Class 12 History अध्याय-3 बंधुत्व जाति तथा वर्ग आरंभिक समाज (लगभग 600 ईसवी पूर्व से 600 ईसवी) Question Bank-Cum-Answer Book

                Class 12 History  अध्याय-2 राजा किसान और नगर आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ  (लगभग 600 ई. पू. से 600 ई.) Question Bank-Cum-Answer Book

प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

Class - 12

इतिहास (History)

अध्याय-3 बंधुत्व जाति तथा वर्ग आरंभिक समाज  

(लगभग 600 ईसवी पूर्व से 600 ईसवी) 

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Question)

1. संस्कृत ग्रंथों में 'कुल' शब्द का प्रयोग किसके लिए किए की गई ?.

a. परिवार

b. जाति

c. बांधव

d. इनमें से कोई नही

2. महाभारत की रचना किसने की?

a. मनु

b. वेदव्यास

c. बाल्मीकि

d. इनमें से कोई नहीं

3. महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में कितने दिनों तक चला ?

a. 10 दिन

b. 15 दिन

c. 14 दिन

d. 18 दिन

4. महाभारतकालीन समाज का स्वरूप कैसा था?

a. पितृसत्तात्मक

b. मातृसत्तात्मक

c. कुलसत्तात्मक

d. इनमें से कोई नहीं

5. मनुस्मृति में कितने प्रकार के विवाह का उल्लेख है ?

a. 8

b. 16

c. 9

d. 4

6. दुर्योधन की मां कौन थी ?

a. गांधारी

b. कुंती

c. माद्री

d. सत्यवती

7. मानव के सम्पूर्ण जीवन को कितने भागों में बांटा गया?

a. 5

b. 4

c. 3

d. 9

8. महाभारत की रचना किस भाषा में हुई थी?

a. संस्कृत

b. पाली

c. प्राकृत

d. हिंदी

9. पुराणों की संख्या कितनी है?

a. 15

b. 18

c. 12

d. 10

10. महाभारत का फारसी अनुवाद का नाम क्या है?

a. राज्म्नामा

b. महाभारतनाम

c. ग्रंथनामा

d. इनमें से कोई नहीं

11. मृच्छकटिकम के लेखक का नाम लिखें।

a. शूद्रक

b. बिष्णुगुप्त

c. हलधर

d. इनमें से कोई नहीं

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

1. महाकाव्य से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: एक लम्बी कविता जिसमें किसी नायक अथवा राष्ट्र के जीवन एवं उपलब्धियों का विशद वर्णन हो जैसे महाभारत ।

2. गोत्र को परिभाषित करें।

उत्तर: गोत्र प्राचीन मानव समाज द्वारा बनाए गए रीति-रिवाज का हिस्सा है जो यह निश्चित करता है कि एक व्यक्ति किस पूर्वज की संतान है।

3. स्त्रीधन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर : विवाह के समय स्त्री को प्राप्त उपहारस्वरूप धन को स्त्रीधन कहा जाता है। यह दहेज से भिन्न है क्योंकि दहेज़ वर पक्ष को दिया जाता है। स्त्रीधन पर सम्पूर्ण रूप से स्त्री का अधिकार होता है।

4. मनुस्मृति का दो महत्व लिखिए ।

उत्तर :

क. यह तात्कालिन समाज के नियमों तथा रीतियों का वर्णन देता है।

ख. इसका प्रभाव आज भी समाज में दिखलाई देता है।

5. कुल तथा जाति का क्या अर्थ है?

