प्रो. बॉमोल का बिक्री अधिकतम सिद्धांत (Baumol's Sales Maximisation Model)

प्रो. बॉमोल का बिक्री अधिकतम सिद्धांत (Baumol's Sales Maximisation Model)

प्रो. बॉमोल का बिक्री अधिकतम सिद्धांत (Baumol's Sales Maximisation Model)

प्रश्न- प्रो. बॉमोल का बिक्री अधिकतम मॉडल का आलोचनात्मक व्याख्या करे?

उत्तर- प्रो. बॉमोल का कहना है कि किसी भी फर्म का अन्तिम उद्देश्य लाभ को नहीं बल्कि बिक्री को अधिकतम करना होता है। उनका विचार है कि फर्म अपनी बिक्री को इसलिए बढ़ाने का प्रयत्न नहीं करती कि वे अपनी परिचालन कुशलता तथा लाभों के उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहती है, बल्कि एक व्यापारी के लिए "बिक्री स्वयं में एक उद्देश्य बन गई है"। बिक्री-अधिकतम से बॉमोल का तात्पर्य बिक्री की भौतिक मात्रा को अधिकतम करने से नहीं बल्कि बिक्री से प्राप्त कुल आय से है।

प्रो. डब्ल्यू. जे. बॉमोल 1958 में प्रकाशित पुस्तक "On the Theory of Oligopoly, Economics, new Series" में लिखते है कि "मेरी परिकल्पना है कि अल्पाधिकारी विशिष्ट रूप से न्यूनतम लाभ प्रतिबन्ध की शर्ते के साथ अपनी बिक्री को अधिकतम करने का प्रयत्न, करते है। न्यूनतम उचित स्वीकार्य लाभ के स्तर का निर्धारण एक प्रमुख विश्लेषणात्मक समस्या है तथा मै यहाँ केवल यही सुझाव दूंगा कि यह दीर्घकालीन तथ्यो द्वारा निर्धारित किया जाता है। लाभ इतना अधिक अवश्होना चाहिए जो वर्तमान विस्तार परियोजनाओं की वित्त व्यवस्था के लिए आवश्यक धारित आय प्रदान कर सके साथ ही यह इतना लाभांश प्रदान करें जो सम्भावी शेयरो के क्रेताओं के लिए, भविष्य में शेयरों के निर्गमन को आकर्षक बना सके"

न्यूनतम लाभ प्रतिबन्ध की शर्ते के साथ बिक्री अधिकतम को व्यावसायिक फर्मों के उद्देश्य के रूप में लेकर बॉमोल एक अल्पाधिकारिक फर्म द्वारा कीमत तथा उत्पादन मात्रा के निर्धारण, इनके द्वारा किये गये विज्ञापन व्यय, उत्पादन एवं साधनों के संयोगों के चुनाव तथा उपरिव्यय में हुए परिवर्तनों के पदार्थ के मूल्य पर प्रभाव की व्याख्या करते है। जो निम्नलिखित है:

(1) बिक्री अधिकतम करना : कीमत तथा उत्पादत निर्धारण - प्रो. बामोल के बिक्री या कुल आय को अधिकतम करने के मॉडल को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कर सकते है।

प्रो. बॉमोल का बिक्री अधिकतम सिद्धांत (Baumol's Sales Maximisation Model)

रेखाचित्र से स्पष्ट है - TR = कुल आय वक्र, TC = कुल लागत वक्र, ML = न्यूनतम लाभ रेखा, TP = कुल लाभ वक्र , X- अक्ष पर कुल उत्पादन तथा Y-अक्ष पर कुल आय

कुल लागत तथा कुल लाभों को मापा गया है। TC के आरम्भ बिन्दु (O) से प्रारम्भ होने का सम्बंध दीर्घकाल की लागत एवं आय से है।

