Class 12 History अध्याय-6 भक्ती परम्पराएँ धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ (आठवीं से अठारवीं सदी तक)Question Bank-Cum-Answer Book

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प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

Class - 12

इतिहास (History)

अध्याय-6 भक्ती परम्पराएँ धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ 

(आठवीं से अठारवीं सदी तक)

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Question)

1. प्रारंभिक भक्ति आंदोलन के उत्पत्ति कहां से हुई?

A. पूर्वी भारत

B. पश्चिमी भारत

C. दक्षिणी भारत

D. उत्तरी भारत कहां

2. उस भक्ति परंपरा को बताइए जिसने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया?

A. अलवर

B लिंगायत

C. नयनार

D. जंगम

3. पद्मावत किसकी रचना है?

A. कबीर

B. तुलसीदास

C. अमीर खुसरो

D. मलिक मोहम्मद जायसी

4. अमूर्त, निराकार ईश्वर की उपासना करने वाले भक्तों को कहते हैं?

A. सगुण

B. निर्गुण

C. वैष्णव

D. शैव

5. प्राचीनतम भक्ति आंदोलन का नेतृत्व किसने किया था?

A. अलवर और लिंगायत

B. अलवार और नयनार

C. नयनार और पुरवार

D. नयनार और लिंगायत

6. गुरु नानक का जन्म कब हुआ?

A. 1469 ई.

B. 1478 ई.

C. 1479 ई.

D. 1468

7. विट्ठल को भगवान के किस अवतार के रूप में जाना जाता है?

A. ब्रह्मा

B. विष्णु

C. शिव

D. गणेश

8. अवरो द्वारा रचित प्रमुख संकलन था?

A. नलयिरा - दिव्यप्रबंधम

B. शिल्पादिकारम

C. नलयिरा- पुरबंधम

D. अमुक्तमाल्यद

9. पीर का अर्थ है?

A. ईश्वर

B. गुरु

C. उलेमा

D. मौलवी

10. गैर-मुसलमानों को कौन सा धार्मिक कर देना पड़ता था?

A. जकात

B. खराज

C. जजिया

D. खुम्स

11. शेख मोइनुद्दीन चिश्ती का दरगाह कहां है ?

A. दिल्ली

B. पटना

C. अजोधन

D. अजमेर

12. शेख निजामुद्दीन औलिया का दरगाह कहां है?

A. दिल्ली

B. पटना

C. अजोधन

D. अजमेर

13. कबीर के दोहे कहां संकलित है?

A. गुरु ग्रंथ साहिब

B. पद्मावत

C. बीजक

D. सूरसागर

14. असम में भक्ति आंदोलन का प्रचार-प्रसार किसने किया?

A. कबीर

B. नामदेव

C. नरसिंह मेहता

D. शंकरदेव

15. मीराबाई का संबंध किस राज्य से था?

A. असम

B. उत्तर प्रदेश

C. राजस्थान

D. बिहार

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1. सगुण भक्ति परंपरा क्या है ?

उत्तर - शिव, विष्णु तथा उनके अवतार एवं देवियों की आराधना जाती है एवं इनकी मूर्त रूप में पूजा की जाती है। सगुण भक्ति परंपरा कहलाता है।

2. निर्गुण भक्ति परंपरा क्या है?

उत्तर- निर्गुण भक्ति परंपरा में अमूर्त, निराकार ईश्वर की उपासना

3. सर्वप्रथम भक्ति आंदोलन को शुरू करने वाले कौन थे?

उत्तर- सर्वप्रथम भक्ति आंदोलन को शुरू करने वाले अलवार और नयना संत थे।

4. किस तमिल ग्रंथ को तमिल वेद कहा जाता है?

उत्तर- नलयिरादिव्य प्रबंधम

5. दो भक्ति स्त्री संतों के नाम बताइए?

उत्तर- अंडाल और कराईकाल अम्मैयार

6. भक्ति के निर्गुण धारा के दो संतों के नाम बताएं?

उत्तर- कबीर और नानक

7. भक्ति आंदोलन के प्रवर्तक कौन थे?

उत्तर- रामानुजाचार्य

8. चिश्ती संप्रदाय की भारत में स्थापना किसने की थी?

उत्तर- शेख मोइनुद्दीन चिश्ती

9. खानकाह क्या है?

उत्तर- सूफी संतों के निवास स्थल को खानकाह कहते हैं।

10. खालसा पंथ की नींव किसने डाली थी? सिखों के पाँच प्रतीक क्या है?

