों में संदिग्धता
एवं अस्पष्टता नहीं रहनी चाहिए।
सांख्यिकीय आंकड़ों
को उनकी विशेषताओं के अनुसार निम्नलिखित आधार पर विभाजित किया जा सकता है-1.कालक्रमानुसार वर्गीकरण
2. भौगोलिक
वर्गीकरण 3. गुणात्मक वर्गीकरण 4. संख्यात्मक वर्गीकरण।
जब आंकड़ों का वर्गीकरण समय को आधार मानकर किया जाता है तब उसे कालक्रमानुसार वर्गीकरण कहते हैं। आंकड़ों को सामान्यतः चढ़ते हुए क्रम में सजाया जाता है किंतु कुछ वर्गीकरणों में आंकड़े उतरते हुए क्रम में भी व्यवस्थित किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए,एक दशक में किसी कारखाने में श्रमिकों की संख्या -
जब आंकड़ों को स्थान अथवा भौगोलिक स्थिति के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है, तब उसे भौगोलिक वर्गीकरण कहते हैं। उदाहरण के लिए विभिन्न देशों में खाद्यान्न की प्रति एकड़ उपज-
जब आंकड़ों को उनके गुणों के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है तब उसे गुणात्मक वर्गीकरण कहते हैं,जैसे - साक्षरता, धर्म, राष्ट्रीयता आदि। गुणात्मक वर्गीकरण दो प्रकार का होता है -
केवल एक गुण की दशा में जब आंकड़ों को दो छोटे वर्गों में बांटा जाता है तो उसे साधारण वर्गीकरण कहते हैं। चूंकि इसमें दो छोटे वर्ग होते हैं, अतः इसे द्विभाजित वर्गीकरण भी कहा जाता है।(जैसे- स्त्री - पुरुष, शिक्षित-अशिक्षित, विवाहित-अविवाहित आदि)
जब वर्गीकरण एक
से
अधिक
गुणों
को
ध्यान
में रखकर किया जाता है तो
उसे
बहुगुणी
अथवा
बहुभाजित वर्गीकरण कहते हैं। इसमें
दो
या
दो
से
अधिक
वर्ग हो सकते हैं।
उदाहरण के लिए - जनसंख्या को (क) ग्रामीण जनसंख्या तथा (ख) शहरी जनसंख्या के रुप में बांटा जा सकता है। इसमें आगे उप-वर्गीकरण भी किया जा सकता है। जैसे, ग्रामीण तथा शहरी जनसंख्या को शिक्षित तथा अशिक्षित एवं शिक्षित तथा अशिक्षित को प्रौढ़, युवक तथा बच्चों के रुप में विभाजित किया जा सकता है।
संख्यात्मक तथ्यों को
घर (Variable)
कहते
हैं। चर वह संख्यात्मक इकाई है जो मात्रा
अथवा आकार में घटता बढ़ता रहता है, जैसे व्यक्तियों
की आयु, लंबाई, वजन, आय, मूल्य, मजदूरी, प्राप्तांक इत्यादि। भिन्न-भिन्न
चरों
की माप भिन्न-भिन्न इकाइयों में की जाती है, (जैसे
आयु की माप वर्षों में, लंबाई की माप सेंटीमीटर
में और आय की माप रुपये में)
चर दो प्रकार
के होते हैं - खण्डित चर तथा अखण्डित चर
खण्डित चर वे
है
जिनके
मूल्य निश्चित और पूर्णांकों के रूप में होते हैं उदाहरणार्थ दुर्घटनाओं की संख्या 0,1,2,3 होगी, आधी या चौथाई में
नहीं।
अखण्डित या सतत चर वह चर है जो निश्चित नहीं होती अर्थात जिसका निश्चित सीमाओं के अंतर्गत कोई भी मूल्य हो सकता है। जब एक व्यक्ति की ऊंचाई 5 फुट से बढ़कर 6 फुट होती है तो वह फुट 5 फुट से 6 फुट तक के प्रत्येक ऊंचाई से गुजरेगा।
'चर' शब्द
का
उपयोग
तभी
किया
जाता
है
जब
वे
