झारखंड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्, राँची (झारखंड)
Jharkhand Council of
Educational Research and Training, Ranchi
(Jharkhand)
द्वितीय
सावधिक परीक्षा - 2021-2022
Second Terminal
Examination - 2021-2022
मॉडल
प्रश्नपत्र
Model Question Paper
सेट-
4
(Set - 4)
वर्ग-
12 (Class-12) |
विषय
- भूगोल (Sub
- Geography) |
पूर्णांक-35 (F.M-35) |
समय-1:30
घंटे (Time-1:30
hours) |
सामान्य
निर्देश (General Instructions) -
» परीक्षार्थी यथासंभव अपने
शब्दों में उत्तर दें।
» कुल प्रश्नों की संख्या
19 है।
» प्रश्न संख्या 1 से प्रश्न
संख्या 7 तक अति लघूत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर अधिकतम एक वाक्य में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 2 अंक
निर्धारित है।
» प्रश्न संख्या 8 से प्रश्न
संख्या 14 तक लघूतरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं 5 प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 50 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 3 अंक निर्धारित
है।
» प्रश्न संख्या 15 से प्रश्न
संख्या 19 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में दीजिए। प्रत्येक प्रश्न का मान 5 अंक निर्धारित
है।
1.लिंगानुपात
को परिभाषित करें।
उत्तर: लिंगानुपात या लिंग
का अनुपात से तात्पर्य किसी क्षेत्र विशेष में पुरुष एवं स्त्री की संख्या के अनुपात
को कहते हैं। प्राय: किसी भौगोलिक क्षेत्र में प्रति हजार पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों
की संख्या को इसका मानक माना जाता है।
लिंग अनुपात = (स्त्रियों की
जनसंख्या / पुरुषों की जनसंख्या) X1000
2.ऊर्जा संसाधन
से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: ऊर्जा संसाधन :
उन प्रकृति प्रदत्त सम्पदाओं से है जिनसे प्राप्त ऊर्जा में मानव इच्छाओं व उसकी आवश्यकताओं
को संतुष्ट करने की क्षमता होती है तथा जिनका उपयोग मानव कल्याण के उद्देश्य से किया
जाता है
3.प्रदूषण को
परिभाषित कीजिए।
उत्तर: प्रदूषण पर्यावरण में
दूषक पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन में पैदा होने वाले दोष को कहते
हैं। प्रकृति द्वारा निर्मित वस्तुओं के अवशेष को जब मानव निर्मित वस्तुओं के अवशेष
के साथ मिला दिया जाता है तब दूषक पदार्थों का निर्माण होता है। दूषक पदार्थों का पुनर्चक्रण
नही किया जा सकता है।
4.तिलहन फसल
किसे कहते हैं ?
उत्तर: तिलहन उन फसलों को कहते
हैं जिनसे वनस्पति तेल का उत्पादन होता है। जिसमें महत्वपूर्ण हैं तिल, सरसों,अरंडी,बिनौला,
मूँगफली, सोयाबीन और सूरजमुखी।
5.ओजोन परत क्षय
क्यों हो रहा है ?
उत्तर: ओज़ोन परत में हो रहे
क्षरण के लिये क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। इसके अलावा हैलोजन,
मिथाइल क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड आदि रासायनिक पदार्थ भी ओज़ोन को नष्ट करने
में योगदान दे रहे हैं।
6.इंटरनेट क्या
है ?
उत्तर: इंटरनेट बहुत सारे
Networks का ऐसा जाल है जो पूरे World के Computers को एक दूसरे से जोड़ता है और दुनियाभर
के कंप्यूटर में नेटवर्क का आदान प्रदान करता है । इंटरनेट की खोज बॉब कहन और विन्ट
सर्फ़ ने सन 1969 में किया था ।
7.नीरू – मीरू
कार्यक्रम क्या है ?
