प्रश्न- केन्स के व्याज की तरलता पसन्दगी सिद्धांत
की आलोचनात्मक विवेचना कीजिये
→ "व्याज विशुद्ध रूप से एक मौद्रिक घटना
है"। व्याख्या करें?
→ "व्याज की दर तरलता से वचिंत होने का
पुरुस्कार है।" व्याख्या करें?
उत्तर- केन्स ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'The General
Theory of Employment, Interest and money' में व्याज में तरलता पसंदगी के सिद्धांत
का प्रतिपादन किया, जिसे केन्स का व्याज सिद्धांत भी कहते है।
केन्स के अनुसार, "व्याज विशुद्ध रूप से एक मौद्रिक
घटना है।" (Interest is Purely a Monetary Phenomenon") केन्स ने व्याज की
परिभाषा इस प्रकार दी है" व्याज एक निश्चित अवधि के लिए तरलता के परित्याग का
पुरुस्कार है"। (Interest is the Reward for Parting with liquidity for a
specified period) व्याज का निर्धारण मुद्रा की मांग तथा मुद्रा की पूर्ति के आपसी
सामजस्य द्वारा होता है।
मुद्रा की मांग- केन्स के अनुसार निम्नलिखित तीन उद्देश्यों
से लोग मुद्रा की मांग करते है
1) लेन-देन की प्रवृत्ति (Transaction motive)- लोगों को आय एक निश्चित अवधि में मिलती है। परन्तु भुगतान
करने की आवश्यकता निरन्तर पड़ती रहती है। इसलिए नकद द्रव की मात्रा की सदैव आवश्यकता
रहती है ताकि लोग अपने लेन-देन को पुरा कर सके
Transaction motive को भागो में बाँटा गया है
(a) आय उद्देश्य (income motive):- वेतनभोगी व्यक्तियों को माह में एक बार वेतन मिलता है, जबकि उन्हें प्रतिदिन व्यय करना होता है। अतः उपभोक्ता दिन-प्रतिदिन के कार्य सम्पादन के लिए कुछ द्रव्य नकद के रूप में रखते हैं। कार्य सम्पादन के उद्देश्य के लिए उपभोक्ता द्रव्य की कितनी नकद रूप में रखेगा यह बात उसकी आय की मात्रा तथा आय प्राप्ति की समयावधि पर निर्भर करेगी।
लेन-देन का उद्देश्य व्याज की दर से बहुत कम प्रभावित होता
है। बहुत ऊँची ब्याज दर या इन उद्देश्यों के लिए मुद्रा की तरलता माँग में कुछ कमी
आ सकती है। इस रेखाचित में or व्याज की दर जो Transaction motive के लिए की गई मुद्रा
की मांग स्थिर रहती है किंतु ऊँची or व्याज की दर पर इस मांग में कुछ कमी आ सकती है।
(b) व्यावसायिक उद्देश्य (Business motive) :- व्यावसायिक उद्देश्य का महत्त्व व्यापारियों के लिए है।
व्यापारियों को व्यापार संचालन के लिए समय-समय पर नकद मुद्रा की आवश्यकता होती है क्योंकि
उन्हें मजदूरी का भुगतान व कच्चे माल की खरीद करनी होती है। व्यापारी कितनी नकद के
रूप में अपने पास मुद्रा रखेंगे, यह बात व्यापार के आकार से तय होती है।
(2) दूरदर्शिता का उद्देश्य (Precautionary motive) :- दूरदर्शिता के उद्देश्य को सतर्कता का उद्देश्य भी कहा जाता
है। लोग संकटकालीन दिनों के लिए द्रव्य की कुछ मात्रा नकद रूप में रखते है। कहने का
तात्पर्य यह है कि बिमारी, दुर्घटना, बेरोजगारी, मृत्यु तथा अनिश्चित घटनाओ का सामना
करने के लिए व्यक्ति द्रव्य की कुछ मात्रा नकद के रूप में रखते है। इसे निर्धारित करनेवाला
सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य लोगों की आय का आकार है।
(3) सट्टा उद्देश्य (Speculative motive) :- लोगो द्वारा नकदी की माँग इसलिए की जाती है कि वे आसानी