उत्तर : संस्कृत ग्रन्थों में कुल शब्द का प्रयोग परिवार के लिए और जाति शब्द का बाँधवों के बड़े समूह के लिए होता था ।

6. अंर्तविवाह से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर : अंर्तविवाह में वैवाहिक संबंध समूह के मध्य ही होते है। यह समूह गोत्र, कुल अथवा जाति यी फिर एक ही स्थान पर बर्सने वालों का हो सकता है।

7. नाट्यशास्त्र के लेखक का नाम लिखिए।

उत्तरः भरतमुनि ।

8. महाभारत के सबसे चुनौतीपूर्ण प्रसंगों में से एक का उल्लेख कीजिए।

उत्तर : महाभारत के सबसे चुनौतीपूर्ण प्रकरणों में से एक द्रौपदी का पांच पांडवों के साथ विवाह है। यह बहुपतित्व (कई पतियों वाली महिला की प्रथा) का एक उदाहरण है जो महाकाव्य का एक केंद्रीय विषय है।

9. धर्मशास्त्रों के अनुसार ब्राह्मणों के दो आदर्श व्यवसायों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर: धर्मशास्त्रों के अनुसार, ब्राह्मणों के दो आदर्श व्यवसाय इस प्रकार थे:

* वेद पढ़ना और पढ़ाना।

* यज्ञ करना और उपहार प्राप्त करना।

10. पंचमवेद की संज्ञा किसे दी गयी है।

उत्तर: महाभारत

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. स्पष्ट कीजिए कि विशिष्ट परिवारों में पितृवंशिकता क्यों महत्त्वपूर्ण रही होगी?

उत्तर: पितृवंशकिता का आशय वंश परंपरा से है जो पिता के बाद पुत्र, फिर पौत्र, प्रपौत्र इत्यादि से चलती है। विशिष्ट परिवारों में वस्तुतः शासक एवं संपन्न परिवार शामिल थे। ऐसे परिवारों की पितृवंशिकता निम्नलिखित दो कारणों से महत्त्वपूर्ण रही होगी।

1. वंश परंपरा को नियमित रखने हेतु- धर्मसुत्रों की माने तोवंश को पुत्र ही आगे बढ़ाते हैं। अतः सभी परिवारों की कामना पुत्र प्राप्ति की थी। यह तथ्य ऋग्वेद के मंत्रों से स्पष्ट हो जाता है। इसमें पिता अपनी पुत्री के विवाह के समय इंद्र से उसके लिए पुत्र की कामना करता है।

2. उत्तराधिकार संबंधी विवाद से बचने हेतु- विशिष्ट परिवारों के माता-पिता नहीं चाहते थे कि उनके बाद उत्तराधिकार को लेकर किसी प्रकार का झगड़ा हो। राज परिवारों में तो उत्तराधिकार के रूप में राजगद्दी भी शामिल थी। अतः पुत्र न होने पर अनावश्यक विवाद होता था।

2. क्या आरंभिक राज्यों में शासक निश्चित रूप से क्षत्रिय ही होते थे? चर्चा कीजिए।

उत्तर : वर्ण व्यवस्था के अनुसार समाज की रक्षा का दायित्व और शासक बनने का अधिकार क्षत्रियों के पास था। परंतु हम देखते हैं कि आरंभिक राज्यों में सभी शासक क्षत्रिय वंश से नहीं थे। बहुत-से गैर-क्षत्रिय शासक वंशों का भी पता चलता है। उदाहरण के लिए ह्वेनसांग के समय उज्जैन व महेश्वरपुर के शासक ब्राह्मण थे। चन्द्रगुप्त मौर्य को भी ब्राह्मण ग्रंथों (पुराणों) में शूद्र बताया गया जबकि बौद्ध ग्रंथ उसे क्षत्रिय मानते हैं। मौर्यों के बाद शुंग व कण्व ब्राह्मण शासक बने। गुप्तवंश के शासक तथा हर्षवर्धन भी संभवतः वैश्य थे। इनके अतिरिक्त प्राचीन काल में बाहर से आने वाले बहुत- से आक्रमणकारी शासक (शक, कुषाण इत्यादि) भी क्षत्रिय, नहीं थे । दक्कन भारत के सातवाहन शासक भी स्वयं को ब्राह्मण कहते थे। इस प्रकार कह सकते हैं कि आरम्भिक राज्यों में अधिकांशतः शासक क्षत्रिय होते थे, परन्तु सभी शासक क्षत्रिय नहीं होते थे।

3. महाभारत के संबंध में बंधुता के रिश्तों में किस प्रकार परिवर्तन आया ?