परिवर्तनशील
संख्याओं
में
मापी
जा
सकती
है।
जैसे
वर्ष 2016 में
कक्षा 12 के
छात्रों
की
औसत
लम्बाई
5'6"थी जबकि वर्ष 2015 में यह
औसत
लम्बाई
5'4" थी। इसके विपरीत उन
परिवर्तनो
को
जिन्हें
संख्यात्मक रुप से नहीं मापा
जा
सकता, जैसे - अति
उत्तम, उत्तम
व
अच्छा
कोटियों
के
आधार
पर
छात्रों
की
बुद्धिमत्ता
को
व्यक्त
करना
गुण
कहलायेगा।
इन्हे
गुणात्मक
आंकड़े
कहा जाता है।
संख्यात्मक
वर्गीकरण की विधियां :- सामान्यतः संख्यात्मक वर्गीकरण में दो स्तर
सम्मिलित
होते
हैं
: 1. कच्चे आंकड़े और 2. सांख्यिकी श्रेणियां
वर्गीकरण और
सांख्यिकी श्रेणी में अन्तर यही
है
कि
वर्गीकरण
से
अभिप्राय
आंकड़ों
को
कई
वर्गों
में
विभाजित
करने
से
है
जबकि
श्रेणी
का
अर्थ
है
आंकड़ों
को
क्रमबद्ध
ढंग
से सुव्यवस्थित करना।
कच्चे आंकड़े वे आंकड़े होते हैं जिन्हें एक अनुसंधानकर्ता अपने अनुसंधान के दौरान संकलित करता है। ये आंकड़े अव्यवस्थित रुप में होते हैं। अनुसंधानकर्ता द्वारा इन्हें व्यवस्थित किया जाता है। उदाहरण के लिये,तीस छात्रों द्वारा अर्थशास्त्र के प्रश्न पत्थर में कुल 50 अंको में प्राप्तांको को निम्नलिखित सारणी द्वारा दर्शाया गया है :
उपरोक्त
सारणी
में
दिए
गए
आंकड़े 'शुद्ध
आंकड़ों' कहलायेंगे।
इनका
व्यवस्थितीकरण
करने
के
लिए
एक
अनुसंधानकर्ता
श्र्ंखलाओं
के
रुप
में
इनका
वर्गीकरण
करता
है।
संकलित तथा वर्गीकृत आंकड़ों को उचित रुप से क्रमबद्ध करने के लिए सांख्यिकीय श्रेणियो का प्रयोग किया जाता है।
प्रो. काॅनर के अनुसार ," यदि दो परिवर्ती राशियाॅ साथ-साथ इस प्रकार व्यवस्थित की जाये कि एक में
मापनीय अन्तर दूसरे में मापनीय अन्तर के अनुरूप हो तो ऐसे परिणाम को सांख्यिकीय श्रेणी कहा जाता है।"
सांख्यिकीय श्रेणीयों के दो प्रकार हैं - (A) व्यक्तिगत श्रेणी (B) आवृत्ति वितरण श्रेणी
व्यक्तिगत श्रेणी का आशय - यह एक ऐसी श्रेणी होती है जिसमें प्रत्येक मूल्य को स्वतन्त्र रुप से दिखाया जाता है। इन्हें
वर्गों में विभाजित नहीं किया जाता है और न ही इन्हें आवृत्तिबद्ध किया जाता है। जो मूल्य जितनी बार आता है,उतनी बार ही पृथक् रुप से अंकित किया जाता है। इन मूल्यों को आरोही या अवरोही क्रम में व्यवस्थित कर लिया जाता है।सामान्यत: ऐसी श्रेणी
में क्रम संख्या, अनुक्रमांक, वर्ष, स्थानों
के नाम या व्यक्तियों के नाम आदि दिये होते हैं। इसकी विशेष पहचान यह है कि इसमें पद मूल्य दिए होते हैं, उनकी आवर्ती नहीं होती।
जैसे : 10 छात्रों के प्राप्तांक - 17, 32 ,35, 33,15, 26 ,41,
32,11,18
मौलिक
रुप
से
एकत्रित
सामूहिक
आंकड़ों
को
कच्चे
आंकड़े अथवा अव्यवस्थित आंकड़े कहा
जाता
हैं। जिन्हें व्यक्तिगत श्रेणी
के
अन्तर्गत
निम्न
में से किसी भी आधार पर व्यवस्थित
किया
जा
सकता
है -
1. क्रमानुसार
(Serial Order)
2. आरोही
अथवा
चढ़ते
हुए क्रम के अनुसार (Ascending Order) तथा