उत्तर: यह आंध्र प्रदेश सरकार
द्वारा शुरू की गई जल संरक्षण और गरीबी उन्मूलन पहल है। यह पहल जल संरक्षण के लिए राज्य,
जिला और उप-जिला स्तर पर विभिन्न विभागों के प्रयासों के अभिसरण द्वारा राज्य में मानव
निर्मित सूखे और पानी की कमी पर काबू पाने पर केंद्रित है।
8.पाइपलाइन परिवहन
के गुण और दोष लिखें।
उत्तर: पाइपलाइन परिवहन
के गुण
• पाइप लाइनें ऊबड़-खाबड़ भूप्रदेशों
के अतिरिक्त समुद्र तथा महासागरों के भीतर भी बिछायी जा सकती हैं।
• यद्यपि पाइप लाइन बिछाने
में लागत अधिक आती है, तथापि साधनों की अपेक्षा इनकी संचालन एवं रख-रखाव की लागत भी
कम होती है। पाइपलाइनों में ऊर्जा की खपत कम होती है, जिससे पर्यावरण को हानि नहीं
पहुंचती।
• पाइपलाइन परिवहन से तरल पदार्थों
को एक स्थान से दूसरे स्थान पर बहुत कम समय में ले जाया जा सकता है।
• पाइपलाइन परिवहन में किसी
प्रकार भी बाधा का सामना नहीं करना पड़ता
• पाइप लाइनों के निर्माण द्वारा
औद्योगिक क्षेत्र आपस में अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। सड़क एवं रेल यातायात में पैदा
होने वाली बाधाएं पाइप लाइन परिवहन को प्रभावित नहीं कर सकतीं।
पाइपलाइन परिवहन की दोष
• विकासशील देशों में पाइप
लाइन नेटवर्क का निर्माण करना अनावश्यक रूप से खर्चीला होता है।
• पाइप लाइनों को एक बार बिछाने
के बाद उनकी क्षमता में वृद्धि नहीं की जा सकती।
• पाइप लाइनों को प्रायः सुरक्षा
सम्बंधी खतरों का सामना करना पड़ता है।
• पाइपलाइन के टूट जाने पर
भूमि के भूमि प्रदूषित होने का खतरा बना रहता है।
• लीकेज की स्थिति में पाइपलाइनों
की मरम्मत कर पाना काफी कठिन होता है। लीकेज का पता लगाने में भी काफी मुश्किलें सामने
आती हैं।
9.गैर परंपरागत
ऊर्जा स्रोतों का वर्णन करें।
उत्तर: धरती के गर्भ में मौजूद
कोयला, पेट्रोलियम, परमाणु ईंधन,गैस ये सभी समाप्त होने वाले ऊर्जा स्त्रोत हैं इसलिए
इन्हें परम्परागत ऊर्जा स्रोत कहा जाता है।
ऊर्जा आधुनिक समाज के विकास
का आधार है। चूँकि उपरोक्त परम्परागत ऊर्जा स्रोत (कोयला, पेट्रोलियम, परमाणु ईंधन
और प्राकृतिक गैस) तेजी से समाप्त हो रहे हैं और साथ ही इनके दहन और उपयोग से पर्यावरणीय
क्षति होती है। इसलिए अब यह आवश्यक हो चला है कि देश की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति
के लिए देश में विद्यमान गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों की सम्भावनाओं को विकसित किया
जाए। देश में गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का विकास इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इनसे
पर्यावरण विनाश नहीं होता।
ऊर्जा न केवल परम्परागत स्रोतों
में विद्यमान है बल्कि प्रकृति में गैर-परम्परागत स्रोतों जैसे – पवन, सौर विकिरण,
समुद्री लहरोंआदि में भी ऊर्जा की संभावना व्याप्त है | इस प्रकार कहा जा सकता है कि
ऊर्जा प्रत्येक स्थान पर उपलब्ध है आवश्यकता है कि किस प्रकार से इसका समुचित दोहन
किया जाये |
गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों
के अन्तर्गत पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, बायोगैस, ज्वारीय ऊर्जा, तरंग ऊर्जा
और बायोमास ऊर्जा को शामिल किया जाता है | इसे नवीकरणीय अथवा अक्षय ऊर्जा (जो कभी समाप्त
न हो) स्रोत भी कहते हैं |
देश में विद्यमान अक्षय ऊर्जा
स्रोतों के विकास के लिए 1982 ई० में गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत विभाग की स्थापना की
गयी थी|
देश में गैर-परम्परागत ऊर्जा
से संबंधित सभी मुद्दों पर देख-रेख करने के लिए एक पृथक मंत्रालय की स्थापना की गई
है, जिसका नाम गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत मंत्रालय है |
देश में गैर-परम्परागत ऊर्जा
की कुल स्थापित क्षमता वर्ष 2019 तक 80633 मेगावाट हो गयी है जो कि देश में विद्युत
की कुल स्थापित क्षमता का 22% है।
10.भारत में
अधिक जनसंख्या वृद्धि के क्या कारण हैं ?