उत्तर: महाभारत वास्तव में ही एक बदलते रिश्तों की एक कहानी है। यह चचेरे भाइयों के दो दलों कौरवों और पांडवों के बीच भूमि और सत्ता को लेकर हुए संघर्ष का वर्णन करती है। दोनों ही दल कुरु वंश से संबंधित थे जिनका कुरु जनपद पर शासन था। उनके संघर्ष ने अंततः एक युद्ध का रूप ले लिया जिसमें पांडव विजय हुए। इसके बाद पितृवंशिक उत्तराधिकार की उद्घोषणा की गयी। भले ही पितृवंशिकता की परंपरा प्रचलित थी परंतु महाभारत की मुख्य कथावस्तु ने इस आदर्श को और सुदृढ़ किया। पितृवंशिकता के अनुसार पिता की मृत्यु के बाद उसके पुत्र उसके संसाधनों पर अधिकार जमा सकते थे । अतः ऐसा कहा जा सकता है कि महाभारत में बंधुता के रिश्तों को परिवर्तित किया।

4. महाभारत के महत्व पर प्रकाश डालिए ?

उत्तरः महाभारत भारतीय संस्कृति तथा हिन्दू धर्म के विकास का लेखा-जोखा है।

यह एक बहुआयामी ग्रंथ है। इसमें समाज के सभी अंग जैसे राजनीति, धर्म, दर्शन तथा आदर्श की झलक मिलती है । इसमें युद्ध व शांति, सदगुण व दुर्गुण की व्याख्या की गई है। भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। रूपक कथाएँ संभवतः काल्पनिक है। निश्चित रूप से सामाजिक मूल्यों के अध्ययन के लिए महाभारत एक अच्छा स्रोत है। इस प्रकार महाभारत की महत्ता को समझा जा सकता है।

5. मनुस्मृति में वर्णित चाण्डालों का वर्णन कीजिए?

उत्तरः चाण्डालों के बारे में मुख्य रूप से वर्णन मनुस्मृति में किया गया है।

a. इसके अनुसार चाण्डालों को गांव से बाहर रहना पड़ता था उन्हें रात में गांव में आने जाने की आज्ञा नहीं थी।

b. वह लोगों के फेंके हुए बर्तनों और चीजों का इस्तेमाल किया करते थे।

c. मृत शवों से उतार कर कपड़े पहना करते थे सभी शवों का अंतिम संस्कार उन्हीं के द्वारा किया जाता था।

d. समाज द्वारा उन्हें अस्पृश्य माना जाता था चाण्डालों को निंदनीय नजरों से देखा जाता था।

e. उन्हें देख लेना भी पाप समझा जाता था।

6. महाभारतकाल की जाति व्यवस्था की विशेषताएँ लिखिए?

उत्तर : महाभारतकालीन जाति का व्यवस्था का निर्धारण व्यक्तियों द्वारा किए जा रहे कार्य के अनुसार होता था। समय के साथ- साथ इन जातियों की संख्या बढ़ती गई और इनका निर्धारण भी जन्म के अनुसार किया जाने लगा। जैसे की शिकारी निषाद (जंगल मैं रहने वाले लोग) कुम्हार, सुवर्णकार। ऐसे लोग जो उस समय संस्कृत नहीं बोल पाते थे उन्हें म्लेच्छ कहा जाता था एवं हीन दृष्टि से देखा जाता था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. क्या यह संभव है की महाभारत का एक ही रचियता था?

