Class XII (History) 11. Rebels and the Raj The Revolt of 1857 and its Representations

विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

11. विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में)

प्रश्न 1. बहुत सारे स्थानों पर विद्रोही सिपाहियों ने नेतृत्व संभालने के लिये पुराने शासकों से क्या आग्रह किया?

अथवा : 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों के विरुद्ध उभरे भारतीय नेतृत्व के स्वरूप की उदाहरणों की मदद से परख कीजिए।

उत्तर: 1857 ई. में निश्चय ही अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह में उच्च नेतृत्व तथा संगठन की अति आवश्यकता थी। इस उद्देश्य से विद्रोहियों ने ऐसे व्यक्तियों की शरण ली जो सामान्य जनता में पर्याप्त लोकप्रिय थे।

1. सबसे पहले मेरठ के विद्रोही सिपाही दिल्ली गये तथा उन्होंने वयोवृद्ध मुगल शासक बहादुरशाह द्वितीय से अपना नेतृत्व करने को कहा। उन्होंने नाममात्र के लिये ही सही विद्रोहियों के लिए नेता बनना स्वीकार कर लिया।

2. विद्रोही सिपाहियों तथा शहर के व्यक्तियों ने नाना साहिब को कानपुर में विद्रोह की कमान सम्भालने पर मजबूर कर दिया।

3. सामान्य जनता के दबाव में लक्ष्मीबाई ने झाँसी का नेतृत्व स्वीकार किया।

4. बिहार के आरा अथवा जगदीशपुर में कुछ ऐसी ही स्थिति में कुँवरसिंह ने विद्रोहियों का नेतृत्व स्वीकार किया।

5. लखनऊ में नवाब वाजिद अली शाह जैसे लोकप्रिय शासक को गद्दी से हटा देने और उनके राज्य पर अधिकार कर लेने की यादें लोगों के मन में अभी उपस्थित थीं। इस प्रकार लखनऊ में ब्रिटिश राज्य के ढहने के समाचार पर लोगों ने नवाब के युवा पुत्र बिरजिस कद्र को अपना नेता घोषित कर दिया।

प्रश्न 2. उन साक्ष्यों के बारे में चर्चा कीजिए जिनसे पता चलता है कि विद्रोही योजनाबद्ध और समन्वित ढंग से काम कर रहे थे।

उत्तर: 1857 ई. के विद्रोह के विषय में अनेक विद्वानों का मत है कि यह विद्रोह संगठित नहीं था, किन्तु यह मत सत्य नहीं है। हमें अनेक साक्ष्यों से इसके योजनाबद्ध और संगठित होने के प्रमाण प्राप्त होते हैं। एक साक्ष्य से ज्ञात होता है कि कई जगह शाम को तोप का गोला दागा गया तो कहीं बिगुल बजाकर विद्रोह का संकेत किया गया। हिन्दू तथा मुसलमानों द्वारा एकजुट होने तथा फिरंगियों का सफाया करने के लिये हिन्दी, उर्दू तथा फारसी में अपीलें जारी की गयीं। विभिन्न स्रोतों से ज्ञात होता है कि छावनियों में व्यापक संचार व्यवस्था स्थापित थी, जैसे विद्रोह के समय अवध मिलिट्री पुलिस के कैप्टन हियर्से की सुरक्षा का उत्तरदायित्व भारतीय सिपाहियों पर था।

जहाँ हियर्से तैनात था वहीं 41वीं इन्फेण्ट्री भी तैनात थी जिसका कहना था कि, क्योंकि वे अपने अनेक अंग्रेज अफसरों को खत्म कर चुके हैं इसलिए अवध मिलिट्री का भी यह कर्तव्य बनता है कि वे हियर्से को मौत की नींद सुला दें अथवा उसे पकड़कर 41वीं इन्फेण्ट्री को दे दें। मिलिट्री पुलिस ने दोनों दलीलें खारिज कर दी और इस समस्या के समाधान के लिये देशी अफसरों की एक पंचायत बैठाई गयी। ये पंचायतें रात को कानपुर पुलिस लाइन में जुटती थीं। इसका अर्थ यह है कि सामूहिक रूप से निर्णय होते थे। इसके अतिरिक्त विद्रोहियों के प्रतीक चिह्न कमल तथा रोटी थे। अतः हम कह सकते हैं कि विद्रोहियों में समन्वय का अभाव नहीं था।

प्रश्न 3. 1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की किस हद तक भूमिका थी?