उत्तर: जनसंख्या वृद्धि
के कारण इस प्रकार हैं –
उच्च जन्म दर :- किसी
भी देश में एक वर्ष में जनसंख्या के प्रति हजार व्यक्तियों में जन्म लेने वाले जीवित
बच्चों की संख्या उस देश की जन्म दर कहलाती है। जिस देश की जन्म दर जितनी अधिक होती
है उस देश की जनसंख्या भी उतनी ही तेजी से बढ़ती है। भारत में शिशुओं की जन्म दर दूसरे
देशों से अधिक है इसलिए भारत की जनसंख्या समय के साथ तेजी से बढ़ती जा रही है।
शिशु मृत्यु दर में कमी :- पुराने
समय में शिशु मृत्यु दर अधिक थी, किंतु समय के साथ चिकित्सा व्यवस्थाओं के आधुनिकीकरण
एवं शासन द्वारा चलाई जाने वाली शिशु कल्याण नीतियों के कारण शिशु मृत्यु दर में बहुत
कमी आई है। यह भी भारत में जनसंख्या वृद्धि का एक कारण है।
रूढ़ीवादी सोच :- आज
भी भारत के ग्रामीण एवं पिछड़े इलाकों के लोगों की सोच रूढ़ीवादी है | वह आज भी यही
मानते हैं कि बच्चे तो ईश्वर की देन है एवं जितने अधिक बच्चे होंगे काम करने वाले हाथ
भी उतने अधिक होंगे| गांव के लोग परिवार नियोजन के प्रति लापरवाह होते हैं एवं शासन
द्वारा चलाए जा रहे परिवार नियोजन कार्यक्रम में अपनी उचित भागीदारी नहीं देते।
अशिक्षा एवं अज्ञानता :- हमारे
देश में आज भी गांव के लोगों में शिक्षा एवं ज्ञान की कमी है, इस कारण वे लोग जनसंख्या
वृद्धि से उत्पन्न होने वाली भयानक समस्याओं के प्रति अज्ञान हैं |वे लोग आज भी दो
से अधिक बच्चे पैदा करने में यकीन रखते हैं | गांव के लोगों में एक मानसिकता बहुत प्रचलित
है कि “ईश्वर ने चोच दी है तो चुग्गा भी देगा” लेकिन वह इससे आगे आने वाली पीढ़ियों
के लिए उत्पन्न होने वाले दुष्परिणामों से अनजान होते हैं।
कम आयु में विवाह :- आज
भी गांव के लोग अपने बच्चों की शादी कम उम्र में ही कर देते हैं जिससे किशोर जल्दी
मां बाप बन जाते हैं। इसे रोकने के लिए सरकार ने कड़े कदम उठाते हुए 18 वर्ष से कम
आयु की बालिका एवं 21 वर्ष से कम आयु के बालक की शादी को कानूनन अपराध घोषित कर दिया
है। यह भी जनसंख्या वृद्धि का एक प्रमुख कारण है |बाल विवाह को पूरी तरह से रोकना होगा।
पुत्र प्राप्ति की इच्छा
:-
भारत के लोग हमेशा से यह मानते आ रहे हैं कि पुत्र के द्वारा ही वंश आगे बढ़ता है
,एवं पुत्र ही उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगा। पुत्री तो पराए घर की अमानत होती है। इसलिए
पुत्र प्राप्ति की इच्छा में लोग कई पुत्रियां पैदा करते हैं। एवं यह भी जनसंख्या वृद्धि
का एक प्रमुख कारण है।
गरीबी एवं निम्न जीवन स्तर
:-
भारत में शिक्षा की कमी होने के साथ-साथ गरीबी एवं निम्न जीवन स्तर में जीवन जीने वाले
परिवारों की भी बहुलता है। ये लोग अपने एवं
अपने देश के विकास के प्रति लापरवाह होते हैं ,एवं आधुनिक होती दुनिया में भी पुरानी
सोच लेकर जीते हैं। इस कारण वह अधिक बच्चे पैदा करते हैं जिससे उनके परिवार एवं देश
के विकास में अनेक बाधाएं उत्पन्न होती हैं। यह भी जनसंख्या वृद्धि का एक कारण है।
11.अंत:देशीय
प्रवास तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रवास में अंतर लिखें।