यदि फर्म का उद्देश्य लाभों को अधिकतम करना है तो यह OA मात्रा का उत्पादन करेगा क्योंकि OA उत्पादन TP वक्र के उच्चतम बिन्दु के अनुरूप है। परन्तु प्रो. बामोल के अनुसार फर्म का उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना नही है। दूसरी ओर यदि फर्म बिक्री (कुल आय) को अधिकतम करना चाहती है तो वह उत्पादन का स्तर OC निर्धारित करेंगी जो कि OA से अधिक है। इस कुल आय अधिकतम करने वाले उत्पादन स्तर OC पर, फर्म CG के बराबर कुल लाभ प्राप्त कर रही है जो कि AH अधिकतम लाभों जिनको प्राप्त किया जा सकता है से कम है। किंतु उत्पादन OA से अधिक OC है।

प्रो बामोल का कहना है कि व्यापारिक फर्मों का उद्देश्य कुल आय को अधिकतम करना है, परन्तु शर्त यह है कि न्यूनतम लाभ अवश्य प्राप्त हो । OM यदि न्यूनतम कुल लाभ है जो कि फर्म प्राप्त करना चाहती है तो ML न्यूनतम लाभ रेखा होगी। यह न्यूनतम लाभ रेखा ML कुल लाभ वक्र TP को E बिन्दु पर काटती है। इसलिए यदि फर्म OM न्यूनतम लाभों के साथ अधिकतम कुल आय चाहती है, जैसा कि प्रो. बामोल का विचार है तो यह OB मात्रा का उत्पादन व बिक्री करेगी। OB उत्पादन पर फर्म को BR1 कुल आय प्राप्त होगी जो कि अधिकतम सम्भव कुल आय CR₂ से कम है। परन्तु कुल आय BR1 अधिकतम सम्भव आय है जो OM न्यूनतम लाप्राप्त करने के लिए आवश्यक है। र्म ON मात्रा का उत्पादन करके भी OM न्यूनतम लाभों को प्राप्त कर सकती है परन्तु ON उत्पादन पर कुल आय OB उत्पादन पर प्राप्त हो रही कुल आय से बहुत कम है।

अधिकतम आय स्थिति में कीमत कम होगी क्योंकि उत्पादन अधिक है। OB उत्पादन पर जो कीमत वसूल की जाएगी वह होगी

उद्यम कर्ता को न्यूनतम स्वीकार्य लाभ स्तर को नीचा करना होगा या उद्योग से बाहर निकलना पड़ेगा

(2) बिक्री अधिकतम : अनुकूलतम विज्ञापन व्यय- कोई फर्म कितना विज्ञापन व्यय करेगी, यह मुख्यतः फर्म के उद्देश्य से प्रभावित होता है कि वह बिक्री को अधिकतम करना चाहती है अथवा अपने ला। बामोल, कुल आय अथवा बिक्री पर विज्ञापन व्यय के प्रभाव के संबंध में अनुभवगम्य प्रमाणो को उद्धरित करते है, कि किसी फर्म द्वारा विज्ञापन व्यय में वृद्धि सदैव बिक्री की कुल भौतिक मात्रा में वृद्धि करेगी, यद्यपि एक बिन्दु के उपरान्त यह बिक्री घटती दर पर बढ़ेगी। अतः विज्ञापन व्यय में वृद्धि हमेशा कुल आय में वृद्धि उत्पन्न करेगी यद्यपि एक सीमा के बाद घटते प्रतिफल के लागू होने की सम्भावना बनी रहती है।

बिक्री-अधिकतम एवं लाभ अधिकतम दोनो दृष्टिकोण से इस अनुकूलतम विज्ञापन व्यय को रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है

प्रो. बॉमोल का बिक्री अधिकतम सिद्धांत (Baumol's Sales Maximisation Model)

