झारखंड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण
परिषद्, राँची (झारखंड)
Jharkhand Council of Educational Research
and Training, Ranchi
(Jharkhand)
द्वितीय सावधिक परीक्षा - 2021-2022
Second Terminal Examination - 2021-2022
मॉडल प्रश्नपत्र
Model Question Paper
सेट- 3
(Set - 3)
वर्ग- 12 (Class-12) |
विषय - भूगोल (Sub - Geography) |
पूर्णांक-35 (F.M-35) |
समय-1:30 घंटे (Time-1:30 hours) |
सामान्य
निर्देश (General Instructions) -
» परीक्षार्थी यथासंभव अपने
शब्दों में उत्तर दें।
» कुल प्रश्नों की संख्या
19 है।
» प्रश्न संख्या 1 से प्रश्न
संख्या 7 तक अति लघूत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर अधिकतम एक वाक्य में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 2 अंक
निर्धारित है।
» प्रश्न संख्या 8 से प्रश्न
संख्या 14 तक लघूतरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं 5 प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 50 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 3 अंक निर्धारित
है।
» प्रश्न संख्या 15 से प्रश्न
संख्या 19 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 5 अंक निर्धारित
है।
खंड- A अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1.परिवहन को
परिभाषित करें।
उत्तर: वस्तुओं तथा यात्रियों
को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने की प्रक्रिया को परिवहन कहते हैं।
2. जनसंख्या
घनत्व को परिभाषित करें।
उत्तर: जनसंख्या घनत्व की गणना
करने के लिए, जनसंख्या को क्षेत्रफल से विभाजित किया जाता है। किसी भौगोलिक क्षेत्र
में रहने वाले लोगों की संख्या है को जनसंख्या घनत्व कहते हैं।
3. बाढ़ क्या
है।
उत्तर: बाढ़ एक आपदा का नाम
है, जिसमें जल का अस्थायी अतिप्रवाह होने से अत्यधिक जलजमाव सूखी भूमि हो जाता हो,
उसे बाढ़ या सैलाब कहते हैं और अंग्रेजी भाषा में फ्लड (Flood) कहते हैं।
4.मानव प्रवास
से आप क्या समझते हैं।
उत्तर: प्रवास का आशय एक स्थान
को छोड़कर किसी दूसरे स्थान पर बसने से हैं।
5. खरीफ़ फसल
क्या है।
उत्तर: खरीफ की फसल उन फसलों
को कहते हैं जिन्हें जून-जुलाई में बोते हैं और अक्टूबर के आसपास काटते हैं।
6.साक्षरता से
क्या समझते हैं।
उत्तर: साक्षरता का अर्थ है
साक्षर होना अर्थात पढने और लिखने की क्षमता से संपन्न होना।
7.स्वर्णिम चतुर्भुज से आप
क्या समझते हैं।
उत्तर: स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना
देश के चार महानगरों को राष्ट्रीय राजमार्ग (National Highway) से जोड़ने वाली परियोजना
है। दिल्ली-मुम्बई-चेन्नई-कोलकाता इसकी कुल लम्बाई 5846 कि०मी० है।
8.परंपरागत ऊर्जा
स्रोतों का वर्णन करें।
उत्तर: जीवाश्म ईंधन ऊर्जा
के प्रमुख परंपरागत स्रोत जाने जाते है। जीवाश्म ईंधन जीव जंतुओं और वनस्पतियों के
जमीन यानी मिट्टी के अंदर या समुद्र के नीचे अधिक दाब एवं ऊष्मा के कारण बनने वाले
ईंधन को जीवाश्म ईंधन कहते हैं। ये निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं –
1. कोयला
2. पेट्रोलियम
3. प्राकृतिक गैस
कोयला – कोयला मुख्य रूूप से
कार्बन हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के यौगिक होते हैं। कोयला में कुछ स्वतंत्र कार्बन, नाइट्रोजन
और सल्फर के योगिक भी मिलते हैं। यह काफी वायुप्रदूषण फैलाता है।
पेट्रोलियम – मिट्टी के नीचे
