Old Pension Scheme: Reality and Prospects

Old Pension Scheme: Reality and Prospects

ओल्ड पेंशन स्कीम : यथार्थ एवं संभावनाएं

प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य का आकलन करें तो जिन मुद्दों पर आगामी विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें 'ओल्ड पेंशन स्कीम' (ओपीएस) की बहाली निश्चित रूप से एक बहुत बड़ा मुद्दा साबित होने वाला है। ओपीएस की बहाली होने की सूरत में वर्तमान भाजपा सरकार इसे 'मिशन रिपीट' का आधार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी और अगर नहीं हो पाती है तो यह तय है कि कांग्रेस इसे अपने शस्त्रागार के सबसे अचूक हथियार के रूप में प्रयोग करेगी, क्योंकि लंबे समय से प्रदेश में यह धारणा बनी हुई है कि प्रदेश में सरकारों की दशा और दिशा कर्मचारी ही तय करते हैं और पिछले कुछ समय से 'ओपीएस' के समर्थन में कर्मचारियों ने जिस योजनाबद्ध तरीके से आंदोलन छेड़ा है, वह वर्तमान भाजपा सरकार की पेशानियों पर बल डालने के लिए काफी है।



पुरानी पेंशन योजना की बहाली केवल कुछ कर्मचारियों का ही मुद्दा नहीं है, बल्कि प्रदेश के वित्तीय संसाधनों पर पड़ने वाले असर के कारण समस्त नागरिकों के सरोकार का भी विषय है। ऐसे में कोई भी राय बनाने से पूर्व संबंधित पहलुओं की जानकारी होना आवश्यक है।

पेंशन का शाब्दिक अर्थ

सेवाकाल पूरा होने पर सरकारी कर्मचारियों या उनके परिवार को दिए जाने वाला वेतनांश' है। भारत में सरकारी कर्मचारियों को पेंशन का प्रावधान ब्रिटिश काल से ही था। स्वतंत्रता के पश्चात् कुछ सुधारों के साथ पेंशन योजना निरंतर जारी रही। वर्ष 2003 में तत्कालीन एनडीए सरकार ने पेंशन प्रावधानों का दायरा बढ़ाते हुए सरकारी कर्मचारियों के साथ-साथ देश के समस्त नागरिकों को पेंशन प्रदान करने की दृष्टि से 'राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) की योजना शुरू की।

केंद्र सरकार के निर्णय के पश्चात 'नई पेंशन योजना को लागू करने में राज्य भी पीछे नहीं रहे। हालांकि यह योजना राज्यों के लिए अनिवार्य नहीं थी, पर दूरगामी वित्तीय लाभों को देखते हुए देश के लगभग सभी राज्यों ने एनपीएस को अपने यहां लागू कर दिया। सिर्फ प. बंगाल ही एकमात्र अपवाद रहा जहां इस योजना को लागू नहीं किया गया। हिमाचल में भी कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2006 में इस योजना को स्वीकार करते हुए इसे मई 2003 के बाद भर्ती हुए सभी कर्मचारियों पर लागू कर दिया।  समर्थन और विरोध के बीच झूलती इस योजना का ज्यादा विरोध तो नहीं हुआ, परंतु जैसे-जैसे एनपीएस के दायरे में आने वाले कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि होती गई, वैसे-वैसे देश भर में ओपीएस की बहाली को लेकर आंदोलन शुरू हो गए। परिणामस्वरूप झारखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान ने अपने यहां ओपीएस की बहाली की घोषणा कर दी है।