रेखाचित्र में X-अक्ष पर विज्ञापन व्यय तथा कुल लागत, कुल आय एवं कुल लाभ को Y अक्ष पर मापा गया है। TR कुल, आय वक्र है जो पदार्थ के मूल्य के दिये हुए होने पर, जैसे- जैसे विज्ञापन व्यय बढ़ता है, कुल आय में होने वाले परिवर्तनों का निरुपण करता है। X अक्ष के साथ 45° का कोण OD विज्ञापन व्यय को बताता है। इसका कारण यह है कि केवल X- अक्ष पर प्रदर्शित विज्ञापन व्यय को Y अक्ष पर विज्ञापन लागत के रूप में स्थानान्तरित कर दिया है जैसे 0S = SK I फर्म की अन्य लागतो को, जो वह स्थिर एवं परिवर्तनशील साधनों पर लगाती है, विज्ञापन व्यय की मात्रा से पूर्णतः स्वतंत्र रखा गया है। इसलिए अन्य‌ लागतो की एक निश्चित मात्रा को विज्ञापन लागत वक्र OD मे जोड़ देने पर कुल लागत वक्र TC प्राप्त होता है। TR तथा TC का अन्तर निकाल कर PP' कुल लाभ वक्र खींचते है।

रेखाचित्र में देखा जा सकता है कि यदि फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने की कोशिश करती है तो यह OA1 के बराबर विज्ञापन व्यय करेगी जिस पर कि लाभ वक्र अपने अधिकतम बिन्दु M पर पहुँचता है। दूसरी ओर यदि OP1 न्यूनतम लाभ का बन्धन है तो फर्म अपनी कुल आय को अधिकतम करने का निर्णय करती है तो वह OA₂ मात्रा विज्ञापन पर खर्च करेगी जो OA1 की अपेक्षा अधिक है। इस तरह हम देखते है कि प्रतिबन्धित आय अधिकतम उद्देश्य मे लाभ अधिकतम उद्देश्य की अपेक्षा विज्ञापन व्यय का उच्च स्तर होता है।

प्रो बामोल यह निष्कर्ष निकालते है कि "बिक्री अधिकतम करने वाले के लिए यह हमेशा लाभप्रद होगा कि वह अपने विज्ञापन व्यय को तब तक बढ़ाता जाय तब तक कि वह लाभ के बन्धन द्वारा न रोक दिया जाय - जब तक कि लाभ न्यूनतम स्वीकार्य सीमा तक कम न हो जाए। इसका अर्थ है कि विज्ञापन को बिना किसी लाभ प्रतिबन्ध का उल्लंघन किये लाभ अधिकतम सीमा OA2 तक बढ़ाना संभव है। इसके अतिरिक्त, यह वृद्धि अपेक्षित होगी क्योंकि मान्यतानुसार यह भौतिक बिक्री को बढ़ायेगी तथा उसके साथ बिक्री आनुपातिक रूप से बढ़ जायेगी"।

(3) बिक्री अधिकतम करना : उत्पादन मात्रा एवं साधन संयोगो का चुनाव- इसे रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं

प्रो. बॉमोल का बिक्री अधिकतम सिद्धांत (Baumol's Sales Maximisation Model)

रेखाचित्र में X की उत्पादन मात्रा को X अक्ष पर तथा पदार्थ Y की उत्पादन मात्रा को Y अक्ष पर नापा गया है। CC' वक्र उत्पादन सम्भावना वक्र है जो X एवं Y वस्तु की उत्पादन मात्राओं के उन विभिन्न संयोगो को दर्शाता है जो एक दिये हुए निश्चित व्यय अथवा लागत से उत्पादित किये जा सकते है। R1, R2, R3 इत्यादि सम आय वक्र है। एक सम आय वक्र दो पदार्थों के उन सभी संयोगो को प्रदर्शित करने वाले बिन्दुओं का मार्ग है जिनकी बिक्री से समान आय प्राप्त होती है। कुल लाभ दो वस्तुओ के E संयोग के चुनाव पर अधिकतम होगा जहाँ दिया हुआ 'उत्पादन सम्भावना वक्र' CC' जो एक दिये हुए व्यय अथवा लागत को व्यक्त करता है, सम आय वक्र R3 को स्पर्श करता है। परन्तु दो वस्तुओं का E संयोग एक ऐसा संयोग भी है जिस पर बिक्री आय अधिकतम होती है।