उत्तर: अंत:देशीय प्रवास
- एक ही देश या राज्यों की विभिन्न प्रदेशों के मध्य लोगों की एक स्थान से दूसरे
स्थान की ओर होने वाले प्रवास अतः देशीय प्रवास या आंतरिक प्रवास कहलाता है। आंतरिक
प्रवास की 4 धाराएं हैं-
1. ग्रामीण से ग्रामीण प्रवास
2. ग्रामीण से नगरीय प्रवास
3. नगरीय से नगरीय प्रवास
4. नगरीय से ग्रामीण प्रवास
अंतर्राष्ट्रीय प्रवास- एक
राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र में होने वाले प्रवास अंतर्राष्ट्रीय प्रवास कहलाते हैं।
जैसे - कोई व्यक्ति भारत से अमेरिका में जाकर बसना। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत
में विश्व के विभिन्न देशों से 50 लाख लोगों का अप्रवास हुआ है।
12. कच्चे माल
के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर: कच्चे माल के आधार पर
उद्योग तीन प्रकार के होते हैं-
(i) कृषि आधारित उद्योग- जिन्हें
कच्चा माल कृषि उत्पाद से प्राप्त होता है, जैसे- सूती वस्त्र उद्योग।
(ii) खनिज आधारित उद्योग- जिन्हें
कच्चा माल खनिजों से प्राप्त होता है, जैसे- लोहा-इस्पात उद्योग।
(iii) वन आधारित उद्योग- जिन्हें
कच्चा माल वनों से प्राप्त होता है, जैसे कागज उद्योग।
13. लौह एवं
अलौह खनिज में उदाहरण के साथ अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर: लौह खनिज-
(1) जिन खनिजों में लोहे का
अंश पाया जाता है तथा उसका उपयोग लोहा एवं अन्य इस्पात बनाने में किया जाता है वे लौह
खनिज कहलाते हैं, जैसे- लौह अयस्क, निकिल, टंगस्टन, मैंगनीज आदि ।
(2) ये स्लेटी, घसर, मटमैला
आदि रंग के होते हैं ।
(3) ये रवेदार चट्टानों में
पाये जाते हैं।
अलौह खनिज-
(1) जिन खनिजों में लोहे का
अंश न्यून या बिल्कुल नहीं होता है वे अलौह खनिज कहलाते हैं, जैसे- सोना, सीसा, अभ्रक
इत्यादि।
(2) ये अनेक रंग के हो सकते
हैं।
(3) ये सभी प्रकार के चट्टानों
में मिल सकते हैं ।
14.प्रदूषित
जल के उपयोग से लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर: जल प्रदूषण के मुख्य
प्रभाव -
1. जलीय जीव जन्तुओं में आक्सीजन
की कमी ।
2. प्रदूषित जल से सिचाई करने
पर फसलों को नुकसान ।
3. प्रदूषित जल से पीलिया रोग,
हिपेटाइटिस, डायरिया आदि रोग हो सकते हैं।
4. हृदय , फेफड़े , गुर्दा
, मस्तिष्क आदि से सम्बन्धित रोग हो सकते है।
5. प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़
जाता है।
15. चावल उत्पादन
के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाओं एवं वितरण का वर्णन करें ।
उत्तर: चावल भारत की सर्वप्रमुख
फसल है जिस पर भारत की लगभग आधी से भी अधिक जनसंख्या रहती करती है। चीन के बाद भारत
विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चावल का सर्वाधिक उत्पादक करता है। विश्व का लगभग 29% चावल
क्षेत्र भारत में ही होता हैं। भारत की कुल कृषि भूमि के 25% भाग पर चावल बोया जाता
हैं। 150 से० मी० से अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में चावल लोगों का मुख्य आहार
