प्रश्न:- स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया के कार्यों
का वर्णन करें।
☞ भारतीय अर्थव्यवस्था में स्टेट बैंक ऑफ
इण्डिया की भूमिका का वर्णन करें।
☞ स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया का संक्षिप्त इतिहास
लिखें।
☞ स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया के उद्देश्यों का
वर्णन करें।
☞ स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया की उपलब्धियों को
बतावें।
उत्तर :- सन् 1921 में तीन
प्रेसीडेन्सी बैंकों को मिलाकर इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया (Imperial Bank of
India) की स्थापना की गयी थी और 1 जुलाई, 1955 में राष्ट्रीयकरण के पश्चात् इसका
नाम बदलकर स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया रख दिया गया।
स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया का संक्षिप्त इतिहास (BRIEF HISTORY OF STATE BANK OF INDIA)
भारत
में बैंकिंग विकास को कई अवस्थाओं में विभाजित किया गया है। सन् 1806 से 1860 तक
की अवधि को बैंकिंग विकास की दूसरी अवस्था के रूप में जाना जाता है। इस अवस्था के
प्रारम्भिक काल में देश में निजी अंशधारियों द्वारा तीन प्रेसीडेन्सी बैंकों की
स्थापना अलग-अलग समय में की गयी थी। 2 जून, 1806 में बैंक ऑफ कलकत्ता (जो 2 जनवरी,
1809 से बैंक ऑफ बंगाल हो गया), 15 अप्रैल, 1840 में बैंक ऑफ बॉम्बे तथा 1 जुलाई,
1843 में बैंक ऑफ मद्रास स्थापित हुए। यद्यपि यह तीनों बैंक निजी अंशधारियों के
बैंक थे तथापि इन तीनों बैंकों की अंशपूँजी में सरकार का भी कुछ हिस्सा था। अतः
सरकार इन तीनों बैंकों पर अपना नियन्त्रण रखती थी। इन बैंकों को सरकारी बैंकर के
सभी अधिकार प्राप्त थे, किन्तु 1862 के बाद भारत सरकार ने इन बैंकों से नोट जारी
करने का अधिकार वापस ले लिया। सरकारी कामकाज के बढ़ते स्वरूप के कारण आगे चलकर सन्
1921 में इन तीनों बैंकों को मिलाकर इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया (Imperial Bank of
India) की स्थापना की गयी।
यद्यपि
इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया एक व्यापारिक बैंक था, किन्तु रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया
की स्थापना से पहले यह केन्द्रीय बैंक के रूप में भी कार्य करता था। इसलिए देश की
बैंकिंग व्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण स्थान था। देश का केन्द्रीय बैंक होने के
कारण यह सभी प्रकार के सरकारी लेन-देन का हिसाब रखता था और बैंकों के बैंक के रूप
में कार्य करता था। परन्तु सन् 1935 में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की स्थापना के बाद
सभी केन्द्रीय बैंकिंग कार्य रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के पास चला गया और इम्पीरियल
बैंक ऑफ इण्डिया पूर्ण व्यापारिक बैंक के रूप में कार्य करने लगा। साथ ही, जिन
स्थानों पर रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की शाखा नहीं थी, वहाँ यह रिजर्व बैंक ऑफ
इण्डिया के एजेण्ट के रूप में कार्य करने लगा। अपने विस्तृत कार्यक्षेत्र के कारण
यह देश का एक मजबूत व्यापारिक बैंक था। जनता का अपार विश्वास और व्यापक
कार्यक्षेत्र होने के बावजूद इम्पीरियल बैंक की कार्य प्रणाली में निम्नलिखित दोष
थे-
1.
बैंक की अधिकांश अंशपूँजी विदेशियों की थी इसलिए इसका प्रबन्ध भी उन्हीं के हाथों में
था।
2.
विदेशियों का आधिपत्य होने के कारण संकट के दिनों में भारतीय व्यापारियों को ऋण देने
में यह उदार नहीं था।
3.