इसका कारण यह है कि बिन्दु E है, उत्पादन सम्भावना वक्र CC' द्वारा प्रतिरुपित दिये हुए कुल व्यय अथवा लागत द्वारा प्राप्त होने वाले उच्चतम आय वक्र पर स्थित है।

प्रो बामोल मानते है कि अधिकतम सम्भव लाभ तथा बिक्री अधिकतम करने वाले उत्पादक के इच्छित न्यूनतम लाभ मे जो अन्तर होता है "वे त्याग करने योग्य लाभ की एक ऐसी निधि है जिसे पदार्थों की बिक्री को बढ़ाकर कुल आय में वृद्धि के लिए प्रयोग किया जाता है"। इसे इस प्रकार व्यक्त कर सकते है -

इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि फर्म अपनी बिक्री को अधिकतम करने का निर्णय लेती है तथा इसके लिए अधिक मात्रा का उत्पादन करती है, तो भी यह सापेक्ष रूप से अलाभदायक पदार्थों को टालेगी।

उपर्युक्त रेखाचित्र मे ही साधन संयोगों के चुनाव की व्याख्या करने के लिए एक साधन की मात्रा को X अक्ष पर तथा दूसरे साधन की मात्रा को Y अक्ष पर दर्शाएँगे । CC' अब सम लागत रेखा हो जायेंगी। इसी प्रकार R1, R2, R3, R4 सम आय रेखाएँ होगी जिनमे से प्रत्येक को, एक पदार्थ की सम मात्राओं से पदार्थ के दिये हुए मूल्य को गुणा कर के प्राप्त किया जा सकता है। E संतुलन बिन्दु है जहाँ से स्पष्ट होता है कि लाभ अधिकतम करने वाली फर्म की अपेक्षा बिक्री अधिकतम करने वाली फर्म द्वारा कुल आय को जितना ही अधिक करने का प्रयत्न करेगी प्रयुक्त साधनों की मात्रा उतनी ही अधिक रखनी पड़ेगी।

फलतः बामोल निष्कर्ष पर पहुंचते है कि "व्यय के स्तर के दिये हुए होने पर बिक्री अधिकतम करने वाली फर्म प्रत्येक पदार्थ की उसी मात्रा का उत्पादन करेगी तथा उनकी बिक्री भी उसी तरह करेगी जिस प्रकार लाभ अधिकतम करने वाली फर्म करती है"

(4) बिक्री अधिकतम करना : कीमत निर्धारण तथा उपरिव्यय में परिवर्तन- लाभ अधिकतम की मान्यता पर आधारित परम्परागत मूल्य सिद्धांत का दावा है कि जब तक उपरिव्यय उत्पादन मात्रा के साथ परिवर्तित नहीं होता, उसमे परिवर्तन उत्पादित पदार्थ के मूल्यों को किसी प्रकार प्रभावित नहीं करेगा यहाँ तक कि वह पदार्थों के उत्पादित होने वाले उत्पादन को भी प्रभावित नहीं करता है। परन्तु वास्तविक व्यवहार में यह देखा गया है कि उपरिव्यय में परिवर्तन मूल्य एवं उत्पादन मात्रा दोनों को प्रभावित करता है। अतः बामोल का कथन है, "अब तक का प्राप्त सिद्धांत का यह अंश निश्चित ही व्यावसायिक व्यवहार से भिन्न है, जिसमे स्थिर लागतो में वृद्धि सामान्यतः मूल्य वृद्धि के लिए गम्भीरता से विचार करने का अवसर होता है"।

यदि एक फर्म न्यूनतम स्वीकार्य लाभ के बंधन के साथ अपनी बिक्री को अधिकतम करना निश्चित करती है तथा वह संतुलन की स्थिति में है तब उपरिव्यय में वृद्धि के कारण कुल लागतो में वृद्धि हो जायेगी तथा उसके परिणामस्वरूप फर्म का लाभ न्यूनतम स्वीकार्य लाभ स्तर से नीचे गिर जायेगा। लाभ स्तर में इस प्रकार की गिरावट को रोकने के लिए तथा फर्म को पुनः सन्तुलन की स्थिति में लाने के लिए प्रतिबन्धित बिक्री अधिकतम करने वाली फर्म पदार्थ के उत्पादन को कम कर देगी ताकि उत्पादन का विक्रय मूल्य बढ़ाया जा सका इसे चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं

प्रो. बॉमोल का बिक्री अधिकतम सिद्धांत (Baumol's Sales Maximisation Model)

उपर्युक्त रेखाचित्र में केवल कुल लाभ वक्रों को प्रद‌र्शित किया गया है। लागत एवं आय की एक निश्चित स्थिति के दिये होने पर कुल लाभ वक्र P1P'1 है। यदि OPm न्यूनतम लाभ बन्धन है तब OPm न्यूनतम लाभ प्रतिबन्ध के साथ बिक्री अधिकतम करने वाली फर्म OS उत्पादन की मात्रा पर सन्तुलन में होगी। दूसरी ओर लाभ अधिकतम करने वाली फर्म OM उत्पादन मात्रा पर सन्तुलन में होगी। मान लीजिए कि उपरिव्यय में P1P₂ मात्रा के बराबर वृद्धि होती है तो लाभ वक्र में एक सम विचलन नीचे की ओर P1P₂ के बराबर मात्रा में होगा। इस प्रकार विचलन के बाद हमें P2P'2 कुल लाभ वक्र प्राप्त होता है। नये लाभ वक्र P2P'2 से भी लाभ अधिकतम करने वाली उत्पादन की मात्रा पूर्व के स्तर OM पर रहती है। किंतु एक बिक्री अधिकतम करने वाली फर्म OPm लाभ प्रतिबन्ध के साथ उत्पादन की मात्रा को OS' तक घटायेगी। उत्पादन की मात्रा में यह कमी फर्म को उत्पादित पदार्थ की कीमत को बढ़ाने के लिए प्रेरित करेगी ।

प्रो बामोल कीमत प्रतिस्पर्धा की तुलना में गैर कीमत प्रतिस्पर्धा को अधिक बल देते हैं। इनके अनुसार 'विज्ञापन, सुधरी सेवाओं इत्यादि का बिक्री पर प्रभाव पर्याप्त मात्रा मे निश्चित होता है, जबकि प्रायः इनकी लाभदायकता पर्याप्त रूप से संदिग्ध हो सकती है। अतः बिक्री अधिकतम सिद्धांत यह एक बड़ी परिकल्पना करता है कि व्यवसायी गैर-कीमत प्रतिस्पर्धा को अधिक लाभदायक विकल्प समझेगा"।

आलोचनात्मक मूल्यांकन

1970 ई. में प्रकाशित पुस्तक " Price Behaviour of Firms Economic Journal "में शेफर्ड ने लिखा है कि एक अल्पाधिकारी विकुंचित माँग वक्र का सामना करता है तथा, यह कि यदि विकुंचित काफी बड़ा है तो उसके अनुरूप ही उत्पादन स्तर पर कुल आय एवं कुल लाभ अधिकतम होगे । परन्तु अप्रैल 1970 में प्रकाशित पुस्तक 'On the Sales Revenue Maximization Hypothesis, Journal of Industrial Economics, में बताया है कि शेफर्ड का निष्कर्ष नियमविरुद्ध हो जाता है। यदि अल्पाधिकारिक फर्मे किसी भी प्रकार की गैर कीमत स्पर्धा जैसे कि विज्ञापन, पदार्थ विभेद, सेवा में सुधार इत्यादि में आसक्त होती है और वास्तविक जगत में वे सामान्य रूप से ऐसा करती है।