से सट्टे का कार्य कर सके। सट्टे का अभिप्राय ब्याज दर की निश्चितता से लाभ प्राप्त
करना है। जब व्याज की दर नीची रहती है तब लोग द्रव्य को तरल रूप में अपने पास इस आशा
में रख लेते है कि भविष्य में व्याज दर के बढ़ जाने से ऊँचा व्याज प्राप्त किया जा
सकेगा। व्याज दर और सट्टा उद्देश्य के लिए नकदी की माँग में विपरीत सम्बंध होता है।
उपर्युक्त तीनों उद्देश्यों से मुद्रा की मांग की जाती है,
लेकिन केन्स ने इन सबो में सट्टेबाजी द्वारा की गयी मुद्रा की माँग को सबसे महत्त्वपूर्ण
माना है।
यदि
(i) M = M1 + M2
जहाँ, M= मुद्रा की कुल पूर्ति
M1 = मुद्रा की पूर्ति का वह भाग जिसे लेन-देन
तथा आकस्मिक खर्च के लिए रखा जाता है।
M2 = सट्टेबाजी के लिए मांगी गयी मुद्रा।
चूंकि L तरलता का घोतक है इसलिए M1 को L1
लिख सकते है।
L1 = ƒ (Y)
L2 = ƒ (r)
or, L1 + L2
= ƒ (Y) + ƒ (r)
or, L = ƒ (Y +r)
यहाँ L = सट्टे के उद्देश्य हेतु, व्याज की दर r का फलन है तथा आय Y है। । मुद्र की कुल तरल माँग विनिमय सावधानी उद्देश्य तथा सट्टा उद्देश्य के लिए की गयी मुद्रा की माँग के योग के बराबर होती है।
उपर्युक्त रेखाचित्र से स्पष्ट है कि मुद्रा माँग वक्र नीचे दायी ओर घटता हुआ
प्राप्त होता है। जब व्याज दर or1 है
तो मुद्रा की मांग OM1 के बराबर की
जाती है। व्याज दर घटकर or2 हो जाती है तो मुद्रा की माँग OM2 के बराबर प्राप्त होती है। किंतु or3
व्याज दर से नीचे व्याज की दर नहीं गीरेगी, चाहे कितनी भी मुद्रा की माँग क्यो न
की जाये। इस बिन्दु को केन्स ने तरलता जाल (Liquidity Trap) कहा है।
मुद्रा की पूर्ति :- केन्स के अनुसार अल्पकाल में मुद्रा की पूर्ति स्थिर
रहती है। किसी निश्चित अवधि में किसी देश में मुद्रा की उपलब्ध मात्रा मुद्रा की
पूर्ति कहलाती है। मुद्रा की कुल पूर्ति के अन्तर्गत साख पत्र, मुद्रा तथा सिक्का आदि सम्मिलित किये जाते है। मुद्रा की
पूर्ति की रेखा एक खड़ी रेखा होती है।
ब्याज की दर का निर्धारण
केन्स ने कहा कि लेन-देन की प्रवृत्ति तथा आकस्मिक घटनाओं की प्रवृत्ति के लिए
मुद्रा की मांग की जाती है। वह अल्पकाल में प्रायः स्थायी रहती है। इसलिए व्याज के
निर्धारण में सट्टेबाजी की प्रवृत्ति के लिए मुद्रा की माँग ही महत्वपूर्ण है। अतः
व्याज की दर दो बातो पर निर्भर करती है।
(i) सट्टेबाजी की प्रवृत्ति के लिए मुद्रा की मांग
(ii) मुद्रा की मात्रा
ब्याज का निर्धारण निम्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है:-
केन्स के अनुसार ब्याज की दर का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहां मुद्रा की
कुल माँग एवं मुद्रा की पूर्ति बराबर होती है।
चित्र में,
MM = मुद्रा की
पूर्ति रेखा
LP = तरलता पसंदगी की रेखा
E = संतुलन बिन्दु
OP = व्याज की दर
सूद की दर में कई स्थितियों में परिवर्तन आ सकता है। जैसे -
(i) मान लिया कि मुद्रा की पूर्ति स्थिर रहती है। MM स्थिर है। यदि LP बढ जाता है तो व्याज की दर बढ़ जायेंगी।
उपर्युक्त रेखाचित्र मे M मुद्रा की स्थिर