यह भारत के बैंकों के साथ सहयोगात्मक भावना न रखकर प्रतियोगिता की भावना रखता था। जहाँ
पहले से भारतीय बैंक की शाखा होती थी वहीं यह भी अपनी शाखा खोल देता था।
4.
रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की स्थापना से पहले इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया
केन्द्रीय बैंकिंग के कार्यों को सफलतापूर्वक नहीं कर रहा था। इसलिए देश में
केन्द्रीय बैंक की स्थापना की माँग हो रही थी।
इम्पीरियल
बैंक ऑफ इण्डिया के उपर्युक्त दोषों के कारण समय-समय पर इसके राष्ट्रीयकरण की माँग
उठती रहती थी। सन् 1949 में भारत सरकार ने ग्रामीण बैंकिंग जाँच समिति (Rural
Banking Enquiry Committee) को इसके प्रस्तावित राष्ट्रीयकरण के सम्बन्ध में अपना
मत व्यक्त करने के लिए कहा था। इस समिति
ने इम्पीरियल बैंक की कार्यप्रणाली के अनेक दोषों को उजागर किया था। जैसे-
1. इम्पीरियल बैंक पर सरकार का नियंत्रण उचित रूप से नहीं
है।
2. इसका आधिपत्य कुछेक लोगों के हाथों में है।
3. इसमें अधिकतम विदेशी उच्चाधिकारी हैं।
समिति ने इन दोषों को उजागर करने के बावजूद इसका
राष्ट्रीयकरण करना उचित नहीं समझा था। अगस्त, 1951 में रिजर्व बैंक ने ग्रामीण साख
व्यवस्था की जाँच करने के लिए एक अखिल भारतीय ग्रामीण साख सर्वेक्षण समिति (All
India Rural Credit Survey Committee) की नियुक्ति की थी। ए. डी. गोरवाला
(A.D.Gorwala) इस समिति के अध्यक्ष थे। दिसम्बर, 1954 में प्रकाशित इस समिति की रिपोर्ट
में यह सुझाव दिया गया कि देश के ग्रामीण साख की उचित व्यवस्था करने के लिए एक
शक्तिशाली बैंक की स्थापना करनी चाहिए जो देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी
शाखाओं को विस्तारित कर आवश्यक कृषि साख की व्यवस्था करते हुए बैंकिंग सुविधाओं का
लाभ आम आदमी को दे सके।
भारत सरकार ने गोरवाला समिति के सुझाव को स्वीकार करते हुए
16 अप्रैल, 1955 को लोकसभा में स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया बिल प्रस्तुत किया था। फिर
इस बिल की मंजूरी हो जाने पर इम्पीरियल बैंक का राष्ट्रीयकरण कर उसका नाम भारतीय
स्टेट बैंक कर दिया गया, जिसने 1 जुलाई, 1955 से विधिवत् अपना काम शुरू कर दिया।
इसी तिथि को इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया की समस्त परिसम्पत्ति और दायित्व स्टेट
बैंक ऑफ इण्डिया को हस्तान्तरित हो गये। साथ ही इम्पीरियल बैंक के अंशधारियों को
मुआवजा देने का निर्णय किया गया। मुआवजे की दर 500 के पूर्ण प्रदत्त अंश (Fully
Paid Share) के लिए 1,765, 10 आने तथा 125 के अंशतः प्रदत्त अंश (Partly Paid
Share) के लिए 431.13 आने 4 पाई तय किये गये। मुआवजे के भुगतान के लिए यह व्यवस्था
की गयी कि प्रत्येक अंशधारी को 10 हजार तक का भुगतान नकद में तथा शेष के लिए 3.5
प्रतिशत ब्याज वाले सरकारी प्रतिभूति दिए जायेंगे।
स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया एक्ट, 1955 की धारा 5 (2) के अनुसार,
स्टेट बैंक की निर्गमित पूँजी (Issued Capital) में कम-से-कम 55 प्रतिशत अंश रिजर्व बैंक अपने पास
