प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
Class - 12
इतिहास (History)
अध्याय-7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर
(लगभग चौदहवीं से सोलहवीं सदी तक)
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Question)
1. विजय नगर के संस्थापक कौन थे?
A. कृष्णदेवराय
B. देवराय
C. महमूद गवा
D. हरिहर और बुक्का
2. विजय नगर के सबसे प्रसिद्ध शासक कौन थे?
A. हरिहर
B. कृष्णदेव राय
C. देवराज द्वितीय
D. देवराय प्रथम
3. हजारा मंदिर और विट्ठल स्वामी मंदिर का निर्माण किसके शासनकाल में हुआ था?
A. राम राय
B. देवराय
C. कृष्णदेव राय
D. सदाशिव राय
4. तालिकोटा की लड़ाई कब हुई?
A. 1526 ईसवी
B. 1556 ईस्वी
C. 1565 ईसवी
D. 1575 ईसवी
5. इटली यात्री निकोलो कोंटी किस राजा के शासनकाल में आया था?
A. देवराय प्रथम
B. देवराय द्वितीय
C. कृष्ण देव राय
D. हरिहर प्रथम
6. विजय नगर और बहमनी राज्य के बीच संघर्ष का क्या कारण था?
A. कृष्ण और
कावेरी का दोआब
B. कृष्ण और
गोदावरी का दोआब
C. कृष्ण और भीमा
का दोआब
D. कृष्ण और तुंगभद्रा का दोआब
7. विजयनगर राज्य की स्थापना कब हुई थी?
A. 1286 ईसवी
B. 1206 इसवी
C. 1336 ईस्वी
D. 1526 इसवी
8. सालूव वंश के संस्थापक कौन थे?
A. हरिहर
B. कृष्णदेव राय
C. वीर नरसिंह
D. सालूव नरसिंह
9. तुलुव वंश के संस्थापक कौन थे?
A. वीर नरसिंह
B. कृष्ण देव राय
C. देवराय
D. राम राय
10. विजय नगर का किस राज्य के साथ हमेशा संघर्ष चलता रहा?
A. कालीकट से
B. चोलो से
C. पांडय से
D. बहमनी से
11. अमुक्तमाल्यद की रचना किसके द्वारा की गई?
A. हरिहर
B. कृष्णदेव राय
C. राम राय
D. देवराय
12. अमुक्तमाल्यद की रचना किस भाषा में की गई?
A. संस्कृत
B. तमिल
C. तेलुगू
D. कन्नड़
13. तालीकोटा का युद्ध किसके नेतृत्व में लड़ा गया?
A. राम राय
B. कृष्णदेव राय
C. देवराय
D. सदाशिव राय
14. बारबोसा कहां के यात्री थे?
A. इटली
B. पुर्तगाल
C. रूस
D. फ्रांस
15. किसका शासन काल तेलुगु साहित्य का क्लासिकी युग माना जाता है?
A. हरिहर
B. देवराय द्वितीय
C. राजेंद्र चोल
D. कृष्णदेव राय
16. किसे आंध्र भोज भी कहा जाता है?
A. कृष्णदेव राय
B. देवराय द्वितीय
C. सदाशिव राय
D. देवराय प्रथम
अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
1. हंपी के भग्नावशेषों की खोज का श्रेय किसे जाता है?
उत्तर-
अभियंता और पूराविद कर्नल कॉलिंग मैकेंजी के द्वारा हंपी के भग्नावशेषों 1800 ईसवी में
प्रकाश में लाए गए थे।
2. इस्लामिक स्थापत्य शैली की तीन मुख्य विशेषताएं क्या थी?
उत्तर-
इंडो-इस्लामिक स्थापत्य शैली की तीन मुख्य विशेषताएं 1- विशाल
प्रवेशद्वार, 2 - मेहराब, 3- गुंबद।
3. डोमिगो पायस किसके शासनकाल में विजयनगर आए थे?
उत्तर-
कृष्णदेव राय
4. सीजर फ्रेडरिक किसके शासनकाल में विजयनगर आए थे?
उत्तर-
सदाशिव राय
5. फारस यात्री अब्दुर रज्जाक किसके शासनकाल में विजयनगर आए थे?
उत्तर-
देवराय द्वितीय
6. विजय नगर किस नदी के तट पर स्थित है?
उत्तर-
तुंगभद्रा
7. विजयनगर की राजधानी कहां थी?
