मुद्रा की पूर्ति तथा उच्च शक्ति मुद्रा [SUPPLY OF MONEY AND HIGH POWERED MONEY]

मुद्रा की पूर्ति तथा उच्च शक्ति मुद्रा [SUPPLY OF MONEY AND HIGH POWERED MONEY]

मुद्रा की पूर्ति तथा उच्च शक्ति मुद्रा  [SUPPLY OF MONEY AND HIGH POWERED MONEY]

प्रश्न :- मुद्रा की पूर्ति से आप क्या समझते हैं? इसकी विभिन्न अवधारणाओं की व्याख्या करें।

☞  मुद्रा की पूर्ति से आप क्या समझते हैं? भारत में मुद्रा पूर्ति के मापकों और संघटकों का वर्णन करें।

☞  मुद्रा पूर्ति को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन करें।

उत्तर :- मुद्रा की पूर्ति का अर्थ (Meaning of Supply of Money) - मुद्रा की पूर्ति से आशय किसी समय विशेष में अर्थव्यवस्था में उपलब्ध मुद्रा की कुल मात्रा से है। किन्तु मुद्रा की पूर्ति में मुद्रा के केवल उस स्टॉक को सम्मिलित किया जाता है जो जनता के पास होता है। मुद्रा आपूर्ति करने वाले के पास उपलब्ध मुद्रा को इसमें शामिल नहीं किया जाता है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि देश की सरकार तथा वित्तीय संस्थाएँ मुद्रा की आपूर्ति करने वाले होते हैं। अतः इनके पास उपलब्ध मुद्रा के स्टॉक को मुद्रा की पूर्ति में शामिल नहीं किये जाते हैं।

मुद्रा की पूर्ति की परिभाषा (DEFINITION OF SUPPLY OF MONEY)

मुद्रा की पूर्ति की परिभाषा के सम्बन्ध में तीन अलग-अलग मत हैं, जो इस प्रकार हैं-

(1) परम्परागत या संकीर्ण अर्थ में (Under Traditional or Narrow Approach) - मुद्रा की पूर्ति का सबसे प्रचलित मत परम्परागत या संकीर्ण अर्थ है। इस अर्थ के अनुसार मुद्रा की पूर्ति से आशय लोगों के पास नकद मुद्रा तथा व्यापारिक बैंकों के पास जमा धन का वह हिस्सा है जो माँग जमा है। इस अर्थ के अनुसार विनिमय के माध्यम के लिए वह मुद्रा जो जनता के पास करेन्सी के रूप में उपलब्ध है या जनता चेकों के माध्यम से बैंक से निकासी योग्य जमा हो, इन दोनों को शामिल किया जाता है। इस प्रकार,

मुद्रा की पूर्ति (M₁) = जनता के पास करेन्सी (नोट + सिक्के) + बैंकों की माँग जमा

मुद्रा की पूर्ति के इस मत को संकुचित परिभाषा मानी जाती है।

(2) व्यापक अर्थ में (Under Broad Approach) - इस अर्थ में मुद्रा की पूर्ति को परिभाषित करते हुए प्रो. फ्रीडमैन (Friedman) ने कहा है कि "किसी विशेष समय में मुद्रा की पूर्ति से आशय सही अर्थों में डॉलरों की वह राशि है जो लोगों के जेब में होती है अथवा उनके खातों में बैंकों में माँग जमा के रूप में और वाणिज्यिक बैंकों के सावधि जमाओं (Time deposits) के रूप में विद्यमान होती है।" यहाँ डॉलर के स्थान पर किसी भी देश की मुद्रा को लिया जा सकता है। अतः इस परिभाषा के अनुसार मुद्रा के विनिमय सम्बन्धी कार्यों के साथ-साथ मुद्रा के संचय (Store of money) को भी महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसे अमेरिका में M₂ तथा ब्रिटेन और भारत में M3 नाम से जाना जाता है। इस प्रकार,

