
झारखण्ड
की प्रशासनिक संरचना
15
नवम्बर, 2000 को इस नए पृथक् राज्य के अस्तित्व में आने के बाद यहाँ की राजव्यवस्था
अन्य राज्यों की भाँति जो भारतीय प्रावधानों के स्वरूप पर आधारित है। 28वें राज्य के
रूप में गठित झारखण्ड भारतीय संघ का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
भारतीय
संविधान के अनुसार, यह भारत संघ का एक राज्य है। नए झारखण्ड राज्य में संसदीय
प्रणाली के अनुरूप राजव्यवस्था लागू की गई है। केन्द्र और राज्य में कार्य वितरण
संविधान के प्रावधानों के अन्तर्गत किए गए हैं ।
राज्य सरकार के अंग
>
राज्य सरकार के तीन प्रमुख अंग हैं
(i)
विधायिका
(ii)
कार्यपालिका
(iii)
न्यायपालिका
विधायिका
>
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-170 में सम्बन्धित राज्य में एक विधानसभा होने का प्रावधान
है।
>
झारखण्ड में एक सदनीय (विधानसभा) विधानमण्डल है। झारखण्ड में विधानपरिषद् का प्रावधान
नहीं है। झारखण्ड की विधायिका अपनी पूरी कार्यवाही अन्य राज्यों के समान ही करती है।
विधानसभा
>
झारखण्ड विधानसभा में सदस्यों की कुल संख्या 82 (81 निर्वाचित +1 मनोनीत) है।
>
राज्य की कुल 82 विधानसभा सीटों में से 28 अनुसूचित जनजाति के लिए तथा 9 सीटें अनुसूचित
जाति के लिए आरक्षित हैं, जबकि 44 सीटें सामान्य श्रेणी की हैं ।
>
राज्य में गुमला एवं लोहरदगा दो ऐसे जिले हैं, जिनके सभी विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित
जनजातियों के लिए आरक्षित हैं।
विधानसभा
के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष
>
विधानसभा के निर्वाचित सदस्य अपने में से ही विधानसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुन
करते हैं ।
>
इन्दर सिंह नामधारी राज्य के प्रथम विधानसभा अध्यक्ष एवं वागुन सुम्बई राज्य के प्रथम
विधानसभा उपाध्यक्ष थे।
प्रोटेम
स्पीकर
>
झारखण्ड विधानसभा के प्रथम प्रोटेम स्पीकर डॉ. विशेश्वर खाँ को नियुक्त किया गया था
।
>
झारखण्ड विधानसभा में प्रथम एंग्लो-इण्डियन मनोनीत होने वाले व्यक्ति जोसेफ पेचेली
गालस्टीन थे।
झारखण्ड
विधानसभा के अध्यक्ष
नाम |
कार्यकाल |
1.
इंदर सिंह नामधारी |
22
नवंबर, 2000 से 29 मार्च, 2004 |
बागुन
सुम्बई (कार्यवाहक) |
29
मार्च, 2004 से 29 मई, 2004 |
2.
इंदर सिंह नामधारी |
4
जून, 2004 से 11 अगस्त, 2004 |
3.
मृगेन्द्र प्रताप सिंह |
18
अगस्त, 2004 से 11 जनवरी, 2005 |
सबा
अहमद (कार्यवाहक) |
12
जनवरी, 2005 से 01 मार्च, 2005 |
4.
इंदर सिंह नामधारी |
15
मार्च, 2005 से 14 सितम्बर, 2006 |
5.
आलमगीर आलम |
20
अक्टूबर, 2006 से 26 दिसम्बर, 2009 |
6.
चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह |
6
जनवरी, 2010 से 19 जुलाई, 2013 |
7.
शशांक शेखर भोक्ता |
25
जुलाई, 2013 से 23 दिसम्बर, 2014 |
8.
दिनेश उराँव |
07
जनवरी, 2015 से अब तक 24 दिसंबर, 2019 |
9.
रवीन्द्रनाथ महतो |
07
जनवरी, 2020 से तक तक |
झारखण्ड
विधानसभा के उपाध्यक्षों की सूची
1.
बागुन सुम्बई |
24
अगस्त, 2002-29 मई, 2004 |
2.