उत्तर-
हंपी
8. बहमनी राजाओं की राजधानी थी?
उत्तर-
गुलबर्गा
9. मीनाक्षी मंदिर कहां स्थित है?
उत्तर-
मदुरई
10. अठवण का क्या मतलब है?
उत्तर-
भू-राजस्व विभाग
लघु प्रश्न उत्तर
1. पिछली दो शताब्दियों में हंपी के भवनावशेषों के अध्ययन में कौन सी
पद्धतियों का प्रयोग किया गया है? आपके अनुसार यह पद्धति विरुपाक्ष मंदिर के
पुरोहितों द्वारा प्रदान की गई जानकारी का किस प्रकार पूरक रहीं?
उत्तर-
आधुनिक कर्नाटक राज्य का एक प्रमुख पर्यटन स्थल हंपी है जिसे 1976 ईस्वी में
राष्ट्रीय महत्व के रूप में मान्यता मिली। हंपी के भवनावशेष 1800 ईसवी में एक
अभियंता तथा पुरातत्वविद कर्नल कालिन मैकेंजी द्वारा प्रकाश में लाए गए थे। जो
ईस्ट इंडिया कंपनी में कार्यरत थे,
हंपी का पहला सर्वेक्षण मानचित्र तैयार किया। उनके द्वारा प्राप्त शुरुआती
जानकारियां विरुपाक्ष मंदिर तथा पंपा देवी के पूजा स्थल के पुरोहितों की स्मृतियों
पर आधारित थी। कालांतर में 1856
ईसवी में एलेग्जेंडर ग्रनिलो ने हंपी के पुरातात्विक अवशेषों के विस्तृत चित्र
लिए इसके परिणाम स्वरूप शोधकर्ता उनका अध्ययन कर पाए।
1836 ईस्वी से ही
अभिलेख कर्ताओं ने यहां और हंपी के अन्य मंदिरों से कई दर्जन अभिलेखों को इकट्ठा
करना प्रारंभ कर दिया। इतिहासकारों ने इन स्रोतों का विदेशी यात्रियों के
बृत्तांतो और तेलगु, कन्नड़, तमिल एवं
संस्कृत में लिखे गए साहित्य से मिलान किया,
इनसे उन्हें साम्राज्य के इतिहास के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण सहायता मिली।
1876 ईसवी में जे.
एफ. फ्लीट ने पुरास्थल के मंदिर की दीवारों के अभिलेखों का प्रलेखन प्रारंभ किया।
जो विरुपाक्ष मंदिर के पुरोहितों द्वारा प्रदत सूचनाओं की पुष्टि करता है। निसंदेह
यह पद्धति विरुपाक्ष मंदिरों के पुरोहित द्वारा प्रदत सूचनाओं की पूरक थी।
2. विजय नगर की जल आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जाता था?
उत्तर-
विजय नगर की जल आवश्यकताओं को मुख्य रूप में तुंगभद्रा नदी से निकलने वाली धाराओं
पर बांध बनाकर पूरा किया जाता था। यह नदी उत्तर- पूर्व दिशा में बहती है। विजयनगर
की पहाड़ियों से कई जलधाराएं आकर तुंगभद्रा नदी से मिलती है। इन धाराओं में बांध
बनाकर अलग- अलग आकार के हौजों का निर्माण किया जाता था। इन हौज के पानी से ना केवल
आसपास के खेतों को सिंचा जा सकता था बल्कि इसे एक नहर के माध्यम से राजधानी तक भी
ले जाया जाता था।
कमलपुरम
जलाशय नामक हौज सबसे महत्वपूर्ण हौज था। तत्कालीन समय के सर्वाधिक महत्वपूर्ण जल
संबंधी संरचनाओं में से एक हिरिया नहर को आज भी देखा जा सकता है इस नहर में
तुंगभद्रा पर बने बांध से पानी लाया जाता था और इस धार्मिक केंद्र से शहरी केंद्र
को अलग करने वाली घाटी को सिंचित करने में प्रयोग किया जाता था। संभवतः इसका
निर्माण संगम वंश के राजाओं द्वारा करवाया गया था।
इसके
अलावा झील, कुएं, बरसात के पानी
वाले जलाशय तथा मंदिरों के जलाशय से सामान्य नगर वासियों के लिए पानी की
आवश्यकताओं को पूरा करते थे।
3. शहर के किलेबंद क्षेत्र में कृषि को रखने के अपने विचार में क्या फायदे और
नुकसान थे?