से निकाला जाने वाला काले रंग का गाढ़ा द्रव है। इसे तेल भी कह सकते हैं। ये कई प्रकार
के हाइड्रोकार्बन का मिश्रण होता है। इसके अंदर कुछ मात्रा में जल, लवण, मिट्टी, कार्बन
के यौगिक ऑक्सीजन और नाइट्रोजन के योगिक भी होते हैं। कच्चे तेल को शुद्धीकरण के बाद
हमें डीजल, पेट्रोल, केरोसीन तथा सह – उत्पाद के रूप में हमें गैैैैसेंं प्राप्त होती
हैं। जोकि निम्न है – ब्यूटेन प्रोपेन और एथेन आदि।
प्राकृतिक गैस – ब्यूूूटेेन,
प्रोपेन मेथेन एथेन आदि ऐसी गैस है। जो धरती के पेट्रोलियम खदानों के साथ पाई जाती
है पेट्रोलियम केे शुद्धीकरण के समय भी कुछ मात्रा में यह गैसे प्राप्त होती हैं इन्हें
प्राकृतिक गैसे कहते हैं। डीजल पेट्रोल की अपेक्षा इसमें कम मात्रा में प्रदूषण होता
है आजकल यह एक अच्छे इंधन के रूप में यूज हो रहे हैं।
9.भारत में कृषि
की प्रमुख समस्याओं का वर्णन करें।
उत्तर: कृषि क्षेत्र की समस्याएँ
पूर्व में कृषि क्षेत्र से
संबंधित भारत की रणनीति मुख्य रूप से कृषि उत्पादन बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित
करने पर केंद्रित रही है जिसके कारण किसानों की आय में बढ़ोतरी करने पर कभी ध्यान नहीं
दिया गया।
विगत पचास वर्षों के दौरान
हरित क्रांति को अपनाए जाने के बाद, भारत का खाद्य उत्पादन 3.7 गुना बढ़ा है जबकि जनसंख्या
में 2.55 गुना वृद्धि हुई है, किंतु किसानों की आय वृद्धि संबंधी आँकड़े अभी भी निराशाजनक
हैं।
ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने
वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जो कि इस दिशा
में महत्त्वपूर्ण कदम है किंतु यह लक्ष्य काफी चुनौतिपूर्ण माना जा रहा है।
लगातार बढ़ते जनसांख्यिकीय दबाव,
कृषि में प्रच्छन्न रोज़गार और वैकल्पिक उपयोगों के लिये कृषि भूमि के रूपांतरण जैसे
कारणों से औसत भूमि धारण (Land Holding) में भारी कमी देखी गई है। आँकड़ों के अनुसार,
वर्ष 1970-71 में औसत भूमि धारण 2.28 हेक्टेयर था जो वर्ष 1980-81 में घटकर 1.82 हेक्टेयर
और वर्ष 1995-96 में 1.50 हेक्टेयर हो गया था।
उच्च फसल पैदावार प्राप्त करने
और कृषि उत्पादन में निरंतर वृद्धि के लिये बीज एक महत्त्वपूर्ण और बुनियादी कारक है।
अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों का उत्पादन करना जितना महत्त्वपूर्ण है, उतना ही महत्त्वपूर्ण
है उन बीजों का वितरण करना किंतु दुर्भाग्यवश देश के अधिकतर किसानों तक उच्च गुणवत्ता
वाले बीज पहुँच ही नहीं पाते हैं।
भारत का कृषि क्षेत्र काफी
हद तक मानसून पर निर्भर करता है, प्रत्येक वर्ष देश के करोड़ों किसान परिवार बारिश के
लिये प्रार्थना करते हैं। प्रकृति पर अत्यधिक निर्भरता के कारण कभी-कभी किसानों को
नुकसान का भी सामना करना पड़ता है, यदि अत्यधिक बारिश होती है तो भी फसलों को नुकसान
पहुँचता है और यदि कम बारिश होती है तो भी फसलों को नुकसान पहुँचता है। इसके अतिरिक्त
कृषि के संदर्भ में जलवायु परिवर्तन भी एक प्रमुख समस्या के रूप में सामने आया है और
उनकी मौसम के पैटर्न को परिवर्तन करने में भी भूमिका अदा की है।
आज़ादी के 7 दशकों बाद भी भारत
के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि विपणन व्यवस्था गंभीर हालत में है। यथोचित विपणन सुविधाओं
के अभाव में किसानों को अपने खेत की उपज को बेचने के लिये स्थानीय व्यापारियों और मध्यस्थों
पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे उन्हें फसल का सही मूल्य प्राप्त हो पाता।
10. प्रवास के
परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर: प्रवास के चार मुख्य
परिणाम हैं।
1. आर्थिक परिणाम:- प्रवास
का मुख्य कारण आर्थिक क्रियाओं के द्वारा धन प्राप्त करना है जिसके लिए विभिन्न स्थानों
से प्रवास किया जाता है।
2. जनांकिकीय परिणाम:- प्रवास
से देश के अंदर जनसंख्या का पुर्नवितरण होने से आयु लिंग अनुपात में गहरा प्रभाव प्रभाव
पड़ता है।
3. सामाजिक परिणाम:- प्रवासी
सामाजिक परिवर्तन के कार्यकर्ताओं के रूप में कार्य करते हैं और नवीन प्रौद्योगिकियों,
परिवार नियोजन बालिका शिक्षा इत्यादि से संबंधित नए विचरों का नगरीय क्षेत्रें से ग्रामीण
क्षेत्रों की और विसरण इन्हीं के द्वारा होता है।
4. पर्यावरणीय परिणाम:- ग्रामीण
से नगरीय प्रवास की और बढ़ने से नगरों में जनसंख्या बढ़ती है जिससे वहां की भौतिक व नागरिक
एवं व्यक्तिगत सुविधाएं कम हो जाती है और गंदी बस्तियां बनने लगती है।
11.बहुउद्देशीय
परियोजना से क्या समझते हैं।
उत्तर: नदी घाटी परियोजनाएँ
नदियों की घाटियो पर बडे-बडे बाँध बनाकर ऊर्जा, सिंचाई, पर्यटन स्थलों की सुविधाएं
प्राप्त की जातीं हैं। इसीलिए इन्हें बहूद्देशीय (बहु + उद्देश्यीय) परियोजना कहते
हैं।
12. रेल परिवहन
की विभिन्न समस्याओं का वर्णन करें।
उत्तर: भारतीय रेल परिवहन अनेक
समस्याओं से जूझता हुआ विकास के पथ पर अग्रसर है। जिनमें निम्नलिखित समस्याएँ हैं
1. पूँजी का अभाव-वर्तमान में
देश की जनसंख्या अधिक बढ़ गई है, जिससे रेलों में यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या
तथा ढोये जाने वाले माल की मात्रा में भारी वृद्धि हुई है। अतः रेल परिवहन पर इनका
भारी दबाव है। रेल परिवहन का विकास उसी अनुपात में करने की आवश्यकता है परन्तु देश
की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण पूँजी का अभाव है। माँग के अनुरूप विकास कर पाना
संभव नहीं हो रहा है। अत: अर्थव्यवस्था को कारगार व सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है।
2. पटरी की चौड़ाई में भिन्नता-
भारत में तीन गेजों अर्थात् तीन विभिन्न चौड़ाई की पटरियाँ बिछायी गई हैं। जिनके कारण
निरन्तर यात्रा एवं माल ढुलाई में कठिनाई होती है क्योंकि विभिन्न गेजों वाले रेल स्टेशनों
में माल एवं यात्रियों को गाड़ी बदलने की आवश्यकता होती है अत: समय की बर्बादी होती
है। इससे शीघ्र नष्ट होने वाले माल खराब हो जाते हैं। अत: रेलपथ की चौड़ाई की भिन्नता
को खत्म करने की आवश्यकता है। इसी उद्देश्य से रेलवे ने देशभर में सिर्फ बड़ी रेल लाइनें
रखने और सभी छोटी लाइनों को बड़ी लाइन में बदलने की एक महत्वाकांक्षी योजना तैयार की
है।
3. पुराने रेलपथ–देश की रेल
पटरियाँ एवं रेलवे पुल पुराने हो गये हैं। अब ये अधिक भार व यातायात के योग्य नहीं
रहे। इनमें अब दुर्घटनाएँ होने की संभावनाएँ बढ़ गई हैं। अत: नवीन प्रौद्योगिकी के
अनुसार इनका नवीनीकरण, मरम्मत् एवं देखभाल किया जाना अत्यन्त आवश्यक हो गया है।
4. स्थानाभाव-जनसंख्या वृद्धि
एवं नगरों का विस्तार होने के कारण घने बसे क्षेत्रों में रेलमार्गों के विस्तार के
लिए स्थान का अभाव है। ऐसी स्थिति में महानगरों में रेलपथों का आवश्यकतानुसार विस्तार
करना एक कठिन कार्य है। स्थानाभाव एवं भीड़-भाड़ की समस्या को दूर करने की दृष्टि से
कोलकाता एवं दिल्ली में भूमिगत रेलपथ'' (Metro Rail) का निर्माण किया गया है।
13. किसी देश
के औद्योगिक विकास में लोहा इस्पात उद्योग का क्या महत्व है?
