2.
राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ
पाठ्यपुस्तक
के प्रश्न एवं उनके उत्तर
उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में)
प्रश्न 1. आरंभिक ऐतिहासिक नगरों में शिल्पकला के उत्पादन के
प्रमाणों की चर्चा कीजिए। हड़प्पा के नगरों के प्रमाण से ये प्रमाण कितने भिन्न
हैं ?
उत्तर:
छठी शताब्दी ई. पू. में द्वितीय नगरीकरण अथवा आरंभिक ऐतिहासिक नगरों में शिल्पकला के
अनेक उत्तम उदाहरण इतिहासकारों को प्राप्त होते हैं, जैसे - उत्तरी कृष्ण मार्जित मृदभाण्ड
संस्कृति के मिट्टी के कटोरे तथा थालियाँ। इन मृदभाण्डों पर चमकदार परत चढ़ी हुई है।
संभवतः इनका प्रयोग धनी लोगों द्वारा किया जाता था। इसके अतिरिक्त अन्य सामग्रियाँ
भी हमें प्राप्त होती हैं जिनमें से मुख्य हैं चाँदी, सोने, ताँबे, काँसे, हाथी दाँत
तथा शीशे के बने पदार्थ, आभूषण, उपकरण, हथियार इत्यादि। ये सभी उपकरण अथवा पदार्थ अधिक
परिष्कृत तथा उन्नत तकनीकी से बने हैं।
हड़प्पा
सभ्यता में भी हमें अनेक शिल्पकला के उपकरण देखने को मिलते हैं। हड़प्पा सभ्यता से
हमें मिट्टी तथा धातुओं से बनी अनेक मूर्तियाँ, विभिन्न पत्थरों से बने गहने तथा सेलखड़ी
से बनी मुद्राएँ प्राप्त होती हैं जिससे ज्ञात होता है कि इन नगरों में बुनकर, बढ़ई,
सुनार, लोहार आदि शिल्पकार रहते थे, अत: वहाँ शिल्पकला उत्कृष्ट रूप में थी। प्रथम
नगरीय सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) तथा द्वितीय नगरीय सभ्यता के पदार्थों में हमें अनेक
भिन्नता देखने को मिलती हैं। जहाँ हड़प्पा सभ्यता की मुद्राएँ पकी मिट्टी से बनी होती
थीं, तो वहीं आरंभिक ऐतिहासिक नगरों की मुद्राएँ धातु की बनी होती थीं। हड़प्पा सभ्यता
से हमें अनेक मातृदेवियों की प्रतिमाएँ, पशुओं की मूर्तियाँ इत्यादि प्राप्त होती हैं,
जबकि द्वितीय नगरीकरण में ऐसा नहीं है।
Read Know: ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता
प्रश्न 2. महाजनपदों के विशिष्ट अभिलक्षणों का वर्णन कीजिए।
अथवा : महाजनपदों की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
छठी शताब्दी ई. पू. में भारत में अनेक महाजनपदों का उदय हुआ। सोलह महाजनपदों का उल्लेख
हमें जैन ग्रन्थ 'भगवती सूत्र' तथा बौद्ध ग्रन्थ 'अंगुत्तर निकाय' में मिलता है। इन
सोलह महाजनपदों के नाम इस प्रकार थेअंग, मगध, काशी, कोशल, वज्जि, मल्ल, चेदि, वत्स,
कुरु पांचाल, मत्स्य, शूरसेन अश्मक, अवन्ति, काम्बोज तथा गान्धार। इनमें सबसे शक्तिशाली
महाजनपद मगध । ये नहाजनपद दो प्रकार के थे, प्रथम गण तथा द्वितीय राज्य।
गण
अनेक छोटे-छोटे राज्यों के समूहों से मिलकर बनता था वहीं राज्य में एक ही राजा, एक
ही राजधानी तथा एक ही राजचिह्न होत। वज्जि तथा शाक्य इस समय के मुख्य गण थे। प्रत्येक
महाजनपदं की अपनी एक राजधानी होती थी जिसकी प्रायः किलेबंदी का जाती थी जो राजधानियों
के रख-रखाव, प्रारंभिक सेनाओं तथा नौकरशाही के लिए आवश्यक आर्थिक स्रोत के अर्जन तथा
संरक्षण में सहायक होती थी। महाजनपदों की एक विस्तृत कराधान व्यवस्था थी, साथ ही उन्नत
कृषि पैदावार के कारण राज्यों के पास पर्याप्त मात्रा में धन रहता था।
लगभग
छठी शताब्दी ई. पू. संस्कृत में धर्मशास्त्र नामक ग्रन्थ की रचना ब्राह्मणों द्वारा
का गई जिसमें राजा व प्रजा के लिए राजकीय एवं सामाजिक नियमों का निर्धारण किया गया
तथा यह भी अपेक्षा की गई कि शासक क्षत्रिय वर्ग से ही हों। धीरे-धीरे कुछ राज्यों ने
अपनी स्थायी सेनाएँ और नौकरशाही तन्त्र तैयार कर लिया जिनमें सैनिक प्रायः कृषक वर्ग
से ही भर्ती किए जाते थे।
प्रश्न 3. सामान्य लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण इतिहासकार कैसे करते
हैं ?