है।
चावल की उपज के लिए निम्नलिखित
दशाएँ अनुकूल हैं:
तापमान- यह
एक उष्ण कटिबंधीय फसल है जिसके लिए कम-से-कम 24° सेल्सियम तापमान होना आवश्यक है। इसे
बोते समय 21° सेल्सियस बढ़ते समय 24° सेल्सियस तथा पकते समय 27° सेल्सियस तापमान की
आवश्यकता होती हैं।
वर्षा- चावल
की फसल के लिए 125 से 200 से०मी० वार्षिक वर्षा आवश्यक है।
मिट्टी- चावल
के लिए बहुत उपजाऊ मिट्टी चाहिए। इसके लिए उपजाऊ चीका या दोमट मिट्टी उपयुक्त होती
है। नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी में यह पौधा भली-भाँति उगता हैं।
भूमि- चावल
की कृषि के लिए हल्की ढाल वाले मैदानी भाग अनुकूल होते हैं। नदियों के डेल्टों तथा
बाढ़ के मैदानों में चावल खूब फलता है।
श्रम- चावल
की कृषि में मशीनों से काम नहीं लिया जा सकता, इसलिए इसकी कृषि के लिए अत्यधिक श्रम
की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि चावल साधारणतया घनी जनसंख्या वाले क्षेत्रों में
बोया जाता हैं।
उत्पादन- भारत
में चावल का उत्पादन निरन्तर बढ़ रहा है। 1950-51 में केवल 205 लाख टन चावल का उत्पादन
हुआ था। यह उत्पादन 2017-2018 बढ़कर 1115.2 लाख टन हो गया।
यद्यपि हमारे देश में पिछले
कुछ वर्षों में चावल की कृषि में उल्लेखनीय प्रगति हुई है फिर भी हम अन्य देशों की
तुलना में काफी पिछड़े हुए हैं। उदाहरणत: भारत में चावल की प्रति हेक्टेयर उपज केवल
1990 किलोग्राम हैं जबकि रूस में 2,630, चीन में 3,600 अमेरिका में 4,770 जापान में
6,220 तथा कोरिया में 6,670 किलाग्राम प्रति हेक्टेयर चावल प्राप्त किया जाता है।
वितरण – यदि
जल उपलब्ध हो तो हिमालय के 2440 मीटर से अधिक ऊँचे भागों को छोड़कर शेष समस्या भारत
में ग्रीष्म ऋतु में चावल की कृषि की जा सकती है। भारत में बोई गई भूमि के अन्तर्गत
सबसे अधिक क्षेत्रफल चावल का है।
भारत का अधिकांश चावल डेल्टाई तथा तटीय भागों में होता है। इसके अतिरिक्त इसकी कृषि दक्षिणी पठार के कुछ भागों में भी की जाती हैं। पिछले कुछ वर्षों से सतलुज-गंगा के मैदान में चावल की कृषि ने उल्लेखनीय उन्नति की है। इसका मुख्य कारण सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार तथा उत्तम बीजों का प्रयोग हैं। हिमालय पर्वत की निचली घाटियों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर चावल की कृषि की जाती हैं। मुख्य उत्पादक राज्य पश्चिमी बंगाल, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, पंजाब आदि है। पश्चिमी बंगाल, असम, बिहार, उड़ीसा तथा तमिलनाडु में वर्ष में कहीं-कहीं चावल की तीन-तीन फसलें उगाई जाती हैं क्योंकि यहाँ पर शरद और ग्रीष्म ऋतुओं में भी चावल उगाया जाता है।
16. वर्षा जल
संग्रहण से आप क्या समझते हैं? वर्षा जल संग्रहण के विभिन्न उपायों का वर्णन करें।
उत्तर: वर्षा जल संग्रहण का
सामान्य अर्थ वर्षा के जल को एकत्रित करने से है। विशेष अर्थों में यह भूमिगत जल के
पुनर्भरण बढ़ाने की तकनीक है। इस तकनीक में जल को बिना प्रदूषित किए स्थानीय रूप से