सबा अहमद |
19
अगस्त, 2004 06 मार्च, 2005 - |
राज्य
में लोकसभा व राज्यसभा क्षेत्र
>
राज्य में वर्तमान में 14 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं, जिसमें परिसीमन 2008 के तहत
अनुसूचित जनजाति के लिए 5 सीटें (दुमका, खूँटी, लोहरदगा, राजमहल व सिंहभूम) आरक्षित
हैं तथा अनुसूचित जाति के लिए 1 सीट (पलामू) आरक्षित है।
>
राज्य का सबसे बड़ा लोकसभा क्षेत्र पश्चिम सिंहभूम है तथा सबसे छोटा क्षेत्र चतरा है।
राज्य में राज्यसभा की कुल 06 सीटें हैं।
कार्यपालिका
>
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153-167 में कार्यपालिका
के प्रावधानों का वर्णन है।
>
यह विधायिका द्वारा निर्मित कानूनों को कार्यान्वित करने का कार्य करती है।
>
झारखण्ड की कार्यपालिका में राज्यपाल, मुख्यमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद आते हैं।
>
मन्त्रिपरिषद के अन्तर्गत तीन प्रकार के मन्त्री शामिल होते हैं – कैबिनेट मन्त्री,
राज्य मन्त्री ( स्वतन्त्र प्रभार) तथा उपराज्य मन्त्री |
>
कार्यपालिका का संवैधानिक प्रधान राज्य का राज्यपाल होता है, जबकि वास्तविक प्रधान
मुख्यमन्त्री होता है।
राज्यपाल
>
राज्य की कार्यपालिका का संवैधानिक प्रधान राज्यपाल होता है तथा राज्य का पूरा प्रशासन
राज्यपाल के नाम से ही चलाया जाता है।
>
राज्य का संवैधानिक होने के पश्चात् भी राज्यपाल को मन्त्रिपरिषद की सलाह से कार्य
करना होता है, किन्तु उसे कुछ विशेषाधिकार भी प्राप्त हैं।
>
राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, किन्तु राष्ट्रपति उसे 5 वर्ष से पूर्व भी
हटा सकता है।
>
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 से 162 तक में राज्यपाल के कार्य व अधिकार शक्ति को
वर्णित किया गया है।
>
राज्यपाल विधानमण्डल की बैठकों को बुलाता है, उसे स्थगित तथा विघटित कर सकता है।
>
राज्य विधानमण्डल द्वारा स्वीकृत कोई भी विधेयक तब तक कानून नहीं बनाता, जब तक राज्यपाल
अपनी स्वीकृति न दे।
>
संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार, राज्यपाल की सिफारिश पर राष्ट्रपति राज्य में राष्ट्रपति
शासन को स्वीकृति प्रदान करता है।
>
राज्यपाल न्यायालय द्वारा दिए गए दण्ड को क्षमादान, लघुकरण निलम्बन आदि में परिवर्तित
कर सकता है।
>
झारखण्ड में 15 नवम्बर, 2000 को श्री प्रभात कुमार की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रथम
राज्यपाल के रूप में की गई।
>
देश की पहली आदिवासी महिला राज्यपाल दौपद्री मुर्मू है।
झारखण्ड
के राज्यपाल
नाम |
अवधि |
प्रभात
कुमार |
15.11.2000
से 03.02.2002 |
विनोदचन्द्र
पाण्डेय (अतिरिक्त प्रभार) |
04.02.2002
से 14.07.2002 |
एम
रामाजोयिस |
15.07.2002
से 11.06.2003 |
वेद
प्रकाश मारवाह |
12.06.2003
से 09.12.2004 |
सैयद
सिब्ते रजी |
10.12.2004
से 25.07.2009 |
के
शंकर नारायणन |
26.07.2009
से 21.01.2010 |
एम
ओ हसन फारु |
22.01.2010
से 03.09.2011 |
डॉ.