उत्तर: महाभारत के रचनाकार के विषय में भी इतिहासकार एकमत नहीं हैं। जनश्रुतियों के अनुसार महर्षि व्यास ने इस ग्रंथ को श्रीगणेश जी से लिखवाया था। परंतु आधुनिक विद्वानों का विचार है कि इसकी रचना किसी एक लेखक द्वारा नहीं हुई। वर्तमान में इस ग्रंथ में एक लाख श्लोक हैं। लेकिन शुरू में इसमें मात्र 8800 श्लोक ही थे। दीर्घकाल में रचे गए इन श्लोकों का रचयिता कोई एक लेखक नहीं हो सकता । विजयों का बखान करने वाली यह कथा परंपरा मौखिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में चलती रही। इतिहासकारों का अनुमान है कि पाँचवीं शताब्दी ई०पू० से इस कथा परंपरा को ब्राह्मण लेखकों ने अपनाकर इसे और विस्तार दिया। साथ ही इसे लिखित रूप भी दिया। यही वह समय था जब उत्तर भारत में क्षेत्रीय राज्यों और राजतंत्रों का उदय हो रहा था । कुरु और पांचाल, जो महाभारत कथा के केंद्र बिंदु हैं, भी छोटे सरदारी राज्यों से बड़े राजतंत्रों के रूप में उभर रहे थे। संभवत: इन्हीं नई परिस्थितियों में महाभारत की कथा में कुछ नए अंश शामिल हुए। यह भी संभव है कि नए राजा अपने इतिहास को नियमित रूप से लिखवाना चाहते हो अतः ऐसा मानना की महाभारत का एक ही रचियता था, संभव प्रतीत नहीं होता।

2. आरंभिक समाज में स्त्री-पुरुषके संबंधों की बिषमतायें कितनी महत्वपूर्ण रही होगी? कारण सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर : आरंभिक समाज में स्त्री-पुरुष के संबंधों में अनेक विषमताएँ थीं। हालाँकि स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। विशेषकर पुत्रों को जन्म देने वाली माता के प्रति परिजन अधिक स्रेह अभिव्यक्त करते थे। जिसकी कोख से अधिक सुंदर सुशील, वीर, सद्गुण संपन्न, विद्वान पुत्र पैदा होते थे, समाज में उस स्त्री को निःसंदेह अधिक सम्मान से देखा जाता था।

समाज में पितृसत्तात्मक परिवारों का प्रचलन था। पितृवंशिकता को ही सभी वर्गों और जातियों में अपनाया जाता था। कुछ विद्वान और इतिहासकार सातवाहनों को इसका अपवाद मानते हैं। उनके अनुसार सातवाहनों में मातृवंशिकता थी क्योंकि इनके राजाओं के नाम के साथ माता के नाम जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए, अभिलेखों से सातवाहन राजाओं की कई पीढ़ियों के राजा गोतमी पुत्र शतकर्त्री । उपनिषद भी समाज में स्त्री-पुरुषों के अच्छे संबंधों के प्रमाण देते हैं। समाज में विवाहिता स्त्रियाँ अपने पति को सम्मान देती थीं और वे प्रायः उनके गोत्र के साथ जुड़ने में कोई आपत्ति नहीं करती थी।

कुछ इसी प्रकार का महाभारत में उल्लेख मिलता है कि जब कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध अवश्यंभावी हो गया तो गांधारी ने अपने ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन से युद्ध न करने की विनती की "शांति की संधि करके तुम अपने पिता, मेरा तथा अपने शुभचिंतकों का सम्मान करोगे। जो पुरुष अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखता है, वह पुरुष ही राज्य की देखभाल कर सकता है। लालच और क्रोध एक बुरी बला है।" किंतु दुर्योधन ने माँ की सलाह नहीं मानी। फलतः उसका अंत बहुत ही बुरा हुआ।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि आरंभिक समाज में लैंगिक असमानता प्रचलित थी।

3. महाभारत ग्रंथ की गतिशीलता की ब्याख्या कीजिए।

उत्तर : निम्नलिखित बिंदु साबित करते हैं कि महाभारत गतिशील हैं।

1. महाभारत का विकास संस्कृत संस्करण के साथ नहीं रुका। सदियों से, महाकाव्य के संस्करण लोगों, समुदायों और ग्रंथों को लिखने वालों के बीच संवाद की एक सतत प्रक्रिया के माध्यम से विभिन्न भाषाओं लिखे गए थे।

