प्रश्न :- बर्गसन सैम्युलसन सामाजिक कल्याण फलन की आलोचनात्मक
व्याख्या करें?
उत्तर :- प्रो. बर्गसन ने सर्वप्रथम अपने लेख 'A Reformulation
of Certain Aspects of welfare Economics' में सामाजिक कल्याण फलन का प्रतिपादन किया। इस प्रतिपादन के आधार पर उत्पादन
तथा विनिमय की अनुकूलतम शर्ते अधिकतम कल्याण के
लिए आवश्यक शर्तें स्वीकार की जाती है। बर्गसन- सैम्युलसन सामाजिक कल्याण फलन का प्रतिपादन स्पष्ट मूल्यगत निर्णयों पर आधारित है। ये मूल्यगत निर्णय किसी स्थिति का मूल्यांकन करने में किसी
नीति-निर्माता की सहायता करते है। सामाजिक कल्याण फलन समाज के कल्याण का क्रमवाचक
सूचकांक होता है जो विभिन्न व्यक्तियों की क्रमवाचक उपयोगिताओं पर निर्भर करता है। विभिन्न व्यक्तियों की
क्रमवाचक उपयोगिताओ का मूल्य उन सभी
चरो पर निर्भर करता है जो व्यक्तिगत
उपयोगिताओं को प्रभावित करते हैं।
सामाजिक कल्याण फलन का प्रतिपादन निम्न रूप में किया जा
सकता है
W = w (U1,
U2, U3 .......Un)
जहाँ, W सामाजिक कल्याण को U1, U2, U3 .......Un
विभिन्न व्यक्तियों की क्रमवाचक
उपयोगिताओं को तथा w
उपयोगिता तथा सामाजिक कल्याण के मध्य कार्यात्मक सम्बंध को प्रदर्शित करते है।
इस प्रकार यह फलन स्पष्ट करता है कि समाज का कल्याण विभिन्न व्यक्तियों के उपयोगिता सूचकांक U1,
U2, U3
तथा Un, पर निर्भर करता है और यह विभिन्न व्यक्तियों के
क्रमवाचक उपयोगिता सूचकांक पर निर्भर करते है।
मान्यताएं
सामाजिक कल्याण फलन निम्नलिखित मान्यताओं
पर आधारित है
(1) यह मानदण्ड उपयोगिता के क्रमवाचक विचार पर आधारित है।
(2) सामाजिक कल्याण व्यक्तियों के कल्याण पर निर्भर करता
है। एक व्यक्ति का कल्याण न केवल उसकी आय अथवा उपभोग पर निर्भर करता है बल्कि यह समाज के पूरे कल्याण अथवा अन्य व्यक्तियों
की आय तथा उनके उपभोग पर भी निर्भर करता है।
(3) इन मानदण्डो के विश्लेषण में नैतिक निर्णयों तथा उपयोगिता
की अन्तरवैयक्तिक तुलनाओं को शामिल किया गया है।
(4)
इस मानदण्ड में यह मान्यता
भी निहित है कि इसके विश्लेषण में बाहरी बचतो तथा अबचतों
को शामिल किया गया है।
सामाजिक
कल्याण फलन
का रूप उस व्यक्ति
अथवा संस्था के मूल्यगत निर्णय पर निर्भर करेगा जिसे सामाजिक कल्याण के विषय में मूल्यगत
निर्णय देने का अधिकार प्रदान किया गया है। वह व्यक्ति अथवा संस्था
कोई भी हो सकता है किंतु वास्तविक स्थिति का निर्णय देने के लिए आवश्यक है कि वह निष्पक्ष व्यक्ति
अथवा संस्था हो क्योंकि उसके निर्णय पर ही सामाजिक
कल्याण में परिवर्तन निर्भर करेगा और
उस निर्णय को समाज के सभी व्यक्तियों को स्वीकार करना होता है।
प्रो.