रखेगा और शेष अंश इम्पीरियल बैंक के पुराने अंशधारियों एवं प्राथियों को जारी कर
सकेगा। साथ ही इस अधिनियम में यह भी व्यवस्था की गयी कि कोई भी व्यक्ति अपने पास
200 से अधिक अंश नहीं रख सकेगा।
अक्टूबर, 1993 में भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955 की धारा
4 में संशोधन करके बैंक के समता अंशों का अंकित मूल्य 100 प्रति अंश से घटाकर 10
प्रति अंश कर दिया गया। साथ ही प्रति व्यक्ति 200 अंशों के धारण के प्रतिबन्ध को हटा दिया गया। अपनी
पूँजी आधार को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से दिसम्बर, 1993 में भारतीय स्टेट बैंक ने
3,206 करोड़ की राशि शेयर तथा बॉण्ड बेचकर पूँजी बाजार से प्राप्त की। इस निर्गमन
के बाद भारतीय स्टेट बैंक की निर्गमित तथा चुकता पूँजी (Issued and Paidup
Capital) 200 करोड़ से बढ़कर 473.83 करोड़ हो गयी।
ग्रामीण साख सर्वेक्षण समिति ने अपने सुझाव में स्टेट बैंक
के साथ 10 देशी बैंकों को भी मिलाने का सुझाव दिया था, जिसमें बैंक ऑफ बड़ौदा और
बैंक ऑफ राजस्थान भी शामिल था। स्टेट बैंक की स्थापना के बाद इन दस बैंकों को
मिलाने के प्रयास आरम्भ किये गये। सबसे पहले बैंक ऑफ बड़ौदा इस विलय के लिए तैयार
नहीं हुआ, फिर शेष 9 बैंकों ने भी विलय के लिए अपनी सहमति नहीं दी। इस असफल प्रयास
के बाद इन 9 बैंकों को स्टेट बैंक का सहायक बैंक बनाने का प्रस्ताव दिया गया, जिसे
बैंक ऑफ राजस्थान को छोड़कर शेष 8 बैंकों ने मान लिया। बाद के समय में सहायक
बैंकों के लिए एक अधिनियम भी बनाया गया। स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया (सहायक बैंक)
अधिनियम, 1959 State Bank of India (Subsidiary Bank) Act, 1959 के अनुसार 1
अक्टूबर, 1959 को बैंक ऑफ हैदराबाद, 1 जनवरी, 1960 को बैंक ऑफ बीकानेर, बैंक ऑफ
इन्दौर, बैंक ऑफ जयपुर और बैंक ऑफ ट्रावनकोर, 1 मार्च, 1960 को बैंक ऑफ मैसूर, 1
अप्रैल, 1960 को बैंक ऑफ पाटियाला तथा 1 मई, 1960 को बैंक ऑफ सौराष्ट्र सहायक बैंक
बनाये गये और उनके नाम के पहले 'स्टेट' शब्द जोड़ दिया गया। फिर बाद के दिनों में
1 जनवरी, 1963 से स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर तथा स्टेट बैंक ऑफ जयपुर को कार्यक्षेत्र
में एकरूपता होने के कारण उनका विलय कर स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एण्ड जयपुर बना दिया
गया। इस विलय के बाद स्टेट बैंक के सहायक बैंकों की संख्या 7 हो गयी। किन्तु
जुलाई, 2008 में इनमें से एक सहायक बैंक; स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र का भारतीय स्टेट
बैंक में विलय कर दिया गया। अतः स्टेट बैंक के सहायक बैंक केवल 6 रह गये हैं। इस
दिशा में बढ़ रही प्रक्रिया के तहत 26 अगस्त, 2010 को स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर को
स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया में विलय कर दिया गया। इस विलय के बाद स्टेट बैंक के सहायक
बैंकों की संख्या केवल 5 रह गई थी। पुनः 1 अप्रैल, 2017 को शेष सभी 5 सहायक बैंकों
और भारतीय महिला बैंक का स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया में विलय कर दिया गया। अब स्टेट