2. कई कहानियाँ जो विशिष्ट क्षेत्रों में उत्पन्न हुईं या कुछ लोगों के बीच प्रचलित हुईं, उन्हें महाकाव्य में अपना रास्ता मिल गया।

3. महाकाव्य की केंद्रीय कहानी अक्सर अलग- अलग तरीकों से दोहराई जाती थी और एपिसोड को मूर्तिकला और पेंटिंग में चित्रित किया गया था।

उन्होंने प्रदर्शन कलाओं की एक विस्तृत श्रृंखला जैसे नाटक, नृत्य और अन्य प्रकार के आख्यानों को भी प्रदर्शित किया।

4. महाभारत कालीन समाज में प्रचलित विवाह के प्रकार की चर्चा करें।

उत्तर: गोत्र के आधार पर विवाह के प्रकार निम्नलिखित हैं।

1. बहिर्विवाह- एक गोत्र से दूसरे गोत्र में विवाह करने की पद्धति को बहिर्विवाह कहा जाता था

2. अंतर्विवाह - एक समान गोत्र, कुल या जाति के लोगों में विवाह की स्थिति को अंतर्विवाह कहा जाता था

3. बहुपति प्रथा- यह वह स्थिति थी जिसमें एक स्त्री के अनेकों पति होते थे

4. बहुपत्नी विवाह - इस विवाह के अंदर एक ही पुरुष की अनेकों पत्नियां हुआ करती थी ।

धर्म सूत्र और धर्म शास्त्रों के अनुसार आठ प्रकार के विवाह होते थे।

1. ब्रह्म विवाह- दोनों पक्षों की सहमति के साथ कन्या का विवाह करना ब्रहम विवाह कहलाता है।

2. देव विवाह- किसी धार्मिक अनुष्ठान के मूल्य के रूप में अपनी कन्या को दान में दे देना देव विवाह कहलाता है।

3. आर्ष विवाह- कन्या के माता-पिता को कन्या का मूल्य (दहेज, गोदान) देकर कन्या से विवाह करना आर्ष विवाह कहलाता है

4. प्रजापत्य विवाह- कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग अर्थात उच्च वर्ग के वर से कर देना प्रजापत्य विवाह कहलाता है।

5. गंधर्व विवाह- परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या प्रेम में अभिभूत होकर बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना गंधर्व विवाह कहलाता है।

6. असुर विवाह- कन्या को खरीदकर विवाह कर लेना असुर विवाह कहलाता है।

7. राक्षस विवाह- कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना राक्षस विवाह कहलाता है।

8. पैशाच विवाह- कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना पैशाच विवाह' कहलाता है।

इन विवाहों में से पहले चार विवाहों को सही माना जाता था जबकि बाकि के चार विवाहों को गलत माना जाता था।

5. आरंभिक समाज में स्त्री-पुरुष के संबंधों की विषमताएँ कितनी महत्वपूर्ण रही होंगी? कारण सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर : वंश और रिश्तेदारी का पता लगाने की दो अवधारणाएँ थीं पितृवंशिकता जिसका अर्थ है वह वंश परंपरा जो पिता से पुत्र फिर पौत्र, प्रपौत्र आदि से चलती है और मातृवंशिकता इस शब्द का इस्तेमाल हम तब करते हैं जहाँ वंश परंपरा माँ से जुड़ी होती है। इस समय पितृवंशिकता प्रचलित थी और पितृसत्तात्मक उत्तराधिकार की घोषणा की गई थी कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्त्रियाँ जैसे प्रभावती गुप्त ने सत्ता का उपभोग किया। मनुस्मृति के अनुसार पैतृक जायदाद का माता-पिता की मृत्यु के बाद सभी पुत्रों में समान रूप से बँटवारा किया जाना चाहिए। स्त्रियाँ इस पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकती थीं। किंतु विवाह के समय मिले उपहारों पर स्त्रियों का स्वामित्व माना जाता था जिसे स्त्री - धन (अर्थात् स्त्री का धन) की संज्ञा दी जाती थी। इस संपत्ति को उनकी संतान विरासत के रूप में प्राप्त कर सकती थी और इस पर उनके पति का कोई अधिकार नहीं होता था। किंतु मनुस्मृति में स्त्रियों को पति की आज्ञा के विरुद्ध पारिवारिक संपत्ति अथवा स्वयं अपने बहुमूल्य धन के गुप्त संचय के विरुद्ध भी चेतावनी देती है। पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए विवाह के नियम भी अलग-अलग थे। पितृवंश को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र महत्वपूर्ण थे। वही इस व्यवस्था में पुत्रियों को अलग तरह से देखा जाता था। उनके पास घर के संसाधनों का कोई दावा नहीं होता था। एक धारणा यह भी थी कि कन्या दान पिता का एक महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य होता है, जबकि बेटों के मामले में ऐसा कोई विश्वास नहीं था । यद्यपि उच्च वर्ग की महिलाएँ संसाधनों पर अपनी पैठ रखती थीं, सामान्यतः भूमि, पशु और धन पर पुरुषों का ही नियंत्रण था। दूसरे शब्दों में, स्त्री और पुरुष के बीच सामाजिक हैसियत की भिन्नता संसाधनों पर उनके नियंत्रण की भिन्नता की वजह से अधिक प्रखर हुई। उपयुक्त कारणों से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि प्रारंभिक समाजों में लैंगिक असमानता प्रचलित थी।