उत्तर: लोहा और इस्पात उद्योग
किसी भी देश का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण उद्योग है। यह उद्योग की रीढ़ है और अधिकांश
उद्योग इस उद्योग पर निर्भर हैं। यह उद्योग मूल सामग्री का उत्पादन करता है जिसका उपयोग
लगभग हर उद्योग कच्चे माल के रूप में करता है। अन्य उद्योगों को भी इस उद्योग की आवश्यकता
उन वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए होती है जो वे उपकरण और मशीनरी की तरह उत्पादन नहीं
कर सकते थे। यह उद्योग उन वस्तुओं का उत्पादन करता है जिनका उपयोग लगभग हर उद्योग द्वारा
किया जाता है। अगर किसी देश में लोहा और इस्पात उद्योग नहीं होगा, तो उद्योगों को नुकसान
होगा और देश विफल हो जाएगा। तो लोहा और इस्पात उद्योग का महत्व यह है कि यह उद्योग
की रीढ़ है।
स्टील राष्ट्र के विकास में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लोहे और स्टील के बिना भारी भवन, परिवहन प्रणाली जैसे
रेल, कार, जहाज और भारी भार वाले वाहनों की आपूर्ति थोक सामग्री के लिए डिजाइन और निर्माण
करना मुश्किल हो सकता है। स्टील और लोहे की प्रमुख विशेषताएं लागत-कुशल, दीर्घकालिक
उपयोग के लिए टिकाऊ, टिकाऊ संरचनाएं और बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं। राष्ट्र का
विकास भी उनके बिजली उत्पादन और परिवहन प्रणाली पर निर्भर करता है।
14. प्रदूषण
एवं प्रदूषक के बीच अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर: मानव गतिविधियाँ किसी
न किसी प्रकार से पर्यावरण को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती ही हैं। एक पत्थर काटने
वाला उपकरण वायुमंडल में निलंबित कणिकीय द्रव्य (Particulate matter, उड़ते हुए कण)
और शोर फैला देता है। गाड़ियां (ऑटोमोबाइल) अपने पीछे लगे निकास पाइप से नाइट्रोजन,
सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोजन का मिश्रण भरा
काला धुआं छोड़ते हैं जिससे वातावरण प्रदूषित होता है। घरेलू अपशिष्ट (कूड़ा-कर्कट)
और खेतों से बहाये जाने वाले कीटनाशक और रासायनिक उर्वरकों से युक्त दूषित पानी जल
निकायों को प्रदूषित करता है। चमड़े के कारखानों से निकलने वाले बर्हिःस्त्राव गंदे
कूड़े और पानी में बहुत से रासायनिक पदार्थ मिले होते हैं और उनसे तीव्र दुर्गंध निष्कासित
होती है। ये केवल कुछ उदाहरण हैं जिनसे पता चलता है कि मानव गतिविधियाँ वातावरण को
कितना प्रदूषित करती हैं। प्रदूषण (Pollution) को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता
है-"मानव गतिविधियों के फलस्वरूप पर्यावरण में अवांछित पदार्थों का एकत्रित होना,
प्रदूषण कहलाता है।" "जो पदार्थ पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं उन्हें प्रदूषक
(Pollutant) कहते हैं।" प्रदूषक वे भौतिक, रासायनिक या जैविक पदार्थ होते हैं
जो अनजाने ही पर्यावरण में निष्कासित हो जाते हैं और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से
मानव-समाज और अन्य जीवधारियों के लिये हानिकारक होते हैं।
15. जल प्रदूषण
को परिभाषित करें। जल प्रदूषण के प्रमुख कारक क्या हैं।
उत्तर: स्वच्छ जलस्रोतों में
विलयित या निलंबित वाह्य पदार्थ, अशुद्धियां मिल जाती हैं, जिससे जल के गुणों में परिवर्तन
हो जाता है। यह जल उपयोग करने लायक न रह कर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बन जाता है।
इसे 'जल प्रदूषण' कहते हैं।
भारत में जल प्रदूषण के बढ़ते
स्तर के प्रमुख कारण निम्नानुसार हैं:
1. औद्योगिक कूड़ा
2. कृषि क्षेत्र में अनुचित
गतिविधियां
3. मैदानी इलाकों में बहने
वाली नदियों के पानी की गुणवत्ता में कमी
4. सामाजिक और धार्मिक रीति-रिवाज,
जैसे पानी में शव को बहाने, नहाने, कचरा फेंकने
5. जहाजों से होने वाला तेल
का रिसाव
6. एसिड रैन (एसिड की बारिश)
7. ग्लोबल वार्मिंग
8. यूट्रोफिकेशन
9. औद्योगिक कचरे के निपटान