उत्तर: 1857 ई. के विद्रोह के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे, इसमें से धार्मिक कारण भी एक था। इसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं -

1. 1813 ई. में ईसाई मिशनरियों को भारत में कार्य करने की इजाजत दे दी गयी थी।

2. ईसाई मिशनरियाँ भारतीयों को लालच देकर ईसाई बना रही थीं।

3. लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने सती प्रथा सहित अनेक सामाजिक सुधार किये जिसे भारतीयों ने अपने धर्म के विरुद्ध समझा।

4. अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार-प्रसार भी विद्रोह का एक कारण था।

5. ईसाई धर्म प्रचारक अपने धर्म का प्रचार करने के साथ हिन्दू धर्म के ग्रन्थों की निन्दा करते थे जिससे हिन्दुओं में अत्यधिक असन्तोष व्याप्त हुआ।

6. अनेक हिन्दू सिपाहियों को समुद्र मार्ग से दूसरे देश भेजा गया। उस समय हिन्दू समुद्र की यात्रा करना अपवित्र मानते थे जिससे भी सैनिकों में अत्यधिक असन्तोष उत्पन्न हुआ।

7. सिपाहियों को वे कारतूस दिये गये जिनको प्रयोग करने से पहले मुँह से छीलना पड़ता था और जो परत सिपाही छीलते थे वे गाय तथा सुअर की चर्बी से बनी होती थीं। यह बात सिपाहियों को धर्म विरुद्ध लगी तथा इसी घटना ने 1857 ई. के विद्रोह की नींव रखी।

प्रश्न 4. विद्रोहियों के बीच एकता स्थापित करने के लिये क्या तरीके अपनाये गये?

अथवा : 1857 के विद्रोह के दौरान हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच धार्मिक भेद के लक्षण क्यों दिखाई नहीं दिए? परख कीजिए।

अथवा : 1857 के विद्रोहियों के बीच एकता स्थापित करने के लिए जो तरीके अपनाए गए उन्हें उजागर कीजिए।

उत्तर: (i) 1857 ई. के विद्रोह में हमें हिन्दू-मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल देखने को मिलती है। निश्चय ही 1857 ई. में विद्रोहियों द्वारा जारी की गई अनेक घोषणाओं में जाति और धर्म का भेद किए बिना समाज के सभी वर्गों का आह्वान किया गया था। अनेक घोषणाएँ मुस्लिम शहजादों अथवा नवाबों की ओर से अथवा उनके नाम से अग्रसारित की गयी थीं, किन्तु यहाँ हिन्दुओं की भावना का भी पूर्ण ध्यान रखा गया था।

(ii) 1857 ई. के विद्रोह को एक ऐसे विद्रोह के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा था जिसमें हिन्दू तथा मुसलमान दोनों की ही लाभ-हानि बराबर थी। विज्ञापनों में अंग्रेजों से पहले के हिन्दू-मुसलमानों के अतीत की ओर संकेत किया जाता था और मुगल साम्राज्य के विभिन्न समुदायों के सह-अस्तित्व का गौरव-गान किया जाता था।

(iii) मुगल शासक बहादुरशाह जफर द्वारा जारी की गई अपीलों में महावीर तथा मुहम्मद दोनों का ही वर्णन किया गया था।

(iv) दिसम्बर 1857 ई. में अंग्रेजों ने बरेली के हिन्दू-मुसलमानों को आपस में लड़ाने के लिये 50,000 रु. व्यय किये परन्तु अंग्रेजों का यह प्रयास विफल रहा।

(v) विद्रोही सिपाही या उनके सन्देशवाहक एक छावनी से दूसरी छावनी में जाकर सन्देश पहुँचाते थे। जिन छावनियों या शहरों में विद्रोह की सूचना पहुँचती गई वहाँ-वहाँ विद्रोह की शुरुआत होती गयी। इस प्रकार हम देखते हैं कि 1857 ई. के विद्रोह में हिन्दू-मुसलमानों में पर्याप्त एकता थी तथा दोनों ही वर्गों ने एक-दूसरे की भावनाओं का पूर्ण आदर किया।

प्रश्न 5. अंग्रेजों ने विद्रोह को कुचलने के लिये क्या कदम उठाए ?