6. उन साक्ष्यों की चर्चा कीजिए जो यह दर्शाते हैं कि बंधुत्व और विवाह संबंधी ब्राह्मणीय नियमों का सर्वत्र अनुसरण नहीं होता था।

उत्तर : साक्ष्य जो यह दर्शाते हैं कि बंधुत्व और विवाह संबंधी ब्राह्मणीय नियमों का सर्वत्र अनुसरण नहीं किया जाता था। परिवार एक बड़े समूह का हिस्सा होते हैं जिन्हें हम संबंधी कहते हैं। पारिवारिक रिश्ते नैसर्गिक और रक्त संबंध माने जाते हैं किंतु इन संबंधों की परिभाषा अलग-अलग तरीके से की जाती है। कुछ समाजों में भाई-बहन (चचेरे, मौसेरे आदि) से खून का रिश्ता माना जाता है किंतु अन्य समाज ऐसा नहीं मानते। आरंभिक समाजों के संदर्भ में इतिहासकारों को विशिष्ट परिवारों के बारे में जानकारी आसानी से मिल जाती है। अधिकतर राजवंश पितृवंशिकता प्रणाली का अनुसरण करते थे। हालाँकि इस प्रथा में विभिन्नता थी, कभी पुत्र के न होने पर एक भाई दूसरे का उत्तराधिकारी हो जाता था तो कभी बंधु बांधव सिंहासन पर अपना अधिकार जमाते थे। कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्त्रियाँ जैसे प्रभावती गुप्त सत्ता का उपभोग करती थीं। जहाँ पितृवंश को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र महत्वपूर्ण थे, वहाँ इस व्यवस्था में पुत्रियों को अलग तरह से देखा जाता था। पैतृक संसाधनों पर उनका कोई अधिकार नहीं था। अपने गोत्र से बाहर उनका विवाह कर देना ही अपेक्षित था। इस प्रथा को बहिर्विवाह पद्धति कहते हैं और इसका तात्पर्य यह था कि ऊँची प्रतिष्ठा वाले परिवारों की कम उम्र की कन्याओं और स्त्रियों का जीवन बहुत सावधानी से नियमित किया जाता था जिससे 'उचित' समय और उचित व्यक्ति से उनका विवाह किया जा सके। इसका प्रभाव यह हुआ कि कन्यादान अर्थात् विवाह में कन्या की भेंट को पिता का महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना गया। किंतु, सातवाहन शासकों का मामला अलग था। कुछ सातवाहन राजा बहुपत्नी प्रथा (अर्थात् एक से अधिक पत्नी) को मानने वाले थे। सातवाहन राजाओं से विवाह करने वाली रानियों के नामों का विश्लेषण इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि विवाह के बाद भी उन्होंने अपने पिता के गोत्र नाम को ही कायम रखा। यह विचार ब्राह्मणवादी सिद्धांतों के विपरीत था।