बैंक का कोई बैंक नहीं है।
स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया के उद्देश्य (OBJECTIVES OF THE STATE BANK OF INDIA)
अन्य व्यापारिक बैंकों की तरह स्टेट बैंक भी एक व्यापारिक
बैंक है, किन्तु साधारणतया इसे कुछ विशेष अधिकार दिए गये हैं। जहाँ रिजर्व बैंक ऑफ
इण्डिया की शाखा नहीं है वहाँ स्टेट बैंक ही उसके एजेण्ट के रूप में कार्य करता
है। इस बैंक पर सरकार का प्रभावी नियंत्रण है। इस बैंक की स्थापना के मुख्य
उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. इस बैंक की स्थापना की प्रस्तावना में ही कहा गया था कि
ग्रामीण साख की उचित व्यवस्था करने के लिए एक शक्तिशाली बैंक के रूप में स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया की
स्थापना की जाय।
2. इस बैंक का उद्देश्य सहकारी साख व्यवस्था में सरकार की
साझेदारी करना है।
3. सार्वजनिक क्षेत्र का सबसे बड़ा बैंक होने के कारण देश
के अधिकांश क्षेत्रों में शाखाओं को स्थापित करके शहरी लोगों के साथ-साथ ग्रामीण
लोगों को बचत की सुविधा देकर बचत को बढ़ावा देना।
4. धन के हस्तान्तरण में जनता के धन एवं समय की बचत करना।
5. समाज के अन्तिम पंक्ति के व्यक्ति को भी सहायता देकर आगे
बढ़ने का अवसर देना।
6. लघु एवं मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य
से उन्हें आर्थिक सहायता देना।
7. रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के एजेण्ट के रूप में कार्य
करना।
पूँजी एवं प्रबन्ध (CAPITAL AND MANAGEMENT)
1 जुलाई, 1955 को स्टेट बैंक की अधिकृत पूँजी 20 करोड़ थी,
जिसे 1 जुलाई, 1985 को बढ़ाकर 200 करोड़ और 1 जुलाई, 1990 को 1000 करोड़ कर दी गई
है। वर्तमान में भी इसकी अधिकृत पूँजी • 1 वाले समता अंशों में 5000 करोड़ है।
भारतीय स्टेट बैंक का प्रबन्ध एक केन्द्रीय संचालन बोर्ड
(Central Board of Directors) द्वारा संचालित होता है। 20 सदस्यों वाले इस बोर्ड
में 1 अध्यक्ष (Chairman), 1 उपाध्यक्ष (Vice-Chairman), 2 प्रबन्ध संचालक
(Managing Directors) तथा 16 संचालक (Directors) होते हैं। इन 16 संचालकों में से
6 संचालक निजी अंशधारियों द्वारा और 8 संचालक भारत सरकार द्वारा रिजर्व बैंक की
सलाह पर चुने जाते हैं, शेष दो संचालकों में एक रिजर्व बैंक द्वारा और दूसरा भारत
सरकार द्वारा नियुक्त किये जाते हैं। ये दोनों संचालक सहकारिता, उद्योग, वाणिज्य
तथा वित्त सम्बन्धी विशेषज्ञ होते हैं। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा प्रबन्ध संचालकों
का कार्यकाल अधिकतम 5 वर्षों का होता है, परन्तु संचालकों का कार्यकाल 4 वर्षों का
होता है, यद्यपि उन्हें दुबारा भी नियुक्त अथवा चुना जा सकता है। स्टेट बैंक के
केन्द्रीय संचालन बोर्ड को समय-समय पर स्थानीय बोर्डों द्वारा
भी परामर्श दिए जाते हैं। स्टेट बैंक का प्रधान कार्यालय
मुम्बई में है। इसके अलावा स्थानीय मण्डल कार्यालय कोलकाता, मुम्बई,
नयी दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद, पटना, भोपाल, भुवनेश्वर,
चण्डीगढ़ और गौहाटी में हैं।