उत्तर: अंग्रेजों ने यह समझ लिया था कि 1857 ई. के विद्रोह को कुचलना आसान नहीं है। अतः उन्होंने उन सभी मार्गों को अपनाया जिससे वे विद्रोह को कुचल सकते थे। अंग्रेजों द्वारा विद्रोह को कुचलने के लिए उठाये गये कदम निम्नलिखित थे -

(i) मार्शल लॉ तथा मुकदमे: मई तथा जून, 1857 ई. में न केवल सम्पूर्ण उत्तर भारत में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया अपितु फौजी अफसरों तथा आम अंग्रेजों को भी ऐसे हिन्दुस्तानियों पर मुकदमा चलाने तथा उनको दण्ड देने का अधिकार दे दिया गया जिन पर विद्रोह में शामिल होने का सन्देह हो। इस प्रकार कानून और मुकदमों की सामान्य प्रक्रिया रद्द कर दी गई थी तथा यह स्पष्ट कर दिया गया था कि विद्रोह की केवल एक ही सजा है मृत्युदण्ड।

(ii) सैनिक कार्यवाही करना: 1857 ई. के विद्रोह को दबाने के लिये अंग्रेजों ने अत्यंत ही बर्बरतापूर्ण सैनिक कार्यवाही की। अंग्रेज अधिकारियों ने दिल्ली में बहादुरशाह के उत्तराधिकारियों का बेरहमी से सर कलम कर दिया, जबकि बनारस तथा इलाहाबाद में कर्नल नील ने अत्यधिक बर्बरतापूर्ण तरीके से विद्रोह का दमन किया।

(iii) जागीरें जब्त करना: अंग्रेजों ने 1857 ई. के विद्रोह में भाग लेने वाले विद्रोही जागीरदारों एवं ताल्लुकदारों की जागीरों को जब्त कर लिया था।

(iv) आम जनता पर अत्याचार करना: अंग्रेजों ने 1857 ई. के विद्रोह को कुचलने के लिए आम जनता विशेषकर महिलाओं एवं बच्चों पर अमानुषिक अत्याचार किए।

(v) नए-नए कानूनों का निर्माण: अंग्रेजी शासन ने विद्रोह को कुचलने के लिए नए-नए कानूनों का निर्माण किया जिनके तहत भारतीय जनता को बेवजह परेशान किया गया।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 230-300 शब्दों में)

प्रश्न 6. अवध में विद्रोह इतना व्यापक क्यों था? किसान, ताल्लुकदार और जमींदार उसमें क्यों सम्मिलित हुए?

अथवा : "अवध में, 1857 का विद्रोह एक विदेशी शासन के खिलाफ लोक-प्रतिरोध की अभिव्यक्ति बन गया था।" कथन को ताल्लुकदारों और किसानों के सन्दर्भ में न्यायसंगत ठहराए।।

अथवा : लॉर्ड डलहौजी की अधिग्रहण नीति ने अवध के लोगों में असंतोष किस प्रकार पैदा किया था? परख कीजिए।

उत्तर: अवध में विद्रोह का व्यापक प्रसार हुआ और यह विदेशी शासन के विरुद्ध लोक-प्रतिरोध की अभिव्यक्ति बन गया। किसानों, ताल्लुकदारों और जमींदारों सभी ने इसमें भाग लिया। अवध में विद्रोह का सूत्रपात लखनऊ से हुआ, जिसका नेतृत्व बेगम हजरत महल द्वारा किया गया। बेगम ने 4 जून, 1857 ई० को अपने अल्पवयस्क पुत्र बिरजिस कादर को अवध का नवाब घोषित करके अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष प्रारंभ कर दिया। अवध के ज़मींदारों, किसानों तथा सैनिकों ने बेग़म की मदद की। विद्रोहियों ने असीम वीरता का परिचय देते हुए 1 जुलाई, 1857 ई० को ब्रिटिश रेजीडेंसी का घेरा डाल दिया और शीघ्र ही सम्पूर्ण अवध में क्रान्तिकारियों की पताका फहराने लगी। अवध में विद्रोह के व्यापक प्रसार का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि इस क्षेत्र में ब्रिटिश शासन ने राजकुमारों, ताल्लुकदारों, किसानों तथा सिपाहियों सभी को समान रूप से प्रभावित किया था। सभी ने अवध में ब्रिटिश शासन की स्थापना के परिणामस्वरूप अनेक प्रकार की पीड़ाओं को अनुभव किया था।