वर्षा जल को एकत्रित करके जल को भूमिगत किया जाता है। इससे स्थानीय घरेलू मांग को,
अभाव वाले दिनों में पूरा किया जा सकता है।
वर्षा जल संग्रहण की विधियां
वर्षा जल के संग्रहण के लिए
विभिन्न विधियों को आवश्यकता, सुविधा तथा परिस्थिति के अनुसार अपनाया जा सकता है। वर्षा
जल संग्रहण की विधियाँ विशेष उल्लेखनीय है -
1. गड्ढे या गर्तिका बनाना
:
छिछले जलाभृत क्षेत्रों में जल के पुनर्भरण के लिए छोटे-छोटे गड्ढे बनाकर जल का संग्रहण
किया जा सकता है। इन गड्ढे को 1-2 मीटर चौड़ा तथा 2-3 मीटर गहरा बनाया जा सकता है।
इनकी आकृति किसी भी प्रकार की हो सकती है। इन गड्ढे को कंकड़, बजरी, बालू आदि से भर
दिया जाता है। इससे वर्षा जल का रिसाव सहज होता रहता है।
2. खाइयाँ बनाना - निचले
भागों में जहाँ सरंध्र शैले पाई जाती हैं, उन भागों में 0.5 से 1 मीटर चौड़ी, 1 से
1.5 मीटर गहरी तथा 10 से 15 मीटर लम्बी खाई बनाकर उन्हें बालू बजरी आदि से भर दिया
जाता है। खाइयों को सामान्यत: भूमि के ढाल के समानांतर बनाना चाहिए।
3. कुओं का उपयोग - पहले
से सूखे, बंद पड़े, काम में न आने वाले कुओं का वर्षा जल संग्रहण के लिए उपयोग किया
जा सकता है।
4. हैंडपम्प - भूमिगत
जलाभाव क्षेत्रों में वर्षा के इकट्ठे किए गए जल को चालू हैण्ड पम्पों के द्वारा फिल्टर
की मदद से भूमिगत किया जा सकता है।
17. उद्योगों
की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारकों का उदाहरण सहित व्याख्या करें.
उत्तर: उद्योगों की अवस्थिति
अनेक कारकों से प्रभावित होती है। इनमें कच्चे माल की उपलब्धि, ऊर्जा, बाज़ार, पूंजी,
परिवहन, श्रमिक आदि प्रमुख हैं। इन कारकों का सापेक्षिक महत्त्व समय, स्थान, आवश्यकता,
कच्चे माल और उद्योग के प्रकार के अनुसार बदलता है तथापि आर्थिक दृष्टि से विनिर्माण
उद्योग वही स्थापित किये जाते हैं, जहाँ उत्पादन लागत तथा निर्मित वस्तुओं को उपभोक्ताओं
तक पहुँचाने की लागत सबसे कम हो। परिवहन लागत, काफी हद तक कच्चे माल और निर्मित वस्तुओं
के स्वरूप पर निर्भर करती है।
पूर्णतया भौगोलिक कारकों के
अतिरिक्त ऐतिहासिक, राजनैतिक तथा आर्थिक तत्त्व भी उद्योगों के स्थानीयकरण को प्रभावित
करते हैं। कई बार ये तत्त्व भौगोलिक कारकों से अधिक प्रभावशाली होते हैं।
उद्योगों को प्रभावित करने
वाले कारकों को दो भागों में बाँटा जा सकता है।
भौगोलिक कारक - इसके
अंतर्गत निम्नलिखित तत्त्वों को शामिल किया जाता है-
(a) कच्चा माल- उद्योग
सामान्यतः वहीं स्थापित किये जाते हैं जहाँ कच्चे माल की उपलब्धता होती है। जिन उद्योगों
में निर्मित वस्तुओं का भार, कच्चे माल की तुलना में कम होता है, उन उद्योगों को कच्चे
माल के निकट ही स्थापित करना होता है। जैसे- चीनी उद्योग। गन्ना भारी कच्चा माल है
जिसे अधिक दूरी तक ले जाने से परिवहन की लागत बहुत बढ़ जाती है और चीनी के उत्पादन
मूल्य में वृद्धि हो जाती है।
लोहा और इस्पात उद्योग में
उपयोग में आने वाले लौह-अयस्क और कोयला दोनों ही वज़न ह्यस और लगभग समान भार के होते