बिक्री अधिकतम मॉडल के विरुद्ध महत्त्वपूर्ण एवं विश्वासोत्पादक आलोचना सी. जे. हाकिंस ने अपनी पुस्तक "The Revenue maximization oligopoly model: comment. American Economic Review" में की है। बॉमोल के अनुसार बिक्री अधिकतम करने वाली फर्म लाभ अधिकतम करने वाली फर्म की तुलना में वस्तु की अधिक मात्रा उत्पादित करती है तथा अधिक विज्ञापन करती है। परन्तु हॉकिंस ने यह बताया है कि यह निष्कर्ष सामान्यता नियमविरुद्ध है। उसके अनुसार एक पदार्थ का उत्पादन करने वाली फर्मों की दशा मे, लाभ अधिकतम करने वाली फर्म की तुलना में बिक्री अधिकतम करने वाली र्म अधिक, कम अथवा समान उत्पादन मात्रा का उत्पादन करेगी तथा अधिक, कम, अथवा समान विज्ञापन व्यय करेगी। यह सब मूल्य में कटौती के प्रति मांग एवं कुल आकी प्रतिक्रियात्मकता की तुलना में विज्ञापन व्यय के प्रति माँग अथवा कुल आय की प्रतिक्रिया पर निर्भर होता है। जहाँ तक बहु-पदार्थ र्मों, जो आजकल के वास्तविक जगत में सामान्यतः पायी जाती है: का प्रश्न है, स्थैतिक मॉडल में बिक्री अधिकतम एवं लाभ अधिकतम दोनो मान्यताएं उत्पादन मात्रा एवं साधन संयोगों के चुनाव में एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते है। परन्तु स्थैतिक मॉडल के अतिरिक्त बामोल ने बिक्री अधिकतम करने वाली फर्म का एक विकास मॉडल भी विकसित किया है जिसे विलियम्सन ने सिद्ध किया है कि लाभ - अधिकतम करने वाली फर्म की तुलना में इससे भिन्न परिणाम प्राप्त होते हैं।

A Mathematical Presentation of Baumd's

We define.

R =ƒ1(x, a) = Total revenue function.

C = ƒ2(x) = Total production cost function

`\overline{\pi}`

= Minimum acceptable profit

A(a) = Total cost of advertising function

The firm aims at the maximisation of

R =ƒ1(x, a)

Subject to the minimum profit constraint

`\pi=R-C-A\geq\overline{\pi}` 

It is assumed that 

`\frac{\partial R}{\partial a}>0,\frac{\partial C}{\partial X},X>0`

Baumol's assumption 

`\frac{\partial R}{\partial a}>0`

That is, demand shifts always in response to advertising, ensures that the constraint is operative

(1) For the constrained firm we have

R - C - A =`\overline{\pi}`

(2) using the Lagrangian multiplier method we may write the constraint in the form

`\lambda(R-C-A-\overline\pi)=0`

where λ is the Lagrangian multiplier

(3) we next maximise the Lagrangian expression 

`\phi=R+\lambda(\pi-\overline\pi)`

`or,\phi=R+\lambda(R-C-A-\overline\pi)---(1)`

Given that we choose to write the second term of the Lagrangian form with a positive sign, the value of λ must be positive (λ > 0)

The necessary conditions for a maximum are 

`\frac{\partial\phi}{\partial X}\leq0,\frac{\partial\phi}{\partial a}\leq0,\frac{\partial\phi}{\partial\lambda}\geq0,`

equation (1) Differentiating with respect to x we Obtain.

`\frac{\partial\phi}{\partial X}=\frac{\partial R}{\partial X}+\lambda\left(\frac{\partial R}{\partial X}-\frac{\partial C}{\partial X}\right)\leq0`

Given X > 0, the above expression holds as an equality solving for `\frac{\partial C}{\partial X}` 

we obtain

`\frac{\partial C}{\partial X}=\frac{\lambda+1}\lambda.\frac{\partial R}{\partial X}=\left(1+\frac1\lambda\right)\frac{\partial R}{\partial X}---(2)`

Giver that λ > 0 it is obvious that 

`\frac{\partial C}{\partial X}>\frac{\partial R}{\partial X}or,MC>MR`

While for a profit maximiser MC = MR. This shows that the output of a sales maximiser will be larger than the output of a profit Maximiser.