उत्तर:
सामान्य लोगों के जीवन की लिखित जानकारी के साक्ष्य अल्प हैं। इतिहास में सामान्य लोगों
के जीवन का निर्धारण तो इतिहासकार करते हैं, किन्तु इसके लिए वे समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र
तथा अर्थशास्त्रीय सिद्धान्तों की सहायता लेते हैं। गंगा घाटी में मिले खेती के उपकरण
तथा साक्ष्य स्पष्ट करते हैं कि सामान्यजन का व्यवसाय कृषि था। अशोक ने अपनी सामान्य
जनता के साथ संवाद स्थापित करने के लिए अभिलेखों का सहारा लिया था जो सामान्य जनता
की स्थिति के परिचायक तो हैं ही साथ ही राज्य की जनतान्त्रिक व्यवस्था की ओर भी इशारा
करते हैं।
संक्षेप
में कहा जाए तो यह स्पष्ट है कि सामान्य जनता के इतिहास का निर्माण करने में पुरातात्विक
सामग्री तथा साहित्यिक स्रोतों के साथ-साथ इतिहासकार अन्य साधनों की भी सहायता प्राप्त
करते हैं, जैसे कि जातक और पंचतन्त्र की कथाओं की समीक्षा करके इतिहासकारों ने यह जानने
का प्रयास किया कि उस काल में राजा और प्रजा के बीच सम्बन्ध कैसे थे? 'गंदतिन्दु' नामक
जातक कथा में बताया गया है कि किस प्रकार एक दुष्ट राजा से प्रजा दुखी रहती थी।
प्रश्न 4. पाण्ड्य सरदार (स्रोत-3) को दी जाने वाली वस्तुओं की तुलना
दंगुन गाँव (स्रोत-8) की वस्तुओं से कीजिए। आपको क्या समानताएँ तथा असमानताएँ दिखाई
देती हैं ?
उत्तर:
दक्षिण भारत के प्रसिद्ध साम्राज्य पाण्ड्य के मुख्य शासक सरदार सेन गुन्तुवन को उपहारस्वरूप
ग्रामवासियों ने अनेक वस्तुएँ दी थीं; जैसे - फूल, सुगन्धित लकड़ी, चन्दन, हाथी-दाँत,
हल्दी, इलायची, हिरणों के बाल से बने चँवर, शहद, सुरमा, मिर्च इत्यादि। इसके अतिरिक्त
ग्रामवासी अपने साथ आम, नारियल, फल, प्याज, गन्ना, जड़ी-बूटी, सुपारी, केला, बाघ के
बच्चे, हाथी, बन्दर, भालू, मृग, मोर, कस्तूरी, जंगली मुर्गे, बोलने वाले तोते, शेर
इत्यादि लाए थे।
दंगुन
गाँव में घास, जानवरों की खाल, नमक, कोयला, मदिरा, खादिर वृक्ष की लकड़ी, फूल, दूध
इत्यादि का उत्पादन होता था। यहाँ दोनों में फूल समान हैं एवं शेष वस्तुओं में कोई
समानता नहीं है। सबसे बड़ी असमानता तो उन वस्तुओं को प्राप्त करने के तरीके में है।
पाण्ड्य सरदार को लोग खुशी-खुशी नाच-गाकर स्वेच्छा से वस्तुएँ उपहार में देते थे। इसके
विपरीत दंगुन गाँव के निवासियों को कर्त्तव्यस्वरूप वस्तुएँ भूमिदान से पूर्व राजा
को तथा भूमिदान के उपरान्त भूमिदान प्राप्त करने वाले आचार्य चनाल स्वामी को देनी पड़ती
थीं।
प्रश्न 5. अभिलेखशास्त्रियों की कुछ समस्याओं की सूची बनाइए।
अथवा : "अभिलेखों से प्राप्त जानकारी की भी सीमा होती है।"
उपयुक्त तर्कों सहित इस कथन को न्यायसंगत ठहराइए।
अथवा : अभिलेख साक्ष्यों की सीमाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
निश्चय ही इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं, किन्तु
अभिलेखों की उपयोगिता की अपनी एक सीमा है। अभिलेखों की इस सीमा को हम निम्नलिखित बिन्दुओं
के माध्यम से समझ सकते हैं
1.
कभी-कभी अभिलेखों पर अक्षरों को हल्के ढंग से उत्कीर्ण किया जाता है।
2.
अस्पष्ट शब्दों को पढ़ने में कठिनाई होती है।
3.
समय के साथ-साथ अभिलेखों के नष्ट होने अथवा क्षतिग्रस्त होने का भय रहता है।
4.
अभिलेख के वास्तविक अर्थ को समझ पाना कठिन होता है क्योंकि कुछ अर्थ किसी विशेष स्थान
या समय से सम्बन्धित होते हैं।
5.
अभिलेख मुख्यतः प्रशस्ति अथवा भू-दान की घोषणा के रूप में होते हैं जो प्रायः दानदाता
तथा दानग्रहीता की प्रशंसा ही करते हैं जिससे स्पष्ट :.. नहीं निकलता है।
6.
अभिलेख सामान्यतः राजा अथवा उच्च वर्ग से ही सम्बन्धित होते हैं जिसमें जनसामान्य के
विषय में सूचनाओं का सर्वथा अभाव होता है। मूल समस्या यह है कि जनसामान्य से सम्बन्धित
राजनीतिक एवं आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण विवरणों का अभिलेखों में अंकन नहीं है; जैसे-
खेती की प्रक्रियाएँ, सामान्य जनता के दैनिक जीवन की गतिविधियाँ आदि। अभिलेख प्रायः
बड़े और विशेष अवसरों का ही वर्णन करते हैं।
7.
कभी-कभी एक अभिलेख को एक से अधिक कवि अथवा लेखक लिखते हैं जिससे अभिलेख की स्पष्टता
समाप्त हो जाती है।
8.
हजारों की संख्या में अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं, परन्तु सबके अर्थ नहीं निकाले जा
सके हैं; अतः इतिहास के इस अवलोकन को समग्रं नहीं कहा जा सकता।
निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 500 शब्दों में)
प्रश्न 6. मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए। अशोक
के अभिलेखों में इनमें से कौन-कौनसे तत्वों के प्रमाण मिलते हैं ?
