हिक्स का मांग सम्बन्धी तार्किक क्रमबद्धता सिद्धान्त (HICKSIAN LOGICAL ORDERING THEORY OF DEMAND)

हिक्स का मांग सम्बन्धी तार्किक क्रमबद्धता सिद्धान्त (HICKSIAN LOGICAL ORDERING THEORY OF DEMAND)
वणिकवाद (MERCANTILIEM)

हिक्स का मांग सम्बन्धी तार्किक क्रमबद्धता सिद्धान्त

(HICKSIAN LOGICAL ORDERING THEORY OF DEMAND)

Q. हिक्स के प्रत्यक्ष संगत परीक्षण की व्याख्या करे तथा उसके आधार पर माँग प्रमेय को व्युत्पादित करें

हिक्स के माँग सिद्धान्त के संशोधन की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डाले

हिक्स के 'रीभीजन ऑफ डिमाण्ड थ्योरी' का विश्लेषण प्रस्तुत करे

उत्तर:- प्रो. हिक्स ने 1956 में अपनी पुस्तक 'A Revision of Demand Theory' प्रस्तुत की जिसमें उन्होंने अपने द्वारा प्रतिपादित तटस्थता वक्र विश्लेषण का त्याग करते हुए मांग सिद्वान्त का संशोधन किया। उनका यह पलायन उनके द्वारा तटस्थता वक्र विचारधारा की कुछ आधारभूत कमियों के कारण आवश्यक हुआ। प्रो. सेम्युअलसन द्वारा विकसित सबल मांग पर आधारित प्रकट अधिमान सिद्धांत ने प्रो. हिक्स का ध्यान दुर्बल मांग पर आधारित वक्र विचारधारा की कमियो की ओर आकर्षित किया, जिसके कारण प्रो. हिक्स प्रो. सेम्युअलसन की प्रकट अधिमान विचारधारा से अत्यधिक प्रभावित हुए। प्रो हिक्स ने प्रकट अधिमान विचारधारा का आधार अर्थमिति दृष्टिकोण होने के कारण प्रो. सेम्युअलसन की विचारधारा को श्रेष्ठ बताया। प्रो. हिक्स ने स्वीकार किया कि उनकी तटस्थता वक्र विश्लेषण की विचारधारा 'अर्थमिति दृष्टिकोण' पर आधारित नहीं है।

सेम्युअलसन का अनुगमन करते हुए प्रो हिक्स भी उपभोक्ता के व्यवहार मे संगति की मान्यता को स्वीकार करते है। उपभोक्ता के व्यवहार में संगति उपस्थित है अथवा असंगति इसकी जाँच को ही प्रो हिक्स ने 'प्रत्यक्ष संगति परीक्षण' का नाम दिया ।

मान्यताएं

(1) उपभोक्ता एक आदर्श उपभोक्ता है जो विवेकपूर्ण व्यवहार करता है।

(2) प्रत्यक्ष संगति परीक्षण में भी वस्तु x तथा सामूहिक वस्तु M (मुद्रा) के संयोगों का ही विश्लेषण किया जाता है।

(3) आदर्श उपभोक्ता की 'अधिमान प्रमाप' अपरिवर्तित रहती है

(4) यह मान लिया जाता है कि वस्तु x की कीमत तथा उपभोक्ता की आय में परिवर्तन होता है

(5) चुनाव की संगति का विश्लेषण करते समय प्रो हिक्स सबल क्रमबद्धता एवं निर्बल क्रमबद्धता दोनो पर विचार करते है।

संगति परीक्षण : संगति अथवा अंसगति की विभिन्न परिस्थितिया

प्रथम परिस्थिति:-

(1) जब दो कीमत आय रेखाओं में से एक दूसरी से पूर्णतया बाहर स्थित हो :-

हिक्स का मांग सम्बन्धी तार्किक क्रमबद्धता सिद्धान्त  (HICKSIAN LOGICAL ORDERING THEORY OF DEMAND)

चित्र में B स्थिति में उपभोक्ता A स्थिति प्राप्त नहीं कर सकता किन्तु A स्थिति में उपभोक्ता A और B दोनों को प्राप्त कर सकता है। अतः चुनाव पूर्णतया संगत है।

द्वितीय परिस्थिति :- 

यदि दो कीमत आय रेखाएं परस्पर एक दूसरे को किसी बिन्दु पर परिच्छेदित करती है- जिसके कारण चार परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती है

(i) दोनो परिस्थितियों में चुनी गई दशाएं प्रतिच्छेद बिन्दु के बाई और स्थित हो :-

हिक्स का मांग सम्बन्धी तार्किक क्रमबद्धता सिद्धान्त  (HICKSIAN LOGICAL ORDERING THEORY OF DEMAND)