हैं। अतः अनुकूलनतम स्थिति कच्चा माल व स्रोतों के मध्य होगी जैसे जमशेदपुर।
शक्ति (ऊर्जा) - उद्योगों
में मशीन चलाने के लिये शक्ति की आवश्यकता होती है। शक्ति के प्रमुख स्रोत- कोयला,
पेट्रोलियम, जल-विद्युत, प्राकृतिक गैस तथा परमाणु ऊर्जा है। लौह-इस्पात उद्योग कोयले
पर निर्भर करता है, इसलिये यह उद्योग खानों के आस-पास स्थापित किया जाता है। छत्तीसगढ़
का कोरबा तथा उत्तर प्रदेश का रेनूकूट एल्युमीनियम उद्योग विद्युत शक्ति की उपलब्धता
के कारण ही स्थापित हुए हैं।
श्रम- स्वचालित
मशीनों तथा कंप्यूटर युग में भी मानव श्रम के महत्त्व को प्रतिस्थापित नहीं किया जा
सकता। अतः सस्ते व कुशल श्रम की उपलब्धता औद्योगिक विकास का मुख्य कारक है।
जैसे- फिरोजाबाद में शीशा उद्योग,
लुधियाना में होजरी तथा जालंधर व मेरठ में खेलों का सामान बनाने का उद्योग मुख्यतः
सस्ते कुशल श्रम पर ही निर्भर है।
परिवहन एवं संचार- कच्चे
माल को उद्योग केंद्र तक लाने तथा निर्मित
माल की खपत के क्षेत्रों तक ले जाने के लिये सस्ते एवं कुशल यातायात की प्रचुर मात्रा
में होना अनिवार्य है। मुम्बई, चेन्नई, दिल्ली जैसे महानगरों में औद्योगिक विकास मुख्यतः
यातायात के साधनों के कारण ही हुआ है।
बाज़ार- औद्योगिक
विकास में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका तैयार माल की खपत के लिये बाज़ार की है।
सस्ती भूमि और जलापूर्ति- उद्योगों
की स्थापना के लिये सस्ती भूमि का होना भी आवश्यक है। दिल्ली में भूमि का अधिक मूल्य
होने के कारण ही इसके उपनगरों में सस्ती भूमि पर उद्योगों ने द्रुत गति से विकास किया
है।
उपर्युक्त भौगोलिक कारकों के
अतिरिक्त पूंजी, सरकार की औद्योगिक नीति, औद्योगिक जड़त्व, बैंकिग तथा बीमा आदि की
सुविधा ऐसे गैर-भौगोलिक कारक हैं जो किसी स्थान विशेष में उद्योगों की स्थापना को प्रभावित
करते हैं।
18. भारत में
नगरों के विकास के कारण उत्पन्न हुए पर्यावरणीय समस्याओं के बारे में लिखें।
उत्तर: शहरीकरण का तात्पर्य
शहरो के भौतिक विकास में वृद्धि, शहरो में जनसंख्या का केन्द्रीकरण है। शहरीकरण आज
विकास का साधन तो है परन्तु साथ ही साथ यह एक वैश्विक आर्थिक, सामाजिक एंव पर्यावरणीय
समस्या उत्पन्न कर रही है। यदि छत्तीसगढ़ राज्य में शहरीकरण की स्थिति देखे तो यहाँ
भी शहरीकरण बहुत तेजी से बढ़ रही है।
शहरीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव
पिछले कुछ दशको से शहरी जनसंख्या
में लगातार वृद्धि हो रही है जिसके फलस्वरूप शहरी क्षेत्रो के साथ ग्रामिण क्षेत्रो
की भी पर्यावरण दूषित हो रही है | शहरीकरण के कारण औधोगिकीकरण का भी केन्द्रीकरण शहरी
क्षेत्रो में हो रहा है। और शहर में अनेक पर्यावरणीय समस्या उत्पन्न हो रही है- यहा
के लोगो के लिए पेय जल की समस्या, औधोगिकीकरण एवं वाहनो की अधिकता के कारण वायु का
विषैला होना और साथ ही साथ ध्वनि का प्रदूषण, गंदी बस्तियों का तेजी से निमार्ण, आवास
की समस्या के कारण तेजी से वनो व खेती योग्य जमीन का तेजी से क्षरण, बढ़ती गंदगी के
