प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 12
इतिहास (History)
अध्याय -1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ हड़प्पा सभ्यता
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Question)
1. भारतीय पुरातत्व
का पिता किसे कहा जाता है ?
A. एलेग्जेंडर कनिंघम
B.
दयाराम साहनी
C.
राखलदास बनर्जी
D.
एस आर राव
2. हड़प्पा सभ्यता में सर्वप्रथम किस स्थल की
खोज की गई थी?
A.
लोथल
B. हड़प्पा
C.
मोहनजोदड़ो
D.
कालीबंगा
3. हड़प्पा सभ्यता के किस नगर में दुर्ग दीवार
से घिरा हुआ नहीं मिला है?
A.
हड़प्पा
B.
मोहनजोदड़ो
C. लोथल
D.
बनावली
4. सिंधु घाटी सभ्यता में विशाल स्नानागार के
अवशेष कहां से प्राप्त हुए हैं?
A.
हड़प्पा
B.
धोलावीरा
C. मोहनजोदड़ो
D.
लोथल
5. सिंधु घाटी सभ्यता में शिल्प उत्पादन का एक
प्रमुख केंद्र था?
A.
मोहनजोदड़ो
B.
हड़प्पा
C.
कालीबंगा
D. चन्हुदड़ो
6. मेसोपोटामिया के प्रलेखों में मेलूहा शब्द का
प्रयोग किस सभ्यता के लिए किया जाता था?
A. हड़प्पा सभ्यता
B.
मिस्र की सभ्यता
C.
चीन की सभ्यता
D.
इनमें से कोई नहीं
7. लोथल कहां स्थित
है?
A. गुजरात
B.
राजस्थान
C.
पंजाब
D.
हरियाणा
8. हड़प्पा किस नदी
किनारे स्थित है?
A. रावी
B.
सिंधु
C.
भोगवा
D.
इनमें से कोई नही
9. सिंधु घाटी के निवासियों को सोना कहां से प्राप्त
होता था?
A.
लोथल
B.
कालीबंगा
C. कर्नाटक
D.
खेतड़ी
10. हड़प्पा सभ्यता
में बंदरगाह का प्रमाण कहां से मिला है?
A. लोथल
B.
कालीबंगा
C.
मोहनजोदड़ो
D.
हड़प्पा
11. हड़प्पा सभ्यता
का किस देश के साथ व्यापारिक संबंध नहीं था?
A.
मेसोपोटामिया
B.
ईरान
C.
अफगानिस्तान
D. चीन
12. जूते हुए खेत का प्रमाण कहां से मिला है?
A.
हड़प्पा
B.
मोहनजोदड़ो
C. कालीबंगा
D.
लोथल
13. हड़प्पा वासियों को लाजवर्द मणि कहां से
प्राप्त होता था?
A.
मोहनजोदड़ो
B.
लोथल
C. शोर्तुघई
D.
धोलावीरा
14. क्षेत्रफल के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता का
सबसे बड़ा नगर था?
A.
हड़प्पा
B. मोहनजोदड़ो
C.
कालीबंगा
D.
लोथल
15. हड़प्पा सभ्यता की लिपि की मुख्य विशेषता थी?
A. यह दाएं से बाएं ओर लिखी जाती थी
B.
यह बाएं से दाएं ओर लिखी जाती थी
C.
यह ऊपर से नीचे की ओर लिखी जाती थी
D.
यह नीचे से ऊपर की ओर लिखी जाती थी।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
1. हड़प्पा सभ्यता
को कांस्य युगीन सभ्यता क्यों कहा जाता है?
उत्तर- हड़प्पा सभ्यता को कांस्य
युगीन सभ्यता इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां पर लोगों ने औजार बनाने के लिए तांबे
और टिन धातु को मिलाकर कांस्य धातु का उपयोग किया था।
2. हड़प्पा सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता क्यों
कहा जाता है?
उत्तर- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो
नगरों के अवशेष मुख्य तौर पर सिंधु नदी या सिंधु नदी घाटी के आसपास से प्राप्त हुए
हैं इस कारण से हड़प्पा सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा जाता है ।
3. सिंधु घाटी
सभ्यता में मनके बनाने के लिए किस सामग्री का उपयोग किया जाता था?