स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया के कार्य (FUNCTIONS OF STATE BANK OF INDIA)
स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया के कार्यों को निम्नलिखित शीर्षकों
द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) केन्द्रीय बैंकिंग सम्बन्धी कार्य (Central Banking
Functions) - वैसे तो केन्द्रीय
बैंकिंग सम्बन्धी कार्य देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है और स्टेट बैंक
देश का केन्द्रीय बैंक नहीं है, किन्तु जहाँ रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की शाखा नहीं
है, वहाँ रिजर्व बैंक के एजेण्ट के रूप में यह केन्द्रीय बैंकिंग कार्यों को करता
है। रिजर्व बैंक के एजेण्ट के रूप में स्टेट बैंक निम्नलिखित दो कार्यों को करता
है-
1. यह सरकार के बैंकर के रूप में जनता से सरकार की ओर से धन
वसूल करता है और सरकार के आदेशानुसार इसका भुगतान करता है।
2. यह बैंकों के बैंक के रूप में अन्य व्यापारिक बैंकों का
जमा स्वीकार करता है और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें ऋण भी देता है। इसके अलावा
व्यापारिक बैंकों के बिलों की पुनः कटौती करता है और समाशोधन गृह की व्यवस्था करता
है।
(2) साधारण बैंकिंग कार्य (Ordinary Banking Functions) - साधारण बैंकिंग सम्बन्धी कार्यों के अन्तर्गत स्टेट बैंक
उन सभी कार्यों को करता है, जो अन्य व्यापारिक बैंकों द्वारा भी किये जाते हैं।
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित कार्य आते हैं-
1. निक्षेप स्वीकार करना (Accepting Deposits) - अन्य व्यापारिक बैंकों की तरह स्टेट बैंक भी जनता से
विभिन्न खातों के माध्यम से निक्षेप स्वीकार करता है। इसके अलावा यह अन्य
व्यापारिक बैंकों के जमा को भी प्राप्त करता है। 31 मार्च, 2017 को इनके पास कुल
निक्षेप 20,44,751 करोड़ थे।
2. विनियोग (Investment)- स्टेट बैंक अपनी आय में वृद्धि के लिए अपने अतिरिक्त धन को
विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों में विनियोग करता है। इनके विनियोग भारत सरकार की
प्रतिभूतियों, राज्य सरकारों की प्रतिभूतियों, रेलवे प्रतिभूतियों इत्यादि में
होता है। 31 मार्च, 2015 को इसके कुल विनियोग 4,64,670 करोड़ थे।
3. ऋण एवं अग्रिम (Loans and Advances) - प्राप्त जमा राशि का एक बड़ा भाग स्टेट बैंक ऋण एवं
अग्रिम के रूप में देता है। इस ऋण एवं अग्रिम से प्राप्त ब्याज बैंक की आय का एक
बहुत बड़ा स्रोत है। 31 मार्च, 2015 को बैंक के द्वारा ऋण एवं अग्रिम मद में कुल
13,00,026 करोड़ दिए गये थे।
4. विदेशी बैंकिंग कार्य (Foreign Banking Functions)- स्टेट बैंक ने अपनी शाखाओं का विस्तार विदेशों में भी किया है। 31 मार्च, 2011 तक स्टेट बैंक
के विदेश स्थित कार्यालयों की संख्या 156 थी, जो 31 मार्च, 2017 को बढ़कर 195 हो
गई। विश्व के 36 देशों में 195 विदेश स्थित कार्यालयों में 69 शाखाएँ, 8 प्रतिनिधि
कार्यालय, 7 विदेशी बैकिंग अनुषंगियों के 110 कार्यालय और 4 अन्य कार्यालय हैं।
इनकी 69 शाखाओं में सर्वाधिक शाखाएँ यूके में 10 हैं। इसके अलावा सिंगापुर में 7,