कारण नदी व भूमिगत जलों का भी तेजी से प्रदूषित होना इत्यादि गंभीर पर्यावरणीय समस्या
उत्पन्न हो रही है। जिसमें प्रमुख समस्याए निम्नलिखित है-
वायु प्रदूषण: शहरीकरण
के कारण लगातार शहरों में उधोगो की स्थापना, वाहनो की संख्या में वृद्धि इत्यादि कारणों
से शहरो में बहुत तेजी के साथ वायु का प्रदूषण हो रहा है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण भारत
में बड़े शहरो में से एक दिल्ली में लगातार कुछ वर्षों से वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या
के रूप में उभर के सामने आई। यहां की हवा में रहने से अनेक स्वास्थ सम्बन्धी मानवीय
रोगो में वृद्धि हो रही है। ठंड के दिनो में यहां की AQI 300 रहती है, जो की प्रदूषित
मानक स्तर के उच्चतम बिन्दु पर है
The table defines the Air
Quality Index scale as defined by the US- EPA 2016 standard
AQI |
Air
Pollution Level |
0-50 |
GOOD |
51-100 |
MODERATE |
101-150 |
UNHEALTHY FOR SENSTIVE GROUP |
151-200 |
UNHEALTHY |
201-300 |
VERY UNHEALTHY |
300+ |
HAZARDOUS |
जल प्रदूषण: शहरो में जनसंख्या के वृद्धि के कारण मानवीय अपशिष्ठो
का नदियों में निष्कासन, गंदी नालियों का निर्माण, से जल प्रदूषित हो रही है साथ ही
गंदे पानी का जमीन से रिसकर भूमिगत जलो में जाके मिलने से भूमिगत जल भी प्रदूषित हो
रही है। भारत देश की राजधानी दिल्ली की प्रमुख नदी यमुना बुरी तरह से प्रदूषित हो चुकी
है।
ध्वनि प्रदूषण: लगातार
बढ़ती जनसंख्या, वाहनो की संख्या, औधोगिक उपक्रमो की स्थापना इत्यादि कारणों से शहरो
में बहुत अधिक शोर शराबा बढ़ गई है जो कि मानवीय स्वास्थ पर विपरीत प्रभाव डालती है
जिसमें चिड़चिड़ापन, सुनने की समस्या, उच्च रक्तचाप इत्यादि में वृद्धि हो रही है।
भारत के प्रमुख शहरों में मार्च
2016 तक वाहनों की संख्या
शहर |
कुल वाहन (मिलियन में) |
दिल्ली |
3.66 |
चेन्नई |
4.94 |
कोलकाता |
0.74 |
मुम्बई
ग्रेटर |
2.82 |
दिल्ली विश्व के तेजी के साथ शहरीकरण में आगे बढ़ रहे शहरो में से एक है,जिससे साफ है कि शहरीकरण का प्रभाव किस प्रकार उस शहर के पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव डाल रही है।
निष्कर्ष
शहरीकरण से विकास तो सम्भव
है किन्तु इसके अनियंत्रित विकास से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का भी ध्यान देना
आवश्यक है। शहरीकरण के कारण एक विशेष क्षेत्र में जनसंख्या घनत्व बहुत अधिक हो जाता
है जो अनेक समस्याए उत्पन्न करती है। इसलिए हमें व सरकार को शहरीकरण को नियंत्रित करने
हेतु कदम उठाने होंगे जिसमें मुख्यतः ग्रामिण क्षेत्रो का प्रवास रोकने के लिए ग्रामिण
क्षेत्रो में भी शहरी क्षेत्रो की तरह उचित सुविधा मुहैया कराना, यातायात की सुचारू
रूप से व्यवस्था करना, शहरो में कार पोलिंग का बढ़ावा देना, ग्रामिण क्षेत्रो में उचित
रोजगार की व्यवस्था करना।
19.निम्नलिखित
को भारत के मानचित्र पर दर्शाइए :
(क) विशाखापत्तनम
(ख) राउरकेला
(ग) जमशेदपुर
(घ) दुर्गापुर
(ड) सलेम