सैयद अहमद |
04.09.2011
से 17.05.2015 |
द्रौपदी
मुर्मू |
18.05.2015
से 06.07.2021 |
रमेश
बैस |
07.07.2021
से अब तक |
मुख्यमन्त्री
>
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार, राज्यपाल को उनके कार्यों में सहायता व
सलाह देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद होता है, जिसका प्रमुख मुख्यमन्त्री कहलाता है।
>
अनुच्छेद 164 के अनुसार, राज्यपाल मुख्यमन्त्री की नियुक्ति करता है। उसका कार्यकाल
5 वर्ष का होता है। मुख्यमन्त्री अपने पद पर तब तक बना रहता है, जब तक उसे विधानसभा
का विश्वास प्राप्त है। मुख्यमन्त्री मन्त्रिपरिषद और राज्यपाल के बीच की कड़ी है ।
संविधान के अनुच्छेद- 167 के अनुसार, राज्य के मुख्यमन्त्री का कर्त्तव्य है कि राज्य
के प्रशासन से सम्बन्धित मन्त्रिपरिषद के सभी निर्णयों और व्यवस्थापन के प्रस्तावों
की सूचना राज्यपाल को दें।
>
राज्य के गठन के पश्चात् अभी तक राज्य कुल 6 व्यक्ति मुख्यमन्त्री बन चुके हैं। राज्य
के प्रथम मुख्यमन्त्री बाबूलाल मराण्डी थे ।
>
राज्य में अब तक कुल 3 बार राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है।
झारखण्ड
के मुख्यमन्त्री
मुख्यमन्त्री |
पदावधि |
बाबूलाल
मराण्डी |
15.11.2000-17.03.2003 |
अर्जुन
मुण्डा |
18.03.2003-01.03.2005 |
शिबू
सोरेन |
02.03.2005-11.03.2005 |
अर्जुन
मुण्डा |
12.03.2005-14.09.2006 |
मधु
कोड़ा |
18.09.2006-23.08.2008 |
शिबू
सोरेन |
27.08.2008-18.01.2009 |
राष्ट्रपति
शासन |
19.01.2009-29.12.2009 |
शिबू
सोरेन |
30.12.2009-31.05.2010 |
राष्ट्रपति
शासन |
01.06.2010-11.09.2010 |
अर्जुन
मुण्डा |
11.09.2010-18.01.2013 |
राष्ट्रपति
शासन |
18.01.2013-12.07.2013 |
हेमन्त
सोरेन |
13.07.2013-28.12.2014 |
रघुबर
दास |
28.12.2014
29.12.2019 |
हेमन्त
सोरेन |
29.12.2019
से अब तक |
मन्त्रिपरिषद
>
राज्य में सुचारु रूप से कार्यपालिका के संचालन के लिए मुख्यमन्त्री एक परिषद् का गठन
करता है, जिसे मन्त्रिपरिषद कहा जाता है ।
>
मन्त्रिपरिषद मुख्यमन्त्री के अपने पद तक बने रहने तक कार्य करती है, मुख्यमन्त्री
बर्खास्त होने या त्यागपत्र देने पर स्वतः ही मन्त्रिपरिषद की समाप्ति हो जाती है ।
>
राज्य में 2003 में हुए 91वें संविधान संशोधन के अनुसार, झारखण्ड में मुख्यमन्त्री
एवं मन्त्रिपरिषद सहित कुल 12 सदस्यों से अधिक संख्या नहीं हो सकती है ।
>
मुख्यमन्त्री के परामर्श से ही राज्यपाल द्वारा मन्त्रिपरिषद अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति
की जाती है।
सचिवालय
>
यह राज्य प्रशासन का मुख्य प्रशासनिक निकाय है। राज्य में प्रशासनिक गतिविधियों से
सम्बन्धित समस्त कार्यों का नीति निर्धारण, निर्देशन एवं कार्यान्वयन यहीं से होता
है।
>
सचिवालय मुख्यमन्त्री तथा मन्त्रिमण्डल के अधीन कार्य करता है।
>
सचिवालय का प्रधान मुख्य सचिव तथा इसके तहत प्रत्येक विभाग का प्रधान सचिव होता है।
>
राज्य के प्रथम मुख्य सचिव विजय शंकर दुबे थे। सचिवालय का कार्य सुचारु रूप से सम्पादित
करने के लिए विशेष सचिव अतिरिक्त सचिव, संयुक्त सचिव, उपसचिव व अवर सचिव होते हैं।
