लगान का आधुनिक सिद्धांत (Modern Theory of Rent)

लगान का आधुनिक सिद्धांत (Modern Theory of Rent)

लगान का आधुनिक सिद्धांत (Modern Theory of Rent)

प्रश्न- लगान विशिष्टता का पारितोषिक होता है"। व्याख्या करें?

"लगान एक बड़ी जाति की एक विशेष उप‌जाति है" स्पष्ट करें?

"लगान एक बचत या अतिरेक है जो उत्पत्ति का एक साधन उधोग विशेष में अपनी अवसर लागत के ऊपर प्राप्त करता है। व्याख्या करे?

"लगान उत्पन्न होता है जब किसी साधन की पूर्ति पूर्णतः लोचदार से कम होती है। विवेचना करे?

उत्तर- आधुनिक अर्थशास्त्रियो के अनुसार लगान उत्पादन के प्रत्येक साधनों को प्राप्त होता है जिसकी पूर्ति पूर्णतः लोचदार से कम होती है। लेकिन रिकार्डो के अनुसार लगान केवल भूमि से ही प्राप्त होता है। इस प्रकार रिकार्डो की अपेक्षा आधुनिक सिद्धांत अधिक व्यापक एवं विस्तृत है।

उत्पादन के साधनों के असामान्य पारितोषिक के रूप में सभी साधनों की आय में लगान की उपस्थिति देखी जा सकती है। मार्शल ने भी लगान की इस परिव्याप्ति पर जोर दिया था। उसके अनुसार "प्राकृति के मुक्त उपहार से लेकर स्थायी उन्नतिशील, फर्म, कारखाने, वाष्प इंजन तथा कम-टिकाऊ एवं धीरे-धीरे विकसित होने वाले औजारों तक में भी लगान का कुछ-न-कुछ अंश अवश्य ही पाया जाता है"।

दूसरे शब्दों में मार्शल के अनुसार, "भूमि का लगान स्वयं कोई चीज नहीं वरन् यह एक बड़ी प्रजाति की उपजाति विशेष है"

अतः लगान के आधुनिक सिद्धांत का आधार साधनों की विशेषता है। इस संदर्भ में ऑस्ट्रियन अर्थशास्त्री वॉन वीजर ने उत्पादन साधनों को दो वर्गों में बाँटा है-

(1) पूर्णतया विशिष्ट साधन :- पूर्णतया विशिष्ट साधन वे है जिनका केवल एक ही प्रयोग हो सकता है, जिन्हें दूसरे प्रयोग में नहीं लगाया जा सकता है। इसलिए इनकी अवसर लागत शून्य होती है।

(2) पूर्णतया अविशिष्ट साधन :- पूर्णतया अविशिष्ट साधन वे है, जिनके एक से अधिक प्रयोग है। साधनों की विशिष्ता और अविशिष्टता इन दोनों के बीच की स्थिति आंशिक विशिष्टता तथा आंशिक अविशिष्टता की है। यही लगान के आधु‌निक सिद्धांत का आधार है।

श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के अनुसार, "किसी साधन का लगान उस साधन द्वारा उपार्जित वह आधिक्य है जो उसे ऐसी न्यूनतम राशि के ऊपर उपलब्ध होता है अपने जिनके कारण यह अपने कार्य करने के लिए आकर्षित होता है"

प्रो . बोल्डिग के अनुसार, "आर्थिक लगान वह भुगतान है जो किसी संतुलन की स्थिति में किसी उधोग में लगे उत्पादन के किसी साधन की एक इकाई को दिया जाता है और वह उस न्यूनतम रकम के ऊपर होता है जो कि साधन विशेष को इसके वर्तमान व्यवसाय में बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है"।

साधन को वर्तमान समय में जो आय प्राप्त होती है यह उसकी वास्तविक आय है और विकल्प आय वह है जो उस साधन को किसी अन्य प्रयोग में लाने पर प्राप्त हो सकती है। यह आवश्यक है कि उसे कम से कम विकल्प आय या स्थानान्तरण आय के बराबर भुगतान किया जाय अन्यथा वह साधन दूसरे उधोग में चला जाएगा। साधारणतया साधनों की वर्तमान आय स्थानान्तरण आय से अधिक होती है। अतः वास्तविक आय तथा स्थानान्तरण आय के अंतर को आर्थिक लगान कहते है

सूत्र से,

लगान = वास्तविक आय - स्थानान्तरण आय अथवा अवसर लागत

इस सूत्र की सहायता से हम किसी साधन की इकाई की आय में कितना अंश लगान का है यह मालूम कर सकते है। इस तथ्य को हम निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं:-

एक मैनेजर (साधन) की वर्तमान आय (रु.में)