3. अवरोही
अथवा
उतरते हुए क्रम के अनुसार (Descending Order)
मान
लिया
जाय
कि
किसी
अन्वेषक
ने
एक
कारखाने
के 20 मजदूरों
की
दैनिक
मजदूरी
के
भुगतान
के
आंकड़े
एकत्रित
किये
है। इन आंकड़ों को अव्यवस्थित
या
कच्चे
आंकड़े
कहेंगे।
तालिका से
50,70,60,80,100,95,40,45,65,90,55,56,58,85,75,68,82,92,98,105
क्रमांक |
मजदूरी |
क्रमांक |
मजदूरी |
1 |
50 |
11 |
55 |
2 |
70 |
12 |
56 |
3 |
60 |
13 |
58 |
4 |
80 |
14 |
85 |
5 |
100 |
15 |
75 |
6 |
95 |
16 |
68 |
7 |
40 |
17 |
82 |
8 |
45 |
18 |
92 |
9 |
65 |
19 |
98 |
10 |
90 |
20 |
105 |
40,45,50,55,56,58,60,65,68,70,75,80,82,85,90,92,95,98,100,105
उतरते हुए क्रम में (मजदूरी रु.में)
105,100,98,95,92,90,85,82,80,75,70,68,65,60,58,56,55,50,45,40
क्राक्सटन एवं
काउडन
के
अनुसार," आवृत्ति
वितरण
एक
सांख्यिकीय
सारणी
है
जो
चर
के विभिन्न व्यवस्थित मूल्यों
को
आकार
के
आधार
पर व्यक्तिगत रुप में या
विशेष
समूहों
में
उनकी
आवृत्तियो
के
साथ-साथ
प्रस्तुत
करती
है।"
इसके
निर्माण
में निम्नलिखित बातों पर ध्यान
देना चाहिए
1. जब
आवृत्ति
तालिका
में वर्गों की संख्या बहुत ज्यादा रहती है तो हालांकि वह ज्यादा सूचनाएं देती
है किंतु वह आसानी से मस्तिष्क मे नहीं अट सकती है
तथा इसके विश्लेषण में काफी कठिनाई होती है। इसी
कारण से साधारणतया हम आवर्गीकृत आंकड़ों को 7-15 वर्गों में बांटते
हैं लेकिन यह नियम नहीं है। आवश्यकतानुसार वर्गों की संख्या
को बढ़ाया जा सकता है। ध्यान रहे हम आंकड़ों का
इस तरह वर्गीकरण करें कि उनका बुद्धिमतापूर्व
विश्लेषण किया जा सके।
2. वर्ग अन्तराल का बराबर
होना आवश्यक नहीं है। वर्गों का अन्तराल अलग अलग हो सकता है।
खण्डित श्रेणी में किसी भी
मूल्य
को
बार
बार
नहीं
लिखी जाती है।प्रत्येक
मूल्य
केवल
एक
बार
लिखा
जाता
है। यदि कोई मूल्य
या
कुछ
मूल्य
बार
बार
आये
हैं, तो जितनी
बार उनकी पुनरावृत्ति होती हैं,
वह
उस
मूल्य
की
आवृत्ति
कहलाती
है और खण्डित श्रेणी में
उस
मूल्य
के
सामने
उसकी
आवृत्ति
लिख
दी
जाती
है। खण्डित श्रेणी में प्रत्येक
मूल्य
के
सामने
उसकी
आवृत्ति
का
उल्लेख
होता है। चर के मान तथा बारंबारता दी है तो वह श्रेणी असतत श्रेणी (DS) कहलाती है|
उदाहरण- अपने स्कूल के ग्यारहवीं
कक्षा के 25 विद्यार्थियों के उम्र की एक आवृत्ति वितरण बनाइए
16,17,18,18,17,15,15,16,16,17,15,16,16,15,16,16,15,17,17,18,19,16,15,15,16
अंक |
मिलान
चिह्र(Tally Bars) |
आवृत्ति
(f) |
15 |
|
7 |
16 |
|
9 |
17 |
|
5 |
18 |
III |
3 |
19 |
I |
1 |
|
|
25 |
सतत श्रेणी में पदों को कुछ निश्चित वर्गों में रखे जाने पर पद मूल्य अपनी व्यक्तिगत पहचान खो देते हैं। व्यक्तिगत पद मूल्य किसी न किसी वर्ग समूह में समा जाते हैं। इस प्रकार बनाए गये वर्गों में निरंतरता रहती है, क्योंकि जहां एक वर्ग समाप्त होता है वहीं से दूसरा वर्ग शुरू होता है। इस वर्ग निरंतरता के कारण ही इस प्रकार की श्रेणी को सतत श्रेणी कहते हैं। सतत श्रेणी का प्रयोग तब ज्यादा होता है, जबकि पद मूल्य बहुत ज्यादा होते हैं तथा उनका विस्तार भी ज्यादा होता है।