चित्र से स्पष्ट है कि उपभोक्ता यदि B स्थिति में संयोग B को चुनता है तथा A स्थिति में संयोग A को चुनता है तब उपभोक्ता के व्यवहार में कोई असंगति नहीं पाई जाती तथा उसका व्यवहार संगत बन जाता है।

(ii) दोनों परिस्थितियों मे चुनी गई दशाएं परिच्छेद बिन्दु के दाई ओर स्थित हो :-

हिक्स का मांग सम्बन्धी तार्किक क्रमबद्धता सिद्धान्त  (HICKSIAN LOGICAL ORDERING THEORY OF DEMAND)

चित्र में संयोग स्थिति A पर संयोग स्थिति B प्राप्य नहीं है और उपभोक्ता A स्थिति में संयोग A को चुनता है। तथा B स्थिति में संयोग B को चुनता है तब उपभोक्ता का व्यवहार संगत होगा।

(iii) दोनो परिस्थितियों में चुनी गई दशाएं प्रतिच्छेद बिन्दु के बाहर स्थित हो :-

हिक्स का मांग सम्बन्धी तार्किक क्रमबद्धता सिद्धान्त  (HICKSIAN LOGICAL ORDERING THEORY OF DEMAND)

चित्र में संयोग स्थिति A पर संयोग स्थिति B प्राप्य नही है और उपभोक्ता A स्थिति में संयोज A की चुनता है तथा B स्थिति मे संयोग B को चुनता है तब उपभोक्ता का व्यवहार संगत होगा।

(iv) दोनो परिस्थितियों में चुनी गई दशाएं प्रतिच्छेदन बिन्दु के अन्दर स्थित हो :-

हिक्स का मांग सम्बन्धी तार्किक क्रमबद्धता सिद्धान्त  (HICKSIAN LOGICAL ORDERING THEORY OF DEMAND)

चित्र मे A परिस्थिति में जब उपभोक्ता द्वारा संयोग A का चुनाव किया जाता है तब संयोग B त्रिकोण aoa के अन्दर स्थित होता है अतः ऐसी दशा में उपभोक्ता का व्यवहार असंगत हो जाता है।

तृतीय परिस्थिति :- 

दो कीमत आय रेखाओं का प्रतिच्छेदन इस प्रकार हो कि एक चुनाव परिस्थिति प्रतिच्छेदन बिन्दु पर स्थित हो तथा दूसरी चुनी गई परिस्थिति या तो प्रतिच्छेदन के अन्दर या बाहर स्थित हो।

उपर्युक्त परिस्थिति को हम दो भागो में बांट सकते है

(i) जब एक चुनी गई दशा का बिन्दु प्रतिच्छेदन पर हो तथा दूसरा प्रतिच्छेदन के बाहर :-

हिक्स का मांग सम्बन्धी तार्किक क्रमबद्धता सिद्धान्त  (HICKSIAN LOGICAL ORDERING THEORY OF DEMAND)

चित्र मे, संयोग A प्रतिच्छेदन बिन्दु पर स्थित है जबकि संयोग B संयोग A के दाई ओर बाहर की तरफ स्थित है। यहाँ A परिस्थिति का संयोग B प्राप्य नही है, क्योंकि संयोग B त्रिकोण aoa के बाहर स्थित है। ऐसी स्थिति में उपभोक्ता का व्यवहार संगत होगा क्योंकि A परिस्थिति में B उपलब्ध नहीं है।

(ii) जब एक चुनी गई दशा को बिन्दु प्रतिच्छेदन बिन्दु पर स्थित हो तथा दूसरा प्रतिच्छेदन बिन्दु के अन्दर स्थित हो :-

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चित्र मे, संयोग B तथा संयोग A, दोनों एक ही रेखा bb तथा एक ही त्रिकोण aoa के अन्दर स्थित है। ऐसी स्थिति में उपभोक्ता का व्यवहार असंगत होगा।

चतुर्थ परिस्थिति :- 

जब दोनों चुनी दशाओं में बिन्दु प्रतिच्छेदन बिन्दु पर ही स्थित हो

हिक्स का मांग सम्बन्धी तार्किक क्रमबद्धता सिद्धान्त  (HICKSIAN LOGICAL ORDERING THEORY OF DEMAND)

चित्र मे ऐसी दशा को प्रदर्शित किया गया है जिसमें सदैव एक ही स्थिति का चुनाव सम्भव है चाहे उसे संयोग स्थिति A कहा जाए या B । अतः ऐसी दशा में उपभोक्ता का व्यवहार सदैव संगतपूर्ण होगा।