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य को भारत का प्रथम विस्तृत तथा स्वतन्त्र साम्राज्य माना जाता है क्योंकि
इस साम्राज्य का अपना व्यवस्थित प्रशासन तथा नियमावली थी। इसी के आधार पर मौर्य साम्राज्य
एक महान साम्राज्य का स्वरूप धारण कर पाया। मौर्य प्रशासन में तत्कालीन समय में अनेक
विशेषताएँ विद्यमान थीं, मेगस्थनीज के विवरण, कौटिल्य के अर्थशास्त्र तथा अशोक के अभिलेखों
से हमें मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षणों की व्यापक जानकारी प्राप्त होती है, जिसे
हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं -
(1)
पाँच प्रमुख राजनीतिक केन्द्र : मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केन्द्र थे-
पाटलिपुत्र, तक्षशिला, उज्जयिनी, होयसल व सुवर्णगिरि । इनमें से मौर्य साम्राज्य का
सबसे बड़ा केन्द्र पाटलिपुत्र था जो मौर्य साम्राज्य की राजधानी था तथा शेष प्रान्तीय
केन्द्र थे। इन समस्त राजनैतिक केन्द्रों का उल्लेख अशोक के अभिलेखों में मिलता है।
(2)
असमान शासन व्यवस्था : मौर्य साम्राज्य विशाल था। इतिहासकारों का मत है कि मौर्य साम्राज्य
की प्रशासनिक व्यवस्था समान नहीं थी। मौर्य साम्राज्य में सम्मिलित क्षेत्र एक जैसे
न होकर विविधता लिए हुए थे–कहाँ अफगानिस्तान के पहाड़ी क्षेत्र और कहाँ उड़ीसा के तटवर्ती
क्षेत्र । इतने विशाल एवं विविधतापूर्ण साम्राज्य का प्रशासन एक समान होना सम्भव नहीं
था, परन्तु यह सम्भव है कि मौर्य साम्राज्य में सबसे अधिक प्रशासनिक नियन्त्रण पाटलिपुत्र
एवं समीपवर्ती प्रान्तीय केन्द्रों पर रहा हो।
(3)
प्रशासनिक केन्द्रों का चयन - मौर्य साम्राज्य में प्रान्तीय केन्द्रों का चयन बहुत
अधिक सावधानीपूर्वक किया जाता था। तक्षशिला एवं उज्जयिनी जैसे प्रान्तीय केन्द्र लम्बी
दूरी वाले महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्गों पर स्थित थे तथा कर्नाटक में स्थित सुवर्णगिरि
(सोने का पहाड़) सोने की खदान के कारण महत्वपूर्ण स्थान रखता था।
(4)
आवागमन का सुचारु संचालन करना-मौर्य साम्राज्य के सफल संचालन के लिए स्थल एवं जल दोनों
मार्गों से आवागमन बनाए रखना अति आवश्यक था। साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र से प्रान्तीय
केन्द्रों तक आने-जाने में कई सप्ताहों या - महीनों का समय लग जाता था। इस बात को दृष्टिगत
रखते हुए आने-जाने वाले यात्रियों के लिए भोजन एवं उनकी सुरक्षा की व्यवस्था करनी पड़ती
थी। ऐसा प्रतीत होता है कि मौर्य साम्राज्य में सेना सुरक्षा का प्रमुख माध्यम रही
होगी।
(5)
सैनिक गतिविधियों का संचालन - मौर्य साम्राज्य में एक विशाल सेना थी, यूनानी इतिहासकारों
के अनुसार मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के पास छः लाख पैदल सैनिक, तीस हजार घुड़सवार एवं
नौ हजार हाथी थे। मेगस्थनीज ने मौर्य साम्राज्य में सैनिक गतिविधियों के संचालन हेतु
एक समिति एवं छ: उप-समितियों का उल्लेख किया है। समिति विविध प्रकार के कार्य करती
थी, जैसे-सैनिकों के लिए राजा, किसान और नगर (आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएं 551 भोजन
एवं जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था करना, सैन्य उपकरणों को लाने-ले जाने के लिए बैलगाड़ियों
की व्यवस्था करना तथा सैनिकों की देखभाल के लिए सेवकों व शिल्पकारों की नियुक्ति करना।
(6)
पतिवेदकों की नियुक्ति-अभिलेखों से यह ज्ञात होता है कि सम्राट अशोक ने अपनी प्रजा
के हितों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उनके कष्टों को स्वयं तक पहुँचाने हेतु
पतिवेदकों (दूत या संवाददाताओं) की नियुक्ति की थी जो कहीं भी कभी भी इन समाचारों को
सम्राट तक पहुँचाने हेतु सम्राट से सीधे मिल सकते थे।
(7)
धम्म महामात्यों की नियुक्ति–साम्राज्य को सुगठित तथा संगठित बनाए रखने हेतु अशोक ने
धम्म के प्रचार-प्रसार का भी सहारा लिया जिस हेतु धम्म महामात्य नामक धर्माधिकारियों
की नियुक्ति की गई। धम्म के सिद्धान्त बहुत ही साधारण तथा सार्वभौमिक थे।
प्रश्न 7. यह बीसवीं शताब्दी के एक सुविख्यात अभिलेखशास्त्री, डी. सी.