बॉमोल के
शब्दों में, "ये निर्णय, जो
वितरण में न्याय तथा सुधार करते
हैं, वे स्वयं अर्थशास्त्री
के अथवा वे जो कानून द्वारा निर्मित होते है, किसी अन्य
सरकारी अधिकारी अथवा किसी अन्य अनिर्दिष्ट व्यक्ति अथवा समुदाय द्वारा निर्मित हो सकते
हैं"।
बर्गसन तथा सैम्युलसन ने मूल्यगत
निर्णय देने के संबंध में एक महापुरुष की कल्पना की है जो समाज के कल्याण में परिवर्तन
के विषय में कोई मूल्यगत निर्णय लेता है। महापुरुष का निर्णय सर्वोपरि होता है। समाज
के सभी व्यक्तियों को उन निर्णयों को स्वीकार करना होगा क्योंकि समाज ने उस व्यक्ति
को निर्णय लेने का अधिकार यह सोचकर दिया है कि वह अपने स्वार्थ को नहीं वरन् सामाजिक
कल्याण को अधिकतम करने को ध्यान में रखकर कोई निर्णय देता है। इस प्रकार एक महात्मा
की कल्पना द्वारा हम उपयोगिता की अन्तवैयक्तिक तुलना, जोड़ने, घटाने तथा मापने की समस्याओं
से मुक्ति पा जाते
है।
बर्गसन तथा सैम्युलसन ने जिस
महापुरुष की कल्पना की है उसके सभी मूल्यगत निर्णय परस्पर संगत होने आवश्यक है जिसका
अभिप्राय यह है कि यदि वह किसी दी हुई परिस्थिति में X को Y की तुलना में अधिक अनधिमान
देता है तथा Y को Z की अपेक्षा अधिक अधिमान देता है तो उसे X को Z से भी अधिक अधिमान
देना चाहिए।
सामाजिक कल्याण के प्रमुख लक्षण
बर्गसन- सैम्युलसन द्वारा
प्रतिपादित सामाजिक कल्याण का विश्लेषण करने से निम्नलिखित प्रमुख लक्षण ज्ञात
होते है-
(1)
बर्गसन - सैम्युलसन का सामाजिक कल्याण फलन अन्तवैयक्तिक तुलना पर आधारित है। मूल्यगत
निर्णय इसी का परिणाम है। यह अन्तवैयक्तिक तुलना उपयोगिता के गणनावाचक विचार पर आधारित न होकर क्रमवाचक विचार पर आधारित है।
(2) यह फलन एक सामान्यीकृत सामाजिक कल्याण फलन है जिसके
अन्तर्गत मार्शल-पीगू तथा कैल्डर- हिक्स-सिटोवस्की के कल्याणकारी अर्थशास्त्र को
सम्मिलित किया जा सकता है।
(3) सामाजिक कल्याण फलन किसी एकमात्र मूल्यगत निर्णय का ही
समावेश न करके किसी प्रकार के भी मूल्यगत निर्णय को समाविष्ट करता है।
(4) इस कल्याण फलन में जो नैतिक विचार सम्मिलित है, वे
पूर्णतया क्रमवाचक है, गणनावाचक नहीं।
(5) मूल्यगत निर्णयों के आधार पर एक बार सामाजिक कल्याण फलन
के निर्धारित हो जाने के पश्चात् अनुकूलतम कल्याण के स्तर को प्राप्त करने के लिए
कीमत-सिद्धांत द्वारा साधनों का आवंटन विभिन्न क्षेत्रों में किया जा सकता है तथा
वस्तुओं के उत्पादन को उपभोक्ताओं में न्यायपूर्ण ढंग से वितरित किया जा सकता है
ताकि सामाजिक कल्याण अधिकतम हो सके।
अनुकूलतम कल्याण को रेखा चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं
उपर्युक्त रेखा चित्र में UF वक्र उपयोगिता सीमा वक्र है जो