उत्तर- गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की नींव डाली थी। सिखों 5 प्रतीक निम्न है - केश, कृपाण, कच्छा, कंघा और लोहे का कड़ा।

लघु प्रश्नोत्तर

1. भक्ति आंदोलन की प्रमुख विशेषताएं क्या है?

उत्तर- भक्ति आंदोलन गुरु की श्रेष्ठता और हिंदू मुस्लिम एकता पर विशेष बल दिया। भक्ति आंदोलन के प्रवर्तक अनेक सामाजिक कुरीतियां मूर्ति पूजा एवं जाति भेद की भावनाओं का विरोध करते थे। ऐसी स्थिति में विचार को एवं संतों ने हिंदू धर्म की कुरीतियों को दूर करने के लिए एक अभियान प्रारंभ किया जिसे भक्ति आंदोलन कहते हैं। इन की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

1. एक ईश्वर में आस्था- एक ईश्वर है वह सर्वशक्तिमान है।

2. बाह्य आडंबरओं का विरोध- भक्ति आंदोलन के संतों ने कर्मकांड का खंडन किया। सच्ची भक्ति से मोक्ष ईश्वर की प्राप्ति होती है।

3. सन्यास का विरोध- भक्ति आंदोलन के अनुसार यदि सच्ची भक्ति ईश्वर में है तो गृहस्थ में ही मोक्ष मिल सकता है।

4. वर्ण व्यवस्था का विरोध- भक्ति आंदोलन के प्रवर्तको ने वर्ण व्यवस्था का विरोध किया है ईश्वर के अनुसार सभी एक हैं।

5. मानव सेवा पर बल - भक्ति आंदोलन के समर्थकों ने यह माना कि मानव सेवा सर्वपरी है इससे मुक्ति मिल सकता है।

6. हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रयास- भक्ति आंदोलन के द्वारा सतो ने लोगों को यह समझाया कि राम रहीम में कोई अंतर नहीं है।

7. स्थानीय भाषाओं में उपदेश- संतो ने अपना उपदेश स्थानीय भाषाओं में दिया। भक्तों ने इसे सरलता से ग्रहण किया।

8. गुरु के महत्व में वृद्धि- भक्ति आंदोलन के संतों ने गुरु एवं शिक्षक के महत्व पर बल दिया। गुरु ही ईश्वर के रहस्य को सुलझाने एवं मोक्ष प्राप्ति प्राप्ति में सहायक होता है। समर्पण की भावना से सत्य का साक्षात्कार एवं मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।

9. समानता की भावना- ईश्वर के समक्ष सब लोग सामान है। ईश्वर सत्य है। सभी जगह विद्यमान है। उसमें भेदभाव नहीं है। यही भक्ति मार्ग का सही रास्ता है।

2. चर्चा कीजिए कि अलवार, नयनार और वीरशैवो ने किस प्रकार जाति प्रथा की आलोचना की?

उत्तर- अलवार, नयनार और वीरशैव दक्षिण भारत में उत्पन्न सम्प्रदाय थी। इनमें अलवार नयनार तमिलनाडु से संबंध रखते थे। जबकि वीरशैव कर्नाटक से संबंध रखते थे। इन्होंने जाति प्रथा के बंधनों का अपने-अपने ढंग से विरोध किया।

अलवार और नयनार संतो ने जाति प्रथा व ब्राह्मणों की प्रभुता के विरोध में आवाज उठाई। यह बात सत्य प्रतीत होती है क्योंकि भक्ति सत विभिन्न समुदायों से थे जैसे ब्राह्मण, शिल्पकार, किसान और कुछ तो उन जातियों से आए थे जिन्हें अस्पृश्य माना जाता था। अलवार और नयनार संतों की रचनाओं को वेद जितना महत्वपूर्ण बताया गया है। जैसे अलवार संतों की मुख्य काव्य संकलन नालयिरा दिव्य प्रबंधम का वर्णन तमिल वेद के रूप में किया जाता था। इस प्रकार इस ग्रंथ का महत्व संस्कृत के चारों वेदों उतना महत्वपूर्ण बताया गया है जो ब्राह्मणों द्वारा पोषित थे।

वीरशैव ने भी जाति की अवधारणा का विरोध किया। उन्होंने पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानने से इनकार कर दिया। ब्राह्मण धर्म शास्त्रों में जिन आचारों को अस्वीकार किया गया था जैसे - वयस्क विवाह और विधवा पुनर्विवाह, वीरशैवो ने उन्हें मान्यता प्रदान की। इन सब कारणों से ब्राह्मणों जिन समुदायों के साथ भेदभाव किया, वे वीरशैवो के अनुयायी हो गए। वीरशैवो नें संस्कृत भाषा को त्याग कर कन्नड़ भाषा का प्रयोग शुरू किया।

3. क्यों और किस तरह शासकों ने नयनार और सूफी संतों से अपने संबंध बनाने का प्रयास किया?