सरकार का वक्तव्य है "भारतीयों के . जीवन, संस्कृति और गतिविधियों का ऐसा कोई
पक्ष नहीं है जिसका प्रतिबिम्ब अभिलेखों में नहीं है" चर्चा कीजिए।
उत्तर:
इतिहास निर्माण के दो साधन होते हैं:
प्रथम,
पुरातात्त्विक साक्ष्य तथा द्वितीय साहित्यिक स्रोत। पुरातात्त्विक साक्ष्यों में अभिलेखीय
साक्ष्य सबसे अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। मौर्य-साम्राज्य का, विशेषकर अशोक का, शासन
काल तो मात्र अभिलेखों के माध्यम से पूर्ण रूप से ज्ञात होता है। आर. जी. भण्डारकर
ने अशोक के काल का सम्पूर्ण इतिहास उसके अभिलेखों के आधार पर ही लिखा है। अतः यहाँ
विद्वान इतिहासकार तथा अभिलेखशास्त्री डी. सी. सरकार का मत पूर्णतया सत्य है।
सुविख्यात
अभिलेख शास्त्री डी. सी. सरकार ने ठीक ही कहा है कि अभिलेखों में भारतीयों के जीवन
के प्रत्येक पक्ष का विवरण उल्लिखित है। इतिहास
एक अत्यन्त विशाल ज्ञानकोश है। यदि हमें इतिहास अथवा किसी काल विशेष को समझना हो तो
उसका वर्गीकरण करना चाहिए जिससे इतिहास को समझना तथा समझाना अत्यन्त सरल हो जाता है।
भारतीय इतिहास का सरल वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है
(1)
अभिलेखों में भारतीयों का राजनीतिक इतिहास: अभिलेखों से शासकों के नाम, कार्यकाल तथा
उनकी सीमाओं का निर्धारण अत्यधिक सुगमता से हो जाता है। मौर्यों के अभिलेखों से भी
हमें यह सुविधा प्राप्त होती है। महास्थान (बंगाल) अभिलेख तथा गिरिनार अभिलेख (सुदर्शन
झील के निर्माणकर्ता पुष्यगुप्त जो (चन्द्रगुप्त मौर्य का गवर्नर) के द्वारा स्थापित
चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य की सीमाओं का निर्धारण बंगाल से सौराष्ट्र तक निर्धारित
करता है।
इसके
अतिरिक्त अशोक के अभिलेख हमें कर्नाटक तथा गांधार तक प्राप्त होते हैं, चूँकि ये प्रान्त
अशोक ने विजित नहीं किए थे, अतः यह तथ्य स्पष्ट करता है कि ये प्रान्त चन्द्रगुप्त
मौर्य ने ही जीते थे। चन्द्रगुप्त के अतिरिक्त अशोक की सभी सीमाओं का निर्धारण भी हम
उसके अभिलेखों के माध्यम से कर सकते हैं। अशोक के 13वें वृहद शिलालेख में उसके सभी
सीमावर्ती राज्यों के नाम दिए गए हैं जिससे हमें सहज ही अशोक के राज्य की सीमाओं का
ज्ञान हो जाता है। अभिलेखों से हमें सीमाओं के अतिरिक्त अन्य राजनैतिक सूचनाएँ भी प्राप्त
होती हैं; जैसे अकाल इत्यादि।
(2)
अभिलेखों में भारतीयों का सामाजिक इतिहास-मुख्यतः अभिलेखों पर राजा की आज्ञा तथा सूचनाएँ
ही उत्कीर्ण होती हैं, जिनका सामान्य जनता से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। अतः अभिलेखों
के माध्यम से जनसामान्य के सामाजिक जीवन के विषय में महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त कर
सकते हैं, जैसे—संघ-भेद के विरुद्ध निर्देश (प्रयाग तथा साँची स्तम्भ लेख) तथा जनता
की सामान्य भाषा (चतुर्दश वृहद शिलालेख)। अभिलेखों से सामाजिक वर्गों की भी जानकारी
प्राप्त होती है; जैसे- उस समय शासक वर्ग के अतिरिक्त बुनकर, सुनार, धोबी, लुहार, व्यापारी,
कृषक आदि कई वर्ग थे।
(3)
अभिलेखों में भारतीयों का आर्थिक इतिहास :: भिलेखों के माध्यम से हमें आर्थिक गतिविधियों
तथा जनता की आर्थिक स्थिति का भी ज्ञान प्राप्त होता है; जैसे नहरों तथा तालाबों का
निर्माण (गिरिनार अभिलेख), अकाल की स्थिति तथा राज्य द्वारा सहयोग (महास्थान अभिलेख),
कर सम्बन्धी व्यवस्था (रुम्मनदेई स्तम्भ लेख) इत्यादि।
(4)
अभिलेखों में भारतीयों का धार्मिक इतिहास: भारत प्रारम्भ से ही धर्म प्रधान देश रहा
है इसलिए अभिलेखों के माध्यम से हमें भारतीयों के धार्मिक तथा सांस्कृतिक विश्वास की
स्पष्ट झलक प्राप्त होती है जिसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं -
राजा
का सम्बन्ध देवताओं से स्थापित करना (अशोक के विभिन्न अभिलेखों में उसे देवानांपिय
कहा गया है, जो राजा की दैवी कल्पना का द्योतक है)।
*
अशोक का स्वयं का धर्म (भाब्रू अभिलेख)
*
राजा की अन्य धर्मों में आस्था (बाराबर गुहालेख)।
*
भागवत धर्म तथा भागवत नारायण देवकुल का विवरण (गुंटूर अभिलेख तथा धोसण्डी अभिलेख)।
*
विदेशियों की हिन्दू धर्म में आस्था (गरुड़ स्तम्भ लेख)।
*
पुष्यमित्र शुंग द्वारा अश्वमेध यज्ञ का आयोजन (अयोध्या अभिलेख)।
*
शासक द्वारा धम्म अथवा धर्म का प्रचार-प्रसार कराना (अशोक के विभिन्न लेख तथा शिलालेख)।
विवाह
आदि के अवसर पर विभिन्न धार्मिक क्रियाएँ तथा मंगलाचरण का कार्यक्रम (अशोक का नवम्
वृहद शिलालेख)। उपर्युक्त शिलालेख तथा उसमें वर्णित घटनाएँ और विवरण स्पष्ट करते हैं
कि इतिहास के निर्माण में अभिलेखों का अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान है।
अभिलेखों
से हमें ऐतिहासिक घटनाओं; जैसे-प्रयाग प्रशस्ति नामक अभिलेख से समुद्रगुप्त के जीवन