की अपर्याप्त व्यवस्था
10. डीनाइट्रिफिकेशन
16. भारत में
कोयला के उत्पादन एवं वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर: कोयला भारत का प्रमुख उर्जा स्रोत है। भारत अपनी व्यावसायिक उर्जा का 67% हिस्सा कोयले से ही प्राप्त करता है इसके सिवाए कार्बो-रासायनिक उद्योगों और घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए भी कोयले का उपयोग किया जाता है। भारत में कोयला प्रचूर मात्रा में पाया जाता है। बढ़िया कोयले के कुल सुरक्षित भंडार के हिसाब से भारत का संसार में अमेरिका के बाद दूसरा स्थान है। बढ़िया कोयले का अर्थ है एंथ्रेसाइट (Anthracite) और बिटुमिनस (Bituminous) प्रकार का कोयला।
भारत में कोयले का वितरण-
भारत में कोयले का वितरण समान
नहीं है। कुछ राज्य ही भारत के कोयला उत्पादन में ज्यादातर योगदान देते हैं। जबकि कुछ
राज्य ऐसे भी है जिनमें बिलकुल भी कोयला नहीं पाया जाता। छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा,
पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, तेलांगाना और आन्ध्रप्रदेश भारत में कोयला उत्पादन
करने वाले प्रमुख राज्य हैं। इन सभी राज्यों में गोंडवाना युगीन कोयला पाया जाता है
जिसकी आयु लगभग 20 करोड़ साल है। गोंडवाना क्षेत्र से भारत का 98% कोयला उत्पादन होता
है।
भारत का 2% कोयला तृतीय कल्प
या टर्शियरी काल (Tertiary Period) के क्षेत्रों में भी मिलता है। ये कोयला क्षेत्र
मेघायल, असम, अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड, राजस्थान तथा तमिलनाडू राज्यों में पाए जाते
है। इस कोयले की आयु 6 करोड़ साल है।
निम्न तालिका 31 मार्च 2020 तक राज्य द्वारा भारत में अनुमानित कोयला भंडार को दर्शाती है।
भारत में कोयला उत्पादक क्षेत्र
-
छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ भारत
का सबसे ज्यादा कोयला निकालने वाला राज्य है। छत्तीसगढ़ भारत का लगभग 21% कोयला उत्पादित
करता है। कोयले के सुरक्षित भंडारों की दृष्टि से इसका भारत में तीसरा स्थान है। यहां
भारत के 17% कोयला भंडार सुरक्षित हैं। सोनहार, कोरबा, विश्रामपुर, लखनपुर, झिलमिली,
चिरमिरी और मांड़-रायगढ़ छत्तिसगढ़ के प्रमुख कोयला क्षेत्र हैं। राज्य में उत्पादित
ज्यादातर कोयले का उपयोग बिजली बनाने के लिए किया जाता है।
झारखंड़: झारखंड़ दूसरे स्थान
पर भारत का सबसे ज्यादा कोयला निकालने वाला राज्य है जो हर साल भारत के कुल कोयला उत्पादन
में लगभग 20% योगदान देता है। कोयले के सुरक्षित भंडारों की दृष्टि से इसका भारत में
पहला स्थान है। यहां भारत के 30% से ज्यादा कोयले के भंडार सुरक्षित हैं। डरला, झरिया,
बोकारो, गिरिडीह, करनपुरा और रामगढ़ झारखंड के प्रमुख कोयला निकालने वाले क्षेत्र हैं।
झारखंड राज्य में कोयले के सिवाए कई तरह के खनिज पाए जाते है जिसकी वजह से ये विभिन्न
उद्योगों का केंद्र है। यहां की कुछ प्रमुख कंपनियां हैं- Eastern Coalfields,
Central Coalfields, Tata Steel, Lafarge Cement और Tata Power.
ओडिशा: ओडिशा भारत के कुल कोयला
उत्पादन में हर साल लगभग 19% का योगदान देता है जिसकी वजह से ये भारत का कोयला निकालने
वाला तीसरा सबसे बड़ा राज्य है। यहां भारत के 25% कोयले के भंडार सुरक्षित हैं।
तल्चर ओडिशा का कोयला निकालने
वाला प्रमुख क्षेत्र है। तल्चर की जमीन में राज्य का कुल 75% कोयला सुरक्षित है। यहां
मिलने वाला कोयला घटिया किस्म का है जिसकी वजह से उसका उपयोग भाप और गैस बनाने के लिए
किया जाता है।
मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश हर
साल भारत के 13% कोयले का उत्पादन करता है जबकि यहां देश का मात्र 7% कोयले का भंडार
है। पहले मध्य प्रदेश कोयला उत्पादन करने वाला दूसरा सबसे बड़ा राज्य हुआ करता था लेकिन
जब से छत्तिसगढ़ इससे अलग हुआ है तब से कोयला उत्पादन में पीछे रह गया है। यहाँ के