उत्तर- सिंधु घाटी सभ्यता में मनके
बनाने के लिए कार्नेलियन,
क्रिस्टल, सेलखड़ी, तांबा, जैस्पर, क्वाटर्ज, शंख, पत्थर, काँस और सोना
जैसी धातु का उपयोग किया जाता था।
4. सिंधु घाटी सभ्यता की उन स्थानों के नाम
बताएं जहां सिंचाई के अंश पाए गए हैं ?
उत्तर- सिंधु घाटी सभ्यता के उन
स्थानों के नाम निम्नलिखित हैं जहां सिंचाई के अंश पाए गए हैं-
A.
शोर्तुघई B. धोलावीरा ।
5. हड़प्पा सभ्यता के लोगों के व्यापारिक संपर्क
किन देशों से थे?
उत्तर- हड़प्पा सभ्यता के लोगों के
व्यापारिक संपर्क मेसोपोटामिया,
ओमान, बहरीन, ईरान आदि देशों
से था।
6. हड़प्पा वासी ताँबा और सोना कहां से प्राप्त
करते थे?
उत्तर- हड़प्पा वासी राजस्थान के
खेतड़ी से ताँबा और दक्षिण भारत से सोना प्राप्त करते थे।
7. किस पुरास्थल को हड़प्पा सभ्यता की सबसे बड़ी
बस्ती माना जाता है?
उत्तर- पाकिस्तान के सिंध प्रांत
के लरकाना जिले में स्थित मोहनजोदड़ो को हड़प्पा सभ्यता की सबसे बड़ी बस्ती माना
जाता है। मोहनजोदड़ो का क्षेत्रफल 125
हेक्टेयर था।
8. हड़प्पा सभ्यता कहां-कहां विकसित हुई थी?
उत्तर- हड़प्पा सभ्यता पाकिस्तान, दक्षिण
अफगानिस्तान, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर
प्रदेश में विकसित हुई थी।
9. हड़प्पाई लिपि की दो मुख्य विशेषताएं बताएं?
उत्तर- हड़प्पाई लिपि की दो मुख्य
विशेषताएं-
A
हड़प्पा लिपि को आज तक पढ़ने में सफलता नहीं प्राप्त की जा सकी है यद्यपि
निश्चित रूप से यह वर्णमालीय नहीं है क्योंकि वर्णमाला के प्रत्येक चिन्ह एक स्वर
या एक व्यंजन को दर्शाता है।
B.
यह लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी क्योंकि दाएं और अधिक अंतराल है जबकि बाएं
और कम जगह है।
10. चन्हूदड़ो के लोगों की शिल्प कार्यों के नाम
लिखें।
उत्तर- चन्हूदड़ो के लोग शिल्प
कार्य के लिए मनके बनाना,
शंख की कटाई, धातु
कर्म, मोहर
निर्माण तथा बाट बनाना आदि काम करते थे।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. हड़प्पा सभ्यता के धार्मिक जीवन का वर्णन
करें?
उत्तर- हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी
सभ्यता का धार्मिक जीवन मुख्यतः मातृ देवी की पूजा पर आधारित था। खुदाई में बहुत
अधिक संख्या में नारियों की मूर्तियां मिली हैं जिससे यह ज्ञात होता है कि सिंधु
घाटी के निवासी मातृ देवी की उपासना किया करते थे। हड़प्पा वासी मातृ देवी के साथ
ही देवताओं की भी पूजा किया करते थे। मातृ देवी और देवताओं को बलि भी दी जाती थी
। धार्मिक अनुष्ठानों के लिए धार्मिक इमारते बनाई गई होंगी लेकिन मंदिर के प्रमाण
नहीं प्राप्त होते हैं। मोहनजोदड़ो से एक मोहर प्राप्त हुई है जिस पर पद्मासन की
मुद्रा में एक पुरुष ध्यान की मुद्रा में बैठा हुआ है इसे पशुपति महादेव का रूप
माना गया है। पशुपतिनाथ वृक्ष,
लिंग, योनि, और पशु आदि की
भी पूजा की जाती थी। वृक्ष पूजा काफी प्रचलित थी। इस काल के लोग जादू टोना भूत
प्रेत और अंधविश्वासों पर विश्वास किया करते थे। वे बुरी शक्तियों से बचने के लिए
ताबीज धारण करते थे। हड़प्पा वासी कूबड़ वाला सांड की भी पूजा किया करते थे। ये
लोग पक्षियों की भी पूजा किया करते थे। स्वास्तिक चिन्ह संभवत हड़प्पा वासियों की
ही देन है।
2. हड़प्पा वासियों के पश्चिम एशिया के साथ
व्यापारिक संबंधों का वर्णन कीजिए?