उत्तर- चोल शासकों ने नयनार संतो के साथ संबंध बनाने पर बल दिया और उनका समर्थन हासिल करने का प्रयत्न किया। अपने राजस्व के पद को दैवीय स्वरूप प्रदान करने और अपनी सत्ता के प्रदर्शन के लिए चोल शासकों ने सुंदर मंदिरों का निर्माण कराया और उनमें पत्थर तथा धातु से बनी मूर्तियां स्थापित कराई। इस प्रकार लोकप्रिय संत कवियों की परिकल्पना को जो जन भाषाओं में गीत रचते व गाते थे, मूर्त रूप प्रदान किया गया। चोल शासकों ने तमिल भाषा शैव भजनों का गायन मंदिरों में प्रचलित किया।

परांतक प्रथम ने संत कवि अप्पार संबंदर और सुंदरार की धातु प्रतिमाएं एक शिव मंदिर में स्थापित करवाई। इन मूर्तियों को मात्र उत्सव के दौरान निकाला जाता था। सूफी संत सामान्यता सत्ता से दूर रहने की कोशिश करते थे किंतु यदि कोई शासक बिना मांगे अनुदान या भेंट देता था तो वे उसे स्वीकार करते थे। कई सुल्तानों ने खानकाओं को कर मुक्त भूमि इनाम में दे दी और दान संबंधी न्यास स्थापित किए। सूफी संत अनुदान में मिले धन और सामान का इस्तेमाल जरूरतमंदों के खाने, कपड़े एवं रहने की व्यवस्था तथा अनुष्ठानों के लिए करते थे। शासक वर्ग इन संतों की लोकप्रियता, धर्म निष्ठा और विद्वत्ता के कारण उनका समर्थन हासिल करना चाहते थे।

4. चिश्ती सिलसिला का संक्षेप में उल्लेख करें?

उत्तर भारत में चिश्ती सिलसिले का संस्थापक ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को माना जाता है। उनके उत्तराधिकारियों ख्वाजा बख्तियार काकी, बाबा फरीद, हजरत निजामुद्दीन औलिया, हजरत अलाउद्दीन साबिर, नसरुद्दीन चिराग-ए- दिल्ली ने उत्तरी भारत में इस संप्रदाय को लोकप्रिय बनाया।

दक्षिण में शेख बुरहानुद्दीन गरीब और गेसूदराज ने इसका प्रचार किया। चिश्ती सूफियों से सादा जीवन एवं संगीत को बहुत अधिक महत्व दिया। सीधी-सादी हिंदी भाषा में संगीत- सभाओं द्वारा वे जनमानस को आकृष्ट करने में सफल हुए। चिश्ती संप्रदाय के सिद्धांत उसकी लोकप्रियता का प्रमुख कारण था।

चिश्ती सूफी सिद्धांत संयमपूर्ण जीवन व्यतीत करना, निर्धनता में विश्वास रखना, धन एवं संपत्ति से घृणा करना, अमीरों, सामंतो एवं राजाओं से संपर्क नहीं रखना, मानव सेवा करना, ईश्वर में विश्वास करना, खानकाओं की स्थापना करना और धार्मिक सहिष्णुता का पालन करना था।

5. बे- शरिया और बा- शरिया सूफी परंपरा के बीच एकरूपता और अंतर दोनों को स्पष्ट कीजिए?