श्रीलंका में 6, बांग्लादेश में 9, यूएसए में 4, जापान में 2, चीन में 2, मालदीव
में 3, बहरीन में 4 और बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, इजरायल, ओमान,
बहामास द्वीप, यूएई में 1-1 शाखा कार्यालय स्थापित है।
(3) अन्य कार्य (Other Functions)-स्टेट बैंक के अन्य कार्यों में निम्नलिखित प्रमुख हैं-
1. पारस्परिक कोष (Mutual Funds)- पारस्परिक कोष धन के विनियोग का एक ऐसा माध्यम है जिसमें
जनता के धन को पूँजी बाजार में विनियोग करके उन्हें अधिकतम प्रत्याय (Return) देना
है। इस क्षेत्र में अनेक व्यापारिक बैंकों एवं वित्तीय संस्थाओं ने अपना कदम रखा
है। इसी क्रम में स्टेट बैंक द्वारा मैग्नम योजना (Magnum) प्रारम्भ की गयी है।
2. आवास वित्त (Housing Finance) - वित्तीय सहायता देने की इस योजना का उद्देश्य व्यापारिक
कार्यों के लिए ऋण देना नहीं है, बल्कि देश में आवास समस्या को देखते हुए
व्यापारिक बैंकों के द्वारा आवास हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना है। अन्य
व्यावसायिक बैंकों की तरह स्टेट बैंक भी आवास वित्त प्रदान करता है।
3. समाज कल्याण का कार्य (Social Welfare Function) - स्टेट बैंक सामाजिक कल्याण में भी दिलचस्पी लेता है।
समय-समय पर रक्त दान शिविर लगाना, वृक्षारोपण आन्दोलन, जाड़े में कम्बल वितरण,
मेडिकल जाँच कैम्प लगाना, अपंगों की सहायता करना, शिक्षण संस्थानों में उपस्कर,
कम्प्यूटर देना इत्यादि कार्यक्रम स्टेट बैंक द्वारा समाज कल्याण हेतु चलाये जाते
हैं।
4. अन्य व्यावसायिक बैंकिंग कार्य (Other Commercial
Banking Functions) – उपर्युक्त
कार्यों के अलावा स्टेट बैंक उन सभी कार्यों को करता है जो
अन्य व्यापारिक बैंकों द्वारा किया जाता है। जैसे- धन का सुगम हस्तान्तरण, लॉकर की
सुविधा, सोना का विक्रय, शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार योजना बनाना
इत्यादि ।
स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया की प्रगति या उपलब्धियाँ
(PROGRESS OR ACHIEVEMENTS OF STATE BANK OF INDIA)
भारतीय स्टेट बैंक ने आर्थिक विकास के क्षेत्र में अच्छी
प्रगति की है। इसके साथ-साथ सामाजिक त्तरदायित्वों का निर्वाह भी संतोषजनक तरीके
से किया है। इनकी प्रगति को निम्नलिखित शीर्षकों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
1. शाखाओं का विस्तार (Expansion of Branches) - 31 मार्च, 2012 को स्टेट बैंक समूह की 20,193 शाखाएँ
थीं। इनमें 5,096 शाखाएँ इसके पाँच सहयोगी बैंकों की हैं, जबकि मार्च 2011 में
स्टेट बैंक समूह के शाखाओं की संख्या 19,027 और मार्च 2010 में 18,240 थीं। इस
प्रकार स्टेट बैंक समूह की शाखाओं में प्रतिवर्ष वृद्धि होती रही है। केवल स्टेट
बैंक की घरेलू शाखाओं की संख्या 31 मार्च, 2017 को 17,170 और विदेशी शाखाओं की
संख्या 195 थी।
2. ऋण एवं अग्रिम (Loans and Advances) विभिन्न क्षेत्रों को ऋण एवं अग्रिम प्रदान करने में स्टेट
बैंक और उसके सहायक बैंकों ने अच्छी दिलचस्पी ली है। वित्तीय वर्ष 2013-14 में