उत्तर- पश्चिम एशिया विशेषकर
मेसोपोटामिया के साथ हड़प्पा वासियों के व्यापारिक संबंधों के अनेक प्रमाण प्राप्त
हुए हैं। यह व्यापार स्थल एवं जल दोनों मार्ग से होता था। निम्नलिखित पुरातात्विक
प्रमाण हड़प्पा वासियों के पश्चिम एशिया के साथ व्यापारिक संबंधों की पुष्टि करते
हैं-
A.
ताँबे को संभवत ओमान से मंगाया जाता था। रासायनिक अध्ययनों से यह प्रतीत होता
है कि हड़प्पा तथा ओमान के बर्तनों में प्राप्त निकेल के जो अंश पाए गए हैं, उनका उद्भव एक
ही स्थान है।
B.
ओमान में एक हड़प्पा का एक जार प्राप्त हुआ है, इसमें काली मिट्टी की परत चढ़ी हुई है। यह हड़प्पा वासियों
के पश्चिम एशिया के साथ व्यापारिक संबंधों की पुष्टि करता है।
C.
हड़प्पा वासियों के शिल्प कार्य के लिए ईरान एवं बलूचिस्तान से चांदी आती थी।
सीसा ईरान और अफगानिस्तान से मंगाया जाता था।
D.
हड़प्पा वासियों के बाट,
मुहरे, पासे
तथा मनके पश्चिम एशिया के कई स्थानों से मिले हैं जो हड़प्पा सभ्यता एवं सुदूर
देशों के व्यापारिक संबंधों की ओर इशारा करते हैं।
E.
मेसोपोटामिया से प्राप्त कई लेखों में मगान एवं मेलूहा नामक स्थान जो हड़प्पाई
क्षेत्रों के लिए प्रयुक्त होता था,
से लाए गए उत्पादों की चर्चा है। इन उत्पादों में लाजवर्द मणि, सोना, तांबा और कई कई
प्रकार की लकड़ियां शामिल थी।
F.
हड़प्पा के मुहरों में पानी जहाज एवं नाव के चित्र मिलते हैं। यह उनके समुद्र
व्यापार की ओर दर्शाता है। मेसोपोटामिया के लेखों में मेलूहा को नाविकों का देश
कहा गया है।
3. हड़प्पा सभ्यता
में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची बनाइए। कोई भी एक प्रकार का मनका
बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए ।
उत्तर- मनका बनाने के लिए कई
प्रकार के पदार्थ प्रयोग में लाए जाते थे जैसे कार्नेलियन जैस्पर स्फटिक, क्वार्टज तथा
सेलखड़ी जैसे पत्थर तांबा,
कांसा तथा सोने जैसी धातु में तथा फायंस और पक्की मिट्टी। कुछ मनके दो या दो
से अधिक पत्थरों को मिलाकर भी बनाए जाते थे। मनको पर अलग-अलग तरह के कृतियां और
रंगों का इस्तेमाल होता
था।
तकनीकी दृष्टि से मनको पर अलग-अलग
तरीकों से कार्य किया जाता था। सेलखड़ी जैसे मुलायम पत्थर से मनके बनाने का काम
आसानी से हो जाता था। सेलखड़ी के चूर्ण से लेप तैयार करके सांचे में डालकर विभिन्न
प्रकार के मनके तैयार किए जाते थे। कठोर या ठोस पत्थरों से मनके बनाने की
प्रक्रिया जटिल थी। ऐसे पत्थरों से मात्र ज्यामितीय आकार की मनके बनाए जाते थे।
पुरातत्वविदों के अनुसार अकीक का लाल रंग एक जटिल प्रक्रिया द्वारा अर्थात पीले
रंग की कच्चे माल और उत्पादन के विभिन्न चरणों में मनको की आग में पकाकर प्राप्त
किया जाता था। सर्वप्रथम बड़े पत्थर को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता था। उनमें
से बारीकी से सिल्क निकाले जाते थे फिर मनके बनाए जाते थे। मनके को अंतिम रूप देने
के लिए घिसाई कर और पॉलिश कर उनके छेद किए जाते थे।