M3 = करेन्सी + बैंकों में माँग जमा + सावधि जमाएँ

या M3 = M₁ + सावधि जमाएँ

(3) गुर्ले एवं शॉ दृष्टिकोण (Gurley and Shaw Approach)- मुद्रा की पूर्ति की माप का यह सबसे व्यापक दृष्टिकोण है। इसे 'गुर्ले तथा शॉ' ने प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार मुद्रा की पूर्ति में उपर्युक्त M₂ के साथ बचत बैंकों की जमा राशि तथा अन्य साख एवं जमा राशि को भी सम्मिलित किया जाता है।

अब उपर्युक्त तीनों परिभाषाओं पर विचार करें तो यह कहा जा सकता है कि मुद्रा की पूर्ति की परिभाषा देश विशेष की मौद्रिक नीति की क्रियाशीलता पर आधारित होनी चाहिए। पहली परिभाषा से मुद्रा के विनिमय कार्य को बल मिलता है तो दूसरी परिभाषा मौद्रिक नीति की क्रियाशीलता के लिए उचित है। जहाँ तक तीसरी परिभाषा का प्रश्न है, यह अतिव्यापक होने के कारण अव्यावहारिक है।

भारत में मुद्रा पूर्ति के मापक और संघटक

अप्रैल 1977 के पूर्व तक भारत में मुद्रा की माप के लिए संकुचित विधि अपनायी जाती थी, जिसमें केवल जनता के करेन्सी तथा माँग जमाओं को ही शामिल किया जाता था। किन्तु अप्रैल 1977 के बाद से रिजर्व बैंक ने मुद्रा की पूर्ति की माप के लिए नयी विधि को प्रयोग में लिया है। ये चार विधियाँ मुद्रा पूर्ति की माप के संघटक हैं, जिसे M₁, M₂, M3 और M4 के रूप में परिभाषित किया गया है।

(1) M₁ माप (M₁ Measurement)- इस माप के अनुसार M₁ = जनता के पास करेन्सी (C) + माँग जमाएँ (DD) + रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाएँ (OD)

यहाँ, C = जनता के पास करेन्सी (Currency with the Public) जिसमें पत्र मुद्रा तथा सिक्के शामिल होते हैं।

DD = जनता की माँग जमा (Demand Deposit) जो व्यापारिक बैंकों में जमा होती है और जिसे चेकों के माध्यम से निकासी किया जा सकता है।

OD = अन्य जमाएँ (Other Deposits) जिसमें निम्नलिखित शामिल होते हैं-

(i) RBI के पास सार्वजनिक वित्तीय संस्थाओं, जैसे IDBI की माँग जमाएँ।

(ii) RBI के पास विदेशी केन्द्रीय बैंकों तथा विदेशी सरकारों की माँग जमाएँ।

(iii) अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं, जैसे IMF तथा विश्व बैंक की माँग जमाएँ।

किन्तु OD में देश की सरकार की RBI के पास जमाएँ तथा देश की बैंकिंग व्यवस्था की RBI के पास जमाओं को शामिल नहीं किया जाता है।

(2) M2 माप (M2 Measurement) - M₁ की तुलना में यह मुद्रा की पूर्ति की व्यापक माप है। इसमें M₁ के सभी घटकों के अतिरिक्त डाकघरों में जनता की बचतों को शामिल किया जाता है। अर्थात् M₂ = M₁ + डाकघरों के बचत बैंकों में जमा

M₂ = M₁ + Saving Deposits with Post Office Saving Banks

M₂ = M₁ + डाकघरों के बचत बैंकों में जमा

(3) M₃ माप (M₃ Measurement) - M₁ की तुलना में M₃ भी मुद्रा की पूर्ति की एक व्यापक अवधारणा है। इसमें M₁ के सभी घटकों के अतिरिक्त व्यापारिक बैंकों के पास लोगों की शुद्ध सावधि जमाओं को शामिल किया जाता है। अर्थात्

M₃ = M₁ + व्यापारिक बैंकों की शुद्ध सावधि जमाएँ

(4) M4 माप (M4 Measurement) - मुद्रा पूर्ति की माप की यह सबसे व्यापक अवधारणा है। इसमें M₃ के सभी घटकों के अतिरिक्त इसमें डाकघरों की समस्त जमाओं (किन्तु राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (National Saving Certificate-NSC) को छोड़कर) को जोड़ा जाता है। अर्थात्