स्टेट बैंक द्वारा कुल अग्रिम 12,09,829 करोड़ प्रदान किये गये थे जो वित्तीय वर्ष
2014-15 में बढ़कर 13,00,026 करोड़, 2015-16 में 14,63,700 करोड़ और 2016-17 में
15,71,068 करोड़ हो गये हैं। इस प्रकार स्टेट बैंक ने देश के आर्थिक विकास में
काफी सहयोग किया है।
3. जमा में वृद्धि (Increase in Deposits) - स्टेट बैंक और उसके सहायक बैंकों ने विभिन्न खातों के
माध्यम से जो जमा स्वीकार किया है, उसमें भी काफी वृद्धि हुई है। स्टेट बैंक के
पास 31 मार्च, 2005 का 3,67,048 करोड़ का जमा था जो 31 मार्च, 2007 को बढ़कर
4,35,521 करोड़, 31 मार्च, 2009 को • 7,42,073 करोड़, 31 मार्च, 2010 को 8,04,116
करोड़, 31 मार्च, 2011 को 9,33,933 करोड़, 31 मार्च, 2012 को 10,43,647 करोड़ और
31 मार्च, 2013 को 12,02,740 करोड़ का हो गया है। इसी प्रकार 31 मार्च, 2014 इसकी
जमा रकम 13,94,408 करोड़ थी जो 31 मार्च, 2015 को बढ़कर • 15,76,793 करोड़, 31
मार्च, 2016 को 17,30,722 करोड़ तथा 31 मार्च, 2017 को 20,44,751 करोड़ हो गई।
4. कृषि विकास शाखाएँ (Agriculture Development Branches) - कृषि क्षेत्र के लिए साख की उत्तम व्यवस्था करने के लिए
स्टेट बैंक ने उल्लेखनीय कदम उठाया है। खासकर कृषि विकास के लिए अलग से कृषि विकास
शाखाओं की स्थापना कर भारतीय कृषकों को काफी सहयोग किया है। इन शाखाओं के माध्यम
से किसानों को अल्पकालीन एवं मध्यमकालीन ऋण दिये जाते हैं।
5. कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि (Increase in the
Number of Employees)-
स्टेट बैंक ने न केवल अपनी शाखा कार्यालयों का विस्तार किया है, बल्कि कर्मचारियों
की संख्या में वृद्धि करके देश में रोजगार के अवसर प्रदान किए हैं। 31 मार्च, 2014
को स्टेट बैंक के कर्मचारियों की संख्या 2,22,809 थी, जो 31 मार्च, 2015 को
2,13,238 हो गई। इसमें 80,531 अधिकारी, 1,01,648 लिपिकीय कर्मचारी, 24,799 अधीनस्थ
कर्मचारी तथा 15,831 सुरक्षाकर्मी थे। किन्तु 31 मार्च, 2017 को इनके कर्मचारियों
की संख्या 2,09,121 रह गई है।
6. विनियोग में वृद्धि (Increase in Investment) - विनियोग के क्षेत्र में स्टेट बैंक प्रतिवर्ष अपनी
प्रगति दर्ज की है। वित्तीय वर्ष 2007-08 में इसके विनियोग
1,89,501 करोड़ थे जो 2008-09 में 2,75,954 करोड़, 2009-10 में 2,95,785 करोड़,
2010-11 में 2,95,601 करोड़, 2011-12 में 3,12,198 करोड़ हो गये। 31 मार्च, 2014
को इसकी विनियोग राशि 3,74,540 करोड़ थी जो 31 मार्च, 2015 को 4,64,670 करोड़, 31
मार्च, 2016 को 5,75,652 करोड़ और 31 मार्च, 2017 को 7.65990 करोड़ हो गई।
7. औद्योगिक वित्त (Industrial Finance) - वैसे तो बड़े उद्योगों को आर्थिक सहायता देने के लिए देश
में अनेक विकास बैंक हैं, किन्तु स्टेट बैंक ने छोटे एवं मध्यम स्तर के उद्योगों
के साथ-साथ बड़े उद्योगों को भी आर्थिक सहायता देकर देश की औद्योगिक विकास में
सहायता की है। इनके द्वारा पूँजीगत उद्योगों, उपभोक्ता उद्योगों तथा आधारभूत
उद्योगों को ऋण देकर उन्हें आगे बढ़ने में सहयोग किया है।
8. पिछड़े क्षेत्रों का विकास (Development of Backward