जिनके माध्यम से राज्य में मुख्य सचिव को सहयोग प्राप्त होता है ।
>
झारखण्ड राज्य का प्रशासनिक मुख्यालय रांची में स्थित, जो सचिवालय में है, जो तीन भागों
में बँटा है।
>
इसका मुख्य भाग प्रोजेक्ट भवन एच.ई.सी. हटिया में, दूसरा भाग डोरण्डा स्थित नेपाल हाऊस
में, तीसरा भाग आड्रे हाऊस में स्थित है।
न्यायपालिका
>
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 214 में प्रत्येक राज्य में एक उच्च न्यायालय की व्यवस्था
है।
>
भारतीय संसद को दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की व्यवस्था करने
का अधिकार प्राप्त है ।
>
भारत के 21वें उच्च न्यायालय के रूप में झारखण्ड उच्च न्यायालय का गठन 15 नवम्बर,
2000 को किया गया । यह रांची में अवस्थित है।
>
राज्य के गठन के समय उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 8 थी।
>
वर्तमान में झारखण्ड में मुख्य न्यायाधीश सहित न्यायाधीशों की संख्या 20 है ।
>
वर्तमान में झारखण्ड में न्यायाधीश मुख्य सहित न्यायाधीशों की संख्या 20 है।
>
उच्च न्यायालय के आरम्भिक अधिकार क्षेत्र में तलाक, वसीयत, जल, सेना विभाग, न्यायालय
का अपमान, कम्पनी कानून आदि आते हैं।
>
उच्च न्यायालय की पुष्टि के बिना जिला एवं सेशन जज द्वारा दिया गया मृत्यु दण्ड मान्य
नहीं होता है ।
अधीनस्थ
न्यायालय
>
उच्च न्यायालय के अधीन अधीनस्थ न्यायालयों का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 233-236
में है।
>
झारखण्प्रड के प्रत्येक जिले में एक जिला अदालत
है। जिले के सम्पूर्ण अपील सम्बन्धी क्षेत्राधिकार जिला अदालत के पास होते हैं।
>
जिला अदालत के अधीन मुंसिफ मजिस्ट्रेट, द्वितीय श्रेणी विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत
तथा रेलवे के लिए विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत कार्य करती है ।
>
जिला न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा उच्च न्यायालय के परामर्श
से की जाती है।
झारखण्प्रड
के मुख्य न्यायाधीश
नाम |
कार्यकाल |
विनोद
कुमार गुप्ता |
15
नवम्बर, 2000 से 6 मार्च, 2003 |
पी.
के. आई. बालासुब्रह्मण्यम |
10
मार्च, 2003 से 26 अगस्त, 2004 |
एस.
जे. मुखोपाध्याय (कार्यवाहक) |
26
अगस्त, 2004 से 1 मार्च, 2005 |
अल्तमस
कबीर |
1
मार्च, 2005 से 8 सितम्बर, 2005 |
एस.
जे. मुखोपाध्याय (कार्यवाहक) |
8
सितम्बर, 2005 से 4 दिसम्बर, 2005 |
निलावाय
धनकर |
4
दिसम्बर, 2005 से 10 जून, 2006 |
एम.
के. विनयगम |
11
जून, 2006 से 17 सितम्बर, 2006 |
ज्ञान
सुधा मिश्रा |
13
जुलाई, 2008 से 29 अप्रैल, 2010 |
सुशील
हरकुली (कार्यवाहक) |
30
अप्रैल, 2010 से 21 अगस्त, 2010 |
भगवती
प्रसाद |
22
अगस्त, 2010 से 10 अप्रैल, 2011 |
प्रकाश
तांतिया |
11
अप्रैल, 2011 से 12 नवम्बर, 2013 |
आर
भानुमती |
16
नवम्बर, 2013 से 30 अक्टूबर, 2014 |
विरेन्द्र
सिंह |
1
नवम्बर, 2014 से 24 मार्च, 2017 |
पी.
के. मोहन्टी |
24
मार्च, 2017 से जून, 2017 |
डी.
एन. पटेल (कार्यवाहक) |
जून,
2017 से 4 अगस्त, 2018 |
अनिरुद्ध
बोस |
4
अगस्त, 2018 से 23 मई, 2019 |
डी.