मुख्य कोयला उत्पादक क्षेत्र सिंगरौली, सोहागपुर जोहिल्ला और अमरिया हैं।
महाराष्ट्र: महाराष्ट्र भारत
का तेज़ी से विकसित हो रहा राज्य है। यहां पर हर साल भारत का 9% कोयला निकाला जाता
है जबकि यहां पूरे देश के मात्र 3% सुरक्षित कोयले के भंडार हैं। नागपुर, वर्धा, बलरपुर
और बंदेर यहां के प्रमुख कोयला क्षेत्र हैं।
पश्चिम बंगाल: पश्चिम बंगाल
भारत का 7वां सबसे बड़ा कोयला उत्पादक क्षेत्र है। यहां कोयले के बड़े भंडार सुरक्षित
है। रानीगंज इस राज्य का सबसे प्रमुख कोयला क्षेत्र है, जिसका कुछ भाग झारखंड में भी
पड़ता है। यहां आसनसोल शहर के पास कोयले की खानें बहुत मशहूर हैं। बांकुरा जिले के
मेजिया में भी कोयला निकाला जाता है।
17. भारत में
जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों की विवेचना करें।
उत्तर: भारत की जनसंख्या का
स्थानीय वितरण एक समान नहीं है। इसमें बहुत अधिक क्षेत्रीय विभिन्नताएं हैं। आइये देखें
वे कौन से कारक हैं जो इस विभिन्नता को बनाते हैं। वे सब कारक जो जनसंख्या के घनत्व
एवं उसके वितरण को प्रभावित करते हैं उन्हें दो श्रेणियों में बाँट सकते हैं। ये हैं
(क) भौतिक कारक (ख) सामाजिक-आर्थिक कारक।
(क) भौतिक कारक - ये जनसंख्या
के घनत्व एवं वितरण को प्रभावित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। भौतिक कारकों में
सम्मिलित हैं- भूमि की बनावट या आकृति, जलवायु, मृदा इत्यादि। यद्यपि विज्ञान एवं तकनीक
में बहुत अधिक प्रगति हुई है परन्तु फि़र भी भौतिक कारकों का प्रभाव बरकरार है।
1. भू-आकृति - यह जनसंख्या
वितरण के प्रतिरूप को प्रभावित करता है। भू-आकृति का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है उसमें
मौजूद ढ़लान तथा उसकी ऊँचाई। इन दोनों गुणों पर जनसंख्या का घनत्व एवं वितरण बहुत कुछ
आधारित रहता है। इसका प्रमाण पहाड़ी एवं मैदानी क्षेत्र की भूमि ले सकते हैं। गंगा-सिंधु
का मैदानी भूभाग घनी आबादी का क्षेत्र है जबकि अरुणाचल प्रदेश समूचा पहाड़ियों से घिरा
उबड़-खाबड़ पर्वतीय भूभाग है, अतः जनसंख्या का घनत्व सबसे कम एवं वितरण भी विरल एवं
फ़ैला हुआ है। इसके अलावा भौतिक कारकों में स्थान विशेष का जल-प्रवाह क्षेत्र, भूमि
जलस्तर जनसंख्या वितरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
2. जलवायु - किसी स्थान की
जलवायु जनसंख्या के स्थानिक वितरण एवं प्रसार को प्रभावित करती है। अब राजस्थान के
गरम और सूखे रेगिस्तान साथ ही ठंडा एवं आर्द्रता, नमी वाले पूर्वी हिमालय भूभाग का
उदाहरण लें। इन कारणों से यहाँ जनसंख्या का वितरण असमान तथा घनत्व कम है। केरल एवं
पश्चिम बंगाल की भौगोलिक परिस्थितियाँ इतनी अनुकूल हैं कि आबादी सघन एवं समान रूप से
वितरित है। पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला के पवन-विमुख भाग तथा राजस्थान के भागों में
घनत्व कम है।
3. मृदा - यह बहुत हद तक जनसंख्या
के घनत्व एवं वितरण को प्रभावित करता है। वर्तमान औद्योगीकरण एवं उद्योग प्रमुख समाज
में मृदा कैसे जनसंख्या को प्रभावित करने में सक्षम हो सकती है। यह स्वाभाविक प्रश्न
हो सकता है। परन्तु इस सच्चाई से कि आज भी भारत की 75 प्रतिशत जनता गाँवों में बसती
है, कोई इन्कार नहीं कर सकता। ग्रामीण जनता अपना जीवन-यापन खेती से ही करती है। खेती
के लिये उपजाऊ मिट्टी चाहिये। इसी वजह से भारत का उत्तरी मैदानी भाग, समुद्र तटवर्ती
मैदानी भाग एवं सभी नदियों के डेल्टा क्षेत्र उपजाऊ एवं मुलायम मिट्टी की प्रचुरता
के कारण सघन जनसंख्या वितरण प्रस्तुत करते हैं। दूसरी ओर राजस्थान के विशाल मरुभूमि
क्षेत्र, गुजरात का कच्छ का रन तथा उत्तराखण्ड के तराई भाग जैसे क्षेत्रों में मृदा
का कटाव तथा मृदा में रेह का उत्फ़ुलन (मिट्टी पर सफ़ेद नमकीन परत चढ़ जाना जो उसकी
उपजाऊपन को नष्ट कर देती है) विरल जनसंख्या वाले क्षेत्र हो जाते हैं।
किसी भी क्षेत्र में जनसंख्या