अवसर लागत

लगान = अवसर लागत के ऊपर की बचत

साधन की प्रकृति

5000

5000

5000-5000=0

पूर्णतया अविशिष्ट साधन

5000

0

5000-0=5000

पूर्णतया विशिष्ट

5000

4000

5000-4000=1000

आंशिक विशिष्ट, आंशिक अविशिष्ट

5000

7000

5000-7000=-2000

"

 

प्रथम उदाहरण :- वर्तमान आय = 5000 अवसर लागत = 5000 क्योंकि साधन की सेवा विशिष्ट नहीं है। वह कही भी 5000 की नौकरी कर सकता है। अतः कोई बचत नहीं, कोई लगान नहीं।

द्वितीय उदाहरण :- मान लिया कि साधन की सेवा पूर्ण विशिष्ट (पूर्ण लोचदार) है। उसे कही भी कोई रोजगार नहीं मिलेगा । इसलिए उसकी कुल वर्तमान आय लगान होगा।

लगान = वर्तमान आय- अवसर लागत

         = 5000-0

         =5000

तृतीय उदाहरण :- साधन की सेवा आंशिक रूप से विशिष्ट और अविशिष्ट दोनों है अतः

लगान = 5000-4000 = 1000 होगी

चतुर्थ उदाहरण :- मान लिया कि दूसरे व्यवसाय में 7000 रु. आय मिलती है तो वह तुरन्त वहाँ नौकरी करने लगेगा। 7000 उसकी वास्तविक आय हो जायेगी और 5000 उसका अवसर लागत

लगान = 7000-5000 = 2000 होगा।

साधनों की प्रकृति को देखते हुए लगान की उत्पत्ति की व्याख्या तीन स्तरों पर कर सकते हैं -

(1) पूर्णतया लोचदार पूर्ति :- साधन की पूर्ति के पूर्ण लोचदार होने का अर्थ है साधन का पूर्णतया अविशिष्ट होना। इस तरह के साधन के विभिन्न वैकल्पिक प्रयोग होते है। इनकी जितनी वास्तविक आय होती है उतनी ही अवसर लागत भी होती है।

पूर्ण लोचदार अथवा पूर्ण विशिष्ट साधन की पूर्ति की रेखा एक पड़ी रेखा होती है।

लगान का आधुनिक सिद्धांत (Modern Theory of Rent)

चित्र में,

वास्तविक आय = OMEP

अवसर लागत = OMEP

इसलिए कोई लगान नहीं।

(2) पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति :- पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति का अर्थ है पूर्णतया विशिष्ट साधन। इसे किसी दूसरे उपयोग में नहीं लाया जा सकता है। अतः इसकी अवसर लागत शून्य होती है। इसकी कुल आय लगान होती है।

लगान का आधुनिक सिद्धांत (Modern Theory of Rent)

पूर्ति की रेखा एक खड़ी रेखा है, क्योंकि इस प्रकार के साधन का एक ही उपयोग है। उन्हें दूसरे उपयोग में नहीं लगाया जा सकता है।

वास्तविक आय = OPEM

अवसर लागत = O

लगान = OPEM - O = OPEM

(3) आंशिक बेलोचदार और आंशिक लोचदार :- इस तरह के साधन आंशिक विशिष्ट और आंशिक अविशिष्ट होते है। अधिकांश साधन इसी वर्ग के होते है। इनकी पूर्ति की रेखा सामान्य पूर्ति की रेखा होती है।

लगान का आधुनिक सिद्धांत (Modern Theory of Rent)

चित्र में पूर्ति की रेखा पूर्ति लागत को व्यक्त करती है। इससे यह पता चलता है कि किस इकाई की पूर्ति लागत अर्थात स्थानान्तरण आय अथवा अवसर लागत का है।

OE साधन का पूर्ति मूल्य या लागत मूल्य = OEFR है। Q माँग तथा पूर्ति के सन्तुलन से OP कीमत निश्चित होती है तो अब सभी साधन को लगान मिलेगा।

साधन

वर्तमान आय

अवसर लागत

लगान प्रति साधन

A

AK

AL

AK-AL = KL

B

BJ

BM

BJ-BM =JM

C

CH

CN

CH-CN = HN

D

DG

DQ

DG-DQ = GQ

E

EF

EF

EF-EF = 0

कुल लगान = कुल वास्तविक आय - अवसर लागत

कुल लगान = OEFP-OEFR

कुल लगान = RFP

आधुनिक लगान सिद्धांत की विशेषताएं

आधुनिक लगान सिद्धांत की निम्नलिखित विशेषये है:-

(1) उत्पत्ति के प्रत्येक साधन को लगान प्राप्त होता है, इसलिए लगान का सम्बंध केवल भूमि से नहीं जोड़ा जा सकता।