सभी के लिए अवध में ब्रिटिश शासन का आगमन एक दुनिया की समाप्ति का प्रतीक बन गया था। जो चीजें लोगों को बहुत प्रिय थीं, वे उनकी आँखों के सामने ही छिन्न-भिन्न हो रही थीं। 1857 ई० का विद्रोह मानो उनकी सभी भावनाओं, मुद्दों, परम्पराओं एवं निष्ठाओं की अभिव्यक्ति का स्रोत बन गया था। अवध के ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साम्राज्य में विलय से केवल नवाब ही अपनी गद्दी से वंचित नहीं हुआ था, अपितु इसने इस क्षेत्र के ताल्लुकदारों को भी उनकी शक्ति, सम्पदा एवं प्रभाव से वंचित कर दिया था। उल्लेखनीय है कि ताल्लुकदारों का चिरकाल से अपने-अपने क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान था। अवध के सम्पूर्ण देहाती क्षेत्र में ताल्लुकदारों की जागीरें एवं किले थे। उनका अपने-अपने क्षेत्र की ज़मीन और सत्ता पर प्रभावशाली नियंत्रण था। भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना से पहले ताल्लुकदारों के अपने किले और हथियारबंद सैनिक होते थे। कुछ बड़े ताल्लुकदारों के पास 12,000 तक पैदल सिपाही होते थे। छोटे-छोटे ताल्लुकदारों के पास भी लगभग 200 सिपाही तो होते ही थे। अवध के विलय के तत्काल पश्चात् ताल्लुकदारों के दुर्गों को नष्ट कर दिया गया तथा उनकी सेनाओं को भंग कर दिया गया। परिणामस्वरूप ब्रिटिश शासन के विरुद्ध ताल्लुकदारों और जमींदारों का असंतोष अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया।

ब्रिटिश भू-राजस्व नीति ने भी ताल्लुकदारों की शक्ति एवं प्रभुसत्ता पर प्रबल प्रहार किया। अवध के अधिग्रहण के बाद ब्रिटिश शासन ने वहाँ भू-राजस्व के ‘एकमुश्त बन्दोबस्त’ को लागू किया। इस बन्दोबस्त के अनुसार ताल्लुकदारों को केवल बिचौलिए अथवा मध्यस्थ माना गया जिनके ज़मीन पर मालिकाना हक नहीं थे। इस प्रकार इस बन्दोबस्त के अंतर्गत ताल्लुकदारों को उनकी जमीनों से वंचित किया जाने लगा। उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि अधिग्रहण से पहले अवध के 67 प्रतिशत गाँव ताल्लुकदारों के अधिकार में थे, किन्तु एकमुश्त बन्दोबस्त लागू किए जाने के बाद उनके अधिकार में केवल 38 प्रतिशत गाँव रह गए। दक्षिण अवध के ताल्लुकदारों के 50 प्रतिशत से भी अधिक गाँव उनके हाथों से निकल गए। ताल्लुकदारों को उनकी सत्ता से वंचित कर दिए जाने के कारण एक सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था नष्ट हो गई। किसानों को ताल्लुकदारों के साथ बाँधने वाले निष्ठा और संरक्षण के बंधन नष्ट-भ्रष्ट हो गए। उल्लेखनीय है कि यदि ताल्लुकदार जनता का उत्पीड़न करते थे तो विपत्ति की घड़ी में एक दयालु अभिभावक के समान वे उसकी देखभाल भी करते थे।