का घनत्व एवं वितरण एक से अधिक भौतिक एवं भौगोलिक कारकों से प्रभावित होते हैं। उदाहरण
स्वरूप भारत के उत्तर-पूर्वी भाग को लें। यहाँ अनेक कारक प्रभावशील है - जैसे भारी
वर्षा, उबड़-खाबड़, उतार-चढ़ाव वाली जमीनी बनावट, सघन वन एवं पथरीली सख्त मिट्टी। ये
सब एक साथ मिलकर जनसंख्या के घनत्व एवं वितरण को विरल बनाते हैं।
(ख) सामाजिक - आर्थिक कारक-
भौतिक कारकों के समान ही सामाजिक-आर्थिक कारक भी जनसंख्या के वितरण एवं घनत्व को प्रभावित
करते हैं। परन्तु इन दोनों कारकों के सापेक्षिक महत्त्व के विषय में पूर्ण एकरूपता
नहीं भी हो सकती है। कुछ स्थानों पर भौतिक कारक ज्यादा प्रभावशील होते हैं तो कुछ जगहों
पर सामाजिक एवं आर्थिक कारक अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सामान्य तौर पर आम
सहमति है कि सामाजिक एवं आर्थिक (अभौतिक) कारकों की भूमिका बढ़ी है। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक
कारक जो जनसंख्या की बसावट में विभिन्नता लाते हैं, इस प्रकार हैं- (1) सामाजिक-सांस्कृतिक
एवं राजनैतिक कारक (2) प्राकृतिक संसाधनों का दोहन।
1. सामाजिक - सांस्कृतिक एवं
राजनैतिक कारक- मुम्बई-पुणे औद्योगिक कॉम्पलेक्स (संकुल) एक सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत
करता है। यह दर्शाता है कि किस प्रकार सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राजनैतिक कारकों
के समूह ने इस कॉम्पलेक्स की जनसंख्या और घनत्व की तीव्र वृद्धि की हैं। आज से दो सौ
वर्षों से भी पहले पश्चिमी समुद्री तटवर्ती थाणे इलाके के सकरी खाड़ी में महत्त्वहीन
छोटे-छोटे बिखरे द्वीप समूह थे। साहसी पुर्तगाली नाविकों ने इन द्वीप समूहों पर अपना
अधिकार कायम कर लिया था। चूँकि अधिग्रहित द्वीपों का स्वामित्व उनके राजा के पास था।
पुर्तगाल के राजा ने इसे इंग्लैंड के राजघराने को दहेज स्वरूप भेंट कर दिया। इस द्वीप
में निवास करने वाले मछुआरों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि किसी दिन उनकी यह
बसावट एक विशाल जनसंख्या के समूह के रूप में विकसित हो जाएगा।
इंग्लैंड की ईस्ट इंडिया कम्पनी
ने इन द्वीपों पर एक व्यापारिक केन्द्र को स्थापित किया जिसे बाद में बाम्बे प्रेसीडेन्सी
के राजधानी शहर में परिर्वितत कर दिया। उद्यमी व्यापार कुशल सम्प्रदायों ने (जैसे पारसी,
कच्छी, गुजराती लोग) यहाँ कपड़ा बनाने की मिलों को स्थापित किया और इसके लिये आवश्यक
जलशक्ति का विकास किया। इतना ही नहीं पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला के आर-पार सड़क तथा
रेलमार्ग का निर्माण किया। इससे पृष्ठ प्रदेश आवागमन के साधनों से सम्पन्न हो गया।
आशा के विपरीत स्वेज नहर का निर्माण हो जाने से बॉम्बे (अब मुम्बई) भारत का ऐसा बन्दरगाह
बन गया जो यूरोप का सबसे नजदीक व्यापारिक केन्द्र सिद्ध हुआ। मुम्बई में शिक्षित युवकों
की मौजूदगी तथा कोंकण के सस्ते, सशक्त एवं अनुशासित मजदूरों की आसान उपलब्धता ने यहाँ
की क्षेत्रीय जनसंख्या को तेजी से पनपने में बहुत बड़ा योगदान दिया।
कुछ समय पश्चात मुम्बई के नजदीक
अरब सागर के उथले क्षेत्र में तेल (पेट्रोलियम) तथा गैस-भण्डार की खोज ने इस क्षेत्र
में पेट्रो-रसायन उद्योग को उभरने में बहुत बढ़ावा दिया। आज मुम्बई भारत की वाणिज्यिक
एवं व्यापारिक राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित है। इसलिये यहाँ अन्तरराष्ट्रीय एवं घरेलू
हवाई-अड्डे स्थापित हैं। मुम्बई देश तथा विदेश के प्रमुख समुद्री बन्दरगाहों से जुड़ा
हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग एवं रेल-मार्ग का अन्तिम छोर मुम्बई है। लगभग ऐसी ही स्थिति
औपनिवेशक शासकों द्वारा भारत के अन्य प्रमुख महानगर कोलकाता तथा चेन्नई के साथ लागू
होती है।
2. प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता
- छोटा नागपुर का पठार हमेशा से एक पर्वतीय, पथरीला एवं उबड़-खाबड़ क्षेत्र रहा है।
वर्षा एवं वनों से आच्छादित यह भाग अनेकों आदिवासियों का निवास स्थान रहते आया है।
यह आदिवासी क्षेत्र जनसंख्या घनत्व की दृष्टि से देश के विरल क्षेत्रों में से एक गिना
जाता है। किन्तु प्रचुर मात्रा में खनिज अयस्क जैसे लोहा, मैगनीज, चूना पत्थर, कोयला
आदि के उपलब्ध होने के कारण पिछली शताब्दि के दौरान अनेक औद्योगिक केन्द्र तथा नगरों
की स्थापना हुई है। लौह अयस्क तथा कोयले की खदाने आस-पास मिलने से बड़े औद्योगिक उपक्रमों
एवं कारखानों के स्थापित होने का आकर्षण बना रहा।
इस कारण लोहा तथा इस्पात उद्योग,
भारी-इन्जिनियरिंग उद्योग धातुकर्म उद्योग तथा यातायात में प्रयुक्त होने वाले उपकरणों
को बनाने के कारखाने खुले। इस क्षेत्र में उत्तम गुणों के कोयला उपलब्ध होने के कारण
शक्तिशाली राष्ट्रीय ताप विद्युत संयत्रों की स्थापना हुई। इन केन्द्रों से विद्युत
की आपूर्ति तथा वितरण दूर-दराज के क्षेत्रों को भी किया जाता है। उदारीकरण के बाद से
इस क्षेत्र में अनेकों विदेशी बहु-राष्ट्रीय कम्पनियाँ एवं भारतीय कम्पनियाँ अपने-अपने
कारखाने एवं संयंत्रों को स्थापित करने में संलग्न हैं।
18. चाय उत्पादन
के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाओं एवं वितरण का वर्णन करें।
उत्तर: चाय-उत्पादन की भौगोलिक
दशाएँ-
1-तापमान-चाय-उत्पादन के लिए
25 से 30 डिग्री सेल्सियस आदर्श तापमान माना गया है | किन्तु, चाय की पत्तियों पर सीधों
धुप न पड़े इसके लिए बीच-बीच में छोटे-छोटे पौधे लगाए जाते है |
2-वर्षा-चाय की खेती के लिए
वर्षा अनिवार्य आवश्यकता है | लेकिन, वर्षभर इसे संतुलित ढंग से वितरित होना चाहिए
| इसकी मात्रा 150 से 500 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए |
3-भूमि-ढालुआँ भूमि चाय की
खेती के लिए उपयुक्त होती है, क्योंकि ढालुआँ भूमि पर अधिक वर्षा होने से भी पौधे की
जड़े में जलजमाव नहीं हो पाता है |
4-श्रमिक-चाय की खेती में अधिक
संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता होती है | अतः, सस्ते श्रमिक उपलब्ध होने पर ही चाय
की खेती संभव है |
असम- दुनिया में चाय का सबसे
बड़ा उत्पादक क्षेत्र असम ही हैं जो ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित है। ब्रह्मपुत्र
घाटी के मध्य भाग में जोरहाट को अक्सर विश्व की चाय की राजधानी कहा जाता है। असम की
उष्ण कटिबंधीय जलवायु में तैयार हुयी चाय को दुनिया में सबसे बेहतरीन चाय माना जाता
है।
दार्जिलिंग- पश्चिम बंगाल के
इस खूबसूरत हिल स्टेशन को चाय के लिए भी जाना जाता है। यहाँ मिलने वाली हल्के रंग की
चाय अपनी खुशबू और स्वाद के लिए मशहूर है। भारत की कुल चाय का लगभग 25% उत्पादन दार्जिलिंग
में ही होता है।
नीलगिरि- तमिलनाडु के एक जिले
का नाम नीलगिरि है, के साथ ही ये एक पर्वत श्रृंखला है जो तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल
में फैली है। इन पहाड़ियों पर उगाई जाने वाली चाय अपने काले रंग, सुगंध और स्वाद के
लिए बहुत फेमस है।
कोलुक्कुमालै- तमिलनाडु में
स्थित कोलुक्कुमालै चाय एस्टेट काफी ऊंचाई पर स्थित है और ऊंचाई पर होने वाली चाय की
खेती से चाय में एक अनूठा स्वाद और सुगंध शामिल हो जाती है।
मुन्नार- केरल में स्थित मुन्नार
वो स्थान है जहाँ चाय के विशाल बागान हैं और ये स्थान अपने खूबसूरत नज़ारों के लिए
प्रसिद्ध है।
पालमपुर- हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित पालमपुर में चाय का उत्पादन किया जाता है। इसे उत्तर पश्चिम भारत की चाय राजधानी के रूप में जाना जाता है। यहाँ तैयार होने वाली चाय की सुगंध और स्वाद इसे देश के बाकी हिस्सों की चाय से अलग और ख़ास बनाते हैं।
19.निम्नलिखित
नदियों को भारत के मानचित्र पर रेखांकित कीजिए.
(क) नर्मदा
(ख) गोदावरी
(ग) गंगा
(घ) कावेरी
(ङ) महानदी