Equation (2) Differentiating with respect to advertising a we obtain

`\frac{\partial\phi}{\partial a}=\frac{\partial R}{\partial a}+\lambda\left(\frac{\partial R}{\partial a}-\frac{\partial A}{\partial a}\right)\leq0`

Assuming a > 0, the above expression holds as an equality. solving for `\frac{\partial A}{\partial a}` we obtain

`\frac{\partial A}{\partial a}=\left(1+\frac1\lambda\right)\frac{\partial R}{\partial a}`

`\left(\frac{\partial A}{\partial a}/\frac{\partial R}{\partial a}\right)=\left(1+\frac1\lambda\right)---(3)`

While for a profit maximiser

`\left(\frac{\partial A}{\partial a}/\frac{\partial R}{\partial a}\right)=1`

Thus given λ > 0, advertising expenditure will be higher for a sales maximiser.

M. Kofoglis and R. Bushnell have extended Baumol's mathematical presentation as follows.

(1) Equation (2) may be written as 

`\left(\frac{\partial C}{\partial X}/\frac{\partial R}{\partial X}\right)=\left(1+\frac1\lambda\right)--(4)`

For a > 0, expression (equation -3) holds. Hence when advertising takes place the following equilibrium condition holds

`\left(\frac{\partial C}{\partial X}/\frac{\partial R}{\partial X}\right)=\left(\frac{\partial A}{\partial a}/\frac{\partial R}{\partial a}\right)=\left(1+\frac1\lambda\right)--(5)`

This implies that surplus profits will be devoted partly to advertising and partly, to increased production

(2) If we make no assumption about the value of a (advertising), then expression (equation-3) becomes

`\left(\frac{\partial A}{\partial a}/\frac{\partial R}{\partial a}\right)\geq\left(1+\frac1\lambda\right)--(6)`

Combining (equation- 4) and (equation-5 ) we obtain

`\left(\frac{\partial R}{\partial X}/\frac{\partial C}{\partial X}\right)\geq\left(\frac{\partial R}{\partial a}/\frac{\partial A}{\partial a}\right)--(7)`

The inequality sign implies that an extra money. unit spent on producing additional x adds more to the total revenue that if it were spent on additional advertising. Thus all surplus profit will be spent on increased production and no advertising will take place.

In any case (Kafoglis and Bushnell conclude) price will always be lower and advertising expenditure smaller than when all surplus profit is allocated to advertising.

In conclusion Baumol's mathematical version of his advertising model allows for 'excessive' production expenditure and lower price as well as for the more commonly accepted case of 'excessive’ advertising and higher price. In fact Baumol's model is even compatible with strong price competition, which may result in a price lower than the me. This can be easily seen if in the equilibrium condition

`MC>MR`

We substitute

`MR=P\left(1-\frac1e\right)`

to obtain 

`MC>P\left(1-\frac1e\right)`

with appropriate value of lel it is possible that

`MC>P>MR`

निष्कर्ष

उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद प्रो. बामोल का बिक्री अधिकतम मॉडल, लाभ अधिकतम सिद्धांत का महत्त्वपूर्ण विकल्प है तथा हमे वास्तविकता के अधिक निकट ले आता है यद्यपि कुछ दशाओ मे बिक्री एवं लाभ अधिकतम करने के सिद्धान्तो से समान अथवा मिलते जुलते परिणाम निकलते है तो भी प्रबन्धक अधिरोहित बड़े व्यावसायिक निगमों के इस युग में प्रबन्धकीय अभिप्रेरणा के विषय में मनोरम अर्न्तदृष्टि प्रदान करके तथा साथ ही अपने मॉडल में विज्ञापन एवं गैर-कीमत प्रतिस्पर्धा करने के सिद्धांतो के अन्य रूपो को अपने मॉडल में भली भाँति सम्मिलित करके बामोल ने हमारे कीमत सिद्धांत में महत्वपूर्ण योगदान किया है।

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