एन. पटेल (कार्यवाहक) |
24
मई, 2019 से 6 जून, 2019 |
प्रशांत
कुमार (कार्यवाहक) |
7
जून, 2019 से 30 अगस्त, 2019 |
हरीश
चन्द्र मिश्रा (कार्यवाहक) |
30
अगस्त, 2019 से 16 नवम्बर, 2019 |
रवि
रंजन |
17
नवम्बर, 2019 से अब तक |
महाधिवक्ता
>
अनुच्छेद 165 के अनुसार, प्रत्येक राज्य में एक महाधिवक्ता का पद सृजित किया गया है,
जिसकी नियुक्ति मुख्यमन्त्री की सलाह पर राज्यपाल करता है।
>
महाधिवक्ता राज्य का उच्चतम विधि अधिकारी होता है। वह राज्य सरकार को विधि सम्बन्धी
विषयों पर सलाह देता है। झारखण्ड के प्रथम महाधिवक्ता मंगलमय बनर्जी थे
लोकायुक्त
>
राज्य में लोकायुक्त पद का सृजन झारखण्ड लोकायुक्त अधिनियम 2001 के अन्तर्गत किया गया।
>
राज्य में लोकपाल की नियुक्ति जनता को उचित प्रशासन सुविधाएँ प्रदान करने के लिए तथा
लोक प्रशासकों के विरुद्ध भ्रष्टाचार आदि से सम्बन्धित शिकायतों की निष्पक्ष जाँच के
लिए की गई है।
>
राज्य के प्रथम लोकायुक्त झारखण्ड उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति लक्ष्मण
उराँव थे, जिनका कार्यकाल 2009 से 2011 तक था।
राज्य में क्षेत्रीय प्रशासन
>
झारखण्ड में क्षेत्रीय प्रशासन की निम्न इकाइयाँ हैं
प्रमण्डल
>
राज्य में क्षेत्रीय प्रशासनिक इकाई का शीर्ष संगठन प्रमण्डल है, जिसका सर्वोच्च पदाधिकारी
कमिश्नर (आयुक्त) होता है। वर्तमान में झारखण्ड में प्रमण्डलों की कुल संख्या 5 है-
है- पलामू, सन्थाल परगना, उत्तरी छोटानागपुर, दक्षिणी छोटानागपुर तथा कोल्हान ।
>
झारखण्ड के गठन के समय प्रमण्डलों की संख्या 4 थी। 5वें प्रमण्डल रूप में कोल्हान का
सृजन बाद में किया गया ।
>
आयुक्त अपने अधिकार क्षेत्र के जिला प्रमुखों के बीच समन्वय एवं निर्देशन का कार्य
करता है, किन्तु यह जिलाधिकारियों एवं उनके अधीनस्थ पदाधिकारियों के दिन-प्रतिदिन के
कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करता है।
जिला
>
जिला, राज्य में क्षेत्रीय प्रशासन की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई होता है।
>
झारखण्ड में जिले के प्रमुख अधिकारी को उपायुक्त (Deputy Commissioner) कहा जाता है,
जो जिले का जिलाधिकारी होता है। इस रूप में वह समन्वयक का कार्य करता है। उपायुक्त,
जब राजस्व संग्राहक के रूप में कार्य करता है, उस समय वह कलेक्टर कहलाता है।
>
जब उपायुक्त जिले में कानून व्यवस्था बनाए रखने का कार्य करता है, तो उस रूप में उसे
जिला दण्डाधिकारी कहा जाता है।
>
जिलाधिकारी, भारतीय प्रशासनिक सेवा का सदस्य होता है। राज्य प्रशासनिक सेवा के सदस्य
भी प्रोन्नत होकर इस पद पर पहुँचते हैं।
>
राज्य के गठन के समय जिलों की संख्या 18 थी।
>
वर्तमान में राज्य में 24 जिले हैं। 23वाँ जिला खूँटी तथा 24वाँ जिला रामगढ़ है।
अनुमण्डल
>
अनेक प्रखण्डों को मिलाकर एक अनुमण्डल का सृजन किया जाता है, जिसका प्रमुख अनुमण्डलीय
पदाधिकारी कहलाता है। इसे मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। यह सामान्यतः राज्य
प्रशासनिक सेवा का अधिकारी होता है।
>
अनुमण्डलीय पदाधिकारी की शक्तियों को तीन भागों में बाँटा गया है – विधि प्रशासन, राजस्व
प्रशासन तथा विकास प्रशासन । यह पदाधिकारी प्रखण्डों के सर्किल ऑफिसरों पर नियन्त्रण
एवं निगरानी रखता है तथा पंचायत समितियों की बैठकों में भाग लेता है साथ ही प्रशासन
एवं समिति के बीच कड़ी का कार्य भी करता है । ।
>
राज्य के गठन के समय कुल अनुमण्डलों की संख्या 33 थी । वर्तमान में राज्य में 45 अनुमण्डल