अवध के अधिग्रहण के बाद मनमाने राजस्व आकलन एवं गैर-लचीली राजस्व व्यवस्था के कारण किसानों की स्थिति दयनीय हो गई। अब किसानों को न तो विपत्ति की घड़ी में अथवा फसल खराब हो जाने पर सरकारी राजस्व में कमी की जाने की आशा थी और न ही तीज-त्योहारों पर किसी प्रकार की सहायता अथवा कर्ज मिल पाने की कोई उम्मीद थी। इस प्रकार किसानों में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध असंतोष बढ़ने लगा। किसानों के असंतोष का प्रभाव फौजी बैरकों तक भी पहुँचने लगा था क्योंकि अधिकांश सैनिकों का संबंध किसान परिवारों से था। उल्लेखनीय है कि 1857 ई० में अवध के जिन-जिन क्षेत्रों में ब्रिटिश शासन को कठोर प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, उन-उन क्षेत्रों में संघर्ष की वास्तविक बागडोर ताल्लुकदारों एवं किसानों के हाथों में थी। अधिकांश ताल्लुकदारों की अवध के नवाब के प्रति गहरी निष्ठा थी। अतः वे लखनऊ जाकर बेगम हज़रत महल के नेतृत्व में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष में सम्मिलित हो गए। उल्लेखनीय है कि कुछ ताल्लुकदार तो बेग़म की पराजय के बाद भी ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष में जुटे रहे। इस प्रकार, यह स्पष्ट हो जाता है कि किसानों, ताल्लुकदारों, ज़मींदारों तथा सिपाहियों के असंतोष ने अवध में इस विद्रोह की व्यापकता को विशेष रूप से प्रभावित किया था।

प्रश्न 7. विद्रोही क्या चाहते थे ? विभिन्न सामाजिक समूहों की दृष्टि में कितना फर्क था ?

उत्तर: अंग्रेजों की विजेता के रूप में कठिनाइयों, चुनौतियों तथा बहादुरी के विषय में अपनी ही एक भिन्न सोच थी। अंग्रेज विद्रोहियों को स्वार्थी तथा बर्बर व्यक्तियों का झुण्ड मानते थे। विद्रोहियों को कुचलने का एक कारण यह भी था कि उनकी आवाज को पूर्णतः दबा दिया जाये। अत्यंत कम मात्रा में विद्रोहियों को इस घटनाक्रम के विषय में अपनी बात रखने का अवसर प्राप्त हुआ। वास्तविक रूप से इसका कारण यह था कि विद्रोहियों में अधिकतर सिपाही तथा आम व्यक्ति सम्मिलित थे। इस कारण से अपने विचारों के प्रसार तथा व्यक्तियों को विद्रोह में सम्मिलित करने के लिये जारी की गई कुछ घोषणाओं तथा विज्ञापनों के अतिरिक्त हमारे पास विद्रोहियों के दृष्टिकोण को समझने के लिए और कोई स्रोत नहीं है। विद्रोहियों की घोषणा पर आधारित इच्छाएँ

1. घोषणाओं में ब्रिटिश शासन से सम्बन्धित प्रत्येक तत्व का विरोध किया जाता था।

2. देशी रियासतों पर अधिकार करने पर अंग्रेजों की कड़ी आलोचना की जाती थी।

3. विद्रोहियों के नेताओं का मानना था कि अंग्रेजों पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं किया जा सकता है।

4. भारतीय जनसाधारण में इस बात को लेकर रोष था कि ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था ने सभी छोटे-बड़े जमींदारों को उनकी जमीन से बेदखल कर दिया ।

5. विदेशी व्यापार ने कुटीर उद्योगों का पूर्ण रूप से विनाश कर दिया।

6. फिरंगियों पर स्थापित जीवन शैली को नष्ट करने का आरोप लगाया जाता था, विद्रोही वस्तुतः अपनी पूर्व की दुनिया में जीवित रहना चाहते थे।

7. विद्रोहियों की घोषणाएँ इस भय को व्यक्त करती थीं कि अंग्रेज हिन्दू-मुसलमानों के धर्म को भ्रष्ट करने में लगे हुए हैं तथा वे उन्हें ईसाई बनाना चाहते थे।

8. बहुत-से स्थानों पर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह सभी शक्तियों के विरुद्ध आक्रामक रूप ले लेता था जिनको अंग्रेजों का समर्थक माना जाता था।

9. कभी-कभी विद्रोही शहर के सम्भ्रान्त वर्ग को जान-बूझकर अपमानित करते थे।

10. गाँवों में विद्रोहियों ने सूदखोरों के बहीखातों को आग के हवाले कर दिया तथा उनके घर नष्ट कर दिये।

11. हमें ऐसे भी साक्ष्य प्राप्त होते हैं जिनसे पता चलता है कि विद्रोही वैकल्पिक सत्ता की तलाश में थे।

संक्षेप में कहा जाये तो विद्रोहियों द्वारा स्थापित संरचना का प्राथमिक उद्देश्य युद्ध की प्राथमिक आवश्यकताओं को पूर्ण करना ही था, किन्तु अधिकांश विषयों में ये संरचनाएँ अधिक समय तक नहीं टिक पायीं तथा इस महान विद्रोह का दमन कर दिया गया।

प्रश्न 8. 1857 के विद्रोह के बारे में चित्रों से क्या पता चलता है ? इतिहासकार इन चित्रों का किस तरह विश्लेषण करते हैं ?