उत्तर- शरिया मुसलमानों को निर्देशित करने वाला कानून है। यह कुरान शरीफ और हदीस पर आधारित है। सरिया का पालन करने वाले को बा- शरिया और शरिया की अवहेलना करने वालों को बे- शरिया कहा जाता था।

बा- शरिया और वे शरिया सूफी परंपरा के बीच एकरूपता:-

1. दोनों सिलसिले एकेश्वर में विश्वास करते थे। उनके अनुसार अल्लाह एक है। वह सर्वोच्च शक्तिशाली और सर्व व्यापक है।

2. दोनों अल्लाह के सामने आत्मसमर्पण पर बल देते थे।

3. दोनों पीर अथवा गुरु को अत्यधिक महत्व देते थे।

4. दोनों इबादत अर्थात उपासना पर अत्यधिक बल देते थे। उनके अनुसार अल्लाह की इबादत करने से ही मनुष्य संसार से मुक्ति पा सकता था।

अंतर:-

1. बा-शरिया सिलसिले शरिया का पालन करते थे, किंतु बे-शरिया, शरिया में बंधे हुए नहीं थे।

2. बा- शरिया सूफी संत खानकाहो में रहते थे। खानकाह एक पारसी शब्द है जिसका अर्थ है- आश्रम । खानकाह पीर (सूफी संत अर्थात गुरु) अपने मुरीदो अर्थात शिष्यों के साथ रहता था । खानकाह का नियंत्रण शेख, पीर अथवा मुरीद के हाथ में होता था ।

3. बे-शरिया सूफी संत खानकाह का तिरस्कार करके रहस्यवादी एवं फकीर की जिंदगी व्यतीत करते, उन्हें कलंदर मदारी मलंग हैदरी आदि नामों से जाना जाता था।

4. बा-शरिया सूफी संत गरीबी का जीवन व्यतीत करने में विश्वास नहीं करते थे। उनमें से अनेक से सल्तनत की राजनीति में भाग लिया और सुल्तानों एवं अमीरों से मेल-जोल स्थापित किया। ऐसे सूफी संत कभी- कभी दरबारी पद भी स्वीकार कर लेते थे।

6. मीराबाई कौन है? भक्ति आंदोलन में मीराबाई को महत्वपूर्ण स्थान क्यों प्राप्त है?

उत्तर- मीराबाई लगभग 15 वीं - 16 वी सदी में भक्ति परंपरा की सबसे सुप्रसिद्ध कवयित्री थी। उनकी जीवनी उनके लेख भजनों के आधार पर संकलित की गई है जो शताब्दियों तक मौखिक रूप से संप्रेषित होते रहे हैं।

मीराबाई मारवाड़ के मेड़ता जिले की एक राजपूत राजकुमारी थी जिनका विवाह उनकी इच्छा के विरुद्ध मेवाड़ के सिसोदिया कुल में कर दिया गया। उन्होंने अपने पति की आज्ञा की अवहेलना करते हुए पत्नी और मां के परंपरागत दायित्व को निभाने से इनकार किया और विष्णु के अवतार कृष्ण को अपना एकमात्र पति स्वीकार किया। मीराबाई के ससुराल वालों ने उन्हें विष देने का प्रयत्न किया किंतु वह राजभवन से निकलकर एक घुमक्कड़ गायिका बन गई।

उन्होंने अंतर्मन की भावना प्रवणता को व्यक्त करने वाले अनेक गीतों की रचना की। कुछ परंपराओं के अनुसार मीरा के गुरु रैदास थे जो एक चर्मकार थे। इससे पता चलता है कि मीरा ने जातिवादी समाज की रूढ़ियों का उल्लंघन किया।

ऐसा माना जाता है कि अपने पति के राजमहल के सुख को त्याग कर उन्होंने विधवा के सफेद वस्त्र अथवा सन्यासिनी के जोगिया वस्त्र धारण किए हालांकि मीराबाई के आसपास अनुयायियों का जमघट नहीं लगा और उन्होंने किसी निजी मंडली की नींव नहीं डाली लेकिन फिर भी वह शताब्दियों से प्रेरणा के स्रोत रही है। अनेक रचित पद आज भी स्त्रियों और पुरुषों द्वारा गाए जाते हैं। खासतौर से गुजरात एवं राजस्थान के गरीब लोग द्वारा इन्हें खूब गाया और सुना जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. कबीर और बाबा गुरु नानक के मुख्य उपदेशों का वर्णन कीजिए, इन उपदेशों का किस तरह संप्रेषण हुआ।

उत्तर- कबीर के मुख्य उपदेश निम्नलिखित हैं:-

1. कबीर के अनुसार परम सत्य अथवा परमात्मा एक हैं। भले ही विभिन्न संप्रदायों के लोग उसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं।