उत्तर-
विजयनगर के शहरों के किलेबंदी का उल्लेख अब्दुर रज्जाक के द्वारा किया गया है जो
ना केवल शहर को बल्कि कृषि में प्रयुक्त आसपास के क्षेत्र तथा जंगलों को भी घेरा
गया था। इस किलेबंदी की सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी इससे कृषि क्षेत्रों को भी घेरा
गया था। इसके निम्नलिखित फायदे एवं नुकसान थे:-
फायदे
:-
1. मध्यकाल में
विजय प्राप्ति में घेराबंदियों का महत्वपूर्ण योगदान होता था। घेराबंदियों का
प्रमुख उद्देश्य प्रतिपक्ष को खाद्य सामग्री से वंचित कर देना होता था ताकि वे
विवश होकर आत्मसमर्पण करने को तैयार हो जाए।
2. कई बार शत्रु
की घेराबंदी वर्षों तक चलती रहती थी। जिससे बाहर से खाद्यान्न आना मुश्किल हो जाता
था। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए किलेबंदी क्षेत्र के भीतर ही विशाल अन्नागारों का
निर्माण करते थे ।
3. घेराबंदी से
खेतों में खड़ी फसलें शत्रु द्वारा किए जाने वाली विनाश से बच जाती थी।
नुकसान:-
1. किलेबंदी करना
अत्यंत महंगी थी। राज्य को इस पर ज्यादा धनराशि खर्च करनी पड़ती थी ।
2. किलेबंद
क्षेत्र में कृषि क्षेत्र होने के कारण घेराबंदी की स्थिति में बाहर रहने वाले
किसानों के लिए खेतों में काम करना कठिन हो जाता था।
3. घेराबंदी की
स्थिति में कृषि के लिए आवश्यक बीज,
उर्वरक, यंत्र
आदि को बाहर के बाजारों से लाना कठिन हो जाता था।
4. यदि शत्रु
किलेबंद क्षेत्र में प्रवेश करने में सफल हो जाता था तो खेतों में खड़ी फसल उसके
विनाश का कारण बन जाती थी।
4. आपके विचार में महानवमी डिब्बा से संबंध अनुष्ठानों का क्या महत्व था?
उत्तर-
महानवमी डिब्बा शहर के सबसे ऊंचे स्थानों में एक विशालकाय मंच है जो लगभग 11000 वर्ग फीट के
आधार से 40 फीट की
ऊंचाई तक जाता है। ऐसा साक्ष्य मिले हैं जिनसे पता चलता है कि इस पर एक लकड़ी की
संरचना बनी थी। मंच का आधार उभारदार उत्कीर्णन से पटा पड़ा है।
महानवमी
डिब्बा से संबंध अनुष्ठान सितंबर एवं अक्टूबर के शरद माह में 10 दिनों तक मनाया
जाने वाला हिंदू त्यौहार है। इस अनुष्ठान को उत्तर भारत में दशहरा, बंगाल में
दुर्गा पूजा और प्रायद्वीपीय भारत में नवरात्रि या महानवमी नामों से जाना जाता है।
इस अवसर पर विजयनगर के शासक अपने रुतबे ताकत तथा सत्ता की शक्ति का प्रदर्शन करते
थे। इस अवसर पर होने वाले धर्म अनुष्ठानों में मूर्ति की पूजा, राज्य के अश्व
की पूजा तथा भैंसों और अन्य जानवरों की बलि दी जाती थी।
नृत्य
कुश्ती प्रतिस्पर्धा तथा घोड़ों,
हाथियों और रथों व सैनिकों की शोभायात्राएं निकाली जाती थी। साथ ही प्रमुख
नायकों और अधीनस्थ राजाओं द्वारा राजा को प्रदान की जाने वाली औपचारिक भेंट इस
अवसर के प्रमुख आकर्षण थे। त्योहारों के अंतिम दिन राजा सेनाओं का निरीक्षण करता
था। साथ ही नए सिरे से कर निर्धारित किए जाते थे।
5. अमर नायक प्रणाली विजयनगर साम्राज्य की एक प्रमुख राजनीतिक खोज थी! चर्चा
करें!