दोनों योजनाओं के तुलनात्मक अध्ययन से समझ आ जाता है कि कर्मचारी आखिर क्यों इस योजना का विरोध कर रहे हैं? ओपीएस में सेवानिवृत्ति के पश्चात् अंतिम वेतन का 50 फीसदी पेंशन के रूप में मिलता था। ओपीएस में जनरल प्रोविडेंट फंड (जीपीएफ) की सुविधा उपलब्ध थी। पेंशन के लिए वेतन में से कटौती नहीं होती थी। पेंशन का सारा पैसा सरकार द्वारा दिया जाता था। इसके विपरीत 'एनपीएस' में जीपीएफ की कोई सुविधा नहीं है। पेंशन के लिए वेतन का 10 फीसदी काट लिया जाता है जिसमें 14 फीसदी सरकार अपनी तरफ से डालती है। सेवानिवृत्ति के पक्षात निश्चित पेंशन की कोई गारंटी नहीं है। एनपीएस में महंगाई और वेतन आयोग के कोई लाभ नहीं मिलते हैं और सबसे बड़ी बात है कि पेंशन सरकार के बजाय बीमा कंपनी देगी और सारी योजना बाजार जोखिम के हवाले है। यही कारण है कि एक असुरक्षित भविष्य के कारण कर्मचारियों में रोष और निराशा है। एनपीएस को लागू करने के पीछे सबसे बड़ा कारण था कि सरकार पेंशन देनदारियों से पीछा छुड़ाना चाहती थी। उनका तर्क था कि बजट का बड़ा हिस्सा जो पेंशन पर खर्च हो रहा है और अगर इसे कम कर लिया जाए तो सरकार को बहुत ज्यादा वित्तीय लाभ होगा।

हिमाचल को उदाहरण के रूप में लेकर इसका गुणा-भाग अच्छे से समझा जा सकता है। वर्तमान में प्रदेश में पौने दो लाख पेंशनर हैं जिनकी पेंशन पर कुल बजट का 15 फीसदी अर्थात 7500 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं। प्रदेश में इस समय 130000 कर्मचारी एनपीएस में और लगभग इतने ही ओपीएस में आते हैं जिनके वेतन पर 13000 करोड़ रुपए व्यय हो रहे हैं। मान लीजिए प्रदेश के सभी कर्मचारियों को एनपीएस में शामिल कर लिया जाए तो प्रदेश सरकार को अपने हिस्से के 14 फीसदी के रूप में मात्र 1820 करोड़ रुपए चुकाने होंगे जो कुल बजट का 4 फीसदी भी नहीं होगा। यही गणित है जो केंद्र सरकार सहित प्रदेश सरकारों को ओपीएस की बहाली से रोक रहा है। एनपीएस के तहत आने वाले कर्मचारी लंबे समय से शांतिपूर्ण संघर्ष कर रहे हैं और हमें यह समझना होगा कि वह भीख नहीं बल्कि अपना अधिकार मांग रहे हैं पेंशन का अर्थ ही 'वेतनांश' है जो एक कर्मचारी पूरा जीवन सरकारी सेवा में खपाने के पक्षात अपने लिए अर्जित करता है ताकि बुढ़ापे में सम्मान के साथ जीवन यापन कर सके। इसलिए पेंशन को केवल वित्तीय बोझ के रूप में देखना गलत होगा। ओपीएस की बहाली हो भी जाती है तो भी खजाने की वर्तमान स्थिति पर कोई ज्यादा असर पड़ने वाला नहीं है। हां, आने वाले समय को ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त संसाधन जुटाने की कवायद अभी से करनी होगी जो सरकारी कर्मचारियों की मेहनत पर ही निर्भर करता है। वैसे भी इस देश में एक विधायक या सांसद एक दिन के कार्यकाल के पश्चात् भी सारी उम्र के लिए पेंशन का पात्र हो सकता है, तो सारी उम्र सरकारी सेवा में व्यतीत करने के पश्चात एक कर्मचारी एक निश्चित व सम्मानजनक पेंशन का अधिकारी क्यों नहीं हो सकता है।

दीपक कुमार 

NMOPS मीडिया प्रभारी दुमका

Post a Comment

Hello Friends Please Post Kesi Lagi Jarur Bataye or Share Jurur Kare
Cookie Consent
We serve cookies on this site to analyze traffic, remember your preferences, and optimize your experience.
Oops!
It seems there is something wrong with your internet connection. Please connect to the internet and start browsing again.
AdBlock Detected!
We have detected that you are using adblocking plugin in your browser.
The revenue we earn by the advertisements is used to manage this website, we request you to whitelist our website in your adblocking plugin.
Site is Blocked
Sorry! This site is not available in your country.