हैं।
प्रखण्ड
तथा सर्किल
>
राज्य में अनुमण्डल दो – या दो से अधिक राजस्व सर्किलों में बँटे होते हैं। सर्किल
का प्रधान सर्किल अधिकारी होता है। इसके अधीन सर्किल इंस्पेक्टर होता है। सर्किल अधिकारी
पर भू-राजस्व, भू-रिकॉर्ड तथा सरकारी या अधिगृहीत भूमि का दायित्व है।
>
कई गाँवों को मिलाकर प्रखण्ड बनता है, जिसके अधिकारी को प्रखण्ड विकास पदाधिकारी
(Block Development Officer, BDO) कहा जाता है ।
>
BDO के अधीन कृषि विकास, प्राथमिक शिक्षा, पशुधन विकास, प्रारम्भिक चिकित्सा व्यवस्था,
राहत तथा पुनर्वास जैसे कार्य आते हैं।
>
BDO राज्य प्रशासनिक सेवा का अधिकारी होता है। जो प्रखण्डों का प्रमुख अधिकारी होता
है।
>
प्रखण्ड के नीचे गाँव होते हैं, जिनका स्थानीय स्वशासन होता है तथा प्रखण्ड विकास पदाधिकारी
व सर्किल ऑफिसर इसमें सहयोग करते हैं।
राज्य के प्रमुख आयोग
>
झारखण्ड के प्रमुख आयोगों का वर्णन निम्न है
झारखण्ड
लोक सेवा आयोग
>
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315 के अनुसार संघ/ राज्य में एक लोक सेवा आयोग के गठन
का प्रावधान किया गया है।
>
राज्य में लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा की जाती है। आयोग
के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष या 62 वर्ष की उम्र तक दोनों में जो भी पहले होता है।
>
राज्य में लोक सेवा आयोग का गठन जनवरी, 2002 में हुआ, जिसमें एक अध्यक्ष तथा आठ अन्य
सदस्यों की नियुक्ति की जाती है।
>
फटिकचन्द्र हेम्ब्रम इस आयोग के प्रथम अध्यक्ष थे।
>
आयोग का मुख्यालय राज्य की राजधानी रांची में है।
झारखण्ड
कर्मचारी चयन आयोग
>
राज्य में समूह ‘ग’ व ‘घ’ के पदों की नियुक्ति हेतु राज्य में वर्ष 2011 में झारखण्ड
कर्मचारी चयन आयोग का गठन सरय राय द्वारा किया गया, जो प्रथम अध्यक्ष थे।
>
इसका गठन झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग अधिनियम 2008 के तहत किया गया, जिसके प्रथम अध्यक्ष
सी. आर. सहाय थे ।
>
आयोग का मुख्यालय रांची में स्थित है, जो कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग
आयोग का प्रशासनिक विभाग है।
राज्य में पंचायती राज व्यवस्था
>
24 अप्रैल, 1993 को हुए संविधान के 73वें संशोधन में पंचायती राज व्यवस्था को शक्ति
प्रदान की गई ।
>
पंचायत से सम्बद्ध बलवन्त राय मेहता समिति की सिफारिशों पर आधारित है। यह संशोधन इस
तथ्य पर बल देता है कि सभी राज्यों के पंचायती राज अधिनियमों में एकरूपता लाई जाए।
>
झारखण्ड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2 सितम्बर, 2005 को झारखण्ड उच्च न्यायालय के
निर्णय के पश्चात् सम्पन्न कराए गए।
>
वर्ष 2010 में झारखण्ड पंचायती राज अधिनियम 2001 के आधार पर राज्य में प्रथम बार त्रिस्तरीय
पंचायत चुनाव कराए गए।
राज्य
में ग्रामीण प्रशासन
>
राज्य में ग्राम सभा, पंचायत समिति व जिला परिषद के रूप में त्रि-स्तरीय पंचायत हैं,
जिसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है
>
ग्राम सभा
>
ग्राम पंचायत पंचायती राज्यव्यवस्था का प्रथम व सबसे निचला स्तर होता है अर्थात् राज्य
की सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई है।
>
इन पंचायतों में महिलाओं के लिए 50% पद आरक्षित हैं।
>
ग्राम पंचायत में मुखिया व उपमुखिया होता है, जिसका कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित है।
पंचायत
समिति
>