Areas) - देश के पिछड़े
क्षेत्रों के विकास के लिए भारतीय स्टेट बैंक ने 94 जिलों में अग्रणी बैंक योजना
प्रारम्भ की है, जिनमें 82 जिले औद्योगिक रूप से पिछड़े हैं। स्टेट बैंक के इस पहल
से उन क्षेत्रों का विकास हो रहा है।
9. सरकार की योजनाओं में सहयोग (Involvement in Government
Plans) - सरकार की ओर से
राष्ट्रहित में समय-समय पर अनेक योजनाओं की घोषणा की जाती है। इन योजनाओं के
कार्यान्वयन में स्टेट बैंक की अग्रणी भूमिका रही है।
10. विदेशी विनिमय की व्यवस्था (Arrangement of Foreign
Exchange)- आज का व्यापार
विश्वव्यापी हो गया है। विदेशों से माल आयात करने पर उन्हें विदेशी मुद्रा में
भुगतान करना पड़ता है। स्टेट बैंक विश्व की 20 महत्वपूर्ण मुद्राओं का क्रय-विक्रय
करता है, जिससे विदेशी भुगतान में काफी सहायता मिलती है। इसके अलावा निर्यात को
प्रोसाहन देने के उद्देश्य से स्टेट बैंक निर्यातकर्ताओं को सुविधाजनक ऋण भी देता
है।
11. शुद्ध लाभ में वृद्धि (Increase in Net Profit)- स्टेट बैंक ने शुद्ध लाभ के अर्जन में अच्छी प्रगति दर्ज
की है। वित्तीय वर्ष 2008-09 में स्टेट बैंक का शुद्ध लाभ 9,121 करोड़ था जो वर्ष
2009-10 में 9,166 करोड़, 2010-11 में 8,265 करोड़ और 2011-12 में 11,707 करोड़ हो गया।
वर्ष 2014-15 में इसका शुद्ध लाभ 13,101 करोड़, 2015-16 में 9,951 करोड़ और
2016-17 में 10,484 करोड़ रुपये हो गया है।
12. लाभांश दर में वृद्धि (Increase in Rate of Dividend)- स्टेट बैंक ने अपने अंशधारियों के लिए वर्ष 2011-12 में 35
प्रति शेयर की दर से (350%) लाभांश घोषित किया, जबकि पिछले वर्ष 2010-11 में यह 30
प्रति शेयर (300%) था। वर्ष 2014-15 में 1 अंकित मूल्य के अंशों पर 3.50 प्रति अंश
(350%) 2015-16 में 2.60 प्रति शेयर और 2016-17 में भी 2.60 प्रति शेयर लाभांश
घोषित किया गया है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि अपनी कम आयु में ही स्टेट बैंक ने
अच्छी प्रगति दिखायी है। यही कारण है कि आज यह देश का सबसे बड़ा व्यापारिक बैंक
है।
स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया के वर्जित व्यवसाय (PROHIBITED BUSINESSES OF SBI)
स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया के लिए निम्नलिखित वर्जित व्यवसाय
हैं-
1. स्टेट बैंक अंशों की जमानत पर 6 माह से अधिक अवधि का ऋण
नहीं दे सकता है, किन्तु उद्योग- धन्धों को उनकी सम्पत्ति के आधार पर 7 वर्षों के लिए ऋण दे
सकता है।
2. स्टेट बैंक अपने कार्यालयों की आवश्यकता के अतिरिक्त कोई
अन्य अचल सम्पत्ति नहीं खरीद सकता है।
3. स्टेट बैंक 3 माह से अधिक के परिपक्वता की अवधि के बिलों
की पुनः कटौती नहीं कर सकता है किन्तु 15 माह की अवधि के कृषि बिलों की पुनः कटौती
कर सकता है।
4. स्टेट बैंक उन बिलों की पुनः कटौती नहीं कर सकता है जिन
पर कम-से-कम दो अच्छे हस्ताक्षर न हों।
5. स्टेट बैंक किसी व्यक्ति या फर्म को पूर्व निश्चित सीमा से अधिक न तो ऋण दे सकता है और न ही उसके बिलों की पुनः कटौती कर सकता है।
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