उत्तर: अंग्रेजों एवं भारतीय चित्रकारों द्वारा तैयार किए गए चित्र सैनिक विद्रोह का एक महत्वपूर्ण रिकॉर्ड रहे हैं। इस विद्रोह के सन्दर्भ में कई चित्र जैसे-पेंसिल से बने रेखांकन, उत्कीर्णन चित्र, पोस्टर, कार्टून, बाजार प्रिंट आदि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। इन चित्रों के माध्यम से हमें तत्कालीन समय की घटनाओं की पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है।

1. अंग्रेजी चित्रकारों द्वारा निर्मित चित्र: 1857 ई. के विद्रोह के समय अंग्रेज चित्रकारों द्वारा बनाए गए चित्रों से ज्ञात होता है कि वे हम भारतीयों के विषय में क्या सोचते थे। अंग्रेजी चित्रकारों द्वारा बनाए गए प्रमुख चित्र निम्नलिखित हैं -

a. जिसका नाम द रिलीफ ऑफ लखनऊ है, एक अंग्रेज चित्रकार टॉमस जोन्स बार्कर द्वारा 1859 ई. में बनाया गया, जो लखनऊ की रेजीडेंसी से सम्बन्धित है। 25 सितम्बर को जेम्स आट्रम तथा हेनरी हैवलॉक वहाँ पहुँचे तथा उन्होंने विद्रोहियों को तितर-बितर कर दिया। 20 दिन के बाद लखनऊ में नया कमाण्डर कैम्पबेल भारी सैन्य-बल के साथ पहुँचा और उसने ब्रिटिश रक्षक सेना को घेरे से छुड़ाया। यही इस चित्र में दिखाने का प्रयास किया गया है। यहाँ भारतीय विद्रोहियों को दीन-हीन तथा अधनंगी अवस्था में दिखाया गया है, जबकि अंग्रेज अफसरों को सफेद घोड़े तथा सुन्दर वस्त्रों में चित्रित किया गया है। इस चित्र द्वारा निश्चय ही भारतीयों को असभ्य दिखाया गया है और अंग्रेजों को विजयी मुद्रा में दिखाया गया है।

b. चित्रकार जोजफ नोएल पेटन द्वारा 'इन मेमोरियम' चित्र में संकट में फँसी कुछ अंग्रेज स्त्रियों तथा बच्चों को दिखाया गया है। यह चित्र दर्शक की कल्पना को झिंझोड़ता है तथा उसमें क्रोध और बेचैनी का भाव उत्पन्न करता है। इस चित्र में अंग्रेज चित्रकार ने पृष्ठभूमि में भारतीय विद्रोहियों को भी दिखाया है। चित्र द्वारा निश्चय ही भारतीयों को हिंसक तथा बर्बर दिखाने का प्रयास किया गया है।

c. भारतीयों के विपरीत अंग्रेजों ने अंग्रेजी महिलाओं को अत्यधिक वीरांगना के रूप में चित्रित किया है।

(अ) में मिस ह्वीलर स्वयं अकेली ही भारतीय विद्रोहियों से लड़ती हुई दिखाई गयी हैं।

(ब) में एक महिला को युद्धभूमि में भारतीयों से लड़ता हुआ दिखाया गया है। सभी ब्रिटिश चित्रों की तरह यहाँ भी विद्रोहियों को दानवों के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

d.  में एक ब्रिटिश बब्बर शेर भारतीय बंगाल टाइगर पर झपट रहा है। चित्र में बंगाल टाइगर के नीचे एक मानव को लेटा हुआ दिखाया गया है। चित्र स्पष्ट करता है कि अंग्रेज अपने आप को सभ्य, शक्ति ..ली तथा रक्षक समझते हैं, जबकि भारतीयों को असभ्य, निर्बल तथा दानव समझते हैं।