अर्थव्यवस्था में उपलब्ध साधनों के आधार पर सभी सम्भव उपयोगिता संयोगों की सीमाओं
को दिखाती है। W1, W2, W3, W4
पूरे समाज के विभिन्न कल्याण स्तरों को दिखाते है। अनधिमान वक्र W3
उपयोगिता सीमा वक्र को E बिन्दु पर स्पर्श करती है। यही बिन्दु अनुकूलतम कल्याण का
स्तर है।
सामाजिक कल्याण फलन की सहायता से अधिकतम सामाजिक कल्याण हल को ज्ञात करने के लिए हमे पेरेटो के अनुकूलतम विश्लेषण से एक महत्वपूर्ण आधुनिक धारणा "उच्चतम उपयोगिता सम्भावना वक्र को निर्मित किया गया है। उच्चतम उपयोगिता वक्र पर स्थित समस्त बिन्दु पेरेटो अनुकूलतम बिन्दु है जिसे आर्थिक दृष्टि से कुशल बिन्दु भी कहा जाता है। अनुकूलतम कल्याण, अधिकतम संतोष का यह विशेष सन्तुलन बिन्दु विशेष उत्पादन ढाॅचे, दो व्यक्तियों में विशेष प्रकार से उसके वितरण, संसाधनों के विशेष संयोग से उत्पादन को व्यक्त करता है जिससे अधिकतम सम्भव सामाजिक कल्याण प्राप्त होता है। चित्र में, A, B, D अनुकूलतम बिन्दु नहीं है क्योंकि यह उच्चतम उपयोगिता सम्भावना वक्र UF से नीचे स्थित है, C बिन्दु भी ऊँचे अनधिमान पर स्थित है परन्तु W4 वक्र UF के ऊपर स्थित है जहाँ पर उपभोक्ता नहीं पहुंच सकता। अतः अधिकतम सम्भव सामाजिक कल्याण का बिन्दू E है जो आर्थिक दृष्टि से कुशल है और दूसरे वह दो व्यक्तियों में प्रदत्त सामाजिक कल्याण फलन की दृष्टि से इष्टतम वितरण को व्यक्त करता है। अतः अधिकतम सामाजिक कल्याण सम्बंधी यह विश्लेषण वितरण अथवा न्याय सम्बंधी मूल्यगत निर्णय को आर्थिक कुशलता से जोड़ता है।
सामाजिक कल्याण फलन का सामाजिक अनधिमान वक्रो द्वारा स्पष्टीकरण
ऐसी सरल अर्थव्यवस्था जिसमे दो व्यक्ति ही हो, सामाजिक, कल्याण फलन को सामाजिक अनधिमान वक्रो के समूह द्वारा व्यक्त किया जा सकता है-
चित्र में दो व्यक्तियों A तथा B के उपयोगिता को X तथा Y अक्ष
पर मापा गया है। W1, W2,
W3, W4 सामाजिक
अनधिमान वक्र है। इन सामाजिक वक्रो की विशेषताएँ यह है कि यह वक्र जितना ही अधिक
ऊँचा होगा सामाजिक कल्याण का स्तर उतना ही अधिक होगा।
यदि कोई नीति परिवर्तन जो अर्थव्यवस्था को Q से T को
ले जाता है तो सामाजिक कल्याण में वृद्धि करेगा, यदि वह अर्थव्यवस्था को S से Q को लाता है तो सामाजिक कल्याण में कमी
होगी और यदि कोई नीति परिवर्तन अर्थव्यवस्था को Q से R को पहुँचाता है तो सामाजिक, कल्याण पूर्ववत् रहेगा।
प्रो. बर्गसन - सैम्युलसन ने इस फलन को प्रस्तुत करके समस्या का समाधान किया है। इस सामाजिक
कल्याण फलन के अन्तर्गत किसी व्यक्ति के कल्याण को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्वों का समावेश