(2) आधुनिक लगान सिद्धांत की सहायता से लगान को सहजतापूर्वक ज्ञात किया जा सकता है, यथा ; यदि साध की वास्तविक आय में से उसकी अवसर लागत को घटा दिया जाय तो लगान की राशि प्राप्त हो जायेगी।

(3) लगान के उत्पन्न होने का प्रमुख कारण साधन में विशिष्टता का गुण होना है।

(4) साधन के अविशिष्ट होने अथवा साधन की पूर्ति में पूर्णतया लोचदार होने पर साधन को लगान नहीं मिल पाता है।

(5) यदि साधन की पूर्ति पूर्णतया बेलोच है अथवा साधन पूर्णतया विशिष्ट है तो साधन को प्राप्त होने वाली कुल आय लगान होगी।

आधुनिक सिद्धांत की श्रे्ठता

लगान का आधुनिक सिद्धांत रिकार्डों के लगान सिद्धांत से श्रेष्ठ है और उस पर एक सुधार है। यह निम्नलिखित तर्कों के आधार पर कहा जा सकता है -

(1) लगान के औचित्य की समुचित व्याख्या :- रिकार्डों का लगान सिद्धांत केवल इतना बताता है कि विभिन्न भूमियों पर लगान भिन्न-भिन्न क्यों है? वह यह नहीं बताता कि लगान क्यों दिया जाता है? परन्तु आधुनिक सिद्धांत, लगान क्यों दिया जाता है इस बात की ठीक-ठीक व्याख्या करता है। आधुनिक सिद्धांत के अनुसार लगा भूमि की स्वल्पता के कारण या उसकी पूर्ति के पूर्णतया बेलोच होने के कारण उत्पन्न होता है।

(2) लगान का व्यापक अर्थ में प्रयोग :- रिकार्डो ने लगान शब्द का प्रयोग संकुचित अर्थ में केवल भूमि के सम्बंध में किया था पर आधुनिक अर्थशास्त्री इस शब्द का प्रयोग विस्तृत अर्थ में करते है। उनके अनुसार लगान एक आधिक्य है जो किसी साधन की पूर्ति के पूर्ण लोचदार न होने के कारण उत्पन्न होता है। अतः यह भूमि के साथ-साथ उत्पत्ति के अन्य साधनों में भी उत्पन्न होता है। लगान शब्द का अर्थ अधिक वैज्ञानिक और तर्क के अनुसार है।

(3) व्यावहारिक सिद्धांत :- रिकार्डों का लगान सिद्धांत पूर्ण प्रतियोगिता पर आधारित है और पूर्ण प्रतियोगिता केवल कल्पना मात्र है। दूसरी ओर आधुनिक सिद्धांत यह मानता है कि पूर्ण प्रतियोगिता सदा नहीं होती। इसलिए आधुनिक सिद्धांत अधिक व्यावहारिक तथा विश्वसनीय है।

लगान निर्धारण का मुख्य आधार रिकार्डो ने भूमि की उपज को माना है जबकि आधुनिक सिद्धांत के अनुसार लगान निर्धारण किसी साधन की मांग एवं पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के द्वारा होता है।

(4) लगान मूल्य सम्बंध की स्पष्ट व्याख्या :- रिकार्डों लगान को मूल्य से प्रभावित मानता था लेकिन यह नहीं मानता था कि यह मूल्य को प्रभावित करता है। लगान का आधुनिक सिद्धांत स्पष्ट कर देता है कि मूल्य को भी लगान प्रभावित करता है।

लगान और मूल्य के बीच सम्बंध

लगान और कीमत के बीच किस तरह का सम्बंध है? इस प्रश्न पर अर्थशास्त्रियों के बीच बहुत दिनों से मतभेद बना हुआ है।

रिकार्डो का मत- लगान मूल्य से प्रभावित होता है:- रिकार्डों जिसने सर्वप्रथम लगान के सिद्धांत का प्रतिपादन किया ने बताया कि लगान मूल्य से प्रभावित होता है, परन्तु मूल्य को प्रभावित नहीं करता है। इस बात की पुष्टि रिकार्डों के इस कथन से होती है - "अनाज का मूल्य इसलिए अधिक नहीं है कि लगान दिया जाता है, वरन् लगान इसलिए दिया जाता है, क्योंकि अनाज का मूल्य अधिक है"।

रिकार्डों के अनुसार कीमत सीमांत भूमि के उत्पादन व्यय द्वारा निर्धारित होती है। सीमांत भूमि पर कोई लगान नहीं दिया जाता है। अतः अनाज की कीमत में लगान सम्मिलित नहीं होती है। कीमत के निर्धारण के बाद ही लगान का निर्धारण होता है। अत: कीमत में लगान को सम्मिलित होने का प्रश्न ही नही उठता है।