M4 = M₃ + डाकघरों की कुल जमाएँ (NSC को छोड़कर)

= M₃ + डाकघरों के सभी प्रकार के जमा - राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र

M₃ + All deposits with Post Office Saving Bank NSC

इस प्रकार उपर्युक्त अवधारणाओं में M₁ तथा M₂ मुद्रा पूर्ति की संकुचित अवधारणाएँ हैं, जबकि M₃ और M4 मुद्रा पूर्ति की विस्तृत अवधारणाएँ हैं किन्तु इसमें भी मुद्रा की तरलता कम है।

मुद्रा की पूर्ति के माप के विभिन्न घटकों को चार्ट के द्वारा एक दृष्टि में निम्न प्रकार दिखलाया जा सकता है-

मुद्रा की पूर्ति तथा उच्च शक्ति मुद्रा  [SUPPLY OF MONEY AND HIGH POWERED MONEY]

मुद्रा पूर्ति के इन चार मापों में से रिजर्व बैंक आँकड़े प्रकाशित करता है। इन चार मापों में M₃  का विशेष महत्व है। क्योंकि M₁  संकुचित मुद्रा है और इसमें केवल जनता के पास करेन्सी तथा बैंकों के पास माँग जमा को शामिल किया जाता है। मौजूदा समय में रिजर्व बैंक M₃ को प्राथमिकता देता है, क्योंकि इसमें उसकी साख नीति के लिए साख बजट निर्मित करने हेतु जनता के पास करेन्सी और बैंकों के पास कुल जमा शामिल होती है। चक्रवर्ती समिति ने भी M₃ के प्रयोग की सिफारिश की थी। अतः विकसित देशों की तरह भारत में भी M₃ मुद्रा पूर्ति का प्रमाणित माप है।

मुद्रा स्टॉक और मुद्रा प्रवाह (MONEY STOCK AND FLOW OF MONEY)

साधारण बोल-चाल की भाषा में मुद्रा स्टॉक और मुद्रा प्रवाह को एक-दूसरे का पर्याय मान लिया जाता है; किन्तु यह धारणा सही नहीं है। क्योंकि किसी समय विशेष पर अर्थव्यवस्था में चलन की जो मात्रा रहती है उसे मुद्रा स्टॉक कहते हैं। दूसरे शब्दों में, किसी खास तिथि को अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति की जो मात्रा होती है, वह मुद्रा स्टॉक के रूप में जाना जाता है। दूसरी ओर, जब मुद्रा की पूर्ति किसी अवधि विशेष में देखी जाती है तो वह मुद्रा प्रवाह के रूप में जानी जाती है। यदि मुद्रा स्टॉक को मुद्रा की औसत चलन गति से से गुणा कर दें तो मुद्रा प्रवाह को जाना जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि मुद्रा का स्टॉक 1,000 करोड़ रुपये है। तथा एक निश्चित समयावधि में उसका चलन वेग 20 है तो मुद्रा की पूर्ति 20,000 करोड़ रुपये होगी।

देश में मुद्रा का स्टॉक केन्द्रीय बैंक द्वारा नियन्त्रित होता है, किन्तु चलन-वेग केन्द्रीय बैंक द्वारा नियन्त्रित नहीं किया जा सकता है। चलन वेग तो जनता के हाथों में है। चलन-वेग से आशय जनता के हाथों में है। चलन-वेग से आशय जनता द्वारा मुद्रा की एक इकाई को विनिमय के लिए एक अवधि में प्रयोग करने से है।

मुद्रा पूर्ति मापक के सापेक्षिक महत्व

(RELATIVE IMPORTANCE OF MEASURES OF MONEY SUPPLY)

जैसाकि पहले स्पष्ट किया जा चुका है भारत में मुद्रा पूर्ति की चार धारणाएँ हैं, जिसे M₁, M₂, M₃, M4 के रूप में परिभाषित किया गया है। इन चार धारणाओं में से रिजर्व बैंक M₁ तथा M₃पर अपना ध्यान अधिक केन्द्रित करता है। इन दोनों में M, पर विशेष ध्यान दिया जाता है। जहाँ तक M₂ और M4 का प्रश्न है, इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है। क्योंकि इन दोनों मापों में डाकघरों में जमाओं को भी शामिल किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि डाकघरों में जो रकम जनता जमा करती है वह अर्थव्यवस्था के कुल जमा का नाममात्र भाग होता है। इसके अतिरिक्त डाकघरों की जमाओं पर रिजर्व बैंक का नियन्त्रण नहीं रहता है। इसके बावजूद अप्रैल 1977 से रिजर्व बैंक मुद्रा पूर्ति के चार मापों के आँकड़ो को प्रकाशित करता आ रहा है।