उत्तर-
अमर- नायक प्रणाली विजयनगर साम्राज्य की एक प्रमुख राजनीतिक खोज थी। ऐसा प्रतीत
होता है कि इस प्रणाली के कई तत्व दिल्ली सल्तनत की इक्ता प्रणाली से लिए गए थे।
अमर नायक सैनिक कमांडर होते थे जिन्हें राय द्वारा प्रशासन के लिए राज्य क्षेत्र
दिए जाते थे । वे किसानों,
शिल्पकर्मियों तथा व्यापारियों से भू राजस्व तथा अन्य कर भू वसूल करते थे। वह
राजस्व का कुछ भाग व्यक्तिगत उपयोग तथा घोड़ों और हाथियों के निर्धारित दल के
रखरखाव के लिए अपने पास रख लेते थे। यह दल विजयनगर के शासकों को एक प्रभावी सैनिक
शक्ति प्रदान करने में सहायक होते थे।
राजस्व
का कुछ भाग मंदिरों और सिंचाई के साधनों के रख-रखाव के लिए खर्च किया जाता था।
अमर- नायक राजा को वर्ष में एक बार भेंट भेजा करते थे और अपनी स्वामीभक्ति प्रकट
करने के लिए राजकीय दरबार में उपहारों के साथ स्वयं उपस्थित हुआ करते थे। राजा
कभी- कभी उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर हस्तांतरित कर उन पर अपना नियंत्रण
दर्शाता था। लेकिन 17 वी
शताब्दी में इनमें से कई नायकों ने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए। इस कारण
केंद्रीय राजकीय ढांचे का विघटन तेजी से होने लगा।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. शाही केंद्र शब्द शहर के जिस भाग के लिए उपयोग किए गए हैं, क्या वे उस भाग का सही वर्णन करते हैं?
उत्तर-
विशाल एवं सुदृढ़ किलेबंदी विजयनगर शहर की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी। हमें इस शहर
की 3-3 किलेबंदीयों
का उल्लेख मिलता है। पहली किलेबंदी के द्वारा केवल शहर को ही नहीं अपितु खेती के
कार्य में प्रयोग किए जाने वाले आसपास का क्षेत्र और जंगलों को भी घेरा गया था।
सबसे बाहरी दीवार के द्वारा शहर के चारों ओर की पहाड़ियों को परस्पर जोड़ दिया गया
था।
दूसरी
किलेबंदी को नगरीय केंद्र के आंतरिक भाग के चारों ओर किया गया था। एक तीसरे
किलेबंदी शासकीय केंद्र अथवा शाही केंद्र के चारों ओर की गई थी। इसमें सभी
महत्वपूर्ण इमारतें, अपनी
ऊंची चारदीवारी से घिरी हुई थी। शाही केंद्र बस्ती के दक्षिण- पश्चिम भाग में स्थित
था। उल्लेखनीय है कि शाही केंद्र शब्द का प्रयोग शहर के एक भाग विशेष के लिए किया
गया है। इसमें 60 से भी
अधिक मंदिर और लगभग 30 महलनुमा
संरचनाएं थी ।
इन
संरचनाओं और मंदिरों के मध्य एक महत्वपूर्ण अंतर यह था कि
मंदिरों का निर्माण पूर्ण रूप से ईट-पत्थरों से किया गया था किंतु धर्मेतर भवनों
के निर्माण में विकारी वस्तुओं का प्रयोग किया गया था। यह भी याद रखा जाना चाहिए
कि यह संरचनाएं अपेक्षाकृत बड़ी थी और इनका प्रयोग अनुष्ठानिक कार्यों के लिए नहीं
किया जाता था। अतः क्षेत्र में सर्वाधिक विशाल संरचना राजा का भवन है। किंतु
पुरातत्वविदों को इसके राजकीय आवास होने का कोई सुनिश्चित साक्ष्य उपलब्ध नहीं हुआ
है।
इसमें
दो सर्वाधिक प्रभावशाली मंच है जिन्हें सामान्य रूप से सभा मंडप और महानवमी डिब्बा
के नाम से जाना जाता है। सभा मंडप एक ऊंचा मंच है इसमें लकड़ी के स्तंभों के लिए
पास- पास और निश्चित दूरी पर छेद बनाए गए हैं। इन स्तंभों पर दूसरे मंजिल को
टिकाया गया था। दूसरी मंजिल तक पहुंचने के लिए सीढ़ी का निर्माण किया गया था।
शहर
में मुख्य स्थापत्य थे महानवमी डिब्बा,
लोटस महल अथवा कमल महल जो सर्वाधिक सुंदर भवन था, परिषद भवन, विशाल फीलखाना
(हाथियों के रहने का स्थान) तथा हजार राम मंदिर जो अत्यधिक सुंदर मंदिर था।
परंतु
कुछ विद्वानों का विचार है कि इस स्थान पर इतनी विशाल संख्या में मंदिर मिले हैं