झारखण्ड पंचायती राज अधिनियम 2001 के अनुसार, पंचायत समिति प्रखण्ड स्तर का रूप है
।
>
पंचायत समिति का पदेन सचिव प्रखण्ड विकास पदाधिकारी होता है, जब कि पंचायत समिति का
प्रधान प्रमुख होता है, तथा इसका एक सहयोगी उप प्रमुख होता है।
जिला
परिषद्
>
यह पंचायती राजव्यवस्था का सर्वोच्च स्तर है।
>
जिला परिषद् का पदेन सचिव उप विकास आयुक्त होता है, जबकि परिषद का प्रधान अधिकारी अध्यक्ष
तथा उसका एक सहयोगी उपाध्यक्ष होता है।
>
जिला अध्यक्ष जिला परिषद् की बैठक बुलाता है एवं उसकी अध्यक्षता करता है, जबकि सभी
कार्यवाहियों का प्रलेख उप विकास आयुक्त द्वारा किया जाता है।
राज्य में नगरीय प्रशासन
>
झारखण्ड में नगरीय प्रशासन के निम्न तीन स्तर हैं
नगर
निगम
>
राज्य के गठन के समय एकमात्र नगर निगम रांची था, जिसकी स्थापना अविभाजित बिहार के समय
15 सितम्बर, 1979 को हुई थी ।
>
वर्तमान में राज्य में 9 नगर निगम हैं, धनबाद, देवघर, चास, आदित्यपुर, गिरिहीड, हजारीबाग,
मेदनीनगर तथा मानगो |
>
नगर निगम में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि को पार्षद कहा जाता है तथा निगम के अध्यक्ष
व उपाध्यक्ष को क्रमशः महापौर व उपमहापौर कहते हैं, जो जनता द्वारा चुने जाते हैं।
>
रांची नगर निगम को 55 वार्डों में विभाजित किया गया है। निगम का वास्तविक प्रशासनिक
अधिकारी कमिश्नर होता है, जो राज्य सेवा आयोग द्वारा चयनित होता है, इनकी नियुक्ति
झारखण्ड सरकार द्वारा की जाती है।
>
वर्तमान में राज्य में 9 नगर निगम हैं, रांची, धनबाद, देवघर, चास, आदित्यपुर, गिरिडीह,
हजारीबाग, मेदनीनगर एवं मानगो |
नोट
50,000-100,00 आबादी वाले क्षेत्रों में नगर पंचायत का गठन किया जाता है। ये ऐसे
ग्रामीण क्षेत्र होते हैं जहाँ तीव्रता से शहरीकरण हो रहा होता है।
नगरपालिका
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राज्य में नगर निगम के पश्चात् नगरपालिका (नगर परिषद्) होती है, जिसमें छोटे नगरों
की स्थापना की जाती है।
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राज्य में प्रथम बार नगरपालिका रांची को 1869 में बनाया गया था। वर्तमान में झारखण्ड
में 19 नगरपालिका हैं-चतरा, चाईबासा, विश्रामपुर, गुमला, दुमका जुगसलाई, चिरकुण्डा,
गढ़वा, रामगढ़, झुमरीतिलैया, सिमडेगा, पाकुड़, मधुपुर, एवं चक्रधरपुर ।
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नगरपालिका की जनता द्वारा प्रत्येक वार्ड के लिए वार्ड कमिश्नर का चुनाव किया जाता
है।
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नगरपालिका में एक प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी भी होता है।
छावनी
बोर्ड
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इसकी स्थापना वहाँ पर होती है, जहाँ सैन्य छावनियाँ होती हैं। छावनी बोर्ड सीधे तौर
पर भारत सरकार के रक्षा मन्त्रालय के अधीन कार्य करती हैं तथा इस छावनी बोर्ड की कार्यपालिका
नगरपालिकाओं के समान होती हैं ।
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राज्य में एकमात्र छावनी बोर्ड रामगढ़ में स्थापित है।
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इसकी स्थापना संसद के अधिनियम के द्वारा होती है, जिसमें आधे सदस्य निर्वाचित होते
हैं और आधे सदस्य मनोनीत होते हैं।
> इस बोर्ड का पदेन अध्यक्ष कमाण्डिग ऑफिसर होता है, जबकि कार्यकारी अधिकारी केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है ।