2. उन्होंने परमात्मा को निरंकार बताया।

3. उनके अनुसार भक्ति के माध्यम से मोक्ष अर्थात मुक्ति प्राप्त हो सकती है।

4. उन्होंने हिंदुओं तथा मुसलमानों दोनों के धार्मिक आडंबरों का विरोध किया।

5. उन्होंने जाति पाती, भेदभाव, ऊंच-नीच, छुआछूत आदि का विरोध किया।

कबीर ने अपने विचारों को काव्य की आम बोलचाल की भाषा में व्यक्त किया जिसे आसानी से समझा जा सकता था। उनके देहांत के बाद उनके अनुयायियों ने अपने प्रचार प्रसार द्वारा उनके विचारों का संप्रेषण किया।

बाबा गुरु नानक के मुख्य उपदेश:-

1. उन्होंने निर्गुण भक्ति का प्रचार किया।

2. धर्म के सभी बाहरी आडंबर को उन्होंने अस्वीकार किया। जैसे यज्ञ, अनुष्ठानिक स्नान, मूर्ति पूजा व कठोर तप।

3. उन्होंने हिंदू और मुसलमानों के धर्म ग्रंथों को भी नकारा।

4. उन्होंने रब की उपासना के लिए एक सरल उपाय बताया और वह था उनका निरंतर स्मरण व नाम का जाप।

उन्होंने अपने विचार पंजाबी भाषा शब्द के माध्यम से सामने रखें। बाबा गुरु नानक यह शब्द अलग-अलग रागों में गाते थे और उनका सेवक मर्दाना रकाब बजाकर उनका साथ देता था।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि कबीर और बाबा गुरु नानक के उद्देश्यों को लोगों ने हाथों हाथ लिया।

2. उदाहरण सहित विश्लेषण कीजिए कि क्यों भक्ति और सूफी चिंतकों ने अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया?

उत्तर- यह सत्य है कि भक्ति और सूफी चिंतकों ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया। वास्तव में भक्ति और सूफी चिंतक देश के विभिन्न भागों से संबंधित थे। वे किसी भाषा विशेष को पवित्र नहीं मानते थे। उनका प्रमुख उद्देश्य जन सामान्य को मानसिक शांति एवं सद्भावना प्रदान करना था। अतः वे अपने विचारों को जनसामान्य तक उनकी अपनी भाषा में पहुंचाना चाहते थे । यही कारण था कि उन्होंने अपने उद्देश्यों में स्थानीय भाषाओं का प्रयोग किया। तमिलनाडु के अलवार (विष्णु के भक्त ) और नयनार (शिव के भक्त 1) संतो ने अपने विचार जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए स्थानीय भाषा का प्रयोग किया। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते हुए तमिल में अपने इष्ट देव की स्तुति में भजन गाते थे।

उल्लेखनीय है कि अलवार और नयनार संत विभिन्न जातियों से संबंधित थे। उनमें से कुछ ब्राह्मण थे, कुछ किसान कुछ शिल्पकार और कुछ तथाकथित अस्पृश्य जातियों से भी संबंधित थे, जिन्हें वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत सबसे निचले स्थान पर रखा गया था। उन्होंने ईश्वर के प्रति व्यक्तिगत प्रेम तथा भक्ति के संदेश को स्थानीय भाषाओं द्वारा दक्षिण भारत के विभिन्न भागों में फैलाया। उदाहरण के लिए अलवार संतो के एक मुख्य काव्य संकलन नालयिरा दिव्य - प्रबंधम को तमिल वेद कहा जाता है। इसी प्रकार नयनार परंपरा की उल्लेखनीय स्त्री भक्त कराईकाल अम्मैयार ने जन भाषा में भक्ति गीतों की रचना करके जनमानस पर अमिट प्रभाव छोड़ा।

उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन के मुख्य प्रचारकों ने भी अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए विभिन्न भाषाओं को प्रयोग किया। उन्होंने किसी भाषा विशेष को पवित्र नहीं माना और अपने विचार जनसामान्य की भाषा में प्रकट किए। उदाहरण के लिए कबीर ने अपने पदों में अनेक भाषाओं एवं बोलियो का प्रयोग किया। उन्होंने अपने विचारों को प्रकट करने के लिए हिंदी, पंजाबी, फारसी, ब्रज , अवधी एवं स्थानीय बोलियों के अनेक शब्दों का प्रयोग किया है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भक्ति संतों ने एवं सूफी संतो ने अपने विचारों एवं उद्देश्यों को लोगों तक पहुंचाने के लिए किसी एक विशेष भाषा को तवज्जो ना देकर लोगों के स्थानीय बोली- भाषा का प्रयोग किया।