की झाँकी और अशोक के शिलालेखों से कलिंग विजय तथा उसके परिणामों एवं अशोक के पश्चाताप
आदि का पता चलता है। अभिलेख द्वारा उसकी भाषा से उस काल का साहित्यिक स्तर, कलाप्रियता,
काल निर्धारण, भू-व्यवस्था, भूमिदान आदि की व्यापक जानकारी प्राप्त होती है। अभिलेख
प्राचीन भारतीय जीवन तथा संस्कृति के दर्पण हैं।
प्रश्न 8. उत्तर-मौर्य काल में विकसित राजत्व के विचारों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मौर्य काल में राजाओं के लिए विभिन्न देवी-देवताओं के साथ जुड़ना उच्च स्थिति प्राप्त
करने का एक साधन था। लगभग प्रथम शताब्दी ई. पू. से प्रथम शताब्दी ई. तक मध्य एशिया
से लेकर पश्चिमोत्तर भारत तक शासन करने वाले शासकों ने इस उपाय का सबसे अच्छा उद्धरण
पेश किया। उत्तर मौर्यकाल में विकसित राजत्व के विचारों का वर्णन निम्न बिन्दुओं के
अन्तर्गत स्पष्ट है
'कुषाण
शासकों का राजत्व का विचार:
कुषाण
इतिहास की रचना अभिलेखों तथा साहित्य परम्परा द्वारा की गयी है। जिस प्रकार के राजधर्म
को कुषाण शासकों ने प्रस्तुत करने की इच्छा की उसका सर्वोच्च उदाहरण हमें उनके सिक्कों
तथा मूर्तियों से प्राप्त होता है। एक सिक्के के अग्र भाग में कनिष्क को दिखाया गया
है तो इसके पृष्ठ भाग पर एक हिन्दू देवता को उकेरा गया है।
उत्तर
प्रदेश में मथुरा के पास माँट के एक देवस्थान पर कुषाण शासकों की विशाल मूर्तियाँ लगाई
गई थीं। अफगानिस्तान के एक देवस्थान से भी हमें एक ऐसी ही प्रतिमा प्राप्त होती है।
विभिन्न इतिहासकारों के अनुसार इन मूर्तियों के माध्यम से कुषाण स्वयं को देवतुल्य
प्रस्तुत करना चाहते थे। अनेक कुषाण शासकों ने स्वयं को 'देवपुत्र' की उपाधि भी प्रदान
की। सम्भवतः कुषाण शासक उन चीनी शासकों से प्रेरित हुए होंगे जो स्वयं को स्वर्गपुत्र
कहते थे।
गुप्त
शासकों का राजत्व का विचार:
कुषाणों
के उपरान्त राजा की दैवीय उत्पत्ति का सिद्धान्त चाहे वे भारतीय साम्राज्य हों अथवा
विदेशी साम्राज्य, लगभग सभी में लोकप्रिय हो गया। इसका प्रमुख उदाहरण हम गुप्त शासकों
में देखते हैं। गुप्त शासकों का इतिहास साहित्य, सिक्कों तथा अभिलेखों की सहायता से
लिखा गया है। इसके अतिरिक्त कवियों द्वारा अपने राजा या स्वामी की प्रशंसा में लिखी
गई प्रशस्तियों का भी इसमें अहम योगदान रहा है।
हालांकि
इतिहासकार इन रचनाओं के आधार पर ऐतिहासिक तथ्य निकालने की प्रायः कोशिश करते हैं लेकिन
उनके रचयिता तथ्यात्मक विवरण की अपेक्षा उन्हें काव्यात्मक ग्रन्थ मानते थे। उदाहरण
के तौर पर; समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति, जिसे उसके दरबारी कवि हरिषेण ने लिखा है,
में कवि ने राजा की तुलना पूर्ण रूप से देवताओं के साथ करने का प्रयास किया है। समुद्रगुप्त
के अतिरिक्त अन्य गुप्त शासकों ने भी इसी परम्परा का निर्वाह अपने व्यक्तिगत हित के
लिए किया था।
प्रश्न 9. वर्णित काल में कृषि के तौर-तरीकों में किस हद तक परिवर्तन
हए?
उत्तर:
वर्णित काल (600 ई. पू. से 600 ई. तक) में कृषि के तौर-तरीकों में निम्नलिखित परिवर्तन
हुए
(1)
इस काल तक (600 ई. पू. से पहले तक) आते-आते कृषि में उन्नत लोहे के औजारों का प्रयोग
होने लगा था। लोहे की कुल्हाड़ी से जंगलों को काटकर विस्तृत कृषियोग्य भूमि निर्मित
की गयी तथा इस विस्तृत भूमि पर लोहे के फाल वाले हल से खेतों की जुताई अधिक गहरी होने
लगी। चूँकि पूर्व में ऐसा नहीं होता था तथा खेतों की ऊपरी सतह से चिड़ियाँ बीज खा जाती
थीं, किन्तु गहरी जुताई से बीज नीची सतह पर होने के कारण अधिक उपज देने लगे।
(2)
लोहे के हल का अधिकांशतः प्रयोग गंगा व कावेरी की घाटियों में हुआ। राजस्थान एवं पंजाब
जैसी अर्द्धशुष्क जमीन वाले क्षेत्रों में लोहे के फाल वाले हल का प्रयोग बीसवीं शताब्दी
से शुरू हुआ। वे किसान जो पूर्वोत्तर तथा मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में रहते थे, उन्होंने
खेती के लिए कुदाल का प्रयोग आरम्भ कर दिया जो ऐसे इलाकों के लिए अधिक उपयोगी था।
(3)
उपज बढ़ाने के लिए सिंचाई के उन्नत साधनों का भी प्रयोग किया जाने लगा। नहर, तालाब,
कुएँ आदि के माध्यम से सिंचाई के साधनों में बढ़ोत्तरी की गयी। सौराष्ट्र में चन्द्रगुप्त
मौर्य के गवर्नर पुष्यगुप्त ने सुदर्शन झील का निर्माण कराया था। वस्तुतः व्यक्तिगत
रूप से तालाबों, कुओं तथा नहरों जैसे सिंचाई के साधन निर्मित करने वाले व्यक्ति राजा
अथवा प्रभावशाली व्यक्ति थे जिन्होंने अपने इन कार्यों का उल्लेख अभिलेखों में भी करवाया।
मानचित्र कार्य
प्रश्न 10. मानचित्र 1 तथा 2 की तुलना कीजिए और उन महाजनपदों की सूची
बनाइए जो मौर्य साम्राज्य में सम्मिलित रहे। क्या इस क्षेत्र में अशोक के अभिलेख मिले
हैं ?