वर्ग
(x) |
आवृत्ति
(f) |
0-10 |
4 |
10-20 |
3 |
20-30 |
2 |
30-40 |
10 |
40-50 |
8 |
50-60 |
7 |
60-70 |
3 |
70-80 |
2 |
सतत श्रेणी के प्रकार
1.अपवर्जी श्रेणी :-
इस श्रेणी में पहले वर्ग की उच्च सीमा अगले वर्ग की निम्न सीमा(L1 ) होती है प्रत्येक वर्ग की। उच्च सीमा (L2 ) का मूल्य उस वर्ग में शामिल नहीं होता बल्कि वह अगले वर्ग में शामिल होती है। इसलिए इसे अपवर्जी श्रेणी कहा जाता है। उदाहरण के लिए, यदि आय वर्ग 100-200 तथा 200-300 है तो 200 आय वाला व्यक्ति 100-200 वर्ग में शामिल न होकर 200-300 वाले वर्ग में शामिल होगा। उदाहरण
वर्ग
(x) |
आवृत्ति
(f) |
0-10 |
4 |
10-20 |
3 |
20-30 |
2 |
30-40 |
10 |
40-50 |
8 |
50-60 |
7 |
60-70 |
3 |
70-80 |
2 |
हल :- अगर
प्रश्र
समावेशी
श्रेणी में रहे तो,उसे अपवर्जी
श्रेणी में परिवर्तित करना
होगा।
उसके
लिए
निम्न
सीमा में 0.5 घटाऐंगे तथा उच्च सीमा में 0.5 जोड़
देंगे।
जैसेउपर्युक्त
श्रेणी
में 10 अंक
पाने
वाला
छात्र
यदि
कोई
होगा, तो
वह 10-20 वर्गान्तर
में
शामिल
होगा।
इसी
प्रकार 70 अंक
पाने
वाले
छात्र 70-80 वर्गान्तर
में
शामिल
होगा।
समावेशी श्रेणी से आशय ऐसी श्रेणी से है जिसमें प्रत्येक वर्ग मूल्य को उसी वर्ग में शामिल किया जाता है श्रेणी में पहले वर्ग की उच्च सीमा (L2 ) तथा अगले वर्ग की निम्न सीमा (L1 ) बराबर नहीं होते हैं। उदाहरण -
प्राप्तांक |
1-5 |
6-10 |
11-15 |
16-20 |
21-25 |
विद्यार्थियों की
संख्या |
7 |
10 |
16 |
32 |
24 |
हल :- अगर प्रश्र समावेशी श्रेणी में रहे तो,उसे अपवर्जी श्रेणी में परिवर्तित करना होगा। उसके लिए निम्न सीमा में 0.5 घटाऐंगे तथा उच्च सीमा में 0.5 जोड़ देंगे। जैसे
प्राप्तांक |
0.5-5.5 |
5.5-10.5 |
10.5-15.5 |
15.5-20.5 |
20.5-25.5 |
विद्यार्थियों की संख्या |
7 |
10 |
16 |
32 |
24 |
अपवर्जी श्रेणी |
समावेशी श्रेणी |
वर्ग की उच्च सीमा उस वर्ग में सम्मिलित न होकर अगले वर्ग में शामिल होती है। |
वर्ग के दोनों सीमाएं इसी वर्ग में सम्मिलित होती है। |
वर्ग की उच्च सीमा एवं अगले वर्ग की निम्न सीमा एक होती है। |
वर्ग में उच्च सीमा एवं अगले वर्ग की निम्न सीमा एक न होकर भिन्न होती है। अन्तर प्राय: 1 का होता है। |
गणक क्रिया के लिए अपवर्जी को समावेशी में बदलने की आवश्यकता नहीं। |
गणक क्रिया की सरलता के लिए इस रीति को पहले अपवर्जी में बदल लिया जाता है। |
प्रत्येक परिस्थिति में इसका प्रयोग उत्तम होता है। |
जब पद मूल्य पूर्ण संख्या में हो, तभी यह उपयुक्त होती है। |
समावेशी
श्रेणी का प्रयोग उस समय
उचित
रहता