कि इसे शाही केंद्र का नाम देना उचित प्रतीत नहीं होता है। किंतु यदि हम निष्पक्षता
पूर्वक तथ्यों का अध्ययन करते हैं तो यह भली-भांति स्पष्ट हो जाता है कि शाही
केंद्र शब्द शहर के एक भाग विशेष के लिए प्रयोग किया जाना सही है। हमें याद रखना
चाहिए कि धर्म और धार्मिक वर्गों की विजयनगर साम्राज्य की राजनीतिक, सामाजिक और
आर्थिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका थी। धर्म की कठोर सिद्धांत विजयनगर साम्राज्य
का एक प्रमुख विशेषता था।
अतः हम
कह सकते हैं कि विजयनगर के शासक अपना संबंध देवी-देवताओं से जोड़कर लोगों में अपना
प्रभाव स्थापित करना चाहते थे इसलिए शाही केंद्र में अनेक मंदिरों का निर्माण किया
गया था।
2. विट्ठल मंदिर तथा विरुपाक्ष मंदिर की स्थापत्य कला पर प्रकाश डालें!
उत्तर-
विजयनगर में बड़े पैमाने पर मूर्तियों तथा मंदिरों का निर्माण कराया गया। मंदिर
स्थापत्य राजकीय सत्ता की पहचान थी,
जिन्होंने विशाल संरचनाओं का निर्माण कराया । इसका सबसे अच्छा उदाहरण राय
गोपुरम अथवा राजकीय प्रवेश द्वार थे जो अक्सर केंद्रीय देवालयों की मीनारों को
बौना प्रतीत कराते थे और दूर से ही मंदिर होने का संकेत देते थे। यह संभवतः शासकों
की ताकत का एहसास भी दिलाते थे क्योंकि वह इतनी ऊंची मीनारों के निर्माण के लिए
आवश्यक साधन तकनीक तथा कौशल जुटाने में सक्षम थे। अन्य विशिष्ट अभिलक्षणों में
मंडप और लंबे स्तंभों वाले गलियारे जो अक्सर मंदिर परिसर में स्थित देवस्थलों के
चारों ओर बने हुए थे, सम्मिलित
हैं जिसमें विरुपाक्ष मंदिर और विट्ठल मंदिर प्रमुख है।
विरुपाक्ष
मंदिर का निर्माण कई शताब्दियों में हुआ था। इसका सबसे प्रसिदध मंदिर नवीं दसवीं
शताब्दीयों का है। विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के बाद इसे और अधिक बड़ा दिया गया
। मुख्य मंदिर के सामने बना मंडप कृष्णदेव राय ने अपने राज्यारोहण के उपलक्ष्य में
बनवाया था। इसे सूक्ष्मता से उत्कीर्णित स्तंभों से सजाया गया था। पूर्वी गोपुरम
के निर्माण का श्रेय भी उसे ही दिया जाता है। मंदिर के सभागारों का प्रयोग विविध
प्रकार के कार्यों के लिए होता था। सभागारों का प्रयोग देवी- देवताओं के विवाह के
अवसर पर आनंद मनाने और कुछ अन्य देवी- देवताओं को झूला झुलाने के लिए होता था। इन
अवसरों पर विशिष्ट मूर्तियों का प्रयोग होता था। यह छोटे केंद्रीय देवालयों में
स्थापित मूर्तियों से भिन्न होती थी।
दूसरा
देवस्थाल विट्ठल मंदिर था,
जहां के प्रमुख देवता विट्ठल थे। सामान्यतः महाराष्ट्र में पूजे जाने वाले
विष्णु के एक रूप है। इस देवता की पूजा कर्नाटक में आरंभ करन उन माध्यमों का
द्योतक है जिनसे एक साम्राज्यिक संस्कृति के निर्माण के लिए विजयनगर के शासकों ने
अलग-अलग परंपराओं को आत्मसात किया। अन्य मंदिरों की तरह ही इस मंदिर में भी कई
सभागार तथा रथ के आकार का अनूठा मंदिर भी है। मंदिर परिसर की एक विशेषता रथ गलियां
है जो मंदिर को गोपुरम से सीधी रेखा में जाती हैं । इन गलियों का फर्श पत्थर के
टुकड़ों से बनाया गया था और इनके दोनों ओर स्तंभ वाले मंडप थे जिनमें व्यापारी
अपनी दुकानें लगाया करते थे।
जिस
प्रकार नायकों ने किलेबंदी की परंपराओं को जारी रखा तथा उसे और अधिक व्यापक बनाया
वैसे ही उन्होंने मंदिरों के निर्माण की परंपराओं को कायम रखा। कुछ दर्शनीय गोपुरम
का निर्माण भी स्थानीय नायकों द्वारा किया गया।
3. कमल महल और हाथियों के अस्तबल जैसे भवनों का स्थापत्य हमें उनके बनवाने
वाले शासकों के विषय में क्या बताता है?