4. सिंधु घाटी सभ्यता के मोहनजोदड़ो से प्राप्त
विशाल नानागार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर - मोहनजोदड़ो का सर्वाधिक
महत्वपूर्ण सर्वजनिक भवन विशाल स्नानागार है,
जिसका जलाशय दुर्ग के किले में स्थित है। उत्तम कोटि की पक्की ईंटों से बना
विशाल स्नानागार स्थापत्य कला का सुंदर उदाहरण है। यह जलाशय 12 मीटर लंबा, 7 मीटर चौड़ा और
लगभग 3 मीटर
गहरा है। इसके दोनों किनारों पर अर्थात इसके उत्तरी और दक्षिणी भाग में नीचे जाने
के लिए सीढ़ियां बनी हुई है। स्नानागार का फर्श पक्की ईटों का बना हुआ है। इसके
तीन ओर कमरे बने हुए थे। इनमें से एक में एक बड़ा कुआँ था जिससे जलाशय से पानी आता
था। जलाशय का पानी निकालने के लिए एक नाली थी। इसके उत्तर में एक गली के दूसरी तरफ
अपेक्षाकृत छोटी संरचना में आठ स्नानघर बने हुए थे। इस संरचना के अनोखेपन तथा
क्षेत्र में कई विशिष्ट संरचनाओं के साथ मिलने से ऐसा प्रतीत होता है कि इसका
प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानों के समय स्नान के लिए किया जाता होगा, जो आज भी
भारतीय जनजीवन का एक आवश्यक अंग है।
5. हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारणों का वर्णन
करें ।
उत्तर- हड़प्पा सभ्यता की पतन के
संदर्भ में कोई संतोषजनक प्रमाण नहीं मिला है। लगभग अट्ठारह सौ ईसा पूर्व के आसपास
इस सभ्यता का पतन हो गया। इस सभ्यता के पतन के संदर्भ में विद्वान एकमत नहीं है
फिर भी कुछ ऐसे प्रमाण मिले हैं जिसके द्वारा अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा
सभ्यता के पतन के निम्नलिखित कारण थे-
A.
बाढ़- सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख नगर नदियों के किनारे बसे थे, इन नदियों में
प्रतिवर्ष बाढ़ आती थी। बाढ़ से प्रतिवर्ष क्षति भी होती थी। इस कारण से हड़प्पा
वासी मूल स्थान को छोड़कर अन्य स्थानों पर रहने के लिए विवश हो गए होंगे।
B.
महामारी- मोहनजोदड़ो से प्राप्त नर कंकालों के परीक्षण के पश्चात
यह निष्कर्ष निकलता है कि हड़प्पा वासी मलेरिया महामारी जैसे अनेक प्राकृतिक
आपदाओं के कारण बीमारियों के शिकार हो गए और उनके जीवन का अंत हो गया । इस कारण से
भी इस सभ्यता का पतन हो गया।
C.
जलवायु परिवर्तन- अनेक विद्वानों का कहना है कि
अचानक सिंधु घाटी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के कारण यह हरा भरा क्षेत्र जंगल
एवं बारिश की कमी के कारण मरुस्थल के रूप में परिवर्तित हो गया। इस कारण से भी यह
सभ्यता नष्ट हो गया।
D.
बाह्य आक्रमण- अनेक विद्वानों का अनुमान है कि
बाह्य आक्रमण के कारण इस सभ्यता का अंत हुआ। संभवत ये बाह्य आक्रमणकारी आर्य रहे
होंगे।
उपयुक्त कारणों के आधार हम कह सकते
हैं कि हड़प्पा सभ्यता का पतन हो गया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. पुरातत्वविद
हड़प्पा समाज में सामाजिक आर्थिक भिन्नताओं का पता किस प्रकार लगाते हैं? वह कौन सी भिन्नताओं पर ध्यान देते हैं?