3. शेख निजामुद्दीन औलिया की खानकाह के सामाजिक जीवन के विषय में क्या जानकारी मिलती है? क्या खानकाह सामाजिक जीवन का केंद्र बिंदु थे? चर्चा करें।

उत्तर- शेख निजामुद्दीन औलिया की खानकाह से कई महत्वपूर्ण तथ्य को जानने में सहायता मिलती है। यह खानकाह सामाजिक जीवन का केंद्र बिंदु था । यह खानकाह दिल्ली शहर की बाहरी सीमा पर यमुना नदी के किनारे ग्यासपुर में था। यहां कई छोटे-छोटे कमरे और एक बड़ा हॉल जमातखाना था जहां सहवासी और अतिथि रहते और उपवास करते थे। सहवासियों में शेख का अपना परिवार ,सेवक और अनुयाई थे। शेख एक छोटे कमरे में छत पर रहते थे जहां वह मेहमानों से सुबह-शाम मिला करते थे आंगन एक गलियारे से घिरा होता था और खानकाह को चारों ओर से दीवार घेरे रहती थी। एक बार मंगोल आक्रमण के समय पड़ोसी क्षेत्र के लोगों ने खानकाह में शरण ली। यहां एक सामुदायिक रसोई (लंगर) फुतूह( बिना मांगे खैर ) पर चलती थीं। सुबह से देर रात तक सब तबके के लोग सिपाही, गुलाम, गायक, व्यापारी कवि राहगीर धनी और निर्धन, हिंदू जोगी और कलंदर यहां अनुयाई बनने इबादत करने, ताबीज लेने अथवा विभिन्न मसलों पर शेख की मध्यस्थता के लिए आते थे ।

कुछ अन्य मिलने वालों में अमीर हसन रिजवी और अमीर खुसरो जैसे कवि तथा दरबारी इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी जैसे लोग शामिल थे। इन सभी लोगों ने शेख के बारे में लिखा- किसी के सामने झुकना, मिलने वालों को पानी पिलाना, दीक्षितों के सर का मुंडन तथा यौगिक व्यायाम आदि व्यवहार इस तथ्य के पहचान थे कि स्थानीय परंपराओं को आत्मसात करने का प्रयत्न किया गया है।

शेख निजामुद्दीन ने कई आध्यात्मिक वारिसों का चुनाव किया और उन्हें उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में खानकाह स्थापित करने के लिए शेख का यश चारों ओर फैल गया। उनकी तथा उनके आध्यात्मिक पूर्वजों की दरगाह पर अनेक तीर्थयात्री आने लगे।

JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)

विषय सूची

भाग - 1

अध्याय क्रमांक

अध्याय का नाम

1.

ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ हड़प्पा सभ्यता

2.

राजा, किसान और नगर आरंभिक, राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ ( लगभग 600 ई.पू. 600 ईसवी)

3.

बंधुत्व, जाति तथा वर्ग आरंभिक समाज (लगभग 600 ई.पू. 600 ईसवी)

4.

विचारक, विश्वास और इमारतें सांस्कृतिक विकास (लगभग 600 ई.पू. 600 ईसवी)

भाग - 2

5.

यात्रियों के नजरिए समाज के बारे में उनकी समझ (लगभग दसवीं से 17वीं सदी तक )

6.

भक्ति -सूफी परंपराएँ धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ (लगभग 8वीं से 18वीं सदी तक)

7.

एक साम्राजय की राजधानी : विजयनगर (लगभग 14वीं से 16वीं सदी तक )

8.

किसान, जमींदार और राज्य कृषि समाज और मुगल साम्राज्य (लगभग 16वीं और 17वीं सदी तक)

9.

शासक और विभिन्न इतिवृत : मुगल दरबार (लगभग 16वीं और 17वीं सदी तक )

भाग - 3

10.

उपनिवेशवाद और देहात सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

11.

विद्रोही और राज 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

12.

औपनिवेशिक शहर नगर-योजना, स्थापत्य

13.

महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन सविनय अवज्ञा और उससे आगे

14.

विभाजन को समझना राजनीति, स्मृति, अनुभव

15.

संविधान का निर्माण एक नए युग की शुरूआत

Solved Paper of JAC Annual Intermediate Examination - 2023

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