7. महाभारत की प्रासंगिकता को विस्तारपूर्वक लिखें।

उत्तर : महाभारत की वर्तमान में प्रासंगिकता की चर्चा भी महत्वपूर्ण है और सदा रहेगी। महाभारत हमारा साहित्य (महाकाव्य) है, इतिहास है और हमारा अध्यात्म है। इसमें न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र है। जो अपने समय का शाश्वत सत्य भी हैं। एक ऐसे युद्ध की कथा और व्यथा है, जो हमें न केवल बाहरी बल्कि भीतरी शत्रुओं से सावधान करता है। भीतरी का अर्थ भी व्यापक है। घर, परिवार, कुटम्ब, समाज, देश ही नहीं, अपने मन-मस्तिष्क के भीतर चल रहे नकारात्मक विचार भी उसमें शामिल है। यथा अर्जुन का विषाद योग। इसमें राग-द्वेष है, श्रृंगार है, वात्सल्य है, द्वेष है, ईर्ष्या है, कामना है, तृष्णा है, क्रोध है, उत्साह है, भय, और शोक सब कुछ है। अर्थात् वे सारे भाव आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने सहस्रों वर्ष पूर्व थे। जिस प्रकार प्रकृति के नियम नहीं बदले, आधुनिक होकर भी मानवीय प्रवृत्तियां नहीं बदली उसी प्रकार महाभारत की प्रसंगिकता भी बरकरार है। परिस्थितियों और परिवेश में बहुत बदलाव के बावजूद महाभारत के अनेक प्रसंग वर्तमान में भी समान रूप से प्रासंगिक हैं। महाभारत की प्रासंगिकता धर्मक्षेत्र भगवान कृष्ण जी से ही हैं। सर्वप्रथम उन्हें प्रणाम उनके चरित्र और व्यवहार से कुछ सीखने का प्रयास करें। श्रीकृष्ण के लिए जनहित महत्वपूर्ण है । शिशुपाल के हमलों से जनता को बचाने के लिए वे ब्रज से द्वारका चले जाते है। अनावश्यक विवादों को टालना उनसे सीखा जा सकता है। आज भी ऐसा करके हम अपने समाज को विवादों से बचा सकते हैं।

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

भाग - 1

अध्याय क्रमांक

अध्याय का नाम

1.

ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ हड़प्पा सभ्यता

2.

राजा, किसान और नगर आरंभिक, राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ ( लगभग 600 ई.पू. 600 ईसवी)

3.

बंधुत्व, जाति तथा वर्ग आरंभिक समाज (लगभग 600 ई.पू. 600 ईसवी)

4.

विचारक, विश्वास और इमारतें सांस्कृतिक विकास (लगभग 600 ई.पू. 600 ईसवी)

भाग - 2

5.

यात्रियों के नजरिए समाज के बारे में उनकी समझ (लगभग दसवीं से 17वीं सदी तक )

6.

भक्ति -सूफी परंपराएँ धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ (लगभग 8वीं से 18वीं सदी तक)

7.

एक साम्राजय की राजधानी : विजयनगर (लगभग 14वीं से 16वीं सदी तक )

8.

किसान, जमींदार और राज्य कृषि समाज और मुगल साम्राज्य (लगभग 16वीं और 17वीं सदी तक)

9.

शासक और विभिन्न इतिवृत : मुगल दरबार (लगभग 16वीं और 17वीं सदी तक )

भाग - 3

10.

उपनिवेशवाद और देहात सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

11.

विद्रोही और राज 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

12.

औपनिवेशिक शहर नगर-योजना, स्थापत्य

13.

महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन सविनय अवज्ञा और उससे आगे

14.

विभाजन को समझना राजनीति, स्मृति, अनुभव

15.

संविधान का निर्माण एक नए युग की शुरूआत

Solved Paper of JAC Annual Intermediate Examination - 2023

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