है, जबकि मूल्यों में आंशिक
अन्तर
न
होकर
एक
का
अन्तर
होता
है।
कभी कभी श्रेणी के प्रथम वर्ग की निचली सीमा तथा अंतिम वर्ग की ऊपरी सीमा नहीं लिखी जाती है। ऐसी श्रेणी को खुले सिरे वाले श्रेणी कहते हैं। ऐसी श्रेणियों में प्रथम वर्ग की निचली सीमा के स्थान पर से कम तथा ऊपरी सीमा के स्थान पर से अधिक लिखा होता है। ऐसी स्थिति में प्रथम वर्ग तथा अंतिम वर्ग का वर्ग विस्तार निकट के वर्गों के वर्ग विस्तार के आधार पर निकाला जाता है। उदाहरण -
प्राप्तांक |
5
से कम |
5-10 |
10-15 |
15-20 |
20
से अधिक |
विद्यार्थियों की संख्या |
2 |
3 |
7 |
4 |
8 |
प्राप्तांक |
0-5 |
5-10 |
10-15 |
15-20 |
20-25 |
विद्यार्थियों की संख्या |
1 |
4 |
3 |
4 |
8 |
इसमें बारम्बारता
को
नीचे
से
घटाते
जाना
है।
संचयी आवृत्ति श्रेणी से
आशय ऐसी श्रेणी से है जिसमें विभिन्न वर्गों की आवृत्तियां वर्गानुसार अलग-अलग
नहीं दी जाती है, बल्कि आवृर्तियां संचयी रूप में लिखी होती है।
ऐसी श्रेणी में प्रत्येक वर्ग की दोनों सीमाएं नहीं लिखी होती है , केवल ऊपरी अथवा
निचली एक ही सीमा लिखी होती है। ऊपरी सीमा के आधार पर संचयी आवृत्ति लिखते समय पद
मूल्य के पहले से कम शब्द लिखा होता है तथा निचली सीमा के अनुसार संचयी आवृत्तियां
लिखते समय पद मूल के बाद से अधिक शब्द लिखा होता है। संचयी आवृत्ति श्रेणी के
प्रश्न को हल करते समय पहले उसे संचयी से साधारण आवर्ति में बदला जाता है
।
वह श्रेणी है जिसमें वर्ग अंतरों के साथ उनकी आवृत्ति दिखलायी जाती है तथा उस आवृत्ति का पिछली तथा बाद वाली आवृत्ति से कोई संबंध नहीं होता। उदाहरणों
प्राप्तांक |
0-10 |
10-20 |
20-30 |
30-40 |
40-50 |
विद्यार्थियों की संख्या |
2 |
10 |
14 |
8 |
6 |
(अ) 'से कम' संचयी आवृत्ति
प्राप्तांक |
10
से कम |
20
से कम |
30
से कम |
40
से कम |
50
से कम |
विद्यार्थियों की
संख्या |
4 |
8 |
10 |
12 |
40 |
हल :-
प्राप्तांक |
0-10 |
10-20 |
20-30 |
30-40 |
40-50 |
विद्यार्थियों की संख्या |
4 |
4 |
2 |
2 |
28 |
इसमें बारम्बारता को ऊपर
से
घटाते
जाना
है।
प्राप्तांक |
10 से
अधिक |
20 से
अधिक |
30 से
अधिक |
40 से
अधिक |
50 से
अधिक |
विद्यार्थियों की संख्या |
4 |
6 |
8 |
12 |
18 |
हल:-
प्राप्तांक |
10-20 |
20-30 |
30-40 |
40-50 |
50-60 |
विद्यार्थियों की संख्या |
2 |
2 |
4 |
6 |
18 |
से अधिक में
बारम्बारता
को
नीचे
से
घटाते
जाना
है।
ऐसी श्रेणियों को साधारण श्रेणी में बदलने के लिए मध्य मूल्यों के वर्ग ज्ञात करने होते हैं। इनकी प्रक्रिया निम्नलिखित प्रकार है : पहले मध्य बिंदुओं के अंतर का आधा ज्ञात किया जाता है उस आधे मूल्य को मध्य बिंदु में से घटाने पर निम्न सीमा तथा जोड़ने पर उच्च सीमा ज्ञात हो जाती है ।
मध्य बिंदु |
5 |
15 |
25 |
35 |
45 |
55 |
65 |
आवृत्तियां |
4 |
3 |
2 |
10 |
2 |
8 |
4 |