उत्तर - पुरातत्वविद संस्कृति
विशेष के लोगों के सामाजिक एवं आर्थिक भिन्नता का पता लगाने के लिए अनेक विधियों
का इस्तेमाल करते हैं। इनमें से दो प्रमुख विधियां हैं शवाधनो का अध्ययन और
विलासिता की वस्तुओं की खोज।
शवाधानो का अध्ययन-
शवाधानो का अध्ययन सामाजिक एवं आर्थिक भिन्नताओं का पता लगाने का महत्वपूर्ण तरीका
है। उल्लेखनीय है कि हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न पुरास्थलों में जो शवाधान मिले हैं
उनसे स्पष्ट होता है कि मृतकों को सामान्य रूप से गर्तो अथवा गड्ढों में दफनाया
जाता था। परंतु सभी गर्तों की बनावट एक जैसी नहीं थी । अधिकांश शवाधान गर्तौ की
बनावट सामान्य थी, लेकिन
कुछ की सतहों पर ईटों की चिनाई की गई थी। ईटों की चिनाई वाले गर्त उच्च अधिकारी
वर्ग अथवा संपन्न शवाधान रहे होंगे। शवाधान गर्तो में शव सामान्य रूप से उत्तर
दक्षिण दिशा में रखकर दफनाया जाते थे। कुछ कब्रों में शव मृदभांडों और आभूषणों के
साथ दफनाया मिले हैं। और कुछ में तांबे के बर्तन, सीप और सुईया भी मिली है। कुछ स्थानों से बहुमुल्य आभूषण
एवं अन्य समान मिले हैं,
तो अनेक जगहों से सामान्य आभूषण की प्राप्ति हुई है । कालीबंगा में छोटे-छोटे
वृत्ताकार गड्डों में अन्न के दाने तथा मिट्टी के बर्तन मिले हैं कुछ गड्ढों में
हड्डिया भी एकत्रित मिली हैं। इससे स्पष्ट होता है कि हड़प्पा समाज में शव का
अंतिम संस्कार विभिन्न तरीकों से कम से कम 3
तरीकों से किया जाता था। शव का सावधानीपूर्वक अंतिम संस्कार करने और आभूषण एवं
प्रसाधन सामग्री उनके साथ रखने जैसे तथ्यों से स्पष्ट होता है कि हड़प्पा वासी
मरणोपरांत जीवन में विश्वास करते थे।
विलासिता की वस्तुओं का पता लगाना -
सामाजिक एवं आर्थिक भिन्नता के अस्तित्व का पता लगाने की एक अन्य महत्वपूर्ण विधि
विलासिता की वस्तुओं का पता लगाना है। साधनों से उपलब्ध होने वाली पुरा वस्तुओं का
अध्ययन करके पुरातत्वविद उन्हें दो वर्गों अर्थात उपयोगी और विलास की वस्तुओं में
विभाजित करते हैं। प्रथम वर्ग अर्थात उपयोगी वस्तुओं के अंतर्गत दैनिक उपयोग की
वस्तुएं जैसे चक्किया, मृदभांड
सुई आदि आती है । इन्हें पत्थर अथवा मिट्टी जैसे सामान्य पदार्थों से आसानी पूर्वक
बनाया जा सकता था। इस प्रकार की वस्तुएँ लगभग सभी हड़प्पा पुरास्थलों से प्राप्त
हुई हैं। विलासिता की वस्तुओं के अंतर्गत बहुत महंगी अथवा दुर्लभ वस्तुएँ सम्मिलित
थी। जिनका निर्माण स्थानीय स्तर पर अनुपलब्ध पदार्थों से एवं जटिल तकनीकों द्वारा
किया जाता था। ऐसी वस्तुएँ मुख्य रूप से हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे महत्वपूर्ण
नगरों से ही मिली है। ऐसा प्रतीत होता है कि हड़प्पा समाज में विद्यमान
विभिन्नताओं का प्रमुख आधार आर्थिक स्थिति ही रहा होगा। उदाहरण के लिए कालीबंगा
में प्रमाण से पता लगता है कि पुरोहित वर्ग दुर्ग में रहते थे और निचले भाग में
स्थित अग्नि वेदिका पर धार्मिक अनुष्ठान करते थे। इस प्रकार पुरातत्वविद हड़प्पा
समाज की सामाजिक आर्थिक भिन्नता का पता लगाने के लिए अनेक महत्वपूर्ण बातें जैसे
लोगों की सामाजिक स्थिति,
आर्थिक स्थिति नगरों अथवा छोटी बस्तिओं में निवास, खानपान एवं
रहन-सहन और साधनों से प्राप्त होने वाली बहुमूल्य अथवा सामान्य वस्तुओं पर विशेष
रूप से ध्यान देते थे।
2. मोहनजोदड़ो की
कुछ विशेषताओं का वर्णन कीजिए?