e. ब्रिटिश पत्रिका पन्च के पन्नों में प्रकाशित एक कार्टून में केनिंग को एक नेक बुजुर्ग के रूप में दर्शाया गया है। उसका एक हाथ सिपाही के सिर पर है जो अभी भी नंगी तलवार और कटार लिये हुए है जिससे खून टपक रहा है। यह एक ऐसी छवि थी जो उस समय की बहुत-सी ब्रिटिश तस्वीरों में बार-बार सामने आती थी। चित्र केवल अपने समय की भावनाओं को ही व्यक्त नहीं कर रहा है बल्कि मानवीय संवेदनाओं को भी आकार दे रहा है। ब्रिटेन में छप रहे चित्रों से उत्तेजित होकर वहाँ की जनता विद्रोहियों को निर्ममता के साथ कुचल डालने के लिये अपनी आवाज उठा रही थी।

2. भारतीय चित्रकारों द्वारा निर्मित चित्र: भारतीय चित्रकारों ने विद्रोह के नेताओं को ऐसे नायकों के रूप में चित्रित किया जो देश को रणभूमि की ओर ले जा रहे थे। उन्हें ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासन के विरुद्ध उत्तेजित होते sa हुए दर्शाया गया है। चित्रकारों ने रानी लक्ष्मीबाई को एक हाथ में घोड़े की लगाम एवं दूसरे हाथ में तलवार लिए हुए अपनी मातृभूमि की मुक्ति के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ते हुए दर्शाया है। रानी लक्ष्मीबाई को एक मर्दाना योद्धा के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

इतिहासकारों द्वारा चित्रों का विश्लेषण: 1857 ई. के विद्रोह से सम्बन्धित चित्रों के विश्लेषण से इतिहासकारों द्वारा तत्कालीन समय के इतिहास को लिखने में बहुत अधिक सहायता मिलती है। इन चित्रों के माध्यम से अंग्रेजी सरकार के अत्याचार एवं भारतीय विद्रोही सैनिकों द्वारा उसके प्रतिरोध की जानकारी मिलती है। इसके अतिरिक्त इन चित्रों के माध्यम से उस समय की भावनाओं के साथ-साथ संवेदनाओं की भी जानकारी मिलती है। ब्रिटेन में छप रहे चित्रों से उत्तेजित होकर वहाँ की जनता विद्रोहियों को निर्ममता के साथ कुचल डालने के लिए आवाज उठा रही थी दूसरी ओर भारतीय राष्ट्रवादी चित्र हमारी राष्ट्रवादी कल्पना को मूर्त रूप देने में सहायता कर रहे थे।

प्रश्न 9. एक चित्र और एक लिखित पाठ को चुनकर किन्हीं दो स्रोतों की पड़ताल कीजिए और इस विषय में चर्चा कीजिये कि उनसे विजेताओं तथा पराजितों के दृष्टिकोण के विषय में क्या पता चलता है ?

उत्तर: किन्हीं दो संकेतों की पड़ताल करने के लिए हम एवं लिखित पाठ का अध्ययन कर रहे हैं। 1859 ई. में टॉमस जोन्स बार्कर द्वारा बनाये गये इस चित्र रिलीफ ऑफ लखनऊ (लखनऊ की राहत) में अंग्रेजों को बचाने एवं विद्रोहियों को कुचलने वाले अंग्रेज नायकों का गुणगान किया गया है। जब विद्रोही टुकड़ियों ने लखनऊ का घेरा डाला तो लखनऊ के कमिश्नर हेनरी लॉरेन्स ने ईसाइयों को एकत्रित करके एक बहुत ही सुरक्षित रेजीडेंसी में शरण ले ली। बाद में लॉरेंस तो मारा गया, परन्तु कर्नल इंगलिस के नेतृत्व में रेजीडेंसी सुरक्षित रही। 25 सितम्बर को जेम्स ऑट्रम एवं हेनरी हेवलॉक वहाँ पहुँचे, उन्होंने विद्रोहियों को तितर-बितर कर दिया तथा ब्रिटिश टुकड़ियों को नयी मजबूती प्रदान की।