रिजर्व बैंक के नवीनतम माप के अनुसार Reserve Money (MO): Currency in circulation + Banker's deposits with the RBI + Other deposits with the RBI = Net RBI credit to the Government + RBI credit to Commercial Sector + RBI's Claim on Banks + RBI's net foreign assets + Government's currency liabilities to the Public RBI's net non-monetary liabilities.

मुद्रा पूर्ति को प्रभावित करने वाले तत्व (FACTORS AFFECTING MONEY SUPPLY)

किसी भी अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति अनेक तत्वों से प्रभावित होती है, जिनमें निम्नलिखित मुख्य हैं-

(1) केन्द्रीय बैंक की मौद्रिक नीति (Monetary Policy of the Central Bank) - केन्द्रीय बैंक की मौद्रिक नीति का मुद्रा पूर्ति में महत्वपूर्ण स्थान है। यदि देश का केन्द्रीय बैंक सस्ती मुद्रा नीति अपनाता है तो देश में कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप मुद्रा की पूर्ति बढ़ेगी। इसके विपरीत, यदि केन्द्रीय बैंक, बैंक दर को बढ़ाती है या CRR (Cash Reserve Ratio) को बढ़ाती है या खुले बाजार में प्रतिभूतियों को क्रय करती है तो इसका अर्थ हुआ महँगी मुद्रा नीति अपनायी जा रही है। ऐसा होने से मुद्रा की पूर्ति घटेगी।

(2) व्यापारिक बैंकों की साख निर्माण क्षमता एवं नीति (Commercial Bank's Capacity and Policy of Credit Creation) - बैंक जमाओं के आधार पर साख का सृजन करता है। बैंकिंग व्यवस्था में बैंकों के पास कोष की कितनी मात्रा उपलब्ध है, इस पर साख की मात्रा निर्भर है। यदि साख की मात्रा बढ़ेगी तो मुद्रा की पूर्ति भी बढ़ेगी। इसके विपरीत, जमा की मात्रा कम होने से साख की मात्रा कम हो जायेगी और मुद्रा की पूर्ति भी घट जायेगी। इसके अलावा साख की मात्रा का विस्तार या संकुचन रिजर्व बैंक के CRR पर भी निर्भर करता है।

(3) सरकार की राजकोषीय नीति (Government's Fiscal Policy) - यदि सरकार घाटे के बजट (Deficit budget) की नीति अपनाती है तो मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि होगी। इसके विपरीत, यदि सरकार बचत के बजट (Surplus budget) की नीति अपनाती है तो मुद्रा की पूर्ति कम होगी।

(4) जनता की इच्छा (Public Desire) - वाणिज्यिक बैंकों के साख निर्माण की क्षमता इस बात पर भी आधारित है कि जनता करेन्सी के रूप में अपने पास अधिक धन रखना चाहती है या बैंकों में जमा रखना चाहती है। यदि जनता व्यापारिक बैंकों के पास अधिक धन रखना चाहती है तो बैंकों के साख निर्माण की क्षमता बढ़ेगी और मुद्रा की पूर्ति अधिक होगी। इसके विपरीत, यदि जनता अपने पास करेन्सी के रूप में अधिक धन रखना चाहती है तो बैंकों के साख निर्माण की क्षमता कम होगी और मुद्रा की पूर्ति घटेगी।

मुद्रा की पूर्ति कौन करता है? (WHO SUPPLIES MONEY?)