उत्तर - मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के
सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित था। सिंधी भाषा में मोहनजोदड़ो का शाब्दिक
अर्थ है 'मृतकों
का टीला' मोहनजोदड़ो
की खुदाई से निम्नलिखित विशेषताएं प्रकट हुई है जो निम्नलिखित हैं-
सुनियोजित नगर-
A.
मोहनजोदड़ो एक विशाल शहर था जो 125
हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था। यह शहर दो भागों में विभक्त था। शहर के
पश्चिम में एक दुर्ग था जो ऊंचाई में स्थित था एवं पूर्व में नीचे एक नगर बसा हुआ
था।
B.
दुर्ग की संरचना कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बनाई गई थी, इसमें
बड़े-बड़े भवन थे जो संभवत प्रशासनिक अथवा धार्मिक केंद्रों के रूप में कार्य करते
थे।
C.
दुर्ग के चारों ओर ईटों की बनी दीवार थी जो दुर्ग को निचले शहर से विभाजित
करती थी।
D.
निचले शहर का क्षेत्र दुर्ग की अपेक्षा कहीं अधिक बड़ा था जिसमें सामान्य जनता
निवास करतीथी। निचले
शहर को भी दीवार से चारों और से घेरा गया था।
E.
प्राय सभी बड़े मकानों में रसोईघर,
स्नानागार, शौचालय
और कुँए होते थे।
F.
घर की दरवाजे और खिड़कियां प्राय: सड़क की ओर नहीं खुलती थी। उस समय के घरों
में गोपनीयता का विशेष ध्यान रखा जाता था।
सुव्यवस्थित सड़के एवं नालियाँ-
A.
सड़कें पूरब से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण की तरफ होती थी और एक दूसरे को
समकोण पर काटती थी एवं शहर को आयताकार भागों में विभाजित करती थी।
B.
नालियाँ पकी ईटों से बनी तथा ढकी हुई होती थी, उनमे थोड़ी-थोड़ी दूरी पर हटाने वाले पत्थर लगे होते थे
ताकि नालियों की सफाई की जा सके।
विशाल स्नानागार, अन्नागार एवं
भवन-
A.
मोहनजोदड़ो का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सार्वजनिक भवन विशाल स्नानागार है। इसका
जलाशय दुर्ग के टीले में स्थित था। इसकी संरचना अनोखी है तथा धार्मिक संबंधी
अनुष्ठानों में इसका प्रयोग किया जाता था।
B.
मोहनजोदड़ो की अन्य महत्वपूर्ण विशेषता दुर्ग में मिलने वाला विशाल अन्नागार
है। विशाल अन्नागार के दक्षिण में ईटों के चबूतरे की कई कतारें थी।
C.
मोहनजोदड़ो की दुर्ग क्षेत्र में विशाल स्नानागार की तरफ एक अन्य लंबा भवन
मिले है। विद्वानों के अनुसार यह भवन किसी उच्च अधिकारी का निवास स्थान रहा होगा ।
कुशल एवं व्यवस्थित नागरिक प्रबंध-
मोहनजोदड़ो का नागरिक प्रबंध
अत्यधिक कुशल एवं व्यवस्थित था। परंतु यह कहना कठिन है कि सिंधु घाटी सभ्यता के
शासक कौन थे। संभव है कि वे राजा थे या पुरोहित अथवा व्यापारी । संभव है कि
नगरपालिका का शासन प्रबंध था। किंतु इतना निश्चित है कि मोहनजोदड़ो का नागरिक
प्रबंध कुशल हाथों में था। उनका प्रशासन अत्यधिक कुशल एवं उत्तरदाई था।
3. हड़प्पाई समाज में
शासकों द्वारा किए जाने वाले संभावित कार्यों का संक्षेप में वर्णन करें?