पूर्ति है तथा LP मुद्रा का कुल माँग वक्र है। ये दोनों वक्र परस्पर एक दूसरे को E बिन्दु पर काटते है। इस संतुलन की स्थिति में OP ब्याज दर निर्धारित हो जाता है। यदि कुल मुद्रा की माँग में वृद्धि LP से LP1 हो जाती है तो नया संतुलन बिन्दु E1 पर प्राप्त होगा । इस स्थिति में व्याज
की दर भी OP से बढकर OP1 हो जाती है।
(ii) यदि MM स्थिर रहे परन्तु LP में कमी आ जाय तो ब्याज की दर घट जायेगी।
पहले की ब्याज दर = OP
मुद्रा की मांग में कमी LP से LP1 हो जाने पर OP1
व्याज की दर निर्धारित होती है जो पहले से कम है।
(iii) मान लिया कि LP में परिवर्तन नहीं होता है परन्तु मुद्रा की मात्रा में कमी एवं वृद्धि होती है।
मान लिया कि LP स्थिर रहती है परन्तु M (मुद्रा की मात्रा) घट कर M1M1 हो जाती है तो E1 पर संतुलन होगा और ब्याज की दर OP से बढ़कर OP1 हो जायेगी। पुनः यदि M में वृद्धि M2M2 हो जाती है तो E2 पर संतुलन होगा। ब्याज की दर घटकर OP से OP2 हो
जायेगी।
इस तरह यह स्पष्ट है कि मुद्रा की मात्रा अथवा तरलता पसन्दगी इनमें से किसी एक
अथवा दोनों में जब परिवर्तन होता है तो ब्याज की दर में भी परिवर्तन होता है।
केन्स के सिद्धांत की विशेषताएं
(1) प्रावैगिक सिद्धांत :- केन्स का सिद्धांत एक प्रावैगिक सिद्धांत है, क्योंकि
इस सिद्धांत में भविष्य की अनिश्चितता ही मुख्य तत्व है जो प्रावैगिक दशा का
प्रतीक है।
(2) ब्याज दर पर बैंक व्यवस्था का नियंत्रण :- ब्याज एक विशुद्ध मौद्रिक घटना है। अतः ब्याज दर पर
बैंक व्यवस्था द्वारा नियंत्रण रखा जा सकता है।
(3) सभी अर्थव्यवस्था पर लागू :- यह सब प्रकार की
अर्थव्यवस्था पर लागू होता है, चाहे किसी
अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति हो या न हो।
(4) बचत विनियोग संतुलन की सही व्याख्या :- यह सिद्धांत
स्पष्ट करता है कि अर्थव्यवस्था में बचत और
विनियोग का संतुलन ब्याज दर के घटने बढ़ने से नहीं होता वरन् आय तथा रोजगार के
घटने बढ़ने से होता है।
(5)
उचित आर्थिक नीति अपनाने में सहायक :- देश में रोजगार तथा आय बनाये रखने
के लिए हमे उचित आर्थिक नीति अपनाने में मुद्रा नीति के महत्त्व का ज्ञान होता है।
। ब्याज दर को प्रभावित करने का एक क्रियात्मक ढंग जो सरकार अपना सकती है वह यह है
कि देश में मुद्रा की मात्रा बढ़ायी जाय और इस प्रकार सस्ती मुद्रा नीति अपनायी
जाय।
आलोचनाएँ
यद्यपि केन्स का ब्याज का सिद्धांत परम्परावादी सिद्धांत से श्रेष्ठ है, फिर
भी इसकी आलोचना विभिन्न अर्थशास्त्री ने की है। प्रो. हेनसन, प्रो. रॉबर्टसन, प्रो
नाइट, प्रो हेजलिट मुख्य है। तरलता पसन्दगी के सिद्धांत को विभिन्न नामों से
पुकारा गया है जैसे- "एक कॉलिज के खंजाची का सिद्धांत, बहुत कहे तो एक
अपर्याप्त सिद्धांत और कम से कम कहना चाहे तो एक भ्रान्तिजनक विवरण, प्राक्
शास्त्रीय, वाणिज्यवादी और सामान्य मनुष्य का अर्थशास्त्र "।
केन्स के ब्याज सिद्धांत की निम्नलिखित बिन्दुओं के संदर्भ में आलोचना की जाती
है।
(1) एकपक्षीय सिद्धांत :- हैजलिट ने केन्स के ब्याज सिद्धांत को एक पक्षीय बताया
है क्योंकि केन्स ने ब्याज को एक विशुद्ध मौद्रिक घटना माना है तथा अन्य
महत्त्वपूर्ण कारको की अवहेलना की है।
(2) बचत महत्त्वपूर्ण कारक :- केन्स ने ब्याज की तरलता वरीयता को त्यागने का प्रतिफल