उत्तर: मानचित्र 1
मानचित्र 2
अशोक
के अभिलेखों का वितरण महाजनपद तथा उनकी राजधानियों का विवरण निम्नलिखित है -
महाजनपद
- राजधानी
1.
कम्बोज - हाटक
2.
गांधार - तक्षशिला
3.
कुरु - इन्द्रप्रस्थ
4.
शूरसेन - मथुरा
5.
मत्स्य - विराटनगर
6.
अवन्ति - उज्जयिनी
7.
चेदि - सुकिमती
8.
वत्स - कौशाम्बी
9.
अश्मक - पोतन
10.
अंग - चंपा.
11.
मल्ल - पावा
12.
पांचाल - अहिछत्र तथा कांपिल्य
13.
मगध - राजगृह (गिरिव्रज) तथा पाटलिपुत्र
14.
कोशल - श्रावस्ती
15.
काशी - वाराणसी
मौर्य
साम्राज्य उत्तर में गांधार, दक्षिण में कर्नाटक, पश्चिम में सौराष्ट्र तथा पूर्व में
बंगाल तथा उड़ीसा तक विस्तृत था। उपर्युक्त सभी महाजनपद एक-दूसरे को विजित करके चार
महाजनपदों में परिवर्तित हो गए तथा अन्ततोगत्वा मगध ने शेष तीन महाजनपदों को पराजित
कर दिया। अन्तिम मगध शासक घनानन्द को पराजित कर चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य
की स्थापना की। इस प्रकार उपर्युक्त सभी महाजनपद मौर्य साम्राज्य में थे, किन्तु उनका
अस्तित्व मौर्य साम्राज्य में विलीन हो गया था।
हाँ,
महाजनपद क्षेत्र में अशोक के अनेक अभिलेख प्राप्त होते हैं। इन क्षेत्रों के नाम निम्नलिखित
हैं -
1.
मान सेहरा
2.
शाहबाजगढ़ी
3.
कालसी
4.
टोपरा
5.
भालू
6.
बैराठ
7.
गुर्जर
8.
साँची
9.
सारनाथ
10.
कलिंग
11.
रुम्मनदेई
12.
निगालीसागर इत्यादि।
परियोजना कार्य (कोई एक)
प्रश्न 11. एक महीने के अखबार एकत्र कीजिए। सरकारी अधिकारियों द्वारा
सार्वजनिक कार्यों के बारे में दिए गए वक्तव्यों को काटकर एकत्र कीजिए। समीक्षा कीजिए
कि इन परियोजनाओं के लिए आवश्यक संसाधनों के बारे में खबरों में क्या लिखा है ? संसाधनों
को किस प्रकार से एकत्र किया जाता है और परियोजनाओं का उद्देश्य क्या है? इन वक्तव्यों
को कौन जारी करता है और उन्हें क्यों और कैसे प्रसारित किया जाता है? इस अध्याय में
चर्चित अभिलेखों के सा " से इनकी तुलना कीजिए। आप इनमें क्या समानताएँ और असमानताएँ
पाते हैं ?
उत्तर:
विद्यार्थियों को स्वयं ही विभिन्न प्रकार के समाचार-पत्रों का अथवा किसी एक मुख्य
राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय साचार-पत्र का संकलन करना चाहिए। इन समाचार-पत्रों में विभिन्न
सरकारी विभागों के अध्यक्ष अथवा सचिव के माध्यम से निविदाएँ (Tenders) आमन्त्रित की
जाती हैं। इस निविदा में परियोजना मूल्य तथा आवश्यक संसाधनों का पूर्ण विवरण होता है।
सामान्यतः निविदाएँ सार्वजनिक तथा जन-कल्याण से सम्बन्धित कार्यों के लिए जारी की जाती
हैं। . इन सबके उपरान्त विद्यार्थियों को इन निविदाओं तथा वक्तव्यों का अशोक के शिलालेखों
के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए तथा उनसे प्राप्त निष्कर्ष अपनी अध्ययन पुस्तक
में लिखने चाहिए।
प्रश्न 12. आज प्रचलित पाँच विभिन्न नोटों तथा सिक्कों को इकट्ठा कीजिए।
इनके दोनों ओर आप जो देखते हैं उनका वर्णन कीजिए। इन पर बने चित्रों, लिपियों तथा भाषाओं,
माप, आकार अथवा अन्य समानताओं और असमानताओं के बारे में एक रिपोर्ट तैयार कीजिए। इस
अध्याय में दर्शित सिक्कों में प्रयुक्त सामग्रियों, तकनीकों, प्रतीकों, उनके महत्व
तथा सिक्कों के सम्भावित कार्य की चर्चा करते हुए इनकी तुलना कीजिए।
उत्तर: संकेत-विद्यार्थी विभिन्न नोटों और सिक्कों को इकट्ठा करें तथा उन नोटों और सिक्कों का पुस्तक में वर्णित, चित्रित या उल्लेखित मुद्राओं / सिक्कों से तुलना विद्यार्थी स्वयं करें।
अन्य परीक्षा उपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
01. अशोक के अभिलेख को सर्वप्रथम कब और किसने पढ़ा ?