मांग के सिद्धांत की व्युत्पत्ति

प्रो. हिक्स ने प्रत्यक्ष संगत परीक्षण के आधार पर उपभोक्ता के माँग वक्र की व्युत्पत्ति की है। इस रीति में भी प्रो. हिक्स ने कीमत प्रभाव को दो भागे में बांटा है- आय प्रभाव तथा प्रतिस्थापन प्रभाव। प्रो. हिक्स ने प्रतिस्थापन प्रभाव को संगति परीक्षण की सहायता से तर्क द्वारा व्युत्पन्न किया है, परन्तु आय प्रभाव को अनुभव सिद्ध प्रमाण द्वारा ।

प्रो. हिक्स के शब्दों में, "----- इसका तात्पर्य है की वास्तविकता मे माँग का नियम द्विजातीय है। इसका एक पैर सिद्धांत पर तथा दूसरा अवलोकन पर आधारित है।"

माँग के नियम की व्युत्पत्ति के लिए हमे उपभोक्ता की आय दी होने पर वस्तु x की कीमत कम होने पर उत्पन्न कीमत प्रभाव की व्याख्या पर विचार करना पड़ेगा। वस्तु की कीमत परिवर्तन के कारण माँग का परिवर्तन प्रो. हिक्स के अनुसार, आय प्रभाव तथा प्रतिस्थापन प्रभाव के सयुक्त प्रभाव के कारण उत्पन्न होता है।

प्रतिस्थापन प्रभाव को आय प्रभाव से पृथक करने तथा इसे सिद्ध करने के लिए प्रो. हिक्स ने दो रीतियों का प्रयोग किया है

(ⅰ) क्षतिपूर्ति परिवर्तन विधि (2) लागत अन्तर विधि

(1) क्षतिपूर्ति परिवर्तन विधि :-

हिक्स का मांग सम्बन्धी तार्किक क्रमबद्धता सिद्धान्त  (HICKSIAN LOGICAL ORDERING THEORY OF DEMAND)

चित्र मे x अक्ष पर वस्तु x की मांग की माप (जो चित्र में प्रदर्शित नही की गई है) तथा Y अक्ष पर मुद्रा की इकाईयो को प्रदर्शित किया गया है। उपभोक्ता आरम्भ में कीमत रेखा aa के बिन्दु A पर स्थित है। इस स्थिति में उपभोक्ता के पास उपलब्ध मुद्रा तथा वस्तु की कीमत दी हुई है। अब यदि उपभोक्ता की मौद्रिक आय स्थिर रहती है, किंतु वस्तु x की कीमत कम होने पर परिवर्तित कीमत रेखा bb हो जाती है तब ऐसी स्थिती में उपभोक्ता अपनी प्रारम्भिक स्थिती A से B पर स्थानान्तरित हो जाता है। संगति परिक्षण के आधार पर हम यह जानते है की उपभोक्ता स्थिती A की तुलना में स्थिती B को वरीयता देगा तथा वह वरीयता वस्तु x की उपभोग मात्रा से अप्रभावित रहेगी। स्थिति A से B तक का गमन कीमत प्रभाव को व्यक्त करता है जो आय प्रभाव एवं प्रतिस्थापन प्रभाव दोनों का मिश्रण है।

उदासीनता वक्र रीति की ही भाति कीमत प्रभाव के विभाजन के लिए वस्तु x की कीमत कमी के कारण आय में होने वाली वृद्धि को क्षतिपूरक परिवर्तन द्वारा कम किया जाता है।

क्षतिपूरक परिवर्तन के बाद कीमत रेखा bb से समानान्तर रूप में परिवर्तित होकर cc हो जाती है। नई cc कीमत रेखा वस्तु x की कमी के कारण होने वाली आय की वृद्धि के प्रभाव को समाप्त कर देती है। उपभोक्ता नई कीमत रेखा cc पर स्थिति α को चुनता है और उपभोक्ता A तथा α स्थितियो के मध्य उदासीन है। उदासीन वक्र विश्लेषण रीति के अनुसार उप‌भोक्ता का A से α तक गमन प्रतिस्थापन प्रभाव है जो धनात्मक है। कीमत रेखा aα कीमत रेखा cc की किसी न किसी बिन्दु पर अवश्य काटेगी एवं हमारे समक्ष निम्नलिखित विकल्प उपस्थित होगे :

(1) बिन्दु A तथा α दोनो प्रतिच्छेदन बिन्दु के बाहर हो:- ऐसी दशा मे वस्तु x की कीमत में कमी के परिणामस्वरूप उसकी मांग में वृद्धि होगी

(2) बिन्दु A तथा α मे से प्रतिच्छेदन बिन्दु पर हो तथा दूसरा प्रतिच्छेद बिन्दु के बाहर :- ऐसी दशा में भी वस्तु x की कीमत की कमी उसकी मांग में वृद्धि करेगी।