किया जा सकता है वे चाहे आर्थिक हो अथवा अनार्थिक। चूंकि सामाजिक कल्याण व्यक्तिगत कल्याण पर निर्भर स्वीकार
किया गया है जिसके विषय में एक महापुरुष निर्णय लेती है। यही कारण है कि डा. लिटिल
ने इस फलन के महत्त्व को निम्न शब्दो में व्यक्त किया है "यह एक प्रतिभाशाली सैद्धान्तिक निर्माण
की पूर्ति करता है"।
आलोचना
यद्यपि सामाजिक कल्याण फलन मूल्यगत
निर्णयों का समावेश करने से अपने पूर्व कल्याणकारी विचारों पर सुधार है, फिर भी निम्नलिखित
प्रमुख दृष्टिकोणों से इस फलन की आलोचनाएँ की जाती है-
(1) यह एक पूर्णतया सामान्य सामाजिक
कल्याण फलन है। अतः इसकी व्यावहारिक उपयोगिता बहुत कम है। डॉ. लिटिल की यह आलोचना
है कि सामाजिक कल्याण फलन को लोकतान्त्रिक शासन मे लागू नहीं किया जा सकता है। लोकतंत्र
में जितने व्यक्ति होगे, उतने ही अस्पष्ट कल्याण फलन होगे। यदि समाज के व्यक्तिगत सदस्यों
को केवल दो ही विकल्पों के प्रति चुनाव करना हो तो सामाजिक कल्याण फलन का निर्माण एक
सरल क्रिया के रूप मे रह सकता है।
(2) प्रो. पॉल स्ट्रीटेन के अनुसार,
यह फलन आवश्यकता से अधिक औपचारिक होने के कारण सामाजिक जीवन के महत्त्वपूर्ण तथ्यों
से दूर है।
(3) प्रो. बॉमोल का यह कहना है कि वास्तविक
जीवन में सामाजिक कल्याण फलन का बनाना अत्यन्त कठिन है, क्योंकि "यह कल्याण सम्बंधी
निर्णयों को एकत्रित करने के लिए, जिनकी इसको आवश्यकता होती है, एक साजसज्जा तथा निर्देशों
के समूह से सुसज्जित होकर नहीं आता है"। अतः व्यवहार में यह सामाजिक कल्याण फलन
अधिक सहायक सिद्ध नहीं होता है।
(4) प्रसिद्ध भारतीय अर्थशास्त्री प्रो.
जे. के. मेहता के अनुसार, "यह फलन, सामाजिक कल्याण में परिवर्तन
का सही एवं उचित अध्ययन नहीं कर पाता है"। उनका तर्क यह है कि निष्पक्ष मूल्यगत निर्णयों के लिए सम्बन्धित व्यक्ति अथवा
प्रतिनिधि संस्था पूर्णरूप से निष्पक्ष तथा व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर होनी चाहिए। यह
तभी हो सकता है जबकि वह आवश्यकता विहीनता की स्थिति में हो। यह वास्तविक जीवन मे सम्भव
नही है और इसलिए मूल्यगत निर्णयों का भी निष्पक्ष पाया जाना सम्भव नहीं है।
निष्कर्ष
उपर्युक्त विवेचनाओं के आधार पर कहा
जा सकता है कि सामाजिक कल्याण फलन को निर्धारित करना कोई सरल बात नहीं है। अभी तक अर्थशास्त्रियों
ने सामाजिक कल्याण फलन को निर्धारित करने की कोई विशेष सर्वमान्य विधि नहीं सुझाई है
और इस सम्बंध में बहुत मतभेद पाया जाता है। अतः
"सामाजिक कल्याण फलन अभी तक एक आदर्शात्मक धारणा है जिसको वास्तविक नीति निर्माण के उपकरण के रूप में आसानी से परिणत नहीं किया जा सकता"।
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