20 दिन बाद भारत में ब्रिटिश टुकड़ियों का नया कमांडर कॉलिन कैम्पबेल एक बड़ी सेना लेकर वहाँ पहुँचा और उसने ब्रिटिश रक्षा सेना को घेरे से छुड़ाया। अंग्रेज इतिहासकारों ने लखनऊ की घेरेबन्दी का वीरतापूर्ण प्रतिरोध किया। बार्कर का यह चित्र कैम्पबेल के आगमन के क्षण को दर्शाता है। चित्र के मध्य में कैम्पबेल, ऑट्रम व हेवलॉक तीन नायकों को विजय का उत्सव मनाते हुए दिखाया गया है तथा इनके पीछे की ओर टूटी-फूटी लखनऊ रेजीडेंसी को दिखाया गया है। चित्र के अगले हिस्से में पड़े हुए शव व घायल इस घेरेबन्दी के दौरान हुई मारकाट को दिखाते हैं। चित्र के मध्य भाग में खड़े घोड़े इस तथ्य को प्रदर्शित करते हैं कि अब ब्रिटिश सत्ता का नियन्त्रण पुनः बहाल हो गया है।

इस चित्र में कैम्पबेल व उसके साथियों को जिस प्रकार विजयी मुद्रा में दिखाया गया है उससे लगता है कि रेजीडेंसी में घिरे अंग्रेजों के लिए संकट की घड़ी समाप्त हो गयी है और विद्रोह समाप्त हो गया है अर्थात् अंग्रेज जीत चुके हैं। इस चित्र तथा पाठ में दिए गए विवरण से पता चलता है कि अंग्रेजों ने उनके शासन के विरुद्ध भारतीय सैनिकों द्वारा किये गये विद्रोह को गलत माना तथा इस विद्रोह को कुचलना अपनी सरकार का कर्तव्य माना। अत: अंग्रेजी शासन के अनुसार उनकी दृष्टि में पुनः शान्ति स्थापना हेतु उनके द्वारा की गयी कार्यवाही उचित है।

इसके विपरीत 1857 ई. के विद्रोह में पराजय का मुंह देखने वाले विद्रोही और राज (1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान) 3730 भारतीयों की दृष्टि में अंग्रेज उनके धर्म व संस्कृति को नष्ट कर रहे थे अतः ऐसे शासन को उखाड़ फेंकना समस्त भारतीयों का कर्तव्य है, जिसके लिए उन्हें अपना सर्वस्व देश-हित में न्यौछावर कर देना चाहिए। 1857 ई. की पराजय के पश्चात् भारतीय चुप नहीं बैठे। अन्त में भारतीयों ने 15 अगस्त, 1947 को अपना देश अंग्रेजी दासता से स्वतन्त्र कराकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करके ही दम लिया।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.  भारत के मानचित्र पर कलकत्ता (कोलकाता), बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई) को चिह्नित कीजिए जो 1857 में ब्रिटिश सत्ता के तीन मुख्य केन्द्र थे। मानचित्र 1 तथा 2 को देखिए तथा उन इलाकों को चिह्नित कीजिये जहाँ विद्रोह सबसे व्यापक रहा। औपनिवेशिक शहरों से ये इलाके कितनी दूर अथवा कितने पास थे ?

उत्तर:

विद्रोह के केन्द्रों की औपनिवेशिक शहरों से दूरी

1. झाँसी: मुम्बई से लगभग 900 किमी. तथा कोलकाता से लगभग 950 किमी. दूर।

2. दिल्ली: मुम्बई से 1400 किमी. तथा कोलकाता से 1450 किमी. दूर।

3. लखनऊ: मुम्बई से 1600 किमी. तथा कोलकाता से लगभग 800 किमी. दूर।

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11. 1857 के विद्रोही नेताओं में से किसी एक की जीवनी पढ़ें। देखिए कि उसे लिखने के लिये जीवनीकार ने किन स्रोतों का उपयोग किया है? क्या उनमें सरकारी रिपोर्टों, अखबारी खबरों, क्षेत्रीय भाषाओं की कहानियों, चित्रों और किसी अन्य चीज का इस्तेमाल किया गया है ? क्या सभी स्रोत एक ही बात कहते हैं या उनके बीच फर्क दिखाई देता है। अपने निष्कर्षों पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 12. 1857 पर बनी कोई फिल्म देखिए और लिखिए कि उसमें विद्रोह को किस तरह दर्शाया गया है? उसमें अंग्रेजों, विद्रोहियों और अंग्रेजों के भारतीय वफादारों को किस तरह दिखाया गया है? फिल्म किसानों, नगरवासियों, आदिवासियों, जमींदारों और ताल्लुकदारों के बारे में क्या कहती है ? फिल्म किस तरह की प्रतिक्रिया को जन्म देना चाहती है?

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

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