मानते हुए बचत के महत्त्व को भुला दिया है। बचत के बिना तरल कोष का प्रश्न ही नहीं उठता। यदि बचत ही नहीं होगी
तो त्यागने के लिए तरलता ही कहाँ से आयेगी। इस प्रकार ब्याज के निर्धारण से बचत
तत्त्व की अवहेलना नहीं की जा सकती।
(3) अनिर्धारित सिद्धांत :- हेन्सन का मत है कि परम्परावादी सिद्धांत की भाँति
केन्स का सिद्धांत भी अनिर्धारित है। तरलता वरीयता ज्ञात करने के लिए सर्वप्रथम आय
के स्तर का ज्ञान होना आवश्यक है। किंतु आय का स्तर ज्ञात करने के लिए ब्याज की दर
का ज्ञान होना आवश्यक है। ब्याज की दर तरलता वरीयता पर निर्भर है। इस प्रकार यह
सिद्धांत अनिर्धारित है।
(4) अल्पकालीन सिद्धांत :- इस सिद्धांत के बारे में एक आलोचना यह भी है कि यह
ब्याज के निर्धारण में अल्पकालीन स्थिति का विवेचना करता है किंतु दीर्घकालीन
स्थिति का विवेचना नहीं करता यद्यपि यह अधिक महत्त्वपूर्ण है।
(5) व्यापार चक्र विश्लेषण में असमर्थ :- केन्स का तरलता वरीयता सिद्धांत
व्यापार चक्र की वास्तविक घटना का सही व्याख्या नहीं करता। मन्दी के काल में लोगों
की तरलता वरीयता अधिकतम होती है तथा ब्याज की दर ऊँची होनी चाहिए जबकि वास्तव में
मन्दी के काल में ब्याज की दर न्यूनतम होती है। इस
प्रकार जिस तथ्य की यह व्याख्या करना चाहता है उसी के प्रतिकूल निष्कर्ष प्रस्तुत
करता है।
(6) सिद्धांत में विरोधामास :- कुछ विद्वानों का मत है कि तरलता वरीयता सिद्धांत विरोधाभासो से भरा हुआ है।
उदाहरण के लिए बैंक में सावधि (Time Deposit) खातों में जमा राशि में तरलता के
साथ- साथ ब्याज भी प्राप्त होता है।
(7) संकुचित :-
नकदी अधिमान सिद्धांत में एक दोष यह भी है कि इसमें ब्याज के स्वरूप की जो
व्याख्या की गयी है वह संकीर्ण है। इसमें कई आवश्यक
तत्त्वों को छोड़ दिया गया है जो ब्याज की दर को प्रभावित करते है।
(8) तरलता पाश की गलत धारणा :- वास्तव में यह हो सकता है कि ब्याज की नीची दर पर तरलता
अधिमान अनुसूची लोचदार होने के बजाय पूर्ण बेलोचदार हो जाये। मंदी के समय तरलता
पाश की धारणा गलत सिद्ध हो जाती है।
(9)
अपूर्ण सिद्धांत :- ब्याज की दर
आय के स्तर के साथ-साथ चार तत्त्वों से निर्धारित होती है -
(i) उपभोग फलन (consumption function)
(ii) पूँजी की सीमांत उत्पादकता (marginal efficiency of
capital)
(iii) तरलता अधिमान फलन (Liquidity
function)
(iv) मुद्रा फलन की मात्रा
(Quantity of money function)
केन्स ने केवल तरलता पसन्दगी फलन एवं मुद्रा फलन की मात्रा के आधार पर ब्याज के निर्धारण
की व्याख्या की तथा अन्य दो आवश्यक तत्त्वों को छोड़ दिया। इसीलिए यह सिद्धांत अपूर्ण है।
(10) भ्रामक सिद्धांत :- यदि कोई व्यक्ति अपनी बचत को सावधिक
जमा मे लगा देता है तो उसे ब्याज की प्राप्ति के साथ-साथ तरलता भी उपलब्ध होती है।
अतः सूद को तरलता परित्याग का पुरस्कार किस प्रकार कहा जा सकता है।
निष्कर्ष
अन्त में हम यह कह सकते है कि उपरोक्त आलोचनाओं के होते हुये भी तरलता अधिमान (वरीयता) की धारणा केन्स के रोजगार सिद्धांत का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण घटक है।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)