उत्तर- हड़प्पा सभ्यता के राजनीतिक
संगठन के विषय में निश्चय पूर्वक कुछ भी कहना कठिन है। हमें यह ज्ञात नहीं है की
हड़प्पा सभ्यता के शासक कौन थे संभव है कि वह राजा होगा या पुरोहित होगा या कोई
व्यापारी हंटर महोदय यहाँ के शासन को जनतत्रात्मक मानते हैं। किंतु पिग्गट एवं
व्हीलर महोदय के अनुसार सुमेर की तरह यहाँ के शासक भी पुरोहित ही थे। कुछ
विद्वानों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता पर दो राजधानियां हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो से
शासन किया जाता
था। कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार संभवत संपूर्ण क्षेत्र अनेक राज्यों मे
विभक्त था। इन राज्यों की अपनी अपनी राजधनियां थी। जैसे सिंध की मोहनजोदड़ो, पंजाब की
हड़प्पा, राजस्थान
कालीबंगा एवं गुजरात की लोथल । कुछ अन्य विद्वानों अनुसार सिंधु
घाटी सभ्यता में अनेक राज्यों का अस्तित्व नहीं था बल्कि एक ही राजा के नेतृत्व
में वहां पर शासन किया जाता था। सिंधु घाटी सभ्यता के शासन का स्वरूप चाहे जैसे भी
हो इतना तो निश्चित है कि यहां का शासन अत्यंत कुशल एवं उत्तरदाई था। हड़प्पाई
समाज में शासकों द्वारा अनेक महत्वपूर्ण कार्यों का संपादन किया जाता था। ऐसा
प्रतीत होता है कि शासक राज्य में शांति व्यवस्था को बनाये रखने तथा आक्रमणकारियों
से सुरक्षा के लिए उतरदायी था। हड़प्पा सभ्यता की सुनियोजित नगर, सफाई तथा जल
निकास की उत्तम व्यवस्था,
अच्छी सड़कें, उन्नत
व्यापार, माप
तौल के एक मानक, सांस्कृतिक
विकास, विकसित
उद्योग धंधे, संपन्नता
आदि इस बात की प्रबल संभावना है कि हड़प्पा सभ्यता के शासक प्रशासनिक कार्यों में
विशेष ध्यान देते थे। संभवत हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर नियोजन में भी राज्यों
का महत्वपूर्ण योगदान रहता होगा। इतिहासकारों का विचार है। कि प्राचीन विश्व में
जहां-जहां नियोजित वस्तुओं के प्रमाण मिले हैं वहां पर इस बात का प्रमाण मिलता है
कि सड़को की योजना का विकास धीरे-धीरे नही हुआ है बल्कि एक विशेष ऐतिहासिक समय में
इनका निर्माण हुआ है। इतिहासकारों का मानना है कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों का ईटों
का एक जैसा आकार होना या तो कड़े प्रशासनिक नियंत्रण के कारण था या तो लोगो को
व्यापक तौर पर ईटों के निर्माण के लिए नियुक्त किया जाता था। इसी प्रकार हड़प्पा
सभ्यता के विभिन्न स्थानों से तांबे,
मिट्टी के बर्तन और कांसे के बर्तन मिलने से यह अनुमान लगाया जाता है कि इनका
भी निर्माण इसी प्रकार किया गया होगा। इसी प्रकार अनुमान लगाया जाता है कि विभिन्न
नगरों की योजना राज्य द्वारा ही बनाया गया होगा और विभिन्न स्थानों पर सड़कों
नालियों का निर्माण राज्य द्वारा ही किया गया होगा।
उल्लेखनीय है कि हड़प्पा सभ्यता के शहरी केंद्रों की योजना का अध्ययन करने पर पता चलता है की नागरिक व्यवस्था की उचित देखरेख और विशाल जल निकास व्यवस्था थी। निकास के लिए प्रत्येक गली में नाली बनी होती थी। गली में बनी यह नाली नगर नियोजन का एक हिस्सा थी। घर अलग-अलग अपने-अपने ढंग से इस कार्य को संपादित नहीं कर सकते थे। इसका स्पष्ट तात्पर्य है कि प्रशासन द्वारा स्वयं सभी कार्यों को नियंत्रित किया जाता था तथा इनकी देखरेख का कार्य किया जाता था। ऐसा लगता है कि शिल्प उत्पादन का कार्य और वितरण का कार्य शासकों द्वारा ही नियंत्रित किया जाता था। यही कारण है कि कुछ उद्योग विशेष रुप से कम वजन वाले कच्चे माल ईर्धन के स्रोत के निकट स्थापित होते थे और कुछ वहाँ स्थित थे जहाँ इनकी खपत अधिक थी। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे नगरों में विशाल अन्नागारों का मिलना इस बात की प्रबल संभावना है कि सिंधु घाटी सभ्यता के शासक को हमेशा ही प्रजाहित की चिंता रहती थी इसलिए अनाज को विशाल अन्नागारो में सुरक्षित रख लिया था ताकि आवश्यकतानुसार आपात स्थिति में इनका प्रयोग किया जा सके।