आधुनिक समय में मुद्रा की पूर्ति सरकार, केन्द्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंक करते हैं। भारत में एक रुपया का नोट जारी करने तथा सिक्कों को ढालने का काम भारत सरकार का वित्त मंत्रालय करता है। भारत का केन्द्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया है। अतः भारत में रिजर्व बैंक के द्वारा न्यूनतम मुद्रा कोष प्रणाली (Minimum Reserve System) के आधार पर करेन्सी जारी की जाती है। रिजर्व बैंक को 200 करोड़ रुपये का सोना तथा विदेशी प्रतिभूतियाँ कोष में रखनी पड़ती हैं। इनमें 115 करोड़ रुपये का सोना होना आवश्यक है। व्यापारिक बैंक माँग जमा के आधार पर साख अथवा मुद्रा की पूर्ति का निर्माण करते हैं। व्यापारिक बैंकों द्वारा मुद्रा की पूर्ति का विस्तार या संकुचन रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति पर निर्भर है।

संकुचित मुद्रा तथा व्यापक मुद्रा की अवधारणाएँ

(NARROW MONEY AND BROAD MONEY CONCEPTS)

संकुचित मुद्रा तथा व्यापक मुद्रा में अन्तर इस बात का है कि देश में कुल मुद्रा पूर्ति का अनुमान M₁  M2, M₃ अथवा M4 में से किस मापक द्वारा लगाया जाता है। यदि मुद्रा के मापक के रूप में M₁ अथवा M₂ का प्रयोग हो रहा है तो यह संकुचित मुद्रा पूर्ति की अवधारणा है। इसके अलाव यदि यह माप M₃ या M4 है तो मुद्रा पूर्ति की व्यापक अवधारणा मानी जाती है।

उच्च शक्ति मुद्रा (HIGH POWERED MONEY)

उच्च शक्ति मुद्रा अथवा शक्तिशाली मुद्रा वह करेन्सी मुद्रा है जिसे सरकार तथा रिजर्व बैंक द्वारा जारी किया जाता है। इस करेन्सी का कुछ भाग जनता द्वारा रखा जाता है तथा शेष भाग रिजर्व बैंक द्वारा कोषों के रूप में अपने पास रखा जाता है।

H = C + R

जहाँ,

H = उच्च शक्ति मुद्रा

C = जनता के पास करेन्सी (पत्र मुद्रा + सिक्के)

R = सरकार एवं बैंकों की RBI के पास जमाएँ

इस प्रकार जनता के पास रखी गयी मुद्रा तथा बैंकों के कोषों का जोड़ शक्तिशाली मुद्रा कहलाता है। इसका सृजन मुख्य रूप से देश का केन्द्रीय बैंक करता है। चूँकि साख के निर्माण में व्यापारिक बैंकों के कोषों का महत्वपूर्ण स्थान है, इसलिए कोषों के बारे में जानना आवश्यक है। रक्षित कोष दो प्रकार के होते हैं- (i) बैंकों के वैधानिक रक्षित कोष जो उन्हें केन्द्रीय बैंक के पास रखने पड़ते हैं (RR) तथा (ii) अतिरिक्त रक्षित कोष (ER)। इस प्रकार,

H = C + RR + ER

उच्च शक्ति मुद्रा को रक्षित मुद्रा (RM) भी कहा जाता है, क्योंकि बैंक अपने पास सुरक्षित कोष (R) रखते हैं और इन्हीं के आधार पर माँग जमा (DD) का निर्माण किया जाता है। अब चूँकि साख के निर्माण की गुणक प्रक्रिया का आधार सुरक्षित कोष (R) हुआ करता है और R की प्राप्ति उच्च शक्ति मुद्रा (H) के एक भाग के रूप में होती है, इसलिए उच्च शक्ति मुद्रा (H) को आधार मुद्रा (Base Money) भी कहा जाता है।

उच्च शक्ति मुद्रा के संघटक (COMPONENTS OF HIGH POWERED MONEY)

जैसाकि पहले भी स्पष्ट किया जा चुका है, उच्च शक्ति मुद्रा को निर्धारित करने वाले महत्वपूर्ण घटक निम्नलिखित हैं-

1. जनता के पास करेन्सी (Currency with the Public)

2. रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाएँ (Other deposits with RBI)

3. बैंकों के पास नकदी (Cash with Banks)