उत्तर-
1838 में जेम्स प्रिंसेप
02. अभिलेखों में देवनाम पियदस्सी किस राजा को कहा गया ?
उत्तर-
अशोक
03. बौद्ध और जैन ग्रंथों में कितने महाजनपदों का उल्लेख है?
उत्तर-
16 महाजनपद
04. मगध महाजनपद की राजधानी कहां थी ?
उत्तर-
पाटलिपुत्र
05. मौर्य साम्राज्य / वंश के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर-
चंद्रगुप्त मौर्य
06. धम्म नीति की शुरुआत किसने की थी?
उत्तर-
महान अशोक
07. अशोक के अभिलेखों में कितने प्रकार के प्रांतों का उल्लेख है ?
उत्तर-
5 प्रान्त
08. फुट डालकर विजय प्राप्त करने का कार्य सर्वप्रथम किस राजा ने किया
था ?
उत्तर-
अजातशत्रु
09. इंडिका नामक पुस्तक की रचना कौन किए ?
उत्तर-
मेगस्थनीज
10. दूसरे नगरीकरण के नगरों को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
लौहयुगीन नगर
11. समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति की रचना किसने किया ?
उत्तर-
हरिसेन
12. भारत का नेपोलियन किस शासक को कहा जाता है ?
उत्तर-
समुद्रगुप्त
13. हर्षवर्धन के राजकवि कौन थे ?
उत्तर-
बाणभट्ट
14. अशोक के धम्म की लिपि क्या थीं ?
उत्तर-
ब्राह्मी
15. किसके अभिलेख में भूमिदान का उल्लेख है ?
उत्तर-
प्रभावित गुप्त
16. अपने स्वंय के खर्चे से सुदर्शन झील की मरम्मत किसने कराई ?
उत्तर-
रुद्रदामन
17. प्राचीन भारत में अभिलेख की शुरुआत किस शासक ने किया?
उत्तर-
सम्राट अशोक
18. मुद्राराक्षस किसकी रचना है ?
उत्तर-
विशाखदत्त
19. मेगस्थनीज भारत में किसके दरबार में आया था ?
उत्तर-
चंद्रगुप्त मौर्य
20. चीनी यात्री फाह्यान किसके शासन काल में भारत आया था ?
उत्तर-
चंद्रगुप्त द्वितीय
21. नालन्दा विश्वविद्यालय को किसने बनाया था ?
उत्तर-
कुमारगुप्त प्रथम
22. किन शासकों ने अपने नाम के पहले देवपुत्र की उपाधि लगाया ?
उत्तर
- कुषाण शासकों
लघु उत्तरीय प्रश्न
01. धम्म नीति क्या है ?
उत्तर
पाली भाषा के शब्द 'धम्म' का अर्थ आचरण होता है। कुछ इतिहासकार धम्म को धर्म की संज्ञा
देते हैं। महान सम्राट अशोक के द्वारा गौतम बुद्ध के उपदेशों की प्रचार प्रसार करने
की नीति को धम्म नीति कहा जाता है। बौद्ध धम्म के प्रचार के लिए सम्राट आशोक ने धम्म
महामतों को भी राज्य द्वारा नियुक्त किए थे।
02. अभिलेख से आप क्या समझते हैं? इनका क्या महत्व है?
उत्तरः
अभिलेख उन्हें कहते है जो पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर खुदे होते
हैं। भारत में प्राचीनतम अभिलेख प्राकृत भाषा में है जिसे बनवाया है।
अभिलेख
के महत्व
1.
अभिलेख प्राचीन काल के अध्ययन के लिए प्रमाणिक स्रोत होते हैं क्योंकि ये समकालीन होते
हैं।
2.
अभिलेख बनवाने वाले के अभिलेखों से शासक के विचार, राज्य विस्तार, उपलब्धियाँ, चरित्र,
जन भावना का पता चलता है।
3.
अभिलेखों से तत्कालिन धर्म-संस्कृति, रीति-रिवाजों की जानकारी मिलती है।
4.
अभिलेखों से तात्कालिन भाषा और लिपि का ज्ञान होता है।
5.
शासकों के आदेश, शत्रु-विजय तथा नागरिक अधिकारों की जानकारी मिलती है।
03. महाजनपद से आप क्या समझाते हैं? महाजनपदों के 4 विशिष्ट विशेषताओं
का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जन का अर्थ 'लोग' तथा पद का अर्थ 'लोगों का पैर' होता है, जिसे जनपद (जिला) कहा गया।
इन्ही जनपदों को मिलाकर महाजनपद राज्य कहा गया। अर्थात छठी शताब्दी ई०पू० में एक जगह
लोगों का ज्यादा बसाव होने के कारण राज्यों को महाजनपदों के नाम से पहचान किया जाना
लगा। बौद्ध और जैन ग्रंथों में 16 महाजनपद का जिक्र है जिनमें 12 राजतंत्रीय और 04
गणतंत्रीय राज्य थे।
महाजनपदों
के निम्नलिखित विशेषता होते थे-
1.
बौद्ध और जैन ग्रंथों में 16 महाजनपद का जिक्र है जिनमें 12 राजतंत्रीय और 04 गणतंत्रीय
राज्य थे।
2.
लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकास प्रारंभ हुए।
3.
महाजनपदों की एक राजधानी होती थी जो प्रायः किलेबंद होती थी।
4.
महाजनपद काल में अनेक बौद्ध, जैन ग्रथों का निर्माण किया गया।
5.
महाजनपद काल में कृषि एवं व्यपार का विकास हुआ, अतः इसे दुसरे शहरीकरण के नाम से भी
जानते है।
04. कलिंग युद्ध का अशोक पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर
:- अशोक अपने शासन के आठवे वर्ष 261 ई.पू. में कलिंग (उड़ीसा) पर आक्रमण आक्रमण किया
जिसमें एक लाख व्यक्ति मारे गये, डेढ लाख सैनिक बंदी बनाए गए तथा कई गुणा घायल हुए।
जिससे अशोक का हृदय परिवर्तन हुआ।
जिसके
फलस्वरूप निम्नलिखित प्रभाव पडे
1.