उत्तर-
राजकीय केंद्र के सबसे सुंदर भवनों में एक लोटस महल है जिसका यह नामकरण 19वीं शताब्दी के
अंग्रेज यात्रियों ने किया था। विजयनगर के लगभग सभी शासकों की स्थापत्य कला में
विशेष रुचि थी। मध्यकालीन अधिकांश राजधानियों के समान विजयनगर की संरचना में भी
विशिष्ट भौतिक रूप-रेखा तथा स्थापत्य शैली परिलक्षित होती है। पर्वत श्रृंखलाओं के
मध्य स्थित विजयनगर एक विशाल शहर था। इसमें अनेक भव्य महल, सुंदर आवास-
स्थान, उपवन
और झीलें थीं जिनके कारण नगर देखने में अत्यधिक आकर्षक एवं मनमोहक लगता था। बस्ती
के दक्षिण पश्चिमी भाग में शाही केंद्र स्थित था जिसमें अनेक महत्वपूर्ण भवनों को
बनाया गया था। लोटस महल अथवा कमल महल और हाथियों का अस्तबल इसी प्रकार की दो
महत्वपूर्ण संरचनाएं थी। इन दोनों संरचनाओं से हमें उनके निर्माता, शासकों की
अभिरुचियों एवं नीतियों के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलती है। शाही केंद्र के
महलों में सर्वाधिक सुंदर कमल महल था ।
यह
नामकरण महल की सुंदरता एवं भव्यता से प्रभावित होकर अंग्रेज यात्रियों द्वारा किया
गया था। स्थानीय रूप से इस महल को 'चितरंजनी' महल के नाम से
जाना जाता है। यह दो मंजिलों वाला एक खुला चौकोर मंडप है। नीचे की मंजिल में पत्थर
का एक सुसज्जित अधिष्ठान है। ऊपर की मंजिल में लड़कियों वाले कई सुंदर झरोखे हैं।
कमल महल में 9 मीनारें
थीं। बीच में सबसे ऊँची मीनार थी और 8
मीनारें उसकी भुजाओं के साथ-साथ थीं। महल की मेहराबों में इंडो- इस्लामिक
तकनीकों का स्पष्ट प्रभाव था,
जो विजयनगर शासकों की धर्म सहनशीलता की नीति का परिचायक है।
संभवतः यह एक परिषद भवन था, जहां राजा और उसके परामर्शदाता विचार-विमर्श के लिए मिलते थे। हाथियों का विशाल फीलखाना ( हाथियों का अस्तबल अथवा रहने का स्थान) कमल भवन के समीप ही स्थित था। फीलखाना की विशालता से स्पष्ट होता है कि विजयनगर के शासक अपनी सेना में हाथियों को अत्यधिक महत्व देते थे। उनकी विशाल एवं सुसंगठित सेना में हाथियों की पर्याप्त संख्या थी। फीलखाना की स्थापत्य कला शैली पर इस्लामी स्थापत्य कला शैली का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। इसके निर्माण में भारतीय इस्लाम स्थापत्य कला शैली का अनुसरण किया गया है। इसमें यह भी स्पष्ट होता है कि विजयनगर के शासक धार्मिक दृष्टि से उदार एवं सहनशील थे।