रिकार्डों ने अपने सिद्धांत द्वारा यह बताया कि लगान मूल्य से प्रभावित होता है। लगान का पता लगाने के लिए सर्वप्रथम लगान रहित भूमि का पता लगाते है। फिर उसकी उपज की मात्रा को अन्य किस्म की भूमि से घटाकर लगान का पता लगाते है। जैसे-

मान लिया कि कीमत 100 रुपये क्विंटल है -

भूमि की श्रेणी

भूमि एवं पूँजी की मात्रा

उपज क्विंटल

लगान

A

1000 रु.

40

40-10=30

B

1000 रु.

30

30-10=20

C

1000 रु.

20

20-10=10

D

1000 रु.

10

10-10=0

D लगान रहित भूमि है क्योंकि अनाज की कीमत 100 रु. क्विंटल है जिसे बेचने से 1000 रु. मिलते है। चूंकि लागत और बराबर है। इसलिए यह लगान रहित भूमि है।

मान लिया कि कीमत में वृद्धि हो गई (200 रु. प्रति क्विंटल) तो

भूमि की श्रेणी

भूमि एवं पूँजी

उपज

लगान

A

1000 रु.

40

40-5=35

B

1000 रु.

30

30-5=25

C

1000 रु.

20

20-5=15

D

1000 रु.

10

10-5=5

E

1000 रु.

5

5-5=0

 

 

 

कुल लगान = 80 क्विंटल

E लगान रहित भूमि है।

क्योंकि 5 क्विटल = 1000 रु.

अतः कीमत में वृद्धि के कारण लगान में वृद्धि होती है।

इस तरह यह स्पष्ट है कि रिकार्डो के अनुसार लगान मूल्य से प्रभावित होता है, परन्तु मूल्य को प्रभावित नहीं करता है।

आधुनिक मत - लगान की मूल्य को प्रभावित करता है -

आधुनिक अर्थशास्त्रियों का मत है कि लगान मूल्य को प्रभावित करता है या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेंगा कि हम लगान को अर्थव्यवस्था के किस भाग के दृष्टि से देखते है। अतः निम्न बातों को ध्यान में रखते हुए सही स्थिति ज्ञात की जा सकती है -

(1) सम्पूर्ण समाज की दृष्टि :- सम्पूर्ण समाज की दृष्टि से, रिकार्डो का यह कथन सत्य है कि लगान मूल्य को प्रभावित नहीं करता है। समाज के दृष्टिकोण से भूमि का कोई स्थानान्तरण मूल्य नहीं होता है, भूमि की पूर्ति स्थिर होती है तथा यह प्रकृति का नि: शुल्क उपहार भी है। अतः सम्पूर्ण समाज की दृष्टि से भी समस्त आय एक बचत अर्थात् लगान है इसलिए वह लागत में प्रवेश नहीं करता है।

(2) व्यक्ति विशेष की दृष्टि से :- एक व्यक्ति के दृष्टिकोण से समस्त लगान उत्पादन की लागत होता है और कीमत में प्रवेश कर जाता है, क्योंकि यह एक आवश्यक भुगतान होता है। किसी और की भूमि उपयोग करने के लिए, उसे उसका लगान देना पड़ता है जो उसके लिए लागत है और उस फसल की कीमत में शामिल है जिसे वह उपजाता है। यदि वह स्वामी कृषक है तो भूमि को पट्टे पर न देने से जो भुगतान उस छोड़ना पड़ता है, वह उसकी भूमि को पट्टे न देने से जो भुगतान उसे छोड़ना पड़ता है, वह उसकी भूमि की स्थानान्तरण लागत है जो समान रूप से उत्पादन की लागत में प्रवेश कर जाती है, परन्तु उसकी उपस्थिति छिपी होती है।

(3) उधोग की दृष्टि से :- उधोग की दृष्टि से भूमि की स्थानान्तरण लागत होती है और इस प्रकार किसी उपयोग में भूमि की समस्त आय लगान नहीं होता। चूंकि लगान में स्थानान्तरण लागत सम्मिलित की जाती है, इसलिए एक विशेष उधोग में प्रयोग में भूमि की वास्तविक आय का उतना भाग ही उत्पादन लागत में जोड़ा जाता है जोकि स्थानान्तरण आय के बराबर होता है और यह कीमत निर्धारण में भी सम्मिलित होता है।

निष्कर्ष

उपर्युक्त विवेचनाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि लगान का आधुनिक सिद्धांत, रिकार्डों के लगान सिद्धांत से श्रेष्ठ है तथा उस पर एक सुधार है।

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