(3) दोनों बिन्दु प्रतिच्छेद बिन्दु पर ही स्थित हो :- उस दशा में कीमत की कमी का उस वस्तु की मांग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा अर्थात् वस्तु की मांग अपरिवर्तित रहेगी

उपर्युक्त स्थितियों से स्पष्ट है कि वस्तु x की कीमत में कमी या तो इसके उपभोग को बढ़ाती है या A तथा α के बीच स्थिर रखती है। अत: A से α तक गमन प्रतिस्थापन प्रभाव का परिणाम है। अब यदि क्षतिपूरक परिवर्तन के कारण कम की गई आय उपभोक्ता को वापस कर दी जाए तो उपभोक्ता स्थिती α से स्थिती B तक गमन करता है जो आय प्रभाव को सूचित करता है।

इस प्रकार,

वस्तु × की कीमत कम होने पर

कीमत प्रभाव = प्रतिस्थापन प्रभाव + आय प्रभाव

(Aतथा B तक गमन) (A से α तक गमन) (α से B तक गमन)

इस प्रकार कहा जा सकता है कि वस्तु x की कीमत में कमी के परिणामस्वरूप उसकी मांग में वृद्धि होती है। यही मांग का नियम है।

(2) लागत अन्तर विधि:- प्रो सेम्युलसन द्वारा प्रतिपादित लागत अन्तर विधि का प्रयोग प्रो. हिक्स ने भी मांग वक्र की व्युत्पत्ति के लिए किया है। इस रीति के अनुसार वस्तु × की कीमत कम होने पर उपभोक्ता की वास्तविक आय इस प्रकार कम की जाती है की उपभोक्ता प्रारम्भिक संयोग को खरीद सके।

लागत अन्तर विधि को चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

हिक्स का मांग सम्बन्धी तार्किक क्रमबद्धता सिद्धान्त  (HICKSIAN LOGICAL ORDERING THEORY OF DEMAND)

माना आरम्भ में उपभोक्ता aa कीमत रेखा के बिन्दु A पर है। वस्तु × की कीमत के कारण कीमत रेखा bb के रुप में परिवर्तित हो जाती है तथा उपभोक्ता bb रेखा के बिन्दु B पर स्थानान्तरित हो जाता है। बिन्दु A से बिन्दु B तक का गमन कीमत प्रभाव है। अब लागत अन्तर विधि के अनुसार वस्तु × की कीमत कमी के कारण उत्त्पन्न होने वाले आय प्रभाव को समाप्त करने के लिए उपभोक्ता की मौद्रिक आय को इस प्रकार टाया जाता है की उपभोक्ता अपने प्रारम्भिक संयोग A को खरीद सके। दूसरे शब्दो में, पुरानी कीमत पर वस्तु x के प्रारम्भिक उपभोग की लागत तथा नई कीमत पर लागत के बीच के अन्तर के बराबर उपभोक्ता की आय टानी पड़ेगी। इसके अनुसार परिवर्तित रेखा cc पुराने संयोग बिन्दु A से गुजरेगी तथा कीमत रेखा bb के समानान्तर होगी। इस परिवर्तित कीमत रेखा cc पर उपभोक्ता α' बिन्दु स्थिति पर होगा। बिन्दु A से α' तक का गमन प्रतिस्थापन प्रभाव है।

संगत चुनाव के लिए उपभोक्ता के पास निम्नलिखित विकल्प उपलब्ध है

(1) बिन्दु α' बिन्दु के दाई ओर स्थित हो अर्थात् बिन्दु α' पर बिन्दु A की तुलना में वस्तु × का उपभोग बढ़ेगा।

(2) बिन्दु α' तथा बिन्दु A दोनो एकाकार कर जाएं अर्थात् दोनो बिन्दुओ पर वस्तु x का उपभोग समान रहेगा

अब यदि लागत अन्तर विधि के अन्तर्गत कम की गई आय उपभोक्ता को वापस दे दी जातब उपभोक्ता कीमत रेखा cc के बिन्दु α' से कीमत बिन्दु bb केबिन्दु B पर चला जाएगा। चित्र में बिन्दु α' से बिन्दु B तक का गमन आय प्रभाव को प्रदर्शित करता है।

सामान्य दशाओं में बिन्दु B बिन्दु α' के दाई ओर स्थित होगा जिसका अभिप्राय है सामान्य परिस्थितियो मे आय प्रभाव धनात्मक होता है।

इस प्रकार, कहा जा सकता है कि वस्तु x की कीमत कमी के कारण उसके उपभोग में वृद्धि होती है (क्योकि प्रतिस्थापन प्रभाव तथा आय प्रभाव दोनो धनात्मक रूप से क्रियाशील होते है), यहीं मांग का नियम है।

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