उसे युद्ध से घृणा हो गई तथा जीवन भर युद्ध न करने की प्रतिज्ञा की।
2.
कलिंग युद्ध के परिणाम देखकर बौद्ध भिक्षु उपगुप्त के प्रभाव से बौद्ध धर्म स्वीकार
कर लिया।
3.
कलिंग युद्ध के बाद अशोक शांतिवादी हो गया तथा राज्य विस्तार की नीति का परित्याग कर
दिया ।
4.
इस युद्ध के बाद हिंसा, शराब, मांस सेवन आदि बंद करा दिया। संयम, विचारों की पवित्रता,
दया, दान, सत्य, सेवा आदि पर बल दिया गया।
5.
अशोक देवनाम पिपदस्सी की उपाधि धारण किया तथा राज्य में युद्धघोष के स्थान पर धम्मघोष
प्रारंभ हो गया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
05. मगध साम्राज्य के शक्तिशाली होने के क्या कारण थे? VADA
उत्तरः-
छठी शताब्दी ई० पूर्व मगध महाजनपद सबसे शक्तिशाली था, जिसके निम्रलिखित कारण थे
1.
मगध की दोनों राजधानियाँ राजगृह और पाटलिपुत्र की भौगोलिक स्थिति सुरक्षित था। राजगीर
पाँच पहाडियों से घिरा था तो पाटलिपुत्र गंगा, गंडक और सोन नदियों से घिरा हुआ था।
2.
मगध में बिंबिसार, अजातशत्रु और महापदानंद, चंद्रगुप्त मौर्य, तथा सम्राट अशोक आदि
योग्य एवं महत्वाकांक्षी शासक थे।
3.
मगध महाजनपद में लोहे कि उपलब्धता थी, जिसके कारण लोहे के हथियार एवं उपकरण आसानी से
उपलब्ध होते थे।
4.
कृषि के लिए अच्छी उपजाउ तथा उर्वर भूमि थी। जिससे यहां के लोग अन्न उत्पादन में आगे
थे।
5.
गंगा तथा उसकी सहायक नदियों के समीप होने के कारण जलमार्ग से यात्रा सस्ता एवं आसान
था।
6.
मगध के क्षेत्र में घने जंगल होने के कारण हाथी काफी संख्या में पाये जाते थे, जिनका
प्रयोग युद्ध में काफी महत्व था। हाथी से दलदल स्थान तथा दुर्गों को तोड़ने में काफी
सहायता मिलती थी।
06. अशोक का धम्म क्या है? इसके मुख्य विशेषताओं को लिखें।
उत्तरः-
अशोक का धम्म मानव का सामाजिक नैतिकता/आचरण से था। जिसमें अनेको आदर्श व्यवहार समाहित
थे। इसमें सदाचारी जीवन के साथ मध्यम मार्ग पर केंद्रित था किंतु इसे मानने के लिए
कोई दवाब नहीं था।
अशोक
के धम्म की मुख्य विशेषताएँ-
1.
महान अशोक का धम्म तत्कालिन सभी धर्मों का सार था, अशोक के धम्म में लोक कल्याण, नैतिकता,
आचरण आदि अच्छी बातों पर केंद्रित है।
2
अशोक के धम्म में सत्य, अहिंसा, करुणा, उदारता, पवित्रता, दानशीलता के गुणों का विकास
करना तथा क्रूरता, क्रोध, अहंकार आदि का निषेध था।
3.
दासों, धर्म गुरूओं, माता-पिता, बुर्जगों के प्रति आदर भाव।
4.
अपनी आस्था के अलावे भी सभी धर्मों के प्रति आदर भाव।
5.
धम्म में कर्मकांड और अनुष्ठानों पर जोर नहीं दिया गया बल्कि आचरण, कर्म की पवित्रता,
ब्राह्मणों के प्रति आदर, पशुओं के प्रति दया आदि व्यावहारिक बातें शामिल थी।
06.
आपस में एकता बनाए रखना।
07. गुप्त साम्राज्य के पतन के क्या कारण थे?
उत्तरः
गुप्त साम्राज्य के पतन के निम्रलिखित कारण है
1.
अयोग्य उत्तराधिकारी स्कन्दगुप्त के पश्चात प्रायः सभी गुप्त शासक दुर्बल एवं अयोग्य
हुए जिससे गुप्त साम्राज्य का पतन क्रमिक रूप से हुआ।
2.
उत्तराधिकार के निश्चित्त नियम नहीं होने के कारण सदैव गृह युद्ध की स्थिति बनी रही।
इससे शासक की स्थिति कमजोर हुई।
3.
नई शक्तियों के उदय से केंद्रीय शक्ति कमजोर हो गया जिससे स्वतंत्र राज्यों का उदय
हुआ जिन्होंने राजा के प्रभुत्व को चुनौती दिया।
4
गुप्त काल में हुण आक्रमण इसके पतन का एक प्रमुख कारण माना जाता है।
5.
गुप्त प्रशासन सामंतो व्यवस्था पर आधारित था। प्रशासकीय पदों का वंशानुगत होना भी पतन
का एक कारण बना।
6.
गुप्त काल में कृषि पर अत्यधिक दबाव हो गया, उद्योग, व्यापार और नगरों आदि के पतन होने
से आर्थिक सम्पन्नता में कमी आई।
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषय सूची
भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग - I
1. ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता
2. राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ
3. बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज
4. विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास
भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग - II
5. यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ
6. भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ
7. एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर
8. किसान, जमींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य
9. शासक और विभिन्न इतिवृत्त : मुगल दरबार