4. रिजर्व बैंक के पास बैंकों की जमा राशियाँ (Banker's deposits with RBI)।

उच्च शक्ति मुद्रा (H) के अन्तर्गत जनता के पास की करेन्सी (C), वाणिज्यिक बैंकों के आवश्यक संचय (RR) तथा अतिरिक्त संचय (ER) शामिल रहते हैं, इसलिए,

H = C + RR + ER

मुद्रा पूर्ति (M) के अन्तर्गत बैंक जमा (D) तथा जनता के पास की करेन्सी (C) सम्मिलित रहती है, इसलिए

M = C + D

उपर्युक्त दोनों समीकरणों के बीच के अनुपात को विभक्त करने के लिए नया समीकरण इस प्रकार हो जाता है-

`\frac MH=\frac{C+D}{C+R R+ER}`

इस समीकरण के 'अंश' तथा 'हर' को D से विभाजित करने पर

`\frac MH=\frac{\frac CD+\frac DD}{\frac CD+\frac{R R}D+\frac{ER}D}`

`\frac MH=\frac{1+\frac DD}{\frac CD+\frac{R R}D+\frac{ER}D}`

यदि हम `\frac CD` को Cr ,`\frac{R}D` को RRr तथा `\frac{ER}D` ERr से प्रतिस्थापित कर दे तो सूत्र निम्न प्रकार होगा -

`\frac MH=\frac{1+C_r}{C_r+R R_r+ER_r}`

`H=\frac{C_r+R R_r+ER_r}{1+C_r}\times M`

जनता द्वारा धारित करेन्सी, वाणिज्यिक बैंकों के केन्द्रीय बैंक में जमा तथा अतिरिक्त संचय के बीच उच्च शक्ति मुद्रा का विभाजन दिया हुआ होने पर मुद्रा की पूर्ति Cr, RRr, ERr से उल्टे अनुपातों के रूप में परिवर्तित होता है किन्तु मुद्रा की पूर्ति उच्च शक्ति मुद्रा के परिवर्तन से प्रत्यक्ष अनुपात में परिवर्तित होती है। इसे चित्र की सहायता से भी दिखाया जा सकता है।

मुद्रा की पूर्ति तथा उच्च शक्ति मुद्रा  [SUPPLY OF MONEY AND HIGH POWERED MONEY]

चित्र से स्पष्ट है कि यदि उच्च शक्ति मुद्रा की पूर्ति में H की वृद्धि होती है तो Hs वक्र ऊपर उछलकर Hs1 पर चला जाता है। उच्च शक्ति मुद्रा की माँग और पूर्ति E बिन्दु पर संतुलन की दशा में है। मुद्रा की पूर्ति OM है। जब उच्च शक्ति मुद्रा की पूर्ति Hs1 हो जाती है तो सन्तुलन का नया बिन्दु E1 हो जाता है और मुद्रा की पूर्ति बढ़कर OM1 हो जाती है। चित्र से यह भी स्पष्ट होता है कि जब उच्च शक्ति मुद्रा में H की वृद्धि होती है तो मुद्रा की पूर्ति M बढ़ जाती है।

उच्च शक्ति मुद्रा के स्त्रोत (SOURCES OF HIGH POWERED MONEY)

उच्च शक्ति मुद्रा के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं-

(1) भारतीय रिजर्व बैंक के दावे (Claims of Reserve Bank of India)- रिजर्व बैंक सरकार को भी ऋण देता है। यह ऋण रिजर्व बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के द्वारा होता है। ऋण की मात्रा में से रिजर्व बैंक के पास सरकार के जमा धन को घटा देने के बाद सरकार की शुद्ध बैंक साख (Net Bank Credit to Government) की मात्रा निकाली जाती है। यह भी उच्च शक्ति मुद्रा का एक स्रोत है।

(2) रिजर्व बैंक की शुद्ध विदेशी मुद्रा परिसम्पत्तियाँ (Net Foreign Exchange Assets of Reserve Bank)- विदेशी विनिमय कोषों की व्यवस्था करना भी रिजर्व बैंक का कार्य है। जब रिजर्व बैंक देश की मुद्रा का भुगतान करके विदेशी विनिमय क्रय करता है तो विदेशी विनिमय की मात्रा बढ़ जाती है जिससे उच्च शक्ति मुद्रा में वृद्धि हो जाती है। इसके विपरीत, जब रिजर्व बैंक विदेशी प्रतिभूति का विक्रय करता है तो देश के केन्द्रीय बैंक के पास विदेशी विनिमय की मात्रा में कमी आ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च शक्ति मुद्रा में भी कमी हो जाती है।

(3) सरकार की जनता के प्रति मुद्रा सम्बन्धी देनदारियाँ (Government's Currency Liabilities to the Public)- एक रुपया का नोट छापने एवं सिक्कों को टंकण करने का कार्य भारत सरकार के वित्त मंत्रालय द्वारा किया जाता है। सरकार के द्वारा यह कार्य जनता के प्रति मुद्रा सम्बन्धी दायित्व को पूरा करने के लिए किया जाता है। अतः इस दायित्व में वृद्धि के साथ मुद्रा की पूर्ति की मात्रा भी बढ़ेगी और उच्च मुद्रा शक्ति (H) की मात्रा में भी वृद्धि होगी।

(4) रिजर्व बैंक की शुद्ध अमौद्रिक देयताएँ (Net Non-monetary Liabilities of Reserve Bank)- रिजर्व बैंक की अमौद्रिक देयताएँ राष्ट्रीय कोषों में लगायी गयी पूँजी तथा वैधानिक निधि राशियों के रूप में होती है। इनकी प्रमुख मदें हैं- चुकता पूँजी, संचित कोष, रिजर्व बैंक के कर्मचारियों के भविष्य निधि व पेंशन निधि। रिजर्व बैंक की अमौद्रिक देयताएँ जितनी अधिक होगी, नयी उच्च शक्ति मुद्रा की मात्रा उतनी कम होगी।

इसलिए,

H = 1+2+3-4

उपर्युक्त विवेचन से उच्च शक्ति मुद्रा के स्रोतों की जानकारी तो हो जाती है, किन्तु अब यह भी जानना आवश्यक है कि इन स्रोतों या तत्वों में परिवर्तन होने से मुद्रा की पूर्ति में किस प्रकार परिवर्तन होते हैं। वास्तव में, मुद्रा की पूर्ति H का फलन है और H का आकार जनता की नकदी की माँग तथा माँग जमा राशियों के बीच अनुपात (C), बैंकों के आरक्षित कोषों तथा जमा राशियों के बीच अनुपात (r) तथा समय जमा राशियों और माँग जमा राशियों के बीच अनुपात (t) के व्यवहार सम्बन्धी अनुपात पर निर्भर करता है। अतः H में होने वाले परिवर्तन सरकार तथा केन्द्रीय बैंक की नीति पर निर्भर है।

उच्च शक्ति मुद्रा का महत्व (IMPORTANCE OF HIGH POWERED MONEY)

उच्च शक्ति मुद्रा के महत्व निम्नलिखित हैं-

(1) आधार मुद्रा (Base Money) - बैंक में जनता की जमाएँ और साख का विस्तार, मुद्रा की पूर्ति के लिए महत्वपूर्ण आधार हैं। इसलिए कुछ अर्थशास्त्री इसे आधार मुद्रा कहते हैं।

(2) परिवर्तन का स्त्रोत (Source of Changes) उच्च शक्ति मुद्रा में जिस दिशा में परिवर्तन होता है, मुद्रा की पूर्ति में उसी दिशा में परिवर्तन होता है। अतः इस दृष्टि से भी उच्च शक्ति मुद्रा महत्वपूर्ण है।

(3) मुद्रा गुणक (Money Multiplier) - उच्च शक्ति मुद्रा के आधार पर ही यह तय होता है कि अर्थव्यवस्था में मुद्रा गुणक (m) कितनी होगी। क्योंकि मुद्रा की पूर्ति उच्च शक्ति मुद्रा से कई गुणा अधिक होती है।

(4) मौद्रिक नियन्त्रण (Monetary Control) - किसी भी देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा मौद्रिक नियन्त्रण करते समय उच्च शक्ति मुद्रा को विशेष ध्यान में रखा जाता है क्योंकि यह देश में कुल मुद्रा पूर्ति का एक बड़ा भाग होता है।

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